पद्म भूषण सी. नारायण रेड्डी स्मृति सम्मान - 2025
"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे प्रभु आप"। यह दोहा सत्य की ताकत को दर्शाता है कि सच बोलने से हृदय में प्रभु खुद विराजमान होते हैं, लेकिन सच बोलना इतना आसान नहीं है क्योंकि सच सुनने , वाले को अप्रिय लगता है जिससे कुछ हद तक संबंध टूटने के कगार पर चले जाते हैंं, इसलिए कि यह कड़वा बहुत होता है, बेशक बोलने वाले को भी बहुत कुछ सहन करना पड़ता है लेकिन यह गलतफहमी को दूर करता है, यह परेशान तो जरूर करता है लेकिन पराजित नहीं कईबार सच बोलने से संबधों में तनाव या विवाद हो सकता है लेकिन विश्वासघात नहीं, लेकिन सत्य वो कह डालता है जिसके लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं होती जिस को परोसा जाता है इसको सच को छुपाने के लिए कई सबूतों की जरूरत पड़ती है लेकिन आखिरकार जीत सत्य की होती है, यह वो अनुभव है जो हमारे भीतर से आता है, क्योंकि सत्य हर व्यक्ति के भीतर मौजूद होता है लेकिन हर व्यक्ति इसको प्रकट नहीं करना चाहता और सत्य से बच कर चलने का प्रयास करता है कहीं अन्दर के भेद न खुल जाएँ और असलियत बाहर न आ जाए इसलिए अक्सर लोग सच बोलने से कतराते रहते हैं और झूठी शान के मोहताज होते हैं, यह मत भूलना कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,जैसे सत्यवादी हरिश्चन्द्र जी को राजा से चंडाल तक बनना पड़ा, अन्त में यही कहुँगा कि सत्य को प्रमाण की जरूरत नहीं होती यह स्वयं ही स्पष्ट हो जाता है जिस तरह फूल में खुशबु होने का प्रमाण नहीं लेना पड़ता इसी तरह सत्य कोसच्चाई के लिए प्रमाण की जरूरत नहीं होती फिर भी लोग इसे बोलने में हिचकिचाते हैं हालांकि इसे बोलने से कोई छल कपट नहीं होता उल्टा विश्वास का निर्माण होता है, और अपने कामों में ईमानदारी, सच्चाई दृढ़ता का एहसास होता है तो भी लोग सत्य बोलने से परहेज करते हैं क्योंकि सत्य से कई राज सामने आते हैं जो लोगों ने छुपा कर रखे होते हैं और झूठी शान शौकत से अपने आपको महान दिखाते हैं ताकि धोखाधड़ी में कामयाबी मिल सके लेकिन अन्त में असफलता ही हाथ लगती है, तभी तो कहा है, "सत्य वचन हैं औषधि, कटुक वचन हैं तीर, श्रवण द्वारा संचरे साले सकल शरीर"।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
सत्य की सच्चाई हम सबको सदा ही पता होती है....ये जानते हुए कि सत्य क्या है , हम सत्य को अनदेखा करते हुए , नकारते हुए , जिंदगी मैं आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं !! सत्य की शक्ति , दूर रखे एक ऐसे खामोश हथियार की तरह होती है , जिसका प्रयोग हम जानते हुए भी नहीं करते !! कई बार सत्य जानते हुए भी हम बता नहीं पाते क्योंकि बताने के लिए सही समय का इंतजार करना पड़ता है !! गलत समय पर बताया गया सत्य भी अप्रिय परिस्थितियां पैदा कर देता है !! बुरा न बनने के लिए भी व्यक्ति सत्य को जानते हुए भी , न स्वीकारता है व न बताता है !! कुछ समय के लिए सत्य से बचा जा सकता है या कुछ समय के लिए इसे छुपाया जा सकता है पर दबाया नहीं जा सकता !! सत्य की चमक इतनी होती है कि इसे सौ पर्दों के पीछे से भी ढका नहीं जा सकता !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
झूठ का साम्राज्य इतना विस्तृत हो गया है कि सत्य से कोई वास्ता रखना ही नहीं चाहता। असल में हमारी आदत शार्ट कट चलने की पड़ गई है। चकाचौंध के प्रति हम बहुत जल्द आकर्षित हो जाते हैं इसके साथ-साथ हम नकलची भी हो गए हैं। हम में से कोई प्रधान जिस ओर चल पड़ते हैं, हम भी उन्हीं के पीछे चलने लगते हैं। हम यह सोचने की कोशिश और रुचि ही नहीं रखते कि हम जिस ओर चल रहे हैं, वह सही है भी या नहीं। हम इतने दीवाने और मस्ती में चूर हो जाते हैं कि हम झूठ में छिपे छल को समझ ही नहीं पाते और सत्य जो हमारा हितैषी है, हमें सजग कर रहा है, हमें जता रहा है, उस सत्य की आवाज की ओर ध्यान ही नहीं देते , न देना चाहते। यहाँ तक कि सत्य को हम अपनी मस्ती में बाधक समझते हैं और हम सत्य से बचकर निकलना चाहते हैं। यह भटकाव हमें कमजोर कर रहा है, हमारे जीवन-संघर्ष को बढ़ा रहा है। जब तक हम में अपने-आप में आत्म मंथन करने का साहस और ललक नहीं जागेगी, सत्य और झूठ के खेल का मर्म नहीं समझ पाएंगे और छद्म आकर्षण के प्रति भागते रहेंगे और अपना नुकसान करते रहेंगे।