क्या मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरतें हैं ?

रिश्ते परिवार व समाज में होते हैं । जो मरने के बाद भी नहीं मरतें हैं ।  रिश्ते अपने - आप में बहुत कुछ सम्बंध विस्तार करते हैं । जो मरने के बाद भी नहीं टूटते हैं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
रिश्तों में यदि जीवन्तता, भावनायें, संवेदनाएं और समर्पण भाव हो तो मौत के बाद भले ही रिश्ते भौतिक रूप से समाप्त हो जायें परन्तु स्मृतियां सदैव रिश्तों को जीवित रखती हैं। मनुष्य के जीवन में रिश्तों की गरिमा तभी होती है जब उनमें मर्यादा का समावेश हो। मर्यादित रिश्ते जीते-जी और मौत के बाद भी अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं। किसी भी रिश्ते से ही नये रिश्ते बनते हैं और रिश्ते तभी नहीं मरते जब पूर्ववर्ती रिश्तों की मिठास और गरिमा उसके द्वारा बने नये रिश्तों में भी कायम रहती है। इसी प्रकार किसी की मौत के बाद भी उससे बना रिश्ता जीवित रह सकता है। 
"किसी अपने के बिछड़ने से, जिन्दगी रुक नहीं जाती।
पर दिल-ओ-दिमाग में बसी उसकी यादें नहीं जाती।।
लाख समझाएं खुद को, यादें मर जायें जाने वाले की।
पर धड़कनों से उसका स्वर साँसों से खुशबु नहीं जाती।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
     खून का रिश्ता अनन्त हैं, जिसमें रिश्ते नातें पवित्र संबंध सब कुछ जुड़े  हुए हैं, जहाँ समस्त प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो रहे हैं और अपना त्याग बलिदान तक निछावर कर दिये गये हैं, जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ियों को यादगार बनाने के लिए स्म्रतियों एवं जयंतियों के माध्यम से समसामयिक संस्थाओं तथा परिवार जनों द्वारा समारोह आयोजित कर तरो ताजा किया जाता हैं, उनके दुर्लभ छाया चित्रों को पथ-प्रदर्शित करने में अहम भूमिका रहती हैं, प्रतिमाओं को भी चौक चौराहों पर स्थापित किया जाता हैं, ऐसा अहसास न हो कि उनकी यादें नहीं की जा रही हैं, बल्कि नित्य-प्रतिदिन नमन भी किया जाता हैं। यह कहना न्याय संगत हैं, कि मौत के बाद भी रिश्ते कायम रहते हैं, जिस तरह से ईश्वर को याद किया जाता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
रिश्ता अगर सही और दिल से हो तो फिर  वैसा रिश्ता अजर अमर हो जाता है। व्यक्ति हो तब तो रिश्ता होता ही है और नही रहने पर भी ऐसा रिश्ता कायम रहता है। व्यक्ति के जाने के बाद भी  अनूमन  रिश्ता कायम ही  होता है। जब हम किसी अपने को खो देते हैं तो फिर  उन्हे ता उम्र याद  करते हैं और उनके लिए  तड़पते भी हैं। इसलिए  हमारा किसी से अगर कोई  रिश्ता यदि हो गया या बन गया फिर  तो हम आजीवन उस रिश्ते की गर्माहट बनाए रखने की चेष्टा करते हीं हैं। खास दिन और खास समय में अपने से सदा के लिए  बिछड़े लोगों को सदैव याद  करते हैं। उनकी तस्वीर  लगाते हैं माल्यार्पण करते हैं।खास अवसरों पर उनका आशीर्वाद  सर्वप्रथम लेते हैं। मौत तो एक अंतिम और कटु सत्य है जिसे हम सब को झेलना पड़ता है अपनों को सदा के लिए  खोकर,लेकिन रिश्ता और उनकी कमी ताउम्र हमारे दिल में एक कसक बन कर टीस देती रहती है।
- डॉ पूनम  देवा
पटना - बिहार
"मौत का एक दिन मुअय्यव है, 
नींद क्यों रात भर नहीं आती"। 
मौत सब से बड़ी सच्चाई है और सब पर आती है क्या राजा क्या रंक यह सब से तल्ख हकीकत है, 
यह एक ऐसा मुअम्मा है जो न समझ में आता है न हल हुआ है कि मौत के बाद क्या होता है , 
मरने बाला शरीर छोड़ कर चला जाता है, लेकिन जो शेष रिश्ते नाते होते हैं  वो उम्र भर  अपने अपने रिश्ते के मुताबिक उस आकृति को भूल महीं पाते, 
सच कहा है, 
"जमाना बड़े शौक से सुन रहा था, हमीं सो गए दास्तां कहते कहते"। 
जाने बला चला जाता है लेकिम जाने बाले की यादें शेष रह जाती हैं, 
आईये आज की चर्चा करते कि क्या मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरते? 
