जन्म - जन्म का हिसाब कैसे रखा जाता है । कोई नियम तो होता होगा । अवश्य ही नियम होगा। शायद इसमें ना तो कलम की आवश्यकता होती है और ना ही कागज़ की आवश्यकता होती है। फिर भी कोई तो कुछ होगा या सिर्फ भ्रम है। सभी के मंन में ऐसा कुछ प्रश्न उठता होगा। यही कुछ जैमिनी अकादमी की परिचर्चा का उद्देश्य है : - कर्म के पास ना कलम है ना कागज है कर्म मन आत्मा का मिलन है जो मनोभाव को जोड़ आध्यमिकता की ओर अग्रसर करता है भगवान परशुराम,परमहंस माँ शारदा के सानिध्य गुरु चरणों में समर्पित नरेंद्र देव स्वामी विवेकानंद देवी पार्वती की तरह रामेश्वर में एकचरण तपस्या सेवा समर्पण मनो भाव से शिव को प्राप्त किया उनसे ही प्रेरित तपकर स्वामी विवेकानंद कहलाए ज्ञान वाणी से वुवापीढ़ी को जागृत किया !जीवन संघर्षों की यही कहानी है नित सूरज तुम्हें राह दिखाता है माँ की मधुर वाणी से उठो जागो और देखो करोगे तो अपने लिए नहीं करोगे तो अपने लिए विश्व बंधुता सहिष्णुता
विश्व कल्याण शान्ति भावना
का परिचय दे कहो ? साथ दोगे ना हमारा उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।ख़ुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है। ..तुम्हें कोई पढ़ा नही सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।मिट्टी में एक नया बीज फिर से रोपित कर एक नये तस्वीर आना चाहता हूँ पतझड़ में बहार लाना चाहता हूँ । फिर भी हर जन्म जन्म का हिसाब है ईश्वर ने मानव तन दिया कर्म मानवता में श्रेष्ठता का गुण होना चाहिए !जो जीवन निर्वाह निवारण को समझ अपने कार्य में विश्वास के साथ सहयोग सामर्थ मन से मन को जोड़ आध्यमिकता से आत्मा का मिलन परमात्मा के प्रति सेवा भाव समर्पण हो हम बदलेंगे जीवन बदलेगा युग बदलेगा जीवन चलता है चलता रहेगा मनोभाव का मिलन आत्मा आध्यात्म का भाव वही होगा जन्म जन्म का हिसाब यही है ! कर्म के पास कलम है ना कागज है पर चित्रगुप्त के पास जन्म जन्म का हिसाब है जिसे जीवन में इंसान को जानना समझना जरूरी होना चाहिए सन्मार्ग की प्रेरणा ले अग्रसर हो ।वन्दे मातरम्
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
कर्म के पास ना कलम है ना कागज है फिर भी जन्म जन्म का हिसाब है.कितनी सुंदर यह बात है. एक कर्म जो हम करते हैं , दूसरा कर्म जो हमसे करवाया जाता है. इन सबका हिसाब कोई अदृश्य शक्ति रखती है जिसे कर्म नाम दिया गया है. कर्म शायद हिसाब रखता नहीं है बल्कि अपने आप रह जाता है. गाँव देहात में खटिया होता है जिसे एक तरफ से बुना जाता है तो दूसरी तरफ अपने आप बुन जाता है. उसी तरह कर्म के पास कागज कलम ना होते हुए भी हिसाब अपने आप लिख जाता है. दूसरी बात यदि हिसाब रखता है तो एक ही पहाड़ के एक टुकड़े से मार्बल के कई टुकड़े निकलते हैं. एक टुकड़ा पूजा घर में लगाया जाता है दूसरा टुकड़ा बाथ रूम में लगता है. जबकि दोनों एक ही टुकड़े के अंश है. इस तरह से ये साबित होता है कि कर्म के हिसाब में कुछ गडबड़ी है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
