रामेश्वर ठाकुर स्मृति सम्मान - 2025

       शरीफ़ कौन है। जिस के राज खुलें नहीं है। सब अपने अपने हिसाब से कर्म करते हैं। वह अच्छे भी हो सकतें हैं और बुरें भी हो सकतें हैं। बाकि तो जिंदगी का खेल है। किस के समझ में नहीं आता है। बड़ें से बड़ें विद्वान फेल होते देख हैं।  अनपढ़ भी कामयाब हो जाऐ तो कोई बड़ी बात नहीं है। शरीफ़ चर्चा का प्रमुख विषय है। जो जैमिनी अकादमी द्वारा पेश है। अब आयें विचारों को देखते हैं :-
      आज के लगभग हर क्षेत्र में गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में एक सफल और सुविधा संपन्न जीवन जी पाना एक महत चुनौती है। अमूमन लोगों को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए घोर संघर्ष करना पड़ता है,  बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। अपने वजूद की रक्षा करने के प्रयास में उसे तिकड़मी बनना पड़ता है। और तिकड़म भिड़ाना शरीफों के बस का नहीं होता। जिंदगी एक ऐसी अंधी दौड़ है जिसमें एक आम इंसान  येन केन प्रकारेण अपना अभीष्ट प्राप्त करने का प्रयास करता है और अपने अभीष्ट को प्राप्त करने की चूहा दौड़ में वह कभी कभी अनैतिकता की दलदल तक  में फंस जाता है लेकिन  कोई भी इंसान इसे जग जाहिर नहीं करना चाहता। उसे दुनिया से छुपा कर रखता है। उसे  अपने राज को अपने सीने में दफन रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है। तो इन बातों के संदर्भ में निष्कर्ष के रूप यह कहा जा सकता है कि आज के समय में कोई शरीफ नहीं है। शरीफ वही है जिसके राज छिपे हुए हैं।

         - रेणु गुप्ता

    जयपुर - राजस्थान 

            आजकल की दुनियां मे ये पता लगाना बहुत कठिन है कि कौन शरीफ है और कौन नहीं !! बहुत लोग हमें ऐसे मिलते हैं जो शरीफ लगते हैं देखने से पर होते नहीं !! किसी के बाहरी व्यक्तित्व से ये पता नहीं चलता कि व्यक्ति वास्तव मैं कैसा है और अतीत में उसका स्वभाव व व्यवहार कैसा था !! हमें तो व्यक्ति का वो रूप दिखता है जो वह हमें दिखाता है !!हर व्यक्ति के जीवन मैं कई गुप्त राज या घटनाएं होती हैं जिन्हें वह दुनियां से छुपाकर रखता है !! ये कहना भी उचित नहीं है कि आजकल की दुनियां मे कोई भी शरीफ नहीं है !! अतीत की व्यक्तिगत बातें व राज शरीफ व्यक्ति के जीवन में भी हो सकते हैं !! अतीत के राज नकारात्मक व सकारात्मक हो सकते हैं व वे व्यक्ति की शराफत  को तय कर सकते हैं !!

