कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। बिना करें जीवन में कुछ भी नहीं मिलता है। यही जीवन का संघर्ष है अर्थात् जीवन की वास्तविकता है। बाकि जीवन तो सभी जीतें है। यही कुछ चर्चा का प्रमुख विषय है। जैमिनी अकादमी की चर्चा - परिचर्चा की श्रृंखला में रखा गया विषय है। फिलहाल परिचर्चा में आयें विचारों पर नज़र डालते हैं : - ताश के पत्तों से महल बन सकता है लेकिन उसमें स्थायित्व नहीं होगा।कोई भी हवा का झोंका या फिर किसी व्यक्ति के छूने मात्र से वह धाराशायी हो जाएगा।जबकि इस महल को बनाने के लिए, जो बना कर दिखाता है उसे बरसों प्रैक्टिस करनी पड़ती है अर्थात मेहनत, लगन, व दृढ़ निश्चय से ही वह सफल हो पाता है। उसी तरह किस्मत से कोई डॉक्टर नहीं बन सकता। वह अगर जनरल केटेगरी से हुआ तो ज्यादा मेहनत करनी होगी। लेकिन कोटे के लोगों को भी अपने हिसाब से बहुत मेहनत करनी पड़ती है। क्योंकि उनमें भी अब इस स्पर्धा बढ़ गई है। निष्कर्ष यह कि बगैर मेहनत के कोई सफलता नहीं मिलती। फर्क इतना है की डॉक्टर की सफलता स्थाई होती है। पूरी जिंदगी वह धनोपार्जन करते रहते हैं।लेकिन ताश के पत्तों का महल बनाने से नाम तो मिलता है।दस लोग देखकर तारीफ भी करते हैं पर उसमें स्थायित्व नहीं होने के कारण वह हमेशा आपकी कमाई का जरिया नहीं हो सकता। इसीलिए तो लोग कहते हैं मेहनत करो नहीं तो ताश के पत्तों की तरह धराशायी हो जाओगे। - अर्चना मिश्र
भोपाल - मध्य प्रदेश
किस्मत कोई शब्द नहीं होता है। मनुष्य को जन्म के बाद स्वस्थ वातावरण में गुणवत्तापूर्ण शोधपरक शिक्षा विषयगत शिक्षा के बाद कोई भी मनुष्य समाज में व्यवहारिक सेवा दे सकता है। डॉक्टर ,इंजीनियर ,वकील ,जज , कलक्टर ,शिक्षक ,राज मिस्त्री या एक कुशल मजदूर या किसान बनने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उनमें शिक्षा ग्रहण करने के प्रति समयबद्धता ,लग्न एवं मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ शरीर होना चाहिए । ताश के पत्तों से मकान नहीं बनाया जा सकता ,इसके लिए मजदूरों का मेहनत ,संसाधन ,राज मिस्त्री के अंदर कला कौशल से निपुण होना जरूरी है। जब कोई व्यक्ति के अंदर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आ जाती है तो वह अपने कला कौशल एवं बुद्धिमता से समय का पालन करते हुए उत्कृष्ट डॉक्टर बन सकता है या महल खड़ा कर सकता है। - डॉ.सुधांशु कुमार चक्रवर्ती
हाजीपुर - बिहार
कथन प्रतीकात्मक रूप से मेहनत, लगन और ठोस आधार की ज़रूरत को दर्शाता है। ताश के पत्तों का महल – अस्थिरता, धोखे की दुनिया, और खोखले सपनों का प्रतीक है। इससे कुछ भी टिकाऊ नहीं बनता। क़िस्मत पर डॉक्टर बनना – यह दर्शाता है कि सफलता सिर्फ किस्मत से नहीं, निरंतर प्रयास, पढ़ाई और समर्पण से मिलती है।यह कथन न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि युवाओं के लिए एक यथार्थवादी संदेश भी देता है। यह “कड़ी मेहनत बनाम भाग्य” की बहस में मेहनत की जीत को दर्शाता है। विशेष रूप से ऐसे पेशों में जहाँ ज़िम्मेदारी और ज्ञान अनिवार्य है (जैसे डॉक्टर), वहाँ किस्मत नहीं, कर्म ही काम आता है। - सुदर्शन रत्नाकर
फरीदाबाद - हरियाणा
आप जादुई करिश्मा दिखा इमारत तो खड़ी कर सकते है ! आपका कर्मक्षेत्र लगन हौसले बुलंदी कामयाबी की मंजिल होती है !तभी मनो चिकित्सक बन देश समाज की सेवा कर विकसित भारत बनाने में मदद सकते है! चेतना विकास मूल्य शिक्षा के जरिये अमानवीय गुणों से मानवीय गुणों में परिमार्जन किया जा सकता है।विकसित राष्ट्र की ओर गति के लिए आर्थिक, प्रौद्योगिकी के साथ साथ सामाजिक समानता के अवसर पर ज़ोर देना चाहिए हुनर में बहुत ताकत है ताश के पत्तो की तरह ढहाया नही जा सकता हौसले बुलंद होना चाहिए ! किस्मत के भरोसे कोई डाक्टर नहीं बनता है अर्थ के ज़रिए किस्मत पर भरोसा कर जो डा बनते है देश समाज काल की स्तिथि विपरीत दिशा में बह अमानवीय कृत कर समाज की व्यवस्था के लिए घातक होते है ! - अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
कर्महीन, आलसी, निकम्मे, बिना कुछ किये दूसरों पर निर्भर रह कर जीने वाले, सपने पूरे करने वाले जीवन में ऐसा ही सोचते हैं कि ताश के पत्तों से महल बनाये जा सकते हैं, बिना पढ़े ही अच्छे पदों पर पहुँचा जा सकता है। लेकिन बिना मेहनत किये संसार में कुछ भी पाना, बनना असंभव है।कहाँ भी गया है “ कल बल जल ऊँचों चढ़े अंत नीच को नीच ।” किसी ने एक सच्ची घटना बताई थी कि एक दादा टाइप गुंडे ने कभी पढ़ाई नहीं की, परीक्षा के समय चाकू की नोक पर नकल करके पास होता रहा और अर्थशास्त्र का लेक्चरर बन गया। किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बन कर गया पर अपने विषय पर कुछ नहीं बोल पाया। उसकी इतनी हूटिंग हुई और अगले दिन के समाचारपत्रों में उसकी आत्महत्या का समाचार सबसे बड़ा समाचार था, ताश के पत्तों से बना महल भर भरा कर गिर गया था। मेहनत किये बिना कुछ पाना, बन पाना नितांत असंभव है। आज जितने भी लोग जीवन में सफल हैं उसके पीछे कड़ा संघर्ष और कठिन परिश्रम है। - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
किसी भी व्यक्ति को जीवन में यदि ऊंचाई पर पहुंचना है तो कड़े परिश्रम की आवश्यकता होती है। हवाई बातों से कुछ नहीं होने वाला। ताश के पत्तों से यदि महल बनाओगे तो वह एक ही फूंक में उड़ जाएगा। दुनिया में यदि किसी का नाम होता है तो उसके पीछे उस व्यक्ति का तन- मन- धन से त्याग समर्पण होता है। एक जुनून होता है कि मुझे अपने लिए, समाज के लिए, राष्ट्र हित में कुछ करना है। बिना लगन के काम किए कभी भी किसी व्यक्ति की जय जय कार नहीं होती। यदि आप किस्मत के भरोसे हाथ पैर हाथ रख कर बैठ जाएंगे और सोचेंगे कि लिखा होगा तो मैं डॉक्टर बन जाऊंगा, नहीं लिखा होगा तो नहीं बनूंगा। यदि किस्मत में होगा तो मैं इंजीनियर बन जाऊंगा वर्ना नहीं बनूंगा। ऐसा नहीं होता, कर्म तो करना ही होगा। बिना पुरुषार्थ के हम मंज़िल का किनारा भी नहीं छू सकते। यदि कोई डॉक्टर सोचे कि मैं एडमिशन लेते ही साल 6 महीने में डॉक्टर बन जाऊंगा तो उसे कम से कम आठ दस वर्ष लगते हैं तब कहीं जाकर वह सफल इलाज करके मरीज़ को संतुष्ट कर पाता है। इसलिए किसी भी काम की सफलता हेतु लंबे समय तक निरन्तर परिश्रम करना बहुत आवश्यक है। - डॉ. संतोष गर्ग ' तोष '
पंचकूला - हरियाणा
