मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी
शिक्षा: एम काम, एल.एल.बी ।
लेखन: लघुकथा ,कविता ,हाइकु ,तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन । देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।
सम्पादन:क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष 1983 से निरंतर संपादन । इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्रिका का संपादन।
प्रकाशन:
पुस्तकें शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह),
पिघलती आंखों का सच (निजी कविता संग्रह )
कोहरे में गांव (गजल संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य।
संपादितपुस्तकें -
तीसरा क्षितिज(लघुकथा संकलन),
मनोबल(लघुकथा संकलन),
जरिए नजरिए (मध्य प्रदेश के व्यंग्य लेखन का प्रतिनिधि संकलन),
साथ चलते हुए(लघुकथा संकलन उज्जैन से प्रकाशित),
सार्थक लघुकथाएँ( लघुकथा की सार्थकता का समालोचनात्मक विवेचन),
शिखर पर बैठकर (इंदौर के 10 लघुकथाकारों की 110 लघुकथाएं संकलित)
कोरोना काल की लघुकथाओं पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन।
साझा संकलन-
समक्ष (मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की 100 लघुकथाओं का साझा संकलन)
कृति आकृति(लघुकथाओं का साझा संकलन, रेखांकनों सहित),
क्षिप्रा से गंगा तक(बांग्ला भाषा में अनुदित साझा संकलन),
शिखर पर बैठ कर (दस लघुकथाकारों का साझा संकलन)
अनुवाद:
निबंधों का अंग्रेजी, मराठी एवं बंगला भाषा में अनुवाद ।
लघुकथाएं मराठी, कन्नड़ ,पंजाबी,नेपाली, गुजराती,बांग्ला भाषा में अनुवादित । बांग्ला भाषा का साझा लघुकथा संकलन 'शिप्रा से गंगा तक वर्ष 2018 में प्रकाशित।
विशेष:
लघुकथाएं दो पुस्तकों में,( छोटी बड़ी कथाएं एवं लघुकथा लहरी ) मेंगलुर विश्वविद्यालय कर्नाटक के बी ए प्रथम वर्ष और बी बी ए के पाठ्यक्रम में शामिल।
लघुकथाएं विश्व लघुकथा कोश, हिंदी लघुकथा कोश, मानक लघुकथा कोश, एवं पड़ाव और पड़ताल के विशिष्ट खंड(11) में शामिल।
शोध:
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एम फिल में मेरे लघुकथा लेखन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत । कुछ पी एच डी के शोध प्रबंध में विशेष रूप से शामिल ।
पुरस्कार सम्मान:
साहित्य कलश, इंदौर के द्वारा लघुकथा संग्रह' शब्द साक्षी हैं' पर राज्यस्तरीय ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान वर्ष 2006 में प्राप्त।
लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मां शरबती देवी स्मृति सम्मान 2012 मिन्नी पत्रिका एवं पंजाबी साहित्य अकादमी से बनीखेत में वर्ष 2012 में प्राप्त ।
सरल काव्यांजलि साहित्य संस्था,उज्जैन से वर्ष 2020 में सारस्वत सम्मान से सम्मानित।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इंदौर शहर में निवास, और लघुकथा विधा के लिए सतत कार्यरत।
पता : -
सतीश राठी
त्रिपुर ,आर- 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर 452010 मध्यप्रदेश
1.रैली
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'सरकार कितना ही प्रयास कर ले हमारा एजेंडा तो पूर्व निर्धारित है। हमें इस आंदोलन को लंबा और लंबा खींचना है।" आंदोलन के नेताजी बोले।
"पर ऐसा क्यों कर रहे हो आप ?सरकार ने आपकी अधिकतर मांगें मान ली हैं । सरकार अब तो कुछ अवधि के लिए कानून स्थगित भी करने को तैयार है । "-पत्रकार ने नेता जी से पूछा।
नेता जी पत्रकार को हाथ पकड़ कर एक किनारे पर ले गए और बोले ,"हम समझौते के लिए आए ही कब थे। हमें तो आगे बढ़ाना है इसे। अब टैक्टर की रैली भी निकालना है।"
"पर आपको सरकार ने रैली निकालने की अनुमति कहां दी? अभी तो पुलिस ने ही मना कर दिया है ।"
"अब किसी के बाप में हाथ लगाने की हिम्मत है क्या? ट्रैक्टर की रैली तो निकलेगी। सारा फंड ही उसके लिए आया हुआ है।"- नेताजी कड़क कर बोले ।
फिर पत्रकार का हाथ दबा कर बोले," इसके आगे पीछे का मत सोच। हम हमारा काम कर रहे हैं, जिसके लिए हम बैठे हैं। देखते हैं सरकार का संयम और कितना है। हम तो इंतजार कर रहे हैं सरकार का संयम टूटने का। तभी तो इतने भड़काने वाले बयान जारी कर रहे हैं।" ****
2.स्यापा
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उनके स्यापा करने के दिन तो नहीं थे लेकिन वे प्रधानमंत्री का नाम ले लेकर स्यापा कर रही थी।
किसी ने उनसे पूछ ही लिया ,'पैर तो तुम्हारे कब्र में लटके हैं, फिर यह स्यापा क्यों?'
उन्होंने कहा,' सच बताएं! हमें तो इसके पैसे मिल रहे हैं। और हां! इससे उसकी तो उम्र बढ़ रही है।' ****
3.काला कानून
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'तुम यह धरना क्यों दे रहे हो ?'
'किसान को उसकी फसल की सही कीमत मिले, यही तो हमारी मांग है ।'
'तो यह बात तो कानून में लिखी है।'
' हां !लिखी होगी ।हमें नहीं पता। हमें तो बस इतना पता है कि यह कानून काले हैं। तो फिर इन्हें बनाने वालों के दिल भी काले होंगे।'
' लेकिन वह तो तुम्हारे हित का ही सोच कर इन कानूनों को बनाए हैं ।तुम एक बार इनके हिसाब से चल कर तो देखो ना भाई ।'
'ना! हमारे नेता जी ने जब बोल दिया कि यह काले कानून हैं, तो है ।और फिर ...सही बात तो यह है कि, जितने दिन यहां हैं पेट भर कर तर माल मिल रहा है ।'
फिर एक आंख मार कर बोला,' दारू की व्यवस्था भी है ।इतनी सारी बात के लिए तो सारे जमाने को काला कह सकते हैं।' ****
4.अनाथों का नाथ
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गणेश जी की मूर्ति के सामने उसकी आंखों से धार- धार आंसू बह रहे थे। मंदिर के बाहर उसे किसी ने कह दिया था कि, यह खड़े गणेश का जो मंदिर है, वह बहुत चमत्कारी है बेटा ! जो मांग लेगा वह मिल जाएगा । दुखी मन बेचारा क्या करे । विश्वास कर वह बुद्धि देने वाले गणपति से विद्या की भिक्षा मांग रहा था।
गांव में मां और बापू के मरने के बाद निहाल को गांव के जमींदार ने बुलाया और कह दिया कि, कल से यहां पर आना । दिन भर यहीं पर झाड़ू बुहारा और दूसरे काम करना। तुझे दोनों टाइम का खाना यहीं मिल जाएगा।
उसे समझ में आ गया था कि, बापू की तरह उसका भी अब बंधुआ मजदूर बनने का मौका आ गया है । पर अनाथ का कौन? गांव में सबने कह दिया, जमींदार से बैर मत लेना ,चले जाना ।
निहाल के मन में तो पढ़ने की लगन लगी थी, इसीलिए वह गांव छोड़कर शहर में भाग आया था। मन में विचार आया कि, अनाथों का नाथ कौन ?अनाथों का नाथ तो भगवान ही होता है। और बस मंदिर में चला आया था ।
शायद उसका भाग्य प्रबल था। एक व्यक्ति जो उसे बहुत देर से गणपति के समक्ष रोते, गिड़गिड़ाते हुए देख रहा था ,उसके पास आकर बोला ,'वह जो हाथी जैसी चाल से आ रहे हैं ना !वह यहां के बड़े रावले के जमीदार हैं । बहुत दयालु आदमी हैं । उनसे हाथ जोड़कर विनती कर लेना ,तो फिर तेरे रहने, खाने, पढ़ने की व्यवस्था हो जाएगी ।'
निहाल को तो लगा जैसे भगवान ने ही उसके लिए मददगार भेज दिया है। वह रोता रोता जाकर जमीदार के पैरों में गिर गया। जमीदार साहब एकदम चौक गए, पर फिर उससे पूछा ,'क्या बात है? रो क्यों रहा है?'
निहाल ने कहा ,'गांव से भाग कर आया हूं। मां और बापू दोनों नहीं रहे ।अनाथ हूं ।आगे पढ़ना चाहता हूं। बड़ा आदमी बनना चाहता हूं .....आप सबके जैसा । '
कुछ भगवान की प्रेरणा और कुछ जमीदार साहब का दयालु दिल । वे उसे अपने साथ अपने बड़े रावले के महल में ले गए ,जहां नीचे उन्होंने गरीब छात्रों के रहने और खाने की व्यवस्था कर रखी थी । निहाल को भी वहां रहने ,खाने की व्यवस्था हो गई।
उसे लगा ,वह मंदिर में खड़ा गणपति अनाथों का नाथ है या यह जमीदार साहब । गांव में होता तो उस जमीदार के यहां झाड़ू लगा रहा होता। यहां के जमीदार के हाथों अब पढ़ने का मौका मिल गया है। अनायास ही उसके दोनों हाथ भगवान को ध्यान कर जमींदार जी के समक्ष कृतज्ञता से जुड़ गए।****
5.रोटी की कीमत
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आटा चक्की पर भीड़ लगी हुई थी। सभी लोग गेहूं पिसवाने के लिए आए हुए थे उसी समय एक महंगी कार में से एक सूटेड बूटेड व्यक्ति ने उतर कर आटा चक्की वाले से पूछा ,'भाई! गेहूं पीस दोगे।
आटा चक्की वाले ने कहा,' इसीलिए तो बैठे हैं। थोड़ा समय लगेगा। भीड़ काफी है। बैठिये आप।'- इतना कहकर एक कुर्सी उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दी।
कसमसाता हुआ व्यक्ति उस कुर्सी पर बैठ गया और अपना मोबाइल देखने लगा। उसकी बेचैनी बार-बार उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी। चक्की वाला लगातार लोगों के डिब्बे के गेहूं चक्की में डालकर उन्हें पीसता जा रहा था। तकरीबन बीस मिनट इंतजार के बाद उसने पूछा,' हो जाएगा ना!'
चक्की वाले ने कहा,' अब आपका ही नंबर है और उसका गेहूं चक्की में पीसने के लिए डाल दिया। वह व्यक्ति बड़ा असहज महसूस कर रहा था।
उसने आटा चक्की वाले को लगभग सफाई देने की भाषा में बोलते हुए कहा,'अपने जीवन के इतने बरसों में आज पहली बार गेहूं पिसाने के लिए आया हूं। कभी मुझे तो आने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
आटा चक्की वाले ने उससे कहा,' चलिए अच्छा है भाई साहब !आज आपको रोटी की कीमत तो समझ में आई।'
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6.जिस्मों का तिलिस्म
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वे सारे लोग सिर झुकाकर खड़े थे। उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि, पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी। दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे सिरकटे जिस्म पंक्तिबद्ध खड़े हैं।
मैं उनके नजदीक गया। मैं चकित था कि ,ये इतनी लम्बी लाईन लगा कर क्यों खड़े हैं?
