रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी द्वारा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन रखा गया है । कवि सम्मेलन का विषय " बलिदान " है । यह ऑनलाइन कवि सम्मेलन का 38 वॉ एपिसोड है । जिस का फेसबुक से संचालन किया गया है तथा ब्लॉग पर पेश किया है ।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर जाना पड़ा। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया। स्वयंसेवक सेना का गठन किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई बलिदान को प्राप्त हुईं ।
शब्द की करूँ व्याख्या
क्या ?है यह आसान
अर्थो की गहन व्याख्यान
देश के ख़ातिर दी बलिदानी
क़ुर्बान वीरों की गाथा
बलिदान हुए भगत सिंह
देखा है शहीद चंद्रशेखर
वीरो ने दे दी क़ुर्बानी
पिस्तौल से इंकलाब की नारा
अल्पायु में हो गये अमर
लिख गए अपनी जवानी
बच्चों बच्चों के मुँह से
सुनी है अमर कहानी
देश भक्तों से लतपथ धरा
लिख न सकूं उनकी गाथा
मन पहले ही टूटा
देश सपूतों की क़ुर्बानी
घर घर में सुनी कहानी
दीवार सजे
वीरों की गाथा से
कह न सकूं विह्वल
माँ की व्यथा
जब वीरों को लाया
तिरंगे में लिपटा
धरा भी !
सह न सका झटका।
- सुधा पाण्डेय
पटना - बिहार
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झांसी की रानी थी वह
न डरी कभी न घबराई।
जन जन के मन में बसी हुई
है अमर सदा लक्ष्मीबाई।।
अट्ठारह सौ सत्तावन का,
स्वातंत्र्य समर उद्घघोष हुआ।
अंग्रेजी सत्ता थर्रायी,
राजाओं के प्रति रोष हुआ।।
चाहते थे वो झांसी कब्जाना,
कोशिश उनकी नाकाम रही।
लक्ष्मीबाई दृढ़संकल्पित
झांसी के हित अविराम रही।।
मैं न दूंगीं,अपनी झांसी
उसने खुलकर घोषणा करी।
धमकाया अंग्रेजों ने बहुत
लेकिन रानी न तनिक डरी।।
अट्ठारह सौ अट्ठावन का
वह जून महीना था भारी।
अंग्रेजी फौज से, रानी का
भीषण युद्ध रहा जारी।।
कोटा की सराय के निकट
रानी को उन्होंने घेर लिया।
कुछ सैनिक झांसी के मारे,
कुछ को झांसी ने ढेर किया।
इस बीच हुई घायल रानी,
वीरता से वह लड़ती ही रही।
बहता था लहू जख्मों से,
फिर भी वह आगे बढ़ती रही।
फिर वार हुआ उनके सिर पर,
घोड़े से लुढ़क गयी रानी।
सैनिक मंदिर में उठा लाए,
पिलवाया उनको कुछ पानी।।
सतरह-अठारह जून रही,
जब हुई घायल लक्ष्मीबाई।
उसका पीछा करते करते
अंग्रेजी सेना मंदिर आई।।
अंग्रेज न छू पाएं मुझको,
रानी ने कहा पुजारी से।
इतना कह प्राण छोड़ दिए,
नम नयन सभी मन भारी से।।
लकड़ियां इकट्ठा करीं तुरंत,
रानी का दाह संस्कार किया।
अंग्रेजी सेना आ धमकी,
जो मिला उस पर प्रहार किया।।
शव पड़े हुए थे मंदिर में,
बस एक चिता जलती पाई।
बलिदान हुई न झुकी कभी
जय जय जय हे लक्ष्मीबाई।।
बलिदान दिवस पर नमन तुम्हें
हो अमर सदा तुम बलिदानी।
रहती सृष्टि तक गायेंगे सब,
वीरता तेरी झांसी रानी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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सबनैं भरी हुंकार आजादी खात्तर।
फिरंगी दिए ललकार आजादी खात्तर।
भरी जवानी लिकड़े घर तै परवान्ने,
छोड़ दिया घरबार आजादी खात्तर।
लाठी कौड़े गोळी तक बी झेल्ली थी,
सह़्यी गोर् यां की मार आजादी खात्तर।
भारत छोड्डो बरगी कई तहरीक चली,
जेळ भरी कई बार आजादी खात्तर।
राजगुरु सुखदेव भगत से लाक्खां नैं,
दी जान देस पै वार आजादी खात्तर।
मरे माॅ॑यां के लाल बह़्णा के भाई,
बेवा ह़ुई थी नार आजादी खात्तर।
सत़्तावन म्ह़ं राणी झांसी कड़क उठी,
चमकी थी तलवार आजादी खात्तर।
कइयां की तो कई-कई पीढ़ी खपग्यी,
उजड़े कई परिवार आजादी खात्तर।
देक्खे कोन्या मेळे सरकस 'केसर' नैं,
मनाये नहीं तवाह़् र आजादी खात्तर।
- कर्म चन्द केसर
कैथल - हरियाणा
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एक सौ बासठ वर्ष पूर्व
आज का ही दिन था
१८ जून १८५८ को
आजादी के महासंग्राम में
ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी के पास
अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए
अपने प्राण उत्सर्ग किए थे,
उनका यह बलिदान ही
अपने आप कहता है
कि अंग्रेजों के प्रति
उनके हृदय में कितनी आग थी
वह किसी भी मूल्य पर
उन्हें हराना चाहती थी,
उसकी वीरता की अलख ने
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में
नयी जान फूँकी,
उनके हृदय में
सदा यही भावनाएँ
हिलोरें लेती रही होंगी
“ मैं रहूँ या ना रहूँ
ये देश रहना चाहिए”
पहले वाली झाँसी अब नहीं
पर रानी की झाँसी तो वही है
उनकी वीरता की कहानियाँ
वहाँ की मिट्टी में रची -बसी हैं
आज उनके बलिदान दिवस पर
उन्हें कोटि-कोटि नमन है।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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देश ये अपना हिन्दुस्तान
विश्व गुरू ,है इसकी पहचान।।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
जगत से न्यारा हिन्दुस्तान।।
चुनर रंग धानी,हरियाली
सजल मेघाच्छादित है विहान
विविध रंग पहनावा अपना
विविधता भरे सकल इंसान।।
शांति का नारा देते हैं
देश हित हो जाते #बलिदान।
सनातन संस्कृति है अपनी
भाग्य लिख देते हैं भगवान।।
मिलें सब ही,’उदार ‘दिल से
सजाएँ,सुखमय हिन्दुस्तान।।
- डॉ० दुर्गा अशोक सिन्हा ‘ उदार ‘
सैन डिएगो ,
कैलिफ़ोर्निया, यू.एस.ए.
