डाॅ. हरेन्द्र हर्ष से साक्षात्कार

जन्म : बुलन्दशहर - उत्तर प्रदेश
शिक्षा : एम० ए० , बी० एड० , एल०एल० बी० , विद्मावाचस्पती

प्रकाशित पुस्तकें :-

निराशा छोड़ो सुख से जिओ,
आस्था के पड़ाव ,
अनुभूतियों के स्वर ,
शब्द तरंग ,
क्षितिज ,
नक्षत्र ,
इन्द्र धनुषी ग़ज़लें ,
ऑख - ऑख का नीर ,
हस्ताक्षर गीतों के ,
चिरागों को जला दो ,
गीतिकायन ,
हादसों का सफर ,
पृथ्वी के शब्द ,
काव्य सरिता ,
ऑख तो ऑख है ,
मोक्ष की तलाश ,
मुठ्ठी में कैद ,
भोर की किरण ,
शंखनाद ,
जो चाहें पायें ,
हताशा छोड़ो खुशी से जिओ ,
कैसे बिदकी घोड़ी

सम्पादन :-

लोहिया विचार ( साप्ताहिक समाचार पत्र )
दैनिक बरनदूत ( दैनिक समाचार पत्र)
बरनदूत ( साहित्यिक मासिक पत्रिका )
बुलन्द प्रभा ( साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका )
अनुभूतियों के स्वर ,
शब्द तरंग ।

सम्मान :-

साहित्य विद्यालंकार ,
समाज रत्न ,
साहित्य सरताज ,
आचार्य ,
साहित्य श्री ,
रचना सम्मान ,
कार्य वैभव ,
श्री सम्मान ,
स्व० हरि ठाकुर सम्मान , 
साहित्य गौरव ,
परम श्री सम्मान , 
विद्मोत्तमा साहित्य सेवी सम्मान ,
रेडडायमंड एचीवर  अवार्ड ,
राष्ट्रीय परमहंस काव्य सम्मान ,
आगमन सम्मान ,
ऑनस्ट क्लब काव्य सम्मान

विशेष : -

- हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की मानद सदस्यता ,
- अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीट्यूट के रिसर्च बोर्ड में एडवाइजर

पता :- 
218 - शारदा विला , कृष्णानगर, बुलन्दशहर - 203001 उत्तर प्रदेश

प्रश्न न.1 - आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और  प्रेरणा का  स्रोत क्या है ?
उत्तर -  मैंने अठ्ठारह वर्ष की उम्र से ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था। मुंशी प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , व उपेन्द्र नाथ अश्क , शुरू से ही मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं। इनकी रचानाओं ने हमेशा ही मुझे लिखने को प्रोत्साहित किया है । मैंने ग्याहरवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान ही अपना प्रथम उपन्यास " भाग्य लिख लिया था ।

प्रश्न न. 2 - आप की पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है ?
उत्तर  - यूॅ तो मेरी रचनाएं यदाकदा विद्यालय की वार्षिक पत्रिका में छपती रहती थी । मगर अधिकृत रुप से अमर उजाला दैनिक समाचार पत्र द्वारा आयोजित आलेख प्रतियोगिता " भारतीय सभ्यता संस्कृति पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव का " पर मेरा आलेख अमर उजाला में प्रकाशित हुआ और उसे द्वितीय पुरस्कार मिला । पुरस्कार के रूप में मुझे पाॅच सौ रुपए का चैक प्राप्त हुआ था । जिसने मुझे आगे भी लिखने के लिये प्रोत्साहित किया ।

प्रश्न न. 3 - आप किन-किन  विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पंसद करते हैं ?
उत्तर - मैंने गीत ,ग़ज़ल,कविता, शेर - शायरी , आलेख , एकांकी , रिपोर्ताज , यात्रवृत्त ,संस्मरण , लघुकथा,कहानी,उपन्यास जैसी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है । मगर मैं कहानी ,उपन्यास और लघुकथाएं सहज रुप से लिखता हूॅ , और इसमें मुझे सकूं भी प्राप्त होता है ।

प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर  - साहित्य ही समाज का वह मूल बिन्दु है जो  समाज में फैली कुरीतियों प्रथाओं व बुराइयों को मिटाकर उसमें जागरूकता का भाव पैदा कर सकता है । यानि कि तत्कालिक समाज में जो घटित हो रहा है साहित्य ही उसका दर्पण है ।मैं अपने लेखन द्वारा समाज को सकारात्मक  संदेश के रुप में यही कहना चाहूॅगा कि हमें आपसी वैमनस्यता , भेदभाव , दुश्मनी व कटुता को भुलाकर स्नेह , प्रेम और सौहार्द्रता के साथ आपसी भाईचारे की भावना को मजबूत कर देश की तरक्की और विकास में योगदान करना चाहिये ।

प्रश्न न. 5 - वर्तमान साहित्य में आप के  पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी  पुस्तक है ?
उत्तर  - वर्तमान साहित्य में मुझे अपना कहानी संग्रह " मोक्ष की तलाश " और उपन्यास " भ़ोर की किरण " पसंद है क्योंकि मैं खुद से और अपनी रचनाओं से पर्याय करता हूॅ ।