"क्या मैं इस लम्बी कतार की वजह जान सकता हूं?" नजदीक खड़े एक जिस्म से मैंने प्रश्न किया।
उसने अपना सिर उठाने की एक असफल कोशिश की। लेकिन मैं यह देखकर और चौंक गया कि उसकी नाक के नीचे बोलने के लिए कोई स्थान नहीं है।
तभी उसकी पीठ से तकरीबन चिपके हुए पेट से एक धीमी सी आवाज आई, "हमें पेट भरना है और यह राशन की दुकान है।"
"लेकिन यह दुकान तो बन्द है। कब खुलेगी यह दुकान?" मैंने प्रश्न किया।
"पिछले कई वर्षों से हम ऐसे ही खड़े हैं। इसका मालिक हमें कई बार आश्वासन दे गया कि, दुकान शीघ्र खुलेगी और सबको भरपेट राशन मिलेगा।" आसपास खड़े जिस्मों से खोखली सी आवाजें आईं।
"तो तुम लोग... अपने हाथों से क्यों नहीं खोल लेते हो, यह दुकान?" पूछते हुए मेरा ध्यान उनके हाथों की ओर गया, तो आंखें आश्चर्य से विस्फरित हो गई।
मैंने देखा कि सारे जिस्मों के दोनों हाथ गायब थे। ****
7.घर में नहीं दाने
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विमला देवी ने सुरेंद्र कुमार से कहा," घर चलाने के लिए पैसे अब समाप्त हो गए हैं।"
सुरेंद्र कुमार ने कहा," पिताजी के जमाने के पीतल के घड़े पड़े हैं घर में .....उन्हें बेच दो।"
विमला ने कहा," वह तो पिछले माह ही बेच दिए थे।"
" अरे!!! तो पुराने समय के जो जेवरात पड़े हैं, उन्हें बेच दो।" सुरेन्द्र बोला।
" वह भी तो बेच दिए थे बीमारी में ।" विमला ने दुखी मन से जवाब दिया।
" तो फिर, हमारे इस हवेली जैसे प्राचीन घर में जितनी भी पुरानी एंटीक चीजें रखी हैं, अब उन्हें बेचने की बारी आ गई है। ऐसा करो, अब धीरे धीरे उन्हें बेचने का काम शुरू कर दो। आखिरकार ! किसी तरह घर तो चलाना है ना।" सुरेन्द्र बोला।
विमला मौन हो गई। उसे तो सुरेंद्र का कहना मानना ही था।
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8.शिष्टाचार
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-और क्या हाल-चाल है मित्र?
- दुआ है यार।
-बड़े दिनों बाद मिले हो।
- क्या SS करें यार... समय ही नहीं मिलता ।
-पहले तो घर भी आ जाते थे ।
-व्यस्तता बहुत है यार।
-अरे कभी दोस्ती भी निभाया करो ।भाभी को लेकर आओ ना।
- देखेंगे यार आऊंगा कभी।
-इस संडे को आ जाओ।
-अच्छा समय निकालकर संडे को ही आता हूं।
चलो फिर! ओके बायSS ...मिलते हैं।
और वह एकाएक सोचने लगा कि, कहीं यह वाकई रविवार को घर ना आ जाए। मैं तो इसे सिर्फ शिष्टाचार में कह रहा था। ****
9. आजादी के अंधेरे
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वह बार-बार पलट कर अपने उस घर को देख रहे थे, जिसकी एक एक ईट में उनकी मेहनत का पैसा लगा हुआ था, उनके परिवार का प्रेम लगा हुआ था। जीवन में कभी नहीं सोचा था इस तरह से अपना घर और अपना देश छोड़कर जाना पड़ेगा। क्या आजादी की कीमत इतनी अधिक होती है? जिन मुस्लिम परिवारों के साथ मिलकर उन्होंने साथ में ईद और दीवाली मनाई थी उन्हीं में से कुछ भले मानस उनके पास आकर कह गए थे,' अब आप हिंदुस्तान चले जाइए ।हम यहां बढ़ते हुए आतंक को नहीं रोक पाएंगे। आपकी रक्षा नहीं कर पाएंगे ।'
उन्होंने भी यह सोचा जब हिंदू होने के नाते अपने देश में ही जाकर रहना हैं तो चल दिया जाए, पर जिसे छोड़ कर जा रहे हैं उसमें तो ह्रदय बसा हुआ है। साथ में सब कुछ लेकर भी तो नहीं जा सकते ।कुछ जेवरात कुछ नगद और कुछ यादें । यही सब कुछ ले पाए थे वह अपने हाथ में ।
नम आंखों से घर को छोड़ बिलखते हुए चल दिये।
एक के बाद एक ट्रेन हिंदुस्तान की ओर जा रही थी। पीठ पर सामान को लादे, हाथ में पत्नी और दोनों बच्चों का हाथ पकड़े, अंततः श्यामलाल जी किसी तरह स्टेशन तो पहुंच ही गए। भगदड़ मची थी। लोग ट्रेनों में भेड़ बकरियों से भी बदतर स्थिति में घुस रहे थे ।उन्हें भी घुसना ही पड़ा । ट्रेन चल तो दी लेकिन रास्ते में कई जगहों पर ट्रेन को रोककर कट्टर मुस्लिमों के द्वारा मारपीट की गई, हत्याएं की गई, सामान लूटे गए।
यह उनकी खुशकिस्मती थी कि वह लाशों से लदी हुई उस ट्रेन में जीवित रहकर किसी तरह हिंदुस्तान पहुंच गए। पर यहां क्या ?, ना घर अपना ना शहर। सब कुछ उजड़ा उजड़ा पराया सा लग रहा था ।कुछ अस्थाई सरकारी व्यवस्था टेंट बांधकर की गई थी। वह भी एक छोटे से टेंट में रुक गए।
अपने सारे सपनों को खोकर इस तरह चले आना उनके दिल में दर्द पैदा कर रहा था। क्या इसी आजादी के लिए हम लड़े? क्या यही आजादी है जो मनुष्य को मनुष्य से दूर करती है?क्या जहां मानवता की हत्या होती है वह आजादी है?
ढेर सारे प्रश्न उनके दिमाग में मचल रहे थे। पत्नी और बच्चों के साथ उस छोटे से टेंट में उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली । जीवन जो जी लिया, चलचित्र की तरह आंखों में घूम रहा था । जो आने वाला जीवन था वह कैसा होगा, इसकी आशंका उनके शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी। आजादी एक अंधेरे की तरह उनके जीवन में प्रवेश कर गई थी। ****
10.गणित
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दीपावली का समय था । यह तय हुआ कि निहाल को बुलाकर उससे बिजली की सारी बंद लाइट बदलवा दी जाए तथा और भी बिजली के जो छोटे-मोटे काम बचे हैं, वह करवा कर घर के बाहर की झालर लाइट भी लगवा ली जाए।
वैसे तो बिजली मैकेनिक को बुलाना ही बड़ा टेढ़ी खीर होता है ,लेकिन हमारी धर्मपत्नी की आदत है कि, जब भी कोई कारीगर आता है तो, वह उसकी खातिरदारी अच्छे से कर देती है और वह बड़ा खुश होकर जाता है । इसलिए जब निहाल को फोन लगाया तो निहाल ने तुरंत दोपहर में आने की हामी भर दी।
निहाल ने सारा काम तकरीबन एक घंटे में पूरा कर दिया । जब मैंने उससे पूछा कि ,भाई कितने हुए तो, निहाल ने तुरंत जोड़कर बताया सर पंद्रह सौ रुपए दे दीजिए ।
तभी धर्मपत्नी चाय और उसके साथ नाश्ते की एक प्लेट निहाल के लिए लेकर आ गई । निहाल ने मना किया ,लेकिन मेरी पत्नी ने बड़े आग्रह के साथ उसे नाश्ता भी करवाया और चाय भी पिलाई ।
निहाल जब जाने के लिए तैयार हो गया तो मैंने उससे पूछा,' हां निहाल भाई ! कितने दे दूं।'
' अब सर, आपका तो घर का मामला है । आप तो सिर्फ बारह सौ रुपए दे दीजिए ।मैंने उसे तुरंत 12 सो रुपए निकाल कर दे दिए।
उसके जाने के बाद पत्नी ने कहा 'देखा मेरी चाय और नाश्ते की प्लेट का कमाल! आपके ₹300 बच गए । मेरी चाय और नाश्ते की लागत सिर्फ ₹25 ही थी।'
मैं मौन रह गया ।पत्नी का गणित मेरी समझ से बाहर का था। ****
11.पेट का सवाल
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"क्यों बे! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या?" गिट्टी में डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा।
" कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी। सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी।" मिमियाते हुए लड़का बोला।
"मेरे काम में बेटा तू नया आया है। इतना डामर डाल कर तूने तो मेरी ठेकेदारी बंद करवा देनी है।" फिर समझाते हुए बोला," यह जो डामर है इसमें से बाबू ,इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा। खराब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं । चल! इसमें गिट्टी का चूरा और डाल।" मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला।
लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा। उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर ठेकेदार बोला," बेटा ,सबके पेट लगे हैं। अच्छी सड़क बना दी और छह माह में गड्ढे नहीं हुए तो, इंजीनियर साहब अगला ठेका किसी दूसरे ठेकेदार को दे देंगे ।इन गड्ढों से ही तो सबके पेट भरते हैं बेटा।" ****
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क्रमांक - 02
जन्म दिनांक- 26 जनवरी 1965
शिक्षा- 5 विषय में एम ए, पत्रकारिता, कहानी-कला, लेख-रचना, फ़ीचर एजेंसी का संचालन में पत्रोपाधि
व्यवसाय- सहायक शिक्षक
लेखन- बालकहानी, लघुकथा व कविता
संपादन- लघुकथा मंथन, बालकथा मंथन, चुनिंदा लघुकथाएं, मनोभावों की अभिव्यक्ति, मप्र की बाल कहानियाँ
प्रकाशित पुस्तकें-
1- कुँए को बुखार
2- आसमानी आफत
3- काँव-काँव का भूत
4- कौनसा रंग अच्छा है?
5- लेखकोंपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं
6- चाबी वाला भूत
7 - संयम की जीत उपन्यास
8 - हाइकु संयुक्ता
9 - घमंडी सियार और अन्य कहानियां
10- कसक लघुकथा संग्रह
11- चुनिंदा लघुकथाएं संपादन
12- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ
13- पहाड़ की सैर
14- चूँचूँ की कहानियाँ
15- मनोभावों की अभिव्यक्ति
16- संयम की जीत
17- हाइबन: चित्र-विचित्र
18- पहाड़ी की सैर
19- आजरी विहीर (मराठी अनुवाद)
20- काव काव चे भूत (मराठी अनुवाद)
21- आसमानी संकट (मराठी अनुवाद)
22- कोणता रँग चाँगला आहे? (मराठी अनुवाद)
23- लघुकथाकारों की मेरी चुनिंदा लघुकथाएं
24- देश-विदेश की लोककथाएं
संकलन में सहभागिता--
1- बून्द-बून्द सागर
2- अपने अपने क्षितिज
3- नई सदी की धमक
4- शत शताब्दी हाइकू संग्रह
5- हमारे समय की श्रेष्ठ बालकथाएं
6- सांझ के दीप
7- चुनिंदा लघुकथाएं
8- हाइकु मंथन
9- चले नीड की ओर
10- अपने-अपने क्षितिज
11- बूंद बूंद सागर
12- कहानी प्रसंग
13- विविध प्रसंग
14- आस पास से गुजरते हुए
15- सफर संवेदनाओं का
16- नई सदी की लघुकथाएं
17- विश्व हिंदी लघुकथाकार कोश
18- चमकते सितारे भाग 1
19- नया आकाश आदि ।
उपलब्धि- 141 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन व अनेक कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित
इ-बुक-- 121 ई- बुक प्रकाशित
पुरुस्कार-
●इंद्रदेवसिंह इंद्र बालसाहित्य सम्मान-2017,
●स्वतंत्रता सैनानी ओंकारलाल शास्त्री सम्मान-2017 ,
●बालशौरि रेड्डी बालसाहित्य सम्मान- 2015 ,
●विकास खंड स्तरीय कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय 2017 ,
●लघुकथा में जयविजय सम्मान-2015 प्राप्त,
●काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान- 2017 प्राप्त,
●26 जनवरी 2018 को नगर पंचायत रतनगढ़ द्वारा _वरिष्ठ साहित्यकार_ सम्मान 2018 ,
●सोमवंशीय क्षत्रिय समाज इंदौर द्वारा _क्षत्रिय गौरव_ सम्मान 2018 ,
● नेपाल में _वरिष्ठ साहित्य साधक_ सम्मान 2018 ,
●मेघालय के राज्यपाल के हाथों _महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान_-2018 प्राप्त,
●बालसाहित्य संस्थान उत्तराखंड द्वारा अखिल भारतीय राजेंद्रसिंह विष्ट स्मृति सम्मान बालकहानी प्रतियोगिता 2018 में तृतीय स्थान का सम्मान प्राप्त,
●नेपाल-भारत साहित्य सेतु सम्मान- २०१८,
●नेपाल-भारत अंतरराष्ट्रीय रत्न सम्मान- २०१८ (बीरगंज नेपाल )में प्राप्त .
●मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ द्वारा *रजत-पदक* से सम्मानित ।
● क्रान्तिधरा अंतरराष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान-2019 से सम्मानित।
● आचार्य रतनलाल विद्यानुग स्मृति अखिल भारतीय बालसाहित्य प्रतियोगिता में शब्द निष्ठा सम्मान 2019
● साहित्य मंडल श्री नाथद्वारा द्वारा राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह 2020 में श्रीभगवतीप्रसाद देवपुरा बालसाहित्य भूषण सम्मान से सम्मानीत।
पता- पोस्ट ऑफिस के पास , रतनगढ़ जिला-नीमच -458226 (मध्यप्रदेश)
1.पीढ़ी का अंतर
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" भाई ! तुझ में क्या है? भावों के वर्णन के साथ अंतिम पंक्तियों में चिंतन की उद्वेलना ही तो है, " लघुकथा की नई पुस्तक ने कहा।
" और तेरे पास क्या है?" पुरानी पुस्तक अपने जर्जर पन्नों को संभालते हुए बोली, " केवल संवाद के साथ अंत में कसा हुआ तंज ही तो है।"
" हूं! यह तो अपनी-अपनी सोच है।"
तभी, कभी से चुप बैठे लघुकथा के पन्ने ने उन्हें रोकते हुए कहा, " भाई! आपस में क्यों झगड़ते हो? यह तो समय, चिंतन और भावों का फेर है। यह हमेशा रहा है और रहेगा।
" बस, अपना नजरिया बदल लो। आखिर हो तो लघुकथा ही ना।"
सुनकर दोनों पुस्तकें विचारमग्न हो गई। ****
2. सेवा
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दो घंटे आराम करने के बाद डॉक्टर साहिबा को याद आया, '' चलो ! उस प्रसूता को देख लेते हैं जिसे आपरेशन द्वारा बच्चा पैदा होगा,हम ने उसे कहा था,'' कहते हुए नर्स के साथ प्रसव वार्ड की ओर चल दी. वहां जा कर देखा तो प्रसूता के पास में बच्चा किलकारी मार कर रो रहा था तथा दुखी परिवार हर्ष से उल्लासित दिखाई दे रहा था.
'' अरे ! यह क्या हुआ ? इस का बच्चा तो पेट में उलझा हुआ था ?''
इस पर प्रसूता की सास ने हाथ जोड़ कर कहा, '' भला हो उस मैडमजी का जो दर्द से तड़फती बहु से बोली— यदि तू हिम्मत कर के मेरा साथ दे तो मैं यह प्रसव करा सकती हूं.''
'' फिर ?''
'' मेरी बहु बहुत हिम्मत वाली थी. इस ने हांमी भर दी. और घंटे भर की मेहनत के बाद में प्रसव हो गया. भगवान ! उस का भला करें.''
'' क्या ?'' डॉक्टर साहिबा का यकिन नहीं हुआ, '' उस ने इतनी उलझी हुई प्रसव करा दूं. मगर, वह नर्स कौन थी ?''
सास को उस का नामपता मालुम नहीं था. बहु से पूछा,'' बहुरिया ! वह कौन थी ? जिसे तू 1000 रूपए दे रही थी. मगर, उस ने लेने से इनकार कर दिया था.''
'' हां मांजी ! कह रही थी सरकार तनख्वाह देती है इस सरला को मुफ्त का पैसा नहीं चाहिए.''
यह सुनते ही डॉक्टर साहिबा का दिमाग चक्करा गया था. सरला की ड्यूटी दो घंटे पहले ही समाप्त हो गई थी. फिर वह यहां मुफ्त में यह प्रसव करने के लिए अतिरिक्त दो घंटे रुकी थी.
'' इस की समाजसेवा ने मेरी रात की डयूटी का मजा ही किरकिरा कर दिया. बेवकूफ कहीं की,'' धीरे से साथ आई नर्स को कहते हुए डॉक्टर साहिबा झुंझलाते हुए अगले वार्ड में चल दी. ****
3. फुर्सत
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पत्नी बोले जा रही थी। कभी विद्यालय की बातें और कभी पड़ोसन की बातें। पति 'हां- हां' कह रहा था। तभी पत्नी ने कहा, " बेसन की मिर्ची बना लूं?" पति ने 'हां' में गर्दन हिला दी।
" मैं क्या कह रही हूं? सुन रहे हो?" पत्नी मोबाइल में देखते हुए कह रही थी।
पति उसी की ओर एकटक देखे जा रहे थे ।
तभी पत्नी ने कहा, " तुम्हें मेरे लिए फुर्सत कहां है ? बस, मोबाइल में ही घुसे रहते हो।"
पति ने फिर गर्दन 'हां' में हिला दी । तभी पत्नी ने चिल्ला कर कहा, " मेरी बात सुनने की फुर्सत है आपको ?" कहते हुए पति की ओर देखा।
पति अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था।****
4.कारण
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" लाइए मैडम ! और क्या करना है ?" सीमा ने ऑनलाइन पढ़ाई का शिक्षा रजिस्टर पूरा करते हुए पूछा तो अनीता ने कहा, " अब घर चलते हैं । आज का काम हो गया है।"
इस पर सीमा मुँह बना कर बोली, " घर ! वहाँ चल कर क्या करेंगे? यही स्कूल में बैठते हैं दो-तीन घंटे।"
" मगर, कोरोना की वजह से स्कूल बंद है !" अनीता ने कहा, " यहां बैठ कर भी क्या करेंगे ?"
" दुखसुख की बातें करेंगे । और क्या ?" सीमा बोली, " बच्चों को कुछ सिखाना होगा तो वह सिखाएंगे । मोबाइल पर कुछ देखेंगे ।"
" मगर मुझे तो घर पर बहुत काम है, " अनीता ने कहा, " वैसे भी 'हमारा घर हमारा विद्यालय' का आज का सारा काम हो चुका है। मगर सीमा तैयार नहीं हुई, " नहीं यार। मैं पांच बजे तक ही यही रुकुँगी।"
अनीता को गाड़ी चलाना नहीं आता था। मजबूरी में उसे गांव के स्कूल में रुकना पड़ा। तब उसने कुरेदकुरेद कर सीमा से पूछा, " तुम्हें घर जाने की इच्छा क्यों नहीं होती ? जब कि तुम बहुत अच्छा काम करती हो ?" अनीता ने कहा।
उस की प्यार भरी बातें सुनकर सीमा की आंख से आंसू निकल गए, " घर जा कर सास की जलीकटी बातें सुनने से अच्छा है यहां शकुन के दोचार घंटे बिता लिए जाए," कह कर सीमा ने प्रसन्नता की लम्बी साँस खिंची और मोबाइल देखने लगी। ****
5.दो के बीच
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पति ने कमरे के अंदर पर रखा था कि पत्नी की आवाज सुनाई दी । जिसे सुनकर पति ठिठक गया। पत्नी पड़ोसन से कह रही थी, " अरे दरी! सबके पति ऐसे ही होते हैं । वे पत्नी की बातें कहां सुनते हैं? कितना भी कहो, सामान लाकर घर पर रखते ही नहीं है।"
यह सुनते ही पति का पारा गरम हो गया। और वह पैर पटकते हुए तेजी से कमरे में गया। ड्रम से साबुन-सर्फ और दूसरा सामान निकालकर लाया । फिर पत्नी के सामने पटकते हुए बोला, " यह सामान कौन लाया है?" फिर मन ही मन गुदगुदाया, " तेरा बाप!"
यह देख-सुनकर पड़ोसन और पत्नी आवाज बंद गई। दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगी।
" अब बोलो!" पति ने तुनककर कहा, " दिनभर पति की बुराई करती रहती हो," पति ने हाथ नचाया तो पड़ोसन चुपचाप उठ कर चली गई।
उसके जाते ही पत्नी जोर-जोर से रोने लगी।
पति ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई। पत्नी की गलती बता कर उसे चुप कराने की कोशिश की। मगर वह चुप नहीं हुई । हार कर पति ने पूछा, " भाग्यवान! आखिर मुझसे ऐसी क्या खता हुई कि तुम रोए जा रही हो?"
तब काफी कहासुनी के बाद, बड़ी मुश्किल से पत्नी बोली, " आप पूरी बात नहीं जानते थे। फिर हमारे बीच में बोलने की क्या जरूरत थी? आपको इस तरह मेरा अपमान नहीं करना चाहिए था।"
" अपमान ?"
" हां, अपमान!" पत्नी ने तुनक कर कहा, " एक बार में उसके घर थोड़ी सी दाल मांगने गई थी । उसने पति का बहाना बनाकर मुझे मना कर दिया था।"
" क्या ?"
"हां," पत्नी बोली, " और वह आज मुझ से कपड़े धोने का साबुन मांगने आई थी। इसलिए मैंने भी आप का बहाना बनाकर मना कर दिया था।" कहते हुए पत्नी ने गर्दन को एक और झटका दिया, ' मानो कह रही हो, आप में भी कुछ दुनियादारी के लखण (अक्ल या समझदारी) नहीं है।" ****
6.अपेक्षा
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उसने धीरे से कहा, " आप सभी को कुछ ना कुछ उपहार देती रहती हैं|"
"हाँ," दीदी ने जवाब दिया, " कहते हैं कि देने से प्यार बढ़ता है|"
"तब तो आपकी बहू को भी आपको कुछ देना चाहिए| वह आपको क्यों नहीं देती है?" उसने धीरे से अगला सवाल छोड़ दिया|
"क्योंकि वह जानती है," कहते हुए दीदी रुकी तो उसने पूछा," क्या?"
"यही कि वह जो भी प्यार से देगी, वह प्यारी चीज मेरे पास तो रहेगी नहीं| मैं उसे दूसरे को दे दूंगी| इसलिए वह अपनी पसंद की कोई चीज मुझे नहीं देती है|"
"तभी आपकी बहु आपसे खुश है," कहते हुए उसे अपनी बहु की घूरती हुई आंखें नजर आ गई |जिसमें घृणा की जगह प्रसन्नता के भाव फैलते जा रहे थे |****
7.रुख
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कोरोना अस्पताल से वापस लौटते अनीता सीधी अपने सास के कमरे में गई, " मां जी! आप इस कमरे में नहीं रहेगी।"
"क्या !" असहाय वृद्ध सास ने अनीता से अपना हाथ छुड़ाते कहा हुए विनती की, " मैं इस छोटी-सी कोठरी में ही ठीक हूं । मुझे यहां से मत निकालो बहू ," उसने हाथ जोड़ने की असफल कोशिश की। मगर अनीता ने हाथ नहीं छोड़ा। वह सास को कमरे से बाहर ले जाने में सफल हो गई।
" ऐसा ना करो बहू, " सास कहे जा रही थी, " मैं यही ठीक हूं," असहाय सास अपनी बहू से विनती कर रही थी। बहू ने स्पष्ट कह दिया, " आप इस कमरे में नहीं रहेंगी। अब तो यहां पर नया नौकर ही रहेगा।"
"मैं कहां जाऊंगी बहू?"
"मां जी!," अनीता ने दृढ़ता के साथ सास को संभालते हुए कहा, " आप मेरे साथ, मेरे कमरे में रहेंगी।"
" क्या!" सास के स्वर में थोड़ी प्रसन्नता घुल गई, " यह तो मेरा कमरा नहीं है," उसने विस्मय से अपनी बहू की ओर देखा।
" हां माँ जी," अनीता ने कहा, " कोरोनावायरस के पॉजिटिव ने मेरे दिमाग की नेगेटिव रिपोर्ट को बाहर का रास्ता दिखा दिया है," यह कहते हुए अनीता के आंसू सास के कंधे पर लूढक गए। ****
8. संक्रमण
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आदेश आया ।पालन करना था। इसलिए चालान बनाए गए। मगर एक चालान कम पड़ रहा था।
" भाई ! तेरा नाम लिख देते हैं, " अ ने ब से कहा।
" नहीं भाई! मुझे कोई शौक नहीं है," ब बोला।
" अखबार में तेरा नाम छपेगा।" अ ने समझाया तो ब बोला, " हां । जानता हूं। मगर ऊपर क्या लिखा होगा ?"