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सत्य बोलो,वैर मोल लो।यह कहावत नहीं अपितु सच्चाई है। सत्य को बोलने की जरूरत नहीं पड़ती वह तो बुलता है। हां,सत्य यही है कि उसे जुर्मों का सामना करना पड़ता है।उसकी सजा भुगतनी पड़ती है। आज के इस भौतिक युग में सत्य बोलने की मनाही है जबकि झूठ पर झूठ बोलने वाला इंसान इतना हावी हो जाता है कि वो बाकी लोगों के सामने ऐसा भोला बन जाता है मानो उस जितना सत्यवादी कोई भी नहीं।पर सत्य उजागर हो ही जाता है और झूठ बोलने वाले को ऊपर वाला कभी न कभी सबक भी जरूर सिखाता है।
- मधु गोयल मधुल
कैथल - हरियाणा
सच और सीधी बात सिर्फ अपने लोग ही पचा सकते हैं इसलिए बेझिझक बोलना चाहिए : नकली रिश्ते खुद-ब-खुद छंट जाएंगे। हाँ। इसलिए सत्य से बचकर वे कमज़ोर लोग चलते हैं जिन्हें अपना रिश्ता खोने का डर सताता रहता है। किसी के पीठ पीछे जो लोग शिकायतों का पिटारा खोले रहेंगे लेकिन वे ही लोग उनके सामने चरणों तले बिछे रहेंगे। -चापलूसी कर किसी से कुछ पाने की लालसा रहती है। वे सत्य से बचकर चलते हैं- कुछ ऐसे सत्य से जैसे काना को काना कहना अच्छा भी नहीं लगता और उससे गाली खाने का डर भी रहता है, बचकर निकलते हैं।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
आज के युग में झूठ हावी हो गया है कि सत्य गायब हो गया है। झूठ ही सच लगने लगता है। सच बोलने वाले दुकानदार का सामान सुबह से रात तक बिका नहीं जबकि झूठ बोलनेवाले का सामान कुछ घण्टों में बिक कर दुकान खाली हो गयी। लोग झूठ में छिपे छल असत्य को जान नहीं पाते हैं। सत्य जो हमारा भगवान है, हमें सजग कर रहा है, हमें जगाता है, आत्मा की आवाज , सच होती है । जिसने सुन लिया उसके काम बन जाते हैं । सत्य को हम किसी भी काम में बाधक मानते हैं सत्य बोलने से बचना चाहते हैं। सच से संस्कार आचार विचार व्यवहार हमारे अंतर की आभा को चेहरे पर चमकाते है। प्रह्लाद ने राक्षस के कुल में जन्म लिया था , यानी अनीति , कुकर्म , अन्याय और अधर्म में लिप्त रहने परिवेश में । उस कुपरिवेश में रहकर उसने ईश्वर को पायाऔर सत्य राह पर चला । अंत में कबीर ने कहा, "साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे प्रभु आप"। यह दोहा सत्य को दर्शाता है । सच ईश्वर है। सच बोलने वाले इंसान में प्रभु निवास करते हैं, कलयुग में सच बोलना आसान नहीं है क्योंकि सच कडुवा लगता है ।सच बोलने से संबधों में झगड़ा , दरार आ जाती है। सत्य तो हमेशा एक ही रहता है। झूठ बोलने वाले को कई झूठ बहानों को सहारा लेता है। राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी थे। रघुवंश की चौदह पीढ़ियाँ सच की राह चली। अंत में जीत सत्य की होती है, दोहा है "सत्य वचन हैं औषधि, कटुक वचन हैं तीर, श्रवण द्वारा संचरे साले सकल शरीर"।
- डॉ.मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
सत्य अपने आप में स्पष्ट, निर्भीक और निर्विवाद होता है। वह हमारे जीवन की हर परत को खोलकर सामने रख देता है — चाहे वह अच्छे कर्म हों या बुरे। इसीलिए सत्य के साथ चलना कठिन होता है। समाज में हमेशा सत्य को स्वीकार करना या उसका साथ देना आसान नहीं होता। कई बार लोग अपने स्वार्थ, डर, सामाजिक प्रतिष्ठा, या रिश्तों को बचाने के लिए सत्य से आंंखें चुराते हैं। यानी सत्य को सब जानते हैं, वह बहुत कुछ कहता है — लेकिन लोग उसे नजरअंदाज करते हैं, उससे बचकर चलते हैं, क्योंकि सत्य को अपनाने के लिए साहस, आत्मबल और बलिदान चाहिए।
- रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