 माना जाता है कि व्यक्ति के ंरनो के  साथ ही उसके सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं व उसकी मृत्यु के साथ ही मिट जाते हैं शेष रह जाती है आत्मा, 
आत्मा के कोई रिश्ते नाते नहीं होते, 
लेकिन उस आत्मा के शेष रिश्ते उस शरीर को सदा याद रखते हैं जिस से वो आत्मा निकल जाती है, 
आत्मा अमर है यह कभी नष्ट नहीं होती यह केवल शरीर को छोडती है और शरीर मृत हो जाता है, 
अन्त में यही कहुंगा की व्यक्ति के मरने के बाद उसके सारे रिश्ते नाते खत्म हो जाते हैं लेकिन कुछेक रिश्ते नाते किसी न किसी रूप में हमारे पास आते हैं और उस समय हम उन्हें पहचान महीं पाते, 
कहने का  मतलब मौत ही सच्चाई है और यह हरेक को आनी है  पर मृत्यु के बाद सिर्फ आत्मा का रिश्ता ही परम  परमात्मा के साथ जुड़ जाता है वहां से कर्मों के अनुसार फिर नया शरीर मिलता है शेष रह जाती हैं यादें व कर्म जो इन्सान कर के गया होता है एक कर्मों का ही रिश्ता है जो कई जन्मों तक शेष दिखाता है कि मानुष्य योनी में आकर उस आकार के व्यक्ति ने कैसे कर्म किए थे, 
इसलिए हमेशा नेक कर्म करना ही इन्सान का सच्चा धर्म है जिसे युगों युगों तक नहीं भुलाया जा सकता रिश्ते नाते सब मृत शरीर के साथ ही खत्म हो दाते हैं। 
सच है, 
रोने बालों ने उठा रक्खा था घर सर पर, 
मगर उम्र भर का जागने बाला पड़ा सोता रहा। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब मैं बारहवीं कक्षा में थी तो मेरे मझले भैया का और स्नातक में थी तो मेरी माँ का साथ छूट गया। अपनों को अपने गोद में दम तोड़ते देखना कितना दर्दनाक हो सकता है इसे किसी शब्द से दर्शाया नहीं जा सकता है..। तब तो मेरी शादी भी नहीं हुई थी। लगभग 44–45 साल से मैं पिछली यादों के उन्हीं पलों में ठिठकी खड़ी हूँ। 
  आज के दौर में सब कहते हैं कि रिश्ते-नाते वक्त से पहले ही साथ छोड़ने लगे हैं.., कोई विश्वास नहीं करना चाहता कि मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरा करते हैं ।
   ऐसे में वाकई किसी की याद में या किसी के लिए अपनी जान दे देना आज के दौर में अव्यावहारिक ही कहा जाता होगा...।
कुछ खबरों से हम पूरी दुनिया को जान लेने का दावा करते हैं.. अपने गाँव-शहर के चार घर छोड़ पाँचवें घर में कितनी कहानियाँ दफ़न है जानना कठिन है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
वास्तव में बहुत ही गहरा विषय लिया आपने इस परिचर्चा के लिए रिश्तो का आदि और अंत कभी नहीं होता सनातन काल से यह यू का यू चला रहा है देखने की बात यह है कि उनको निभाने की कूवत हर एक में नहीं होती यहां विशेषता एक और भी है कि रिश्ते रिश्ते ही रह जाते हैं रिश्तो के नाम पर रिश्ते सिर्फ नाम चारे के लिए भी रह जाते हैं अधिकतर उनको निभाना इतना आसान भी नहीं होता आजकल के परिपेक्ष में तो और भी ज्यादा कठिन कार्य है सभी अपने अपने कार्यों में इतने व्यस्त हैं कि सिर्फ वर्चुअल अर्थात डिजिटल अर्थात ऑनलाइन एप्लीकेशन ईमेल मोबाइल व्हाट्सएप फेसबुक आदि सोशल साइट्स पर यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है