मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान - 2025

        मजबूर इंसान की हाय कभी नहीं लेनी चाहिए। कहते तों यहीं हैं। बाकि दोगले इंसान से जितना बच कर चलोगे। उतना ही जीवन आगे बढ़ता चला जाता है। जैमिनी अकादमी द्वारा रखी गई परिचर्चा का विषय भी यही है। कुछ आयें विचारों को देखते हैं कि किस - किस विषय को किस प्रकार से लिया है : -
            मजबूर इंसान यानी बेबस इंसान, यानी व्यथित इंसान, दुख और संताप से भरा हुआ। ऐसे में कोई यदि उसके साथ इंसाफ नहीं करता, इसके विपरीत उसका  शोषण करता है तो उस बेबस इंसान के रोम-रोम से निकलने वाली कसक, दिल से निकलने वाली हूक,' हाय ' बनकर शोषित और उसके साथ अन्याय करने वाले के लिए भयंकर घातक सिद्ध होती है और परिणाम में उस व्यक्ति के साथ किस प्रकार का बुरा होगा, कहा नहीं जा सकता। इस हाय को बद्दुआ भी कहते हैं। इसलिए कहा गया है कि हमें कभी भी किसी का बुरा, किसी के प्रति अन्याय, अहित,विश्वासघात,उपहास नहीं करना चाहिए। वरना इसके परिणाम बुरे भी होते हैं और भुगतने भी पड़ते हैं। समझदार और जानकार लोग ऐसी हाय के परिणाम समझते हैं, इसलिए बचते भी है। संत तुलसीदास जी ने भी इसी संदर्भ में कहा है,   " तुलसी हाय गरीब की, कभी न निष्फल जाए । " इसी तरह जीवन में कुछ दोगले इंसान भी होते हैं जो जुबान के पक्के नहीं होते। कब बात से पलट जावें, कह नहीं सकते। ऐसे लोग विश्वास करने योग्य नहीं होते। निश्छल और निश्चल नहीं होते। मन,वचन और कर्म से पवित्र नहीं होते। अत: ऐसे लोगों से भी बचकर रहना चाहिए।सार यह कि जीवन दरियादिली का भी नाम है। यह जितना निश्चल, स्नेही,दयालू और मर्यादित होगा, उतना ही सुखमय होगा।

       - नरेन्द्र श्रीवास्तव 

     गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

        दोगले शब्द पर आपत्ति दर्ज है, क्यों कि यह दोहरे अर्थ में प्रयोग होता है-दोगला के लिए एक अर्थ है —सामने कुछ और तथा पीठ पीछे कुछ और चरित्र वाला/वाली इन्सान । जबकि दोहरे चरित्र वाले/वालियों के लिए ।दोहरे चरित्र वालों के लिए हाथी का दाँत, दोचित्तापन जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है- दोगले शब्द का दूसरा अर्थ होता है-—वह मनुष्य जो अपनी माता के असली पति से नहीं बल्कि उसके यार से उत्पन्न हुआ हो । जारज । २. वह जीव जिसके माता-पिता भिन्न-भिन्न जातियों के हों । साहित्य है तो शब्दों में सभ्यता होनी चाहिए । खैर! किसी व्यक्ति को मजबूर तब भी माना जाता है जब उसकी आय का स्तर उस न्यूनतम स्तर से नीचे चला जाता है जो उसकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाता। दूसरे शारीरिक-मानसिक कमजोरी से दयनीय स्थिति में पड़ा व्यक्ति भी मजबूर माना जाता है। जिसे भी दूसरे लोगों की सहायता की जरूरत है उनपर सहयोग का भाव रहना चाहिए। दोचित्तापन वाला व्यक्ति तो जहर से ज़्यादा ख़तरनाक होता है। वह हमेशा प्रयास में रहता कैसे धोखा देना है। इसलिए उसकी दी राय खतरनाक होगी। इसलिए वैसे व्यक्ति से सदैव सतर्क रहने की जरूरत होती है।