सत्य तो बहुत कुछ बोलता रहता है परंतु सत्य से बचकर चलना पड़ता है मेरी राय भी यही है कि सत्य बोल बोल कर रिश्ते और रिश्तेदारी खत्म होने के कगार पर खडी़ है। कहीं कहीं नजर अंदाज कर सत्य से बचकर चलना पड़ता है सत्य ही है जो बिना बोले ही सब कुछ जगहाजिर है ,छिपाने की आवश्यकता ही नहीं होती। सच बोलने वाले इसान को तो कोई बात बार- बार मालूम कर ले चाहे- एक बार, वह नि :संकोच सच ही बोलेगा, उसे ये डर नहीं ... .. दूसरी ओर झूठ बोलने वाले इसान को खुद ही याद नहीं रहता कि उसने सच पर पर्दा डालकर किसी को - कब क्या बात बताई,? अब क्या बताये? ज़ैसे कोई व्यक्ति परीक्षा में असफल बेटे की परसैन्टेज 75% कभी 61% बताना। असत्य बोलने वाले इंसान को ये भी (सत्य से) डर लगता हैं कि कहीं मुझे बीच चौराहे पर कोई बेटे के असफल होने पर ढाढस बंधाकर अफसोस ना दिखा दें। इसीलिए झूठे व्यक्ति सत्य से भी बच कर चलते हैं। सत्य को तो बोलने की स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।बल्कि झूठ कदम -कदम पर ,झूठ यहां- वहां ,जहां - तहाँ,हमें सब जगह दिखाई देता है बल्कि आज कल झूठ को सत्य से भी बचकर चलना पड़ता है। यही कारण है कि झूठी प्रशंसा करने वाले के पास अक्सर भीड़ होती है । और कमी बताने वाले के पास एकान्त।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
सत्य तो बहुत कुछ बोलता है ज़िंदगी की जंग हालातो से जीती जाती है अधूरे सपने पुरा करने उम्र निकल जाती है सत्य क़लम तूलिका धेय जगा चल जाए तो देश दुनिया की हालात बदल जाती हैं ध्येय सुनिश्चित तो सफलता निश्चित हैं अपनी बात रखने में निपुणता होनी चाहिये कल किसने देखा जंग बाजी जीत चाहिये ग़द्दार बहुत देखे फ़ौलादी जिगर होनी चाहिये फ़तह तालीम पूरी करने धेय होना चाहिये अपनी बात कहने का दम दंभ होनी चाहिए मुक़्क़दर इंसान की फ़ितरत होनी चाहिए मन लगे ना लगे मन को लगाना चाहिए और हौसले सिकंदर सा बुलंद होना चाहिये जीत इंसान की फ़ितरत होनी चाहिए उद्देश्य पूरा करने के लिए क़लम की धार पैनी होनी चाहिये समीक्षा आलोचना सहने की आदत होनी चाहिये !उद्देश्य पूरा कर मन को मंदिर बनाना चाहिये दीया दे कर तो देखिये उजड़े चमन में रोशनी है हर काम को ख़ुद्दारी से करने का जिगर होना चाहिये !सत्य विकसित भारत बनाने संगम में सत्य आस्था, प्रेम समर्पण का भाव हों त्याग आशक्ति होनीचाहिए आनें वाली पीढ़ी को सही राह दिखा सत्य की तलब होनी चाहिए इस तरह सत्य तो बहुत कुछ बोलता है कार्य परिणति का फौलादी जिगर होना चाहिए परंतु सत्य से बच कर निकला आँखों में धुल झोकना इंसान हर बार गलती कर यही कहता है बस यही अपराध हर बार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ और हम कहते इंसानियत से प्यार कर सिख मानवता विश्वास जगा देश विश्व समाज में अपना नाम आने वाली पीढ़ी अपने बुजुर्गों की रगो की स्याही बन आज के बच्चे युवा कर्णधार बने परंतु कई बार सत्य से बच कर व्यवहारिकता साथ चलना पड़ता है !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
" मेरी दृष्टि में " सत्य से बड़ा कुछ भी नहीं है। देर सबेर से सत्य को स्वीकार करना पड़ता है। सत्य से भाग कर कहा जा सकतें हैं। जैसे मौत, सत्य है। क्या कोई मौत से बच सका है ? जबाब एक ही है कि कोई नहीं बच सकता है। यह परम सत्य है।
जीवन सत्य पर आधारित जरूर होना चाहिए लेकिन व्यवहारिक रूप में ऐसा हो नहीं पाता है। कभी कभी झूठ भी बोलना पड़ता है। हाँ जहाँ तक संभव हो सत्याचरण करना ही चाहिए।
ReplyDelete- डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया
ग्वालियर - मध्यप्रदेश
( WhatsApp से साभार)
सत्य से बचकर चलने वाले मूर्ख कहलाते हैं क्योंकि सत्य स्वयं सिद्ध होता है।देर सबेर सत्य उजागर हो ही जाता है।कोई चाहकर भी सत्य को ज्यादा दिनों तक छुपा नहीं सकता। यदि किसी का भला हो रहा हो तो सत्य से बचकर चलने में कोई बुराई नहीं है।
ReplyDelete✍️ संजीव "दीपक"
धामपुर - उत्तर प्रदेश
( WhatsApp ग्रुप से साभार)