"कर्म करे किस्मत बने जीवन का यह मर्म प्राणी तेरे हाथ में तेरा अपना कर्म"। अक्सर देखा गया है बहुत से लोग जब कहीं भी सफल नहीं हो पाते तो वो परेशान हो जाते हैं , अपनी मेहनत करना छोड़ देते हैं, और अपनी किस्मत को भला बुरा कह कर परेशान हो कर कई ज्योतिषियों के पास चले जाते हैं जो अपने अपने तौर तरीकों से उनकी किस्मत का चिट्ठा खोलने लगते हैं और उन पर अन्ध विश्वास कर बैठते हैं वो यह नहीं जानते कि कर्म के विना कुछ भी हासिल नहीं किया या सकता, ताश के पत्तों से कोई वादशाह या गुलाम नहीं बनता हमारे कर्म ही हमें ऱाजा , या रंक बनाते हैं, हमें फालतू के अन्ध विश्वासों पर यकीन नहीं करना चाहिए चाहे हस्थ रेखा का विवरण हो, जन्म पत्री का वहम सच है भाग्य को वोही कोसते हैं जो कर्म हीन होते हैं इसलिए हमें अपने कर्म सच्ची लगन व ईमानदारी के साथ करने चाहिए ताकि हम अपनी मंजिल को हासिल कर सकें हमें किस्मत के खेल नहीं सुनने चाहिए यही बातें हमें आलसी बनाती हैं और हमें कहीं का नहीं छोड़ती, यही नहीं कुछ लोग ताश के पत्तों को लेकर जुआ खेलने से अपनी किस्मत को आजमाते हैं, अगर जुआ ही इंसान को महान बनाता तो पांडव कभी अपना पुरा कुल दाँव पर नहीं लगाते और ऐसी बुरे हालातों से नहीं गुजरते अन्त में उन्होंने कर्म धर्म युद्ध पर ही विश्वास किया,कहने का भाव इंसान के कर्म ही उसे वादशाह बनाते हैं बशर्ते हम समय का सदुपयोग करके अपने कर्मों को महान बनायें, अगर विद्यार्थी सिर्फ मैडिकल स्टृीम रख कर डाक्टर बनना चाहे वो कभी नहीं बन सकता जब तक वो तन मन से मेहनत नहीं करेगा तब तक उसका डाक्टर बनना संभव नहीं या सिर्फ ज्योतिषियों के कहने से कोई डाक्टर इंनजिनियर नहीं बन सकता जब तक कर्म नहीं करेगा इसलिए कर्म ही महान हैं हमें अन्धविश्वासों को छोड़ कर कर्मों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है जब हम अपने कर्म महान करेंगे तो हमारी किस्मत खुद ही चमकने लगेगी, अन्त में यही कहुँगा कि मेहनत का फल अवश्य मिलता है चाहे देर से मिले इसलिए कर्म करते रहिए, सच कहा है, "कर्म तेरे अच्छे हैं तो किस्मत तेरी दासी है, नियत तेरी अच्छी है तो घर में मथुरा काशी है, "। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
यह दो पंक्तियाँ जीवन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण सत्य को उजागर करती हैं। पहली पंक्ति "ताश के पत्तों से कोई महल नहीं बनता है" यह दर्शाती है कि अस्थायी, कमजोर और खोखले आधारों पर कोई स्थायी, मजबूत निर्माण नहीं किया जा सकता। यह रूपक हमें बताता है कि यदि हम केवल दिखावे या संयोग के भरोसे कुछ बड़ा बनाने की सोचते हैं, तो वह प्रयास अंततः धराशायी हो जाएगा। दूसरी पंक्ति "किस्मत के भरोसे से कोई डॉक्टर नहीं बनता है" इस बात को और अधिक स्पष्ट करती है कि केवल भाग्य या तकदीर के भरोसे बैठकर कोई महान उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकती। डॉक्टर बनने के लिए वर्षों की मेहनत, अनुशासन, लगन और निरंतर अभ्यास आवश्यक होता है।यह शेर मेहनत, आत्मविश्वास और प्रयास की महत्ता को रेखांकित करता है। यह एक प्रेरणादायक संदेश है उन लोगों के लिए जो सिर्फ सपने देखते हैं लेकिन उन्हें साकार करने के लिए परिश्रम नहीं करते। संक्षेप में: -यह पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि मजबूत आधार, मेहनत और समर्पण ही किसी भी सफलता की असली नींव होते हैं — न कि किस्मत या संयोग। - रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
यह कथन मेहनत, लगन धैर्य , प्रयास जैसे गुणों को दर्शाता है। ताश के पत्तों का महल वाक्यांश अपने भाव को साबित करता है इंसान की लक्ष्य के प्रति अस्थिरता, धोखा, छल बल , शार्ट कट से मंजिल पाना है। जो अस्थिरता का दर्शाता है। क़िस्मत पर डॉक्टर बनना में 90 प्रतिशत पढ़ाई ,मेहनत , लगन , समर्पण और त्याग को दर्शाता है । 10 प्रतिशत भाग्य होता है । डॉक्टर का पेशा में जीवनभर कमाई है। वह कभी सेवा निवृत्त नहीं होता है। आरक्षण के रोग से समाज बीमार है। समता को अपनाए ।
- डॉ.मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन में सफलता केवल संयोग से नहीं मिलती, उसके पीछे अथक परिश्रम और स्पष्ट लक्ष्य होता है। ताश के पत्तों का महल जितनी जल्दी बनता है, उतनी ही जल्दी ढह भी जाता है, क्योंकि उसमें स्थायित्व नहीं होता। ठीक उसी तरह यदि कोई केवल किस्मत पर निर्भर रहकर अपने भविष्य की इमारत खड़ी करना चाहे, तो वह बहुत दूर तक नहीं जा सकता है। डॉक्टर बनने के पीछे वर्षों की मेहनत, अनगिनत रातों की जागरण, और गहरी समझ की प्रक्रिया छुपी होती है। यह सिर्फ एक डिग्री नहीं, बल्कि समर्पण का प्रतीक है जो इंसान को सामाजिक जिम्मेदारी के लिए तैयार करता है।यदि मेहनत से भागा जाए, और केवल भाग्य की राह तकते रहा जाए, तो समय हाथ से फिसल जाता है। समय का सदुपयोग और स्वयं पर विश्वास ही इंसान को ऊँचाइयों तक पहुँचाते हैं।जो व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहता है, उसकी राहें खुद-ब-खुद आसान हो जाती हैं। किस्मत उनके साथ चलती है, जो पहले खुद अपने पाँव से चलना सीखते हैं। इसलिए ज़िंदगी में कुछ पाना है तो ताश के पत्तों पर नहीं, मेहनत पर भरोसा रखे। - सीमा रानी
पटना - बिहार
ताश के पत्तों को जोड़कर जो घर बनता है , वो क्षणों में टूट जाता है !! अर्थात हवा में हवाई किले ही बनते हैं व इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता !! कोई डॉक्टर बनता है तो अथक प्रयास व कड़ी मेहनत से !! कोई कहने मात्र से अथवा बिना पढ़े डॉक्टर नहीं बन जाता !! अर्थात कुछ भी हासिल करने के लिए मेहनत अत्यावश्यक है !! - नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
एक श्लोक है " उद्यमेन हि सिद्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:, न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रवेशन्ति मुखे मृगा: " अर्थात किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए कर्म करना पड़ता है , सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होता।जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुख में हिरण अपने-आप नहीं पहुंच सकता। कहने का आशय यही है कि किस्मत के भरोसे कोई भी अपने उद्देश्य को सफल नहीं कर सकता। कर्म तो करना ही पड़ेगा। रामायण में भी एक सूक्ति है, " कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा। " इसके माध्यम से भी यही कहा गया है कि कर्म प्रमुख है। जैसा कर्म होगा वैसा फल मिलेगा। ताश के पत्तों से महल खड़ा करने का भी यही भाव है। किसी कार्य को कागजी रूप में तैयार कर लेना, स्थायी हल नहीं है। सारांश यह कि जो भी उद्देश्य है, योजना है,सपना है, उसे पूरा करने के लिए ,समर्पित भाव से, ज्ञान और विवेक से, मेहनत और लगन से पूरा करने की हिम्मत और हौसला रखना होगा। सफलता और स्थायित्व तभी हासिल होगा। किस्मत के भरोसे रहने से विलंब तो होगा ही, कुछ हासिल भी नहीं हो सकता। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
