डॉ. शंकर पुणतांबेकर की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा डॉ. शंकर पुणतांबेकर  की स्मृति में " लघुकथा उत्सव " का आयोजन फेसबुक पर रखा गया है । अभी तक जगदीश कश्यप , उर्मिला कौल , पारस दासोत , डॉ. सुरेन्द्र मंथन , सुगनचंद मुक्तेश , रावी , कालीचरण प्रेमी , विष्णु प्रभाकर , हरिशंकर परसाई , रामधारी सिंह दिनकर , आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री , युगल जी , विक्रम सोनी , डॉ. सतीश दुबे , पृथ्वीराज अरोड़ा , योगेन्द्र मौदगिल , सुरेश शर्मा , लोकनायक जयप्रकाश नारायण , डॉ स्वर्ण किरण , मधुदीप गुप्ता,  सुदर्शन ' प. बद्रीनाथ भट्ट ' , डॉ. सतीशराज पुष्करणा आदि की स्मृति पर ऑनलाइन " लघुकथा उत्सव " का आयोजन कर चुके हैं ।

               डॉ. शंकर पुणतांबेकर



डॉ. शंकर पुणतांबेकर का जन्म 26 मई 1925 को कुम्भराज , गुना , मध्यप्रदेश में हुआ है । इन की शिक्षा एम.ए. हिन्दी , पीएचडी है । ये मूलतः व्यंग्यकार है । लेकिन लघुकथा साहित्य के विकास में अदभुद योगदान है ।कुछ श्रेष्ठ लघुकथाओं की रचना भी है । श्रेष्ठ लघुकथाएं (1977 ) का सम्पादन भी किया है । विभिन्न विधाओं में तीस से अधिक पुस्तकें हैं । अतः समकालीन लघुकथा साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । इन का देहावसान 31 जनवरी 2016 को जलगांव , महाराष्ट्र में हुआ है ।

        कुछ लघुकथा के साथ डिजिटल सम्मान


                         शुभ -लग्न


    
“मैडम,मंडप कैसा रहेगा ?”
“किस रंग से सजेगा ,ताजे फूलों से या बनावटी?”डेकोरेटर लता से पूछ रहा था।
लता की भी हिदायत थी कि साज सज्जा सब पूछ कर ही  की जाए।
“हल्दी का मंडप को आप पीले कपड़े और पीले ,सुनहरे बनावटी फूलों से सजा दिजीए।”
“एक सेल्फ़ी प्वाइंट ज़रूर बनाइएगा।”
डेकोरेटर को समझा कर लता बिजली वाले को बताने चली गई।रंगीन बिजली की झालरें कैसे और किस रंग की लगेगी।
इकलौते पुत्र की शादी थी,शौक़ीन लता कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।
पंकज लता का पति ,सब लता पर छोड़ कर निश्चिंत  था।वैसे भी ये सब उसके बस की बात नहीं थी।मजाक में कहता , “मैं बस तुम्हारा कैशियर और ड्राइवर हूँ।जहाँ आदेश होगा सारथी तैयार है।””बस ध्यान रखना कोई कमी न रह जाए।”
तीन दिन का कार्यक्रम रखा था सगाई,हल्दी फिर शादी।दो दिन के सारे कार्यक्रम बहुत सुनियोजित ढंग से हर्षोल्लास से बीत गए।सभी संगीत में ख़ूब जम कर नाचे।लता और पंकज भी बेटे शुभम की संगीत में कोरियोग्राफ़र के इशारे पर जमकर नाचे और पैसे खर्च किए।शुभम भी मनचाही संगिनी पाकर बेहद खुश नज़र आ रहा था।
लता ने गौर किया रमा भाभी अलग थलग सी उदास सी एक जगह बैठी रहती हैं।हो भी क्यों ना भैया को गुज़रे नौ महीने ही  हुए थे।किसी को अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था कि भैया अब हम सब के बीच नहीं हैं ।एक मिनट में सब ख़त्म हार्ट अटैक आया और अस्पताल पहुँचते -पहुँचते सब ख़त्म।
रमा,शादी में भी नहीं आ रही थी।लता ने शुभम को एक दिन के लिए मेरठ भेजकर बुलाया था।सभी विशेष ध्यान रख रहे थे रमा का।
सुबह से रस्में चल रही थी।हल्दी लगाने के लिए पाँच सुहागिनों को खोजा जा रहा था।सब नहाने धोने ,तो कोई पार्लर ,तो कोई शॉपिंग करने में व्यस्त थी।लता ने रमा का हाँथ पकड़कर लगभग खींचते हुए मंडप में ले आई और शुभम को हल्दी लगाने को कहा तो,रमा बोली “नहीं लता जी मैं नहीं लगा सकती ,”मैं एक विधवा हूँ।शादी के शुभ कार्य मैं नहीं करूँगी।”कुछ औरतों ने भी हामी भरी ;लेकिन लता अड़ गई,बोली,”भाभी,हल्दी तो आपको लगानी ही होगी।मैं इन दक़ियानूसी बातों को नहीं मानती।”
काफ़ी ज़िद करने पर आख़िर रमा ने शुभम को हल्दी लगाया।औरतों की कानाफूसी को लता ने नज़रअंदाज़ कर आवाज़ लगाई” लता भाभी ज़रा कलश में पानी भर कर दरवाज़े पर रख दीजिएगा।”
सात साल बाद आज शुभम के शानदार घर के गृह प्रवेश में शामिल होने रमा बैंगलोर के फ़्लाइट में बैठ चुकी थी।

- सविता गुप्ता
   राँची - झारखंड
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                       मिथ्यात्व



