सविता चड्ढा से साक्षात्कार
जन्म : 28 अगस्त 1953 को पानीपत - हरियाणा
शिक्षा : एम.ए .हिंदी, एम. ए. अंग्रेजी, विज्ञापन जनसंपर्क और पत्रकारिता में डिप्लोमा, 2 वर्षीय कमर्शियल प्रैक्टिस डिप्लोमा
पुस्तकें : -
15 कहानी संग्रह,
10 लेख संग्रह,
2 उपन्यास,
9 काव्य संग्रह तथा
11 पत्रकारिता पर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
सम्मान: -
- हिंदी अकादमी, दिल्ली का 1987 में साहित्यिक कृति पुरस्कार,
- हरियाणा साहित्य अकादमी का हरियाणा गौरव सम्मान,
- वूमेन केसरी, साहित्य गौरव, राष्ट्र रत्न , साहित्य सुधाकर , साहित्य शिखर सम्मान, दिल्ली गौरव के अलावा 50 से भी अधिक संस्थाओं ने आप को सम्मानित किया है
विशेष : -
- विभिन्न विषयों पर 1981 से लेखन कार्य कर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी हैं।
- तीन कहानियों पर टेलीफिल्म निर्माण हो चुका है
- कई कहानियों पर नाटक मंचन हो चुका है। आप
- 60 से अधिक कहानियां आकाशवाणी पर पढ़ चुके हैं
- वहीं कक्षा 6 ,7 ,8 के पाठ्यक्रम में भी आपकी तीन बाल कहानियों को शामिल किया गया है ।
- आपकी कहानियां अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू भाषा में अनुवादित है ।
- आपकी पत्रकारिता की तीन पुस्तकों को दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय और देश के कई पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में सहायक ग्रंथों के रूप में शामिल किया गया है और पढ़ाया जा रहा है ।
- आपकी कहानियों पर विश्वविद्यालयों में शोध हो चुका है और हो भी रहा है।
- आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कई पुस्तकें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।
- लोक सभा, राज्य सभा टीवी और दूरदर्शन पर “ पत्रिका कार्यक्रम “ में और कई समाचारपत्रों में आपके इंटरव्यू प्रकाशित हो चुके हैं।
- पंजाब नेशनल बैंक के राजभाषा विभाग में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्य किया है
- दिल्ली बैंक नगर राजभाभाषा कार्यान्वयन समिति के माध्यम हिंदी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके लिए आपको बैंक ने समय समय पर सम्मानित किया हैं।
- केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् में साहित्य मंत्री के रूप में सेवाएं
- बैंक और देश की कई पत्रिकाओं के संपादन
- साहित्यिक यात्राएं में देश में सहभागिता के अतिरिक्त न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, अमेरिका, पेरिस, दुबई, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी ,ताशकंद, हॉलैंड, नेपाल जैसे कई देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं
पता :
899,रानी बाग, दिल्ली- 110034
प्रश्न न.1 - आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और प्रेरणा का स्रोत क्या है ?
उत्तर - 1965 में जब 12- 13 वर्ष की थी तब अपने आसपास कुछ परिस्थितियों ने मुझे द्रवित कर दिया था। उस समय महिलाओं की स्थिति हैरान कर देने वाली थी । बचपन में हमें रीति रिवाजों और प्रथाओं का ज्ञान नहीं था। हमारे पड़ोस में ही एक मुस्लिम परिवार कुछ दिनों के लिए आया था। परिवार में केवल पति और पत्नी ही थे। हम सब बच्चे जब गली में खेला करते थे तो वह हमें देखा करती थी । उसके पति ने दूसरा विवाह गांव में किया हुआ था और शहर में आकर उसने एक और शादी कर ली थी । शहर वाली पत्नी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी और उका जीवन स्तर अत्यंत सामान्य था महिला की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। यह तो मुझे बहुत बाद में पता चला कि मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को अधिक शादी करने की इजाजत है लेकिन बचपन की यह घटना मुझे कभी भूल नहीं सकी इसी प्रकार जब मैंने और महिलाओं की स्थिति देखी तो पढ़ी लिखी महिलाओं की संख्या बहुत कम थी। दूसरी ओर हमारे स्कूल के पास ही एक धोबी कॉलोनी थी । जिसमें घाट पर कपड़े धोने वाले सभी एक साथ रहा करते थे । स्कूल से आते समय कई बार मैंने वहां परिवार में झगड़े, मारपीट, गाली-गलौज होते देखा था । मन में कई विचार उत्पन्न होते, कि मनुष्य झगड़ा क्यों करता है? मनुष्य बार-बार शादियां
क्यों करता है? समाज की परिस्थितियां खुशहाल क्यों नहीं हो पाती ?आसपास दिखने वाली महिलाओं में आत्मनिर्भरता की कमी भी मुझे कष्ट देने लगी और न जाने कितने ही ऐसे प्रश्न बाल मन पर अंकित हो गए थे । जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई यही प्रश्न वट वृक्ष के रूप में बाहर आने को व्याकुल होने लगे और मेरी कलम इस और चल निकली। बचपन के ऐसे अनंत प्रश्न मेरे भीतर कहीं रह गए थे जो मेरी उम्र के साथ साथ 1972 से साहित्य की विधाओं के रूप में आने लगे थे।
प्रश्न न. 2 - आप की पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है ?