कर्म तो कर्म है ! अपने वांछित फल को या स्वयं द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु मनुष्य द्वारा किया गया सार्थक प्रयास कर्म कहलाता है !!कर्म के पास लक्ष्य होता है केवल , कोई कलम या कागज नहीं अर्थात कर्म हम किसी कागज पर लिखकर या पढ़कर या किसी का कहा मानकर नहीं करते , अपितु परिस्थिति , आवश्यकता वो वक्त की पुकार के अनुसार कर्म करते हैं !!कर्मों का हिसाब किताब , जन्म जन्मांतर तक चलता है ! कहा जाता है कि पिछले जन्म के कर्मों का हिसाब वर्तमान जन्म में होता है !! कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने कर्म ठीक रखने चाहिए , क्योंकि अच्छे बुरे कर्म का हिसाब होता है , इस जन्म में भी , और अगले जन्म में भी !!ठीक ही कहा गया है.......जैसे कर्म करेगा , वैसा फल देगा भगवान !! - नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
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भलाई कर भला होगा, बुराई कर बुरा होगा, कोई देखे या न देखे, खुदा तो देखता ही होगा, यह स्तरें यही प्रकट कर रही हैं हरेक के कर्मों के हिसाब किताब का लेखा, जोखा , भगवान के पास जरूर होता है, इंसान चाहे कितना भी चतुर चलाक हो अपने कर्मोंं को छुपा नहीं सकता कहने का भाव बुरे कर्मेंं का फल बुरा और अच्छे कर्मों का फल अच्छा मिल कर ही रहेगा, इसलिए हरेक को अपने कर्म करते समय दस बार सोचना चाहिए कि जो कार्य मैं करने जा रहा हुँ उसका अन्जाम क्या होगा, लेकिन आजकल इंसान अपने आप को ही महान समझ कर जो मन में आए करता जा रहा है कि मुझे कौन देख रहा है, लेकिन वो यह नहीं जानता कि भगवान की लाठी की अबाज नहीं होती, जब देता है छप्पर पाड़ कर देता है और जब लेता है चमड़ी उधेड़ कर लेता है, इसलिए हर इंसान को अपने कर्म सोच समझ कर करने चाहिए क्योंकि भगवान तो चींटी से लेकर हाथी तक की हरकत को देख रहा है उससे कोई जीव जन्तु अदृश्य नहीं है उसकी हरेक पर नजर है, इसलिए हमारे कर्म प्रकट तो हो कर ही रहेंगे न तो हम अपनी आत्मा से छुपा सकते हैं न परमात्मा से इसलिए जिस कार्य को करने से हमारी आत्मा को ठेस पहुँचती हो , सही गल्त का अनुभव होता हो सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि आत्मा ही परमात्मा का एक अंश है,आखिरकार यही कहुँगा कि मानुष जन्म बहुत मुश्किल से मिलता है इसे सही कार्यों में लगा कर पुण्य का भागीदार बनें न कि इन्सानियत को छोड़ कर हैवानियत को अपनायें, हमारे कर्म ही हमें शुभ अशुभ फल देते हैं और इनका हिसाब किताब हरेक को चुकाना पड़ता है, फिर क्यों न हम पुण्य का भागीदार बनें फालतू के लोभ लालच को त्याग करें क्योंकि जिन के लिए हम लालच लोभ करते हैं उनमें से कोई भी हमारे कर्मों का भागीदार नहीं बनेगा, जो करेगा सो भरेगा सत्य कथन है, इसलिए हम सब को अपने शुद्ध कर्म करते हुए अपने जीवन को शक्तिशाली और प्रेरणास्रोत बनाना चहिए, इस बात से सभी सहमत हैं कि इंसान खाली हाथ आया और खाली हाथ जायेगा उसके साथ होंगे उसके कर्म जिनका पल पल का हिसाब बिना कापी कलम हर रोज लिखा जा रहा है, इसलिए अच्छे कर्म करते रहिए, तभी तो कहा है, कर्म करे किस्मत बने, जीवन का यह मर्म प्राणी तेरे हाथ में तेरा अपना कर्म। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