"क्या सुधीर तुम खुद अपनी शादी कब करोगे?" छठवीं बहन की शादी का निमंत्रण कार्ड देने आए सुधीर से संजय ने सवाल किया...।
      आठ साल पहले संजय और सुधीर एक साथ नौकरी जॉइन किया था... लगभग हम उम्र थे... संजय की शादी का दस साल गुजर चुका था तथा उसका बेटा पाँच साल का था...
   "बस इनके बाद एक और दीदी की शादी बाकी है... उनकी शादी के बाद खुद की ही शादी होनी है मित्र...। मेरी जो पत्नी आये वो मेरे घर में कोई सवाल ना करे... शांति से जीवन गुजरे।"
        "बेटे के चाह में सात बेटियों का जन्म देना.. कहाँ की बुद्धिमानी थी, आपके माता-पिता की?" संजय की पत्नी ने सवाल किया।
      "हमें सवाल करने का हक़ नहीं है नीता... वो समय ऐसा था कि सबकी सोच थी, जिनके बेटे होंगे उनका वंश चलेगा, तर्पण बेटा ही करेगा...,"
    "सुधीर जी तर्पण ही तो कर रहे हैं... आठ बच्चों को जन्म देकर परलोक सिधार गए खुद... सात बेटियों का बोझ लटका गए सबसे छोटे बेटे पर... कुछ धन भी तो नहीं छोड़े... उनकी नाक ऊँची रह गई... ऐसा सपूत पाकर...।"

- विभा रानी श्रीवास्तव
    पटना - बिहार
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                           शर्त

                                   
                                 
हिम्मत सिंह के छोटे बेटे गगन की शादी आज तय हो गई। हिम्मत सिंह की नज़र में लड़की पक्ष हर तरह से काबिल था। उनके हर फैसले में उनके अभिन्न मित्र द्वारिका बाबू की भी सहमति होती थी। न जाने क्यों इस महत्वपूर्ण फैसले में, द्वारिका बाबू की सहमति लेना उन्होंने उचित नहीं समझा।
         " बेटा गगन "...द्वारिका बाबू ने आवाज लगाई। "जी, चाचाजी प्रणाम"... "खुश रहो...बहुत - बहुत बधाई"। गगन थोड़ा सकपकाते हुए..." जी...जी चाचाजी, लेकिन किस बात की बधाई...चाचाजी"?..."तुम्हारी शादी तय होने की"..." मुझे मेरे यार ने नहीं बताया तो क्या हुआ, क्या मुझे पता नहीं चलेगा"?।
         " वैसे गगन तुम्हारी पढ़ाई तो पूरी हो गई है, लेकिन अभी क्या कर रहे हो"?
         " जी चाचा जी, करना तो बहुत कुछ चाहता था...लेकिन..."लेकिन क्या"?
         "मैं भी आर्मी ज्वाइन करना चाहता था...देश की सेवा करना चाहता था, समाज व देश के लिए मैं भी अपना योगदान देना चाहता था"
         " वो तो अभी भी कर सकते हो...वह भी अपने घर से शुरुआत करके"
         "मैं समझा नहीं चाचाजी"
         "तुम्हारे पिता जी ने तुम्हारे ससुर जी के सामने तुम्हारी शादी की जो शर्त रखी है,उसके विरुद्ध आवाज़ उठाकर"
         "इससे समाज में एक स्वस्थ संदेश तो जायेगा"..."तुमने दुष्यंत जी की ग़ज़ल की वो पंक्ति तो ज़रूर पढ़ा और सुना होगा..."कौन कहता है आसमां में..."
         "अरे!...गगन बेटा...इतना जल्दी कहां चल दिए"?
         "आपने ही तो अभी बताया...वही...तबियत से पत्थर उछालने"

                          - सुधाकर मिश्र "सरस"
                           इंदौर(महू) - मध्यप्रदेश
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                       आशीर्वाद



“अरे वाह मीनू, तुम्हारे तो ऑफिस के सारे के सारे लोग पहुंचे हुए हैं, रौनक लगवा दी तुमने तो,” अनिल ने कहा।
“बुलाने का तरीका होता है, ऐसे थोड़े ही कोई आता है,” मीनू ने मुस्कुराते हुए कहा।
“वह कैसे?” अनिल ने उत्सुकता से पूछा।
मीनू ने बताया, “मैं अपने ऑफिस में कार्ड के साथ सभी को मिठाई का डिब्बा दे रही थी। मैंने अपने सभी साथियों से कहा था, ‘मेरी बेटी की शादी में उसे आशीर्वाद देने अवश्य ही आइयेगा।’
इस पर सुशील बोला, ‘शायद मैं न आ पाऊँ, पर मैं प्रताप के हाथों शगुन का लिफाफा अवश्य ही भेज दूंगा।‘
इस पर मैंने कहा, ‘यदि आप नहीं आ सकते तो न आएं, किन्तु शगुन का लिफाफा भी मत भेजिएगा। मैं यह कार्ड और मिठाई शगुन के लिफाफे के लिए नहीं दे रही हूँ। ये मेरी अपनी ख़ुशी है जो मैं आप सब से साझा कर रही हूँ, और इसलिए दे रही हूँ कि यदि आप आएंगे तो मेरी बेटी की शादी में रौनक बढ़ेगी और उसे आप सबका आशीर्वाद भी मिलेगा। इसलिए मेरा निवेदन है कि आप सभी लोग शादी में अवश्य आएं। और हां, शगुन का लिफाफा मैं सिर्फ उसी से लूंगी जो मेरी बेटी को शादी में उसे आशीर्वाद देने पहुंचेगा, अन्यथा नहीं।‘   
“तभी आज शादी में ऑफिस के सभी लोग बेटी को आशीर्वाद देने आए हुए हैं।” अनिल मुस्कुरा दिया।

 - विजय कुमार,
अम्बाला छावनी - हरियाणा
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                       प्रतिरूप



भरी आँखों से वह दरवाजे पर लगे वन्दरवार को, दीवारों पर लगे कोलॉज को, शो केसों में सजे टेराकोटाज को देखती जा रही थी। कितने प्यार से, शौक से सजाया था उसने घर को। साथ ही बड़बड़ाती हुई सूटकेस में सामान भी डालती जा रही थी। वह समर्थ थी अपना जीवन यापन करने के लिए। उसने कपड़ों के साथ अपनी डायरी, पासबुक, सर्टिफिकेट्स, एवार्ड, सब डाल लिए थे। शादी से पहले के विकास के लिखे प्रेम पत्रों का बन्डल उठाते हुए उसके हाथ एकबार झिझके पर फिर उसने उन्हें भी सूटकेस में रख लिए।
शादी के बाद से ही अबतक दस वर्ष वह विकास की हर ज्यादती सहती आई थी। पर अब उसका दिमाग इसे और सहने की इजाजत नहीं दे रहा था। उसने अलग घर जा कर अपनी जिन्दगी फिर शुरू करने का निश्चय कर लिया था।
"अम्मा.. भूख लगी है.." तभी उसकी बिटिया ने आकर गले में बांहें डालते हुए कहा।
"आप कहीं जा रही हो अम्मा..?"
"हाँ मैं अब यहाँ से दूर अलग रहने जा रही हूँ।" उसने अपने क्रोध को शान्त करते हुए शान्त स्वर में कहा।
"फिर मुझे और पापा को खाना कौन देगा?"
वह चुपचाप उठ कर बेटी के लिए खाना डाल रही थी।
"पापा को तो झगड़ा करने के बाद बहुत जोर से भूख लग जाती है।" उसकी छोटीसी बेटी ने कहा।
उसने एक नजर सूटकेस पर डाली फिर प्लेट उठा कर आदतन कमरे में रखी हुई अपनी सास की कुर्सी पर बैठ कर बेटी को खाना खिलाने लगी।

- कनक हरलालका
    धूमरी - असम 
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                          किश्त



"लता!", पिताजी को मैं ले आया हूं,उन्हें नाश्ता पानी करवाकर वो बात कर लेना..!"
मै अब आफिस जा रहा हूं ,शाम को देर से लौटूंगा..!
"मुझे बता देना ,बातचीत का क्या नतीजा रहा..!"
"पापा!", अपना ध्यान नही रखते देखिए तो कपड़ो मे वो चमक भी नही है..!
आपके कपड़े भी अब खास से आम हो गये..!
अरे नही नही बेटा!,क्या बात है बता ?
"तुम्हे कुछ चाहिए होता है तभी इतनी बारीक़ी से मेरे कपड़ो के लिए कहती है..!"
"नही नही पापा!,कुछ भी तो नही चाहिए  ,सब कुछ तो दे दिया आपने शादी में..!"
"सच कह रही हो न,सब ठीक है न बेटा?"
"हां हां पापा!,आप आराम करें सफर में थक गये होंगे..!"
लता अपने पति के काॅल से परेशान हो रही थी,क्योंकि वह पिता के थके चेहरे को देख कुछ कह नही पाई..!
शाम में ...
लता!,हां, पिताजी से बात हुई..?
"कुछ पुछ रहा हूं बोलती क्यों नही...?
जी नही,पिताजी खुद ही परेशान है उन्हे कैसे बतांऊ..!
"तुमसे एक काम नही हो पाया ,मै ही बात कर लेता हूं..!"
लता ने पैर पकड़ लिए ,भगवान के लिए ऐसा मत किजिए.!
"छोड़ो!",झल्लाते हुए रमेश ने लता को एक तरफ कर दिया.
"दो साल की ही तो बात थी एफडी पर मिलने वाले ब्याज को हमे दे सकते है..!"
"अब उन्हे क्या करना है पेंशन की रकम काफी नही है..?"
"इतना कुछ तो पापा ने दिया है ,ब्याज वाली रकम से अपनी लोन की किश्त चूका रहे है हमे कैसे दे सकते है..!"
"हमारी किश्त का क्या..?"
"आपकी किश्त??"
"मै जो फ्लैट ले रहा हूं क्या तूम उसमें नही रहोगी...?"
क्या!"??? ??
"सही सुन रही हो मैडम!" आपको अपने लिए तो किश्त चूकानी पड़ेगी..!
दूसरे कमरे में आराम हराम हो गई थी..!


 - सपना चन्द्रा
    भागलपुर - बिहार
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                        लिफाफे



               
       पड़ोस की महिलाओं का सजा-धजा समूह बड़े ठसके और नजाकत से चलते हुए सजे विवाह समारोह स्थल में भिन्न-भिन्न मुद्राएँ बना मोबाइल से चित्र लेने में तल्लीन हो गया।
           शोभना की पक्की सखी के बेटे का विवाह था। कई बार उसने पति को साथ लेकर आने को कहा था। तो उसने सोचा पंद्रह मिनट में वह सखी को बधाई देकर और शगुन लिखवा कर लौट आएँगे। लगभग दो साल के कड़े संघर्ष के बाद आज पहली बार वह पति के साथ किसी विवाह समारोह में गई थी।
           जैसे ही पहुँची पड़ोस की महिलाओं ने जैसे लाम बंद ही कर लिया। 
           बड़ा अच्छा लगा आज भाई साहब और आपको देख कर। बस सब ईश्वर की कृपा है।
          तभी एक आवाज आई पहले खाना निबटा लेते हैं फिर शगुन लिखवा लेंगे।
         दूसरी आवाज आई नहीं पहले खाना ठीक नहीं लगेगा शगुन ही लिखवा लिया जाए।
         शोभना भी अपने पर्स से पैसे निकाल कर पति को एक कुर्सी पर बैठा कर उनके साथ चली।
         तभी एक मोटी सी थुलथुली महिला बोली अरी शोभना! इतना शगुन लिखवा रही है तो शगुन के लिफाफे में ही डाल कर ले आती। ऐसी भी क्या कंजूसी?
           सोचा सखी सबसे मिलने में व्यस्त रहेगी 
तो हाथ में शगुन दे पाना कठिन होगा और लिखवाने में लिफाफे का कोई काम मुझे नहीं लगा।
              सारी महिलाओं के दिए लिफाफे पैसे निकालने के लिए बेदर्दी से फटे हुए मायूस से मानो शोभना को कह रहे थे तुम ही सही हो।

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
 देहरादून - उत्तराखंड
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                        बहू बेटी

 
                          
                          
      बड़ी धूमधाम से भाइयों ने उपमा की शादी करके उसको विदा किया। गाड़ी में बैठी गुमसुम उपमा अपने ख्यालों में खोई हुई थी। अचानक एक कर्कश ध्वनि से उसका ध्यान भंग हुआ। वह डर कर सिमट गई।
"मैं तुमसे ही पूछ रहा हूं, बहू", चाय पियोगी?"
धीरे से सिर हिलाकर उपमा ने मना कर दिया और सोचने लगी, जब आवाज इतनी तेज है,तो स्वभाव कैसा होगा? डर का भाव उसके मन में जमने लगा।
कई घंटे यात्रा के उपरांत जैसे तैसे उपमा की गाड़ी घर पहुंची। एक महिला आगे बढ़ी और उसे गाड़ी से उतारकर गड़ुवा उतारा। उसका लंबा घूंघट देखकर वह बोली,"बेटी, घूंघट ऊंचा कर लो, तुम्हारी आरती उतार दूं।"
पास खड़ी एक वृद्ध रिश्तेदार महिला दूसरे से बोली, "देखो तो यह बहू को बेटी बना रही है। बहू बेटी में क्या अंतर नहीं होता?"
अनसुनी करके उपमा की आरती उतारकर वह महिला चुपचाप उसे लेकर अंदर चली गई। उपमा के अंदर का भय खत्म हो चुका था और उसे रोशनी निकलती दिख रही थी।

- गायत्री ठाकुर सक्षम 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश 
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                           दहेज

 


  दीक्षा और कपिल ने एम. डी करते ही शादी करने का फैसला लिया | वैसे पिछले चार साल से वो एक दूसरे को जानते थे | दोनों अलग जाति के थे दोनों के मां बाप काफी अमीर | दोनों परिवारों ने फैसला किया कि शादी का समारोह भव्य होना चाहिए | डेस्टिनेशन वेडिंग को चुना गया 30 लाख में सारे समारोह की जिम्मेदारी लड़की वालों ने  एक वेडिंग प्लानर को दे दी | एंडवास पेमेंट 15 लाख भी उसे दे दिए | तय दिन से तीन दिन तक बड़ी धूमधाम से सारे प्रोग्राम संपन्न हो गये | विदाई भी हो गई | होटल छोड़ते समय बाकी की पेमेंट की बात आने पर लड़के वाले बोले कि ये रकम दहेज के रूपयों से काट लेना | 
बेचारे लड़की वाले कभी नव ब्याही बेटी को देखें कभी सब रिश्तेदारों को | पैसे देखें या इज्जत | 

             - नीलम नारंग 
             मोहाली - पंजाब
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                  आरती का थाल 




"लो  कविता तुम आरती उतारो '!
आरती का थाल रेणु से ले भाभी ने कविता को थमा दिया ।
रेणु रूआसी सी हो अपने मनोभाव  को चुपचाप  छिपा गयी।
शादी मे सब रस्मे निभायी जा रही थी । रेणु भी बहुत उमंग के साथ आगे बढ सब नेकचार करने को उतावली हो जैसे ही आगे आती 
भाभी  किसी ना किसी अंदाज़ मे 
उसे पीछे कर उसे अनदेखा कर अपने मयके वालो से सब रस्मे करा  रही थी ।
आरती का थाल  यूहं अपने हाथ  से लेते देख एकबारगी को तो उसे लगा था वह रो ही पड़ेगी ।
उस को रह रह कर याद आ रहा था ।जब भतीजे की शादी के रिश्ते का पता चला था ।
उस ने कितनी चाव  से शादी मे आने की तैयारी की थी ।
नये कपड़े ,गहनें सब नये लिये थे ।
शादी के सप्ताह पहले ही आने के लिए रमेश से जिद्द भी की थी ।
रमेश ने उसे समझाया था कि इतनी जल्दी जा कर क्या करोगी पर वह नही मानी थी उसने कहा था अगर मै ही अपने घर की शादी मे नही जाऊगी तो कौन जायेगा।पता है जब भाई की शादी हुई थी ।बुआ महीना भर पहले आ गयी थी,सब रस्मे भी तो मुझे ही करानी होगी ।मै बुआ जो ठहरी । और रमेश से यह कह कि तुम दो दिन पहले आ जाना  ।मयके चली आयी थी ।जब से आयी भाभी की हर बात मे उस की अनदेखी से वह बहुत दुखी थी ।
तभी उसके कन्धे पर हाथ रख किसी ने कहा रेणु क्या सोचने लगी ।
उसने पलट कर देखा रमेश उस का हाथ हिला रहे थे ।
रेणु की आखें गीली देख सब समझ गये ।
 "रेणु तुम को कहा था ना ज्यादा उपेक्षा रखना ठीक नही "।
"हां सही कहा था अपने ....!
 "भगवान शिव ने मना किया फिर भी मां पार्वती  ने नही माना औरअपमानित हुई ।फिर मैं तो इन्सान हूँ ।" यह कह रेणु  नेकचार पर ध्यान न देते हुए ,रमेश के साथ बैठ कर बातें करनें लगी ।

- बबिता कंसल 
    दिल्ली
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                        अधिकार




अरे सुनती हो ,आज भी रात के 12:00 बज रहे हैं ,अपना मदन कई दिन से घर पर ऑफिस के बाद नहीं लौटता।
 इसी के ऑफिस के बेनी प्रसाद आज बाजार में मिल गए थे। कह रहे थे ,अब तो हमारी बॉस लेडी आ गई है। जितना भी पेंडिंग काम था पूरा करवाने के चक्कर में खुद भी ऑफिस में बैठे-बैठे यूनिट के कुछ लोगों को ओवरटाइम देकर काम पूरा कराती रहती है।
   मैंने उनसे कहा--' कोई जबरदस्ती तो है नहीं, अभी तो हमारा लड़का कुंवारा है, चलो हम माता-पिता हैं। सह लेते हैं पर शादी के बाद बहू आएगी। कोई भी पत्नी यह स्वीकार नहीं करेगी। उसे अपने पति के साथ लाइफ इंजॉय करने का पूरा हक है। जब समय नहीं होगा तो रात-दिन तकरार रहेगी।
 
- डाॅ.रेखा सक्सेना 
    मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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                         अमानत