जो मैं कहने जा रहा हूं वह यह है कि सोशल साइट पर रिश्ते ही निभाए जा रहे हैं बड़ी मुश्किल बात मैंने कह दी इतनी आसानी से पूछती भी नहीं है यह हर एक को लेकिन गंभीरता यही है यह मेरा व्यक्तिगत अभिप्राय है व्यक्तिगत विचार है अन्य किसी के विचारों से इसका कोई झगड़ा नहीं है और ना ही उनमें कोई किसी तरह की मेरी आशंकाएं हैं सबके जीवन में अपने अपने अनुभव होते हैं और वह उन्हीं के अनुसार अपने विचार इस चर्चा में रखेंगे रिश्तो को निभाने के लिए चार चीजें बहुत जरूरी होती है इनमें सबसे महत्वपूर्ण जो चीज है वह है इस समय मैंने इसीलिए ऊपर कहा कि आजकल के परिपेक्ष में समय की सबसे ज्यादा कमी है जाने अनजाने में सब कोई अपने आप में अपने-अपने स्थानों में अपने-अपने प्रदेशों में क्षेत्रों में अपने अपने घरों में व्यस्त हैं कोई काम में व्यस्त है कोई लोकाचार में व्यस्त है कोई सामाजिक सेवाओं में व्यस्त है आज के लिए बहुत बड़ा एक विषय चल पड़ा है इस तरह की फैशन होता जा रहा है समाजसेवी यहां पर मैं एक साधु महात्मा की आपबीती देखना चाहता हूं चार लाइनों में एक साधु महात्मा बहुत ही परिचित बहुत ही मशहूर थे हर समय उनके चेले चौपाटी उनको घेरे रहते थे 1 जनवरी से सागर की यात्रा पर थे ट्रेन का टाइम है इस समय कोई भी आस पास नहीं है मैं आसानी से आराम कर सकता हूं 24 घंटे में उनको 6 घंटे के लिए कभी-कभी वह भी नहीं मिलते थे ट्रेन जैसे ही दिल्ली से निकली गाजियाबाद के स्टेशन पर 1 मिनट का उसका रुकना था इतने में चार व्यक्ति चढ़े और चारों बाबा जी की जय बाबा जी की जय करते हुए उनके पास आ गए अभी उनकी आंख लगी थी उठ खड़े हुए क्या हुआ भाई क्या हुआ कुछ नहीं बाबा जी आप सोएंगे हम तो आपकी सेवा करने आए और चारों ने उनकी दोनों टांगे पकड़ ली और धीरे-धीरे अपने हाथों से उनकी टांगों को दबाने लगे  बाबा जी उठ कर बैठ गए भोले बाबा जी आप सो जाइए आराम से अब सागर तक हम यूं ही बैठे आपकी सेवा करेंगे  बाबा जी बोले अजीब बात है आप मेरे पैर दबाते रहोगे और वह भी 4 लोग 2000 से 2000 से मैं ऐसे में सो कैसे पाऊंगा  सुबह 4:00 बजे मेरी ट्रेन पहुंचेगी नहा धोकर मुझे 6:00 बजे अपने सत्संग में बैठना है  अब यह बताइए  यह रिश्ता किस प्रकार का रिश्ता  गुरु चेले का रिश्ता तो बहुत ही कम मधुर रिश्ता होता है आज्ञाकारी रिश्ता होता है  इसी तरीके से समाज में भी सामाजिक सेवाओं की चर्चा कर रहा था  आपके घर आएंगे आपके लोग में बुलाएंगे मीटिंग करेंगे कि आपको कोई प्रकार की समाज सेवा चाहिए हो तो हमारे पास आइए  0घर में भी मां बाप हैं बेटे बच्चे हैं सब यूं तो सब रिश्ते निभा रहे हैं  लोकाचार के तौर पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं मरने के बाद भी रिश्ते निभाए जाते हैं दिखावा प्रदर्शन करने के लिए भी व सच मे भी  किसी के पास ज्यादा पैसे हैं तो वह बड़े बड़े  भंडारे खोल देता है उनके नाम पे जिसने कभी पिता के हाँथ में चववन्नी नही रखी,  किसी के पास कम पैसे हैं तो वह जाकर मंदिर में पुजारी को दान कर आएगा किसी के पास नहीं है तो भिकारियों को थोड़े पेसे उनके नाम पर, जैसे आज मेरे पिताजी की पुण्यतिथि है या आज उनके , पिताजी का श्राद्ध है यह है वो है आज उनका दिवस है रिश्तो को निभाने का यह जो तरीका है अनादि काल से चला आ रहा है और उसी प्रकार से चलता रहेगा  जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी  एलआईसी का यह एक मोटो है जो मैंने यहां पर रिश्तो के नाम पर लिखा है जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी  ओम शांति घुमा फिरा कर मेरे विचार का निचोड़ ये हुआ कि रिश्ते 3 प्रकार के होते हैं 
जन्म के 1
समाज के 2
जबरदस्ती के 3
जन्म के रिश्ते नही मरते कभी 
समाज के समय के साथ धूमिल हो जाते हैं और अंत मे नेपथ्य में गुम हो जाते हैं 
जबरदस्ती के रिश्ते स्वार्थ सिद्धि के लिए बनाए जाते और स्वार्थ पूरा हो जाये या उस स्वार्थ की कलई खुल जाए तो तुरंत दम तोड़ देते हैं 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
हर समय नहीं किंतु कभी-कभी परिवर्तन पीड़ादायक हो जाता है। जब परिस्थितियां हमारे विपरीत हो जाती है या  जिनको संभालने में हम असमर्थ हो जाते हैं।कितने ही प्रयासों के बाद भी उन परिस्थतियों को नहीं संभाल पाते ।कुछ  परिवर्तन सहज स्वीकार्य होते हैं किंतु कुछ के लिए मशक्कत करना पड़ती है और कुछ के लिए संभालना पड़ता है वरना वे दुखदाई हो जाते हैं।
        बाढ़, अकाल ,ओला अतिवृष्टि तुषार,भूकम्प आदि प्रकृति जन्य पीड़ादायक परिवर्तन हैं।जीवन की जरा,मरण की क्रियायें भी दुखदायी होती हैं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्यप्रदेश
यह तो मानने और विश्वास करने की बात है।आजकल तो जीते-जी ही, कितने रिश्ते मृतप्राय हो जाते हैं।तो फिर मरने के बाद रिश्ते कायम रहने की बात मानने पर ही निर्भर करती है। वैसे रिश्ते हमेशा कायम रहते हैं।
हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सात पीढ़ियों तक तो रिश्ता बना ही रहता है। उन पितरों के लिए ही तो हमारे यहां पितृ पक्ष में श्राद्ध का प्रावधान है। 
अब बात रिश्ता कायम रहने की,रिश्ता कायम रहता है,कभी नहीं मरता,न मर सकता है। जैसे लाठी मारने से,पानी नहीं सकता। वैसे ही न मानने से कभी रिश्ते खत्म नहीं होते। हमारे साथ साथ, हमारे बच्चों के साथ साथ रिश्ते, उनकी चर्चा हमेशा कायम रहती है। मैं स्वयं ऐसे बहुत से परिवारों को जानता हूं जिनके अपने ननिहाल आदि से रिश्ते मृतप्राय है और अपने पिता,दादा आदि के ननिहाल से वह आज भी जीवंत है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके बच्चों के रिश्ते भी मृतप्राय रहेंगे, ही सकता है कल वह बच्चे उन मृतप्राय रिश्तों को जीवंत बना लें।तो रिश्ते कायम हमेशा रहते हैं,बस बात उनके जीवंत और मृतप्राय रहने की है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
रिश्ते तो जीवित रखने से ही जीवित रहते हैं, उनका जीने-मरने से कोई संबंध नहीं होता है. 
''टूट जाता है गरीबी में वो रिश्ता जो खास होता है,
हजारों यार बनते हैं, जब पैसा पास होता है.''
