विश्वास सबसे बड़ा सत्य है। यही वास्तविकता है। जिसे हम प्रतिदिन सामना करते हैं। जिंदगी में कुछ हो या ना हो, परन्तु सत्य का सामने अवश्य आता है । फिर भी हम सत्य से भागते रहते हैं । यह कुछ चर्चा का विषय रखा गया है। जैमिनी अकादमी की चर्चा श्रृंखला में बहुत दिया है। फिलहाल विषय के अनुरूप विचारों को पेश करते हैं : - जहांँ विश्वास होता है, वहीं सच्चाई की जड़ें होती हैं। सत्य केवल आंखों से देखी गई बात नहीं होती, बल्कि वह अनुभूति होती है जो मन से जुड़ी होती है। अगर किसी पर विश्वास है, तो उसकी हर बात में एक सच्चाई झलकती है — चाहे वो दुनिया की नजर में सही हो या गलत। वहीं जहां विश्वास नहीं है, वहां सबसे बड़ा सच भी झूठ लग सकता है। भरोसे के बिना रिश्ते, वचन, और अनुभव — सब अधूरे और संदिग्ध हो जाते हैं। इसलिए कहा गया है कि: - "बिना विश्वास के शब्द भी खोखले हैं " विश्वास ही वो पुल है जो हमें भ्रम से निकालकर सत्य तक पहुँचाता है। बाकी सब जो इसके बिना दिखता है, वह भ्रम या धोखा ही है — चाहे वो रिश्तों में हो, धर्म में, या विचारों में। - रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
विश्वास एक ऐसी अदभुत अनुभूति है जिसके सहारे व्यक्ति मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी जी लेता है , और ये जीवन की सच्चाई है !! बिना विश्वास के व्यक्ति हर चीज को शक की निगाहों से देखता है और जीवन असमंजस की स्थिति में जीना कठिन हो जाता है !!इस बात का दूसरा पहलू ये है कि जब विश्वास टूटता है या यदि हम गलत व्यक्ति पर विश्वास कर लेते हैं , तो ऐसी स्थिति के दुष्परिणाम भी हमें भोगने पड़ते हैं !! विश्वास वह शक्ति है जो हरदम व्यक्ति का साथ देती है और जीने के सफर को सरल कर देती है !! - नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जी हाँ जहाँ विश्वास है वहीं सत्य है बाकी तो सब धोखा है ये बात अक्षरशः सत्य है ,कोई भी रिश्ता प्रेम और विश्वास इन दो पहियों पर चलता है ,एक भी पहिया डगमगाया तो रिश्ते का पतन तय है । रिश्ता ऐसा हो कि शब्दों की जरूरत ना पड़े ,,,,,। रिश्तो की लम्बी बागडोर में सारे रिश्ते पिरोए होते हैं, अगर विश्वास रूपी धागा टूट जाए तो रिश्ते बिखरने में देर नहीं लगती। इसी सिलसिले में मेरी एक नज़्म है ,,, संबंध की संजीदगी में,
मासूमियत ही नूर लाती।
होशियारी की अधिकता ,
ख़ाक़ में रिश्ते मिलाती ।
अगर रिश्ते को सहेज कर रखना है तो अपना विश्वास सुदृढ़ बनाएं।आज के दौर में दो तरह के रिश्तो की धारा बह रही है एक असंतुष्ट दूसरी अशांत । कहीं संसाधनों को जुटाने में रिश्ते दाँव पर लग रहे हैं तो कहीं विश्वास के अभाव में रिश्तो की बलि चढ़ रही है । जब रिश्तोमें आपस में कोई बातचीत नहीं होती तो समझो रिश्तो के मध्य कोई अनदेखी दीवार खड़ी है और यहीं से प्रेम के कम होने और भरोसे के डिगने का काम शुरू होता है । रिश्तो को सदैव प्रेम से अभिसिंचित करना चाहिए । रिश्तो के गाम्भीर्य और माधुर्य का आकलन भावों को देखकर भी महसूस किया जा सकता है। बस नजर पारखी होनी चाहिए। रामचरितमानस में राम सीता का दांपत्य ऐसा ही था न शब्द थे ना कोई बात ,बस भाव से ही एक दूसरे को समझ जाते थे । वनवास में जब राम सीता और लक्ष्मण को केवट ने गंगा के पार उतारा तो राम के पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था वे इधर उधर देख रहे थे ।
तुलसीदासजी ने लिखा है
पिय हिय की सिय जान निहारी।
मनि मुदरी मन मुदित उतारी ।
अर्थात सीता ने बिना राम के कहे उनके हाव भाव देखकर समझ लिया कि केवट को देने के लिए वे इधर उधर देख रहे हैं और सीताजी ने अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर दे दी ।रिश्तो में प्रेम ऐसा हो कि शब्दों के बगैर भी बात हो जाए ,,,,वही रिश्ता सफल है और सुखी भी।
रिश्ते हमारी संपत्ति हैं और जिम्मेदारी भी।
रिश्ते कमाने पड़ते हैं ,,,निभाने पड़ते हैं।
विश्वास और प्रेम के जरिए अर्जित किये जाते हैं रिश्ते ,,,,।
इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी चाहिए ।
जो इसका मूल्य समझ जाए वह संसार को समझ जाएगा ।कर्तव्य और हमारे बीच की एक डोर से परिवार और रिश्ते भी होते हैं ,,,परमात्मा ने हमें इन को सहेजने की जिम्मेदारी दी है ।हर आदमी इसी बोझ से झुका होता है और यही आवश्यक भी है। कमजोर आदमी तो टूटकर रिश्तो की मर्यादा ही भूल जाता है। परंतु रिश्ते जिस विश्वास की डोर में बंधे थे वह माला विश्वास मिटते ही टूट जाती है । रिश्तो में जब तक विश्वास होता है तभी तक जीवित रहते हैं ।विश्वास खत्म रिश्ता खत्म ।रिश्ते जब व्यावसायिक हो जाते है तो टूटते देर नही लगती ।अतःरिश्तो की डोर भी परमात्मा के हाथों में सौपनी चाहिए।रिश्तों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के भाव को गंभीरता से समझना चाहिए । रिश्तो में सुख और आनंद की प्राप्ति तभी होती है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं ,,,,तथा प्रेम के धागे में विश्वास के मोती पिरो कर माला को धारण करते हैं तब रिश्तों की डोर कोई नही तोड़ सकता ।रिश्तों में सबसे बड़ी पूंजी है विश्वास
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मानव जीवन एक सिक्के के दो पहलू है। क्योंकि परिवार में वैवाहिक जीवन से प्रारंभ होता है, कुटुंब की श्रृंखला प्रारंभ होती है, रिश्ते नातों का जमाव, इसी परिदृश्य में दोस्तों की संख्यात्मक, फिर हमारा सम सामायिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक मिलन। जब हम मिलते है, तो इतने धुल मिल जाते है, हम सब कुछ अपने बारे में बता देते है, जीवन का सम्पूर्ण रहस्य, हमें क्या मालूम, सामने वाला, हमारी सत्यता फायदा उठा रहा है, अति आत्मविश्वास में ही धोखा मिलता है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
यह सही है जहाँ विश्वास है वहाँ सत्य निवास करता है। विश्वास की पक्की नींव पर ही संबंध, घर-परिवार, मित्रता-व्यापार आदि फलते-फूलते, परवान चढ़ते हैं।पर कहते हैं न जहाँ अति विश्वास होता है वहाँ कब दबे पाँव विश्वासघात प्रवेश कर जाता है पता ही नहीं चलता। तो विश्वास करें पर उसकी अति यानी अंधा विश्वास ना करें। अपने आँख-कान अवश्य खुले रखें। किसी की बात सुन कर विश्वास को परखने की त्रुटि ना करें बल्कि अपने सदा अपने विवेक को जगाये रखें। तभी यह कहा जा सकता है जहाँ विश्वास है वहीं सत्य हाथ है बाकी तो सब धोखा है।- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