" सड़क पर थूकने वालों पर जुर्माना, " अ ने कहा, " इसमें कई लोगों के नाम हैं जिन्होंने कभी सड़क पर थूका नहीं है।"
" होगा ।" ब ने स्पष्ट किया, " गंदा कार्य करके नाम छपवाना मेरी फितरत में नहीं है," यह कहते हुए अ ने ₹1000 उसके सामने रख दिए, " मेरी जगह अपना नाम लिख देना। आदेश की खानापूर्ति हो जाएगी, " और वह मुंह बना कर चल दिया। ****
9.आधा सच
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माल गोदाम के अंधेरे कमरे में पहुंचते ही हीरोइन से गांजे ने कहा," आओ बहन! तुम्हारा स्वागत है।"
"मेरा! यहां अंधेरे में पड़े रहने के लिए," हीरोइन ने कहा," कहां मैं हीरो-हीरोइन के मुख की शोभा बन रही थी, कहां यहाँ पड़ी-पड़ी सड़ जाऊंगी।"
" ऐसा नहीं होगा बहन," गांजा बोला," तू चिंता ना कर। तुझे यहां अंधेरे में ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ेगा," गांजे के यह कहते ही हीरोइन चौक कर बोली," तुझे कैसे मालूम?"
इस पर गांजे ने एक ओर इशारा किया," यहां पहले मेरे साथ बरामद हुआ गांजा पड़ा रहता था । अब कोई अनजान हरी पत्तियों का चूरा भरा हुआ पड़ा है।"
"वाकई! यह सच है!"
"हां," गांजा बोला,"तुम जहां से आई हो, वही पहुंच जाओगी।"
"सच!" हीरोइन चकित होते हुए बोली, " फिर यह सुशांत और हीरोइन के साथ ड्रग्स लेने का मामला क्या है भला ?"
"बहन! यह तो कूटनीति है," गांजे ने कहा," राजनीति, फिल्म और ड्रग माफियाओं की समानांतर व्यवस्था को अपनी औकात दिखाने के लिए उन्हीं के द्वारा चलाए गए अभियान है ताकि…..," कहते हुए गांजा अचानक किसी की आहट पाकर चुप हो गया और हीरोइन चुपचाप मुस्कुरा दी।
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10. असली वनवास
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सीता हरण, लक्ष्मण के नागपोश और चौदह वर्ष के वनवास के कष्ट झेल कर आते हुए राम की अगवानी के लिए माता पूजा की थाली लिए पलकपावड़े बिछाए बैठी थी. रामसीता के आते ही माता आगे बढ़ी, '' आओ राम ! चौदह वर्ष आप ने वनवास के अथाह दुखदर्द सहे हैं. मैं आप की मर्यादा को नमन करती हूं.'' कहते हुए माता ने राम के मस्तिष्क पर टीका लगाते हुए माथा चुम लिया.
मगर, राम प्रसन्न नहीं थे. वे बड़ी अधीरता से किसी को खोज रहे थे, '' माते ! उर्मिला कहीं दिखाई नहीं दे रही है ?''
''क्यों पुत्र ! पहले मैं आप लोगों की आरती कर लूं. बाद में उस से मिल लेना.''
यह सुनते ही राम बोले, '' माता ! असली वनवास तो उर्मिला और लक्ष्मण ने भोगा है इसलिए सब से पहले इन दोनों की आरती की जाना चाहिए.'' यह कहते हुए राम ने सीता को आरती की थाल पकड़ा दी.
यह सुनते ही लक्ष्मण का गर्विला सीना राम के चरण में झूक गया, '' भैया ! मैं तो सेवक ही हूं और रहूंगा. '' ****
11. कुंठा
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रात की एक बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम का सफल का सञ्चालन करा कर वापस लौट कर घर आए पति ने दरवाज़ा खटखटाना चाहा. तभी पत्नी की चेतावनी याद आ गई. ‘ आप भरी ठण्ड में कार्यक्रम का सञ्चालन करने जा रहे है. मगर १० बजे तक घर आ जाना. अन्यथा दरवाज़ा नहीं खोलुंगी तब ठण्ड में बाहर ठुठुरते रहना.’
‘ भाग्यवान नाराज़ क्यों होती हो.’ पति ने कुछ कहना चाहा.
‘ २६ जनवरी के दिन भी सुबह के गए शाम ४ बजे आए थे. हर जगह आप का ही ठेका है. और दूसरा कोई सञ्चालन नहीं कर सकता है ?’
‘ तुम्हे तो खुश होना चाहिए,’ पति की बात पूरी नहीं हुई थी कि पत्नी बोली, ‘ सभी कामचोरों का ठेका आप ने ही ले रखा है.’
पति भी तुनक पडा, “ तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पति ...”
‘ खाक खुश होना चाहिए. आप को पता नहीं है. मुझे बचपन में अवसर नहीं मिला, अन्यथा मैं आज सब सा प्रसिद्ध गायिका होती.”
यह पंक्ति याद आते ही पति ने अपने हाथ वापस खीच लिए. दरवाज़ा खटखटाऊं या नहीं. कहीं प्रसिध्द गायिका फिर गाना सुनाने न लग जाए. ****
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क्रमांक - 03
नाम : डॉ. क्षमा सिसोदिया
अंतराष्ट्रीय,कवियत्री,लघुकथाकार,हास्य व्यंग्य, हाइकु,
मुकरी विधा की स्वतंत्र लेखिका।
शिक्षा - इलाहाबाद वि.वि. से स्नातक।
लखनऊ वि. वि से स्नातकोत्तर।
विक्रम वि.वि से पीएचडी ।
इंटिरियर डिप्लोमा कोर्स।
इंडस्ट्रियल डिप्लोमा कोर्स।
पर्सनालिटी डिप्लोमा कोर्स।
शैक्षणिक योग्यता -
सांदीपनी कालेज,उज्जैन में तीन वर्ष शिक्षण योगदान।
विक्रम वि.वि में काॅमर्स,एम.ए,एमफिल तक।
उपलब्धियाँ -
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1-देवी अहिल्या वि. वि. में गवर्नर
नामिनी कार्यपरिषद की सदस्या।2005
2-"रेकी थैरेपी" (प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति) में उत्कृष्ट कार्य हेतु राज्यपाल से गोल्ड मेडल प्राप्त - 2006
3- लखनऊ वि. वि. से उत्कृष्ट छात्रा के रूप में
"मिस हिन्दी" अवार्ड प्राप्त -1996
4-छात्र-जीवन से ही लेखन में रूझान,समाचार पत्रों में लेखन।
5-आकाशवाणी पर कई बार कविता पाठ।
6- महाकवि कालिदास-स्मृति समारोह समिती उज्जयिनी द्वारा साहित्यिक सम्मान 2014
7-नीरजा सारस्वत सम्मान, उज्जैन। 2009
सामाजिक क्षेत्र :-
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1-वर्धमान क्रिएटिव एंड वेलफेयर सोसाइटी महिला विंग उज्जैन द्वारा - मातृत्व दिवस पर मातृत्व सम्मान - 2011
2- दिगम्बर जैन महिला परिषद अवंति उज्जैन द्वारा सम्मान -2009
3-पंजाबी महिला विंग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान
4-अखिल भारतीय क्षत्राणी पद्मिनी समिति महाराष्ट्र द्वारा "Achieve ment Award"-2019
5-8मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मान - 2003 to 2005
6-नई दुनिया समाचार पत्र द्वारा सामाजिक गतिविधियों हेतु नायिका अवार्ड 2010
7-राजपूत महिला ग्रुप उज्जैन द्वारा - समाजिक गतिविधियों हेतु सम्मान।
8-पंजाबी महिला ग्रुप उज्जैन द्वारा सामाजिक गतिविधियों हेतु सम्मान।
9-राॅयल पद्मिनी राजपूतानी समिति-मंदसौर द्वारा 'क्षत्राणी' सम्मान। 2018
10- महिला सोशल विंग द्वारा सम्मान। 2019
साहित्यक क्षेत्र:-
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1-अभिव्यक्ति विचार मंच (नागदा) द्वारा सम्मान - 2008
हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग संस्था द्वारा साहित्यिक सम्मान,2011 उज्जैन।
2-अग्नि पथ समाचार पत्र द्वारा साहित्यिक सम्मान - 2013
3-दैनिक भास्कर, समाचार पत्र द्वारा सम्मान- 2015
4-पत्रिका समाचार द्वारा-प्रशस्ति-पत्र (सामाजिक क्षेत्र में योगदान हेतु- "Creator...,celebrate the Success of woman Award-2016
5-नई दुनिया समाचार पत्र द्वारा-वुमन अचीवर्स अवार्ड- 2018
6-हिन्दी शब्द साधिका सम्मान
7-अवध ज्योति रजत जयंती द्वारा -साहित्यक सम्मान 2019
8-अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रान्त द्वारा -"शब्द साधिका सम्मान।"
9--स्वर्णिम भारत मंच युवा संगम उज्जैन द्वारा साहित्यिक सम्मान 2021।
10-:स्टोरी मिरर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में लघुकथा विजेता।
11- अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में कविताएं विजेता।
13- मध्यांतर मंच- से लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा (मय राशि) विजेता।
14-नया लेखन-नया दस्तखत मंच पर कई लघुकथाएं विजेता।
15- इंदुमति श्री स्मृति लघुकथा योजना में लघुकथा सम्मिलित हो राशि प्राप्त।
16- लोकरंग संस्कृति मंच और लोकगीत कजरी गायन पर सम्मान।
17-साहित्य संगम संस्थान दिल्ली से
स्थानीय भाषा भोजपुरी में कव्य प्रसारण।
18-यूट्यूब पर रचनाओं का प्रसारण।
प्रकाशित संग्रह -
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1-केवल तुम्हारे लिए" - काव्य संग्रह।
2-'कथा सीपिका '- लघुकथा संग्रह ।
3- 'भीतर कोई बंद है।' लघुकथा संग्रह।
4- तीन अन्य पुस्तकें प्रकाशनार्थ हैं।
5- कई साझा संग्रह में रचनाओं का प्रकाशन।
6-कलश,अविराम साहित्यिकी लघुकथा स्वर्ण जयंती विशेषांक में लघुकथाओं का चयन।
एवं अन्य कई पत्रिकाओं में लघुकथा,कविता, आलेख प्रकाशित।
अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियाँ -
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1-नेपाल साहित्य धरा से प्रकाशित साहित्य 'भोजपुरी दर्शन' में प्रांतीय भाषा (भोजपुरी में) भी लघुकथा, कविता का प्रकाशन।
2- पुस्तक-भारती (कनाडा) में रचनाएं प्रकाशित।
3-विश्व हिन्दी ज्योति (कैलिफोर्निया से प्रकाशित ') में रचना प्रकाशित।
4-12वाँ अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 2020
परिकल्पना उत्सव सम्मान (शारजाह,दुबई, ,मालदीव)
अन्य गतिविधियाँ :-
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1-साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था त्रृचा विचार मंच की कार्यकारिणी सदस्य।
2-मध्य प्रदेश लेखक संघ समिति की कार्यकारिणी सदस्य।
3- स्वर्णिम भारत मंच उज्जैन (सामाजिक सेवा संस्थान) की कार्यकारिणी सदस्य।
विशेष :-
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लेखन के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता ।
सेवा के रूप में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर
1-"भैरोगढ जेल (उज्जैन)में कैदी महिलाओं के चर्चा कर साथ समय व्यतीत किया।
2-14 फरवरी वेलेंटाइन डे पर (स्व खर्च से) स्टूडेंट के साथ गंभीर नदी की सफाई में कर सेवा कार्य।
3- नारी-निकेतन की कन्याओं के विवाह में योगदान।
पता :-
आशीर्वाद
डाॅ.क्षमा सिसोदिया
10/10 सेक्टर बी
महाकाल वाणिज्य केन्द्र
उज्जैन-456010 मध्यप्रदेश
1.तस्वीर
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"अरे, तू यह क्या कर रहा है...?"
"कुछ नही,अपनी ही तस्वीर बना और बिगाड़ रहा हूँ।"
"क्यों...!"
"बस देखने की कोशिश रहा हूँ,कि हम सबको बनाने में ईश्वर को कितनी मेहनत लगी होगी।"
"अच्छा,तो तू अब ईश्वर बनने की कोशिश कर रहा है...?"
"अरे नही यार, मैं देख रहा हूँ,कि हमें बनाने में उसे कितनी मेहनत करनी पड़ती है,फिर भी हम लोग हमेशा रोते ही रहते हैं।"
"कभी पलट कर हम लोग यह नही सोचते हैं,कि-हमारे इस जीवन रूपी तस्वीर बनाने में हमारे माता-पिता को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी।"
"एक साधारण सी तस्वीर बनाने में मुझे छः घंटे लगे और इस बीच में मुझे न जाने कितनी बार मायूस होना पड़ा,तब जाकर ऐसी तस्वीर बना पाया।"
"बस इसी बात को आज खुद समझ रहा और अपने बच्चों को भी समझाने की कोशिश कर रहा हूँ,कि जिन्दगी के कैनवास पर अपनी साफ-सुथरी तस्वीर बनाना इतना आसान नही होता है।" ****
2. अकेली औरत
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वर्षों से शगुन अपना हर काम अकेली ही करती आ रही थी,बीच-बीच में कुछ लोगों को अपने उपर ज्यादा ही मेहरबान होते हुए भी देखा था,लेकिन मजबूत शगुन नितान्त अकेली होने के बाद भी खुद को सम्भाले हुए थी।
आफिस में शर्मा,वर्मा,गुप्ता,मिश्रा जी के स्वभाव के वजह से कुछ परेशान जरूर रहने लगी थी,आज उससे भी निपटने का उसने रास्ता निकाल ही लिया।
जन्म दिन के बहाने उसने सभी सह- कर्मियों को अलग-अलग तरीके से वही सामग्री लेकर आने के लिए घर पर निमंत्रित किया,जिसे देने के बहाने से उसके नजदीक आने की कोशिश करते,सभी बहुत खुश हुए,लेकिन किसी को यह पता नही लगने दिया कि उनसे पहले भी वहाँ कोई और पहुँचेगा।वहाँ सब एक-दूसरे को देखकर हतप्रभ थे,ओले पड़ते देख कोई सिर खुजला रहा था,तो कोई गले में अटकी आवाज़ को बाहर निकालने के लिए टाई ढीली कर रहा था।
शगुन ने कुछ गरीब बच्चों को भी बुलाया था।
केक कटने के बाद,सह कर्मियों द्वारा लाए हुए सामानों को उनके ही हाथों से गरीब बच्चों में बँटवा दिया।
और घर में रखे खाद्य सामग्री से सभी का आवभगत कर,रिटर्न गिफ्ट के साथ विदा कर दिया। रिटर्न गिफ्ट को खोलने की आतुरता से सभी बेहाल हो रहे थे।
बंद लिफाफा,लिफाफे में चिठ्ठी देख कर तो सबकी आँखों में बिना पीए ही मदिरा उमड़ने लगी,लेकिन जैसे ही शब्दों को मापा,तो होश उड़ गये।
"आप लोगों को क्या लगता है,कि समाज में अकेली रहने वाली औरत,सार्वजनिक सम्पति है ?,
जिस पर हर कोई अतिक्रमण करने की जुगाड़ में लगा रहता है ?,
यह लावारिस पड़ी हुई जमीन नही है,जीती-जागती जिन्दगी है,और जिसकी रजिस्ट्री माँ-बाप द्वारा दिए संस्कारों से होती है।आप लोग अकेली औरत की सहायता करने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातों के वजाए,कभी यह बोलते हैं,कि लाओ नगरपालिका,न्यायपालिका या बिजली विभाग का कोई काम हो तो बताओ,मैं कर देता हूँ,भला वहाँ कौन जाए।
'लेकिन सबको बाबू मोशाए जरूर बनना हैं।यह खाने-पीने की चीजें मुझे नही,इन गरीब बच्चों को दिया करें।,
"और हाँ,अकेली औरत जब अपनी घर-गृहस्थी सम्भाल सकती है,तो क्या अपनी काया को नही सम्भाल सकती है ?,मुझे उन औरतों की तरह मत समझना,जो पति के रहते दूसरे मर्दो को पसंद करती हैं।मैं आदर्शों पर चलने वाली भारतीय नारी हूँ।
"मुझ जैसी औरतों को कभी कमजोर मत समझना,औरत अकेली होकर और मजबूत हो जाती है,पुरूषों की तरह कमजोर नही होती है।इसलिए मुझे नही खुद को सम्भालने की जरूरत है।मेरी बात समझ में आ जाए तो ठीक है,नही तो अब अगली मीटिंग आपके घरवाली के साथ होगी।"
बर्थडे के दूसरे दिन शगुन जब आफिस पहुँचती है,तो उसे वहाँ सभ्यता और सौहार्द सा वातावरण महसूस होता है,इतने दिनों से जो आँखें उसके सिंदूर और मंगलसूत्र पर अटकी थीं,वो आज फाइल के पन्नों में उलझी हुई थीं।
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3. खुल जा सिम-सिम
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हे प्रभु,
"क्या यह भारत भूमि ही है...?"
"नही,ऐसा कैसे हो सकता है...!!"
"यहाँ की संस्कृति तो कुछ और ही थी,क्या अब यहाँ से वह विलुप्त हो गयी है...?"
"महात्मा विदूर जैसे मंत्री, कृपाचार्य जैसे राजगुरू, द्रोणाचार्य जैसे महारथी और भीष्म जैसे मार्गदर्शक' के रहते हुए भी हस्तिनापुर का सर्वनाश कैसे हो जाता है... ?"
"कैसे प्रभु, कैसे।"
"स्त्री हो या राष्ट्र की शान तिरंगा हो,इसकी बेइज्जती होने पर जो घाव होते हैं, उसके दाग सदियों तक मिटाए नही मिटते हैं।"
"प्रभु, आज तो न्यायालय भी पराए जैसा निर्णय सुनाता है, कि-"लड़की के विशेष अंग को वस्त्र के ऊपर से छूना,दुष्कर्म में नही आता है उसके लिए चमड़ी से चमड़ी का स्पर्श होना आवश्यक है।"
"हम औरतें अब कहाँ और किधर जाएं...? "
स्टेज पर कलाकार आकर अपनी-अपनी भूमिका निभाते जा रहे थे।
"वत्स,
अपने ज्ञान चक्षु खोल कर जीना सीखो, क्योंकि समय दुर्योधन के अहंकार की तरह ही आता है और उसके आगे जब स्वार्थी मन मौन रहते हैं,तब उस मौन की कीमतें ऐसे ही चुकानी पड़ती है।"
" जी प्रभु,
हमें भी इसकी कीमत आज इज्जत को नीलाम करके चुकानी पड़ रही है,ऐसा कहते ही जीवंत स्त्री का चेहरा यंत्रवत मशीन की तरह नीचे झुक जाता है और उसके मौन होंठ बोल उठते हैं-
'खुल जा सिमसिम"
ऐसा बोलते ही स्वचलित परदा हट जाता है और पर्दे के पीछे खड़ी जनता अपने हाथों में तख्तियां लिए नेता जी के साथ अधिकार जताने बाहर आकर खड़ी हो जाती है।' ****
4. केसरिया मिलन
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गगन के अपरिमित विस्तार में साँझ ढले का सिंदूरी रंग दूर-दूर तक छितरा कर निशा की आकुलता से प्रतीक्षा कर रहा था।
"नभ का प्रचंड यात्री 'सूरज' अपने ढलते रंग और शैथिल्यता के साथ अब निशा के स्यामल आगोश में समा जाना चाहता था।"
निशा का कायिक व्यक्तित्व निर्बल और कालिमा युक्त अवश्य है, लेकिन थकित श्रमित सूरज के लिए इस पल उसके आगोश का महत्व स्वयं की सुदीप्ति से कम नही है,इसलिए ही यह थका-हारा नभ यात्री हर साँझ अपने व्याकुल,बोझिल थके मन से निशा की आतुरता से प्रतीक्षा करता है और निशा के प्रेमोत्तप्त आलिंगन की नवल ऊर्जा से ऊर्जस्वित हो, यह पथिक पुन: भोर होते ही आगामी यात्रा पर निकल पड़ता है।
प्रभात और निशा के सामान्य सम्बन्ध नितान्त अन्तर्विरोधी होते हुए भी कुछ क्षणों के लिए मिश्रित हो एकसार हो जाते हैं और स्वयं को स्वयंभू समझने वाला सूरज का दर्प और अभिमान उसके पहलू में विलुप्त हो जाता है,शेष बचता है तो केवल पारस्परिक अकल्पनीय प्रेम।
"स्वर्गिक प्रीत की यह अद्भुत प्राकृतिक छटा,आत्मीय 'केसरिया मिलन' के उषाकाल में परिणत होकर सनातन सृष्टि का मंगल मुहूर्त बन जाता है और सृष्टि झोली में एक नये सृजन का वरदान दे जाती है।" ****
5. यादों की चादर
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आज वर्षों बाद भी ऐसा क्यों नही लगता है,कि यह बहुत पुरानी बात है,बल्कि कभी-कभी तो ऐसा क्षण आता है,जैसे वो कही आस-पास ही है।
क्या,रूह भी सब बातें याद रखती है,या फिर वह अपनों के आस पास ही घूमती रहती है,या फिर अपना मन ही उसके आस-पास घूमता रहता है ?
"नही,ऐसे कैसे हो सकता है,मैं तो अपने काम में दिन भर व्यस्त रहती हूँ और फिर थक कर सो जाती हूँ,तो फिर उन यादों को याद कब करती हूँ,मैं नही याद करती हूँ,मैं तो बहुत मजबूत औरत हूँ।"
इन बातों से मिष्ठी लगातार अपने अंदर बैठी उस औरत को समझाती जा रही थी,जो आज का दिन आते ही कमजोर होने लगती है और खुद को अकेले यादों के साथ रखने में ही अधिक खुश रहती है।
लेकिन फिर ऐसा क्या होता है,जब आज के दिन मिष्ठी नाम की यह महिला,किसी से भी मिलना नही चाहती है,जबकि आज के लिए तो लोग कितना धूम-धाम और खुशी मनाते हैं और मिष्ठी ठीक इसका उल्टा करती है।उसको आज लोगों की भीड़ सुकून देने की जगह,दुःखी करता है,शायद इसीलिए...! ?,
नही,वो तो अक्सर ही इस तरह के नकली लोगों के भीड़ से गुजरती रहती है,यह कोई नयी बात थोड़ी न है
नही,नही,यह सब कहाँ ?,उसे तो मुकेश की यादें ही तसल्ली देती हैं,सच में वो उसे कितना प्यार करता था,पहला जन्मदिन उसने लगातार तीन दिन तक मनाया था,उसका पक्ष लेने की वजह से वह परिवार में खुद बुरा बन जाता था।
मिष्ठी को खुश रखने लिए वह खुद को कितना बदल डाला था।
शायद इसलिए ही वो अपने जन्मदिन के अवसर पर ऐसा करती है और उसके यादों का सुनहरी चादर बना उसे ओढ़ अकेली ही खुश हो लेती है,क्योंकि उसको अपने अंदर के भादों से किसी और को रूबरू होने ही नही देना होता है।
अब सो भी जा मिष्ठी,बहुत रात हो गयी है,देख यह गाना भी तुझे यही समझा रहा है।
"जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं,जो मकां वो फिर नही आते,अब तो तारीख भी बदल गयी है।" ****
6. जीने की राह
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दो प्यार भरे दिल रोशन हुए,लेकिन उनकी रातें बहुत अँधियारी थी।मिले और फिर मिलकर बिछड़ गये।
दिल की उस जगमगाती रोशनी को महुआ ने अपने काज़ल की कोर में छुपा लिया था,कि कहीं वक्त की नज़र न लग जाए,लेकिन लाख छुपने-छुपाने के बाद भी वक्त की नज़र तो लगनी ही थी।
आज कितना खुशनुमा मौसम है,ऐसा लगता है,जैसे सावन का यह सुहावना मौसम दिल पर डकैती ड़ालकर ही दम लेगा।
लेकिन महुआ भी कहाँ इतनी कमज़ोर थी।उसने झट नम्बर डायल कर कागज़ और कलम को अपने गिरफ्त में बुला लिया और भरी बरसात में झाँक-झाँक कर ढूँढ़ने लगी,कि इस सौतन बरसात की रिपोर्ट में क्या-क्या और शिकायतें लिखूँ....... ?,कि इस सावन के मौसम ने तो जीना ही मुश्किल कर दिया है।
"सन्न,सन्न,सन्न,सन्न,सन्न करती पवन ऐसे चल रही है,जैसे आगोश से चम्पई ऑचल को अपने साथ उड़ा ले जाएगी और उस पर से यह बारिश की बेशर्म बूँदें तो आज पूरी तरह से ही बेईमानी पर उतर आई हैं,टिप-टिप कर ऐसे छापें मार रहीं हैं,कि साँस तक लेना मुश्किल कर दिया है।"
'अभी आगे कुछ सोच ही रही थी,कि घुमड़ते हुए बादलों ने जैसे चुपके से आकर उसके कान में धीरे से कहा-
"ए सखी सुन,आज़ तू मेरे साथ चल,मुझे अपने संग ले ले,और चल हम दोनों पवन संग झूम-झूमकर गाएंगे-नाचेंगे।"
तभी बसंती हवाओं ने जैसे सूखे पत्तों पर ताल दी हो,और वह भी वीराने में खड़-खड़-खड़-खड़ाते बज उठे,उनके साथ झिंगूर के बोल ऐसे लगने लगे,जैसे झांझ,ढोल,करताल बजा जुगलबन्दी कर रहे हों।
बर्फ सी ठंडी हवाएं झूम-झूमकर लहराने लगी और बल-खाकर इठलाती हुई कहने लगी-
"देख सखी रंग-बिरंगे जो पुष्प तेरे बगिया में खिले हैं न,वह तुमको अपने सुगंधों से भरने को आतुर हो रहे हैं।
देख कितनी नर्म-नर्म मखमली हरी घास बिछी हुई हैं,जो तेरे चरणों को चूम रही हैं।
सखी तू उदास क्यों होती है ....... !!?,
हम सब तेरे ही संग-सखा हैं,हम सब भी तो सिर्फ़ इस दुनिया को कुछ रंग और संग देने ही आए हैं न।"
"देख,मौसम कितना सुहावन हो गया है,बाग-बगीचों के आँचल में खुशियां नही समा रही है,ऐसा लग रहा है,जैसे चारों तरह धरती हरी चुनर ओढ़ ली है। सावन की बदली के इस प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रेम कर सखी और आज
इनसे ही अपना सोलह-श्रृंगार कर और बन जा तू भी दुल्हन। झूठा ही सही दो घड़ी तो तू भी जी ले,हम सब के संग-संग।" ****
7. तरंगित संवाद
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अगहन की ठंड में , सूरज की गर्मी से मन ही मन बातें करते हुए सेवानिवृत्त सेठ जी, अभी रिश्तों को लेकर कुछ यादें ताजा कर ही रहे थे कि अचानक फोन की घंटी घनघना उठी... .
"यह किसका नंबर है.. !!?,"
स्मृतियों पर जोर देते हुए हैलो किया, तो उधर से आने वाली आवाज़ ने ठंड से ठिठुरते हुए उनके कर्ण को अपनी स्वर की गर्मी से तृप्त कर दिया।
"हैलो, मामाजी, मैं रितेश बोल रहा हूँ। आज माँ की पुण्यतिथि है। मैं हवन करने के लिए बैठा हूँ, लेकिन कौन सा मंत्र पढूँ,यह मेरे समझ से बाहर है, प्लीज़ आप मुझे बताने की कृपा करें।"
"यह सुनते ही सेठ जी के शरीर का तापमान बढ़ गया और फूर्ती से उठकर बोले, बेटा तू ऐसा कर, मुझे वीडियो काल कर, मैं यहाँ से मंत्रोच्चारण करता हूँ, तू वहाँ हवन करता जा।"
" हवन समाप्त होते ही रितेश सबसे पहले अपने मामा का वही से चरण स्पर्श करता है और माफी माँगते हुए बोला- "मामा जी, मैं विदेश आकर अपने काम-काज में इतना मशगूल हो गया था, कि, पीछे पलटकर रिश्तों की तरफ देखा भी नही।
आज इतनी देर से परेशान होता रहा, तब जाकर आपका नंबर मिला और आपसे बात करके पूजन कार्य सम्पन्न हुआ,तब समझ आया कि विदेश में रिश्तों की कीमत पैसों से कहीं अधिक है।" ****
8. फैसला
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"स्साला........।
आखिर तू अपनेआप को समझता क्या है,
औरत पैर की जूती है,जो पुरानी हो जाए तो उठाकर एक कोने में फेंक दिया,हम जैसी औरतों को तेरे जैसे दिल-दिमाग से बीमार मर्द भला क्या समझेंगे ? "
"तू औरतों को खिलौना समझता है न !,तो जा,जाकर खेल वैसी औरतों के साथ,मैं तुझे आजाद करती हूँ।जीवन भर धक्के खाकर,तिनका-तिनका जोड़ कर यह घर बनाई हूँ। लेकिन तूने इसे कभी घर समझा ही नही।अब मुझे भी ऐसा घर नही चाहिए,जिसकी ईंटें मुझे रोज नोचती हों।"
"इस रिश्ते को बचाए रखने के लिए,तेरे न जाने कितने ही सितम सहें हैं।इसलिए आज तेरी नज़रों में मैं बेचारी बनी हुई हूँ,क्योंकि तुझे खुश रखने के चक्कर में अपने मन में झांक कर नही देखा,कि हमारा मन भी मुझसे कुछ माँगता है।अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए अपने अंदर उठते हुए बवंडर को पूरी ताकत से रोकती रही,लेकिन अब उथल-पुथल मचाते हुए अपने मन को कस कर बाँध लिया है।"
" ला दे,कहाँ और किस कागज पर हस्ताक्षर करना हे ?,तुझे मेरी ज़ुबान से अधिक इस काग़ज़ पर भरोसा है,तो ला दे,आज तुझे यह भी करके दिखाती हूँ।मत भूल की यह एक पतिव्रता औरत की ज़ुबान है,लेकिन इसके साथ ही कान में तेल डालकर तू मेरी भी शर्त सुन ले,कि वहाँ से मन भरने के बाद फिर पलट कर भी मेरे पास मत अइओ और दिमाग से यह बात भी निकाल दे,कि अब मैं फिर पलट तेरे दरवाजे पर कभी आऊंगी।"
'अरे हाँ, जा-जा,नहीं आऊंगा,बहुत देखी है तेरी जैसी औरते।'
"औरतों को तू पानी के ऊपर तैरता हुआ कचरा समझता है न !?,तो जिन्दगी में कभी उस पवित्र जल के अन्दर स्नान करके भी देखना,जीवन सार्थक हो जाएगा।बाजारू जल से जब तू सड़ेगा,तब तुझे घर का यह पवित्र जल याद आएगा।"
श्यामली बाहर बरामदे में पड़ी खाट पर लेटे-लेटे ही जागती आँखों से कोयले की तरह आज की स्याह रात काट दी और सुबह होते बिना पीछे देखे ही चुपचाप उठ कर अपने रास्ते पर चल दी। ****
9. दर्द भरी दरारें
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हे राम,तूने उसे मार दिया.......!!?
लडखडाती ज़ुबान के साथ ही सुगना ने अपने पति के हाथ से गड़ासा छीन अपने हाथ में ले लिया।
हाँ मार दिये,हाथ छोड़ और गड़ासा मुझे दे,नही तो तू अपराधी मानी जाएगी।
"हम साहुकार थे और साहुकार के तरह ही जीएंगे।चोरों की तरह मैं नही जी सकता,सो किस्सा ही खत्म कर दिया।
दोनों जार-जार रोते हुए बेसुध से अपने उस दिल के टुकड़े की तरफ टुकुर-टुकुर देखे जा रहे थे,जिसे बहुत अरमानों के साथ पाल-पोस कर बड़ा किए थे।वही आज कहीं मुँह दिखाने लायक नही छोड़ेगी,ऐसा तो कभी सपने में भी नही सोचे थे,तभी ठक-ठक-ठक बूटों की आवाज़ ने बाहर की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दिया,नज़र उठाते ही खाकी वर्दी सामने खड़ी थी।
" साहब आप यहाँ बैठो,मै सब बताती हूँ।
हमार मर्द गलत नही है,
इसने तो अपने और मेरे पेट को काट-काट कर उसके हर सपने को पूरा किया था।जात-बिरादरी के मना करने पर भी इसे गाँव से निकाल कर शहर पढ़ने के लिए भेज दिया,ताकि हमें जो नही मिला,वो हमारी बेटी को मिले।कम से कम हमारी बेटी पढ़-लिख कर कुछ बन जाए।"
तो क्या तुम कानून को हाथ में ले लोगे ?,चलो उठो कहानी मत सुनाओ।
" साहब क्या करता ?, इसके सिवाय मेरे पास कोई रास्ता ही नही था।इसे जिन्दा रख कर भी तो मरना ही था।जात-बिरादरी वाले ताने मार-मार कर जीना मुश्किल कर देते।"
साहब माँ-बाप मेहनत मजदूरी करके अपनी संतानों को पालते-पोसते और उनके हर सपने को पूरा करते हैं,क्या इसलिए कि संतानें माँ-बाप के आँखों में धूल झोक कर इस हद तक गुलछर्रे उड़ानें,कि बिन ब्याही माँ बन जाएं ?,
"मैंने ,उसको सपने पूरे करने के लिए शहर भेजा था,न कि मेरे सपनों को तोड़ने के लिए।"
" साहब,
कोठियों में खिड़कियाँ होती हैं,उन पर रेशमी पर्दे पड़े होते हैं,लेकिन झोपड़ियों में तो सिर्फ दरारें ही होती हैं,उन दरारों की घुटन से तो यह हथकड़ी भली।" ****
10.क्या कहेंगे लोग
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"आज अच्छी बातें और आदर्श तो सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित रह गयीं हैं,जिसे देखो वही समय के साथ भागे जा रहा है।
रूकना, सोचना और पीछे मुड़कर तो कोई देखना ही नही चाहता है।"
"पूरा जीवन यूँ ही गुजर जाता है, कि क्या कहेंगे लोग।"
"वो लोग रहते कहाँ हैं, कौन होते हैं वो लोग...?"
"कहाँ से आते हैं वो लोग, जब पूछो तो सब मौन हो जाते हैं।"
" क्या ए लोग बंद दरवाजों के अन्दर सि-सकती आवाज़ों पर भी कभी बोलते हैं...?"
" कभी नही न,हाँ दूसरों के झरोखों में झांकने के लिए अपनी कैंची की धार जरूर तेज करते रहते हैं।"
"वो चुपचाप बैठी है,इसका मतलब यह तो नही, कि वह गलत ही है,रास्ते की गर्द से उसकी ओढ़नी जरूर मैली हो गयी है,लेकिन उसके आँचल में दाग का एक छोटा निशान भी नही है।"
" तो फिर इन अप्रत्यक्ष लोगों की चिन्ता क्यों...?"
"कटाक्ष है, तुम्हारे उन लोगों पर जो आधुनिकता की खोल में आज भी वही अटके हैं।"
"कभी धर्म, कभी सम्प्रदाय तो कभी रीति-रिवाजों के नाम पर 'लोगों' के बहाने खुद के बुद्धि-विवेक को ही बाँधे रखते हैं।"
"हाँ भाई हाँ, सही है।"
"जिस दिन हम सब स्वयं के अंदर से 'लोगों' के कहने का भय निकाल देंगे,उस दिन से ही जिन्दगी की अंधेरी रात में भी एक स्वस्थ भोर उदय हो जाएगी।
अब कैंची हमें खुद के दिग्भ्रमित सोच पर चलानी होगी।
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11. प्यार का वायरस
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मेहमानों को विदा कर,भूमि और आकाश भी अपने हनीमून के लिए निकल गये।चाँद-सितारे,झील-समुंद्र से रूबरू होते हुए कब समय निकल गया,पता ही नही चला।
आज वेलेंटाइन डे के मौके पर इन वादियों से रूख़सत होने का दिन भी आ गया,दोनों बहुत खुश थे,कि अपने सपनों के महल में आज का दिन बिताएंगे।अच्छा हुआ जो हम लोग शिपिंग मोह खत्म कर,इधर का प्लान बना लिए थे।
"देखो न,संक्रामित रोग के भय से कोई भी देश,उस जहाज को अपने तट पर रूकने ही नही दे रहा है,और वही का रखा भोजन खाना पड़ता।"
"यह वायरस भी कितना भयंकर होता है न,
इतना सूक्ष्म होते हुए भी बड़े-बड़े प्राणियों को लील लेता है।शहर का शहर चट कर खत्म कर देता है।अब उन मांसाहारियों को पता चलेगा,जो दूसरे जीव को जीव नही समझते हैं।"
"हाँ भूमि,कोई सा भी वायरस हो,ऐसा ही होता है।
चाहे वह प्रेम का हो,घृणा का हो या संक्रमण का हो।"
'चाँदनी रात में अपने चाँद को निहारते और उसकी जुल्फों से खेलते हुए, देखो न मेरे प्यार के वायरस को,जो तुम पर अटैक करके,तुम्हारे दिल-दिमाग पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया,और आज तुम उससे घायल हो मेरी बाहों में हो,गिफ्ट के रैपर को फूल की तरह आहिस्ता-आहिस्ता खोलते हुए आकाश ने बहुत ही मधुर स्वर में कहा।,
'सही कह रहे हो।
उसी प्यार के संक्रमण से तुम्हारी दंभ से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सोच वाली नाक और भोंपू जैसी रूखी आवाज़ अब एकदम सही हो गयी।जिसकी वजह से तुम भी आज इतनी मधुर स्वर में बोलना सीख गये हो,नीली आँखों वाली शरारती भूमि ने अपने बालों में बचे हुए जल की शीतल बूँदों को आकाश के ऊपर छिड़कते हुए बोली।,
"दोनों एक-दूसरे की तरफ इस मधुर अंदाज से देख रहे थे,जैसे एक-दूसरे के बीमारी को जड़ से पकड़ लिए हों,जिसका इलाज सिर्फ़ प्रेम था।" ****
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क्रमांक -04
नाम : अरविंद श्रीवास्तव
साहित्यिक उपनाम : -डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
साहित्य सेवा-
हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादित पुस्तकें, गाईड्स व सीरीज 106 से अधिक ,बच्चों के लिए विद्यालय हेतु कई नाटकों का लेखन
सम्पादन : पत्रिकाओं का संपादन-4 मासिक, अर्धवार्षिक,वार्षिक पत्रिकाएं
अभिनय: डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी ' में महत्वपूर्ण भूमिका ,कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर अभिनय
आकाशवाणी के तीन केंद्रों से संबद्धता-कहानी वाचन,आलेख वाचन,काव्य पाठ
वीडियो एल्बम-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ)-इंदौर व मुंबई से निर्गत
सम्मान :
विदेश में : (मास्को रूस, काठमांडू तथा म्यान्मार बर्मा में) 7 सम्मान
देश में : लोकसभा अध्यक्ष श्री* *ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री ' सम्मान सहित 140 से अधिक* सम्मान ।
महत्वपूर्ण दायित्व-
अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया, संरक्षक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगसम दतिया जिला,*
एवं लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार ।
विशेष-जून 2018 में मास्को में 2पुस्तकों का विमोचन ,जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन रंगून (बर्मा)में सम्पन्न ।
पता : 150 छोटा बाजार दतिया - मध्यप्रदेश 475661
जन्म:5 सितम्बर ग्वालियर मध्यप्रदेश
शिक्षा: स्नाकोत्तर फ़ैशन डिजाइनिंग डिप्लोमा कोर्स, आई म्यूज सितार
साहित्यिक अभिरुचि:
हिंदी भाषा मे लेखन
लघुकथाएं, कहानियां,कविताएं, बाल साहित्य ,लेख, हायकू।
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पेपर में रचनाओ का प्रकाशन
इंदौर समाचार ,अक्षर विश्व ,हरियाणा प्रदीप जनवाणी,हिंदी भाषा.कॉम,ईकल्पना, रचनाकार,साहित्य समीर दस्तक,हिन्दी प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर,प्रदेश वार्ता,पवनपुत्र आदि में प्रकाशित कहानियां,लघुकथाएं, एवं कविताएं।
इंदौर लेखिका संघ की सदस्य,
स्तंभ लेखक मालवा प्रान्त की सदस्य
सम्मान:
2018 में भाषा सहोदरी दिल्ली द्वारा,2018 में सम्मान
जून 2019 में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन शुभ संकल्प द्वारा सम्मान
2019 में अग्निशिखा गौरव सम्मान
2019 में विश्व हिन्दी लेखिका संघ द्वारा सम्मान तथा
भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा सम्मान
पता-वंदना पुणतांबेकर
63 , जल एनक्लेव सिल्वर स्प्रिंग बाय पास रोड , इंदौर - मध्यप्रदेश
1. व्यथा
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हर तरफ़ बाजारों में सूनापन बिखरा पड़ा था. ना जाने यह कोरोना महामारी कब तक जाएगी.65 वर्षीय रघुनाथ जी खिड़की से आती शांत बयार को महसूस कर रहे थे.सभी साजो सामान होते हुए भी आंखों नमी लिए थी वह खिड़की के बाहर शून्य नजरों से झांक रहे थे.
रसोई से आती दाल की खुशबू अचानक उनके मस्तिष्क को तरोताजा कर गई.
वरुण अकेला विदेश में बैठा लॉकडाउन में फंसा हुआ था.वहां पर वरुण भारतीय खाने का स्वाद और माँ के हाथों का खाना खाने के लिए तरस रहा था.
तभी वीणा के भराई हुई.आवाज उन्हें सुनाई दी.." चलो खाना खालो..., रघुनाथ जी खाने की थाली देख सोचने लगे. काश.... आज वरुण यहां होता... वरुण के पैसों से सजा घर देखकर उनकी आंखें भर आई. आज विदेश भेजने का दर्द उनकी आंखों में साफ नजर आ रहा था । ****
2. अनाथ
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सुरेश बाबू सुबह का अखबार लिए बैठे थे।जैसे ही एक समाचार पर उनकी नजर पड़ी।वह स्तब्ध रह गए।
तभी उनके कानों में घर के सदस्यों की आवाजें सुनाई देने लगी। सुबह की कवायद शुरू हो चुकी थी।अदरक से बनी चाय की महक पूरे घर में महक रही थी।अपने कमरे में बैठे वह चाय का इंतजार कर रहे थे।उनका प्याला हमेशा ही आखिर में आता।घर की बहुओं ने घर की परंपराओं और रिवाजों को अपने सुविधानुसार बदल दिया था। वह हमेशा यहीं सोचते रहते। जीते जी अपनी इतने वर्षो की संजोई हुई संस्कारो की पूंजी को बिखरता देख उन्हें बहुत दुख होता।
अपने बनाये हुए महल में अपने ही कमरे में पड़े रहते। कभी किसी काम के विषय में बोलने से पहले ही बहूएं उन्हें टोक देती कहती-"बाबूजी आप तो रहने ही दो,हम हमारा देख लेंगे।सुरेश बाबू अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाते।अखबार की खबर पढ़ते ही उनकी आँखें सजल हो गई।आज अखबार में उसी आश्रम की खबर छपी थी।अनाथों को सहारा देने वाला कन्धा आज छूट गया था।आज सारे रिश्तो के होते हुए भी वे पहले की तरह अनाथ ही थे। ****
3. महल
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अनिल बाबू का सामाजिक रुतबा बहुत था।सभी सोसाइटी के लोग उनके वैभव और शाम को देख कर दंग रह सलाम ठोकते। घर तो मानो जैसे किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं था। वह अपनी बुद्धिमत्ता पर सदैव गर्वित रहते। कल अचानक एक के बाद एक फोन आता देख। विभा पूछ बैठी- "क्या बात है, तुम कुछ परेशान दिख रहे हो..., कुछ समस्या हो गई क्या...? अनमने ढंग से... "नहीं! अचानक अलमारी से कुछ कपड़े निकाल तत्काल प्लेन का टिकट ऊंचे दामों में खरीद रातों-रात अनिल बाबू निकल गए। विभा मौन मूरत बनी ठगी सी उन्हें जाते देख रही थी। सुबह अलसाए मन से अखबार उठाकर अंदर आई तो देखा। बड़े-बड़े अक्षरों में अनिल बाबू का नाम और फोटो देख पांव के नीचे की जमीन खिसक गई।"जमीनों के सौदागर पर सरकार की नकेल" अब तक सारी कॉलोनी के लोगों उन्हें सलाम ठोकते थे।अब वही नजरें उन्हें घूर रही थी। गरीबों के हक छीनकर बनाया गया महल विभा को सीलन भरी कोठरी का एहसास करवा रहा था। और मानो जैसे कानों में गरीबों की बद्दुआओं के स्वर चीख-चीख कर उन्हें शापित कर रहे थे। ****
4. स्वाभिमान
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6 वर्षीय राहुल सुबह से पिचकारी की रट लगाए था।पिता के पैरों पर चढ़ा प्लास्टर देख वह बोल पड़ा- पापा मुझे आज ही और अभी ही पिचकारी चाहिए, नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा।पिता की शारीरिक और आर्थिक मजबूरी देख कर भी राहुल जिद पर अड़ा रहा।
मां बार-बार समझाकर हार चुकी थी।आखिर मां पांव में चप्पल डाल बाहर की ओर निकल पड़ी। वह चलते-चलते मंदिर के पास रुक गई।मां को बाहर जाता देख राहुल भी चिंतित हो उसके पीछे भागा। मोहल्ले में रंगों का खेल जोरों पर था। सभी और ढोल-ताशे बज रहे थे। बच्चों की टोलियां झूम-झूम कर रंग उडाती हुई अपनी खिलखिलाती हंसी बिखेर रही थी। राहुल मां का हाथ पकड़कर बोला-मां तुम यह क्या कर रही हो मंदिर में भीख मांगने आई हो..? मां आंखों में आंसू लेके बोली- तू सब जानता है, फिर भी समझता नहीं.., इसीलिए तेरी जिद पूरी करने के लिए यहां आई हू।
नहीं-नहीं, मां.., मैं तो बिना पिचकारी के रंग खेल लूंगा,आप तो घर चलो। आज वह अपनी जिद छोड़ मां का हाथ पकड़ घर ले आया।
आज स्वाभिमान का रंग राहुल पर चढ़ चुका था। हालातों से समझौता करते हुए आटे का हलवा खाकर राहुल खुश हो गया। और रंगों से सराबोर हो रही बच्चों की टोली में शामिल हो गया। उसकी चेहरे पर एक अजब सी खुशी देखकर पिता पलँग पर लेटे-लेटे उसे देख रहे थे।राहुल मुस्कुराते हुए पिता की और देख रहा था। स्वाभिमान का गुलाल राहुल के गालों को गुलाबी कर रहा था।***
5. रिश्तों का मोह
