मधुदीप गुप्ता की स्मृति में लघुकथा उत्सव
भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा मधुदीप गुप्ता की स्मृति में " लघुकथा उत्सव " का आयोजन फेसबुक पर रखा गया है । अभी तक जगदीश कश्यप , उर्मिला कौल , पारस दासोत , डॉ. सुरेन्द्र मंथन , सुगनचंद मुक्तेश , रावी , कालीचरण प्रेमी , विष्णु प्रभाकर , हरिशंकर परसाई , रामधारी सिंह दिनकर , आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री , युगल जी , विक्रम सोनी , डॉ. सतीश दुबे , पृथ्वीराज अरोड़ा , योगेन्द्र मौदगिल , सुरेश शर्मा , लोकनायक जयप्रकाश नारायण , डॉ स्वर्ण किरण , सुदर्शन ' प. बद्रीनाथ भट्ट ' आदि की स्मृति पर ऑनलाइन " लघुकथा उत्सव " का आयोजन कर चुके हैं ।
मधुदीप गुप्ता
मधुदीप गुप्ता का जन्म एक मई 1950 को गांव दुजाना जिला रोहतक , हरियाणा में हुआ है । इन की शिक्षा स्नातक ( कला ) है। इन के लघुकथा संग्रह मेरी बात तेरी बात , समय का पहिया आदि प्रकाशित हो चुके हैं । इन के छह उपन्यास , एक बाल उपन्यास , एक कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं । इन के सम्पादन में तनी हुईं मुठ्ठियाँ , तीन कहानी संकलन , पड़ाव और पड़ताल के तीस से अधिक खण्डों का सम्पादन किया है । अनेक रचनाओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है । ये दिशा प्रकाशन के निदेशक रहे हैं । इन का देहावसान 11 जनवरी 2022 हुआ है।
कुछ लघुकथाओं के साथ डिजिटल सम्मान : -
जैसे ही वे बँगले पहुँचे।सेठजी ने तपाक से उनका स्वागत किया।चाय आदि की औपचारिकता के बाद पान पराग का डिब्बा पेश करते हुआसेठ जी ने उनसे पूछा,और बतायें साहब।कैसा चल रहा है सब?मेरे योग्य कोई सेवा बताये?
वे एक कार्यालय में अफसर थे।सेठ जी को हमेंशा उस कार्यालय में काम पड़ता। वे भी जरूरत पड़ने पर उनकी हर सँभव मदद करते।
आज पारिवारिक कार्यवश एक बड़ी रकम की जरुरत आन पड़ी।संकोच सहित उन्होंने सेठ जी को सारी बातें बतायी।
रूपयों की बात आयी तो सेठ जी के आँखों के भाव बदल गये।प्रत्यक्ष में मुस्कुराते हुए बोले-अवश्य मैं आपकी जरूरत पूरी करता।पर, आजकल एकांउट का कार्य बड़े साहबजादे देखते है।वे दिल्ली गये है।आते ही सलाह कर आपको खबर करूंगा।
साहब हाथ जोड़ कर उठ खड़े हुए।इस बार सेठजी उन्हें विदा करने खड़े नहीं हुए।मोबाईल में व्यस्त हो गये।
- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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"आलोक सुबह के 7:00 बज गए !
10 बजे आपकी अर्जेंट मीटिंग है ना "!
"सोने दो ना यार पाँच मिनिट और दे दो" !
पति की रोज कि इस आदत से मीना वाकिफ थी!
आलोक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं! टार्गेट पूरा करने पर कंपनी से काफी अवार्ड भी मिले हैं!
"मीना जल्दी नास्ता दे दो बहुत लेट हो गया हूँ " !
"मीना ने कहा आप रोज लेट हो जाते हैं यदि मीटिंग बारह बजे कि है तो आप दो बजे पहुँचते हैं कोई कुछ कहता नहीं" ?
मैं ही बॉस हूँ ! किसी की हिम्मत नहीं है! मैं कंपनी को कितना बिज़नैस भी तो लाकर देता हूँ" !
"मीना ने कहा... आपके बॉस आपको कुछ नहीं कहते" ?
"कहा था... गुस्से में मैने इस्तीफा दे दिया था!
"क्या ..! मीना भय लिए चींखी" !
"हाँ पर एक्सेप्ट नहीं किया... और करते भी कैसे... मैं उनको इतना बिज़नैस जो देता हूँ " !
अब तो आलोक इस्तीफा पत्र अपने जेब में ही रखते थे!
मीना उन्हें समझाती .. "आलोक माना कंपनी को तुम्हारी अहमियत मालूम है किंतु तुम्हें भी समय की अहमियत समझना चाहिए ! समय की कद्र नहीं करोगे तो सारी अहमियत तुम्हारी धरी के धरी रह जाएगी ! तुम समझते क्यों नहीं "....
अॉफिस से आते ही... आलोक ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा...! "मीना मैने इस्तीफा दे दिया और मंजूर हो गया" !
"क्या"...कहते हुए मीना रो पडी़... किंतु रोते रोते भी कह पड़ी.. संभल जाओ... समय को (उसके महत्व को ) पहचानो ... ।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
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'पिता' शब्द जब भी आशुतोष के मन-मस्तिष्क के समक्ष आता है, तो जो छवि उभरती है, वह अपने सन्देशों को कर्म-पथ पर क्रियान्वित करके समझाने वाले अपने पिता की होती है।
उसके पिता ने कभी भी उसे उपदेशात्मक शैली में जीवन-पथ पर चलना नहीं सिखाया। बल्कि स्वयं कार्य करके शिक्षाप्रद शैली थी, उनकी।
उसे याद आता है कि उसके मितव्ययी पिताजी कहा करते थे कि..... "खूब कमाओ..... खूब खर्च करो"। एक दिन आशुतोष ने पूछ लिया.... "पिताजी! यह" खूब खर्च करो" का पालन तो आप करते नहीं। तब उन्होंने कहा, बेटा! मैं खर्च करने के लिए कहता हूँ.... व्यर्थ खर्च करने के लिए नहीं कहता। मेरा आशय है कि खूब मेहनत करो परन्तु खर्च करते समय तो व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना ही चाहिए।"
इसी प्रकार जब घर में गेहूँ की बोरी आती और उसमें से कुछ दाने बिखर जाते, तो पिता का एक-एक दाना चुगना आशुतोष को जीवन भर के लिए 'बचत' का सन्देश दे गया।
पिता ने उससे कभी पढ़ने के लिए नहीं कहा, परन्तु हर समय पिता को अध्ययन-अध्यापन करते हुए देख-देखकर वह एक स्वयं ही उत्तम विद्यार्थी बन गया।
पिता अक्सर कहते थे कि...."मनुष्य के चेहरे की पूजा नहीं होती, कर्म पूजे जाते हैं। इसीलिए आशुतोष ने कभी भी अपने कर्मों की दिशा को भटकने नहीं दिया।
पिता के कर्म प्रधान जीवन के सन्देशों का अनुपालन कर आशुतोष ने जीवन में बहुत सम्मान पाया। जब भी वह सम्मानित होता, उसे अपने पिता और उनकी कर्मशीलता युक्त सन्देशप्रद शैली बहुत याद आती।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
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हेलो नमस्कार दीदी आपने मुझे पहचाना नहीं?
हेलो आपकी बड़ी मीठी आवाज है मैं आपको नहीं पहचान पाई आप कौन मुझे माफ करना सरला जी ने बड़ी सरलता पूर्वक कहा।
दीदी आप से मुलाकात हुई बहुत दिन हो गए आज जो आपके ऑफिस में मीटिंग हैं उसमें मैं भी हूं आप आ रही है न ।
हां एक कांफ्रेंस तो मेरे ऑफिस में होने वाली है?
हां दीदी मैं (अरुंधति राय) पीहू हूं।
अरे पीहू बेटा कैसी हो सुना तुमने बहुत तरक्की कर ली वह जो बड़ा मॉल खुला है अब तुम्हारे भी उसमें आधे शेयर हो गए हैं मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है आप तबीयत ठीक नहीं थी मीटिंग में नहीं आने वाली थी लेकिन आज ऑफिस तुमसे मिलने के लिए जरूर आऊंगी।
दीदी बहुत अच्छा लगेगा आप के आशीर्वाद से ही मैं इतनी आगे बढ़ चुकी हूं मीटिंग शुरू होने से थोड़ा पहले आप आ जाएंगे तो अच्छा रहेगा हम लोग बात कर लेंगे क्योंकि मीटिंग के दौरान अपनी पर्सनल बातें नहीं हो पाएगी।
ओके तो सुबह 9:00 बजे मिलते हैं सरला जी ने कहते हुए फोन रखा और अपने दैनिक काम को जल्दी से निपटाने लगी और अपने ड्राइवर को बुलाकर कहा कि आज छुट्टी नहीं है मुझे ऑफिस लेकर जल्दी चलो।
ठीक है मैडम पर आप तो आज मंदिर जाने को कह रही थी नहीं मंदिर बाद में चली जाऊंगी ऑफिस में थोड़ा काम है तुम रुकना।
सरला जी 9:00 बजे ऑफिस पहुंचे ऑफिस में साफ सफाई चल रही थी मैडम कॉन्फ्रेंस तो 11:00 बजे से है आप इतनी जल्दी आ गई हां मैं थोड़ा जल्दी आ गई आज की मीटिंग की तैयारी करनी है वही देख रही हूं?
बेचारी सरला जी इधर से उधर घूमती रही और उनका मन किया कि पीहू को फोन करूं जिस नंबर पर आया था कि तुम कहां रह गई। तभी उनके बॉस और सभी लोग आने लगें । उनके बॉस ने कहा-मीटिंग में एक मैडम आई हैं उनका नाम अरुंधति राय (पीहू) है वह कह रही थी आप उन्हें जानती है।
जी सर पर मैडम आई नहीं ।
मैडम होटल में रुकी हैं उनको लेने के लिए गाड़ी भेज दीजिए?
जी सर सरला जी ने कहा।
आप दरवाजे पर फूल लेकर खड़े हो जाइए जब मैडम आएंगी तो आप उनका स्वागत है यह फूलों की माला पहनाकर करिएगा जिससे उस मॉल में हमारे ऑफिस में बनाए हुए प्रोडक्ट अच्छे से बिक सके ध्यान रखिएगा जी सर कहते हुए सरला जी कुछ उधेड़बुन में लगी थी तभी पीहू आई ।
कैसी हैं ,आप बहुत दिन हो गया ।
सरला जी ने उनके गले में माला डाली और कहा बस आपका इंतजार कर रहे हैं ।
पीहू सरला जी को एक अभिमान भरी निगाह से देख रही थी और सभी लोग उससे पूछ रहे थे मैडम आप चाय लेंगी या कुछ ठंडा मंगवाए व घमंड से सब की ओर देख रही थी और कह रही थी कि मुझे कुछ नहीं चाहिए आप लोग मीटिंग शुरू करिए और पेपर दिखाइए सरला मैडम। सरला जी को अंदर ही अंदर बहुत बुरा लग रहा था पर अपने नाम की तरह ही व सरल थी वह उठकर गई और मन ही मन यह समझ चुकी थी कि इससे पुराने बॉस ने काम ना आने के कारण ऑफिस से निकाला था ,
यह अपनी ताकत मुझे दिखा रही है, अब अरुंधति जी मेरी पीहू नहीं रहते यह सब समय समय की बात है।
- उमा मिश्रा प्रीति
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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रंजना की आँखों में वृद्ध ससुर के बुझे चेहरे के पीछे छुपे अपने लाचार पापा की छवि दिखाई दे रही थी। जिस पीडा से उसके पिता गुजरे उस पीडा से वह अपने ससुर को नहीं गुजरने देगी। उसने पति सुकेश से कहा,
"आपने.. बाबुजी से घर का कागज मांगा है.?"
"हाँ..क्यों बाबुजी ने कुछ कहा क्या.?"
"पहले आप बताईये..आपको घर का कागज क्यों चाहिये.!"
"नहीं..पहले तुम बताओ..बाबुजी ने जरुर तुमसे कुछ कहा होगा..तभी तुम पूछ रही हो.!"
"बाबुजी बहुत दुखी लग रहे थे..खाना भी ठीक से नहीं खाया..आँखों में आँसूं थे..मुझसे कहने लगे..
बहुत कष्ट सह कर हमने यह घर बनाया है..वैदेही को बस अपना घर चाहिये था.. इसलिये मैने ऋण लेकर घर बनाया..ऋण चुकता करने हेतु उसने बहुत कष्ट सहा..पर कभी ऊफ तक नहीं कहा..वैदेही और बच्चों के साथ बिताये सारे पल.. सब चले जायेगें..एक बूढा आदमी यादों के सहारे ही तो जीता है..बेटा उस आलमारी के लॉकर में कागज रखा है..निकाल कर सुकेश को दे दो..मेरी भी आँखें भर आई..इस घर में माँजी के साथ बिताये उनकी मधुर यादे हैं..जिसके सहारे वो जी रहे हैं..आपने उनसे उनकी यादें मांग ली..आप क्या यह घर बेचना चाहते हैं.?"
"नहीं..मैं घर बेचना नहीं..बस रिनोवेशन चाहता हूँ..मैं बाबुजी के कमरे के साथ एक अटैच बॉथरुम बनाना चाहता हूँ..ताकि उनको सुविधा रहे..फिर बच्चे बडे हो रहे है..उनको भी कमरा चाहिए.!"
सुकेश ने गंभीरता से कहा
"यह तो अच्छी बात है.. आपको उन्हें बता देना चाहिये था..उनकी चिंता मिट जाती.!"
रंजना ने समझाया।
"हाँ लेकिन..बाबुजी को इतना भरोसा तो अपने परवरिश पर करना चाहिये..और एक बात बाबुजी जब तक रहेगें..यह घर उन्ही के नाम रहेगा..मैं अभी जाकर सब बता देता हूँ.!"
रंजना का हृदय पति के लिये श्रद्धा से भर गया । रिनोवेशन की प्रसन्नता ससुर के चेहरे पर देखने के लिये वह भी पति के पीछे-पीछे चल दी..........!
डॉ.विभा रजंन 'कनक '
नई दिल्ली
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“यार, तू सारा दिन रोबोट की तरह काम करता रहता है, थकता नहीं क्या? कभी तेरे चेहरे पर थकावट नहीं देखी, चिड़चिड़ाहट नहीं देखी, घबराहट भी नहीं देखी, बस मुस्कुराहट ही मुस्कुराहट देखी है। ओए, इसका राज तो बता यार?” संदीप ने सुरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“बस यही राज है- मुस्कुराहट”, सुरेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं किसी भी काम को बोझ मानकर नहीं करता। अपना उसूल है- काम तो करना ही है, चाहे रो कर करो या हंस कर, तो हंस कर क्यों ना किया जाए। जैसे दूसरे लोग मोबाइल पर या कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं, वैसे ही मैं अपने हर काम को एक खेल की तरह लेता हूं, और उसे पूरे मनोयोग से करने की कोशिश करता हूं। तुम्हें सुनकर हैरानी होगी कि सौ प्रतिशत नहीं, तो नब्बे-पचानवे प्रतिशत कार्यों में मैं सफल रहता हूं। तो खुश तो रहूंगा ही, और खुश रहूंगा तो मुस्कुराहट भी अपने आप आएगी चेहरे पर...।”
“फिर भी यार, कभी तो बंदा थकता ही है। पर तुम तो हमेशा ऊर्जावान ही रहते हो। कुछ तो गड़बड़ है?” संदीप ने तह तक जाने की कोशिश की।
सुरेश फिर मुस्कुरा दिया, ‘हां है- दो पैग रोज।”
“हां, अब आए न लाइन पर...”, संदीप को जैसे मनचाहा उत्तर मिल गया हो, “मैं कह रहा था न कि कुछ तो है।”
“वह वाले पैग नहीं मियां, जो तुम सोच रहे हो”, सुरेश ने हंसते हुए कहा, “वह तो तुम भी लेते हो, फिर एनर्जी क्यों नहीं आती?”
“फिर? फिर कौन से पैग?” संदीप चकरा गया।
“देखो, तुम दो पैग रोज रात को लगाते हो, मैं एक सुबह और एक शाम को पीता हूं। पर जितने में तुम्हारा एक पैग बनता है, उसके आधे में मेरे दो पैग बन जाते हैं। फिर भी एनर्जी तुमसे दोगुनी।” सुरेश ने कहा।
इस पर संदीप और उलझ गया, ‘ऐसे कौन से पैग हैं भई? कहीं देसी ठर्रा तो नहीं? पर तुम्हें तो कभी पीते हुए भी नहीं देखा, न किसी से सुना है कभी?”
“हां, मैं दारू नहीं पीता, बल्कि वैद्य की सलाह से आयुर्वेदिक टॉनिक लेता हूं, जिससे इतना उर्जावान, चुस्त और जवान रहता हूं। मेरी अपनी सोच है- बीमार होकर दवाइयां खाने से अच्छा है, अच्छी खुराक खा कर और स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक पीकर स्वस्थ रहना। क्यों सही है न...।”
संदीप उसकी बात का अवलोकन कर रहा था...।
- विजय कुमार,
छावनी - हरियाणा
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सुशील अपने शालीन व्यवहार के लिए घर परिवार व समाज के साथ साथ विद्यालय में भी जाना जाता था। विद्यालय में उद्घाटन समारोह होना था। उसके लिए सुशील को मंच संचालन के लिए कहा सुशील ने कहा "ठीक है"। मैं मंच संचालन कर लूंगा।इलाका विधायक के साथ सांसद ने मुख्यातिथि रूप में शिरकत करनी थी। विधायक के गुर्गों को पता चला कि सुशील विद्यालय में मंच संचालित करेगा। उन्होंने एक योजना पर काम किया
इसकी भनक स्थानीय विधायक को भी नहीं थी। जैसे मुख्यातिथि मंच में विराजमान हुए तो सांसद के पी. ए को लेकर विधायक का गुर्गा पंहुच गया और सुशील को अपने तरीके से मंच चलाने के लिए कहने लगे। सुशील ने समझबूझ से काम लिया सीधे ही मुख्यातिथि सांसद से कहा कि आप क्या जल्दी में जाने वाले है। तो आपका भाषण करवा दूं। सांसद मुख्यातिथि ने कहा कि अगर इलाका विधायक चाहते हैं! तो मैं जल्दी चला जाऊंगा। विधायक साथ बैठे थे। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? विधायक ने सुशील से कहा।
क्योंकि आपके महामंत्री खड़े है! कह रहे हैं सांसद को जल्दी जाना है। सुशील ने कहा।
विधायक ने महामंत्री को बुलाया और कहा कि सुशील को अपनी तरह से मंच का संचालन करने दो वहां मंच के पास क्यों मजहबा लगाया है? विधायक ने महामंत्री को फटकार लगायी।वहां से महामंत्री तत्काल हट गया। एक महीने के अंतराल महामंत्री को उसके पद से हटा दिया गया। समय का चक्र चला। सुशील को मंत्री का विशेष अधिकारी नियुक्त कर दिया गया । महामंत्री मुंह ताकता रह गया।
- हीरा सिंह कौशल
जिला मंडी - हिमाचल प्रदेश
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आज दोपहर तीन बजे का वक्त मुकर्रर हुआ मिलने का दोनों के बीच।आज ही फैसला होना था रानी और सुरेश के बीच कि आगे की ज़िंदगी साथ जीनी है या क्या करना है।दोनों ही बड़े उत्सुक थे।एक लंबी मुलाकात अब रिश्ते में बंधने जा रही थी।
इधर जैसे ही सुरेश घर से निकला तो पीछे से फोन आ गया कि मां की तबियत खराब हो गई है जल्दी घर आ जाओ बहुत जरूरी है।अब सुरेश असमंजस में तो था लेकिन घर की तरफ लौट गया।फोन लगाने की कोशिश की पर फोन लगा नहीं सीता को।
उधर सीता जगह पर पहुंचकर इंतजार करती रही।जब काफी समय हो गया तो लौट गई।इधर सुरेश ने समय पर पहुंचकर और मां को अस्पताल समय पर पहुंचाकर उनकी जान बचा ली।
पर दूसरी जगह समय पर न पहुंचकर सीता के संग होने वाले अपने जीवनभर के रिश्ते को न बचा पाया।अर्थात समय का महत्व दोनों ही पक्षों में काम कर गया।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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सुबह- सुबह घूमने में आनन्द आता है, कहते हुए सरोज जी चार कदम चलकर पास बने चबूतरे पर बैठ गयीं।
सुमन ने कहा आप बैठिए, मैं तेजी से पार्क के दो चक्कर लगाकर आती हूँ ।
ठीक है आहें भरते हुए सरोज जी ने कहा । क्या करूँ मन तो अभी भी बचपने की सैर करता - रहता है परंतु ये घुटने समय- समय पर उम्र का अहसास कराने से नहीं चूकते हैं ।
तभी वहाँ से कॉलेज के बच्चों का झुंड गुजरा जो शायद फिटनेस के लिए यहाँ पर एक साथ - दौड़ते हुए आया था । उनमें से एक लड़का कुछ ठिठका और उनके पास आकर बैठ गया ।
क्या हुआ दादी,घुटने ने जवाब दे दिया ?
अरे तुझे कैसे मालूम, चेहरे पर मीठी मुस्कान बिखेरते हुए सरोज जी ने पूछा ।
मेरी दादी के साथ भी यही समस्या है । जब मैं घर पर रहता हूँ तो उन्हें वॉकिंग पर ले जाता हूँ । पर जब इस तरह से आना हो तो उस दिन उनका टहलना रुक जाता है बच्चे ने उदास स्वर से कहा ।
उसके सिर पर हाथ फेरते हुए सरोज जी ने कहा आज मुझे हाथ पकड़ कर कुछ कदम टहला दो, तुम्हारे मन की उदासी दूर हो जाएगी ।
अब तो उस बच्चे के चेहरे पर अनोखी आभा झलकती हुई साफ देखी जा सकती थी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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रामू हरिया फूल सिंह विश्वजीत विकास नगेंद्र हलीम अल्लाह दिया ,अपने साथियों के साथ घर से आए थे कमाने शहर की ओर रात दिन मेहनत करते और शाम तक जी तोड़ मेहनत के बाद जो कुछ मिलता उसमें से कंजूसी के साथ खर्च करते ताकि कुछ न कुछ घर भी भेज सकें । पर अब तो काम भी नहीं रहा और किसी तरह से शहर में मिल रही है रोटी ,लेकिन ऐसे कब तक चलेगा यही सोच कर सब ने घर जाने का मन बना लिया और चल दिए रेलव में सवार होकर लेकिन यहाँ भी कहा आराम है इनकी किस्मत में ,लंबा सफर और ठीक से बैठने की जगह तक नहीं कुछ तो कई घंटे से खड़े ही है। खिड़कियों के आसपास ताकि मिलती रहे कुछ ताजी हवा भरी उमस और गर्मी में रामू सोच रहा है ।अपनी जिंदगी भी क्या इसी तरह कट जाएगी भीड़ में चलते चलते लाइन में लगते लगते क्या कभी मिलेगा हमें सुकून ,क्या कभी पहुंँचेगा हमारे घरों तक भी उजाला बाकी सब साथियों से बेखबर यही सोच रहा है राम । कभी-कभी कहीं ट्रेन रुकती कोई स्टेशन आता तो विचारों का कर्म टूटताऔर वह उतर जाता अपनी प्लास्टिक की बोतल में पानी लेने के लिए वापस आता साथी भी पानी पीते और रामू फिर विचार मगन हो जाता ट्रेन चलने के साथ ही काश यह महामारी कोरोना ना होती तो कम से कम रोटी लायक तो कमा ही रहे थे कुछ ना कुछ घर भी भेज पाते थे महीना दिन मे अब गाँव में भी क्या कर काम है वहांँ भी कुछ नहीं है ऐसा काम यही सोचते सोचते उसका स्टेशन आ गया था ,और वह चल दिया उदास मन थके पांव अपने गांव की ओर सभी साथियों से राम-राम कह कर और भी इसी तरह धीरे-धीरे पहुचेंगे अपने गाँव इसी तरह जब पहुचेगी रेल उनके स्टेशन पर ़़़़़़़़़़़:
समय बदला पर इनके लिए नही लाया कुछ उजाला।
- प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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शर्मा जी का इकलौता लड़का संदीप अपने घर का बहुत ही लाडला था। शर्मा जी अपने पैसे के घमंड में बहुत अभिमान में रहते थे।
सबसे कहते फिरते अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलवाकर डॉक्टर बनाऊंगा पर संदीप पढ़ाई में मन नहीं लगाता फिर भी वे अहंकार में उसकी तारीफ के पुल बांधते हुए विशेष रूप से अपने पड़ोसी गुप्ता जी को ताना कसने के अंदाज में कुछ न कुछ सुनाया करते।
गुप्ता जी चुपचाप उनकी बात सुन लिया करते कभी जवाब नहीं देते। गुप्ता जी के चार बच्चे थे। उनकी आमदनी कम थी। इस कारण वे अच्छे प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को न पढ़ाकर सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे थे।
गुप्ता जी के बच्चे बहुत ही मेहनती और होनहार थे। हरेक परीक्षा में अच्छे नंबर लाते। बड़े होकर वे सभी प्रतियोगिता की तैयारी करने लगे जबकि शर्मा जी का बेटा संदीप ज्यादा लाड़- दुलार के कारण बिगड़ता चला गया, पढ़ाई से भी विमुख हो गया।
गुप्ता जी के बच्चे पढ़-लिख कर उच्च पद पर आसीन हो गए जबकि संदीप पथ भ्रमित हो गलत रास्ते पर चला गया।
अब गुप्ता जी सभी के सामने अपने बच्चों के संबंध में गर्व से सीना तान कर चर्चा करते और शर्मा जी वहां से नजरें झुका कर चुपचाप खिसक जाते।
अब उन्हें पता कि समय बहुत बलवान होता है कभी अपने धन-दौलत का अभिमान करते हुए किसी के दिल को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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घड़ी की टिक-टिक न जाने कब से बन्द पड़ी थी, समय का पहिया तेज गति से घूमता जा रहा था।साक्षी थीं जर्जर हवेली की मूक दीवारें। जिन्होंने हवेली के राजसी वैभव की शानो-शौकत देखी थी।
हवेली के आँगन के बीचों-बीच एक चबूतरे पर पड़े नर-कंकाल की चाक-चौबंद सुरक्षा करते चार बड़े-बड़े कुत्ते।मज़ाल किसी की जो हवेली में पाँव भी रख सके। वफ़ादारी उन्होंने तब भी निभाई थी जब राज परिवार का आखिरी बाशिंदा ज़िन्दा था और उसके कंकाल हो जाने के बाद भी।
आख़िर इतनी तो समझ थी कि मालिक को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। इसलिए एक कुत्ता हमेशा पहरेदारी पर रहता। बाकी बारी-बारी बाहर खाना-पीना कर आते।
चोरों को हवेली में गड़े खजाने की तलाश थी।
कुत्तों को बिना मालिक के घूमते देख उनके हौसले बुलंद हो गये। हवेली में तैनात अकेले कुत्ते को साइलेंसर लगी बंदूक का निशाना बनाया।अंदर घुस कर हवेली का मुख्य द्वार अंदर से बंद कर दिया।
पूरी हवेली छान मारने के बाद आख़िर खज़ाना मिला तो कंकाल के नीचे चबूतरे के अंदर।
खज़ाना लूट कर बाहर निकले ही थे कि बाहर खड़े कुत्तों ने हमला कर दिया।
टी.वी. चैनल पूरी खबर दिखा रहे थे पर खज़ाना किसी को नहीं दिखा।
हवेली की मूक दीवारों को पूरी जानकारी थी पर उनकी मजबूरी थी कि वे गवाही तक नहीं दे सकीं।
काश! दीवारें बोल सकतीं!गुज़रे समय के राज़ खोल सकतीं.
- शील निगम
मुम्बई - महाराष्ट्र
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'आखिर ऐसा क्या हुआ कि हमारे ऊष्मा भरे संबंधों में आग लग गई?' चंद्रावती बहिन ने रोते रोते अपनी पड़ोसन शशिकला बहिन से पूछा। ' हमारे पारिवारिक संबंध तो इतने प्रगाढ़ थे कि हम आधी रात को भी एक दूजे की सहायता करने में पीछे नहीं हटते थे। आखिर क्या गलती हो गई हमारे परिवार से कि आपके परिवार ने हमसे मुंह मोड़ लिया ' चंद्रावती बहिन यह पूछते हुए लगातार सुबक रही थीं। यह सुनकर शशिकला बहिन ने कहा कि जब मेरा पुत्र आपके घर आपके पुत्र के साथ खेलने आया तो आपका पुत्र स्कूल का गृहकार्य कर रहा था। आपने मेरे पुत्र को यह कहकर झिड़क कर आपके घर से भगा दिया कि तू खुद तो पढ़ाई -लिखाई करता नहीं है और समय -बेसमय हमारे घर में घुस कर हमारे बच्चे को भी अपने साथ पूरे दिन भटकाता रहता है। आपके इस तरह झिड़कने से हमारे बच्चे का दिल इस कदर टूट गया कि वह दो दिन तक लगातार रोता रहा और उसने ढंग से खाना भी नहीं खाया। यही वह घटना बनी कि इससे हमारा पूरा परिवार आहत हो गया और अपने संबंधों में आग लग गई। अगर उस दिन आपने हमारे बच्चे से प्रेमपूर्वक बर्ताव किया होता तो यह नौबत नहीं आती। सच बात है कि संबंध निभाने में प्रेम की ऊष्मा जरूरी है नहीं तो फिर संबंधों में आग लग जाती है।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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रजत केश वलीपलीत क्षीणकाय काया मोहन बाबू जीवन
का दीर्घ पथ पार करते हुए अपने पोते को प्रतिदिन स्कूल छोड़ने और लेने जाते l उनका पोता सोनू नवीं कक्षा में आ गया l परीक्षा में उसके 66% अंक आए l वह दादा से लिपट कर रोने लगा, दादा जी! मेरे अंक कम आए हैं l दादा ने कहा- बेटा, कोई बात नहीं ,दिल छोटा न करो l अगली बार अधिक परिश्रम कर अच्छे अंक लाना l प्रथम श्रेणी से तुम उत्तीर्ण हुए हो l बहुत खुशी की बात है l
बेटा! जैसे क्रिकेट खिलाड़ी के शॉट में सही 'टाइमिंग 'का होना आवश्यक है l फ़ुटबॉल की किक और हैड में भी ठीक 'टाइमिंग ' का होना आवश्यक है उसी प्रकार जीवन मे समय के प्रति सचेत तथा गंभीर होना समय का सबसे बड़ा सम्मान है l समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता l संसार मे समय को सबसे अधिक मूल्यवान माना गया है l जिसने इस धन का उपयोग करना सीख लिया उसे कुछ भी प्राप्त करना असंभव नहीं l
सोनू ने दादा की बात गांठ बाँध ली l इधर उसके दादा का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था l अगले वर्ष जब परीक्षा परिणाम आया वह शत प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुआ l दौड़कर वह दादा को गले लगा l उनकी आँखों में खुशी के आँसू ... और सदा के लिए आँखे मूँद ली l
वक़्त जैसे पँख लगाकर उड़ चला l आज जब वह अपने पैरों पर खड़ा होकर इंजिनियर बन गया है, अपने बेटे को यह सीख दे रहा है l वक़्त के झरोखे से झांका तो उसकी आँखें नम हो चलीं l
- डॉo छाया शर्मा,
अजमेर - राजस्थान
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आज अपने कोने के बड़े प्लाट पर बने शानदार घर को देखकर सुखीराम का मन कर रहा था कि दहाड़े मार कर रोएं, भीतर जो दुख,पीड़ा और टूटन का ज्वालामुखी धधक रहा है उसके लावे से सब भस्म कर दें। उन के दोनों सुपुत्र इस घर के दो हिस्से करना चाहते थे और बीचोंबीच दीवार खड़ी करके अपने अपने हिस्से में स्वछंद, स्वतंत्र और मन माफिक जीना चाहते थे। उनका कहना था कि आखिर जिंदगी तो एक ही बार मिलती है।
पिताजी आप तो एक साल इधर ,एक उधर। हम आप को निकाल नहीं रहें हैं
सुखीराम जी ने कहा पर इस उम्र में फिर से ।दोनों एक साथ बोले परेशानी क्या है आप को? वैसे भी आप के लिए जमीन जायदाद को छोड़ना, घर से बेघर होना, नयी हिम्मत जुटाना, फिर से शुरूआत करना,आम बात है। ऐसे विभाजन के दर्दनाक किस्से तो आप ही सुनाते थे। हम कौन सा भारत पाक का विभाजन कर रहे हैं। एक दीवार की ही तो बात है। सुखीराम को लगा कि वह फिर से उन्हीं गोलियों, तलवारों, चीखों और मार काट के दृश्य,लड़खड़ाते, गिरते मरते बिछड़ते लोग , बेबसी ,बेरूखी के मंजर में से गुजर रहे हैं। अंतर मात्र इतना है कि वहाँ परायों ने लूटा यहाँ अपनो ने।
यहाँ दीवार भी इंटों की नहीं स्वार्थ और लालच की है जो कभी टूटेगी नहीं। हर साल कमरा बदलना, रहन सहन ,खान -पान ,तौर तरीके बदलना इस उम्र में फिर से। आँगन में लगे पेड़ के नीचे शरणार्थी से बैठ गये फिर से।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
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माधव एनडीए की परीक्षा हेतु कोचिंग ले रहा था । उसके पिता खेती किसानी करके परिवार का पालन पोषण करते थे। ऐशो आराम की जिंदगी से कोसों दूर मेहनत करके भी बहुत खुश रहते। हल चलाते, बीज बोते, पसीना बहाकर फसल पकने की राह देखते । कभी-कभार मेहनत से अधिक पैदावार देख सपनों के आकाश को उनके भी पंख लग जाते थे। अपने बेटे से कहते --'हमने तुम्हारे बाबा का जमाना देखा और अब तुम हमारा देख रहे हो। कुर्ता- पजामा, धोती में कोई रुकावट नहीं। आजादी से पहले के और अब के जमाने में धरती आसमान का अंतर है बेटे। तब हमारे पिताजी चाहते थे कि हमारा बेटा हमारा हाथ बटावे।हमने उनका हाथ बटाया अन्तर इतना आया कि वह धोती वाले थे और हम पजामा वाले ।
अब हम अरमान सिंह तो बस यह चाहते हैं कि मेरे माधव अपनी जमीन से ऊपर उठकर, देश सेवा करता, वायु सेना का अधिकारी बनकर, नदियों- समुद्रों को पारकर, दुश्मन के
मंसूबों को भापकर कर उन्हें धूल चटाकर, मिट्टी में मिलाकर चरैवेति चरैवेति का झंडा गाड़ कर आना हम तेरे लिए सब कुछ सह लेंगे बेटा।
- डॉ. रेखा सक्सेना
- मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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प्रदीप को बधाई देने वालों का तांता लगा था।मकान व उसी में नए ऑफिस का उद्घाटन,सोचा भी नहीं था आज उसकी शान निराली थी । बधाइयां लेते धन्यवाद करते हाथ व मुंह दुखने लगा था।
रात हो गई सब चले गए,अजीब सी खुशी भरी थकान, थकान भी नहीं उल्लसित उत्साहित मन पलकें मूंदने तैयार ही नहीं थे , खुशियां आज उसके चारों ओर नृत्य कर रही थी।
पैसों की तंगी के चलते बारहवीं तक ही पढ़ पाया था और पिता की अचानक मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी। बहुत आहत था । मामूली सी अकाउंटस की 4000रू.की नौकरी करते पसीना बहाते दस साल गुजर गए और आज,आज उसने अपने ऑफिस में चार सी.ए को नौकरी दी है, बाकी स्टाफ अलग।यह उन्नति कम तो नहीं।
आज उद्घाटन में सारे रिश्तेदार ताऊ की लड़कियां, चचेरी बहनें,चाचीयां,ताई,ताऊ, सभी के खुशी से दांत बाहर गिर रहे थे । तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे।
तभी एक बहन आई व कहने लगी भैया , मुझे भी सिखाना और नौकरी दिलाना इन दिनों परेशान हूं और उसने हामी भरी।
याद आया उसे वह दिन जब वह चचेरी बहन की शादी में गया था,सबने उसे हिकारत भरी नजरों से देखा था खाने तक को नहीं कहा । उसने काम बताने कहा तो मना कर दिया ,डर गए कही कुछ पैसों में हेर-फेर न कर दे। दादी ने जरूर लाड़ किया और खाने को कहा, वह भरी आंखों से घर आया था।
दस साल बाद यह वही लोग हैं जो उसकी तारीफ करते गले लगाते नहीं थक रहे थे।
आज फिर आंखें भर आई ।आज आंखों में दुख के आंसू न थे ,मिश्रित आंसू खार व मिठास लिए गालों पर ढुलकते हुए उससे पूछ रहे थे तुम्हारा समय बदल गया है या ये लोग , फिर आंसुओं नें हंसकर कहा - तुम तो वही हो ,यह तुम्हारा नहीं, तुम्हारे बदले समय , तुम्हारी धन दौलत और तुम्हारी प्रतिष्ठा का सम्मान है ।
आंसूओं ने हौले से कानों में कहा अब सो जाओ समय बहुत हो गया है, बहुत रात बीत गई तुम्हें कल समय से उठना है और कड़ी मेहनत करते हुए धन दौलत और मान प्रतिष्ठा को कायम रखना है। अगर ऐसा नहीं किया तो समय फिर बदल सकता है।समय की कद्र करो।
- डॉ.संगीता शर्मा
हैदराबाद - तेलंगाना
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“जब से तुम रिटायर हुए हो चिड़चिड़े से हो गए हो…”
“क्यों?क्या किया है मैंने?”
“क्या ज़रूरत थी बच्चों के सामने चिल्ला कर बोलने की…ज़रा सा नमक कम खा लेते एक दिन तो क्या हो जाता…बहू को कितना बुरा लगा होगा।जितना बोलना है मुझे बोला करो।बच्चे जब तक रहें घर का माहौल ठीक रहे तो, बच्चे भी छुट्टी इन्जॉय करेंगे।”
सरला जी ने तेज प्रताप जी अपने पति को समझाने की कोशिश की।
“बस -बस ज़्यादा लेक्चर देने की ज़रूरत नहीं अब मेरे ही घर में मेरे बोलने पर पाबंदी रहेगी…”
वंश भी इस बार दादू के पास कम समय व्यतीत कर रहा है।दिन भर मोबाइल पर विडियो गेम खेलता रहता है।पिछली बार आया था तो ख़ूब दादू के पास बैठ बातें करता था।कभी लूडो खेलने की ज़िद करता तो कभी हाथ पकड़कर बाज़ार चलने की ज़िद करता।आठ साल का ही है लेकिन इस बार आया है तो बस जैसे दादू के पास बैठ चंद बातें कर मानो कोई ड्यूटी पूरा कर रहा हो।
शाम को तेज प्रताप जी टहल कर आए तो वंश को आवाज़ लगाने लगे।”वंश,देख तेरे लिए गर्म -गर्म समोसे लाया हूँ,चल आजा मेरा प्यारा बाबू !जल्दी से नहीं तो ठंडा हो जाएगा”
उन्हें घर में एक अजीब सी चुप्पी पसरी हुई महसूस हुई।
कमरें में गए तो सरला जी अंधेरे में चुपचाप पलंग पर बैठी हुई दिखाई दी।
“क्या हुआ?वंश कहीं दिखाई नहीं दे रहा?”
“हाँ !वो नानी घर चला गया।उन लोगों का वापसी का फ़्लाइट वहीं से है।बंटी बोल रहा था …न्यू ईयर मनाकर वहीं से चला जाएगा।”
“अरे!बताया नहीं…कम से कम बता देता।रोक थोड़े लेते।”
तेज प्रताप जी,निढाल होकर धम् से तख़्त पर समोसे के पैकेट को एक तरफ़ रख लेट कर सोचने लगे।एक हमारा समय था कहीं जानें से पहले दिन निकाला जाता,माता पिता से हिम्मत जुटा कर अनुमति ली जाती थी।
आजकल तो लगता है मानो बच्चे माँ बाप के पास ख़ानापूर्ति करने आते हैं।मानो आकर एहसास कर रहे हों।क्या समय आ गया है ?
सरला जी ने भी पास आकर एक लंबी साँस भरकर कहा-समय के अनुसार हमें अपनी भावनाओं पर क़ाबू करना होगा।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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लगभग 15 दिन हिमालयन यात्रा की जंग के बाद थकी हारी नि: ढाल सी बिस्तर पर पड़ी पड़ी सोच रही थी,बहुत खुशनसीब होते है जिनके अपने साथ होते है ।
न्यूरी अपने घर आते समय बहुत बहुत खुश हो रही थी कि और कह रही थीआज मुझे सोने देना प्लीज ! मुझे कोई सुला देना ।जंग में मैं एक मिनट भी नहीं सो पाई।
न्युरी का मन तो कर रहा था । कि अब के संग खूब बोले ..बाते करे... हंसे ।
पर सख्त निर्देशों के बाबजूद ही rest के लिए घर की परमिशन जो मिली थी ।सोते सोते जैसे ही न्यूरी को किसी ने जोर- जोर से तीन बार उठाके बेड पर पटका । खुशी खुशी में न्यूर्री जोर से चिल्लाई । मुझे नींद आ गई । सुबह हो गई ???
सभी घर में आज बहुत खुश है । आखिर खुशी की बात भी तो है , न्यूरी के संग जंग में भी परिवार और शुभ चितको का आशीर्वाद जो था
समय और प्यारा सा परिवार हर मर्ज की दवा है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
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राम और श्याम का साथ-साथ बचपन-जवानी बीती, समय के साथ-साथ व्यवहारिकता और बदलाव में नकारात्मक सोच में परिवर्तित हो गया। दोनों अब पारिवारिक के माहौल में अपने आपको परिपक्व में हो चुके थे। उस समय फोन, मोबाईल, फेसबुक की दुनिया नहीं थी। पत्राचार, तार की सुविधा तो थी ही किन्तु दोनों के पास पते होते तो पत्राचार का सिलसिला जारी होता। समय चक्र इस तेजी से व्यतीत हो रहा था, शायद ही कल्पना करना ही शेष था, कि मुलाकात होगी या नहीं? कहते हैं कि जब सच्चा परिदृश्य हो तो भेंट हो ही जाती हैं, दोनों के साथ यही हुआ, जब दोनों अपने-अपने निवास से सफर की ओर निकले, जब उस तीर्थयात्रा के दौरान दोनों आमने-सामने थे, देखते ही रह गये, जो दूरियां थी, नकारात्मक सोच की, सकारात्मक में बदल गयी?
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
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" देव! यह तुम्हारे साथ कौन आया है?" पंडित शशि शर्मा ने पुत्र से घर में प्रवेश करते ही सवाल किया।
" पिताजी! यह मेरे बचपन के दोस्त सतीश है।" युवा ने मुस्कान चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
"पर बेटा..." पिताजी कुछ कहते- कहते रुक गए ।
"पिता जी! हम दसवीं तक गांव के स्कूल में पढ़े थे, अब यह अपने शहर में इंजीनियरिंग कर रहा है।" "अच्छी बात है।" पिताजी ने बात में बात मिलाई।
" पिताजी, इसका शहर में कोई नहीं है... हमारे पास एक कमरा खाली है ..तो उसे इसको दे देते हैं।" देव ने पिता की स्वीकृति लेने की अपेक्षा की।
" पर यह तो शायद... उस जाति... से.." पिताजी का अधूरा वाक्य बहुत कुछ कह रहा था। "पिताजी,आप तो अध्यापक हो... फिर भी..."
"बेटा, देखो जाति- धर्म तो निभाना ही पड़ता है ।"
बीच में टोकते हुए पिताजी ने कहा।
"अच्छा पिताजी, जब आप बीमार होकर 5 दिन मेडिकल में एडमिट रहे तो आपके कपड़े.. चारों तरफ की सफाई... यहां तक कि भोजन परोसना... सब काम स्पेशल वार्ड में कौन करता था?" देव ने पिता से आपत्तिजनक ढंग से उत्तर दिया।
"मगर बेटा, बीमारी में तो..."
" नहीं पिताजी, हम विद्यार्थी एक ही जाति के हैं इसलिए दोनों भाई हुए । याद करो.... आपने एक दिन हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में क्या कहा था... बच्चों तुम सब भाई -भाई हो ,छात्र ही तुम्हारी जाति है और विद्या तुम्हारी माता है।" बेटे ने बीते समय को पल में ही स्मृतिपटल पर प्रस्तुत करा दिया।
पंडित शशि शर्मा ने दोनों के पुराने भाईचारे को देखते हुए सतीश को घर में रहने की अनुमति दे दी ।
-डॉ चंद्रदत्त शर्मा चन्द्र
रोहतक- हरियाणा
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सुनील ने अपनी गर्भवती पत्नी सुनीता से अकड़ते हुए कहा-
"मैंने एक बार कह दिया सो कह दिया, मुझे तो बेटा ही चाहिए ।"
"मगर यह मेरे बस की बात.........।"
"इससे मुझे कोई मतलब नहीं, अगर बेटी हुई तो मैं उसका मुंह तक नहीं देखूंगा, रखने की बात तो बहुत दूर की है ।"
सुनील के पहले एक लड़का था और अब भी वह लड़का ही चाहता था । समय अपनी रफ्तार से चल रहा था ।
समय आने पर सुनीता ने लड़की को जन्म दिया मगर सुनील ने उसे अपनाने से साफ इंकार कर दिया । सुनीता ने अपने दिल पर पत्थर रखकर अपनी पुत्री, पूजा को अपनी मां को सौंप दिया जहां उसकी परवरिश होती रही ।
समय सब कुछ देखते हुए निर्बाध गति से चला जा रहा था । सुनील ने अपने बेटे को महंगी पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जहां उसे डिग्री के साथ-साथ पत्नी भी मिल गई और वह हमेशा के लिए वही का होकर रह गया ।
बीमारी किसी को पूछ कर नहीं आती । दिल की बीमारी, पास में पैसा नहीं मगर एक हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर पूजा उसका इलाज कर रही थी और वह भी निशुल्क । सुनील ने मन ही मन पश्चाताप करते हुए उससे कहा-
"बेटी मैं तुम्हारा यह कर्जा, यह उपकार कैसे चुका पाऊंगा ?"
उसके मुंह से बेटी शब्द सुनकर समय खिलखिला कर हंस पड़ा ।
- बसंती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
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लता सर्दी की गुनगुनी धूप मे बैठने का आनंद ही कुछ अलग है।
रोहित "विटामिन डी" जो मिल जाता है ।
इस बुढ़ापे में चलने फिरने की एनर्जी मिल जाती है, वर्ना ये घुटने तो अब साथ नहीं देते ।
लता वो इवेंट आज मुझे याद है जब चार सौ मीटर में मुझे और सौ मीटर तुमने गोल्ड मेडल जीता था ।
"कालेज की तुम उड़ान परी थी ।"
"तुम सबकी जान थे ।"
"वो भी क्या दिन थे ? " सुबह-सुबह उठना दौड़ लगाना तुम्हारे संग में ,अब तो सब सपने जैसा लगता है।
समय समय की बात है
रोहित बीता हुआ समय वापस तो नहीं आ सकता लेकिन जीने का उत्साह दे जाता है ।
रोहित वो गाना याद है जो हम मिलकर गया करते थे ।
हम बने तुम बने ......एक दूजे के लिए
हाहाहाहाहा...वाह मजा आ गया तुम तो अभी भी अच्छा गा लेती हो ।
तुम्हारे इकरेजमेंट का ही नतीजा है ।
" मैं तो गाना क्या हँसना ही भूल गई थी ।"
रोहित तुम जैसे जिंदादिल इंसान की वजह से ही में कैंसर से लड़ सकी हूँ ।
अर्विना गहलोत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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"ओह्ह... आखिरकार बन ही गई..।" उसने ब्रश से आखिरी स्ट्रोक लगाते हुए एक लम्बी अंगडाई ली।
उसने कुछ दूर जाकर तस्वीर को देखा।
टूटे फूटे घर के सामने बैठी औरत की बड़ी बड़ी आंखों में डरावना पन नहीं बल्कि मजबूरी, बेबसी, और दया की मांग झलक रही थी।
वह एक बड़ा और प्रतिष्ठित चित्रकार था। उसकी कला में, उसकी ऊंगलियों में गजब का आकर्षण और जादू था जो तस्वीर के किरदार को जीवन्त कर देता था। जब वह ब्रश पकड़ता तो किरदार के मनोभाव उसके चेहरे पर, उसकी आंखो में आकर बोल उठते थे।
ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था वह। कहते हैं जब वह छोटा था तभी घर से भाग आया था।
उसने फिर कुछ दूर जाकर चित्र को देखा।
अब वह मॉडल के सामने खड़ा था उसे धन्यवाद कहने के लिए।
गौर से उसने उस चेहरे को देखा जिसने उसकी चित्राभिव्यक्ति के लिए इतनी भाव प्रेषण प्रस्तुति दी थी।
चित्रकार ने पर्स निकाल कर उसमे जमा सारे पैसे उसे थमा दिये।
उसे उसके चेहरे के अतीत में अपना बनता हुआ भविष्य दिख गया था।
कनक हरलालका
धूमरी - असम
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"सुनो !तुम्हें एक ब्रेकिंग न्यूज सुनाता हूँ फलाने का लौंडा फलानी जाति की लड़की से लव मैरिज कर रहा है .. फलाने तो बड़ा ही बेशर्म है कह रहा था शादी तो सादा तरीके से मंदिर में होगी.. बाद में एक अच्छी सी रिशेप्शन पार्टी दूँगा।"
पति ने सुबह की सैर से लौटने के बाद अपनी पत्नी से कहा।
"एक दिन में इतना परिवर्तन.." पत्नी ने नहाने के बाद तौलिए से बाल सुखाते हुए कहा।
"मतलब ?"
"कल तक तो फलाने जी का बेटा सी. ए. है सी.ए. ..आज "जी" भी हटा और बेटा भी "लौंडा " हो गया। वैसे भी फलाने जी है ही बेशर्म ..सारी शर्म त्याग कर तुमसे सलाह लेने जो आते है।"
पति चुपचाप अखबार में चेहरा छिपाने की कोशिश करने लगा।
"हमारे परिवार की पहली पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी ने प्रेम विवाह नही किया...लेकिन ये जो तुम्हारे कंधों पर दादा -नाना कह कर झूलते है और तुम खुश होते हो ना.. कल ये किस जाति में प्रेमविवाह करेंगें तुम्हे पता है?....किसी की इतनी हँसी भी मत उड़ाया करो कि अगले दिन हँसने लायक भी न रहो। "पत्नी समझाते हुए बोली।
अब तो पति की अकल के ही ब्रेक फेल हो गये ...अख़बार पटका और स्नानघर के अंदर।
- दीप्ति सिंह
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उबासी लेते हुए अर्षदीप ने आपनी दादी मां की गोद में सिर टिका दिया ।
अरे ना ,मेरे बच्चे को तंग ना करो।
अर्षदीप ने सिर खुज़लाते हुए दादी मां के पास शिकायत करते हुये कहा,' मुझे मारा है इसने ।
--कोई बात नहीं मैं मांरुगी इसे ।
'आ हा ! दादी मारेगी ,दादी मारेगी।'
'सिर पर चढ़ा रखा है , कोई सीख ना लेने देना।'
'तेरे को किसने सीख दी है ? आया बड़ा सीख देने वाला।'
'मुझे सीख दी है, मेरे बापू ने ।'
'अच्छा ! मैंने कुछ नहीं दिया. . . ?'
' आप ने तो सिर्फ मारा है,झिड़की दी है ,कान खींचे हैं ।'
'मैंने . . .मारा है .?'
'नहीं मां , सिरियस मत हो ,आपकी नसीहत को कैसे भूल सकता हूँ । तुम तो मेरा खुदा हो।'
' वाह ! मेरे लाल . . .।' आपने पोते के साथ ही मां ने (बुक्कल) बाहों में लेते हुये माथा चूम लिया।
'अब जाओ बेटा , पापा के साथ ऊँगली पकड़ कर जाओ।'
' ऊँगली पकड़ कर , आह. . .हा.ऊँगली पकड़ कर ।'अर्षदीप ने आपने पापा की ऊँगली जोर से पकड़ ली।
- डॉ नैब सिंह मंडेर
रतिया - हरियाणा
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उम्र हो चली है तुम्हारी। कितना बोलती हो आप। पता नहीं क्या अति सोचना कितनी बड़ी बीमारी बनती जा रही है आजकल, पर कौन समझाए आपको?
कुछ भी हो जाए आपकी चुप्पी टूटने वाली नहीं
बस घुन्ने की तरह बैठे रहते हो। मैं मरूँ या जियूँ….कोई फर्क नहीं पड़ता आपको।
हर बात में अपनी तुलना करनी जरूरी है क्या? दुनिया में हर कोई अलग होता है। लेकिन आपको तो अपने को ही ऊँचा और श्रेष्ठ सिद्ध करना है। बात करना ही बेकार है।
मेरे पास पैसों का कोई पेड़ नहीं लगा है। पिछले दो सालों से करते-करते खाली हो चला हूँ। पर यह समझने की इच्छा ही नहीं। बस ये करना है वो करना है
नहीं सुनती मैं किसी की। आज से अपने मन की करूँगी। वैसे भी मुझे कोई तमगा तो दे नहीं रहा…..सोच कर हिरण्यमयी दूध पीकर चैन की नींद सोई तो फिर उठी ही नहीं।
सुनो जी! लगता है बुढ़िया तो निकल ली आज। जेठ जी, दोनों देवरों और ननद को खबर देने से पहले बक्सा तो देख लें, जो रखना है पहले ही रख लें। हिरण्यमयी की मौत ने बेटे-बहू के चेहरे पर कुटिल मुस्कान ला ही दी थी।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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एक शहर में पति-पत्नी अपने तीन बच्चों के साथ रहते थे ।पति नौकरी पर चले जाते और पत्नी बच्चों को तैयार कर विद्यालय भेजती। पत्नी ने पति से कई बार कहा कि बच्चों को हिंदी माध्यम के विद्यालय में पढ़ाया जाए, लेकिन पति नहीं माने।उन्होंने अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में अपने दोनों बच्चों का प्रवेश करा दिया और छोटी लड़की को हिंदी माध्यम के विद्यालय में पढ़ाया ।
एक दिन पति महोदय बीमार पड़ गए और लंबी बीमारी के कारण नौकरी से अनिवार्य सेवानिवृत्ति ले लिया।वे घर पर ही रहने लगे।उनके दोनों बेटे निजी संस्थानों में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करने लगे,बेटी भी एक विद्यालय में अध्यापिका हो गई। रविवार का दिन था, संयोग से सभी लोग घर में ही थे ,तब तक अचानक पतिदेव की सांस फूलने लगी। बड़ा बेटा --थका हूं ,नींद का बहाना कर सोने चला गया और छोटे बेटे को उसके दोस्त ने फोन कर बुला लिया। मां देखती रह गई ,दोनों में कोई उन्हें लेकर अस्पताल नहीं गया। बेटी ने साहस किया और अपने पिता को पास के अस्पताल ले आई। दो दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उन्हें छुट्टी मिली और वह घर आए। संयोग से उनके दोनों बेटे उन्हें अस्पताल देखने नहीं जा सके।
अब वे अपनी पत्नी और बेटी से आंखें नहीं मिला पा रहे थे। उन्होंने कहा- तुम ठीक कह रही थी ।अंग्रेजी विद्यालयों की महंगी पढ़ाई के बाद बच्चे बड़े पद और अच्छी तनख्वाह वाले भले हो जाएं ,लेकिन वहां संस्कार नहीं सिखाया जाता। संस्कार तो हिंदी माध्यम के विद्यालयों में ही सिखाया जाता है। अंग्रेजी शिक्षा ने पूरे भारत को गुलाम बना लिया है ।हिंदी और गुरुकुल शिक्षा के संस्कार,अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में कहां ? यह मेरी बेटी ही मेरा बेटा है। इसका विवाह मैं किसी संस्कारवान परिवार में करूंगा। बेटे तो केवल अपनी सुविधा देखते हैं , अपना विवाह भी वे स्वयं ही करेंगे।माता-पिता से बहुत मतलब नहीं रखेंगे।
- डॉ० विजयानन्द
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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पत्नी के आग्रह पर जब बेटा मां का कलेजा निकाल कर चला तो राह में उसे ठोकर लगी और कलेजा हाथ से फिसल कर सड़क पर जा गिरा। कलेजे में प्रतिक्रिया
हुई,,,,,
भूतकाल- "बेटा, कहीं तुझे चोट तो नहीं आई?"
वर्तमानकाल- बेटे को गिरा देखकर कलेजा व्यंग्य
से मुस्कुराया।
भविष्यकाल- खिलखिला कर हंसा और बोला," जैसी करनी वैसी भरनी।"
- मधुकांत
रोहतक - हरियाणा
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श्रवण- "बड़े भैया, मां की तबीयत बहुत ख़राब है। बेहोश-सी हो गई है। लधुशंका और दीर्घशंका भी बिस्तर पर हो गया है। सांस जैसे बंद हो गई है। लगता है मां अब....।"
भावेश- "अरे! उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है। बच्चों जैसी हरकतें करती है। मेरे घर आई थी तब मैं तो दो दिन में ही तंग आ गया था। बचपने की भी कोई हद होती है। सारा दिन अनाप-शनाप बकती रहती है।"
श्रवण- "लेकिन भैया, आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गएं हैं। आप और भाभी जल्दी आ जाइए।"
भावेश- "मैंने कहा न कि किसी मानसिक रोग के डॉक्टर को बताओ।"
क्रोध भरे शब्दों में इतना कहकर भावेश ने फोन रख दिया। इतने में उसका बेटा संकल्प आया और बोला- "पापा, आप कॉलेज में तो हर रोज़ लेक्चर देते हैं। आज़ मुझे भी थोड़ा मार्गदर्शन दीजिए, क्योंकि मैंने कॉलेज में होने वाली परिचर्चा में हिस्सा लिया है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या बोलूं?"
भावेश- "बेटा, परिचर्चा का विषय क्या है?"
संकल्प- "संतान माता-पिता को दे सकती हैं- सिर्फ़ समय।"
संकल्प की परिचर्चा के विषय को सुनकर भावेश गहरी सोच में पड़ गया और आत्म-चिंतन करने के लिए विवश हो गया।
- समीर उपाध्याय 'ललित'
गुजरात - भारत
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विजय के पिता हर समय हर चीज पर ध्यान रखते हैं ताकि घर में किसी चीज का नुक़सान न हो।
जैसे आप रूम में पढ़ रहे हैं तो तेज रोशनी को प्रयोग करें। बाथरूम में पानी की बर्बादी न हो अगर नल खुला हुआ है तो अपने बच्चों को विजय की मां को हिदायत देते रहते थे। विजय यह देखते- सुनते वो भी अभ्यस्त हो गया। विजय जब पढ़-लिख कर नौकरी की तलाश में था बहुत कंपनी में अपना इंटरव्यू दिया कहीं मौका नहीं मिल रहा था। समय गुजरता जा रहा था।
अंतिम मे एक MNC company से साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। उसकी ऑफिस पांचवां तला पर थी। लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। सभी अभ्यार्थी निचले तला पर बैठेंगे ऐसी इन्तज़ाम था । एक-एक कर उपर आयेंगे।
साक्षरता दोपहर 2:00 बजे से शुरू हुई थी। विजय का नंबर सबसे अंतिम में था।सभी इंटरव्यू देकर लौटने लगे। अंतिम में विजय जो नीचे से ऊपर तला जाने के क्रमश तो उसने सभी रास्ते के लाईट ओफ करते गया। चूंकि दोपहर होने से रोशनी था। उपर जब पहुंचा तो बाथरूम से पानी गिरने का आवाज सुनाई पड़ा उसने वहां जा कर नल बंद कर इंटरव्यू रूम में प्रवेश किया। सिलेक्शन कमिटी के चेयरमैन ने पूछा You are Vijay
yes sir चेयरमैन कुछ पूछा नहीं डायरेक्ट ऑफर दिया आप जॉइन करें। काफी प्रसन्न होकर चेयरमैन से पूछा आप कुछ पूछे नहीं डायरेक्ट ऑफर दे रहे। चेयरमैन बोले सी.सी.टी.वी कैमरा लगा हुआ है। आपका व्यवहार देखकर हम लोग निर्णय लिए कंपनी को ऐसे ही व्यक्ति के तलाश है । जिन्हें बचत और समय की ज्ञान हो । वही आप में पाया गया।
खुशी-खुशी घर लौट कर अपने पिता के चरण स्पर्श किया ।आपके नसीहत से, आज मेरी अच्छी नौकरी लगी है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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कुसुम अस्पताल के पलंग के पास खड़े होकर आंसू बहा रही थी और पलंग पर आंखें बंद किए हुए उसकी बेटी किरण लेटी हुई थी नर्स आई किरण को जगाया और दवाई देकर चली गई ।
किरण ने मां को रोते हुए देखा तो उसने मां को पास बुलाकर *अंग में भर लिया ***और जोर जोर से रोने लगी और कहने लगी मां मुझसे गलती हो गई आगे से कभी भी जीवन में कितनी भी विपतिया आ जाएं ,कितने भी कष्ट आ जाएं मैं आत्महत्या कदापि नहीं
करूंगी ।
मैंने आपकी हालत देखी है आप कितना डर गई थी मुझे देखकर मां मुझे माफ कर दो ।
कुसुम ने अपने आप को संभाला और किरण के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा बेटा यह जीवन है ।
यहां तो दुख और सुख / धूप ,छाव की तरह है ,जो आते जाते ही रहते हैं ।
हमें उनसे घबराना नहीं चाहिए क्या हुआ जो तुझे गिरीश ने धोखा दे दिया उसकी किस्मत खराब थी कि तेरे जैसे प्यार करने वाली लड़की को धोखा दिया है । तू देखना तुझे बहुत अच्छा लड़का मिलेगा और तू जिंदगी में बहुत खुश रहेगी। पिछली बाते सब भूल जाओ
मेरी मां कहती थी बेटा शादी उससे ही करो जो तुम्हें प्यार करता है तुम जिससे प्यार करती हो वह पता नहीं तुम्हें वह प्यार दे पाएगा या नहीं दे पाएगा ...इसलिए कहती हूं अपने प्यार को भूल जा गिरीश तेरे लायक नहीं था ।
*किरण ने मां को जोर से अंग में भरकर* *बोली आप सही कहती हैं आज से मैं वही करूंगी जो आप कहेगी , अब मेरा उद्देश्य एक ही है कि मैं मन लगाकर काम करू और आगे बढ़ती जाऊ ।
कुसुम शाबाश किरण मुझे तुमसे यही उम्मीद थी । अब तुम अपने लक्ष्य पर नजर रखो ,और तुम्हारा सारा ध्यान अपने कैरियर पर होना चाहिए तुम वह हासिल करो जो तुम चाहती हो। प्यार से भी बढ़कर जीवन में बहुत काम है।
- अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
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बलते समय परिवेश के रिटायर मेंट के बाद बच्चों के पास ही रहना उचित समझा ।जब बच्चों ने कहा हमें आपने अपनी इच्छा से महत्वकांक्षी आत्मनिभर बना विदेश भेजा ।हम अब तक आपके अनुकूल ही रहे
फिर हमारा भी फर्ज है आप हमारी ख़ुशियों में शामिल हो हमारे पास रहिये !
हम आपका पूरा ध्यान रखेंगे आपको हमसे प्यार है या आपके ईट पत्थरों के घर से और समय के अनुकूल चल ,
विदेश में रह फादर्स डे का मजा कुछ और ही रहा , आज नवासी सुबह से उठ ब्लेक बेरी जूस केक , फ़्रूट पंच बनाया ,बिटिया ने पिता के पसंद के पकौड़े बटाटा बड़ा लड्डू बनायें ,
सब तैयार हो सन रूम डायनिग हाल पर पहुँचे !
सुंदर फ़ोटो खिच ,बिटिया शिवानी ने पापा को टी शर्ट भेंट की ,नवासी साम्या ने अपने पापा और नानू को टमलर काफ़ी पाट भेंट किया ।जिसपर हैप्पी फादर्स डे एवर लिखा भेंट किया ।
तभी बिटिया शिवानी ने कहा नानी के लिए क्या लाई हों साम्या ने कहा - मेरे पास एक पुराना काफ़ी पाट स्कूल से मिला गिफ़्ट है मै उसे लाकर नानी को देती हूँ बिटिया ने कहा -पुराना दोगी ? नया क्यूँ ,नही लाई , तो क्या आप जूस नाश्ते खाने की प्लेट और ग्लास रोज नया नानी नानु को ला कर देती हों । सब सुनकर अवाक रह गये ।नानु नानी की हँसी की फुलझड़ी छूट गई । बड़ी होती साम्या ने कहा मैंने कुछ ग़लत कहा क्या ?
अच्छा ये बताओ मम्मी आप नानी नानू के पास कैसे मनाती थी ।और आपके पापा याने मेरे नानू ने क्या गिफ़्ट दिया। आप लोग इण्डिया में कैसे मानते थे ।
मम्मी ने कहा - हमारे होली क्रास स्कूल में फादर्स डे की छुट्टी होती थी ।मेडम क्राफ़्ट वर्क सिखाया करती थी ! कार्ड बना रूमाल पर सुंदर चित्रकारी कर पिता को गिफ़्ट देना । वो ख़ुश होकर आपकी सारी विश पूरी करेंगे ।
हमने भी अपने पिता को रूमाल पिता का नाम सुंदर गुलाब के फूल के साथ कार्ड बना भेंट किया उन्होंने अपनी डायरी में रखा , और कहाँ तुम्हें समय आने पर अमूल्य निधि की तरह भेंट करूँगा ! अभी तुम मन लगा पढ़ो हमारी विश इंजीनियर बन पूरी करोगी ! फिर हम तुम्हारी विश पूरी करेंगे , जो तुम्हें मेरी तरह जीवन भर ख़ुश रख तुम्हारी विश पूरी करते रहेंगे । और तुम्हारे पिता समीर जी को ढूँढ कर जीवन साथी बनाया ।
आज तुम्हारे पिता जिसे तुम “गाड फादर” मानती हो ना ,ऐसे ही तुम्हारी विश पूरी करेंगे और साम्या खिलखिलाती हुई पिता के गले लग गई !
- अनिता शरद झा
अटलांटा - अमेरिका
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समय समय की बात
"पापा का इतने दिन बाद फोन.. कैसे..,"फोन की घंटी सुनकर मालिनी के दिमाग में सैकड़ों आशंकाओं ने जन्म ले लिया ।
पापा ने माँ के देहांत बाद दूसरी शादी कर ली थी तबसे उसने पापा को फोन नहीं किया था। लोगों ने कितनी बातें बनायी थीं । उसे कितनी शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ा था।
" हाँ ! पापा बताएँ.. नमस्ते ! कैसे हैं ..,"हड़बड़ाते हुए मालिनी ने कहा ।
"बेटा ...बस ठीक हूँ ..आज तुम्हें फोन किया वह..,"रामचन्दर जी का गला रुंध गया ।
"हाँ ..पापा बताइये ..क्या हुआ ..सब ठीक तो है, "मालिनी घबराहट में प्रश्न पर प्रश्न पूछ रही थी ।
"बेटा ..मेरा इस उम्र में विवाह करना तुम लोगों को नागवार गुज़रा ..लेकिन क्या करता.. तुम्हारी माँ के जाने के बाद ..बेहद अकेला ..असहाय पड़ गया था
..घर खाने को दौड़ता था ..न खाने का ठिकाना ..न जिंदगी का..तभी सरोज मिलीं ..वह भी अकेली थीं ..उनके बच्चे उन्हें यहाँ अकेले छोड़ विदेशों में बस गये थे ..बस हमें ऐसा लगा कि हम लोग एक दूसरे के अकेलेपन के साथी बन सकते हैं ..बेटा.. तुम अभी नही समझोगी ..समय समय की बात है, "कहते कहते रामचन्दर जी लगभग रो से पड़े ।
"पापा हमें बहुत घबराहट हो रही है ..क्या हुआ बताएं,"मालिनी बोली ।
"बेटा.. सरोज को दिल का दौरा पड़ा है ..हमने किसी तरह अस्पताल में भर्ती करा दिया है ..पर यदि उसको कुछ हो गया तो अब..मैं भी.. ,"कहकर फफक कर रो पड़े रामचन्दर जी ।
"अरे!पापा परेशान न हों सब ठीक हो जाएगा.. हम बच्चे हैं आप के साथ ..हम आ रहे हैं, "मालिनी ने दृढ़ता से कहा ।
रामचन्दर जी को लगा उनके बूढ़े कांपते पैरों में शक्ति आ गयी हो । वह डाॅक्टर साहब को आते देख खड़े हो गये ।
"डाॅक्टर साहब ..मेरी पत्नी ठीक तो हो जाएँगी, "काँपते स्वर में बोले ।
"चिंता न करें.. बाबू जी ..आँटी जी.. अब खतरे से बाहर हैं, "डाॅक्टर साहब कहते हुए आगे बढ़ गये ।
- सीमा वर्णिका
कानपुर- उत्तर प्रदेश
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ReplyDeleteनमस्कार बीजेन्द्र जी 🙏
ReplyDeleteमेरी लघुकथा को स्थान दे सम्मान दिया!
धन्यवाद 🙏
सर आप इस तरह से भी कार्यरत रहें ताकि हमारी लेखनी को लिखने का मौका तो मिलेगा साथ ही सभी रचनाकारों का आपसे और एक दूसरे से आपसी जुड़ाव बना रहेगा!
सब की लघुकथाएं अच्छी हैं!
सभी को बधाई 🌹🌹
चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
( WhatsApp से साभार )
आदरणीय…आपने मेरी लघुकथा को शामिल करके मेरी बीमार चल रही मानसिकता में संजीवनी का संचार किया है।
ReplyDeleteआगे से देखते रहने का प्रयास करूँगी और तय सीमा में ही रचना भेजूँगी।
सादर प्रणाम 🙏
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
( WhatsApp से साभार )