उत्तर - अक्तूबर 1972 में मेरी सरकारी नौकरी पर्यटन विभाग में लग गयी थी। ये कार्यालय रेल भवन में था। रेल भवन की पांचवी मंजिल की खिड़की के पास मेरी सीट थी। वहां से संसद भवन परिसर में हरे भरे पेड़ पौधे दिखते थे। पतझड़ के मौसम में पत्ते विहीन पेड़ों को देखकर मैने कुछ पंक्तिया लिखी थी। उसी कमरे में कवि और आलोचक श्री राजकुमार सैनी बैठते थे। वह पर्यटन विभाग में हिन्दी अधिकारी थे ! उन्होंने मुझसे वह कागज लिया और उसे देखकर बोले ‘’ ये तो कविता है, तुम कबसे लिखती हो ।’’ मैने कहा ऐसी पंक्तियां तो मैने बहुत लिखी है। बाद में जब उन्होंने मेरी डायरी देखी तो मुझसे कहा ‘’ तुम कहानियां भी लिख सकती हो।‘’ गुरू का काम शुरू भी हो और पूरा भी हो चुका था । लेखन की शुरुआत कविताओं से हुई पर मेरा कहानी संग्रह “आज का ज़हर” 1984 में प्रकाशित हुआ । 1972 में “औरत एक मन:स्तथि” शीर्षक से यह मेरी पहली रचना लिखी गई:
एक पत्ता भी नहीं है वृक्ष पर
जैसे मुझ में एक आशा भी नहीं
डोलती शाखाएं वृक्ष की ऐसे
मेरे ही शरीर के अंग हो जैसे
जब भी आता है झौंका पवन का एक
हिल जाती हैं शाखाएं वृक्ष की अनेक
जड़ वृक्ष की रही वहीं की वहीं
न हिली पवन के झकौरों से
एक क्या, आए अनेक झोंके,
जड़ की ही तरह रही जड़, मैं भी,
नहीं हिली, न डुली और ना टूटी ही।
1981 में मैने पहली कहानी दहेज प्रथा पर लिखी ‘’आज का ज़हर’’ । ये कहानी बाद में आकाशवाणी पर प्रसारित हुई और बाद में आकाशवाणी की पत्रिका में भी प्रकाशित हुई 1982 में । मुझे साहित्यिक पंख मिल गये थे। एक और कहानी उन दिनों लिखी थी ‘’ यादें’’, जो उस समय के महत्वपूर्ण समाचारपत्र ’’जनयुग’’ में प्रकाशित हुई थी। शुरूआत कविताओं से हुई थी उस समय कुछ कविताएं भी पत्रिकाओं में छपी थी ।
प्रश्न न. 3 - आप किन-किन विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पंसद करते हैं ?
उत्तर - मेरे अब तक के लेखन में कहानी , कविता, लेख, उपन्यास, यात्रा वृतांत, पत्रकारिता पर लिखी मेरी 47 पुस्तकें हैं। मैं नहीं जानती कैसे, पर साहित्य की कई विधाओं में मुझसे लिखा गया है। किस विधा के लेखन में सबसे अधिक रूचि है, मैं नहीं कह सकती परन्तु कविता लिखकर मुझे हमेशा ही सकूँ मिला है। काव्य लेखन मेरी प्रिय विधा है । मैंने यह स्वीकार किया है कि कविता अंतर्मन की बेटी है। कविता ईश्वर का आशीर्वाद है और भगवान का प्रसाद है । मेरी कविताओं में मेरी कई कविताएँ मेरी बहुत ही प्रिय है, कलम हाथ में आती है और विचारों की जद्दोजहद मुझसे लिखवाती है वह ही मेरा प्रिय लेखन है।
मेरी कहानियों में मेरी कई कहानियां जैसे मैजिक, एकांतवास , प्रेम, बिब्बो, पहला प्यार
और भी कुछ कहानियां मुझे भी और आप सबको प्रिय है। मेरा संग्रह "मेरी प्रिय कहानियां", "मेरी
लोकप्रिय कहानियाँ", मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ “ इन संग्रहों में हैं। मेरी कुछ कविताएँ अंग्रेजी में भी प्रकाशित हैं ।
प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर - मैं चाहती हूं संस्कार जीवित रहें, मर्यादा और अनुशासन हमारे गुण बने रहें । किसी भी परिस्थिति में मर्यादाओं को तोड़कर लक्ष्य पाने की ओर अग्रसर ना हुआ जाए। मैंने अपने लेखन में सदा ही कोशिश की है समाज में खुशहाली और मेलजोल बना रहे । सहनशीलता और धैर्य को अनिवार्य गुणों की तरह अपनाया जाए। ईर्ष्या,द्वेष और क्रोध जैसे अवगुण किस प्रकार हमारा विनाश कर सकते हैं ये भी मुझे हमेशा याद रहता है। मेरे समकालीन साहित्यकार मित्रों ने मेरे लखन को सदा ही साफ सुथरा लेखन कहां है और कुछ कहानियों में बोल्डनेस देखते हुए भी उन्होंने बोल्डनेस की कहानियों के बावजूद भी मेरे लेखन को साफ सुथरा लेखन स्वीकार किया है । साहित्य का भविष्य हमेशा ही प्रकाशित है ,उज्जवल है और रहेगा। यदि साहित्य का भविष्य नहीं होता तो आज रामायण, गीता ,महाभारत और ऐसी अनेक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक कथाएं समाज के प्रत्येक वर्ग के वर्तमान और भविष्य का निर्माण नहीं करती होती।
प्रश्न न. 5 - वर्तमान साहित्य में आप के पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी पुस्तक है ?
उत्तर - मैंने सबसे अधिक आदरणीय विष्णु प्रभाकर, अमृता प्रीतम , दिनेश नंदिनी डालमिया , आशा रानी व्होरा , शरत चन्द्र, को पढ़ा हैं। इनका साहित्य तत्कालीन सामाजिक परिवेश को समझने में और कुछ सोचने के लिए दिल दिमाग को प्रभावित करता है। यशपाल जैन, मुरारी लाल त्यागी जी की बहुत रचनाओं को पढ़ा है, पंडित सुरेश नीरव और डॉ. हरीश नवल, सुभाष चंदर, के व्यंग्य भी पड़े हैं, मुझे कई पुस्तकों की भूमिका लिखने का सौभाग्य भी मिला है, कल्पना पांडेय, डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल , अमोद कुमार, राजेंद्र नटखट, कुसुम शर्मा, अंजू दुआ जैमिनी, सविता स्याल का लेखन पढ़ा है, खूब अच्छा लिखा जा रहा है।
प्रश्न न. 6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है ? ये अनुभव कैसा रहा है ?
उत्तर - जी, मुझे 1981 में सबसे पहले अपनी कहानी "आज का जहर" पढ़ने का अवसर मिला था आकाशवाणी पर और उसके बाद से आज तक हिंदी और पंजाबी में मेरी साठ से अधिक कहानियां आकाशवाणी पर प्रसारित हो चुकी है। मेरा सौभाग्य है कि मेरी लिखी तीन कहानियों पर टेलीफिल्म बनी जिनका प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ है। इसके अलावा नेशनल दूरदर्शन पर पत्रिका कार्यक्रम में मेरा इंटरव्यू हो चुका है, लोकसभा टीवी पर भी मेरा साक्षात्कार सुश्री प्रियंबरा जी ने लिया है । मुझे भी कई बार साहित्यकारों का इंटरव्यू लेने का इन विषयों पर अपनी बात कहने का अवसर समय-समय पर मिलता रहा है । दूरदर्शन पर उपस्थित होना बहुत ही सुखद और प्रसन्नता देने वाला अनुभव रहा है।
प्रश्न न. 7 - आप वर्तमान में कवि सम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?
उत्तर - कवि सम्मेलन यदि महत्वपूर्ण विषयों को लेकर अपनी बात कहते हैं तो उनका मूल्य और बढ़ जाता है । यदि हम हमेशा राजनीति और नेताओं को लेकर ही उन पर कटाक्ष कर कवि सम्मेलन की शोभा बनते हैं तो यह मेरे विचार में प्रासंगिक नहीं है। विषय की गंभीरता ही कवि सम्मेलनों की प्रासंगिकता निर्धारित कर सकती हैं ऐसा मेरा मानना है । अब वह समय नहीं रहा जब हम प्रेमिका के बालों और सुंदरता पर काव्य पाठ करते रहें। अब समय है समाज के उत्थान का, संस्कृति और संस्कारों को जीवित रखने के लिए अपनी बात करने का, समाज को सुंदर बनाने का, अगर यह सब हमारे कवि सम्मेलन में शामिल होते हैं तो मेरे विचार में यह अत्यंत सारगर्भित हो सकता है और इनकी प्रासंगिकता भी स्वीकार्य होगी। मैं हमेशा कहती हूं "मनोरंजन के और बहुत सारे साधन है, लेखन को, साहित्य को, कविता को मनोरंजन के लिए परोसना मेरे विचार में प्रासंगिक नहीं है।
प्रश्न न. 8 - आपकी नज़र में साहित्य क्या है तथा फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं ?
उत्तर - साहित्य तो समाज की आत्मा है। समाज की जान है और आन बान और शान भी। मेरा यह मानना है "साहित्य समाज के हर वर्ग के हर रोग का निदान है , साहित्य हर अंधेरे में प्रकाश की किरण है , साहित्य हर कमजोर वर्ग का सहारा है और साहित्य हर बुराई पर पहरा है।" मेरा यह मानना है जो श्रेष्ठ लिखेगा वो ही स्थायी जगह बना सकेगा। श्रेष्ठ से मेरा तात्पर्य भाषा की शुद्धता , परिपक्वता । मैं इसे इस प्रकार भी कह सकती हूँ ,लेखन में अश्लीलता का पुट साहित्य में जहर की तरह है। बस मुझे इस बात का डर हमेशा ही रहता हैं साहित्य को सस्ते मनोरंजन का साधन नहीं बनाया जाए। मैं एक बात हमेशा कहती हूँ, कई बार कही है, साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं होना चाहिए, साहित्य पाठकों को प्रकाशित करने के लिए होना चाहिए, साहित्य गंगा में स्नान करने जैसे होना चाहिए,| फेसबुक का साहित्य कई मायनों में बहुत ही लाभदायक है । लेखकों के लिए अपनी बात को समाज तक पहुंचाने का एक अच्छा माध्यम है। फेसबुक का दुरुपयोग भी हो रहा है जिस पर रोक अनिवार्य है । लोग एक दूसरे के लिखे को अपने नाम से दे रहे हैं और कई बार फेसबुक पर लिखे गए साहित्य या किसी भी विधा पर लिखी गई रचनाओं पर अनावश्यक विवाद, अनावश्यक टिप्पणियां आपस में भाईचारे और सौहार्द को खराब भी कर रही हैं। फेसबुक के साहित्य, फेसबुक पर लेखन, फेसबुक के माध्यम से सोशल मीडिया पर आज जो भी अनर्गल अनाप-शनाप आ रहा है वह किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं है। जो श्रेष्ठ लेखक हैं वह अपनी रचनाओं को समाज को इस प्रकार प्रस्तुत कर रहे हैं कि समाज उनको पढ़कर अपने लिए एक नई सुनहरी राह का चुनाव कर सकता है।
प्रश्न न.9 - वर्तमान साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैरसरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है ?
