श्री शीतला माता मंदिर
श्री शीतला माता मंदिर
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प्रकृति और पुरुष का योग ही सृजन का कारक बनता है। पराशक्ति के प्राकट्य के बिना सृजन, पालन तथा प्रलय असम्भव है। भारत भूमि पर सती के इक्यावन पावन शक्तिपीठ से इतर भी अनेक देवी सिद्धपीठ अस्तित्व में हैं। जो भक्तों के आस्था के केंद्र हैं। जिनका पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व विश्रुत एवं श्लाघनीय है। इसी क्रम में महाभारतकालीन दक्षिण पांचाल अंर्तगत कई देवी मंदिर दर्शनीय हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के जिला फर्रुखाबाद (जिसे पुराणों में अपराकाशी, माकंदी, स्वर्गद्वारी, अहिछत्र, पांचाल, काम्पिल्य तथा साक्यांशपुरी आदि नामों से ख्यात)में नगर सहित ग्राम्यांचल में स्थित शीतला माता, पलरा देवी, गुरुगांव देवी , सिंहवाहिनी मंदिर और फूलमती देवी मंदिर प्रमुख हैं।
फर्रुखाबाद नगर की युग्म नगर फतेहगढ़ को जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर बढ़पुर में दक्षिणी ओर एक प्राचीन तालाब के किनारे भव्य देवी पीठ अवस्थित है। इसका पताका युक्त ऊर्ध्व गोपुरम् नागर शैली में दर्शनीय है। विशाल प्राशाल एवं गर्भगृह मेन विराजमान मां शीतला देवी का विग्रह भक्ति में लीन कर लेता है। जनश्रुति के अनुसार बढ़पुर के सैनी परिवार के एक बुजुर्ग को देवी ने स्वप्न दिया कि मैं गांव के बाहर तालाब में हूं। मुझे तालाब से निकालकर विराजित करो। प्रात:काल श्रद्धालुओं की सहायता से मूर्ति को बाहर निकाला गया। अस्थायी रुप से एक स्थान पर रखा गया। कुछ समय पश्चात अन्य स्थान पर ले जाने का प्रयास विफल हुआ। देवी विग्रह अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। कालांतर में उसी स्थान पर विधि-विधान से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गयी। इसकी प्राचीर नागर शैली में है दीवारों पर शाक्त मत के देवों के भित्तिचित्रों सहित फूल पत्ती का मनोरम चित्रण है।
विशेषता :-
बासंतिक एवं शारदीय नवरात्रि के अतिरिक्त प्रति सप्ताह सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार को नवजात शिशुओं का मुण्डन तथा अन्नप्राशन संस्कार कराने के साथ ही विवाह पूर्व कन्या को आशीर्वाद दिलाने की प्राचीन परम्परा है। लोक मान्यतानुसार देवी को गुलगुला, अठौरी और पिटऊआ(मीठी पूड़ी) भोग में प्रिय है।
मां शीतला देवी को नेत्रजनित व्याधियों, चेचक, विसूचिका आदि का उद्धारक कहा गया है। इसी संदर्भ में शीतलाष्टमी को विशेष पूजा अर्चना का विधान है। इस पर्व पर वत्री श्रद्धालु उपवास रख बसौड़ा अर्पण करके स्वजन परिवार की सुख समृद्धि की मंगलकामना करते हैं।
पहुंच मार्ग :- फर्रुखाबाद रेल तथा सड़क मार्ग से दिल्ली, आगरा, कानपुर लखनऊ और बरेली पर्यंत विधिवत जुड़ा है। फर्रुखाबाद जंक्शन तथा राजकीय परिवहन स्टेशन से मात्र 1.5 किमी की दूरी आटो रिक्शा इत्यादि से मंदिर तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है।
शीतला माता मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री भीम प्रकाश कटियार जी एवं मंदिर के मुख्य अर्चक अरुण श्रीमाली महाराज हैं।
महाभारतकालीन अपराकाशी नाम ख्यात पांचाल (अब फर्रूखाबाद, कन्नौज ) अंतर्गत फर्रूखाबाद नगर में पंच शक्तिपीठ (यथा - पूर्व में मां शीतला देवी, पश्चिम में मां मंगला गौरी(गुड़गांव देवी), उत्तर में पतित पावनी गंगा तट पर फूलमती देवी , दक्षिणी ओर दक्षिणेश्वरी कालिका माता तथा हृदय स्थल में सड़क के बीच पलरा देवी(हठीली देवी) मंदिर) अवस्थित हैं।
मां मंगला गौरी (गुडगांव देवी) महाभारतकालीन मंदिर प्राचीन है। यह मंदिर मंगला गौरी को समर्पित है। मंदिर में मंगला गौरी की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। इस के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है, कि इस मंदिर में विराजमान देवी की प्रतिमा गुरु द्रोणाचार्य ने अपने हाथों से बनायी थी। उन्होंने पांचाल नरेश राजा द्रुपद पर चढ़ाई करने से पूर्व देवी की पूजाअर्चना की थी, जिससे मंगला गौरी देवी जी प्रसन्न हुई थी। यहां पर जो मनोकामना मांगते हैं। वह जरूर पूरी होती है। मंगला गौरी जी भगवान शिव की पत्नी है।
गुडगांव देवी मंदिर बंग शैली में बहुत सुंदर बना है। गर्भगृह में मंगला देवी के दर्शन सुलभ हैं। मंगला देवी वस्त्र और गहनों से सुसज्जित है। गुडगांव देवी मंदिर फर्रुखाबाद शहर के पश्चिम दिशा में बाहरी क्षेत्र में फर्रुखाबाद- अलीगढ़ मार्ग पर स्थित है। आप यहां पर आध्यात्मिक शांति के लिए आ सकते हैं। आपके मनोरथ पूर्ण होंगे।
*पलरा देवी (हठीली देवी)*- नगर के हृदय स्थल पर मुख्य मार्ग के मध्य पांडवों द्वारा स्थापित भगवान सदाशिव पाण्डेश्वर महादेव की आदिशक्ति के रुप में विराजित हैं। यह नगर की आराध्य देवी के मां अन्नपूर्णा के रुप में मान्य हैं। रह मंदिर बाबा पाण्डेश्वर नाथ(पंडा़ बाग) देवालय से 200 गज की दूरी है।
सन 1942 के आसपास फर्रुखाबाद के अंग्रेज कलेक्टर ने सड़क बीच में भारी नीम के वृक्ष के मूल मे विराजित देवी विग्रह और नीम वृक्ष को हटाने का स्वयं समक्ष खड़े होकर सख्त आदेश दिया। आदेश की तामील की गयी। तभी यकायक नीम की जड़़ में से हजारों झुण्ड की तादात में बर्र और ततैया का आक्रमण हो गया। वहां मौजूद अधिकारी कर्मचारी बुरी तरह आहत हो गये। उसमें अंग्रेज कलेक्टर भी सम्मिलित था। हताश होकर वह आदेश वापस लेकर उल्टे पांव लौट गया। तभी से इन्हें हठीली देवी भी कहा जाता है।
आज भी देवी स्थान यथावत अक्षुण्ण है। अब पीठ का कायाकल्प कर दिया गया है। आधुनिक शैली की वास्तु का परिचायक यह मंदिर दर्शनीय एवं भव्य है। इसके अर्चक द्वय पं० विष्णु दयाल अग्निहोत्री तथा रमेश मिश्र जी हैं।
फूलमती देवी
नगर के उत्तरी छोर भगवती गंगा के तट के निकट गांव नीवल पुर तथा माधौपुर की कटरी में अवस्थित देवी सिद्धपीठ है। प्राचीन काल में यह मंदिर फूलमती बरकेशव तीर्थ गुप्त क्षेत्र नाम से वीइख्यात था। मुख्य मंदिर पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार यहां पर दक्ष प्रजापति की पुत्री का दाहिना हाथ गिरा था , अत:इस स्थान को वरद्हस्त भी कहा जाता है। यह बावनवां शक्तिपीठ है। सन् 1980 में इस मंदिर का भवन अस्तित्व में आया और 1985 में जीर्णोद्धार पश्चात वर्तमान स्वरुप में आया। यहां पर पौराणिक रम्यता प्राकृतिक छटा तथा आध्यात्मिक साधना के लिए नैसर्गिक शांति किसी श्रद्धालु का चित्त आकर्षित करने का सामर्थ्य रखती है।
दक्षिणेश्वरी कालिका मंदिर
भीष्म नगर (फर्रुखाबाद) की दक्षिणी ओर सेंट्रल जेल-श्याम नगर मार्ग पर सातनपुर आलू मंड़ी समिति के निकट दक्षिणेश्वरी मां कालिका सिद्धपीठ है। माता काली की श्याम वर्णी प्रतिमा के दर्शन मात्र से संकट हर जाते हैं। तांत्रिक साधनाएं भी साधी जाती हैं। अकाल मृत्यु को कालग्रास बनाने वाली ममतामयी मां कृपालु हैं। प्रत्येक नवरात्रि सोम बुध और शुक्र को विशेष पूजा अर्चन का विधान है। दूर दूर से भक्त गण दर्शनार्थ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
इन विचारों संग मंगलकामनाएं......
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
- डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित(प्रखर)
फर्रूखाबाद(उ.प्र.)209601
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अपराकाशी पौराणिक तथा एतिहासिक नगर आज फर्रूखाबाद के नाम से जानी जाती है। यह भूभाग महाभारतकालीन पांचाल जनपद का अंग रहा। तत्कालीन तप स्थली रहा क्षेत्र शिव साधक था। आज भी कंकर कंकर शंकर और देवीपीठ दर्शनीय है।
ReplyDeleteजय पाण्डेश्वर धाम
जय गंगा मैया
जय शीतला माता
जय मंगलागौरी
डॉ प्रखर दीक्षित
बहुत सुन्दर जानकारी
Deleteहार्दिक आभार