किसान अन्दोलन का समाधान सिर्फ सार्थक संवाद से ही सम्भव होगा ?

सर्दी का मौसम शुरू हो गया है । ऐसे में खुले आसमान के नीचे किसान अपनी लड़ाई खुद लड़ रहा है । सरकार भी कोई ना कोई रास्ता निकालने का प्रयास कर रही है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
कोई भी आन्दोलन भारतीय लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया मानी गयी है। किसान आन्दोलन भी स्वाभाविक प्रक्रिया है। अक्सर देखा जाता है कि कई आन्दोलन समस्या के समाधान के बजाए गुमराह कर दिया जाता है... जो आन्दोलन के साथ धोखा करते हैं उनको चेताया जाना चाहिए...
अगर
किसानों को मोहरा बनाने की साजिश हो रही है, उन्हें बरगलाने की साजिश की जा रही है तो सरकार को जल्द से जल्द इसका निवारण ढूँढ लेना चाहिए। किसान आन्दोलन का समाधान सिर्फ सार्थक संवाद से ही सम्भव होगा । वरना पराली सा देश भी जलने लगेगा।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
     अन्नदाता वर्तमान समय में राजनैतिक बेड़ियों में जकड़ता जा रहा हैं। जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। ऐसा समय आ गया हैं, जहाँ  किसानों को समस्त ॠतुओं में अन्य प्रकार की फसलों को तैयार करना पड़ता हैं तथा असहाय जल धाराओं, प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं घटित होने के भारी भरकम नुकसान उठाना पड़ता हैं। जब शासन-प्रशासन उनकी विकृत परेशानियों को नहीं सुनता तब उन्हें आन्दोलनों की राहों पर जाता हैं, जहाँ जन-धन-शरीर त्याग, पुलिस प्रशासन के कोप भाजन बनता हैं। युद्ध स्तर पर घेराव किया जाता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं। इन विषमताओं के बीच किसानों का आन्दोलन समाधान का सिर्फ सार्थक संवादों के माध्यम से ही संभव हो सकता हैं अन्यथा टकराव कोई विकल्प नहीं हैं, जिसमें अंत किसी का भी हो समस्याओं का ही नकारात्मक फैसला भी हो जाता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
किसान आंदोलन के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो यह बहुत पुराना है। विश्व के सभी भागों में अलग-अलग  स्थानों पर अपनी दशा सुधारने के लिए समय-समय पर किसानों ने कृषि नीतियों में परिवर्तन करने के लिए आंदोलन किए हैं। आज भारत के किसान की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है कर्ज के बोझ में दबा जा रहा है ।वर्तमान समय में कृषि में लागत बढ़ रही है और आमदनी कम होती जा रही है ,आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं । भारतीय किसानों की हालत में सुधार किया जाना आवश्यक है। भारतीय किसान यह मानता है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून( उपज व्यापार एवं वाणिज्य कानून 2020 अर्थात संवर्धन एवं सुविधा)  किसान  मूल्य  आश्वासन अनुबंध  एवं कृषि सेवाएं कानून ( सशक्तिकरण एवं संरक्षण) आवश्यक वस्तु( संशोधन) कानून। इन तीनों को रद्द करने की मांग किसान कर रहे हैं। क्योंकि ये उनके हक में नहीं है उनके कल्याण में नहीं है इसलिए उनको रद्द किया जाना चाहिए। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक उनकी मुख्य मांगों में से एक है "सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीद को अपराध घोषित करें और एमएसपी पर सरकारी खरीद लागू रहे" प्रधानमंत्री द्वारा आश्वासन भी दिया जा चुका है की एमएससी की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी खरीद जारी रहेगी ।   लेकिन यह बात सरकार बिल में लिख कर देने को तैयार नहीं है । सरकार की दलील है कि इससे पहले के कानूनों में भी लिखित में यह बात कहीं नहीं थी ।इसलिए नए बिल में इसे शामिल नहीं किया गया है । अतः किसान आंदोलन का समाधान सिर्फ सार्थक संवाद से ही संभव कहां हो सकता है ? भारत में 85 फ़ीसदी छोटे किसान है जिनके पास खेती के लिए 5 एकड़ से कम जमीन है। एसएमपी  से नीचे खरीद को अपराध घोषित करने पर भी विवाद हल होता नहीं दिखता, तीनों कानून को वापस लेना ही एकमात्र रास्ता है    सरकार किसानों को डायरेक्ट फाइनेंशियल सपोर्ट भी दे सकती है जैसा किसान सम्मान निधि के जरिए किया जा रहा है। और किसान  दूसरी फसलें भी उगाएं जिनकी मार्केट में डिमांड है । अंत में  मेरी यह राय है कि किसान  देश की रीढ़ की हड्डी के समान है। रीड की हड्डी ही स्वास्थ्य नहीं होगी तो पूरा शरीर कैसे चलेगा। भारत का कल्याण किसानों पर ही निर्भर करता है। सिर्फ सार्थक संवाद  से ही इनकी समस्याओं का समाधान नहीं है उसे वास्तविक अमलीजामा पहनाना  होगा । उनके हित को ध्यान में रखकर ही कानून बनाने होंगे।
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लोकतन्त्र में आन्दोलन जनता का अधिकार है। सरकारें जब बात करने से नहीं सुनती तो जनता आन्दोलन का रास्ता अपनाती है। जबकि सरकार और आन्दोलनकारी दोनों ही जानते हैं कि समस्या का समाधान अन्ततः संवाद से ही निकलता है। 
किसान आन्दोलन दस दिन से जारी है। लेकिन समाधान अभी नहीं निकला।  संवादहीनता की स्थिति किसी भी आन्दोलन को उग्र स्वरूप की ओर धकेलती है क्योंकि यह तो निश्चित है कि समाधान संवाद से ही निकलेगा। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
 कोई भी समस्यात्मक  घटना हो संवाद से ही समाधान तक पहुंचा जाता है किसान आंदोलन का समाधान सार्थक संवाद से संभव हो सकता है क्योंकि संवाद करने से न्याय के प्रति दोनों पक्षों में ध्यान जाता है जब न्याय दोनों पक्षों को स्वीकार होता है। समस्या का समाधान हो जाता है।
 समाधान तक पहुंचते हैं तो दोनों पक्ष सुखी होते हैं यही न्याय है। न्याय सार्थक संवाद से ही स्पष्ट होता है स्पष्ट होने से गलतियां नहीं होती हर कार्य न्याय पूर्वक हो पाता है। इसीलिए किसान आंदोलन का समाधान भी सार्थक संवाद से हो सकता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हो कैसी भी परेशानी, कैसा भी हो  विवाद।
 उनको हल कर सकता केवल, एक सार्थक संवाद।।