उत्तर - मुझे कभी किसी अकादमी से शिकायत नहीं रही। सब अपना काम ईमानदारी से ही करते हैं. लेखक होने के नाते मैं मानती हूँ पुस्तकों की गुणवत्ता , साहित्य में उनका समग्र योगदान ,लेखक का साहित्य और साहित्यकारों के प्रति नजरिया,उनकी आयु और उनके व्यक्तित्व को ध्यान में रखते हुए दिए जाने वाले पुरस्कारों का निर्णय लिया जाये। एक बार पुरस्कार देते समय ये ध्यान में रखा गया था की उस लेखक की बेटी की शादी होने वाली है उसे पुरस्कार दिया जाए, सहायता हो जाएगी। मैं असहमत होते हुए भी विरोध नहीं कर सकी थी क्योंकि इस इरादे में भलाई थी लेकिन पुरस्कारों का निर्णय ऐसा नहीं होने चाहिए। सम्मान और पुरस्कार साहित्य के उत्थान के लिए अनिवार्य नहीं है । साहित्यकार कभी भी पुरस्कारों के लिए या सम्मान प्राप्त करने के लिए नहीं लिखता दूसरी ओर यह भी सत्य है कि जब उसके लेखन को, उसके कार्य को पुरस्कार और सम्मान के माध्यम से सराहा जाता है तो वह साहित्य साधना के प्रति अधिक समर्पित होकर काम करने के लिए प्रेरित होता है।
प्रश्न न. 10 - क्या आप अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण का उल्लेख करेगें ?
उत्तर - जीवन में बहुत सारी घटनाओं ने मुझे प्रोत्साहित और प्रेरित किया है। सबसे पहले जब मैं देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को अपनी पहली पुस्तक , अपना कहानी संग्रह "आज का ज़हर ' भेंट करने या उसके लोकार्पण के लिए गई थी वह दिन मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। उन पलों को मैं आज भी याद करती हूँ तो मैं कई अंधकूपों में से स्वयं को निकाल पाने में सफल हो जाती हूँ। .12 जुलाई, 1984 के दिन के वे 20 मिनट जिसमें मेरे साथ मेरे परिवार और मित्र गए थे। वह चित्र आज भी मुझे प्रिय है. दूसरा जब 1987 हिंदी अकादमी, दिल्ली का सन्देश मुझे मिला कि मुझे साहित्यिक कृति सम्मान मिलेगा। वह मेरे जीवन का पहला महत्वपूर्ण सम्मान भी था मेरे लेखन को निरंतरता देने में स्थायी सत्य प्रदान कर गया। इस बीच देश के सभी महामहिम राष्ट्रपति , आदरणीय ज्ञानी ज़ैल सिंह जी, डॉ. शंकर दयाल शर्मा जी, आदरणीय आर के नारायण जी से कई बार राष्ट्रपति भवन में मिलने के अवसर मिलना मेरे जीवन के अमूल्य धरोहर हैं, जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकती। 24 , फरवरी,2022 को हरियाणा साहित्य अकादमी,पंचकूला की ओर से मुझे हरियाणा गौरव सम्मान मिलना मुझे और लेखन को प्रेरित और प्रोत्साहित करने में सहायक बने हैं।
प्रश्न न. 11 - आपके लेखन में , आपके परिवार की क्या भूमिका है ?
उत्तर - मेरे पिता में पढ़ने की क्षमता बहुत अधिक थी। हमारे घर में उस समय जो अखबार आता था पिताजी उसे पूरा पढ़ते और उसमें से महत्वपूर्ण विषय हमें पढ़कर सुनाया करते । पिताजी को इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियां थी जिन्हें समय-समय पर वे हमें सुनाया करते थे। मेरी नानी जी धार्मिक पुस्तकों रामायण, प्रेम सागर, गीता आदि का पठन-पाठन नियमित करती थी। कई महत्वपूर्ण पुस्तकें, धार्मिक ग्रंथ हमने बचपन में ही पढ़ लिए थे। इस प्रकार परिवार में पढ़ने की ओर अग्रसर होने और पढ़ने के गुणों के बारे में मुझे संकेत मिल चुके थे। बचपन की परिस्थितियां और फिर पिता और नानी जी से मिले संस्कारों ने मेरे भीतर एक प्रकाश पुंज स्थापित कर दिया था जिसका आभास मुझे आज तक उत्साहित करता है।
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