          - नंदिता बाली 

    सोलन - हिमाचल प्रदेश

           यह बात सामान्य तौर पर  सही मान सकते हैं, परंतु  निश्चित ही कुछ ऐसे भी होंगे जो वास्तव में शरीफ होंगे। असल में हमारा जीवन विविधताओं से भरा होता है। एक हमारा निजी जीवन होता है, दूसरा पारिवारिक, तीसरा सामाजिक और चौथा सार्वजनिक। इन चारों में हमारी भूमिका अलग-अलग होती है। इसमें जो हमारा निजी जीवन होता है,वह बिल्कुल खास और गुप्त होता है। जिसका रूप-रंग  विचित्र, अस्वाभाविक और अकल्पनीय होता है। इसमें एक बाह्य आवरण भी होता है।जो उससे अलग होता है और हमारे उस निजीपन को ढाँचे हुए होता है। यानी हम बाहर से कुछ और ,अंदर से कुछ और होते हैं या यूँ माने हम बाहर से जो नजर आते हैं, वैसे अंदर से नहीं होते। यह अंदर और बाहर का आशय हमारी शारीरिक बनावट से नहीं, इसका आशय हमारी आदतें, हमारे व्यवहार, हमारा स्वभाव, हमारे आचरण से है। हमने ऐसे अनेक लोग देखे-सुने हैं जो बाहर से कुछ और नजर आते हैं, परंतु भीतर से कुछ और होते हैं। इसे आसानी से समझें तो अनेक फिल्मी खल-नालायक  पर्दे पर बहुत बदचलन , गुंडे के रूप में अभिनय करते हैं लेकिन निजी जिंदगी में वे शरीफ और अच्छे स्वभाव वाले होते हैं  हमारे जीवन में ऐसे अनेक लोग होते हैं जिनके विषय में हमारी जो धारणा होती है, वक्त आने पर वे उसके विपरीत निकलते हैं। इसी संदर्भ में एक और बात संभव है, वह यह कि कोई व्यक्ति किसी के लिए अच्छा और दूसरे या दूसरों के लिए बुरा अथवा किसी के लिए बुरा और दूसरे या दूसरों  के लिए अच्छा भी हो सकता है। कुलमिलाकर यह  हर व्यक्ति का व्यक्तिगत स्वभाव और चरित्र होता है,जो कभी न कभी उजागर अवश्य होता है और इसलिए जब तक उजागर नहीं है, तब तक वह वही है जैसा दिख रहा है।         

          - नरेन्द्र श्रीवास्तव

       गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

     मैं सहमत नहीं हूं इस कथन से। हां ,आज कल दुनिया भ्रष्ट हो रही है कालाबाजारी, चोरी ,व्यभिचार सब का बोलबाला है , फिर भी ऐसा नहीं कि कोई व्यक्ति शरीफ नहीं आज। य़दि ऐसा होता तो कलयुग का यह समय जो चल रहा है, अब तक प्रलय आ चुका होता। कभी कभार हम ऐसी वारदातें या बातें सुन हीं लेते हैं कि फलाने ओट़ो ड्राइवर ने किसी के छुटे रूपये-पैसे वाले बैग को वापस किया।वह निहायत शरीफ और इमानदार होगा तभी तो उसने पाए हुए धन को भी वापस कर दिया जबकि वह रख सकता था। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण कभी कभार सुननें को मिल हीं जाती है। इसीलिए ऐसे कुछ अच्छे और नेक शरीफ इंसान आज भी इस दुनिया में हैं, जो बिरले हीं पाए जातें हैं मगर हैं तो जरूर।

     - डॉ. पूनम देवा 

      पटना - बिहार 

      आज के विषय का समर्थन नहीं करते हुए कहना चाहूंगा की दुनिया में हर समय शरीफ भी हुए हैं, या यूं कहूं की शरीफों की कमी नहीं है। संसार में कई लोग अपने जीवन में अपने जीवन को व्यवस्थित तरीके से जीते हैं। विषय पर बात करूं तो शरीफ को समझना बहुत मुश्किल है, कुछ लोग शरीफ दिखते हैं और शरीफ नहीं होते हैं। बात सत्य है समय परिस्थितियों में कुछ घटनाएं जीवन में ऐसी होती है जो ना चाहते हुए भी कुछ ऐसे काम हो जाते हैं जो नहीं होना चाहिए और वह राज का स्थान ले लेती है और वह लोग राज को राज रहने देते हैं।कुछ लोग शातिर दिमाग के भी रहते हैं जो करते कुछ है, कहते कुछ है, दिखाई देते कुछ है उन्हें शातिर कहना ठीक होगा, किंतु सभी को बदनाम करना उचित नहीं है। 