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कोई जिसको़ भुला न पाया ऐसी अमिट कहानी थी।
अंग्रेजो को थे चने चबाये जिसने हार न मानी
थी।
प्राणों की आहुति दे कर लौ आजादी की जला गयी।
रही अडिग हमेशा वीर सहासी झांसी वाली रानी
थी
- डा० प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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सर पर कफ़न बांधकर
निकले थे, आजादी के मतवाले।
माँ भारती को,बेड़ियों से
मुक्त कराने, निकले थे जीगरवाले।
क्या महिला, क्या पुरुष सभी ने
आजादी पाने की, कीमत थी चुकायी।
माओं ने अपने लाल की, सुहागन ने पति की, दी थी कुर्बानी।
आजादी का नेतृत्व किया था, अपना
बापू,तन पर जिसकी,थी लंगोटी।
सूट_बूट वाले,अंग्रेजों की जिसने
बिना हथियार के, किया था पानी पानी।
नेताजी की फौज, लक्ष्मीबाई का जुनून
उनकी हुंकार सुन, आसमां था थर्राया।
भारत की एकता और जीवटता ने
तिरंगे को फहराने ,साहस था भरा।
आजादी के मतवालों, ने बलिदान
की अमिट,इबारत थी लिखी।
जलियाँवाला बाग, डटे रहने का ज़ज्बा
ऐसी इतिहास में दर्ज, गाथा थी लिखी।
भूल न जाना तुम यादें, आत्मोत्सर्ग
करने वाले,आजादी के मतवालों की।
नेस्तनाबूत कर देना, उसे जो बूरी
नज़र डाले,अस्मत पर भारत माता की। ।
डाॅ •मधुकर राव लारोकर 'मधुर '
नाशिक - महाराष्ट्र
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जो हुए देश के लिए बलिदान है, उनके प्राण धवल से ।
हुए बलिदान मातृभूमि पर
छोड़ा सबकुछ पीछे अपने माँ की रक्षा से वो कभी ना चुके।
सह गए सब
चल दिए हंसते हंसते।
जब तक एक भी कतरा खून का बाकी तबतक
लड़े बलिदानी।
फिर हंस के चल दिए
बलिदानी
जाते जाते कह गए तुम
रखना ख्याल हमारी मातृभूमि महान का।
लहू की एक बूंद भी जब तन में
वे वीर अभिमानी ना रुके न थके बस मातृभूमि के आलिंगन को बेचैन।
पहना कर करते लाल जोड़े से श्रृंगार।
अमर बलिदानी अपने रक्त से बुझाते प्यास भारत मां की।
धन्य अमर बलिदानी सोते जन जगाए,
मन मंदिर से लेकर झोपड़ी तक उजाला ले आए।
यज्ञवेदी पर आहूति को तत्पर,
चूमकर रज भारत महान की ,
अंतिम सफर को निकल पड़े!
'देश सर्वोपरि ऐसे वीर हमारे योद्धा
आओ व्यर्थ न जाने दे उनका बलिदान
वो देखें हंसता भारत
उन्नत भारत ।
तुम जलाते , फेकते पत्थर तोड़ते अपने ही अपनो के
हौसले
कहाँ जा रहे हम सब
ठहर जाओ सोचो
क्या क्या किया है
उन वीरो ने।
रानी बच्चा पीठ पर ले बांध लड़ी ऐसे मर्दानी जैसे
बिजली कौधे ।
सन 57 में अलख जगाई आजादी की नाम अनगिनत
है धन्य भारत भूमि जहां अमर बलिदानी मां को न्यौछावर करते सब कुछ।
देश प्रथम है आओ हम भी सीखे , यही भाव लिए करती नमन महिमा ,
भारत के अमर बलिदानी को जय हिन्द
- डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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आज का आयोजन बहुत सुंदर सुंदर रहा। महारानी लक्ष्मीबाई का स्मरण करते हुए उनके प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित करती सभी रचनाएं सराहनीय रही। जैमिनी अकादमी का हार्दिक आभार
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