अगर भरोसे या विश्वास की बात की जाए तो विश्वास एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन में एक भी कदम बढ़ पाना मुश्किल है, जैसे विद्यार्थी को अपनी मेहनत पर विश्वास होता है, मरीज को डाक्टर पर, भक्त को अपनी भक्ति पर, परिन्दें को अपनें पंखों पर कहने का भाव विश्वास पर दूनिया टिकी है, लेकिन अपने आप पर विश्वास करना हमें बढ़त की तरफ लेता है मगर दूसरों पर विश्वास इतनी जल्दी नहीं किया जा सकता, यह सत्य है कि धोखे जैसे शब्द भी विश्वास के साथ साथ यात्रा करते देखे गए हैं क्योंकि कई बार विश्वास टूटता भी नजर आता है, इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्वास मानव प्रेरणा का उच्चतम रूप है क्योंकि हमारा कोई भी कदम उठना भरोसे की पहली सीढ़ी है,यह भी सत्य है कि विश्वास और सत्य दोनों महत्वपूर्ण हैं लेकिन इनको अलग अलग समझना जरुरी है, जब हम अपने आप पर विश्वास करते हैं उसको आत्मविश्वास कहा जाता है , यही आत्मविश्वास हमें मानसिक, भावनात्मक और शरीरिक रूप से सशक्त बनाता है, लेकिन हर व्यक्ति पर विश्वास कर लेना कईबार नुकसानदायक होता है क्योंकि किसी पर विश्वास करना न करना हमारे विवेक पर निर्भर करता है, वास्तव में हमारी सोच से ही विश्वास का जन्म होता है, अगर किसी पर अटूट विश्वास हो जाए तो यह वो दवा है जो मरे हुए में प्राण डाल सकता है लेकिन बहुत बार विश्वासघात भी अपनों से ही होता है, राजा दशरथ को क्या पता था दो अनमोल वचन उसको अपनी प्रिय रानी के इतने भारी पड़ेंगे, देखा जाए विश्वास रिश्तों की आधारशिला है लेकिन विश्वास को कमाने में बर्षों लगते हैं और खोने में कुछ पल इसलिए यह कहना मुमकिन नहीं है कि विश्वास और सत्य आपस में मेल खाते हैं, देखा जाए विश्वास और सत्य अवधारणाएं हैं लेकिन आपस में जुड़ी हुई हैं, सत्य तो वास्तविक है और विश्वास एक मानसिक स्थिति है, विश्वास विना सबूत के हो सकता है और सत्य के लिए सबूतों की जरूरत होती है ज्यों भी कह सकते हैं कि विश्वास एक अंधविश्वास है, क्योंकि यह बदल सकता है लेकिन सत्य को बदला नहीं जा सकता, यही नहीं विश्वास एक व्यक्तिगत धारणा है और मानव प्रेरणा का उच्चतम रूप है, यह अनुभव, धारणा और मुल्य प्रणाली पर आधारित है और सत्य वस्तु, तथ्यों और प्रणामों पर, इसलिए यह कहना मुमकिन नहीं कि यहाँ विश्वास है वही सत्य है, आजकल धोखा फरेब , बेईमानी इतनी जोरों पर है कि विश्वास हरेक पर नहीं किया जा सकता, बशर्ते हमारा आत्मविश्वास दृढ़ हो। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
प्यार का पहला कदम विश्वास आधार है कपट दुश्मनी विश्वास जीत कर धोखा देना सबसे बड़ा पाप है भगवान शिव ही जहर ग्रहण कर संसार को मुक्त किया सबसे बड़ा उदाहरण है प्यार का पहला कदम विश्वास आधार है कपट दुश्मनी विश्वास जीत कर धोखा देना सबसे बड़ा पाप है भारत प्यार विश्वास जीत कर जी -20 मंडपम नटराज सनातन शंखनाद किया विश्व इतिहास तहलका मचाया ढाई हज़ार पुराना स्तंभ संदेश जगाया मानवता का कल्याण समाधान के लिए जाय ढाई हज़ार पुराना संदेश स्तंभ लगा है मानवता का कल्याण सुनिश्चित समाधान करना आवाहन विश्वास भरोसे में बदले सबका साथ सबका विकास ठोस चुनौतियों नये समाधान माग रही है ,आपसी विस्वास प्राप्त करे स्वीकार कर आगे पाटलीपुत्र विश्व विद्यालय सूर्यमंदिर .३६० डिगी यु रखी गई इकनॉमिक कारिडोर अरब जोड़ गांधी जी सिद्धांत सत्य अहिंसा अपरिग्रह शांति सेवा करुणा का पाठ पढ़ा आपरेशन सिन्दूर की कामयाबी विजेता बन भारतीयों का विश्वासजीता! किसी को धोखा ना देनाशिवत्व का भाव हीसाहित्य को समाज का आइना कहा जाता है। सत्य का मतलब सच्चाई, शिवम का मतलब समाज को कुछ देना और बदले में कुछ नहीं लेना सुंदरम का अर्थ होता है। सत्यम समाज का आइना है आप अपने को जैसा दिखाएँगे ,वही रूप की तरह आपको आइने में दिखेगा हर व्यक्ति की चाहत होती है सूरत के साथ सीरत भी ख़ूब सूरत नज़र आये हमें जिस भी क्षेत्र में उपलबद्धिया हासिल होती है हमें वैसा ही दिखाना चाहिये अपनी अच्छाई कमियों के साथ तभी आप चरित्रवान बन सकते परिवार समाज के सामने सत्यम सुंदरता का ही रूप सीरत को उजागर कर रूप से श्रेष्ट बना किसी को धोखा नहीं दे सकते शिवम् याने शिवहोम जिस तरह श्रिश्टि के निर्माण शिवम् का महत्व रचना सामंजस्य समापन तीनो गुण निहित है तभी शिव निर्गुण सगुण सुन्दर शिवम् तभी दिखाई देते है सुंदरम अर्थात जिसे संसार समाज से कुछ लेना नही होता सत्यम के आधार पर प्रकृति से जो मिलता देना ही चाहते है लाये क्या थे जो लेकर जाना है नेक दिल तो तेरा ख़ज़ाना है । दिया देकर तो देखो रोशनी ही रोशनी होगी सत्य के आइने में खुद की सिरत सूरत से ज़्यादा ख़ूबसूरत नज़र आयेगी - अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
एक गहरी और दार्शनिक अभिव्यक्ति है, जो सत्य की अनुभूति को,व्यक्ति की आंतरिक आस्था या विश्वास से जोड़ती है सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सत्य कोई बाह्य वस्तु नहीं, बल्कि हमारी चेतना में जगा विश्वास है।जब हम किसी बात पर पूर्ण विश्वास करते हैं, तो वह हमारे लिए यथार्थ बन जाती है। यही कारण है कि रिश्तों, धर्म, प्रेम, और आत्मा के संदर्भ में “विश्वास” ही “सत्य” का रूप ले लेता है। लेकिन बिना विश्वास के कोई भी तर्क, प्रमाण या जानकारी भी “सत्य” प्रतीत नहीं होती। तब वह “धोखा” लगता है। यह दिखाता है कि हमारी अनुभूति और धारणा किसी वस्तु को सत्य या असत्य बनाती है। इस कथन में एक चुनौती भी है कभी-कभी अंधा विश्वास भी सत्य की जगह मिथ्या को स्थापित कर सकता है।इसलिए यह विचार विचारणीय है कि क्या हर विश्वास सत्य है, या सत्य वही है जो विवेकसम्मत विश्वास से जन्मे? यह कथन अंतर्मन की यात्रा की ओर संकेत करता है। सत्य बाहर नहीं, भीतर की आस्था में है — पर वह आस्था जागृत, विवेकपूर्ण और निर्मल होनी चाहिए, तभी वह धोखे से अलग होकर वास्तविक सत्य बन सकती है। - सुदर्शन रत्नाकर
फरीदाबाद - हरियाणा
विषय तो बड़ा ही गहन है क्योंकि आज के भौतिक जगत में लोग विश्वास के आधार पर नहीं बल्कि प्रभुत्व के आधार पर अपनी नींव खड़ी करते है जबकि वास्तविकता यह है कि ,,विश्वास भाव परम फलदायकम,, यानी जहां विश्वास है वही कार्य की पूर्णता है और विशेषकर यह बात स्वयं के ऊपर, चिकित्सा जगत और आध्यात्मिक उन्नयन में ज्यादा स्पष्ट दिखाई देती है क्योंकि जहां हमारे संबंध आत्मा से जुड़े होते हैं ,विश्वास भाव वहीं फलदाई होता है । यहां एक बात पुनः स्पष्ट करना चाहूंगी कि भौतिक जगत में विश्वास में धोखा मिल सकता है या यूं कहें कि मिलता ही है पर स्वयं की शक्ति पर किया गया विश्वास व्यक्ति की शक्ति को सौ गुना बढ़ा देता है और चिकित्सीय जगत में भी हम इस गुण की श्रेष्ठता देख सकते है तब, जब हम कहते है कि ,,फलां डॉक्टर की दवा हमें जल्दी फायदा करती है,तब यह बात हम अपने विश्वास के आधार पर ही कहते हैं। इस प्रकार कर्म के साथ विश्वास भाव ही है जो हमें श्रेष्ठ लक्ष्य दे सकता है। - ममता श्रवण अग्रवाल