मन हो तो रिश्ते जीवित रहते हैं. कुछ रिश्ते हम बनाते हैं, कुछ ईश्वर बनाता है. अपने माता-पिता को हम स्वयं नहीं चुन सकते हैं. यह रिश्ता ईश्वरीय होता है. इसी तरह भाई-बहिन का रिश्ता भी होता है. ये रिश्ते कभी नहीं बदल सकते, मरने के बाद भी जीवित रहते हैं. इसमें इच्छा-अनिच्छा का प्रश्न ही नहीं उठता है. सामाजिक प्राणी होने के कारण रिश्तों को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है. हमें विवेक से काम लेकर उपयोगी रिश्तों को जीवित बनाए रखना होगा. सड़ी उंगली को काट फेंकने में ही भलाई होती है, इसी तरह रिश्तों में भी हमें चयन करना पड़ता है. ध्यान रहे रिश्तों को तोड़ना भी पड़े तो ऐसे तोड़ें, कि फिर से जोड़ने की आवश्यकता पड़े तो परेशानी न हो. कोशिश तो यही करनी चाहिए, कि मरने के बाद भी रिश्ते जीवित रह सकें.
''रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हों, उन्हें तोड़ना मत,
क्योंकि पानी चाहे कितना भी गंदा हो,
अगर प्यास नहीं बुझा सकता,
वो आग तो बुझा ही सकता है.''
- लीला तिवानी 
दिल्ली
       मौत शरीर को शव में परिवर्तित कर देती है और शव का किसी से कोई रिश्ता नहीं होता। वह तो निर्जीव हो चुका है। उसका अंतिम संस्कार भूमि में दबाकर किया जाए या अग्नि में जलाकर किया जाए। उसे कोई अंतर नहीं पड़ता।
       रही बात रिश्तों की तो वर्तमान समय में रिश्तों का रस फीका हो चुका है अर्थात रिश्तों में रक्त के रंग में स्वार्थ की रंगत स्पष्ट झलक रही है। अपने परायों से ज्यादा घातक सिद्ध हो रहे हैं।
       यही नहीं मानव मूल्यों एवं मानवीय संवेदनाओं की सांस्कृतिक विरासत भी अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। राजनैतिक रिश्तों की भांति धार्मिक रिश्तों में भी छल-कपट का जोर है। पवित्र रिश्तों की पहचान समाप्त हो चुकी है। सत्य पर असत्य की विजय हो रही है और आत्मा अमर होते हुए भी छटपटाकर तिल-तिल मर रही है।
       अतः जब जीवित रहते रिश्तों का यह हाल है तो मरने उपरांत रिश्तों के पाखंड के अलावा क्या अपेक्षा की जा सकती है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
निःसंदेह मृत्यु के बाद भी रिश्ते नाते नहीं मरते हैं क्योंकि मृत्यु होने पर शरीर से आत्मा अलग हो जाती है और वह अजर अमर है  l
रिश्ते नाते बनाने में मन और आत्मा का अहम क़िरदार होता है l रिश्ते यदि मन और आत्मा की डोर से बँधे हैं तो आत्मानुभूति के रूप में अमिट रहते हैं l वंशवाद, परिवारवाद आदि इसी धारणा के पोषक हैं क्योंकि मरने के बाद अकसर कहते हैं अमुक व्यक्ति का पोता, पड़पोता है l कभी कभी रिश्तों से ही आदमी अमर होता है l धर्म तंत्र से लोक शिक्षण का सिद्धांत इसी तथ्य का पोषक है l
अधोगामी पतन के दौर में मनुष्य का मैं /अहम मृत्यु पूर्व ही रिश्ते नातो से कोसों दूर धकेल देता है l "परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता l "स्वार्थ लोलुपता से घिरे रिश्ते नाते अवश्य मृत्यु के बाद की बात तो छोड़िये जीवित रहते ही मर जाते हैं l वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्या इसकी पुष्टि कर रही है कि -
न बाप बडा न भईया, सबसे बडा रूपइया l
हमारे रिश्ते नाते सूत के कच्चे धागों के समान है उन्हें खींचतान कर नहीं अपितु प्रेम के बंधन से बांधकर सहेजा जाये क्योंकि रिश्तों का आधार प्रेम ही है l रिश्ते नातो को हमारे बाद भी अमृत्व प्रदान करना है तो -
रूठे सुजन मनाइये, ज्यो रूठे सौ बारl 
रहिमन पुनि पुनि पोइए, ज्यों ज्यों मुक्ताहार ll
क्योंकि रिश्ते कभी समझोतो के सौदागर नहीं होते l अमर रिश्ते वो होते हैं जो हमारी आँख के आँसू को पानी से खोज लेते हैं l
