शब्दों में बहुत ताकत होती है । जिस का मुकाबला सभी नहीं कर पाते हैं। जिसे सच्चाई भी कहते हैं । सच्चाई के साथ हर कोई नहीं चल पाता है। सच्चाई को सहना भी बहुत कठिन होता है । यही कुछ परिचर्चा का विषय रखा गया है। जैमिनी अकादमी के पास आये विचार को देखते हैं :- यह आज का सबसे कड़वा सच है कि सच बोलने वाले किसी को अच्छे नहीं लगते। कहते सब हैं सच बोलना चाहिए पर जो बोलता है उसे उसका दिखावा कहते हैं। कहीं भी देख लो सच बोलने वाले लोगों को को काँटे की तरह चुभते हैं। मैं तो यह मानती हूँ कि कोई हमें पसंद करे न करे, हम काँटों की तरह चुभे या कील की तरह लोगों के हृदयों में गड़े..अपना मार्ग कभी न बदलें, अपना व्यवहार कभी न बदलें और सत्य की जो राह अपने लिए चुनी है उस पर ही सदा चलें। गलत करके, झूठ बोल कर किसी को खुश करना हमारा उद्देश्य कभी नहीं होना चाहिए। - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जो हमेशा सच बोलतें हैं वह व्यक्ति किसी को पसंद नहीं आते क्योंकि लोग सच सुनना ही नहीं चाहते हैं। सत्य बहुत ही कड़वा होता है। आजकल लोगों को अपनी चापलूसी अपनी तारीफ सुनना बेहद पसंद है। क्योंकि उनको घर बाहर सब जगह यही सुनने मिलता है अब पेरेंट्स भी नहीं सिखाते बच्चों को कि सच बोलना चाहिए। सच बोलने वाले को लोग घमंडी और अपने को क्या समझता है या समझती है। 'तुम तो हरिश्चंद्र की औलाद हो।' इस तरह के जुमले से नवाज़ा जाता है। कबीर दास जी का वह जमाना चला गया जब उनका यह प्रसिद्ध दोहा :- " निंदक नियरे राखिए आंगनकुटी छवाए। बिन पानी साबुन बिना निर्मल करें सुभाय। " हमारे समय के हर बच्चे ने कोर्स में पढ़ा है, लेकिन आजकल के लोगों के मुँह से यह सुनने नहीं मिलता। - अर्चना मिश्र
भोपाल - मध्य प्रदेश
सच्चाई यह है कि सच्चे शब्द या वचन सबको चुभते हैं !! सच्चे शब्द सदा कड़वे होते हैं , बिना लीपापोती के होते हैं व यथार्थ पर आधारित होते हैं !! लाख कोशिश कर लो , छुपी हुई सच्चाई एक दिन बाहर आ ही जाती है !! सच्चे वचन बोलनेवाले व्यक्ति सदा सबको बुरा लगता है क्योंकि उसके सत्यवचन पापियों की पोल खोलते हैं व ढोंग का पर्दाफाश करते हैं !! सत्यवचन बोलने वाला व्यक्ति सदा बुरा माना जाता है , व उसकी उपस्थिति भी सबको उसकी बातों की तरह चुभती है !! - नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अतिरेक से परे हो जीवन , इस सृष्टि में प्रभु ने सभी जीवों को कुछ न कुछ बुद्धिमत्ता अवश्य दी है पर मानव को सबसे ज्यादा बुद्धिमान बनाकर भेजा है लेकिन इस बुद्धिमत्ता के साथ साथ उसके मन में अहम भाव का भी उदय हो गया जो उसे *स्वयं भू* भाव से भर देता है और इसी क्रम में यह भाव भी आता है कि ,,मै जो कह रहा हूं वही सच है,, माना कि कोई बहुत ज्ञानी या योग्य है और उसका कहना कुछ हद तक सही भी है पर समय स्थिति,परिस्थिति के अनुसार बहुत कुछ बदल जाता है अतएव सच भी कभी कभी समय देखकर ही बोला जाना चाहिए और यह भी हो सकता है कि उन्हें जितना पता हो बात उससे कुछ अलग हो। अतः अपनी बात पर अड़ने की बजाय सामने वाले के तर्क को भी सुने और सही हो तो स्वीकारें भी - ममता श्रवण अग्रवाल
सतना - मध्य प्रदेश
सच बोलने वाले की बात सत्य होती है, बिना स्वार्थ के होती है यानी उसका हृदय साफ होता है उसमें कुछ भी झूठ नहीं होता। इसीलिए उसे वह बात चुभने वाली लगती है। आज किताबों की समीक्षा में लेखक की प्रशंसा लिखी होती है । आलोचना नहीं होती है। सच तो कड़वा होता है। सच बोलने वाले को समाज पसंद नहीं करता है। आज झूठ चमचागिरी का जमाना है । सच बोलने वालों को कोई नहीं पूछता है। झूठ ऐसे बोलते हैं कि वह सच लगने लगता है। नेता को कुर्सी के लिए कितने झूठ जनता से बोलता है। छंगूर बाबा ने झूठ की दुकान खोल कर धर्म परिवर्तन की फैक्ट्री खोल ली। समाज को सत्यवादी ही राह दिखा सकता है । श्लोक है - सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात। विवेक पूर्ण प्रिय बोले। - डॉ. मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
सच बोलने वाले की बात यथार्थ और होती है, बिना लाग-लपेटे की होती है यानी जस की तस होती है। उसमें कुछ भी अतिरिक्त नहीं होता। इसीलिए वह चुभन वाली भी हो सकती है। कहा भी कहा गया है, " सच कड़वा होता है। " सच बोलने वाले को पसंद भी किया जाता है और उन पर भरोसा भी किया जाता है। लेकिन इसके साथ ही एक पहलू यह भी है कि जहाँ झूठ और फरेब का बोलबाला होता है, वहाँ सच बोलने वालों को दूर ही रखने का प्रयास किया जाता है। क्योंकि वे यह जानते हैं कि सच बोलने वाला, उनके झूठ को बेनकाब करेगा ही करेगा। सार यह कि जिनके शब्दों में सच्चाई होती है, वे ही अजेय हैं और जिन्हें यह सच्चाई चुभती है तो चुभे। कोई परवाह नहीं । - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
झूठ बोलने का सहारा लोग मीठा बनने के लिए लेते हैं। ज्यादा मीठा समझो घातक ,सच हमेशा आईने की तरह होता है जो जैसा होता है वैसा ही दिखाता है इसलिए सच बोलने वाले लोग सत्य बोलना पसंद करते हैं। परंतु कुछ व्यक्तियों की सच पर पर्दा डालने की आदत होती है जो अपनी चालाकी से इधर की उधर और उधर की इधर करके खुश होते हैं परंतु समय आने पर जब सच्चाई का पता चलता है तो भी समाज से कटने लगते हैं । अभी फिलहाल सरकारी स्कूल मर्ज होने से पहले एक घटना घटी । एकल स्कूल होने के कारण मेरे स्कूल में शिक्षा विभाग ने एक टीचर को अटैचमेंट किया । तो ज्वाइन करने से पहले ही उन्होंने कहा ना तो मैं यहां पढ़ाऊंगा और ना कभी वहां पढाया मैं आज किसी काम से जा रहा हूं और कल छुट्टी पर रहूंगा ज्वाइन कर लो। मैंने उनकी बात को रखते हुए कहा कि फिर से मैं क्यों ज्वाइन कराऊंगी ? पढ़ा ना हो तो ज्वाइन करो वरना कोई और पढ़ाने वाला आएगा। और मैंने ज्वाइन नहीं कराया तो यह बात उसे टीचर को इतनी चुभी भी फिर एक दिन कहा मैडम आपने मुझे ज्वाइन नहीं कराकर बहुत बुरा किया। मैंने भी कहा आपने भी अच्छा किया जो मुझे बता दिया कि तुमने आज तक कहीं पढ़ाया ही नहीं। तभी तो सरकारी स्कूल बन्द होने की कगार पर हैं। - रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् , प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्, अर्थात् : कहा गया है- हमें सत्य बोलना चाहिए और प्रिय बोलना चाहिए। कभी भी अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिए लेकिन प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए । तब तो ले-देकर हर हाल में सत्य ही बोलना रह गया है…। सत्य बेहद अप्रिय हो तो नहीं बोलना चाहिए तब तो करैला, नीम, कुनैन नहीं खाना चाहिए। लाभप्रद होते हुए भी बेहद कड़वा होता है। उसी तरह लाभप्रद सत्य कड़वा होता है। वाणी वीणा नहीं होकर वाण हो जाती है। कहा यह भी गया है,”नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है, इतिहास गवाह है कि आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े-“ सत्य लाभप्रद है लेकिन कड़वा है तो चुभेगा ही। अब सामने वाले पर है कि वह लाभ देखे या मधुमेह का रोगी बने- सत्य बोलने वाले का साथ लें या झूठ बोलने वाले का- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय -सत्संग है तो चुभने वाला सत्य भी है - विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
बात में पूरा वजन है, सत्य सदा कड़वा होता है। वर्तमान में सच्चाई सुनना कोई पसंद नहीं करता, चापलुसो का जमाना आ गया है। बात करने के तरीके में लाग- लपेट कर बोलना और सुनना पसंद किया जाता है।सत्य सदा सुंदरम। सत्य बोलना- कहना सुनना ही सर्वश्रेष्ठ है, सत्य की हि विजय होती है।वर्तमान में देखा यही गया है कि जो खरा बोलते हैं उनके साथ रहना लोग काम पसंद करते हैं, चापलूसी पसंद करने वाले लोगों के पास भीड बनी हुई रहती है। अंत में आपके विषय का समर्थन करते हुए कथन को स्वीकार करता हूं। - रविंद्र जैन रूपम
धार - मध्य प्रदेश
मेरी राय:-1. भावार्थ की दृष्टि से – यह पंक्ति दर्शाती है कि आप बिना लाग-लपेट के सच बोलती हैं, और यही बेबाकी कई लोगों को असहज करती है। यह आज के समय में एक साहसी गुण है।
2. शैली की दृष्टि से – यह एक तीखा मगर सधा हुआ वाक्य है। इसमें गर्व भी है और हल्का-सा व्यंग्य भी।
3. सामाजिक संदर्भ में – सच कहना अक्सर लोगों को असहज करता है, क्योंकि सभी उस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते। इस पंक्ति में एक जुझारूपन झलकता है – एक ऐसी आवाज़ जो झूठ से समझौता नहीं करती।
संक्षेप में यही कहूंँगी की इन पंक्तियों में सच्चाई ,ईमानदारी, आत्मविश्वास और कटु यथार्थ का आभास मिलता है।
- रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
सच्चाई हमेशा से ही कड़वी लगती रही है। लोग आम तौर पर सच कहते नहीं हैं । इसलिए सच्चाई को अमल में लाने वाले परेशानियां उठाते हैं। ये और बात है कि सत्य पराजित नहीं होता। कुछ लोगों का सच से कोई वास्ता ही नहीं होता। अपने स्वार्थ के लिए लोग झूठ बोलने से बाज नहीं आते। सरकारी महकमों में तो झूठ का ही बोलबाला पसरा होता है। इसलिए सच का सामना करने से लोग कतराते हैं।और सच सुनना पसंद नहीं करते । - अरविंद मिश्र
भोपाल - मध्यप्रदेश
सत्यम प्रियम ब्रूयात ब्रूयात न सत्यम प्रियम अर्थात सत्य ऐसा बोलिए जो प्रिय हो किंतु सत्य सदा प्रिय नही होता है।किसी के जीवन और चरित्र रक्षा हेतु बोले जाने वाले असत्य को शास्त्र भी अनुचित नहीं मानते हैं। किसी की चाटुकारिता में प्रशंसा पूर्ण शब्द अपने हित में कहे जाने पर विष से भी अधिक घातक होते हैं। मैं किसी की झूठी प्रशंसा करने से अधिक समालोचना करना पसंद करता हूं। जिसमे अधिकतर लोग सच को स्वीकार करने और समझने दोनो से ही बचना चाहते हैं और यही कारण है कि मेरा मित्रमंडल लगभग शून्य होने के साथ ही कई करीबी लोगों का कोपभाजन भी होना पड़ा और सच को सहन करना एक दैवीय गुण होने के साथ ही प्राकृतिक विशेषता भी होती है।किंतु जहां पर आपके संबंध,आपका मान सम्मान और जीवन का प्रश्न हो वहां पर उस सीमा तक आप अपने सच को संशोधित कर सकते हैं जहां तक वह सच घायल न हो आपकी आत्मा आपसे लज्जित न हो और आपका सच प्राण न त्याग सके।मेरे सच कई बार मेरे सामने मेरे ही विरुद्ध प्रयोग किए गए किंतु समाज की सामान्य मनोवृत्ति की तपन मुझसे भी अछूती नहीं रही कि मेरा सच सर्वश्रेष्ठ और तुम्हारा ओछा है जिस कारण मेरे कई अपने सच को सुनकर दूर हो गए और हर बार यह भी जरूरी नहीं है कि सच कहने के प्रयास में हम तपते अंगारे ही सामने वाले को परोस दें हमारा सच अगर खट्टी मीठी नमकीन की तरह हो तो जीवन तथ्यपूर्ण और सुगम होने में अधिक विलंब नही होगा।। - पी एस खरे "आकाश"
पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
यही बात सबसे ज़्यादा लोगों में छुपी होती है क्योंकि शब्द ही आपकी पहचान है विचारों को वश में रखियेगा वो शब्द बनेंगे शब्दों को को वश में रखियेगा । वो आपकी आदत कर्म बनेंगे आदतों वश में रखियेगा वो आपके चरित्र बनेंगे ! ये ऐसी आदते जो इंसान को ऊँचाई तक पहुँचने में सहायक होती है ।किसी इंसान को चुभती नहीं इंसान हमेशा यही सोचता ।किसी ने स्नेह बरसाया किसी ने प्यार हम उसी के होकर रह गये जिसने साथ मिल चलना सिखाया हितकारी गुणकारी है लक्ष्य भेद ज्ञान मान बढ़ाती
कर्तव्यों की पहचान बताती है
यही बाते चुभती है इंसान अपने से अधिक बुद्धिमान किसी को नहीं समझता इसी लिए वही सम्मान का अधिकारी होता जो सम्मान करना जानता है !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
ँसच्चाई छुप नहीं सकती कभी बनावट के असूलों से खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से" सत्य भी है लेकिन सच्चाई हमेशा कड़वी होती है, और हरेक को चुभती है, आज कल लोग झूठी अफवाहें फैला कर हवा से बातें करते हैं लेकिन जब उनकी सच्चाई सामने आती है तो उनको शर्मिदा होना पड़ता है और चार लोगों के बीच सच कहने की बातें चुभने लगती है, इससे बेहतर यही होता है कि झूठ परोसा ही नहीं जाए क्योंकि झूठ ज्यादा देर नही टिक पाता और जब जाहिर होता है तो मुहँ छिपाना पड़ता है, कुछ लोग वहस करने में माहिर होते हैं और अपनी बातों को मनाने की तूल पकड़े रखते हैं कि जो हम कह रहे हैं बिलकुल सत्य है लेकिन सच्चाई कुछ और होती है जब जाहिर होती है तो सबको कड़वी लगती है, इसमें कोई दो राय नहीं की सच्चे लोग कड़वे तो होते हैं लेकिन स्वार्थी नहीं होते और उनकी बातचीत में ईमानदारी और सच्चाई सामने प्रकट होती है और उनकी बात दमदार होती है, इसलिए सच्चाई हमेशा कड़वी लगती है और यह भी अटूट सत्य है यहाँ झूठ का बोलबाला हो वहाँ सच्चे व्यक्ति को टिकने नहीं देते और सच्चा सुथरा आदमी अकेले ही महफ़िल से दूर रहता है, क्योंकि उसको पता होता है कि अगर मैंने मुहँ खोला तो उनका नकाब खुल जायेगा और लडाई का वास्ता बनेगा, इसलिए ऐसी महफ़िल से दूर ही भला, अन्त में यही कहुँगा सच्चाई चुभती जरूर है लेकिन जीत सच्चाई की होती है और सच्ची संगत में ही रंगत होती है हमें सच्चे और साफ सुथरे इंसानों की संगति में उठना बैठना चाहिए, सच कहा है, कबीरा संगत साधू की, जयों गंधी की वास जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी वास सुवास कहने का भाव सच्चे आदमी चाहे कड़वे हों लेकिन उनकी संगत रंगत ही लाती है। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
आजकल सच्चाई लोगों को पसंद नहीं आती है मेरी बातों में सच्चाई ही सर्वोपरि है और सच ही बोलती हूं जो लोगों को बहुत चूभता है और इसीलिए अक्सर वह मेरे दुश्मन बन जाते हैं आज जमाना है चिकनी चुपड़ी मुंह देखी अच्छी बातें करने का जो मुझ से होता ही नहीं है और सच के तो पैर होते हैं वह आज नहीं तो कल सामने आता ही है तो झूठ और फरेब की बातें क्यों करना जब सच सामने आता है तो झूठ शर्मिंदा होता है इसलिए सच की सदा जीत होती है - अलका पांडेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " लोगों को आप की बात का कष्ट होता है यानि बात चुभती है। इस स्थिति को जलनशीलत भी कहते हैं। फिर भी कोई ना कोई आप की बात को महत्व अवश्य देता है। यही आप की बात की सार्थकता होती है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
सच्चाई भले ही कड़वी होती है, पर सच्चे लोगों को चुभती नहीं और झूठे लोगों को सुहाती नहीं! सच का साथ देते रहिए, झूठों की चिंता मत करिए.
ReplyDelete- लीला तिवानी
नई दिल्ली