जिनके छिपे काम होते हैं, उनके आज नाम होते हैं। 

जिनके नाम होते हैं, वही तो अंदर से बदनाम होते हैं। 

वास्तविक शरीफों की शराफत को ना करो बदनाम, 

शराफत से जीने वाले तो हर काल में होते हैं।।

       - रविंद्र जैन रूपम

        धार - मध्य प्रदेश

        शरीफ़ की परिभाषा देखते हैं पहले- जिसमें इंसानियत है याने नैतिकता है- वह इंसान शरीफ़ होता है। इसलिये शरीफ़ और इंसान एक दूसरे के पर्यायवाची है। लेकिन सभी इंसानों में नैतिकता हो यह जरूरी तो नहीं। कुछ इंसानों में ऐसी मजबूरी हो जाती है कि वह अपनी नैतिकता गंवा बैठता है। कुछ इंसानों के लिए नैतिकता का कोई मोल ही नहीं होता है। कुछ रंगे सियार होते हैं जिनका राज उनके जैसों की वजह से खुल जाते हैं और तब सटीक बैठता है या उन जैसों के लिए ही कहा जाता कि इस हमाम में सब नंगे हैं, या सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।

       - विभा रानी श्रीवास्तव 

              पटना - बिहार 

     आज कल शरीफ वही है जिनके राज छुपे हुए हैं। सब अपने-अपने दिमाग से काम करते हैं जैसी जिसकी जी सोच वह वैसा ही काम करता है। हर एक इंसान हर के लिए बुरा नहीं होता । परंतु कुछ व्यक्ति अपनी अज्ञानता वश  कर्म करते रहते हैं और वह सोचते हैं कि हम बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ।  कुछ व्यक्ति अपने मन में कूटनीति रचकर कार्य करते हैं जिससे भविष्य में उनका ही भला होता होगा , परंतु मेरी राय में   वे इंसान अच्छे होने का चोला ओढकर अपने लिए ही गड्ढा खोदते हैं। वर्तमान में हम समझते हैं कि यह बंदा कितना अच्छा है। परंतु दूरगामी परिणाम में जब हानि होती है तो उसे शरीफ व्यक्ति की पोल खुलती है।  और वह इंसान सब की नजरों में गिरता ही है। एक घटना फिर याद आई जो आपको  बताती हूँ जैसे ही में प्रमोशन के बाद दूसरे स्कूल में ज्वाइन किया तो वहाँ की छात्र संख्या कई वर्षो तक  बस  25-26 ही रही। खैर कोई बात नहीं, देखा तो इन्टरवैल से  केवल लडके ही स्कूल से गायब हो जाते? या बिल्कुल नहीं आते।  मेरे मालूम करने पर जो वह  टीचर कहते ......अरे !मैडम  आप क्या  जा नो? गरीबी पढाई से पेट नहीं भरता फसल में नाज मजदूरी करके ही मिलेगा। .... आदि आदि ... मै सच समझती ... उस टीचर के रिटायर्ड होने के बाद पता चला कि वह स्कूल मे दाखिला न लेने को गावं में घर घर जाता था। और ऐसे कुछ लडको  एडमिशन करता था जो जिनके माता पिता उस पर विश्वास कर ले, दरअसल वह टीचर उन बच्चों से बाल मजदूरी करा रहा था। पोल जब खुली .....। उस टीचर के रिटायरमेंट पर कुछ गाँव के उन ही व्यक्तियों ने उसे दावत  देकर  विदा किया,जिनके खेतों में काम कराके  हजारों बच्चों का भविष्य अंधकारमय किया। प्रश्न ❓उठा कि ... जिनके बच्चे इस सरकारी स्कूल में पढे ही नहीं... वो कैसा सम्मान? 