        चलते चलते --
हमसे जब वो दिल बदल कर देखेंगे
मोहब्बत की बारिश में वे भीग जायेंगे
अनकही बातों को मेरी आँखों में ही पढ़ लेते वो
न उन्हें कभी पढ़ना आया
और न हमें कभी कहना आया आँख के आँसू को पानी में खोजने वाले रिश्ते ही संसार में अजर अमर रहते हैं l
     - डॉ. छाया शर्मा 
अजमेर -  राजस्थान
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो इंसान के बाद भी साथ रहते हैं। ऐसा भी है कि मरने के बाद भी अपने नजदकी रिश्ते नाते ऐसे होते हैं ।जो किसी न किसी रूप में हमारे पास आते हैं और उस समय हम उन्हें उचित मार्गदर्शन भी करते हैं। ऐसा माना जाता है की मरने से शरीर मरता है और आत्मा दूसरे के शरीर में प्रवेश करता है।
*आत्मा अजय-अमर है*। 
ऐसा कहा जाता है मरने के बाद जो रिश्ते नाते आते हैं उन्हें हम पहचान नहीं पाते लेकिन कोई भी अपने रिश्ते नाते दिल से मनन करते हैं ,उनके पास आकर उनके समस्या को सुलझा ते हैं या मार्गदर्शन करते हैं। अतः मृत्यु के बाद रिश्ते नहीं मरते हैं।
लेखक का विचार:--शिव पुराण के अनुसार मृत्यु अटल सत्य है। जो व्यक्ति इस धरा पर आया है उसे जाना ही है। यह
 सच है इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसे बूढ़ी दादी -नानी कभी कहा करती थी, मां सीता का उदाहरण देती थी।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
 अस्तित्व में रिश्ता पहले से ही बना हुआ है रिश्ते बनाए नहीं जाते रिश्ते को पहचान का निर्वाह किए जाते हैं अस्तित्व में एक दूसरे से अंतर संबंध बना ही हुआ है चाहे जड़ रूप में शरीर हो या ना हो लेकिन रिश्ता तो रहता ही है मरने के बाद भी और शरीर के साथ है रिश्ता कभी मरता नहीं है मरता तो जड़ वस्तु है जड़ वस्तु भी मरता नहीं है उसकी विरचित हो जाती है विरचित हो जाने से उसका अस्तित्व बिखर जाता है लेकिन उस से जुड़ा हुआ संबंध है जो भाव के रूप में रहता है वह हमेशा बना ही रहता है रिश्ता कभी बदलता नहीं है रिश्ते की पहचान ना होने से मनुष्य रिश्ते को भौतिक संसाधन से तुलना करके या भौतिक संसाधन आसक्ति  होकर  निभाने का प्रयास करते हैं लेकिन रिश्ता समझ ना आने से भाव का निर्वाहन नहीं हो पाता है लेकिन रिश्ता हमेशा बनी ही रहती है मौत के बाद भी शरीर के साथ भी रिश्ता निरंतर बना ही रहता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
एक बार जब किसी से कोई रिश्ता बन जाता है तो वो जीवन भर चलता है चाहे संबंध रहे या न रहे। संपर्क रहे या न रहे। खून का रिश्ता तो कभी टूटता ही नहीं है। भले कोई कहे मैं अपने माँ-बाप भाई-बहन से रिश्ता तोड़ दिया हूँ। तो ये कैसे संभव है। आप बातचीत नहीं कर सकते हैं। मेल मोहब्बत नहीं रख सकते हैं। आमने सामने देखा सुनी नहीं कर सकते हैं पर रिश्ता कैसे टूट सकता है। चाहे आदमी जीवित हो या मृत। रिश्ते कभी टूटते नहीं हैं और जो टूट जाते हैं वो रिश्ते नहीं होते।
बहुत से लोग कहते हैं अमुक आदमी मर गए अब उनके घर से कोई रिश्ता नहीं रहेगा। यहाँ पर मैं कहूँगा भले आप रिश्ता उनके घर से मत रखिए पर उनसे जो आपका रिश्ता था तो वो आजन्म रहेगा ही जबतक उनको और आपको जानने वाले लोग इस धरती पर रहेंगें। जब दोनों व्यक्ति के परिवार में दोनों को जानने वाला कोई नहीं रहेगा तब उनका रिश्ता खत्म हो जायेगा। कहने का मतलब कोई याद करने वाला नहीं रह जायेगा, उसी परिस्थिति में कहा जा सकता है कि अमुक के मरने से रिश्ता खत्म हो गया। कोई कैसा भी आदमी हो उसके मरने के बाद भी कहा जाता है कि वो अमुक देश में पैदा हुआ था। उसका मतलब मरने के बाद भी उस देश से उसका रिश्ता है। इसलिए मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
यह बात बिल्कुल सही है कि मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरते हैं। मौत तो एक व्यक्ति की होती है लेकिन पीछे जो उसके जैविक रिश्ते जैसे माता-पिता, भाई बहन, बेटा बेटी आदि मृत व्यक्ति के रिशतों का वाहन पीढ़ी दर पीढ़ी करते रहते हैं। अगर घर के किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाती है तो उस की खानदानी तो उसी के नाम से चलती रहती है। इस लिए हम कह सकते हैं कि मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरते हैं। मृत व्यक्ति को हम विशेष उत्सव पर पितृ रूप में मान सम्मान देकर जीवित रखते हैं। पितृपक्ष इसका उदाहरण है।
        आमतौर पर यही कहा जाता है कि मरने के बाद व्यक्ति या तो स्वर्ग में जाता है या नर्क में। अगर जीवन भर अच्छे कर्म किये हैं तो स्वर्ग में जाएँ गे अगर पाप किये हैं तो नर्क में जाएँ गे। ज्यादा धार्मिक व्यक्तियों का यही मानना है कि आत्मा नष्ट नहीं होती सिर्फ शरीर नष्ट होता है। रिश्ते तो आत्मा से जुड़े होते हैं। फिर रिश्ते कैसे मर सकते हैं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
जिस तरह से दुनिया की धरना है कि आत्मा अमर है। आत्मा कभी भी मरती नहीं बल्कि इंसान का शरीर छोड़ देती है। ठीक उसी तरह से मौत के बाद भी रिश्ते मरते नहीं बल्कि जिंदा रहते हैं। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो मरने के बाद भी इंसान के साथ रहते हैं। कुछ लोग तो ऐसा भी मान लेते हैं कि मरने के साथ ही उसके सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ रिश्ते किसी न किसी रूप में जिंदा रहते हैं। इतिहास गवाह है कि कि परिवार के जो लोग भी मर गए हैं। उनके परिवार, रिश्तेदार और मित्र बंधु सदैव याद करते हैं। उनके दिलों में बसते हैं। आपके पति मर जाते हैं तो पत्नी, बच्चे याद करते हैं। उनके दिलों में आप सदैव बसे रहते हैं। उनकी तस्वीर लगाकर साल में उनका आप जन्मदिन मनाते हैं तो मरने वाले दिन शोकाकुल परिवार उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा प्रार्थना करता है। अधिकतर धार्मिक लोगों का मानना है की आत्मा कभी नहीं नष्ट होती है। वह केवल एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। मानव का स्वभाव भी ऐसा होता है कि वह मरने से वह हमेशा डरता है। यहां तक कि मरने की बात ही नहीं करना चाहता है। लोग यह भी कहते हैं और सच भी है कि प्यार करने वालों को अलग करना आसान नहीं होता है। सच्चे प्यार करने वालों का मिलना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति आपसे प्यार करता है तो वह आपके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो जाता है। मरना और किसी को मारना तो उसके लिए आम बात हो जाती हैं। सच्चे प्यार करने वाले यदि जान भी देते हैं तो उनकी कहानी लिखी जाती है। उन्हें लोग हमेशा याद करते हैं। इन परिस्थितियों में या सच है कि लोगों के मौत के बाद दे रिश्ते कभी नहीं मरते बल्कि हो अमर हो जाते हैं। देश की आजादी के लिए लाखों लोगों ने कुर्बानी दी तो क्या उन्हें हम भूल गए नहीं हमेशा के लिए हमारे दिलों में बस गए। उन्हें हम दिलो जान से याद करते हैं और उनको नमन करते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री 
जमशेदपुर - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " रिश्ते अपने - आपमें अटूट सम्बंधों की कहानी को ब्याह करते है । जो कई - कई पीढियों की व्याख्या करते हैं । जो परिवार से लेकर समाज का प्रतिनिधि करते हैं । मौत भी इन रिश्तों को तोड़ नहीं पाती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?