प्रोफेसर भारती मुखर्जी स्मृति सम्मान - 2025

        दोस्तों कर्म से भाग्य ‌बनता‌ है । बिना कर्म के कोई भाग्य नहीं लिखा जाता है । यही जन्म दर जन्म की सच्चाई है। बाकि सब कुछ बकवास है। जो सिर्फ आपको भटकाता रहता है। स्थिति कुछ भी हो सकती है परन्तु कर्म बहुत जरूरी है। अतः कर्म से हर स्थिति से बाहर निकला जा सकता है। जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा की श्रृंखला में अनेक विषय आपस में जुड़े नज़र आते हैं । फिर भी शीर्षक के अनुरुप ही चर्चा को तैयार किया जाता है। आयें विचारों को देखते हैं :-

 बदलें कर्म से अपने भाग्य

भाग्य न बदले कभी कर्म को,

कर्म अवश्य बदल देवे भाग्य।

यदि हस्त लकीरें लिखती भाग्य,

तो हस्तहीन न पाते सौभाग्य।।

‌     हम सभी अक्सर एक अलग दुनिया में जीने लगते है कि हमें इस सुख की प्राप्ति नहीं हो पा रही, हम भाग्य हीन है ..यानी जीवन को भाग्य भरोसे छोड़ देना.. हालांकि हमारे मानव तन में कर्म और भाग्य दोनों को स्वीकारा गया है पर फिर भी कर्म का पलड़ा  भाग्य से ज्यादा भारी है। एक कर्म शील व्यक्ति अपने कर्म से भाग्य को सौभाग्य में  बदल सकता है पर यदि वह निष्क्रिय या कर्म हीन है तब भाग्य तो दुर्भाग्य बन  ही जायेगा । मान लीजिए किसी ने आपसे कहा कि आज आपके भाग्य के अनुसार आपको भोजन नहीं मिलेगा तब आपके द्वारा किया गया सतत प्रयास सुस्वादु भोजन भले न दे पर पेट भरने के लिए कुछ रोटियां अवश्य दे देगा और यही बात एक  जगह और कही जा सकती है कि यदि बच्चे की कुंडली में लिखा है कि बच्चा बड़ा होकर प्रशासनिक अधिकारी बनेगा तो क्या वो बिना कर्म किए यानी बिना उचित शिक्षा लिए कुछ बन पायेगा..? नहीं न। बस यही भेद है कर्म और भाग्य का कि *भाग्य भी कर्म से जागृत होता है* और सुप्त भाग्य भी कर्म से चैतन्य होता है। अतः हमें सदैव कर्मशील रहना चाहिए

   - ममता श्रवण अग्रवाल

     सतना - मध्य प्रदेश

           "सकल पदार्थ सब जग माहि, कर्महीन नर पावत नाहि" तुलसीदास जी की चौपाई  में कर्म को ही महानता देते हुए कहा है, कि इस संसार सब कुछ मौजूद है  लेकिन बिना मेहनत और प्रयास  के उन्हें प्राप्त करना संभव नहीं, कहने का भाव कर्म पर विश्वास हो तो हर चीज संभव लेकिन अगर हम कर्म करेंगे ही नहीं और भाग्य को कोसते रहेंगे तो कुछ भी हासिल नहीं हो सकता, तो आईऐ आज की नजर कर्म और भाग्य की तरफ दौड़ाते हैं कि क्या भाग्य से कर्म बदल सकता है या कर्म से भाग्य,  अगर भाग्य और कर्म की बात करें यह दोनों अलग अलग अवधारणाएं हैं  अथार्त कर्म वो है जो हम करते हैं और भाग्य वो परिणाम है जो हमें कर्मों के आधार पर मिलता है, इसलिए कर्म हमारे नियंत्रण में है लेकिन भाग्य नहीं  कहने का मतलब भाग्य कभी कर्म को नहीं बदल सकता लेकिन हमारे कर्म हमारे भाग्य को अवश्य बदल कर रख देते हैं बशर्ते हमारे कर्म सार्थक और सही दिशा में हों, वास्तव में जो दृश्य हैं वो हमारे कर्म हैं और अदृश्य हमारा भाग्य हाँ यह सत्य है कि हमारे पास जो अवसर आते हैं वो भाग्य की देन है लेकिन उन्हें कर्म करके प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन जब हम कर्म ही नहीं करेंगे तो भाग्य कैसे चमकेगा, सत्य भी है, भाग्य को वोही कोसते हैं जो कर्महीन होते हैं या जिनके पास शिकायतों का भंडार होता है या जो आलसी होते हैं लेकिन कर्म योगी लोग भाग्य का निर्माण खुद करते हैं क्योंकि कर्मों से ही भाग्य को बदला जा सकता है और यह ताकत  केवल मनुष्य के पास है जो अपने वर्तमान कर्मों को सुधार कर और साकारात्मक दृष्टिकोण अपना कर भाग्य को बदल सकता है, देखा जाए भाग्य हमारे विश्वास का परिणाम है अगर हम अपने विश्वास को मजबूत रख कर कर्म अच्छे करें तो हमारा भाग्य अवश्य बदलेगा, अन्त में यही कहुँगा कि भाग्य और कर्म दोनों हमारे भले के लिए हैं लेकिन भाग्य का मार्ग कर्म के मार्ग को तय करके मिलता है, इसलिए भाग्य पर निर्भर रहने से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता बल्कि भाग्य का लाभ उठाकर अपने सही समय का उपयोग करके  अच्छे कर्म ही हमें अपनी मंजिल तक ले जा सकते हैं, सच कहा है, कर्म करे किस्मत बने जीवन का यह मर्म प्राणी तेरे हाथ में  तेरा अपना कर्म, कहने का तात्पर्य  कर्म ही महान है जो सारे किस्मत के दरवाजों को खोल सकता है इसलिए सफलता के लिए किसी खास समय का इंतजार मत करो बल्कि अपने हर समय को खास बना लो,और कर्म की राह पर चलते रहो भाग्य  के रास्ते बेसब्री से आपका इंतजार करते नजर आएंगे इसलिए कर्म से भाग्य  बनायें और भाग्य को बुरा भला मत कोसने का प्रयास करें कर्म ही मनुष्य के भाग्य का भंडार हैं। 

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा 

    जम्मू - जम्मू व कश्मीर

       सच है कर्म की शक्ति भाग्य से भी बड़ी है। भाग्य पर निर्भर रहना निष्क्रियता है और कर्म करना सक्रिय प्रयास है। मनुष्य का भाग्य उसके पूर्व कर्मों का फल होता है। वर्तमान में वह अच्छे कर्म करके अपने भविष्य के भाग्य को बदल सकता है। इसीलिए कहते हैं कि कर्म वह साधन है जिससे हम अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं। कर्मशील व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य विधाता बनता है। जीवन में सफलता सतत कर्म से ही मिलती है। भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं मिलता। तुलसीदास जी ने भी कहा है- कर्म प्रधान विश्व करि राखा।

        - रमा बहेड

    हैदराबाद - तेलंगाना 

      मेरी नजर में कर्म और भाग्य दोनों एक दूसरे के सहायक हैं। लेकिन फिर  भी प्राथमिकता तो कर्म को ही देना चाहिए। केवल भाग्य भरोसे कभी कुछ संभव नहीं है। हाँ, ये बात जरूर है कि कर्म करने के बाद भाग्य की भूमिका शुरु होती है। अनेक बार हमें ऐसा देखने मिलता है कि भाग्य से कोई काम बन जाते हैं तो कोई काम बिगड़ जाते हैं। इसलिए कहा भी गया है कि " कर्म किये जा ,फल की चिंता न करें। " इसके आगे एक बात और कही गई है, " जो होता है, अच्छे के लिए होता है। " सार यही कि हमें सदैव अच्छे कर्म ही करना चाहिए। इससे हमारा भाग्य भी साथ देता है और फिर  परिणाम वही  मिलते हैं जो हमारे हित में होते हैं। अच्छे कर्म के लिए भी कहा गया है, " जा को राखे साइयां, मार सके न कोय। बाल न बाँका कर सके जो जग बैरी होय। " अत: भाग्य भरोसे के चक्कर में न पड़ने हुए कर्म करते रहिये। समर्पित भाव से, पूरी लगन और निष्ठा से। 

       - नरेन्द्र श्रीवास्तव

     गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

          भाग्य के भरोसे जो बैठ जाते हैं , उनके मनवांछित कार्य पूर्ण नहीं होते !!कार्यसिद्धि हेतु अथवा लक्ष्य प्राप्ति हेतु , कर्म करने पड़ते हैं !! भाग्य से किसी का कर्म नहीं बदलता , जो तय है कर्म , वो करना पड़ता है !! लेकिन कर्म बदलने से , कर्म का कार्यक्षेत्र बदलने से , कर्म करने में अधिक मेहनत करने से भाग्य अवश्य बदल सकता है !!एक सुविधाहीन व्यक्ति , अपने कर्मों द्वारा , अपने भाग्य को बदलकर बेहतर जिंदगी जी सकता है !! भाग्य तो बैठे बैठे व्यक्ति भोगता है पर निज कर्म से व्यक्ति अपना भाग्य स्वयं लिख सकता है और बदल भी सकता है !!

         - नंदिता बाली 

   सोलन - हिमाचल प्रदेश

       सफलता रूपी सिक्के के दो पहलू हैं "कर्म और भाग्य"जहां एक ओर कर्म प्रधान है वहीं दूसरी ओर भाग्य की प्रबलता को भी नकारा नहीं जा सकता है। यदि बात करें कर्म की, तो गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को प्रधान बताया है। और जहां कर्म प्रधान हो वहां भाग्य का साथ मिलता ही है।

          - संजीव दीपक

       धामपुर - उत्तर प्रदेश 

          भाग्य कितना भी अच्छा हो आप उसके भरोसे हाथ पर हाथ रख कर बैठे नहीं रह सकते पर अपने कर्मपथ पर चलते हुए अपनी मेहनत और लगन से भाग्य में जो अच्छा नियति ने लिखा है उसे अवश्य पा सकते हैं।निकम्मे, आरामतलब और परजीवी बन कर रहने वालों को देखिये भोजन तक भी बिना तानों के खाने को नहीं मिलता। जिसने कर्म करने पर विश्वास रखा है और आँधी-तूफान, सर्दी-गर्मी की चिंता किये बिना अपने लक्ष्य पर अर्जुन की तरह आँख गड़ाए कर्मलीन रहा है उसी ने अपने दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदल दिया है। 

   - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

       देहरादून - उत्तराखंड

             ’करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान, // रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान’ ध्रुव, नचिकेता, सावित्री-सत्यवान, होलिका-प्रह्लाद, वाल्मीकि इत्यादि अनेकों मिथक कहानियों के उदाहरण से सीख मिलता है, भाग्य से कोई कर्म नहीं बदलता है, लेकिन कर्म से भाग्य अवश्य बदलता है। हमें ऐसा नया कोई सीख नहीं देना है जो हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया नहीं हों। बाढ़े पूत पिता के धर्म,खेती उपजे अपने कर्म। इस बहुत ही पुरानी कहावत का आशय यह है कि हमारे अच्छे कर्म, अच्छे धर्म से हमारे पुत्र की धन संपदा,वैभव,दूध-पूत की बृद्धि होती है वहीं हमारे गलत कार्यों से इन सबकी हानि होती है। खेती में अच्छी उपज अपने मेहनत के दम पर होती है।

     - विभा रानी श्रीवास्तव 

           पटना - बिहार 

          चाहत ही मंज़िल का रास्ता होती हैं ग़मों को पीछे छोड़ आगे बढ़ जाती हैं ये भाग्य लकीरों को खींच आगे बढ़ा जाती हैं उम्मीदों के साथ रास्ता बढ़ा जाती हैधर्य सफलता मधुर रिश्तों की अनमोल कुँज़ी जीवन को सुखमय बनाना सफलता की कुँज़ी हर दिन नये आयाम विश्वास के साथ आगे बढ़े आने वाला कल समय संस्कारों की पूँजी है लेकिन कर्म से भाग्य अवश्य बदलता है अपनी सेवाये देकर राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पहचान बना कहते है जिंदगी में खुशियों की पहचान कलम लेखनी का साथ समाज में साहित्यकारों रिश्ते जीवन में खुशियाँ बटोरने लाने की होती है बाकी सब मिथ्या का भ्रम जाल है संस्था का उद्देश्य लोगों में काव्य सृजन को बढ़ावा देना , उनमें कविता के लिए रुचि उत्पन्न करना , समाज को संवेदनशील बनाना, व साहित्य में योगदान देना है । कविता केवल मनोरंजन का ही नहीं समाज सेवा का भी सशक्त माध्यम है । कविता के माध्यम से लोगों को सही दिशा दिखा कर जागृत करना भी है । नजर अंदाज़ कर बीते कल की तरह आज है सुबह की धूप हवायें सुहानी होती है नज़ारों में क़ैद बहार होती हैं पल पल जीने एहसास होती हैं अंधेरा दूर भगा रोशनी होती है 