        - रंजना हरित 

    बिजनौर - उत्तर प्रदेश 

          विषय गंभीर है ।यही कहना चाहूंगी  की दुनिया  शरीफों से चल रही है । हर काल दुराचारी चरित्र के यानी जो शरीफ नहीं है वे ज्यादा पाए जाते हैं । अच्छे लोगों की  कमी नहीं है। भारतीय संस्कृति आचार विचार संस्कारों की है । आज संस्कारों का पतन हो रहा है । रावण जैसा महाज्ञानी विद्वान प्रतापी तब कोई नहीं था , देवताओं को बंदी बना लिया था लेकिन सीता हरण करके उसका दुश्चरित्र रूप दुनिया ने देखा ।  लोगों को  शरीफ समझना कठिन काम  है , एक चेहरे पर दो चेहरे लगा लेते हैं लोग। कुछ लोग शातिर गुंडे मवाली होते हैं । जनता  का दिल कुछ काम करके जीत लेते हैं । जब अश्लील कामों में पकड़े जाते हैं तब उनकी हकीकत का पता चलता है। वास्तविक बात यही है बड़े नाम वाले ही बदनाम है ।  

       - डॉ . मंजू गुप्ता

        मुंबई - महाराष्ट्र 

        आजकल दुनिया में सच्चे और ईमानदार लोगों की संख्या बहुत कम हो गई है। अधिकांश लोग अपने बाहरी व्यवहार से दूसरों को प्रभावित करते हैं। लेकिन भीतर से उनके इरादे और विचार कुछ और ही होते हैं। ऐसे लोग केवल शराफत का मुखौटा ओढ़े रहते हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में जानबूझकर या मजबूरी बस कुछ राज छुपाए रखता है। शराफत किसी की पहचान नहीं है , बल्कि छुपे हुए सच की मजबूरी बन गई है। 

     - रमा बहेड

हैदराबाद - तेलंगाना 

       "खुद से भी जो खुद को छुपाएँ क्या उनकी पहचान करे, क्या उनके दामन से लिपटे क्या उनका अरमान करें " इस गीत के बोल  सीधा, सीधा इंसानो की फितरत को बता रहे हैं,कि आजकल किस पर यकीन किया जाए कौन ईमानदार या शरीफ  है किसी के मन में क्या है आजकल के दौर में जान पाना मुश्किल है क्योंकि हरेक ने अलग अलग चौला डाला हुआ है , जिनमें असलियत कुछ और होती है, कुछ लोग सन्यासी का चौला डालकर   लोगों को गुमराह करते हैं, कुछ ईमानदार बता कर ठगी का कार्य करते हैं वास्तव में शराफत लोगों के दिल से निकल चुकी है  बस गिने चुने कुछ लोग हैं जिन पर सृष्टि टिकी है, वरना इस दूनिया में शरीफ को ढूंढना या पहचान पाना बहुत मुश्किल है, हमारी बेटियां, बहनें , बहुएं यहाँ तक की माताएँ सुरक्षित घर तक नहीं पहुंच रही है़ं फिर सराफत कहाँ टिकी है, किस पर भरोसा किया जाए , कहने का भाव शरीफ वोही है जिसके राज छिपे हुए हैं, खुदगर्जी, चापलूसी, लालसा, बदमाशी, फल फूल रही है, इन लोगों के पास हरेक सहुलत है, जो एक आधा शरीफ है उससे कोई बात करने को तैयार नहीं होता  उसको सीधा समझा जाता है और फैशन के दौर में नकारा जाता है, अगर शरीफ की बात करें इसके अलग अलग मतलब है, यानि जो ईमानदार, पवित्र, धार्मिक, सच्चा और साफ सुथरी बात करने  वाला हो  जिसके मन खोट न हो शरीफ  में गिना जाता है लेकिन इस जमाने में इतनी महारत रखने वाले चन्द लोग ही होंगे जो अपना साधारण जीवन व्यतीत कर रहे हैं क्योंकि ऐसे  व्यक्ति  शल, कपट, धोखाधड़ी से दूर रहकर अपने ढंग का जीवन जीते हैं और मन में संतुष्टि रखते हैं उनके अपने ही विचार भाव होते हैं और बहुत कम दोस्त होते हैं ऐसे  लोग ही भगवान को पसंद होते हैं लेकिन लोगों को नहीं, उनको सीधा समझ कर मजाक उड़ाया जाता है इसलिए वो अपनी दूनिया में ही जीते हैं  ऐसे लोग बहुत कम देखने को मिलते हैं लेकिन फिर भी यही कहुँगा कि  अभी भी कुछ लोग शरीफ मिजाज के हैं  जिन लोगों के सहारे  यह दूनिदारी चल रही है ऐसे लोगों को दौलत, शौरत नहीं चाहिए उनको अपना ईमान, वफादारी व इज्जत से मतलब होता है, व दो वक्त की रोटी लेकिन आजकल इंसानियत सोशल मिडिया  पर मौजूद है उधर वाही, वाही होनी चाहिए  चाहे इंसानियत न भी रहे, अन्त में यही कहुँगा जो लोग अपने व्यवहार में शालिनता और संयम बनाये रखते हैं अपने निजी जीवन को कायम रखते हैं और दुसरों के मामलों में  दखल नही देते और जीवन के प्रति साकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, और हरेक साथ अच्छा व्यवहार   रखने के साथ साथ धार्मिक और नैतिक मुल्यों का पालन करते हुए जीवन को अपनाते हैं वोही शरीफ कहलाने के हकदार हैं जिनकी संख्या बहुत कम आँकी जा सकती है  जबकि मिले जुले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जिनको किसी भी संख्या में रखना न मुमकिन है सच कहा है, "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोये, ज्यों खोजा मन आपना मुझसे बुरा न कोये"। 

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

    जम्मू - जम्मू व कश्मीर

     आजकल शरीफ की परिभाषा भिन्न है सभी के राज है जो दुनिया से छुपाते हैं उनका एक चेहरा सामने है एक चेहरा छुपा हुआ पर ऐसा नहीं है कि कोई भी शरीफ नहीं है दुनिया में शरीफ लोग हैं और वह जैसे हैं वैसे दिखते हैं तभी यह दुनिया चल रही है और शरीफ को किसी को बताने की जरूरत नहीं होती उसके काम बोलते हैं और सभी जानते हैं कि व्यक्ति बहुत शरीफ है कहे या ना कहें और जो फरेबी है वह कितना भी अपने आप को शरीफ दिखाएं कहीं ना कहीं लोग उसको समझते हैं यह बात अलग है कि राज छुपा हुआ है तो वह सफेद पोश है जिस दिन राज खुलेंगे तो काला ही नजर आएगा और राज बहुत दिनों तक छिपते नहीं कभी ना कभी तो सामने आते ही हैं करने का फल तो भोगना ही पड़ता है 

    - अलका पांडेय 

    मुम्बई - महाराष्ट्र 


   " मेरी दृष्टि में " शरीफ़ इंसान को धोखा देने वाले बहुत मिलते हैं। जिस से शरीफ़ इंसान को संकटों का सामना करना पड़ता है। जो संकटों का सामना करने में सफल हो जाता है। वहीं जिंदगी में कामयाब इंसान कहलाता है । फिर भी इस दुनियां में शरीफ़ कोई नहीं है। बाकि तो कर्म का खेल है। 

         - बीजेन्द्र जैमिनी 

     ( संपादन व संचालन )


Comments

  1. बहुत हद तक यह बात सत्य प्रतीत है। बहुत कम मात्रा में
    अब शरीफ बचे हैं। यह सत्य है कि जिसके राज छिपे वे शरीफ और जिनके खुल गये अपराधी।
    - डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया
    ग्वालियर - मध्यप्रदेश
    ( WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  2. जीवन और चरित्र खुली पुस्तक की तरह हो जिसे कोई भी पढ़ सके तो बहुत ही अच्छा हो सकता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसलिए मेरा तो यही सोचना और मानना है कि किसी को भी अपना आदर्श ना बनायें, अपना आदर्श आप स्वयं बनें।
    - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून - उत्तराखण्ड
    ( WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी