मुनिश्री तरुणसागर जी ने अपनी पुस्तक " कड़वे प्रवचन " भाग -7 एक कार्यक्रम में मुझे आर्शीवाद के रूप में भेंट की गई। मैंने सहज रूप से स्वीकार करने के बाद पुस्तक को कई बार पढ़ा है। हर बार पुस्तक में कुछ ना कुछ नया अपने आप में परिवर्तन सा नज़र आया है। मैंने पुस्तकें बहुत अधिक पढ़ी हैं। ऐसा कभी देखने को नहीं मिला है। फिलहाल पुस्तक पर आते हैं। पुस्तक में छोटे- छोटे उपदेश दिए गए हैं। जिस में काव्य रूप अधिक देखने को मिला है। परन्तु उपदेश देते समय ऐसा कुछ प्रतीक नहीं होता है। यही तरुण जी की खासियत है। मैंने उन्हें टीवी पर भी सुना है , कार्यक्रम में भी देखा है ओर आमने-सामने बातें भी हुई है बल्कि मैंने उन के एक कार्यक्रम का संचालन भी किया है। परन्तु पुस्तक में तरूण जी का अलग रूप देखने को मिलता है। पुस्तक में कहीं ईश्वर की बात करते है कहीं गृहस्थी की , कहीं राजनीति की, कहीं विदेशों की, कहीं रामायण की, कहीं किस्मत की, कहीं जुबान की, कहीं मृत्यु की, कहीं आत्म विश्वास की, कहीं मां- बाप की, कहीं फिल्म से जीवन की तुलना , ईमानदारी की, कहीं गा...