क्या परिवर्तन कभी पीड़ादायक हो सकता है ?
परिवर्तन तो प्राकृतिक का अभिन्न अंग है । जो हर समय , हर युग में होता रहता है । जिसे को हर स्थिति में स्वीकार करना चाहिए । जो स्वीकार करने में असमर्थ हो जाता है । वह पीड़ाग्रस्त हो जाता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
"परिवर्तन कभी भी पीड़ादायक नहीं होता है, लेकिन परिवर्त्तन का विरोध पीड़ादायक हो जाता है..।
परिवर्तन के अभाव में आई जड़ता से काई की उत्पत्ति और एक जीवंत हृदय के लिए सबसे बड़ी शत्रु हो जाती है। जब तब परिवर्तन से असुविधा हो सकती है फिर भी सूर्य में परिवर्त्तन आने से हमें धरती मिली।
हर क्षेत्र में समय-समय पर हुए परिवर्तन से ज्ञान विज्ञान आविष्कार में विस्तार हुआ।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
जीवन एक परिवर्तनशील हैं, जिसमें अनेकानेक उतार-चढ़ाव आते-जाते रहते, असहाय घटनाओं को अंजाम, प्रत्यक्ष हो अप्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं। पारिवारिक, समसामयिक, राजनैतिक परिवर्तन पीड़ादायक भी सकता हैं। जिससे निकलने में काफी लम्बा समय व्यतीत करना पड़ता हैं और यही से प्रारंभ होता हैं, मानसिक-शारीरिक यातनाओं का हास्य-परिहास सिलसिलेवार का परिदृश्य? परिवर्तन ऐसा हो जो कष्टदायक न हो?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
प्यारी प्यारी ओ कारी बदरिया
मत बरसो रे मोरी डगरिया
परदेस गये हैं मोरे संवरिया मोरा नरम कलेजा जलाये रे...
सामान्यतः सावन का महीना और कारे बदरा एक प्राकृतिक परिवर्तन है जो सामान्यजन को उमंग, उत्साह और तरंग देते हैं वहीं विरहन का कलेजा जलाकर पीड़ा और वेदना देते हैं l अर्थात परिवर्तन के परिणाम हमारे मन की अनिभूति पर निर्भर करते हैं या यूँ कहे कि मानव जीवन में शांति --अशांति का केंद्र हमारा मन है l हम शरीर मन और आत्मा से बने हैं l मन तथा आत्मा ही हमारे शरीर को शांति -अशांति, सुख -दुःख का अहसास करातेहैं l
लेकिन परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है और स्रष्टि का चक्र है l हमें इसके साथ तालमेल रखना ही होगा l नदी का हर मोड़ रूपी परिवर्तन के साथ बहना ही उसके लिए लाभदायक परिवर्तन है उसी प्रकार हमारा शरीर /जीवन भी समय के साथ परिवर्तित होता रहता है, जैसे -माता -पिता, मित्र -मित्र, गुरु -शिष्य आदि के साथ l परिस्थिति और समय के साथ अनुकूल परिवर्तन हमें करना होता है l हाँ, इतना अवश्य है कि परिवर्तन का अंतराल थोड़ा पीड़ादायक अवश्य होता है l
वर्तमान में परिवर्तन के परिणाम पीड़ादायक हो रहे हैं क्योंकि "स्व "में परिवर्तन कर" स्व +तंत्र "बनने की अपेक्षा पर... स्थिति अर्थात दूसरों की स्थिति के अनुगामी बनकर परवश हो गये हैं l हम अपने ऊपर नियंत्रण ही नहीं रख पाते हैं तो हमारा रिमोट दूसरों के हाथों में ही होगा और हर परिवर्तन का परिणाम पीड़ादायी ही होगा l
चलते चलते ----
यदि हम परिवर्तन के लिए तैयार नहीं है तो पिछड़े जाने /नष्ट हो जाने की संभावना अधिक है लेकिन आशा की अंतिम चुस्की और परिवर्तन की पहली गुदगुदी दिसंबर ही तो है l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बहुत अच्छा विषय है इसपे आशा करता हूँ सर्वश्रेष्ठ विचार आएंगे क्योंकि परिवर्तन ही सच्चे अर्थों में जीवन है, जिसपल परिवर्तन न हुआ उस के आगे का पल आप मैं या कोई भी देख ही नही पाएंगे ।
लेकिन परिवर्तन सदा से प्राथमिक रूप से पीड़ादायक होते हैं परिवर्तन को आत्मसात करना हर एक के बस की बात नहीं है परिवर्तन के साथ में जीना परिवर्तन को समझना परिवर्तन को पीना परिवर्तन को ओढ़ना , बिछौना और अपने जीवन को उसके अनुरूप ढाल लेना ही परिवर्तन के साथ सही मायनों में दोस्ती करना या उस परिवर्तन से सुख प्राप्त करने का आनंद प्राप्त करने का तरीका है यह जीवन क्षण क्षण में परिवर्तन की प्रक्रिया में संलिप्त है एक भी पल ऐसा नहीं जाता जहां पर परिवर्तन नहीं हो रहा है हो सकता है हमें वह दिखता नहीं है, हो सकता है वह हमारी समझ में नहीं आता है , हो सकता है हम उसके साथ में सात्मीकरण बिठाना ना जानते हो ,
मगर विशेषता इस बात की है कि परिवर्तन होना ही है अब यह आपके मानस के ऊपर निर्भर करता है आप इसको पीड़ा स्वरूप लीजिए या आप इसको क्रियान्वित रूप से हृदय से आत्मा से स्वीकार करके इसके साथ में मेरी तरह ।।
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
परिवर्तन परिवर्तन होता है. यह लाभदायक भी हो सकता है, पीड़ादायक भी, हां परिवर्तन का विरोध अवश्य पीड़ादायक होता है. अगर परिवर्तन को मन से स्वीकार कर लिया जाए तो परिवर्तन पीड़ादायक नहीं होता. परिवर्तन पीड़ादायक तभी होता है, जब हम निराश होकर आशा का दामन छोड़ बैठें. जीवन में कभी भी आशा को न छोड़ें क्योंकि आप कभी यह नहीं जान सकते, कि आने वाला कल आपके लिए क्या लाने वाला है. काली अंधियारी रात के बाद उजियारे सूर्य का चमकना भी परिवर्तन है, सुख के बाद दुःख आता है, तो दुःख के बाद सुख भी आ सकता है. समय, प्रकृति, अवस्था सब परिवर्तनशील हैं. इसलिए परिवर्तन को पीड़ादायक न मानकर उसमें ही नई संभावनाएं खोजी जाएं तो परिवर्तन सुखदायक हो सकता है.
- लीला तिवानी
दिल्ली
परिवर्तन सृष्टि का नियम है। सृष्टि जब भी परिवर्तन करती है तो उसके कुछ निहितार्थ होते हैं और यदि तत्समय वह परिवर्तन कुछ पीड़ा भी देते हैं तो भविष्य में उसके सकारात्मक परिणाम होते हैं।
इसी प्रकार मानव जीवन में भी परिवर्तन की लहर क्रमश: चलती रहती है। मानव के द्वारा किये गये परिवर्तन समय की आवश्यकतानुसार किए जाते हैं जिनके परिणाम का आकलन तत्काल नहीं किया जा सकता। परन्तु यह निश्चित है कि प्रत्येक परिवर्तन स्वयं में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही भाव समेटे रखता है।
इसलिए जिस प्रकार यह पूर्णतः सही नहीं है कि परिवर्तन लाभकारी ही हो, उसी प्रकार परिवर्तन पीड़ादायक ही हो यह भी शत प्रतिशत सही नहीं है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
परिवर्तन मुख्यतः दो प्रकार के माने गए हैं- एक प्रकृति द्वारा और दूसरा मनुष्य( स्वयं) द्वारा ।
प्रकृति द्वारा परिवर्तन भले ही दुखदाई हो परंतु मनुष्य को स्वीकार करना ही पड़ता है।
आत्म परिवर्तन, समाज परिवर्तन मनुष्य की सोच पर निर्भर करता है ।