नंदन  नीली आँखों के जाल में उलझा हुआ था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि सराह उसे  छोड़ कर अपने देश चली गई थी। हालांकि उसके कान अभी तक झनझना रहे थे, "तुम क्या समझे कि मैं यहाँ अपनी जिंदगी गुजा़रने आई थी।"
'तो क्या वह केवल 'भारत-दर्शन' के लिए आई थी, उससे प्यार का नाटक करती रही।बलि का बकरा बना वह जो घरवालों की मर्जी़ के खिलाफ़ जाकर उससे शादी कर ली।'
नंदन सोच ही रहा था कि सराह का वाट्स एप पर संदेश आया।
'बहुत मज़ा आया नंदन, तुम्हारे देश में घूमने के साथ शादी-शादी खेल खेलने का। तुम्हारी अमानत साथ ले जा रही हूँ, अगर नहीं चाहते अनाथों के साथ  पले तो मुझसे आ कर ले जाना।'
नंदन मानो आसमान से खाई में जा गिरा। 'सराह के लिये यह शादी केवल एक खेल थी?' सोशल मीडिया पर हुई दोस्ती का दंश उसकी नसों को ज़हरीला कर गयाI
'नहीं, अपने बच्चे को अनाथों के साथ नहीं पलने दूंगा।' सोच कर नंदन ने सराह को संदेश भेजा, 'आऊँगा, जरूर आऊँगा। मेरी अमानत में ख़यानत न करना। लौटा देना।'

- शील निगम
   मुम्बई - महाराष्ट्र
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                        समाज



"हां जी, तो फिर प्रकार मान लें हम यह रिश्ता।
लेकिन,एक शंका है आपको बुरा न लगे तो कह दूं।"
"हां जी,कहिए,जरुर कहिए।मन में कुछ मत रखिएगा।"
"इतना होनहार, काबिल आफिसर बेटा,और आप दहेज में कुछ नहीं मांग रहे,शक होता है मन में कहीं कुछ......।"
"बस,यही शक तो मुख्य कारण बन गया है,दहेज प्रथा के जारी रखने का। आप जैसे लोग ही जब समाज में ऐसी मानसिकता रखेंगे तो फिर बिना दहेज मांगे शादियां कैसी होगीं?"
"कह तो सही रहे हैं आप, लेकिन बिना दहेज
बिटिया विदा करुंगा तो समाज क्या कहेगा?"
"ठीक है भाई साहब,आप जैसा ठीक समझें, कीजिएगा।"

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
    धामपुर - उत्तर प्रदेश
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                          अपात्र



"बेटा!तुम्हारे पिताजी नहीं मानेंगे। समझने की कोशिश करो।"माँ ने कहा।
 "क्या कमी है दीपक में? पढ़ा- लिखा है।आज उसकी नौकरी अस्थाई है ,कुछ ही दिनों के बाद स्थाई भी हो जायेगी।" बेटी ने अपनी बात रखी।
"बेटा!अपने हित कुटुंब के सामने तुम्हारे पिताजी की औकात पर आँच आयेगी। तुम तो जानती ही हो उन्हें लोकलाज की बड़ी चिंता है। दीपक की हैसियत हमारे काबिल नहीं है।"
"" हैसियत बड़ी चीज नहीं है मांँ?"
 "देखो, अमित के पिताजी का समाज में रुतबा है। उनके दादाजी को पेंशन में ही पचास हजार रूपये महीने मिलते हैं।"
"और अमित क्या करता है? ग्रेजुएट भी नहीं है। उससे शादी कर लूँ ? माँ, मैं किसी अपात्र से शादी नहीं कर सकती...।
सीमा की आँखों में विद्रोह झलक रहा था।

- निर्मल कुमार डे
जमशेदपुर - झारखंड
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                 दिखावे की शादी




      बैंक्वेट हॉल फूलों और रंगीन रोशनियों से जगमगा रहा था। दूल्हा-दुल्हन स्टेज पर बैठे रंगीन सपने में खोये थे। 
    अधिकांश मेहमान तरह-तरह के व्यंजनों का लुफ्त उठाने में मस्त थे। इधर दीपक बाबू के चेहरे पर खुशी के बजाय चिंता झलक रही थी। बिटिया अच्छे घराने में जा रही थी कोई डिमांड नहीं था लड़के वालों की तरफ से फिर भी वह उदास दिख रहे थे।
     दीपक जी की पत्नी की मनोकामना पूर्ण हो रही थी पर उनके हाथ तंग हो रहे थे। बैंक्वेट हॉल का खर्च, दिखावे में भारी महंगे सामान गिफ्ट के रूप में भेंट, ब्रांडेड कपड़ों की खरीदारी, महंगे- महंगे जेवर की खरीदारी आदि ने उनकी कमर तोड़ दी थी।
      नगद दहेज से भारी पड़ रहा था दिखावा में किया गया खर्च।
       पर क्या करें? पत्नी का उलाहना--- अरे मुंह खोलकर कुछ नहीं मांगा है हमें इतना तो करना ही करना चाहिए और वही *इतना* पूर्ण करते-करते हताश दिखने लगे थे दीपक बाबू ! 
       दर्द बाटे भी तो किससे!

- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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                    शादी का बंधन



                      
     रमेश की शादी को पाँच वर्ष हो गये थे। वह अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों सहित देहरादून में निवास करता है। एक बार किसी वजह से उसका अपनी पत्नी अनुराधा के साथ विवाद हो गया जो रात आते-आते सीमा लांघ गया और उसकी पत्नी अपने बच्चों सहित पुलिस स्टेशन जाने लगी। रात के लगभग ग्यारह बजे अनुराधा सुनसान सड़क पर अकेली जा रही थी, तभी एक बुजुर्ग पुरुष ने बच्चों सहित अकेली महिला को देखकर अपने अनुभव से जान लिया कि दाल में कुछ काला है। उनके पूछने पर उसने सारी बातें बताईं और पुलिस के पास जाने की बात भी कही।
     तब उन सज्जन पुरुष ने उससे कहा "बेटी बात इतनी सी है कि तुम पति-पत्नी ने अपरिपक्वता दिखाई है। तुम दोनों के बीच जो शादी का पवित्र बंधन है वही तुम्हारे मध्य उत्पन्न विवाद का हल करेगा। पुलिस या किसी और के पास नहीं और निश्चित रूप से एक-दो दिन में स्थिति सामान्य हो जाएगी परन्तु तुम्हारी गृहस्थी में पुलिस के प्रवेश होने से पति-पत्नी के बीच में अविश्वास की एक दीवार खड़ी हो  जाएगी और इस पवित्र बंधन में एक गांठ सदा-सदा के लिए पड़ जायेगी। इस प्रकार उन्होंने उसे समझाकर घर वापस भेजा। उनके अनुभव के अनुसार एक-दो दिन में रमेश और अनुराधा का गुस्सा ठंडा हो गया और दोनों ही अपनी-अपनी गलती स्वीकारने लगे। तब उसने सब बातें अपने पति को बतायीं।
     आज भी रमेश और अनुराधा उन बुजुर्ग महानुभाव को मन ही मन नमन करते है, जिन्होंने उनकी शादी के बंधन की मजबूती को बनाए रखने में मदद की।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखंड
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                          शादी



  
गुप्ताजी के इकलौते लड़के की शादी धूमधाम से हो गई और उनकी पुत्रवधु के आगमन के पश्चात, उनकी संबंधी स्त्रियां और पास पडौस की स्त्रियां, नववधु को देखने आईं। गुप्ताजी के पास चौहान साहब का मकान था। नववधु को देखने आई चौहान साहब की पत्नि ने गुप्ताजी की पत्नि से एकांत में पूछा कि बहू देखने में तो बहुत सुंदर है, मगर यह दहेज़ में क्या लाई है?  यह सुनकर गुप्ताजी की पत्नि हंसी और हंसते हंसते चौहान साहब की पत्नि को पास के ही कमरे में ले गईं जहां कुछ प्रमाण पत्र और भांति भांति की पुस्तकें रखी हुई थीं। चौहान साहब की पत्नि को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने एक सवालिया दृष्टि से गुप्ताजी की पत्नि को देखा।  इसपर गुप्ताजी की पत्नि ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा कि बहिन हमारी बहु के पिता एक प्रसिद्ध लेखक हैं। उन्होंने अपनी लड़की को अपनी क्षमता के हिसाब से खूब पढ़ाया और उसने उच्च शिक्षा प्राप्त कर सरकारी नौकरी भी हासिल की । शादी के वक्त लेखक पिता ने अपने मित्र - रिश्तेदारों से यही गुज़ारिश की कि वे उनकी लड़की को भेंट में श्रेष्ठ पुस्तकें दें। तो बहिन, ये शिक्षण की डिग्रियां, प्रमाणपत्र और भेंट में प्राप्त ये श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकें ही हमारी बहु दहेज में लाई है और हम इस दहेज़ को प्राप्त कर अत्यंत प्रसन्न हैं।  यह सुनकर चौहान साहब की पत्नि उनको देखती ही रह गई।

- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
      गोधरा - गुजरात
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                         एहसास 




"सुधीर ओ सुधीर! --देख बहुत सुघड़ , सुशील लड़की  का रिश्ता आया है।"
"अरे! नहीं माँ मैं शादी कर किसी के साथ कोई नाइंसाफी नहीं करना चाहता।"
"बेटा- लड़की गरीब परिवार से है उसका उद्धार कर दे।" 
"माँ -मैं रीमा के प्यार को आज तक नहीं भूल पाया।"
"तो क्या- उसने तो पिछले साल हीं शादी कर ली, फिर तू किसकी राह तक रहा है अब तक ?"
" मेरे बाद तेरा ख्याल कौन ? ये सोचा कभी "
"बस माँ! अब ऐसे अपशब्द ना बोला कर।"
गम को छिपाए सुधीर ने -अंततः माँ की बात मान ही ली।
अब घर में माँ के साथ रूपा की भी चहल-पहल रहने लगी। 
लेकिन सुधीर रूपा से काम भर हीं बात , वो भी बहुत जरूरी हुई तभी करता।
दूरिया पति- पत्नी के बीच आज शादी के एक महीने बाद भी जारी था। 
रूपा निःस्वार्थ भाव से माँ और बेटे का पूरा ख्याल रखती।
आज जल्द हीं आफ़िस से लौटा सुधीर दबे पाँव कमरे में दाखिल हुआ। 
रूपा फोन से अपनी माँ से सुधीर के बारे में बढ़- चढ़कर  सुधीर की तस्वीर  लिए बातें बनाए जा रही थी।
पत्नी की निश्छल बातें सुनकर सुधीर खुद शर्मसार हो उठा।
ओह! वह  हाथ में आए हीरे को त्याग कर अब तक रीमा को हीं,,,
"अरे रूपा! मैं आज जल्दी घर आया तुमसे बातें करने और तुम हो कि-- फोन और मेरी तस्वीर में हीं उलझी हुई हो।"
रूपा को अपने कानों पर विश्वास न हो रहा था।
लेकिन सुधीर की  फैली बाहों  के मिले निमंत्रण से -- वो खुद को रोक ना सकी।

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार 
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                      अधूरा दहेज 



राखी वापस मायके आ गई पूरे मोहल्ले में खुसर पुसर हो रही थी ।
" अरे! बताओ.. दीवान साहब ने कितनी अच्छी शादी की थी.. लोग भी भले लग रहे थे.. पता नहीं क्या हुआ," रामेश्वर गुप्ता अपने मित्र शर्मा जी से मुखातिब होते हुए बोले।
"आजकल का रवैया कुछ समझ नहीं आता ..शादी भी लॉटरी जैसी हो गई है..," खींसे निपोरते हुए शर्मा जी बोले ।
"कितना दान दहेज दिया था दीवान साहब ने.. शादी का इंतजाम और लेन-देन..कई दिन तक चर्चा का विषय रहा था,"गुप्ता जी चेहरे पर हाथ फेरते हुए बोले ।
" अरे ! जब संपन्न लोगों के यह हाल हैं तो हम मध्यमवर्गीयों का तो भगवान मालिक..," शर्मा जी ने अपनी बात जोड़ी ।
" हुआ क्या होगा.. यह तो पता चलता.. पर पूछे कौन," यादव जी ने कहा।
अचानक किसी कार्य से दीवान साहब घर के बाहर आए ।
"अरे, आप लोग सब इकट्ठे यहाँ.. क्या हुआ.. कुछ खास बात..," दीवान साहब ने पूछा ।
"नहीं.. नहीं.. कुछ खास नहीं.. बस गुप्ता जी सामने दिख गए तो दुआ सलाम हो गई ,"शर्मा जी झेंपते हुए बोले ।
"दीवान साहब ..बिटिया आयी है.. सब कुशल मंगल.. वह कामवाली कह रही थी.. हमेशा के लिए आ गई," यादव जी धीरे से बोले ।
" हाँ ..सही कह रही है वह... बिटिया अब यहीं रहेगी..," दीवान साहब ने मध्यम स्वर में जवाब दिया ।
" भाई साहब आपने तो बहुत अच्छी शादी की थी.. खूब दिया लिया था ..ससुराल वालों को क्या कमी रह गई," गुप्ता जी बोले ।
"भाई ..सही कह रहे हो.. जो दे सकता था वह सब कुछ दिया ..पर अच्छी किस्मत देना किसी माँ-बाप के हाथ में नहीं होता..," दीवान साहब छलछलाई आँखों को पोछते हुए वहाँ से चले गए ।
- सीमा वर्णिका 
कानपुर - उत्तर प्रदेश
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                      मान-सम्मान




शीला अपनी काम करनेवाली बाई से बोल रही थी-देखो! बेटिया की शादी में तुझे और तेरी जो छोटी बहन हैं,उसे यहाँ रहकर  सरातियों की खाने-पीने की व्यवस्था करनी होगी। मैं तुमदोनों को बदले में साड़ी -कपड़े और पैसे दूंगीं।
बाई बोली-मेम साहब!मैं तो शादी में आपकी मदद जरूर कर दूंगी मुझे रुपये-पैसे भी नहीं देना ,रीतु दीदी तो मेरी भी बहन के समान हैं। लेकिन छोटकी को मैं शादी में नहीं ला सकती।
शीला  गुस्से से बोली-यही तो तुमलोगों की बुरी आदत हैं। जितना भी तुमलोग को दिया जाता हैं, फिर भी समय पर काम  नहीं आती हो। वो कौन सा आफत आ गई । बस एकदिन की तो बात हैं। मैं तुमलोगों का अपनी बेटी से कम ख्याल रखती हूँ।
बाई जो मालकिन की बात सुन रही थी फिर शान्त भाव से बोली -"नहीं मेम साहब ऐसी कोई बात नहीं हैं। आप तो अपनी बेटी समान समझती हैं, लेकिन राजू भैया उसे बहन की निगाहों से...यह कहकर वह गर्दन झुका कर बोली हमारा भी तो  मान-सम्मान  ... हैं। इसलिए वह आना नहीं चाहती हैं।
और शीला अवाक होकर उसे देख रही थी..।।

- संजय श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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                      शादी और मां



अरुणा जी अपने बेटे से कह रही थी , इतना बड़ा हो गया है अपने सारे काम क्यों नहीं करता?
तेरे कपड़े  रखते मैं थक जाती हूं कड़क स्वर में अपने बेटे अरुणेश को डांट रही थी।
अरुणेश ने कहा तुम मेरी अच्छी मां हो चलो कोई बात नहीं एक काम वाली तुम्हारी मदद के लिए रख देता हूं।
अरुणा जी ने कहा मुझे कामवाली नहीं बहू चाहिए,
मेरी एक सहेली विमला है जानते तो हो तुम विमला मौसी को उसकी बेटी बड़ी हो गई और बहुत सुंदर है और मुझे कल ही पता चला कि वह तुम्हारे ऑफिस में ही काम करती है आज मैं तुम्हें टिफिन नहीं दे रही हूं दोपहर का लंच तुम उसी के साथ करना उसका नाम पूजा है    
मेरा ऑफिस बहुत बड़ा है मैं कैसे किसी भी लड़की से जाकर पूछ गा?
अरुणा जी ने कहा- दोपहर में तू अपने ऑफिस के बगल वाले रेस्टोरेंट में चले जाना अरुणेश ने हां कर दिया दोपहर में उसे भूख लगी थी,मां की आज्ञा थी वह रेस्टोरेंट में गया तभी वहां पर एक लड़की ने उसे आवाज देकर बुलाया और  यहां आ जाओ, आपकी मां ने मुझे आपका फोटो भेज दिया था इसलिए मैं पहचान गई ।
खाने में क्या खाओगी?
मुझे तंदूरी रोटी और पनीर कढ़ाई पसंद है वह मैंने आर्डर कर दिया है आप क्या लेंगे ?
कोई नहीं तुमने जो आर्डर किया है उसी को एक प्लेट और बोल देते हैं और बाद में मैं अपने लिए चावल मंगवा लूंगा खाना खाते हुए अरुणेश ने कहा यदि तुम्हारी कोई शर्त हो तो मुझे बता दो?
पूजा ने कहा मुझे तुम पसंद हो और मेरी कोई शर्त नहीं है बस एक बात मैं कहना चाहती हूं कि शादी के बाद  अलग फ्लैट में रहना चाहूंगी और खाना मैं नहीं बनाऊंगी उसके लिए टिफिन लगा लेंगे मुझे घर में पुराना फर्नीचर नहीं चाहिए रोज की झिक झिक होती रहती है मेरे और तुम्हारे दोनों के घरों में पुराना फर्नीचर है अरुणेश को एकाएक ऐसा लगा जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं है  एक ही क्षण में कहा पूजा ऑफिस में मेरी एक जरूरी मीटिंग है ।
अरे! खाना तो खत्म करो और जवाब देते जाओ?
मैं जवाब बाद में तुम्हें देता हूं और वह रास्ते भर यह सोचता रहा पुराना फर्नीचर यह बात उसे सुई की तरह चुभ गई मां इस लड़की के साथ शादी के लिए परेशान हैं.....।        
         
- उमा मिश्रा प्रीति 
जबलपुर -  मध्य प्रदेश 
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                  पुराना कैनवास