    - अनिता शरद झा

     रायपुर - छत्तीसगढ़ 

      मेरी नजर में कर्म और भाग्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन प्राथमिकता कर्म की होती है ।भाग्य भरोसे कभी कुछ नहीं  मिलता है। पुरुषार्थियों के घर लक्ष्मी टिकी रहती है। रघुवंश इसका उदाहरण है । 14 पीढ़ियाँ इसकी गवाह है। यानी इंसान को  सदैव अच्छे कर्म ही करना चाहिए। इससे पुण्य मिलता है और पुण्य से भाग्य बनता है और फिर  फल वही  मिलते हैं जो हमारे लिए कल्याणकारी होते हैं।सारे धर्म , संत सत्संग हमें  अच्छे कर्म करने के लिए कहते है कबीर का दोहा है - " जा को राखे साइयां, मार सके न कोय। बाल न बाँका कर सके जो जग बैरी होय। " इससी संदर्भ में  स्वरचित दोहों में कहती हूँ -  कर्म और भाग्य दोहों में बने कर्म से भाग्य है , कर  तू  अच्छे कर्म।   मिले सुखद परिणाम है,चमके सच गुण धर्म।।    अच्छी करनी है  करे , किस्मत का निर्माण।  बने प्रबल है भाग्य  तब , करता जग कल्याण ।। आलस भागे दूर है , स्फूर्ति रहे है संग।   जुड़ा कर्म से भाग्य है, खिलते इसके रंग।। तुलसी ने जग से कहा , सभी चीज मौजूद। करना है इसके लिए ,  भाग दौड़  श्रम कूद।।


करना केवल कर्म है , इस पर नर अधिकार।

फल की इच्छा मत करो, गीता का यह सार।।


जैसी करनी नर करे , मिले वही परिणाम।

बुरे कर्म का फल बुरा , संतो का पैगाम।।


  जग आए अच्छे -बुरे, मनुज भोगने कर्म।

सही कर्म  का पुण्य फल, कहें ग्रन्थ सब धर्म।।


साँसें जब तक हैं चले, तब तक होते कर्म।

जगत मुक्ति तब है मिले, धारे नर जब धर्म।।


मोक्ष मार्ग जाने के लिये, करो प्रार्थना कर्म।

मन वाणी हो शुद्ध जन, करना नहीं कुकर्म।।

 

    - डॉ.मंजु गुप्ता

     मुंबई - महाराष्ट्र 


" मेरी दृष्टि में " कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण जी का उपदेश सिर्फ कर्म की व्याख्या पर आधारित है। यही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । जो समय के अनुसार कर्म में परिवर्तन हो सकता है । परन्तु कर्म अवश्य रहता है। जो व्यक्ति कर्म प्रधान जीवन यापन करता है । वहीं इंसान आगे बढ़ता है। कहते हैं कर्म कभी भी खाली नहीं जाता है । हो सकता है कि फल का स्वरूप, आप की इच्छा के अनुरूप ना हो। परन्तु फल अवश्य मिलता है।

             - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संपादन व संचालन)


Comments

  1. यह सुभाषित पूर्णतः सत्य है। यदि इरादा दृढ़ हो , उद्देश्य प्राप्ति के लिए ईमानदारी से कठिन परिश्रम किया जाये तो साधनहीन व्यक्ति भी अपने भाग्य को बदल सकता है।
    - डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया
    ग्वालियर - मध्यप्रदेश
    (WhatsApp से साभार)

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  2. संसार में कर्म के महत्व को प्रतिपादित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के अयोध्याकाण्ड की चौपाई में कहा है- "कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा ।" इसलिए मनुष्य को अच्छे कार्यों के द्वारा अपने भाग्य को न कोसते हुए जीवन की धारा को बदलने की कोशिश करना चाहिए
    - अरविंद मिश्र, भोपाल
    (WhatsApp से साभार)

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