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केदारनाथ ने जमनी को आवाज लगाते हुए कहां-जमली आज सुबोध मुझे लेंगे आ रहा हैं, कमरे का सारा सामान तू ले जाना।अब मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं...।जमली चहक कर.. अच्छा!बाबूजी आपके पुण्य काम आए,नहीं तो आज के बच्चें माँ बाप की सुध कहां लेते हैं। कहकर जमनी फटाफट काम निपटाकर कमरें के समान का निरीक्षण लगी।
सुबोध के आने पर केदारनाथ का उत्साह दोगुना हो गया।लेकिन सुबोध के चहरे पर समय के उतार-चढ़ाव को देख केदारनाथ पूछ बैठे-"क्या बात है..बेटा? कुछ ज्यादा ही परेशान नजर आ रहे हो.?वो...वो...कुछ नहीं बाबूजी बस...यूहीं..।
"बोल दे बेटा,बचपन से तुझे जानता हूं।मुद्दे की बात पर हमेशा तेरी जुबान लड़खड़ाती हैं। वो बाबूजी मैं आपको नहीं ले जा सकता!थोड़ी फाइनेंशियल प्रॉब्लम आ गई हैं।लेकिन बेटा मेरा तो कोई विशेष खर्चा भी नहीं हैं,अब तो तुम्हारें कहने पर सारी संपत्ति तुम्हारें नाम कर दी हैं,तुम तो हमेशा कहते थे कि मझे पैसा नहीं आपका आशीर्वाद चाहिए।फिर भी तुम्हारी पत्नी के कहने पर तुम्हें समय रहते सब कुछ दे दिया तो फिर ऐसा क्यों? बाबूजी वो नलिनी की माँ कुछ दिनों के लिए आई हैं....।
जमनी और केदारनाथ कमरें के सामान को निहार रहे थे।जमनी की उम्मीदों पर पानी फिर चुका था।और केदारनाथ के रिश्तों का मोह आँखों से गिरते आंसुओ के साथ गलने लगा।****
6. जिद
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गर्मी की छुट्टियां लग चुकी थी।वैभव के मम्मी पापा जॉब करते थे। तो वैभव अपनी बड़ी दीदी के साथ घर में अकेला रहता।उसे बचपन से ही क्रिकेट खेलना पसंद था।लेकिन अभी इन दो तीन सालों में वह सारा दिन मोबाइल पर गेम खेलने की जिद्द करता। तंग आकर एक दिन वैभव की दीदी ने मां से उसकी शिकायत कर दी। वैभव अभी12 साल का था। टी.वी पर सावधान इंडिया जैसे शो देखना उसे बहुत पसंद थे। मम्मी से मोबाइल,गेम खेलने के उद्देश्य मांगता और यूट्यूब पर मनपसंद फिल्मी गाने देखता। इस तरह 12 साल की उम्र में 22 साल के लड़के जैसे उसके तेवर हो गए थे।उसका बचपन कही खो सा गया था।ऊँची आवाज में बोलना अपनी हर जिद मनवाना उसकी मां हमेशा उसकी बातों का समर्थन करती।
एक दिन गुस्से में उसकी दीदी ने टीवी बंद कर दिया और मोबाइल भी उसके हाथ से छीन लिया।तो गुस्से में वैभव ने अपना इतना सिर पटक लिया।मजबूरन उसे मोबाइल देना पड़ा। वैभव का गुस्सा अब उसकी जीत बन चुका था। वह अपनी हर जिद्द पूरी कराना चाहता था।उसके मम्मी- पापा को समझ नहीं आ रहा था। कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।उसकी दीदी जानती थी।यह सब टी.वी और मोबाइल की वजह से उसका स्वभाव जिद्दी हो गया है। एक दिन उसके दीदी ने उसे प्यार से समझा कर उसे अपने साथ क्रिकेट खेलने को मना लिया। वह उसका सारा ध्यान टीवी मोबाइल से हटा कर दूसरी ओर लगाना चाह रही थी। आखिरकार उसकी जीत हुई, धीरे धीरे वह क्रिकेट खेलने लगा। और टीवी मोबाइल से दूर होता चला गया। इससे उसका शारीरिक और मानसिक दोनों का विकास हुआ। थोड़ा बड़ा होने पर उसे बात यह अच्छी तरह समझ आ गई। कि टीवी मोबाइल हानिकारक वस्तुएं हैं। इसे एक लिमिट ही इस्तेमाल करना चाहिए।अन्यथा इसकी आदत हानिकारक भी हो सकती है।वैभव में बदलाव देखते हुए उसकी मां ने दीदी की सराहना की और उसे कहा,"इसी सोच कि हमारे समाज में आज बहुत आवश्यकता है। वैभव की दीदी अपने सही निर्णय ओर जीत पर मुस्कुरा उठी।आज के समय में हर घर में वैभव की दीदी जैसे भाई,-बहन होना चाहिए।****
7. थीम
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आज सरला ने किटी थीम वेस्टर्न गाउन रखी थी।सभी अधेड़ उम्र की हाई प्रोफाइल महिलाओं की किटी उनके गमों को भुला कर कुछ पल जीने का जरिया सोने के पिंजरे में कैद बुलबुल की तरह झटपटाती बेताबी से किटी का इंतजार करती।
सरला के यहां सभी का आना चालू था। सरला अपनी सहेलियों को गाउन में देख मन ही मन मुस्कुरा उठी।किटी मेंबर के फोटो ले उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाने लगी। सभी एक दूसरे की प्रतिद्वंदी बनकर आई थी।किटी की थीम तो एक बहाना था।अपनी बेटी दिशा के बुटीक से सामान बिकने का उसका धेय था। दिशा मां की कुशाग्र बुद्धि को देख अगले महीने की थीम क्या रखनी है।वह आज ही डिसाइड हो जाए। इसी उहापोह में लगी थी। मां ने धीरे से आँख दबाते हुए धीरज रखने को कहा। ****
8. जहर
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आज सुबह का अखबार सुर्खियां लिए हुए था। देसी जहरीली शराब पीने से सात लोगों की मौत...! चंद्रबाबू ने खबर पढ़ आँखें चौड़ी कर दी और जोर से बोल पड़े- "क्या घोर कलयुग आ गया है, जिधर देखो उधर अपराध और लूटमारी फैली हुई है। अब लोग इतने गिरे स्तर पर भी काम कर सकते हैं। कि बिचारे कामगार मजदूर सुबह शाम की थकान मिटाने के लिए शराब पिये तो उसमें भी ज़हर...? तभी बाहर से भूरी संदेश लाई बोली- "मालकिन आज लल्ली नहीं आ सकेगी उसका घरवाला चल बसा...। "कैसे...! कल तक तो भला चंगा था। क्या हुआ उसे अचानक सुधा ने विस्मय नेत्रों से पूछा..।वो रात कुछ ज्यादा दारू ज्यादा पी गया था।उसी वजह से तबीयत बिगड़ गई। तभी फोन की घंटी घनघना उठी। दूसरी तरफ से आवाज आई कल ज्यादा बारिश होने के कारण सारा माल इसी शहर में आपके इलाके में ही उतार दिया था। चंद्रबाबू जोर से चिल्लाए रास्ते में तो नहीं बेचा..., पूरा पैसा लूंगा चाहे कहीं भी उतार। सुधा के कानों पर पड़े चंद्रबाबू के स्वर उसके अंतर्मन को छलनी कर गए।****
9. पुनरावृत्ति
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अभय और अजय का लगातार संवाद चालू था। मां की नम आंखें बार-बार कभी बच्चों को तो कभी अपने पति की ओर देख रही थी। संवाद जोर पकड़ रहे थे। बच्चे अपने पिता से संपत्ति के बंटवारे को लेकर ऊंची आवाज में संवाद कर रहे थे। विमला ने पति को देखकर कहा- "कहां इस उम्र में टेंशन ले रहे हो, स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, दे दुआ के अलग करो, वे भी जिए और हम भी।आज इस पुनरावृत्ति को देख वह खामोश थे। ****
10. अनाथ
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सुरेश बाबू सुबह का अखबार लिए बैठे थे।जैसे ही एक समाचार पर उनकी नजर पड़ी।वह स्तब्ध रह गए।
तभी उनके कानों में घर के सदस्यों की आवाजें सुनाई देने लगी। सुबह की कवायद शुरू हो चुकी थी।अदरक से बनी चाय की महक पूरे घर में महक रही थी।अपने कमरे में बैठे वह चाय का इंतजार कर रहे थे।उनका प्याला हमेशा ही आखिर में आता। घर की बहूओं ने घर की परम्पराओं ओर रिवाजों को अपने सुविधानुसार बदल दिया था।वह हमेशा यहीं सोचते रहते। जीते जी अपनी इतने वर्षो की संजोई हुई संस्कारो की पूंजी को बिखरता देख उन्हें बहुत दुख होता।
अपने बनाये हुए महल में अपने ही कमरे में पड़े रहते। कभी किसी काम के विषय में बोलने से पहले ही बहूएं उन्हें टोक देती कहती-"बाबूजी आप तो रहने ही दो,हम हमारा देख लेंगे।सुरेश बाबू अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाते।अखबार की खबर पढ़ते ही उनकी आँखें सजल हो गई।आज अखबार में उसी आश्रम की खबर छपी थी।अनाथों को सहारा देने वाला कन्धा आज छूट गया था।आज सारे रिश्तो के होते हुए भी वे पहले की तरह अनाथ ही थे। ****
11. आग
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किसान आंदोलन में सब तरफ़ अपने अधिकारों को लेकर राजमार्ग रोके जा रहे थे। आगजनी, तोड़फोड़ आए दिन आंदोलन का हिस्सा बना हसिया भी सुबह के लिए बोरे में कुछ जलावन का सामान इकट्ठा कर लाया था। शायद दूसरे दिन के आंदोलन की तैयारी थी।घर के सारे अनाज खाली हो चुके थे। जमुना अपनी 10 साल की बेटी को भूखा देख हसिया से बोली-"पहले घर के सदस्यों की पेट की आग तो बुझाओ, फिर आंदोलन में जाकर आगजनी करना। उसकी बात सुन हसिया बोला-"बस उसी की जुगाड़ में हूं, थोड़ा इंतजार और कर ले 10 वर्षीय मुनिया सूनी आंखों से मां-बाप को देख रही थी। वह आग समझ सकी। आंदोलन नहीं...? ****
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क्रमांक -07
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
फिल्म पत्रकारिता कोर्स
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
जैमिनी अकादमी , पानीपत
( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रकाशित )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018 (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019 ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन ) मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
" आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
पानीपत - 132103 हरियाणा
ईमेल : bijender1965@gmail.com
WhatsApp Mobile No. 9355003609
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https://bijendergemini.blogspot.com/2021/06/blog-post_9.html
मध्यप्रदेश के लघुकथाकारों को एक स्थान पर लाकर आपने बहुत ही बढ़िया कार्य किया है । हम एक साथ मध्यप्रदेश के लघुकथाकारों की लघुकथाएं एक स्थान पर पढ़ सकते हैं। आपके इस प्रयास को हार्दिक अभिनंदन।
ReplyDeleteआदरणीय जैमिनी जी,
ReplyDeleteसादर अभिवादन
ई. लघुकथा संकलन हेतु मध्यप्रदेश के 11 लघुकथाकारों में दर्शना को शामिल करने हेतु उसके मम्मी पापा एवं स्वयं दर्शना की ओर से दिल की गहराइयों से हार्दिक हार्दिक धन्यवाद।
यह हमारे लिए तो अत्यंत खुशी व गर्व की बात है ही, दर्शना के उत्साहवर्धन में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
आगे भी उसपर इसी तरह आपका वरदहस्त बना रहेगा ,इन्हीं शुभ भावों के साथ।
आभार सहित
सरोज जैन
प्रवीण जैन
( WhatsApp से साभार )
प्रशंसनीय कार्य।
ReplyDeleteमध्य प्रदेश का लघुकथा जगत बहुत समृद्ध। ऐसे में उस पर केंद्रित यह विशेषांक बेहद महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteआनंद बिल्थरे जी के साथ शुरूआत से छपती रही, तो लग रहा, उनका सम्मान होना जरूरी। अचानक वे चले गए।
सबकी ग्यारह-ग्यारह लघुकथाओं में समय का सच बोल रहा, प्रासंगिक, उल्लेखनीय रचनाओं से सजा है यह विशेषांक। एक बड़ा कार्य हुआ है।
साधुवाद! बीजेन्द्र जी का सराहनीय कार्य
- अनिता रश्मि
रांची - झारखंड
( WhatsApp से साभार )