समस्या समाधान का एकमात्र उपाय होता सार्थक संवाद। किसान आंदोलन का हल निकलेगा तो संवाद से ही, लेकिन यह संवाद तब सार्थक होगा,जब  किसान अपनी जिन मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं उनके प्रति  कितनी संवेदनशील हो। यहां सरकार को स्वयं आगे बढ़कर बताना होगा, किसानों की शंकाओं को दूर करना होगा। यह समझाना होगा कि जिस किसान बिल का विरोध किया जा रहा है यह उनके ही हित में है। यदि ऐसा नहीं होता तो यह आंदोलन और बढ़ेगा ही। जब सरकार बार-बार यह कह रही है किसान बिल किसानों के पक्ष में है तो फिर वह किसानों को बातचीत के माध्यम से यह बात क्यों नहीं समझा पा रही कि उनकी आशंकाएं निर्मूल है। इस सब में कहीं ना कहीं कुछ तो है जो छुपाया जा रहा है, वरना किसान आंदोलन की राह पर न चलते और ठंडे मौसम में सड़कों पर न रहते। जरूर उनके सामने ऐसी समस्या है,मन में शंका है जिसे सरकार ने दूर करने में कोताही बरती है। इस समस्या, शंका को सार्थक संवाद से ही दूर किया जा सकता है। जिसकी पहल स्वयं सरकार को करनी होगी। पिछले 5 दिन की वार्ता में भी कोई सुखद हल न निकलना इस बात का संकेत है कि किसानों को समझा पाने में वार्ताकार नाकाम साबित हुए हैं।
- डॉ अनिल शर्मा अनिल
 धामपुर -उत्तर प्रदेश
किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से ही सम्भव हो पाता है। क्योंकि समस्या वहीं उत्पन्न होती है जहां विचारों का मिलाप नहीं होता और जिसके चलते पक्ष, विपक्ष दो दल बन जाते हैं । और इन दलों में अपने अपने पक्ष को लेकर  विद्रोह पैदा हो जाता है। और दोनों दल अपनी अपनी बात मनवाने हेतु गलत हथकण्डे अपनाते हैं। जिसके चलते देश की आर्थिक व सामाजिक हानि होने लगती है। कई बार तो जानें भी चली जाती हैं फिर भी कोई दल झुकना नहीं चाहता और जब बात अहम पर आ जाती है तो स्थिति और भी भयंकर हो जाती है।
बस किसान आन्दोलन की भी यही स्थिति है।इसलिए सरकार व किसानों के प्रतिनिधि को बैठकर आपसी बातचीत करनी चाहिए और दोनों को हर पहलू पर बैठकर चिन्तन मन्थन करना चाहिए नहीं तो यह समस्या एक विकराल रूप ले लेगी।
- ज्योति वधवा "रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
किसान आंदोलन का समाधान सिर्फ सार्थक संवाद से ही संभव होगा यह बात बिल्कुल ही सही है। हालांकि कृषि बिल को लेकर 9 दिन बीत गए हैं और किसी कानूनों के खिलाफ पिछले 9 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों ने अपना रुख और सख्त कर लिया है। वही यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। शीर्ष कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें दिल्ली एनसीआर पर जमे किसानों को हटाने की मांग की गई है। किसानों को डटे रहने से दिल्ली और एनसीआर में दिनभर जाम लगे रहता है। किसानों ने केंद्र सरकार के साथ बातचीत के 1 दिन पहले चेतावनी दी है कि अगर तीनों कृषि कानून को वापस नहीं लिया गया तो 8 दिसंबर को भारत बंद करेंगे और दिल्ली जाने वाले रास्ते रोकेंगे। वहीं दूसरी ओर हरियाणा में भाजपा के सहयोगी जेपीपी ने कहा कि किसानों पर दर्ज केस वापस हो। सिंधु सीमा पर महापंचायत के बाद किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा कि सरकार को हमारी मांगे स्वीकार करनी होगी।हरविंदर सिंह लखावत ने कहा कि 8 दिसंबर को भारत बंद बुलाएंगे। सभी टोल पर कब्जा कर लेंगे दिल्ली की बाकी बची सड़कों को ही बंद कर देंगे। किसान आंदोलन का विरोध अब झारखंड में भी दिखने लगा है। पिछले 3 दिसंबर को जमशेदपुर में सिख समाज की ओर से विरोध मार्च निकाला गया था जिसमें प्रधानमंत्री के नाम मांगपत्र 
उपायुक्त के माध्यम से दी गई थी, इसमें किसी कानून को वापस लेने की मांग की गई है। किसानों का कहना है कि इस बिल से किसान मजदूर बन जाएंगे। कुछ किसान संगठन कृषि बिल में संशोधन की मांग कर रहे हैं तो कई नेता इस कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। बाहरहाल जो भी हो किसान कानून का समाधान वार्ता से ही संभव हो सकता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
किसी भी समस्या का समाधान सार्थक संवाद से सम्भव हो सकता है। जब भी कोई नया कानून बनता है तो उससे प्रसन्न और अप्रसन्न दोनों ही पक्ष होते हैं। अप्रसन्न पक्ष के साथ सार्थक संवाद स्थापित करके उनकी बातों को धैर्य से सुना जाना आवश्यक है। कानून हमेशा जनता के लिए होते हैं नाकि जनता कानून के लिए। किसान आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे किसान नेताओं को धैर्य से सुना जाए और उस पर विश्लेषण किया जाये। इसी प्रकार आन्दोलन कर रहे किसान इस नये कानून के पीछे की मंशा को समझें और फिर यदि उसमें कोई खोट नजर आए तो आपसी सार्थक संवाद स्थापित करें। किसानों के पक्ष को समझने के लिए यह आवश्यक है कि वार्ताकारों में कृषि विशेषज्ञ हों। इस बात को भी समझा जाये कि इस नये कानून को लाने की क्या आवश्यकता थी? इन्हीं सार्थक संवादों से किसान आन्दोलन का शान्तिपूर्वक समाधान निकल सकता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली 
इस विषय पर दो विचार धारा का टकराव है ।दोनों ही अगर अपने -अपने स्वार्थ को देखेंगे तो बात का सलटना मुश्किल है ।  इस बीच स्वार्थ  बस कुछ पार्टियाँ भी हवन में आहुति का काम कर रही हैं ।किसान इसे समझते हैं लेकिन बच नहीं पाते ये अनैतिक का करेंगी नाम किसानों का होगा ।
किसानों की सोच है कि न्यूनतम 
समर्थन मूल्य के बहाने कृषि बाजार का निजीकरण करना चाहती है ।सरकार के हिसाब से ऐसा बिल्कुल नहीं है । किसानों को भी चाहिए कि सरकार की बात पूर्ण रुप से समझे जिद से कोई समस्या हल नहीं होती

आज की चर्चा में जहां तक की है प्रश्न है कि किसान आंदोलन का समाधान सिर्फ सार्थक बातचीत से ही संभव होगा तो यह बिल्कुल सही बात है और हमेशा से जब जब विभिन्न आंदोलन हुए हैं लेकिन संघर्ष हुए हैं अंत में उन सभी का समाधान निकालने के लिए बातचीत ही एक रास्ता है और यही सही तरीका भी है किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए बैठकर बातचीत करना सही रास्ता है व हल निकालने के लिए सबसे अच्छा तरीका है जब तक परस्पर बातचीत ही नहीं होगी आपसी संवाद ही नहीं होगा तो सही मायनों में यह पता ही नहीं लगेगा की समस्याएं क्या है कैसी है और कहां है और जब एक बार यह पता लग जाता है कि समस्या है क्या है और कहां है और किस तरह से उन्हें दूर किया जा सकता है तब आपसी सद्भभाव प्रेम और उन्नति के मार्ग को देखते हुए समस्याओं को सुलझा लिया जाता है यह किसी भी संघर्ष के समय सबसे अच्छा रास्ता है जो हमेशा से उपयोगी सिद्ध होता है और अपनी सार्थकता निरंतर बनाए हुए है 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
किसान आंदोलन एक वृहद रूप ले चुका है। संपूर्ण भारत से किसान एकजुट हो रहे हैं। उनकी फसलों का सही मानदेय नहीं मिल पाने की वजह से  भी परेशान है और इसी वजह से उन्होंने अपना विरोध प्रदर्शन चालू किया है। सार्थक संवाद के द्वारा प्रयास करना आवश्यक है। यदि उसमें सफल हो जाते हैं तो बहुत अच्छा और यदि सार्थक संवाद अपने पक्ष में सार्थक नहीं हो सका तब किसान जनतांत्रिक तरीके से अपना विरोध प्रदर्शित करेंगे। इसलिए संवाद करते समय बहुत सावधानी बरतना होगी ताकि तालमेल बैठाया जा सके और किसानों की प्रतिपूर्ति हो सके। हर हाल में किसानों को उनकी उपज की सही  कीमत मिलना चाहिए, तभी किसान आंदोलन रुक पाएगा।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
               मेरा यह मत है कि सिर्फ किसान आंदोलन ही नहीं ; आज तक दुनिया में जितने भी आंदोलन, युद्ध , संघर्ष आदि हुए हैं उन सब का समाधान वार्ता या संवाद के द्वारा ही निकला है ।बड़े से बड़े युद्ध  बड़ी से बड़ी हिंसा का समापन एक दिन वार्ता में ही होता है। भले ही यह आंतरिक स्थिति के लिए हो या बाह्य स्थिति के लिए हो। जब भी दो राष्ट्र लड़ते हैं तो  एक दिन दोनों राष्ट्रों की लड़ाई भी वार्ता में ही जाकर समाप्त होती है।     
         उसी तरह से किसान भाइयों को अपने आंदोलन के साथ-साथ  सरकार से संवाद  जारी रखना होगा और सरकार को भी संवेदनशीलता दिखाते हुए, किसानों की समस्या को समझते हुए और वर्तमान परिस्थितियों में किसानों  के हालात को देखते हुए उनकी सारी समस्याओंं पर विचार करते हुए उचित संज्ञान लेकर अपना एक निर्णय लेना होगा और तभी इस आन्दोलन  का समाधान संभव होगा। युद्ध ,लड़ाई और किसी भी तरह के बड़े से बड़े संघर्ष संवाद की ओर जल्दी बढ जायें तो उचित व कल्याणकारी  होता  है।किसान  आंदोलन का समाधान भी आपसी बातचीत व सार्थक संवाद  के माध्यम से ही निकलेगा।
-  डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया - मध्य प्रदेश
किसान आंदोलन का समाधान केवल सार्थक संवादों से हो सकता है यदि नियत में खोट ना हो तो ! सरकार देश के जो अन्नदाता हैं उन्हें तकलीफ़ हो वैसा कानून कभी प्रस्तावित करना तो दूर सोच भी नहीं सकती ! उन्होंने जिन नियमों और कानून का प्रस्ताव रखा है उसमे उनका ही फायदा है किंतु इसमे विपक्षी लोगों को कुछ नहीं मिलता ,अतः अनपढ़ भोले भाले किसान को बरगलाकर अपनी रोटियां कैसे सेंके अतः बंदूक किसान के कंधे पर रख गोली दागने की कोशिश है !मोदी सरकार अपने नियम तो रखेगी हां कुछ तब्दिलीयां जरुर करेगी ! खरीदने वाले कम दाम या अन्य दामों पर न बेचें अतः रजिस्टर्ड होगा !मंडी तो रहेगी किसानों की खरीद फरोक्त वहीं से होती है ! 
संवाद से समाधान अवश्य होगा क्योंकि सरकार जो अन्नदाता है उसे कैसे फायदा अथवा लाभ हो यही चाहेगी ! अन्य बाहरी देशों का हस्तक्षेप कभी बर्दाश्त नहीं करेगी जो विपक्षी की मंशा है ! सरकार संवादों से समाधान अवश्य निकाल लेगी ! किसान अन्नदाता के साथ प्रजा भी है !राजा प्रजा दो दिल एक जान हैं तो समाधान तो होना ही है ! 
 - चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
किसान आंदोलन यथार्थ में कुछ स्वार्थी पार्टीयो का गुट संग्रह है / इनमे जिनका काम सिर्फ सरकार के घनात्मक कार्यक्रम का विरोध पैदा करना देश के विकास को विनष्ट करना व अपना उल्लू सिद्ध करना मात्र है / *हल* तो हमेशा संवाद से ही निकलता है , इसमे भी अंततः यही होना है , बस समय उर्जा  पैसा , जीवन की हानि होनी है , बाकी कुछ नही / 
देश के हित में बहुत सी बाते आंदोलन की आग में भेंट चढ जाती है आज से नही सदियो से / बस इस और  ध्यान किसी भी  पार्टी , गुट समूह का नही जाता // 
बडे बडे महायुद्ध हुये ओर होंगे लेकिन इसने काल कवळ इन्सान ही बनते है और कोई नही जिनके भी  जो - जो चाले गये वो लोट के टे आने  से रहे   
सरकार ने  5 मीटिंग के द्वारा खूब समझाया लेकिन नतीजा  zero .... आखिर हल - फिर भी बात से / स्म्बाद से ही होना है ये निश्चित ? 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
किसान कह रहे हैं हमारा आंदोलन सड़क खोदना नहीं, ना ही रास्ता रोकना है l हम तो अपनी पीड़ा सरकार को बताना चाहते हैं l सरकार का बोधि उत्तरदायित्व है कि अन्नदाता की बात ध्यान से सुनकर उनको संतुष्ट करे l समय की मांग है कि सरकार किसानों की मांग पर गंभीरता से देश हित को दृष्टिगत रखते हुए विचार करे और उनसे बातचीत के माध्यम से समस्या का हल निकालने का प्रयास करे l यही वक़्त का तकाजा है l यह विडंबना नहीं तो क्या है कि देश के भाग्य विधाता अन्नदाता किसान की आवाज़ के दमन की प्रक्रिया पूरे देश में जारी है l आखिर क्यों?
जब किसानही  नहीं रहेगा तो खेती कौन करेगा?इस दशा में देश के भूखे मरने की नौबत आ जायेगी l ये कैसा लोकतंत्र है?
किसान आंदोलन का समाधान आपसी वार्ता, मेल मिलाप और संवाद से ही संभव है न कि क़ानून बनाने से l शस्य श्यामला धरती की लाज रखो l 
चलते चलते _-
आओ देश बनाएं, उजड़ा बाग़ सजाये
इस माटी का कण कण चंदन
गीत प्रेम के गाये
स्वार्थ साधना की आंधी में,
वसुधा का कल्याण न भूलें l
इस धरती के सब खेतों में फैली हो हरियाली
फूल फलों से झूम रही हो
वन वन डाली डाली l
युग युग से हम रहे उपासक,
गेंती और कुदाली के l  
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
        किसान वह जीव हैं जिनकी समस्याओं के समाधान हो ही नहीं सकते। जिसके सबसे बड़े उदाहरण भारत के निष्ठावान एवं कर्त्तव्यनिष्ठ ईमानदार पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी हैं। जिन्होंने जय जवान जय किसान का नारा भी दिया था। परंतु जग जानता है कि नारों से पेट की आग नहीं बुझती। इसलिए किसान सड़कों पर रो रहे हैं और अर्द्ध सैनिक बल के जवान "पेंशन और सैनिक एक पद एक पेंशन" पाने के लिए धरने-प्रदर्शन कर रहे हैं।
        रही बात सार्थक संवाद करने की तो वह ना कोई करना चाहता है और न ही कोई कराना चाहता है। चूंकि देने वालों को यह नहीं पता कि दिया क्या है और मांगने वालों को यह नहीं पता कि उनका छीना क्या है? चूंकि रिमोट कंट्रोल का प्रचलन कुछ ज्यादा ही हो गया है। जिसके शिकार दोनों ही हो रहे हैं।
        उल्लेखनीय है कि देश की सत्ता 'सत्ता हस्तांतरण की संधि' अर्थात Transfer  of   Power Agreement पर चल रही है। जिसकी संधि अर्थात एग्रीमेंट भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित ज्वाहर लाल नेहरु और लाॅर्ड माउन्ट बेटन के बीच हुई थी। जिसे 14 अगस्त 1947 कि रात 12 बजे यानि 15  अगस्त 1947 को ब्रिटेन की संसद द्वारा अधिनियम के रूप में पास किया गया था। 
       यही कारण है कि आज भी भारत में किसी को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अनुसार न्याय नहीं मिलता। जो न्याय लेते हैं वह भी दिया नहीं बल्कि छीना जाता है। इसीलिए गरीब, पीड़ित, उत्पीड़ित को कभी नहीं मिलता। चूंकि रिमोट कंट्रोल आज भी दूसरों के हाथों में है।
       अतः जब तक श्रीकृष्ण जी के सुदर्शन चक्र रूपी रिमोट कंट्रोल भारतीयों के हाथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुसार नहीं आता, तब तक महाभारत रूपी आन्दोलनों के समाधान हेतु सार्थक संवाद सम्भव ही नहीं हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
किसी भी आंदोलन का समाधान सिर्फ सार्थक संवाद से संभव तब हो सकता है. जब दोनों पक्ष मुड़ने को तैयार हों. नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और केंद्र सरकार में टकराव बरकरार है. विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच आज पांचवें दौर की बातचीत चल रही है. किसानों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों से टस से मस नहीं होंगे. छह महीने का राशन-पानी साथ ले चल रहे किसानों का आंदोलन इतना आगे चल चुका है, कि अन्य देश भी किसानों के पक्ष में बोलने लग गए हैं. ऐसे में किसानों का हौसला और बुलंद हो गया है. सरकार किसानों की भावनाओं को समझने और उनकी चिंताओं का समाधान करने के लिए तैयार है, पर किसान नेता आज की बैठक
- लीला तिवानी
दिल्ली
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को विरोध करने के लिए किसान एक आंदोलन के रूप में दिल्ली में जमा हुए हैं।उनके प्रतिनिधि और सरकार के बीच बातचीत चल रही है और सहमति बनी है की सार्थक परिणाम संभव है।सरकार ने किसान के साथ किसानों की समस्या सुनने और उसका हल खोजने के लिए एक सुझाव दिए हैं सरकार के प्रतिनिधि के साथ आपके भी प्रतिनिधि की एक कमेटी बनाई जाए और उस कमेटी को एक तय समय मे अपना सुझाव पेश करें इस के लिए राज्य सरकार को भी सहयोग करने की अपील की गई है। कोई भी जटिल समस्या सार्थक संवाद से ही संभव  है।
लेखक का विचार:-जितना भी जटिल समस्या हो उसे बातचीत से सुलझाया जा सकता है। और यही है हमारी लोकतंत्र की पहचान है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
किसान आंदोलन को आज नौवां दिन है। आंदोलन का मुख्य मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट से तय हो ऐसा किसानों का कहना है। वही सरकार का कहना है कि एमएसपी कानून का हिस्सा कभी नही रही।ऐसे ही किसानो का कहना है पराली जलाने पर जेल जुर्माने की सजा गलत है।इसकी जिम्मेदारी सरकार ले।किसानों को कोर्ट जाने का हक मिले, कॉरपोरेट क्षेत्र कांटैक्ट खेती के अधिकार से धीरे धीरे छोटे किसानों की जमीन हथिया लेने की स्तिथियों से मुक्त रखा जाए।कृषि उपयोग के लिए डीजल की कीमत में 50 प्रतिशत की कटौती की मांग भी किसानों के आंदलोन में मुख्य मुद्दा है।
     सरकार ने इन मांगों पर नए सिरे से विचार की जरूरत समझी है।पर किसान और सरकार को चाहिए कि सार्थक बातचीत से शीघ्र समाधान करे क्योंकि दोनों पक्षों के सख्त रवैया में विरोधी दल एवं गुंडा तबका इन् सब में आगे बढकर किसानों से हमदर्दी जता कर आग रूपी आंदोलन में घी डालकर रोटियां सेंकने की कसर नही छोड़ेंगे। जैसा कि देखा भी जा रहा है। भारत बंद की स्थितियां भी ठीक नही होंगी। किसानों के संगठनों के मुखिया और 
सरकार को शीघ्र अति शीघ्र आपात बैठक में निर्णय लेकर दोनो पक्षों को आपस में सार्थक बातचीत करनी  चाहिए अन्यथा विलम्ब और असहमति से  हिंसा और सरकारी संपत्ति का नुकसान न हो।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
किसान आंदोलन का जो मुद्दा है फसल बेचने और खरीदने का इस संबंध में जो कानून बनाया गया है वह सच पूछिए तो किसान के हित के लिए है लेकिन बिचौलिए का इनमे कोई फायदा नहीं होगा यही कारण है कि विपक्ष दल जो बिचौलिए का काम करते हैं वह किसान को बरगला रहे हैं किसान को यह सोचना चाहिए कोई भी सरकार जो निस्वार्थ भाव से देश की सेवा कर रहा है किसानों की समस्या को समझ रहा है उस समस्या के समाधान का सही उपाय ढूंढ चुका है उसमें किसानों का फायदा है और बिचौलिए का नुकसान तो सब इसे उल्टा समझा कर किसानों को भड़का रहे हैं और किसान के माध्यम से अपनी राजनीति का गेम खेल रहे हैं
वार्तालाप एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा किसी भी समस्या का आसानी से समाधान ढूंढा जा सकता है और सरकार किसानों के साथ बैठकर समस्या को सुन ले और सही ढंग से उन्हें समझाने का कोशिश करें डायरेक्ट में में इनडायरेक्टली नहीं तो अवश्य किसान समझेंगे वार्तालाप ही समस्या का समाधान है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
दिल्ली, हरियाणा, यूपी, उतराखंड के किसान अब नेताओं से  साथ वैठक कर रहे हैं,  किसानों का मानना है कि कृषि कानून का प्रावधान उनके हित में नहीं है, 
जिसके कारण वो हल्ला बोल प्रदर्शन कर रहे हैं और कह रहे हैं उनका यह प्रदर्शन जारी रहेगा, लेकिन जिस ढंग से वो प्रदर्शन कर रहे हैं उस ढंग से टृैफिक का बहुत बुरा हाल है, 
दिल्ली नोएडा के रास्तों पर भीषण जाम होने की वजह से लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है व कई नियमों की उल्लंगना हो रही है। 
किसानों को चाहिए प्रदर्शन रोक कर शांति से वार्तालाप करें, जिससे अच्छे से अच्छा नतिजा निकल कर आ सकता है। उनको चाहिए उनके चन्द नेता कृषि मंत्री  व अन्य नेताओं के साथ वैठ कर शान्ति पूर्वक बात करें जिससे अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। इस हल के लिए जोरदार प्रदर्शन की जरूरत नहीं है, 
कहने का भाव यह है कि किसान आन्दोलन का समाधान सिर्फ सार्थक  संबाद से  ही संभव नहीं है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
किसान अन्नदाता मानव जीवन का पेट पालता है सबको अन्न देने वाला
सदा अभाव में जीता गरीबी की घनी छांव तले
भारत कृषि प्रधान देश है यहां की आधी से ज्यादा आबादी गांव में रहती है कृषि जीवन का मुख्य आधार है समय के साथ बहुत कुछ परिवर्तन हुआ पर किसानों की स्थिति हमेशा
दयनीय बनी रही भारत के किसी भी राज्य के किसान हों स्थिति कम या ज्यादा रही बहुत बेहतर किसी की भी नहीं है अकाल दुर्भिक्ष से कई बार
तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण किसान प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं किसान आंदोलन हमेशा से होता आया सभी राजनीतिक पार्टियां अपना वोट बैंक बनाती हैं पूरी तरह से कभी भी किसानों के साथ न्याय नहीं हुआ
किसी भी समस्या का हल आंदोलन से नहीं सार्थक उचित संवाद नियम कायदे के साथ ही संभव है कोई भी सरकार सत्ता में रहे किसानों की बातों को और उनकी परेशानियों को पूर्ण रूप से समझना अति आवश्यक है ।
किसान अन्नदाता हैं हमारे देव तुल्य
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली


" मेरी दृष्टि में " किसानों के तीन कानूनों पर पुनः विचार करके समस्या का हल निकालना चाहिए । किसानों को विश्वास में लेकर सशोधन करना चाहिए । जिससे किसानों की समस्या का समाधान सम्भव है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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