भारती अब तो शादी कर ले एक एक कर सभी बहनें विदा हो गई ।  भारती  अपना बैग उठा कर अनमनीसी बोली स्नेहा चल देर हो रही है बस निकल जायेगी । 
भारती सुनो ! तुम मेरी बात को  आज कल अनसुना कर देती हो । 
भारती सुना नहीं क्या ?
 तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।
स्नेहा तुम तो सब कुछ जानती हो फिर भी पूछ रही हो   मेरे लिए अब इस उम्र में शादी करना असंभव है । 
 भाई की शादी करनी है ।
साथ ही माँ की देखभाल का जिम्मा भी है। 
निभाती रहो जिम्मेदारी तुम, मैं कब मना कर रही हूँ ,मैं तो बस याद दिला रही थी ।
 तुम्हारी सब बहने तो जिम्मेदारी से बच कर निकल गई और अपनी अपनी ग्रहस्थी बसा ली तुम्हारे लिए किसी ने नहीं सोचा । 
स्नेहा शायद भगवान की यही मर्जी है ।
भारती तुम्हारी भी तो कुछ मर्जी है जिसे तुम शायद इग्नोर कर रही हो ।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है चाहो तो सब संभव हो जायेगा ।
मेरी बात मानो वरना पछताओगी जीवन संध्या में किसी के पास वक्त नहीं होगा जो तुम्हारा ख्याल रखे ।
पति पत्नी ही एक दूसरे के पूरक होते हैं ।
मेरी मान संजीव जी को हाँ करदे भाई की शादी करले उसके बाद अपनी । 
संजीव जी भी परिस्थिति वश अभी तक कुआंरे हैं , तुम कहो तो मैं मिटिंग फिक्स  करु । 

स्नेहा जीवन से सारे रंग उड़ गए तुम पुराने कैनवास पर नया रंग भरना चाहती हो । जी हां ! शुभस्त शीघ्रम । 
स्नेहा जैसी तुम्हारी मर्जी भारती तो तुम्हारी बात अब और   टाल नहीं सकती ।
स्नेहा तुम ना .............. पीछे ही पड़ जाती हो स्नेहा ने कंधों को उचकाया आखिर सहेली किसकी हूंँ। भारती अभी तक तुमने  जमीन को बंजर बना लिया था । अब इसमें कोंपले फूटेंगी ।
 भारती के दिल में एक नई आशा के अंकुर ने जन्म ले लिया । बस का हार्न बजा तो दोनों मुस्कुराते हुए बस में सवार हो  गई ‌।
 
- अर्विना गहलोत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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                 शहनाई की कसक




      'आपके यहाँ शादी में बहुत अच्छा लगा भाई' बेटी के विवाह से निपटा ही था कि आनन्द जी के फोन ने मुझे सुखद आश्चर्य में डाल दिया,' शादी का कार्ड भी बहुत सुंदर था, व्यवस्थाएँ भी बहुत अच्छी थीं। कम फूलों में भी स्टेज की ऐसी सजावट तो मैंने पहली बार देखी। आर्केस्ट्रा पार्टी के सिंगर तो मोहम्मद रफी की याद दिला रहे थे। दूल्हे राजा हैंडसम तो है ही, उनका सूट भी बहुत सुन्दर था। आपकी मेहनत को बहुत बहुत सलाम भाई।'
 'थेंक्स वेरी मच सर...'
   " अच्छा हाँ, एक बात और, कार्ड में पढ़ा था, कुँवर साहब के पिताजी का शुभ नाम भी मोहनलाल है। वाह, व्हाट एन इंसिडेंस! दोनों मोहनलाल?"
    "नहीं सर।' मैंने प्रसन्न स्वर में कहा, 'उनका नाम मोहनप्रसाद है, वो कार्ड में प्रिंटिंग मिस्टेक हो गई थी। पर सर, मैं आपका बहुत बहुत शुक्रिया अदा करता हूँ, आपने न सिर्फ आमंत्रण पत्र ध्यान से देखा-पढ़ा वरन विवाह समारोह में भी पूरी रुचि ली। वरना आजकल के अति व्यस्त लोग...व्यस्त होने का दिखावा करते लोग, कहाँ कुछ देखते हैं? इनविटेशन कार्ड में वे देखते हैं वेन्यू, तारीख और वेडिंग पार्टी में देखते हैं सिर्फ खाने के आइटम।'

   -सन्तोष सुपेकर
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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                           चरित्र



सुनती हो, आज मैं लैंडमार्क होटल गया था,बड़े साहब के साथ , जो मुंबई से टीम अाई है ना, उनके साथ लंच था।
वहां पर वो जो चौथी गली वाले शर्मा जी हैं ना, जिनकी बेटी बैंक मैनेजर है वो भी अपने ऑफिस वालों के साथ लंच कर रही थी।
अच्छा वो, रिया, सुनिए वो तो मुझे बहुत पसंद है, कहिए तो अपने ऋषि के लिए शादी की बात चलाएं।
तुम पूरी बात तो सुनो मेरी, यही तो मैं बता रहा था, वो लड़की चरित्र की अच्छी नहीं है, भूल के भी उसको बहू बनाने के बारे में मत सोचना। वो इस घर के लायक नहीं है।
क्यों क्या कमी है, उसमें इतनी सुन्दर है, पढ़ी लिखी है, अच्छी नौकरी करती है, घर - परिवार भी अच्छा है। अपने ऋषि को जैसी लड़की चाहिए, बिलकुल वैसी है।
अरे पर वो लड़की चरित्र की ठीक नहीं है, मिश्रा जी बोले। मिसेज मिश्रा सोफे पर बैठ गई, क्यों क्या हुआ, आपको किसने कहा? मिश्रा जी बोले, आज लंच के बाद हम सब जब सिगरेट पीने गए, तो वो भी अपनी ऑफिस की टीम के साथ खड़ी सिगरेट पी रही थी।ओह तो आपने उसको सिगरेट पीता देख, उसको चरित्रहीन का तमगा दे दिया। आप खुद सिगरेट पीते हो, ऋषि भी कभी - कभार पीता है, और जहां तक मुझे याद है बाबूजी भी पीते थे, इस हिसाब से तो हमारा पूरा खानदान ही चरित्रहीन हो गया। वो लड़की नहीं, ये घर ही उसके लायक नहीं, जहां एक बुरी आदत लड़कों का स्वास्थ्य और लड़कियों का चरित्र खराब करती है।

- डॉ भूमिका श्रीवास्तव
  बंगलौर - कर्नाटक
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                                   अभी कार्य  जारी है 

Comments

  1. हार्दिक आभार आदरणीय वीजेंद्र जैमिनी जी।मानवीय संवेदनाओं को प्रदर्शित करतीं सुंदर लघु कथाएं

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    1. हार्दिक धन्यवाद !

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