बीजेन्द्र जैमिनी की लघुकथा " जिन्दगी का पहला वेतन " पर बनी लघु फिल्म
लघुकथा
जिन्दगी का पहला वेतन
कालिया जिन्दगी का पहला वेतन लेकर घर आ रहा था। घर के बाहर भिखारी ने रोक लिया और हाथ आगे कर के बोला - कुछ दे दो ?
कालिया ने जेब से पर्स निकाल कर, उसमें से एक सौ का नोट देते हुए बोला - कितने दिन तक भीख नहीं मांगेगा ?
भिखारी ने उत्तर दिया - सिर्फ़ तीन दिन
कालिया ने कहा - अगर पांच सौ का नोट दे दूं तो ?
भिखारी ने कहा - कम से कम पंद्रह दिन तक।
कालिया ने फिर कहा - अगर दस हज़ार दे दूं तो ?
भिखारी का सिर घूम गया और कालिया की ओर घूरते हुए बोला - भिखारी की मज़ाक मत उड़ाओ ।
कालिया ने कहा- मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं।
भिखारी ने तंवर घुमाते हुए बोला - जिन्दगी में कभी भीख नहीं मांगूंगा। इन पैसों से काम करूंगा।
कालिया ने तुरन्त जिन्दगी का पहला वेतन के पूरे के पूरे दस हजार भिखारी के हाथ पर रख दिए। भिखारी खुशी के मारें रौ पड़ा । कालिया तो भिखारी के पांव छू कर घर में घुस गया। यह सब नजारा कालिया के पिता जी देख रहे हैं और सोचने लगें कि मेरे पिता जी ने मेरा जिन्दगी का पहला वेतन का शनि मंदिर के बाहर लंगर लगाया था। परन्तु कालिया तो मेरे पिता जी से भी आगे निकल गया । ००
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
बीजेन्द्र जैमिनी की यह लघुकथा " जीवन का पहला वेतन " पुस्तक में पेज़ न 93 पर प्रकाशित किया गया है। पुस्तक का प्रथम संस्करण 2018 में प्रकाशित हुआ है। विमोचन 15 अप्रैल 2018 को राज्य स्तरीय लघुकथा उत्सव , कैथल में हुआ।
पुस्तक का प्रकाशन
अनुज्ञा बुक्स
1/10206, लेन नं 1, वेस्ट गोरख पार्क
शाहदरा, दिल्ली - 110032
वाह ! बेहतरीन संदेशवाहक लघुकथा पर बेहतरीन अभिनय सहित सुंदर ● लघुकथा - लघुफ़िल्म ● हार्दिक बधाई आप सभी को।👏👏💐
ReplyDelete- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
( WhatsApp से साभार )