     - विभा रानी श्रीवास्तव 

           पटना - बिहार 

       "बुरा गरीब को कोसना, बुरी गरीब की हाय, मोये बकरे की खाल से लोहा भस्म हो जाए" ऊपर लिखित स्तरें साफ, साफ प्रकट कर रही हैं कि किसी  गरीब या मजबूर इंसान को फिजूल में  तंग  नहीं करना चाहिए वरना उसकी  अंतरआत्मा से निकली एक भी हाय आपको बर्बाद करके रख देगी जैसे मृत बकरे की खाल से निकली हवा लोहे को भस्म कर देती है, कहने का भाव किसी की मजबूरी का  फायदा कभी नहीं उठाना  चाहिए कई लोग भोले भाले लोगों को मजदूरी तो  देते हैं लेकिन उनकी पगार बराबर नहीं देते अपने उपर चाहे फिजूल खर्ची  कितनी भी कर लें लेकिन उनकी दिहाड़ी का हिसाब करके भी पूरी पगार नहीं देते अक्सर देखने और सुनने को मिलता है, हाँ किसी गरीब ने अपनी मेहनत मजदूरी से कुछ हासिल भी किया हो उससे छीनने का प्रयास करते हैं, और छीन भी ली जाती है, चाहे कोई जमीन का टुकड़ा हो, या  कहीं छोटी मोटी दूकान का   सपरा, गरीब लड़ाई झगड़ा तो कर नहीं सकता यह उसकी मजबूरी है, हॉ  लम्बी हाय जरूर देता है,  और वोही हाय, बद्दुआ सीधी भगवान तक पहुँचती  जो बना बनाया खेल खत्म कर देती है, सत्य है,  "उस समय मजबूर होता है इंसान, जब इच्छा पूरी न कर सके जो चाहती हो संतान। उस समय मजबूर होता है इंसान जब मुट्ठी में हों चंद सिक्के और खर्चे हों तमाम। ऐसे हालातों में अक्सर लोग मजबूरी का  फायदा उठाकर मजदूरी तक नहीं देते और उसकी हाय का शिकार जरूर होते हैं जो उसका सबसे बड़ा हथियार होता है इसलिए मजबूर इंसान की हाय से बचना चाहिए, दुसरी तरफ अलग अलग किस्म के लोग चापलूसी से, धोखाधड़ी से फायदा ले लेते हैं, ऐसे लोगों में दोगले इंसान ज्यादातर देखने को मिलते हैं जो वगल में छुरी और मुहँ में राम राम जपते हैं, जब फायदा लेना हो  बहुत मीठी वाणी बोलते हैं, चापलूसी करते  हैं लेकिन मतलब निकल जाने के बाद , खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं और किसी दुसरे को लेप लगाना शुरू कर देते हैं इस तरह के दोगले लोगों से बचना भी बहुत जरूरी है, लेकिन ऐसे लोग हमेशा  मनचाहे लोगों को जाल में फसां लेते है और ळोग फंस भी जाते हैं लेकिन बात जब किसी मासूम की या जरूरतमंद कि हो तो उसकी मजबूरी का फायदा लेने से नहीं चूकते जो इंसानियत के खिलाफ है कहने का भाव   गरीब, अवला, बेसहारा, मजबूर इंसान की मदद करना इंसानियत है जबकि दुगलों लोगों से बचना जो दोहरा चरित्र अपनाते हैं एक काविल इंसान की निशानी है, क्योंकि एक अच्छे इंसान को अगर खतरा हो सकता है तो वो हिंसक जानवर से  या शत्रुओं से इतना नहीं होता जितना दोगले इंसानों से होता है, आखिरकार यही कहुँगा  गरीब से छीनो मत और दोगलों को  लुटाओ मत, दोगलों से दूरी बनाए रखना ही अच्छा होगा, क्योंकि इनकी राय या सलाह में भी अपना ही लाभ होता है इसलिए कहा है  मजबूर की हाय और दोगले की राय कभी ठीक नहीं बैठती, लेकिन  लोग अक्सर उल्टा चलने पर मजबूर होते हैं, झूठी प्रशंसा के दिवाने बातों में आकर फंस जाते है, देखा जाए कमजोर कोई नहीं होता मजबूरियाँ इंसान को कमजोर कर देती हैं और घटिया लोग इसका फायदा उठाकर खुद को शेर समझते हैं,  जिसका खमियाजा उनको भुगतना पड़ता है क्योंकि सच कहा है, भलाई कर भला होगा, बुराई कर बुरा होगा, कोई देखे या न देखे खुदा तो देखता ही होगा। 

  - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

     जम्मू - जम्मू व कश्मीर

         मजबूरी में हाय ही निकलती है क्योंकि मजबूर व्यक्ति बेबस हो जाता है , कुछ कर नहीं सकता  !!हाय एक ऐसी बददुआ होती है जिससे बचना चाहिए अर्थात कभी भी हमें किसी मजबूर व्यक्ति की मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए ! इस दुनियां मैं बहुत से व्यक्ति होते हैं , जो सांप की तरह जहरीले होते हैं  व डसने को हरदम तैयार रहते हैं !! ऐसे जहरीले दोगले व्यक्तियों से दूर रहना चाहिए व उनकी राय तो कभी नहीं माननी चाहिए !! इनकी राय मानना अर्थात विपत्ति को न्यौता देना !! स्वयं को बचाने हेतु ऐसे लोगों की राय से बचना चाहिए !!

       - नंदिता बाली 

  सोलन - हिमाचल प्रदेश

     इंसान की इंसानियत उस समय पता चलती है, जब पीठ पीछे से वार करता है। इतिहास गवाह है, किस तरह से राजा को रंग और फकीर बनाकर छोड़ा है। यह भी सच है, जब हम मजबूर इंसान की मदद नहीं कर पाते और उसकी हाय भी बुरी होती है। इसी तरह से दोगला इंसान भी सामने कुछ और पीछे कुछ कह कर बदलाम करता है।

    -आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

           बालाघाट - मध्यप्रदेश

        चरित्र का दोहरापन दोगले इंसान की विशेषता होती है।  इनकी राय नहीं लेनी चाहिए।गिरगिट की तरह रंग बदलता है। थाली का बैंगन होता है , जिधर मर्जी ये लुढ़क जाते हैं। हाथी के दांतों की तरहं इनके खाने दाँत और दिखाने दाँत अलग होते हैं । ऐसे कपटी , धोखेबाज   विष उगलने वाल्वलोग राष्ट्र समाज के लिए हानिकारक हैं । ऐसे लोगों से दूरी बनायी रखनी चाहिए।क्योंकि कभी संकट में उन्हें डाल सकते हैं । इनसे मित्रता करने से बचना चाहिए ।बिच्छू की तरह यह कब डंक मार दें। मजबूर इंसान तो गरीब , दुख दर्द का मारा , लाचार , विवश , दलित होता है। जिनका समाज शोषण करता है।  ऐसे निरीह , लाचार इंसान की आत्मा को दुखाना नहीं चाहिए । इनके संग अन्याय नहीं करना चाहिए। इनकी हाय  जिसको लगती है तो उसका सर्वनाश हो जाता है। अंत में कबीर ने कहा दुर्बल को मत सताइए ,  जाकी मोटी हाय। मरी खाल की साँस से ,  लोह  भस्म हो जाय ।। 

   - डॉ. मंजु गुप्ता

     मुंबई - महाराष्ट्र 

      मजबूर इंसान की हाय से हमेशा ही बचना चाहिए. क्योंकि मजबूर इंसान  संकट में फंसा होता है, उस समय उसको किसी प्रकार का मदद न कर के हम उसकी उपेक्षा करते हैं या उपहास उड़ाते हैं तो उसकी हाय उसे लग जाती है जो उसका उपहास उड़ाता है. भले हम किसी कारण बस उसकी मदद नहीं पाते हैं तो ठीक हैं पर हमें उसका गलत लाभ नहीं लेना चाहिए. मज़बूर इंसान की हाय हमेशा लगती है.  दोगले इंसान की राय से भी बचना चाहिये. क्योंकि वह सही राय दे ही नहीं सकता है. दोगले लोग हमेशा ही दोगलापन की बात करते हैं. आपके मुँह पर आपके जैसी बात. दूसरे के मुँह पर उसके जैसी बात. उसके बात का कोई भरोसा नहीं होता है. वह हमेशा बदलता रहता है. वह दूसरे को संकट में डाल तमाशा देखने वाला होता है. इसलिए दोगले इंसान की राय से हमेशा बचना चाहिए.

  - दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

      कलकत्ता - प. बंगाल 

        मजबूर की हाय दुखी आत्मा से निकलती है ।उसकी हाय में सच्चे दर्द का असर होता हैइसलिए वह अधिक प्रभावशाली होती है।  मजबूर लोगों की बेबसी का फायदा उठाने वालों को इसका परिणाम देर सबेर  भुगतना ही पड़ता है। तुलसीदास जी ने भी कहा है- "तुलसी आह गरीब की कबहुंँ न  निष्फल जाए, मरे बकरे के चाम से लोह भस्म हो जाए।" दोगला व्यक्ति चालाक और स्वार्थी होता है। उसकी राय में ईमानदारी नहीं होती। उसकी बातों में छल होता है ।उसकी राय में हमेशा स्वयं उसका हित छिपा होता है। जिससे राय लेने वालों को नुकसान पहुंँचता है।इसीलिए कभी दोगले व्यक्ति की राय नहीं लेना चाहिए।

         - रमा बहेड

    हैदराबाद - तेलंगाना 


" मेरी दृष्टि में " मजबूर इंसान की हाय हो या दोगले इंसान की राय। इन से बचना चाहिए।तभी आप आगे बढ़ सकतें हैं।‌यही जीवन का नियम है। सभी को अपनी लाइफ ज़ीने के लिए अपने हिसाब से नियम बनाने चाहिए। कभी - कभी जीवन में समझौते भी करने पड़ते हैं। जो समझौता करने में सफल हो जाते हैं। वहीं जीवन में कामयाब रहते हैं।

           - बीजेन्द्र जैमिनी 

        (संचालन व संपादन)

Comments

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी