पद्मश्री मनोज कुमार स्मृति सम्मान - 2025

        इस दुनियां में मतलबी लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मतलबी लोगों का व्यवहार एक दम से बदल जाता है। फिर भी कर्म का फल हमारा होता है। इससे भागना नहीं चाहिए। इसका सामना करना चाहिए। फिर देखो मतलबी लोगों का क्या होता है । मतलबी लोगों का कोई आधार नहीं होता है । जैमिनी अकादमी की परिचर्चा में कुछ ऐसा ही विचार का समाधान ढूंढने का प्रयास किया है । अब आयें विचारों को देखते हैं :-
     इतिहास गवाह है, मतलबियों से ही सिंहासन का पतन हुआ है। इंसारी जीवन में कौन अपना और कौन पराया समझ के परे है। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए यथार्थ में जो सूझ-बूझ से घटेश्वर हो रहा है, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से देखने को मिल रहा है। कोई चोरी, हत्या, डकेती,अत्याचार, बलात्कार, भ्रष्टाचार, समसामयिक, रचनात्मक, धार्मिकता, राजनैतिक आदि में अपने गुणो का बखान कर कर्म अपने आपको सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रसास्वादन करवाता है। इसमें कर्मठता का फल प्रधान है।

  - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

           बालाघाट - मध्यप्रदेश

     यह सही है कि इस दुनिया में बहुत मतलबी लोग रहते हैं पर सभी मतलबी लोग हैं यह सही नहीं। अच्छे लोगों और अच्छे कर्मों के आधार पर टिकी है दुनिया। कहते हैं ना पड़ोसी का धन गिनने से हम अमीर नहीं हो जाएँगे अतः अमीर बनने के लिए अपना धन स्वयं कमाना होगा। अच्छा फल, अच्छी ज़िन्दगी जीने के लिए अपने ही कर्मों पर ध्यान देना होगा । हम सभी अच्छे व्यक्ति का साथ ढूँढते हैं , वह अच्छा व्यक्ति हमें स्वयं बनना है। अपने गिरेबान में झांकना होगा कहीं वह मतलबी व्यक्ति हम ही तो नहीं क्योंकि कैसे भूल जाए हम ही से दुनिया बनती है । 

      - रेनू चौहान

            दिल्ली 

     "कर्म किए जा फल की चिंता मत कर ऐ इंसान"।मतलबी लोगों की दुनिया में भी अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है।गीता के अनुसार किए कर्मों का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता है।अच्छे कर्मों से आदमी प्रशंसा ही पाता है ।ऐसा करके उसके मन को शांति व खुशी ही हासिल होती है।मतलबी तो केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं।उनकी कभी परवाह मत करो।कर्म करने से सदा सद्गति ही प्राप्त होती है, इसलिए कर्म पथ पर कदम बढ़ाते रहो।

   - प्रो शरद नारायण खरे

      मंडला - मध्यप्रदेश 

        मतलबी लोगों की दुनिया में इंसानियत का कोई  मोल नहीं होता .मतलब से यारी कर जीवन की भाग दौड़ में ठगें रह गए! जाते है ! राह मंज़िल औरों का लक्ष्य बताते कहते है  !मतलबी दुनिया में ये भेद है!स्वार्थी हो कर हर बार छले  जाते है !वास्तविकताओं की जड़े कमज़ोर नही हैं ज़िंदगी में वास्तविकता का साथ निभा कर्मक्षेत्र की और बढ़ जंग जीत की बाज़ी होती,ख़ुद्दारी का साथ निभाया होता एक अज़ीज़ दोस्त को अपना बनाया होता नज़र अन्दाज़ करने की आदत थी । सबको मतलबी बता दिया ।नज़र अन्दाज़ करने की आदत थी सबको मतलबी बता दिया ।अज्ञान की शक्ति क्रोध ज्ञान की शक्ति मौन समय की दस्तक अंतिम घड़ियों एकाकी बना अज्ञान की शक्ति क्रोध ज्ञान की शक्ति मौन समय की दस्तक अंतिम घड़ियों एकाकी बनामतलबी ना कहलाया होता तभी दिल की आवाज़ ने दस्तक दी हर कर्म में अपनो का साथ निभायेंगे नज़र अन्दाज़ कर अपनों को मतलबी ना बतायेंगे ।जीवन में कुछ कर्म ही सफलता की कुंजी बतायेंगे । 

       - अनिता शरद झा 

      रायपुर - छत्तीसगढ़ 

     यह बात आज के समय में अमूमन देखा और महसूस किया जा रहा है।लोग बहुत स्वार्थी और मतलबी होते जा रहे हैं। एक दूसरे से जलन ईर्ष्या का भाव सदैव देखा जा रहा है। फिर भी इसी दुनिया में अच्छे लोग भी हैं और शायद ऐसे लोगों के कारण हीं दुनिया  का आस्तित्व  है। यह  तो सभी इंसान जानता है कि  जैसा कर्म करेगा वैसा फल प्राप्त होगा। मगर कुछ लोग इस बात को भूल जातें हैं, और मनमानी करने लगते हैं। इसे सदैव याद रखनी चाहिए जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान। यही गीता का ज्ञान भी है ,जो अक्षरशः सत्य है।

  - डॉ पूनम देवा 

   पटना - बिहार 

      माना यहाँ मतलबी लोग ज्यादा हैं लेकिन अच्छे कर्म करने वाले भी हैं जिनको आजकल के लोग बेवकूफ कहते हैं। और उनका फायदा भी उठाते हैं। कुछ लोग यह जानते हुए भी कि ये मतलबी है. फिर भी उनकी सहायता कर देते हैं यह सोचकर उनके कर्म उनके साथ और हमारे कर्म हमारे साथ रहेंगे। लेकिन मतलबी यही समझता है कि इसको मैं बेवकूफ बना रहा हूं  इसका फायदा उठा रहा हूं. और इसे समझा भी नहीं. पर ऐसा नहीं है यह अपनी अपनी सोच पर निर्भर करता ये मतलबी है. फिर भी उनकी सहायता कर  देते हैं यह सोचकर कि उनके कर्म  उनके साथ और हमारे कर्म हमारे साथ रहेंगे। यहाँ  हम सब की अलग-अलग सोच है.

    - अर्चना मिश्र

 भोपाल - मध्य प्रदेश

      वह मतलब ही है जो सृष्टि की विकास-यात्रा को गति देता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- सुर नर मुनि सबही की रीती। स्वारथ लागि करिहिं सब प्रीती।।स्वार्थ से प्रीति जगती है और प्रीति एक दूसरे को निकट लाती है। नैकट्याभिलाषा के कारण ही यह संसार जीने लायक बन सका है। कर्म, कर्मफल और मतलब (स्वार्थ) का अन्योन्यश्रित सम्बन्ध है। मूलतः व्यक्ति जो कुछ भी कर्म करता है, उसके पीछे होता है स्वार्थ। किया गया कर्म निश्चित समय पर फल बनता है। फल-भोग से स्वार्थ (स्व का अर्थ) सिद्ध होता है। लेखक ने दो पंक्तियों के गागर में विचारों का जो महासागर भरा है,वह वहाॅं से निकलने पर व्याख्या-विश्लेषण के बड़े मैदाने में समा नहीं पाएगा। 

  - प्रोफेसर मिथिलेश कुमार त्रिपाठी               प्रतापगढ़ - उत्तर प्रदेश

     दरअसल सारा मामला मनुष्य को मिले संस्कारों का है जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं । जिन्हें परिवार में बचपन से उसे दूसरों की भलाई के संस्कार मिले हैं वे बिना मतलब के सदैव अपने आस- पास, मुहल्ला,गाँव, नगर से लेकर समाज और राष्ट्र की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने में लगाते हैं। और इसी तरह से यह दुनिया चलती आ रही है। इसमें बहुत सारे एकदम मतलबी लोग हैं तो  से बहुत से हद दर्जे के परोपकारी लोग भी हैं जिनकी वजह से यह दुनिया लगातार चलती आ रही है। और इसी तरह से हज़ारों साल तक चलती रहेगी

         - अरविंद मिश्र

      भोपाल - मध्यप्रदेश 

             असल में हमारे नैतिक मूल्यों में शनै:-शनै: गिरावट आती जा रही है। हम अतीत में जाना नहीं चाहते, बस आगे बढ़ते रहना चाहते हैं। हमारे सामने विलासिता के साधनों से सजा-धजा बाजार है। जिसमें से हम जरूरत का नहीं शौक का सामान खरीदने को आतुर हैं, भले ही वह हमारी सामर्थ्य से बाहर हो। इसके लिए चाहे कर्ज लेना पड़े, या अन्य कोई तरीका अपनाना पड़े और यह अन्य तरीका, मतलब का भी बन गया है। हमारे सामने के इस विशालकाय बाजार से एक सामान खरीदकर फुर्सत होते हैं कि दूसरे सामान खरीदने की ललक बढ़ जाती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि हमारे दोनों तरफ जो लोग हैं, वे अब सगे-संबंधी न रहकर, उनसे  प्रतिस्पर्धा शुरु हो गई है। इस प्रकार से हम ऐसे कुचक्र में फँस गए हैं कि न तो निकल पा रहे हैं और न ही निकलना चाहते हैं। हम्म अपने-आप में इतने मतलबी बन गए हैं कि हमें न औरों की फिक्र है, न अपनों की। न प्रतिष्ठा की, न उलाहने की। बस, हमें तो अपना मतलब पूरा करना है। किसी का नुकसान हो, किसी को कष्ट हो, किसी का दिल दुखे। इस बात की कोई न परवाह, न पछतावा। परंतु यह सिर्फ एकतरफा सोच है। जबकि कर्म का फल मिलना भी सुनिश्चित है, निहित है। कोई माने या न माने। कहा गया है।‌    

    - नरेन्द्र श्रीवास्तव

   गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

        दूनिया का असूल है जब तक काम तब तक नाम है, नहीं तो दूर से ही सलाम है, अक्सर देखने को मिलता है कि  आजकल स्वार्थ के पीछे दूनिया भागती है, जब तक स्वार्थ है तब तक साथ देंगे लेकिन जब मतलब निकल जाता है तो बात तक नहीं करते, कहने का भाव  आज कल एक दुसरे को सहारा बनना, मुसीबत में काम आना असहाय की मदद करना  बगैरा खत्म होने के कगार पर है, जब तक अपने आप में दम है तो सभी सहारा देते हैं लेकिन जब इंसान  को किसी के सहारे की जरूरत होती है कोई भी अपना नहीं बनता, फिर अपना कौन है, मेरे ख्याल में अगर मनुष्य का साथ देते हैं तो वो उसके कर्म हैं, कर्म कभी किसी का साथ नहीं छोड़ते, इसलिए हमें अच्छे कर्म करने की जरूरत है ताकि हमें अच्छा फल मिल सके और किसी को कह कर निराशा न हाथ लगे क्योंकि मतलबी लोग  हमारे जीवन को निराशा से भर देते, हमें ऐसे कार्यों से परहेज करना चाहिए जिसके लिए किसी की जरूरत पड़े चाहे उसने हम से हजारों काम लिए हों, नेकी कर कुँए में डाल जैसा स्वभाव रखिये और अपने कर्मों को सही दशा पर रख कर किजिए, हमें अच्छाई का फल जरूर मिलेगा, आज नहीं तो कल मिलेगा , सच भी है लोग मजदूरी देत है क्यों राखे भगवान, उस परम परमात्मा को ध्यान में रख कर अच्छाई करते जाईये आप को अच्छा ही फल मिलेगा, जरूरी नहीं रोज मन्दिर जाया जाए कर्म ऐसे करो कि यहाँ जाओ वहाँ मन्दिर बन जाए, यह अटूट सत्य है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए कर्मों का  प्रभाव खत्म नहीं होता, इसलिए हर व्यक्ति को निष्काम  व शुद्ध कर्म करने चाहिए ताकि मतलबी लोगों से दूर रहा जा सके और हमारे कर्म खुद हमारे सहायक बनें, सत्य कहा है जो तोको काँटा बुवे, ताही वोये तू फूल, तोको फूल के फूल हैं, बॉकों है त्रिशूल, कहने का भाव जो आपके लिए काँटे बोता  है आप उसके लिए फूल वोयें  आपको  फूल की जगह फूल ही मिलेंगे और काँटे वाले को काँटे, इसलिए मतलबी दूनिया तो अपना मतलब देखेगी लेकिन भगवान हमारे कर्म। 

 ‌‌  - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

       जम्मू - जम्मू व कश्मीर

     ये दुनियां मतलबी लोगों से भरी हुई है !! ऐसे मतलबी लोग जो मतलब के लिए बात करते हैं , मतलब के लिए साथ खड़े होते हैं और मतलब के लिए हितैषी बन जाते है!! अधिकांश लोग मतलब सिद्ध होने के बाद ....मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं !! हर मतलबी व्यक्ति को अपना कर्म भोगना पड़ता है इसलिए स्वार्थ सिद्धि की होड में हमें अपने कर्मों खराब नहीं करना चाहिए क्योंकि हर कर्म परमात्मा की तकडी मैं तुलता है और उसका हिसाब होता है !!

    - नंदिता बाली 

 सोलन -हिमाचल प्रदेश

      काली रात है तभी भोर का आनन्द लिया जाता है- स्वार्थ है तभी निस्वार्थ का अर्थ पता है-कुछ पेड़ ऐसे हैं जिन्हें एक पीढ़ी लगाती है तो अगली पीढ़ी फल चखती है…! मतलबी होना तो वहाँ भी हो रहा है। औलाद से भी उम्मीद लगायी जाती है कि वे बुजुर्गों की देखभाल करें। जो औलाद देखभाल नहीं करती उन्हें नालायक कहा जाता है। बेमतलब कहाँ कुछ होता है। हाँ कुछ अधिक अंश में मतलबी इन्सान धोखेबाज हो जाते हैं लेकिन यह उनका कर्म है जो उन्हें बतौर सजा के रूप में भी फल मिलता है। अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है बुरे कर्म का फल बुरा होता है-

   - विभा रानी श्रीवास्तव 

         पटना - बिहार 

              "मतलब के हैं रिश्ते नाते, मतलब की है दुनिया" यह सही है, कि बिना मतलब के किसी से कोई रिश्ता नहीं रखता। निस्वार्थ भाव प्रायः लुप्त होते जा रहा है। हर जगह महत्वाकांक्षा सर उठाए, नाग के फन की तरह फन फैलाए खड़ी है, और मानव उसमें फसता ही जा रहा है। अति महत्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए, चाहे कैसे भी कर्म करने पड़े। हम बिना सोचे विचारे अंधाधुंध दौड़े जा रहे हैं। और कभी जब अपना ही जमीर सर उठाने लगता है, तो उसे यह कहकर शांत कर देते हैं, कि यही तो दुनिया का चलन है। परंतु कर्मों का फल तो निश्चित है, जैसे अपने कर्म, वैसा ही फल। इसलिए सर्वप्रथम स्वयं पर ध्यान दें, कि हम भी उन्हीं मतलबी, लालची लोगों में तो नहीं गिने जा रहे । हमारे अंदर स्वार्थ की भावना हर जगह सर तो नहीं उठा रही। क्योंकि अपनी अंतरात्मा की आवाज हम‌ स्वयं ही सुन‌ सकते हैं। 

     - रश्मि पाण्डेय शुभि 

     जबलपुर - मध्यप्रदेश

      यह सही है कि इस दुनिया में बहुत मतलबी लोग भरे  हैं जिनकी संख्या 90 प्रतिशत है बाकी 10 प्रतिशत  सही  । अच्छे लोगो के  सदकर्मों के आधार पर टिकी हुयी  यह  दुनिया है ।  सारे चेतन जग में करनी भुगतने आते है। अच्छी करनी  करने वालों को सर्वोत्तम फल मिलता है। अपना  सद्कर्म रूपी धन स्वयं कमाना होगा। पुण्य फल, अच्छी ज़िन्दगी जीने के लिए इंसान को  अपने ही कर्मों पर ध्यान देना होगा । युधिष्टर  हरिश्चंद्र सत्यवादी थे।  कभी बुरा नहीं किया । नीति पर चले। हमें अपने आचरण के गिरेबान में झांकना होगा । आत्मा गलत काम करने को रोकती है क्योंकि आत्मा शुद्ध है सत्य है। मन गलत कर्म करने को राजी हो जाता है। स्वार्थ ,लोभ मोह से दूर रहें ।  सद्कर्म से  कबीर , मीरा इसकी मिसाल है।

      - डॉ मंजु गुप्ता

     मुंबई - महाराष्ट्र 

   जो अपने विवेक को सदा जगाये रखता है वह इस दुनिया और दुनिया के मतलबी लोगों के व्यवहार से  विशेष प्रभावित नहीं होता है क्योंकि वह जानता है कि व्यक्ति के कर्म ही उसकी और उसके चरित्र की सबसे बड़ी पहचान होगी और कर्म के फल ही जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। दुनिया तो सदा से ऐसी ही रही है और ऐसी ही रहेगी, बस इस दुनिया में रहने वालों को अपने कर्म की और अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि उनके परिणाम ही जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले होंगे।

     - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

         देहरादून - उत्तराखण्ड

     मतलबी दुनिया में कर्म फल से पाएं सफलता।आज क्या हमेशा से ही स्वार्थी प्रवृति के लोग  येन_ केन_ प्रकारेण अपना कार्य सिद्ध कर अपना वर्चस्व बनाते आएं है पर इसके साथ यह भी तय है कि श्रेष्ठ कर्म देर से ही सही अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं. हम अपने धर्म ग्रन्थ रामायण और महाभारत के काल में ही इस बात को देखें कि रावण और कंस, कौरवों आदि ने मतलब और भय से समाज में अपना एक दबदबा बनाया हुआ था पर अंत में कर्मशील राम,कृष्ण,पांडव ने ही श्रेष्ठ जीत पाई और जग  को कर्म का औचित्य समझाया।अंततः यही कहना श्रेयस्कर होगा कि,

दुनिया में लाख मतलबी हों,

पर कर्म का पलड़ा रहता भारी।

अतःन हो भयभीत इनसे हम,

सदा कर्मपथ की करें सवारी।।

    - ममता श्रवण अग्रवाल

        सतना - मध्य प्रदेश

     यह संसार वाकई कई बार स्वार्थ और मतलब से भरा हुआ लगता है — लोग अक्सर अपने फायदे के लिए रिश्ते, भावनाएँ और विश्वास तक भुला देते हैं। लेकिन इस स्वार्थी दुनिया में भी एक चीज़ कभी धोखा नहीं देती — कर्म। कर्म का फल कभी किसी के स्वभाव या चालाकी पर निर्भर नहीं होता, वो सिर्फ आपके कार्यों और नीयत पर आधारित होता है।मतलबी लोग क्षणिक सफलता पा सकते हैं, मगर अंततः सत्य, सादगी और श्रम की जीत होती है। इसलिए:चाहे दुनिया जैसी भी हो, इंसान को अपने कर्म, नीयत और उसूलों पर अडिग रहना चाहिए। समय सबका आता है, पर कर्म का फल जब आता है, तब वो साफ कहता है कि कौन क्या था।

       - रमा बहेड

    हैदराबाद - तेलंगाना 

    यह दुनिया सच में मतलब परस्तो से भरी  है ,लोग स्वार्थ वह अपना ही  हित चाहते हैं और अपने स्वार्थ के खातिर पता नहीं कितने लोगों का बुरा  करते हैं। आप अपना हित चाहे पर लोगों का बुरा ना करें ? वह भूल जाते हैं कि कर्म का फल तो अपना है आज आप दूसरों का बुरा कर रहे हैं कल आपका भी बुरा होगा ,होना ही है,  क्योंकि कर्म आपके  तो भोग आपका और कर्मों का भोग तो आपको भोगना ही है , चाहे आप इस जन्म में भोगे  ,चाहे अगले जन्म में हो गए चाहे साथ जन्मों के बाद हो ,पर कभी ना कभी आपके कर्म आपके साथ आएंगे ही  आपको आपको आपका आईना दिखाएंगे, आप बच नहीं सकते

     - डा अलका पांडेय 

       मुम्बई - महाराष्ट्र 

" मेरी दृष्टि में " मतलबी लोगों से बच कर रहना चाहिए । क्योंकि ये कभी किसी के नहीं होते हैं । मतलब निकलने के बाद तो पहचानते भी नहीं है। परन्तु जीवन बहुत बड़ा होता है। इस लिए सबसे मिलकर रहने का प्रयास हमेशा करना चाहिए । पता नहीं कब किससे क्या काम पड़ जाए। सोच को हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए। 

        - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संचालन व संपादन)

Comments

  1. कर्मफल से कोई नहीं बचा. मिलेगा ही.
    जैसा कर्म होगा वैसा ही.
    दुनिया आज भी अच्छी है. और अच्छी हो सकती है.
    - अतुल त्रिपाठी
    (WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  2. मतलबी लोग तो इस जीवन तक ही साथ हैं, जबकि कर्म हमारे हमें दूसरे जन्मों में भी सुख शान्ति का अनुभव कराते हैं। तो फिर क्यों न हम कर्म प्रधान बने! मतलबी लोगों के चक्कर में पड़कर अपना हाथ खराब करने से क्या फायदा! "कर्म का फल बहुत मीठा होता है
    जबकि मतलब का फल बहुत कड़वा।"
    - नूतन गर्ग
    दिल्ली
    ( WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी