विद्यावती कोकिल स्मृति सम्मान - 2025

        सार्थक कर्म करना सभी के लिए आसान नहीं होता है । फिर भी सार्थक कर्म करने का प्रयास करते रहना चाहिए। यही जीवन का सार है और धर्म भी है। जो जन्म दर जन्म साथ देता है। परन्तु सार्थक कर्म नहीं करते हैं। फिर भाग्य को कोसतें रहते हैं । यह भाग्य आप के कर्म का परिणाम होता है। जाने अंजाने में कोई ऐसा कर्म नहीं करना चाहिए। जो भोगने में समस्या पैदा करता है। जैमिनी अकादमी अपने उद्देश्य के साथ - साथ आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है : -
   ये पंक्तियों सही अर्थों में जीवन को सही दिशा की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करती है। 'जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान; गीत के माध्यम से भी यही संदेश जन-जन तक पहुंचा है।  गीता में भी कर्म के महत्व को समझाया गया है वही हर धर्म यही कहता है। जैन धर्म में भी यही कहा गया है कि हमारे पुण्य कर्म के उदय से ही मनुष्य का जन्म हमें प्राप्त हुआ है। मनुष्य का जीव लाखों जीवो में श्रेष्ठ जीवन कहा गया है। मनुष्य सोच समझ कर अपने कर्मों के माध्यम से अगले जन्म-जन्मातर को सुधार सकता है। इसलिए कहा गया है कि जीवन में हमें उच्च विचारों के माध्यम से अपने जीवन को राह देना चाहिए। तभी जीवन सार्थक होगा।।

         - रविंद्र जैन रूपम

           धार - मध्यप्रदेश

       ये सच है कि सार्थक कर्म का परिणाम अच्छा ही होता है अर्थात सार्थक कर्म सुख ही देता है !! किसी जरूरतमंद  की ओर बढ़ाया हुआ हाथ सदा सुखमय परिणाम देता है !! यदि कोई गलत कर्म करता है जैसे किसी का बुरा करना , निंदा करना अथवा किसी को हानि पहुंचाना  ... तौ उसके दुष्परिणाम भी उसे भोगने पड़ते हैं !!मेरा अनुभव कहता है कि यदि किसी का भला कर सकतें हो तो अवश्य करो , और यदि भला नहीं कर सकते तो कम से कम बुरा तो न करो , न करने की सोचो !!

सर्वविदित तथ्य है......

कर भला , हो भला !!

कर बुरा , हो बुरा !!

बुरे कर्म जीवन को व जन्म को भी बर्बाद कर देते हैं क्योंकि इन कर्मों के परिणाम बुरे , व पीड़ादायक ही होते हैं !!

      - नंदिता बाली 

    सोलन - हिमाचल प्रदेश

    हमारी संस्कृति में जन्म को हमारे पिछले जन्म के कर्म के अनुसार निर्धारित माना गया है। इसके साथ ही हमारे वर्तमान के जीवन-संघर्ष को भी नियत माना गया है। लेकिन यह भी मान्यता है कि यदि हम अपना वर्तमान जीवन जीवन के नैतिक मूल्यों के अनुसार, मानवता और आदर्शों के साथ व्यतीत करते हैं यानी सार्थक कर्म के साथ जीवनयापन करते हैं तो हमारा अगला या यूँ मानें कि हर जन्म सुख देने वाला होगा। इसके विपरीत यदि हम अपना जीवन कटुता, निर्दयता, अमर्यादित ढंग से यानी बुरे कर्म से करते हैं तो इसका दुष्प्रभाव अगले जन्मों पर भी पड़ता है और बर्बाद कर देता है। धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से भी हमें यही प्रेरणा दी गई है। सार यही कि हमें अपना जीवनयापन सार्थक कर्मों के साथ करना चाहिए ताकि हम जन्म-जन्मांतर को सफल और  सुखमय बना सकें औरों को कष्ट देकर, उनका सुख-सुकून हर कर यानी बुरे कर्मों से हम अपना वर्तमान तो बर्बाद करते ही हैं, जन्म-दर-दर भी बर्बाद कर लेते हैं।

      - नरेन्द्र श्रीवास्तव

     गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

     सार्थक और शुभ कर्म न केवल हमारे वर्तमान जीवन में मन की शांति, आत्मसंतोष और सामाजिक सम्मान देते हैं, बल्कि यदि पुनर्जन्म की धारणा को मानें, तो ये आगामी जीवनों में भी सुख और उन्नति के कारण बनते हैं। उदाहरणस्वरूप, जब हम बिना स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो वह सुख तुरंत भी मिलता है और दीर्घकाल में भी मन को तृप्त करता है। वहीं, बुरे कर्म, जैसे झूठ, छल, हिंसा, या किसी का जानबूझकर नुकसान करना, चाहे वह तुरंत न भी दिखे, लेकिन अंततः दुखद परिणाम लेकर आता है। यह दुख कभी मानसिक बोझ के रूप में, कभी सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में और यदि धर्म के अनुसार सोचें तो अगले जन्मों में भी भुगतना पड़ता है।कर्म कोई भी व्यर्थ नहीं जाता। सार्थक कर्म एक बीज की तरह हैं जो समय आने पर सुख की फसल बनते हैं।बुरे कर्म काँटों की तरह हैं जो रास्तों में बिछते हैं, फिर चाहे वह इस जीवन का रास्ता हो या अगले जन्म का।

        - रमा बहेड

   हैदराबाद - तेलंगाना 

     कर्म किये जा फल कि इच्छा मत करना इंसान, जैसे कर्म करेगा बैसा फल देंगे भगवान । सत्य पर आधारित  पंक्तियाँ हैं कि मनुष्य जैसे कर्म करता है बैसा ही फल प्राप्त करता है,  देखा जाए  हमारे द्वारा किए जाने वाले कर्म ही प्रकृति से मिलने वाले परिणाम को निधारित करते हैं, कहने का भाव अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों के फल का बुरा प्रभाव पड़ता  रहता है, देखना यह है कि हमारे कर्म सार्थक  हों क्योंकि सार्थक कर्मों का फल हमेशा साकारात्मक और संतोषजनक होता है कहने का मतलब जो कर्म हम उदेश्य रख कर ईमानदारी से करते हैं तो उनका फल हमें संतुष्टि और सफलता अवश्य देता है, यही नहीं सार्थक कर्म करने से  जीवन में साकारात्मक बदलाव आते हैं जैसे आत्म सम्मान में वृद्धि, रिश्तों में सुधार, काम करने में संतुष्टि चेहरे पर निखार और अपना उदेश्य प्राप्त करने में सफलता का अनुभव होता है जिससे आत्मविश्वास विकसित होता है और हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हीं रास्तों  पर चलने का प्रयास करती है जिससे आने वाला जीवन  भी सुखमय ढंग से गुजरता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है जिससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि  सार्थक कर्म का फल सदा ही शुभ फल देता है, कहने का भाव सार्थक  कार्य का समुचित फल अवश्य मिलता है और उदेश्य के बगैर किया गए कार्यों का फल बहुत कम फलदायी होता है, अगर शास्त्रों की बात करें तो उनके अनुसार सार्थक कर्म हर जन्म में सुख देता है और कर्मों के अनुसार ही मनुष्य जन्म लेता है और कर्म  में ही जीता है और मरता है और यही कर्म  मनुष्य के सुख दुःख के कारण बनते हैं जबकि अच्छे कर्म सुखदायक होते हैं और बुरे कर्म दुखों का कारण बन कर जन्मों जन्मों तक साथ नहीं छोड़ते  क्योंकि कर्म करते वक्त हमारी मनमानी चल सकती है लेकिन भोगने में नहीं सच कहा है,"करता था तो क्यों किया, अब काहे पछताये, बोया, पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाये"  सही भी है जब हम करते हैं यह सोच नहीं रखते कि इसका फल क्या होगा जब पापों का घड़ा भर जाता है तो फिर  पुण्य के भागीदार कैसे बन सकते हैं अपनी करनी का फल तो सभी को भुगतना पड़ता है, जैसे भीष्म पितामह जैसे महात्मा जी को वाणों  की शैया पर  अन्तिम पल गुजारने पड़े और उनको पता चला कि कई पिछले जन्मों में  उन्होंने एक अधमरे साँप को ऐसे ही काँटों पर फैंक दिया था जिसका फल उनको उस समय भुगतना पड़ा, अन्त में यही  कहुँगा  कि सार्थक कर्म हमेशा सुख देते हैं और बुरे  कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते और मनुष्य को बर्बाद करने पर तुले रहते हैं इसलिए हमें कर्म को करते वक्त यही सोचना चाहिए कि कर्म का धर्म से भी अधिक महत्व है क्योंकि धर्म करके भगवान से माँगना पड़ता है लेकिन कर्म करने पर भगवान खुद देता है, तभी तो कहा है, खुदी कर बुलंद इतना हर तकदीर से पहले कि खुदा बन्दे से पूछे बता तेरी रजा क्या है। 

  - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा 

     जम्मू -  जम्मू व कश्मीर

     हम दूसरा जन्म लेते हैं पर हमें याद नहीं रहता लेकिन मैने भी पढ़ा है जरूरी नहीं हम इस जन्म  के बुरे कर्म का फल भोग रहे हो यह हमारे किसी और जन्म का हो सकता है।सार्थक कर्म करने का प्रयास हमेशा करना चाहिए क्योंकि अगर हम जन्म में अच्छे कर्म करेंगे तो हो सकता है हमें अगला जन्म ना लेना पड़े। जैसा कि लोग कहते हैं कि यह कलयुग है तो हम देखते हैं इस जन्म में अच्छे कर्म करने में बहुत मुश्किलें आती है लेकिन मेरी सोच है कि इंसान को आगे की भी सोचनी चाहिए क्योंकि हम सिर्फ आत्मा है और यह हमारी देह है जो कष्ट पा रही है इस  कष्ट की मुक्ति सिर्फ अच्छे कर्मों से ही हो सकती है इस जन्म में ना सही अगले जन्म में तो जरूर फल मिलेगा। जब बुरे कर्म का फल  मिलता है तो जब अच्छे और सार्थक कर्म करेंगे तो इस जन्म में ना सही अगले जन्म में जरूर इसका फल मिलेगा। यह मेरा विश्वास है।

      - अर्चना मिश्रा 

    भोपाल - मध्य प्रदेश

      सार्थक कर्म हर जन्म में सुख देता है वो ,साहस कहाँ से लाऊँ चित्र अधूरे है । ये तस्वीर बिक जाय ईश्वर की दुआ है ! इन कर्मठ हाथों पर तुम्हारा ही भरोसा था नसीब का क्या दोष ?तुम साथ थे ख़ुद्दारी पर भरोसा कर तस्वीर बनाती थी ।तेरी तस्वीर यादों में सजाया है ।आज ये स्वर्ण दानो में उकेरा है ,बिक जायेगी ,क्योंकि एम सरस्वती लक्ष्मी के साथ घर आई हैं ज़िंदगी की जंग हालातो से जीती जाती है अधूरे सपनो को पुरा करने उम्र निकल जाती है सत्य क़लम तूलिका सही वक्त में चल जाए तो देश दुनिया की हालात बदल जाती हैं बुरा कर्म जन्म दर जन्म बर्बाद करता है !जनमन विश्वास जगाना हैं और अपने ईमान धरम से खुद को बचाना हैं ।प्रकृति स्वरुप जीवन संतुलन बनाना हैं ।जन जीवन के सारे भेद मिटायें ।कर्म ही पूजा कर्म ही ईश्वर ,राह जीवन की सफल बनाये ।आओ मिलकर आत्मनिर्भरता ,की नई सीख जगायें ।काम ऐसा कर जाये । जिसकी ख़ुशबुओं से ,संसार महक जाये ।घर मधुबन में फूल ऐसे खिलायें । जिसकी सीख से ,माली मन जनमन गूँजती हो जाय । बोधिवृक्ष बन पेड़ ऐसा लगायें।मधुर स्वाद संवाद लक्ष्य बन ,जिसकी सुगंध सीख बन जाय ।ये जग सारा उजियारा बन जाये ।

     - अनिता शरद झा

    रायपुर - छत्तीसगढ़ 

         मनुष्य द्वारा किये कर्म ही हैं जिसके फल मनुष्य को इस जीवन में ही नहीं जाने कितने जन्मों तक भोगने पड़ते हैं। इसीलिए अधिकतर यही कहा जाता है कि हमें दूसरों के कर्मों को नहीं अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और सार्थक कर्म करने चाहिए। ये कर्म ही हमारा वर्तमान और भविष्य निर्धारित करते हैं। बुरे कर्म वर्तमान को तो नष्ट करते ही हैं भविष्य भी समाप्त कर देते हैं। जेबी हम पूर्व जन्म में किये अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगते हैं तो निश्चित है वर्तमान में किये कर्मों का फल भी आगे के जन्मों में ( यदि जन्म मिलता है तो) अवश्य ही भोगेंगे। तो प्रयास हमारा यही रहना चाहिए कि हमारे हाथ से किसी का बुरा ना हो, हो तो अच्छा ही हो। कल किसने देखा है? जो है आज है और आज को सार्थक कर्मों से सँवारना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

     - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

           देहरादून - उत्तराखंड

        हमारी संस्कृति में पुनर्जन्म को मानती है । जब तक इंसान अच्छे कर्म नहीं करता है तब तक उसका जन्म कर्मों के हिसाब से 84 योनियों में होता रहेगा। जन्म  पिछले जन्म की करनी के जन्म मिलता है। हमारे वर्तमान के जीवन-संघर्ष को भी नियत माना गया है। लेकिन हमें वर्तमान जीवन नैतिक मूल्यों के अनुसार, मानवता और आदर्शों के साथ कल्याणकारी बनाना है   तो हमारा अगला  जन्म पुण्यफल देने वाला होगा। इसके विपरीत यदि हम अपना जीवन अनैतिक ढंग से व्यतीत  करते हैं तो इसका परिणाम अगले जन्मों पर भी पड़ता है। धार्मिक ग्रंथों के जड़भरत का नाम उल्लेख मिलता है जिनका नाम भरत था। वह राजा था।उन्हें हिरन से लगाव होने के कारण उन्हें अगले जीवन में जड़वत जीवन जिया।आसक्ति दुख का कारण होती है हमें अपनी से जुड़कर ज्ञान और मुक्ति की तलाश करनी चाहिए जो मनुष्य जीवन में संभव है। हमें यही प्रेरणा मिलती है।

       - डॉ. मंजु गुप्ता

        मुंबई - महाराष्ट्र 

     " मेरी दृष्टि में " कोई भी ऐसा कर्म नहीं होता है । जिसे हमें भोगना नहीं पड़ता है। आज नहीं तो कल भोगना अवश्य पड़ता है। जो भाग्य बन कर कार्य करता है। इसलिए अच्छे से अच्छे कर्म करना चाहिए। तभी जन्म दर जन्म भाग्य में उन्नति मिल सकती हैं।

       - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संचालन व संपादन)

Comments

  1. कर्म का परिणाम मिलकर ही रहता है चाहे वह सार्थक हो या बुरा या निरर्थक. जिस प्रकार किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, वह भी हमारे साथ अच्छा व्यवहार करता है, उसी प्रकार सार्थक कर्म का परिणाम भी हर जन्म में सुख देता है और बुरे कर्म का परिणाम जन्म-दर-जन्म दुःख देकर जीवन बर्बाद करता है.
    - लीला तिवानी
    नई दिल्ली
    (WhatsApp से साभार)

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