प्रश्न न. 6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है ? ये अनुभव कैसा रहा  है ?
उत्तर - मुझे आकाशवाणी नजीबाबाद व मथुरा आकाशवाणी पर प्रसारित होने का अवसर प्राप्त हुआ है जो मेरे लिये एक सुखद अनुभव रहा है ।

प्रश्न न. 7 - आप वर्तमान में कवि सम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?
उत्तर - कवि सम्मेलन आज भी प्रासंगिक हैं , बशर्ते उसमें फूहड़  भौड़ी और स्तरहीन रचनाओं का स्थान न हो , क्योंकि कवि सम्मेलन समाज की तर्कहीन अव्यवस्था तथा शासन की गलत नीतियों पर पर करारा प्रहार करने का एक सशक्त माध्यम है ।

प्रश्न न. 8 - आपकी नज़र में साहित्य क्या है  तथा  फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं ?
उत्तर - साहित्य ही समाज का दर्पण है , साहित्य समाज से जुड़ा है और समाज साहित्य से जुड़ा है। यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । समाज के बिना साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती । और साहित्य समाज का वह पहलू है जो उसे एक उचित दिशा प्रदान करता है । बात जहाॅ तक फेसबुक के साहित्य की है तो इस सम्बन्ध में , मैं यही कहना चाहूंगा कि कुछ अपवादों को छोड़कर , फेसबुक पर परोसा जा रहा है ज्यादातर साहित्य स्तरहीन ही है । जो केवल ज्यादा से ज्यादा लाईक  और कमेन्ट की लालसा से ही पोस्ट किया जाता हैै । साहित्य के साथ इससे ज्यादा भद्दा मजाक व खिलवाड़ और क्या हो सकता है?

प्रश्न न.9 - वर्तमान  साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैरसरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है ?
उत्तर  - वर्तमान साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैर सरकारी पुरस्कारों की अपनी अलग ही कहानी है । ज्यादातर सरकारी पुरस्कार बिना किसी ऊॅची सिफारिश, चमचागिरी या मक्खनबाजी के वगैर मिलना टेड़ी खीर ही है , वह रचनाकार बहुत ही भाग्यशाली जिसे बिना कसरत के यह पुरस्कार प्राप्त हो जाते हैं । अब बात जहाॅ तक गैर सरकारी पुरस्कारों की है तो उसके लिये भी  किसी साहित्यिक मठाधीश का वरद्हस्त होना परमावश्यक है । वैसे एक सच्चा साहित्य सेवक कभी किसी पुरस्कार के लालच में रचना कर्म करता है वरन् वह तो इसे पूजा मानकर ही अपने कर्म को सम्पादित करता है । जो रचना पुरस्कार के लोभ में लिखी जाती है वह साहित्य हो ही नहीं सकती । सर्वान्त में यही कहूॅगा कि वास्तव में सम्मान के लायक है , उनका सम्मान हो ही नहीं रहा ?

प्रश्न न. 10 - क्या आप अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण का उल्लेख करेगें ?
उत्तर - हाॅ मैं एक घटना का उल्लेख अवश्य करना चाहूॅगा । फर्रुखाबाद शहर में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन हो रहा था । उसमें प्रसिद्ध कवि श्रद्वेयवर गोपालदास नीरज जी भी पधारें थे , कवि सम्मेलन के मध्य ही उन्हे लघुशंका की तीव्रता ने परेशान किया तो , वह उससे निवृत्त होने के लिये जैसे ही उठे वैसे ही मदिरापान की अधिकता के कारण लड़खड़ा कर गिरने ही वाले थे कि तभी मैंने दौड़कर उन्हे थाम कर गिरने से बचा लिया ।तथा अपनों कन्धों का सहारा देकर उन्हें लघुशंका कराने के लिये ले गया । तभी उन्होंने मुस्कराते हुए मेरी पीठ थफथपा कर कहा कि वास्तव में आज तुमने मुझे गिरने से बचा लिया ।
तुम्हारा यह अहसान मैं तमां उम्र नहीं भुला पाऊॅगा । इसी आयोजन  में अकेले में होटल के कमरे में श्रद्वेयवर वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सुमन जी से होने वाली मुलाकात भी जीवन की एक अविस्मरणीय घटना बन गई है । उनका सानिध्य और आशीर्वाद मेरी सांसों को हमेशा महकाता रहेगा ।

प्रश्न न. 11 - आपके लेखन में , आपके परिवार की क्या भूमिका है ?
उत्तर - मेरे लेखन में मेरे परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान है , उनके सहयोग के वगैर मेरा लेखन सहजता से सम्भव नहीं हो पाता । परिवार से सम्बन्धित समस्त दायित्वों का पत्नी द्वारा निर्वहन करने के कारण ही मेरा सृजन कार्य निर्बाध गति आगे बढ़ता रहता है ।


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