“ताश के पत्तों से भाग्य बाँचने का काम एक व्यापार बना हुआ है-“ताश के पत्तों से महल बनाना बच्चों का खेल है : बच्चों को बहलाने का एक माध्यम है- चिकित्सक बनना बच्चों का खेल नहीं है- चिकित्सक बनना ताउम्र पढ़ने का काम है- अब पढ़ाई किस्मत के भरोसे तो नहीं हो सकती है। रात-दिन सजग रहने, श्रम करने से चिकित्सक का आन-बान-शान बचा रह पाता है। समय-समय पर अनेक महामारियाँ विश्व को चपेट में लेती रहती हैं- अभी-अभी करोना से सारा विश्व जूझता हुआ चिकित्सक के भरोसे उबरने में कामयाब होने के प्रयास में रहा। कुछ चिकित्सकों का भी किस्मत/वक्त ने साथ नहीं दिया या उनका समाज-सेवा का लक्ष्य उन्हें शहीद कर दिया। चिकित्सक को धरा पर भगवान का दर्जा दिया जाता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " इस दुनियां में कुछ भी बुरा नहीं है कुछ भी सही नहीं है। यह सिर्फ एक भ्रम है । जो हमारा कर्म है। यही जीवन दर जीवन की वास्तविकता है। जिसके लिए सिर्फ - सिर्फ हम ही जिम्मेदार होते हैं । इस के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
ताश के पत्ते तो हमेशा से गिर जाने के लिए होते हैं। वह केवल परिकल्पना हो सकती है, वास्तविकता नहीं। किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए श्रम आवश्यक है। माना कि किस्मत भी होती है, लेकिन वह भी मेहनत की ओर ही इशारा करती है। वह श्रम की सीमा को इंगित करती है।
ReplyDelete- संगीता गोविल
पटना - बिहार
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
बिना कर्म किसी को गुण रूप में तो कुछ मिल ही नहीं सकता हां,विरासत में धन मिल जाए वो बात अलग है । गुण स्वयं को निखारने, तरासने से बढ़ते हैं और यह कोई ताश के पत्तों का महल नहीं है जो पल में बन जाए और येन _केन _प्रकारेण बन भी जाएगा तो ताश के पत्तों के समान ढह भी जायेगा..
ReplyDelete- ममता श्रवण अग्रवाल
सतना - मध्य प्रदेश
( WhatsApp ग्रुप से साभार )
ताश के पत्तों से कोई महल नहीं बनता, यह एक उक्ति है। एक तरह से हम इसे हवाई किला बनाना भी कह सकते है। जिस तरह ताश का कोई वज़न नहीं होता, वे हवा में उड़ जाते हैं। उसी तरह बिना जमीन के, यानि ठोस निर्णय लिए बिना, कर्म किए बिना सफल नहीं हो सकते। एक घर बनाना, डाक्टर बनना आसान नहीं है। बहुत परिश्रम करना पड़ता है। मुंगेरीलाल की तरह सपने देखने से लक्ष्य प्राप्त नहीं होता।
ReplyDelete- सुनीता मिश्रा
भोपाल - मप्र
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
अगर किसी का व्यक्तित्व ताश के पत्तों की तरह लिजलिजा होगा तो वक्त की आंधी उसे ढहा ही देंगी। फौलादी हौसलों वाले व्यक्ति , मृगतृष्णा में न जीकर जिंदगी में एक लक्ष्य निर्धारित कर उसे पाने के लिए मेहनत करते है। वक्त के थपेडों से वे बिखरते नहीं। कल्पना की नाव पानी में ज्यादा देर तैर नहीं पाती। उसका अवसान निश्चित है।
ReplyDelete- अंजू निगम
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
जैमिनी अकादमी की और से पुरस्कार मिलने हेतु बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉक्टर सुदर्शन रत्नाकर जी को 🌹😊👍🙏
ReplyDelete