सतना - मध्य प्रदेश
विश्वास साढ़े तीन अक्षर से बना एक शब्द है जो जीवन का,कर्म का,धर्म का और यहां तक कि सृष्टि का भी आधारभूत प्राणतत्व है।विश्वास ही हमें हमारे माता पिता और ईश्वर का आभास कराता है।विश्वास ही हमारे जीवन के गति चक्र को संतुलित करता है यदि विश्वास न हो तो हम किसी भी मानवीय अथवा आत्मिक संबंध की अनुभूति ही नहीं कर सकेंगे। दो अपरिचित व्यक्ति आजीवन चलने वाले संबंध को एक रिश्ते का नाम दे कर अटूट बंधन में बंध कर अपने जीवन को नए प्रतिमान देते हैं तो उसमे भी मूल ऊर्जा विश्वास की ही होती है। विश्वास है तो आस है बाकी सब बकवास है।विश्वास ही एक नवजात को ममता की छांव से परिचित कराता है विश्वास ही एक चिकित्सक की औषधि को बिना किसी किंतु परंतु के खाने के लिए मरीज को प्रेरित करता है विश्वास ही है जो मुसीबत के समय अपने गूढ़ रहस्यों को भी अपने अधिवक्ता के सामने प्रकट करने का साहस देता है। यह भी सत्य है कि विश्वास किसी पाषाण शिला से मजबूत होने के साथ ही एक शीशे के समान ही कमजोर भी होता है।अविश्वास या संदेह की एक बारीक धार भी उस शीशे की सुंदरता को समाप्त कर देती है।ऐसे ही अविश्वास या धोखा भी हमारे रिश्तों से उसकी खूबसूरती छीन लेता है और आजीवन एक ग्रहण के समान यह दंश उभय पक्षों को डसता रहता है और हमारे पास पश्चाताप करने के अतिरिक्त कुछ शेष नहीं रहता है।विश्वास के बिना किसी का भी जीवन तपते रेगिस्तान में खिलने वाले बिना महक के फूल जैसा हो जाता है और यदि विश्वास की धार एक बार कुंद पड़ जाए तो उसे फिर से स्थापित होने में कई बार पूरा जीवन ही कम पड़ जाता है इसलिए विश्वास की रक्षा एक नागमणि की भांति जीवन पर्यंत करना अति आवश्यक है।
- पी एस खरे "आकाश"
पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
निश्चित तौर पर चर्चा का विषय यह गहन विषय है। विश्वास सभी करते हैं पर धोखा कब हो जाता है यह धोखा खाने के बाद ही पता चलता है। जहां तक बात सत्य की है सत्य पर चलना तो हर कोई चाहता है किंतु परंतु कुछ परिस्थितियों ऐसी हो जाती है जहां स्वार्थ घुस जाता है। स्वार्थ ही विश्वास को अविश्वास में बदल देता है। विश्वास की बात करें तो निस्वार्थ भाव एवं सत्य निष्ठा से तथा बिना किसी लाग-लपेट के साथ हर किसी से संबंध रखें तो संबंधों में मधुरता भी होगी अपनत्व का भाव भी होगा और सत्यता कूट-कूट कर परिलक्षित होकर पूर्ण विश्वास स्थापित करेगी। प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में विश्वास को सत्यता के साथ स्थापित करते हुए अपना जीवन जीना चाहिए, जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते हैं स्वार्थ को अगर अपने जीवन में जगह दे दी तो आप भी धोखे के शिकार होंगे। - रविंद्र जैन रूपम
धार - मध्य प्रदेश
जहाँ विश्वास है वहीं सत्य है // बाक़ी तो सबकुछ धोखा है- पर शुरू करते हैं अपनी बात रखने की तो ‘बाक़ी तो सबकुछ धोखा है-‘ को यूँ कहा जा सकता है ‘कुछ बाक़ी नहीं है सब कुछ धोखा है-‘। विश्वास तो काठ की हांडी है ही! विश्वास और विश्वासघात में बेहद बारीक रेखा है- कब मिटा दी जाती है अति विश्वास करने वाले को पता ही नहीं चलता है। विश्वास कर सजग रहा जाए तो उस बैचेनी का क्या मोल…! सजग हैं अत: तय है कि विश्वास अविश्वास में कोई फर्क नहीं है- फिर ग्रहण कर लेते हैं उदाहरणों से- सूरज, चाँद, प्रकृति, धरा, धारा से ज़्यादा बिना भेद-भाव का कौन दे सकता है- उसे तो ना तो भान होता है और ना मान होता है- कि-ठगा जा रहा है या कम/ज़्यादा देना है- धोखा देना फ़ितरत है तो विश्वास करना भी फ़ितरत है- बिना चिन्ता किए - विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
जी हाँ जहाँ विश्वास है वहीं सत्य है बाकी तो सब धोखा है ये बात सटीक है ,कोई भी रिश्ता प विश्वास के पुल पर टिका होता है । लड़के लड़की की शादी भी जुबान के भरोसे होती है। वर , वधु का रिश्ता भी विश्वास पर टिका होता है । विश्वास ही सत्य होता है। देश की रक्षा का रिश्ता हर सैनिक के विश्वास पर जिंदा रहता है । वे अपने राष्ट्र से विश्वासघात नहीं करते हैं । कतर्व्य , देशप्रेम , देशभक्ति की बागडोर में सारे रिश्ते पिरोए होते हैं, विश्वास रूपी धागा मजबूत होता है । सारे रिश्तों के मोती जुड़े रहते हैं । रिश्तों की नींव है प्रेम , विश्वास है। - डॉ . मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
वास्तव में विश्वास का सीधा संबंध प्रेम से है। जहाँ प्रेम है, वहाँ विश्वास है ,यानी यही सत्य है और जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ धोखा है। क्योंकि जिससे प्रेम होता है, उसे नुकसान पहुँचाने की न नीयत होती है, न ऐसे भाव आते हैं। बल्कि प्रेम में तो अटूट विश्वास उमड़ता है। समर्पण होता है। धोखा वही कर सकता है या यूँ माने कि धोखा वही देता है जिसका प्रेम दिखावे का होता है, छद्म और छल निहित होता है। बाहर से मीठा और अंदर से जालसाज भरा होता है। असल में विश्वास का स्वरूप इतना विशाल और अविश्वास का स्वरूप इतना सूक्ष्म होता है कि वह धोखा खाने पर ही नजर आता है। अक्सर धोखा खाने वाला भी वही होता है जो यह नहीं समझ पाता। अत: सार यही है कि या तो विश्वास न करो और करो तो नुकसान के लिए तैयार भी रहो। *
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
" मेरी दृष्टि में " इस दुनियां में सत्य से विश्वास पैदा होता है । बाकि सत्य के अतिरिक्त सब कुछ धोखा है। यही जीवन की वास्तविकता है। परन्तु हम से कितने इंसान सत्य के मार्ग पर चलते हैं। यही सोचने का विषय है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
सत्य से ज्यादा जरूरत सत्य की तलाश है और जहां सत्य की तलाश है ,वहां आदमी ही आदमी बनता है।प्रत्येक विश्वास सत्य नहीं हो सकता ,क्योंकि वह सत्य अंधविश्वास भी हो सकता है। अगर हमलोग किसी बात पर विश्वास करते हैं तो सत्यता के लिए उस बात की तलाश होनी चाहिए ,तलाश के बाद ही सत्यता का प्रमाणीकरण हो सकता है।
ReplyDelete- डॉ.सुधांशु कुमार चक्रवर्ती
। हाजीपुर - बिहार
(WhatsApp ग्रुप से साभार)