समाज में मनुष्य कई बार अपनी खुशी से परिवर्तन भी करता है, प्रारंभिक परिणाम भले ही उसके विरुद्ध हो परंतु धीरे-धीरे सामान्य होता जाता है।इसी प्रकार मानव प्रयासानुरूपू किया गया कोई भी परिवर्तन पीड़ादायक तो हो सकता है परंतु बाद में उसी के अनुरूप स्वयं को ढालना पड़ता है, उसे स्वीकार करना पड़ता है।
इसके अलावा यह हम सभी जानते हैं कि प्रकृति सदैव परिवर्तनशील रही है ।क्योंकि प्रकृति मानव की चिर संगिनी रही है इसीलिए हमेशा मानव की प्रेरणादाई भी बनी रही है ।सृष्टि में कुछ भी स्थिर नहीं है ।परिवर्तन सृष्टि का अकाट्य नियम है । जो आज है वह कल नहीं है हर शाम के बाद दिन आता है वर्ष में ऋतुएं परिवर्तित होती है । सुख-दुख की छांव धूप सदा मनुष्य के साथ चलती है।
अतः हमें चाहिए कि वक्त रहते अपने आप को सही परिप्रेक्ष में बदल डाले और बदलाव भी इस तरह का होना चाहिए जो समाज में एक सकारात्मक सोच पैदा करें ,और अपना बहुमूल्य समय समाज की उन्नति की ओर लगाएं ।हमारा बदलाव सही होगा तो समाज भी उसी के अनुसार परिवर्तित होगा। यह भी मानना होगा कि परिवर्तन से ही विकास होता है परिवर्तन के साथ नई चीजें अविष्कृत होती है, नए सिद्धांत व नियम आते हैं ।अतः परिवर्तन से ही प्रगति के नित नए आयाम प्रतिमान स्थापित होते हैं।
यद्यपि किसी भी प्रकार के परिवर्तन में प्रारंभिक समस्याएं अवश्य आती है ,तथापि समय अनुरूप परिवर्तन, समस्याओं का समाधान ही खुशहाल जीवन का रहस्य और सफलता का आधार माना गया है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
परिवर्तन तो परिवर्तन ही होता है। उसे पीड़ादायक और पीड़ा रहित अर्थात सुखद एवं दुखद परिवर्तन की संज्ञा दी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और प्राकृतिक परिवर्तन से ही ऋतु परिवर्तित होती है। जैसे वृक्ष की टहनियों से पत्तों का झड़ना और उसके उपरांत उन्हीं टहनियों से अंकुर का फूटना भी एक प्राकृतिक परिवर्तन है। ऐसे ही दिन रात में परिवर्तित होती है और रात दिन में परिवर्तित होता है और दिन महीनों में एवं महीने वर्षों में परिवर्तित होकर सदियां व युगों में बदल जाते हैं। उसी प्रकार सर्दी-गर्मी में और गर्मी-सर्दी में परिवर्तित होते हैं। जिन्हें सुखद अथवा दुखद परिवर्तन की संज्ञा दी जा सकती है।
यही नहीं जीवनचक्र का बचपन से यौवन तक के परिवर्तन में पीड़ा रहित और यौवन का बुढ़ापे में परिवर्तित होना पीड़ादायक माना जाता है। इसके अलावा यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है कि स्त्री का स्त्री से मां में परिवर्तित यात्रा भी दोनों अनुभवों को उजागर करता है। क्योंकि प्रसव पीड़ा को सहन करने को पीड़ादायक परिवर्तन का अनुभव और शिशु प्राप्ती का एहसास पीड़ा रहित परिवर्तन कहा जाता है।
अतः कहने को शरीर का उत्पन्न होना और पांच तत्वों में विलीन होने को भी परिवर्तन ही कहा जाता है। जो शरीर से शव में परिवर्तित हो जाता है और राम नाम सत्य हो जाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
परिवर्तन कुदरत का नियम है और अटल सच्चाई है। परिवर्तन से ही जीवन महकता है। नदी की भांति बहता जीवन ही सुहावना होता है। जैसे एक जगह ठहरा पानी बदबू मारने लगता है उसी प्रकार अगर जीवन में कोई परिवर्तन ना हो तो जीवन नीरस हो जाता है। परिवर्तन के लिए हमने पेड़ों,धरती और आसमान को नहीं बदलना बल्कि मानव मन को बदलना पड़ता है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जिन से हमारे जीवन -यापन में परिवर्तन आ जाता है। जब यह परिवर्तन सुखद हो तो हमें अच्छा लगता है लेकिन कई बार यह परिवर्तन कठिनाइयों और मुश्किलों भरा होता है। तब हमें यह परिवर्तन पीड़ा दायक लगता है। समय का पहिया घूमता रहता है। धीरे-धीरे हम उस परिवर्तन के आदी हो जाते हैं तो हमें उतना पीड़ा दायक नहीं लगता। हम सकारात्मक और रचनात्मक सोच से उस परिवर्तन को वश में कर लेते हैं।
अगर हम प्रकृति की ओर देखें तो उस में आते परिवर्तन हमें बहुत बढ़ी सीख देते हैं। जैसे पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं। पेड़ इसी भाव को लेकर अपने ठूँठ के साथ जीवित रहता है कि एक दिन फिर परिवर्तन होगा। वह हरा-भरा हो जाए गा।उस को भी नये पत्ते, फूल और फल लगेंगे । तितलियाँ और भँवरे आकर उस को राग सुनाएंगे।
मौसमों का परिवर्तन भी हमें अच्छा लगता है। कभी गर्मी, कभी सर्दी, बसंत और पतझड़ आदि की अपनी महत्ता है। यह बात भी ठीक है कि अधिक सर्दी गरीबों के लिए आफत होती है। यह परिवर्तन उनके लिए पीड़ा दायक होता है। कभी बाढ़, कभी सूखा जैसे परिवर्तन भी पीड़ा दायक होते हैं।
विज्ञान के अविष्कारों से हमारे जीवन में बहुत परिवर्तन आए हैं। हमारा जीवन ज्यादा सुखी हो गया है अब घंटों का काम मिनटों में हो जाता है। अब दूरियाँ मिट गई हैं।अब पूरा विश्व एक ग्लोबल गाँव है। यह परिवर्तन सुखद अनुभव देता है। इस लिए हम कह सकते हैं कि हरेक परिवर्तन कभी पीड़ा दायक नहीं हो सकता।
अपनी सकारात्मक सोच से हालातों का मुकाबला करना चाहिए। "अच्छे दिन "आने की सोच को अपनाकर जीवन-यापन करना चाहिए।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
परिवर्तन पीड़ा दायक ही होता है। या यों कहें आनंद और पीड़ा दोनों का मिश्रित रूप परिवर्तन है। पुराने को खत्म कर जब हम उसके जगह नए को लाते हैं तो पुराने के जाने का या उसके नष्ट होने का दर्द तो कुछ न कुछ तो ही रहता है। लेकिन ये भी सत्य है कि जसबतक हम पुराने को नहीं हटाएंगे तबतक नया कैसे लाएंगे। ये बात हर क्षेत्र में लागू होती है। चाहे वो कोई भी जगह हो घर, दफ्तर, समाज, देश दुनिया इत्यादि। परिवर्तन करने के लिए कुछ तोड़ फोड़ करना , हटाना , बदलना इत्यादि क्रियाएं करने के बाद ही परिवर्तन हो सकता है। इसलिए परिवर्तन में पीड़ा तो होगी ही। बिना पीड़ा के परिवर्तन हो नहीं सकता। कुछ मामलों को छोड़ कर।
सड़क बनाने के लिये पेड़ काटने पर दर्द। लेकिन परिवर्तन के लिए यह जरूरी हो जाता है। पुराने मकान को तोड़ नए मकान बनाना। नया दोस्त बनाने के लिए पुराने से दोस्ती खत्म करना ये सब पीड़ादायक परिवर्तन हुए। एक कक्षा से दूसरे कक्षा में जाना ये खुशी वाला परिवर्तन हुआ। अपनों को छोड़ कहीं दूसरे जगह जाना ये भी एक तरह का परिवर्तन है जो पीड़ा दायक है। इस तरह बहुत से परिवर्तन हैं जो पीड़ा दायक हो सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि परिवर्तन कभी पीड़ा दायक हो सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
अगर परिवर्तन गुणात्मक है तो पीड़ादायक नहीं होता गुणात्मक परिवर्तन हमेशा सही रास्ते की ओर जाती है सही रास्ते से ही आदमी सुख का अनुभव करता
है। अगर परिवर्तन ह्रास की ओर है। तो जरूर जिंदगी समस्या ग्रस्त होगा और समस्या में कोई जीना नहीं चाहता अतः ह्रास परिवर्तन पीडा़दाई होता है। गुणात्मक परिवर्तन कभी पीड़ादायक नहीं होती।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
परिवर्तन ही जीवन का नियम है, परिवर्तन को स्वीकार करना जीवन को नई दिशा देने जैसा होता है तथा परिवर्तन उन्नति की और अग्रसर करता है,
लेकिन परिवर्तन सोच पर निर्भर करता है अगर सोच सकारात्मक हो तो सब कुछ सही चलता है,
तो आईये आज इस बात पर चर्चा करते हैं कि क्या परिवर्तन कभी पीड़ादायक भी हो सकता है?
मेरा मानना है कि परिवर्तन कभी भी पीड़ादायक नहीं होता केवल परिवर्तन का विरोध पीड़ादायक होता है
यह हमारी सोच पर निर्भर करता है अगर सोच नेगटिव हो तो परिवर्तन भारी पड़ सकता है इसलिए सोच में परिवर्तन संभव है यदि हमारे अंदर परिवर्तन की चाह हो तो,
क्योंकी प्रत्येक व्यक्ति आजकल अपने विशिष्ट संस्कारों और धाराणा़ओं के अधीन है इसके चलते उसकी सेच दृढ़ सी हो गयी है और अचानक किसी परिवर्तन की बात पर वह भड़क उठता है
चाह कर ़भी खुद को बदल नहीं पाता इसलिए किसी को परिवर्तित होने के लिए कहना उसकी सोच व अंह के विरुद लगता है,
मगर परिवर्तन का मतलब पहले खुद परिवर्तन फिर विश्व परिवर्तन लेकिन हम खुद बदलते नहीं और दुसरों को बदलना चाहते हैं, इस का कारण हम कमजोरी स्वंय के बदले दुसरों में देखते हैंऔर कहते हैं पहले वो बदले फिर मैं बदलूं लेकिन यह संभव नहीं क्योंकी हमारी सोच में परिवर्तन नहीं किया,
अगर हम चाहें हम बदलेंगे तो दूनिया बदलेगी ते हमें अपनी सोच को बदलना होगा हमेंअपना नजरिया बदलना होगा क्योंकी नजरें बदलेंगी तो नजारे बदल जाएेंगे,
इसलिए अगर सोच में परिवर्तन आ जाए तो जीवन जीने का आनंद और महत्व ही कु़छ और होगा।
लेकिन यह याद रहे परिवर्तन न होने से विकास थम जाता है, परिवर्तन का एक ही उदेश्य होता है बेहतर को पाना इसलिए अगर आप जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं व कुछ बेहतरीन बनना चाहते हैं ते आपको खुद को बदलना होगा,
इसलिए परिवर्तन कभी पीड़ादायक नहीं होता बल्कि फलदायक ही होता है
आखिर में यही कहुंगा इन्सान में दुखी होने के दो प्रमुख कारण हैं,
दुसरों सेअत्याधिक अपेक्षा रखना व
खुद को बदलने की कोशिश न करना।
इसलिए किसी भी व्यक्ति की बात बुरी लगे तो दो तरह से सोचो, यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण हो तो बात को भूल जाओ और बात महत्वपूर्ण हो ते व्यक्ति कै भूल जाओ,
परिवर्तन दर्द पैदा नहीं करता लेकिन इसके स्वीकार करने का तरीका मौलिक है,
इसको प्राप्त करने के लिए अपने आप में आत्मविश्वास की गहराई से काम करना जरूरी है,
यह पीड़ादायक उन्हीं लोगों को लगता है जो मोह माया के जंजाल में फंसे होते हैं और किसी रिश्ते में आए हु़ए परिवर्तन से हताश व क़भी न अंत होने की सोच से परेशान रहते हैं क्योंकी किसी से जुदा हेने का गम इतना आसान नहीं होता।
इसलिए परिवर्तन कभी पीड़ादायक नहीं होता है
केवल परिवर्तन का विरोध पीड़ादायक होता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
परिवर्तन संसार का नियम है। जीवन में बदलाव होते रहने चाहिए और समय परिस्थिति के अनुसार हमें अपने में परिवर्तन करते रहना चाहिए हमें जा बियर स्मरण रखना चाहिए कि हमारे जीवन में आने वाली परिस्थितियां हमारे अनुकूल हो या आवश्यक नहीं है। इसलिए हम समय के अनुसार परिवर्तन स्वीकार करने में किसी तरह की परिस्थिति या झिझक नहीं होनी चाहिए। कभी-कभी परिवर्तन हमारे जीवन में खुशियां लाता है तो कभी-कभी तकलीफों से भर देता है। परिवर्तन खुश में भी हो सकता है और पीड़ादायक भी हो सकता है। यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करता है। परिवर्तन हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और अपरिहार्य घटक है। आप चाहे या ना चाहे परिवर्तन घटित होता ही है आपकी सुकीर्ति या स्वीकृति के बिना।
आपकी जानकारी अज्ञानता के बावजूद जीवन में सब कुछ अनिश्चित है। शिवा एक बात के जो सदा होगा और वह परिवर्तन। अब जन्म से लेकर मृत्यु तक अनगिनत परिवर्तनों से गुजरते हैं आपकी अपनी इच्छा से या इसके विरुद्ध इसे कोई नहीं रोक सकता परिवर्तन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है जीवन में सार्थक और कल्याणकारी परिवर्तन को इनकार करने का मतलब है कि जीवन और प्रगति से इनकार करना। इसका कोई विकल्प नहीं है इसलिए सभी जरूरी परिवर्तनों को स्वीकार करना और उस में भाग लेना जीवन की गति प्रगति हो बेहतरीन प्रदान करना है।जीवन परिवर्तनों की एक विचार और अंतहीन प्रक्रिया है इसे स्वीकार कीजिए इससे भागी मत। यदि शारीरिक रोग मानसिक दुखिया अध्यात्मिक असंतोष है तो परिवर्तन की चाहत स्वाभाविक है। हर व्यक्ति स्वास्थ्य सुख शांति संतोष तृप्ति चाहता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
"परिवर्तन संसार का नियम है"दिन के बाद रात,रात के बाद दिन अनन्त काल से परिवर्तन शील हैं । इसी प्रकार मौसमी फेर-बदल यथा गर्मी,सर्दी,बसंत , बरसात, शिशिर, हेमंत एक निश्चित समय सीमा तय कर आते-जाते रहते हैं। ठीक उसी प्रकार जीवन के हर पहलू और हर पड़ाव पर एक नया परिवर्तन आता है। बहुत बार परिवर्तन सुखदाई होते हैं अगर वो हमारे पक्ष में हों परन्तु कई बार परिवर्तन पीड़ादायक भी हो सकता है अगर वो हमारी जरूरत या इच्छा के विरुद्ध होता है। ऐसे समय में संयम रखना श्रेयस्कर होता है क्योंकि जो बात हमें आज पीड़ा दे रही है हो सकता है वो हमे आने वाले समय के लिए तैयार कर रही हो और हमें बाद में ये एहसास हो कि जिस परिवर्तन को हम बुरा समझते थे वो वास्तव में हमे एक कदम और तरक्की की ओर ले जाने वाली है। इसलिए परिवर्तन से घबराना नहीं चाहिए वरन खुले हाथों से हमें बदलाव को स्वीकार करना चाहिए।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
कभी हो भी सकता है पर परिस्थितियों पर आधारित है ! परिवर्तन किन परिस्थितियों में और किसमें आया है !परिवर्तन मनुष्य के स्वभाव में कार्य में या किसी ठोस पदार्थ में अथवा पर्यावरण में ! भिन्न भिन्न स्थिति में यह भिन्नता लिए दर्शाता है !
वैसे परिवर्तन प्रकृति का नियम है फिर चाहे किसी भी रुप में किसी में भी हो ! आज ग्लोबल वार्निंग हमें मिल रही है ! गर्मी की वजह से बर्फीले पर्वत पिघलने लगे हैं बहुत ही तेजी से परिवर्तन हो रहा है और यह खतरे की घंटी है ! पर्यावरण पूर्ण रुप से दूषित हो रहा है ! शुद्ध हवाएं जहरीली गैस में परिवर्तित हो रही है !श्वांस लेना दूभर हो गया है इन सब से जो खतरा होगा वह भयानक पीडा़दायक होगा !
परिवर्तन मानव के स्वभाव में आता है, वह किसी का भला करता है ,किसी को कष्ट नहीं देता तब तो पीडा़दायक नहीं होता किंतु विपरीत होने से पीडा़दायक हो सकता है !
आज प्रकृति में जो भी परिवर्तन आया है वह पीडा़दायक है !ताजा परिवर्तन जो किसान कानून में लगाया है उनके हित में है किंतु विरुद्ध पार्टी वालों ने उसे पीडा़दायक बना दिया है ! परिवर्तन हमें क्या देती है परिस्थिति ही बया कर सकती है !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, यहां कुछ भी स्थाई नहीं है । जीवन के हर क्षेत्र में में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं ।
कुछ परिवर्तन सकारात्मक तथा कुछ नकारात्मक होते हैं । सकारात्मक जैसे आगे बढ़ना, उन्नति करना, त्यौहार का आना, ॠतुओं का बदलना आदि से हमें आनंद की अनुभूति होती है वहीं अवनति, प्राकृतिक आपदाएं, बीमारियां, किसी कारण शारीरिक अपंगता आदि नकारात्मक परिवर्तन हैं जो हमें निश्चित रूप से पीड़ा पहुंचाते हैं ।
वर्ष 2020 में जो कोरोना महामारी ने जीवन के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन किया, वो निश्चित रूप से पीड़ादायक है ।
भौतिक ही नहीं, मानसिक परिवर्तन भी होते रहते हैं । विचारों में भी बदलाव होते रहते हैं । हमारी सोच भी हमारी पीड़ा को प्रभावित करती है ।
इस प्रकार सभी परिवर्तन पीड़ादायक नहीं कहे जा सकते ।
- बसन्ती पंवार,
जोधपुर - राजस्थान
परिवर्तन तो जग की लीला है किसी के लिए पीड़ादायक है तो किसी के लिए मनोरंजक है भिन्न भिन्न प्रकार के व्यक्ति इस समाज देश में निवास करते हैं तरह तरह की आवश्यकताएं हैं तरह तरह की परिस्थितियां हैं सकारात्मक परिस्थितियां आनंद पहुंच जाएगी नकारात्मक परिस्थितियां पीड़ादायक बन जाएगी पर जब परिवर्तन की शब्द की चर्चा कर रहे हैं तो वह भी परिवर्तन हो जाएगा पीड़ादायक भी बदल जाएगा बस अपनी सोच में सकारात्मकता बनाए रखना है आज कोरोनावायरस हो जाएगा आज अतिवृष्टि है तो कल अनावृष्टि भी हो सकता है दोनों स्थिति में पीड़ादायक है पर फिर दोनों परिस्थिति में परिवर्तन होगा पीड़ा खत्म हो जाएगी इसलिए परिवर्तन पीड़ादायक नहीं है बल्कि एक नया परिवेश का संकेत है
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " परिवर्तन से ही क्रान्ति आती है । जिससे विकास को नई गति मिलती है । बिना परिर्वतन के कुछ भी हासिल नहीं होता है । जो परिर्वतन को समझे नहीं पाता है वह पीड़ादायक जीवन जीता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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