हिन्दी - लघुकथा : उलझते - सुलझते प्रश्न

पुस्तक के लेखक श्री रूप देवगुण है जो लघुकथाकार भी है । पुस्तक को दो भागों में बांट रखा है। पहला भाग सैद्धान्तिक पक्ष , दूसरा भाग क्रियात्मक पक्ष
       पहला भाग सैद्धान्तिक पक्ष में 16 अध्याय दिये गये हैं। प्रथम अध्याय " भूमिका - कैसे अस्तित्व में आए लघुकथा के ये आलेख " में लेखक ने अपने लघुकथा साहित्य का विवरण दिया है।
        16 अध्याय में से आठ और दस न. अध्याय मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है। आठ न. अध्याय " बहुत उपेक्षित रहा है ' शीर्षक ' लघुकथा का " में लघुकथा का शीर्षक कैसा होना चाहिए। विस्तृत रूप से स्पष्ट किया है। लेखक का प्रयास सराहनीय है। दस न. अध्याय " कुछ शैलियों की मोहताज नहीं है लघुकथा " में  विभिन्न शैलियों का विवरण दिया गया है। सभी शैलियों का विवरण दिया है।
     दूसरा भाग " क्रियात्मक पक्ष " कुल आठ अध्याय दिये गये हैं । जो लघुकथाकारों की पुस्तकों की समीक्षा के रूप में है । अतः डॉ कमल चोपड़ा की " अभिप्राय " , पारस दासोत का लघुकथा संग्रह परसू , कदम बढ़ाती चूड़ियां, पुस्तक की आवाज, ईश्वर, एक और अभिमन्यु, प्रयोग, पवन शर्मा का लघुकथा संग्रह जंग लगी कीलें, मधुसूदन का संग्रह तरकश, सुरेश जांगिड़ उदय का लघुकथा संग्रह यहीं - कहीं, प्रेमसिंह बरनालवी का लघुकथा संग्रह देवता बिमार है, अनिल शूर आजाद का लघुकथा संग्रह क्रांति मर गया आदि पुस्तकों की समीक्षा की है यह लेखक की उपलब्धि है। पुस्तक को अधिकार लघुकथाकार ही पढ़ने में रूचि दिखा सकते हैं। साधारण पाठकों के लिए पुस्तक में कुछ नहीं है।

                                प्रकाशक

                      राज पब्लिकेशन हाउस

         9/ 5123 पुराना सीलमपुर ( पूर्व )

                     दिल्ली - 110031

                   प्रथम संस्करण : 2002
                                  - बीजेन्द्र जैमिनी
                                        समीक्षक

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