इन दो पंक्तियों में कर्म पर बहुत अच्छा विश्लेषण किया गया है,यह पूर्णतया सत्य है कि कर्म अदृश्य है लेकिन अटल सत्य है। वह न लिखता है, न बोलता है, फिर भी उसका लेखा-जोखा चुकता नहीं होता। न उसमें कागज़ की ज़रूरत होती है, न कलम की, फिर भी हर छोटे-बड़े कार्य का परिणाम तय होता है। जो जैसा करता है, वैसा ही फल उसे किसी न किसी रूप में मिलता अवश्य है,चाहे इसी जन्म में या अगले में। कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता, वह समय आने पर पूरी न्यायप्रियता से लौटता है। यह ईश्वर का बनाया हुआ नियम है जो बिना जज के भी न्याय करता है। इसीलिए कहा गया है : "जैसा कर्म करोगे वैसा फल देगा भगवान, यह है गीता का ज्ञान", हमारी नियति हमारे ही कर्मों की छाया होती है। इसलिए हर सोच, हर क्रिया में सजग रहना ज़रूरी है। जो दूसरों को दुख देता है, उसका जीवन भी दुखों से घिर जाता है। कर्म ही सच्चा भाग्यविधाता है। - सीमा रानी
पटना - बिहार
जन्म,जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। केवल, कर्म हमारा है जिसके अनुसार हमें फल मिलता है और अगला जन्म भी सुनिश्चित होता है। कागज और कलम हमारे द्वारा ही अविष्कार किए हुए साधन है। इसी कड़ी में कम्प्यूटर और मोबाइल का भी अविष्कार हुआ है। जब मनुष्य होकर हमने अपनी सुख-सुविधा के साधन तैयार किए हैं तब ईश्वर तो सर्व व्यापी, सर्व शक्तिमान है। निश्चित ही उनकी इस के लिए अलग व्यवस्था होगी। माना जाता है हाथ की लकीरों में हमारा पूरा जीवन चक्र निहित होता है। इसे भी ईश्वर की ही बनाई हुई कोई व्यवस्थाओं में से एक मानी जा सकती है। ऐसी ही अन्य कोई व्यवस्था भी होगी, जिसके माध्यम से वे प्रत्येक जीव-जंतु, वनस्पति या यूँ माने पूरी सृष्टि का जन्म-जन्म का लेखा-जोखा रखते हों। सार यह है कि हमें अपने कर्म पर ही ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और सदैव अच्छे कर्म करते रहना चाहिए ताकि हमें जो जीवन मिला है और अगले जन्म में मिलेगा, वह हमें पुरस्कार के रूप में अच्छा ही मिले। सुख- सुकून भरा हो। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
बिल्कुल सही कहा आपने आदरणीय, जैसी करनी वैसी भरनी। कर्मों का लेखा तो देना ही पड़ता है भले ही क़लम कागज़ हो न हो फिर भी हर जन्म का हिसाब बार-बार जन्म लेकर देना पड़ेगा। धर्मराज के खाते में हर व्यक्ति के कर्म का हिसाब रहता है। व्यक्ति भले ही अच्छे बुरे कर्म करके भूल जाए लेकिन जिसे हम ईश्वर कहते हैं वह हज़ारों आंखों से हमारे कर्म को देखता है। अच्छे बुरे कर्मों को हम इस धरा पर दूसरों की आंखों से तो बचा सकते हैं लेकिन स्वयं की नज़रों से कभी बच नहीं सकते। उसका हिसाब तो देना ही पड़ेगा। - डॉ. संतोष गर्ग ' तोष '
पंचकूला - हरियाणा
" मेरी दृष्टि में " कर्म ही अपने आप में इतना अधिक शक्तिशाली होता है । जो हर तरह का हिसाब जन्म दर जन्म रखता है। ये कंप्यूटर का भी बाप है। जिस की कोई सीमा नहीं होती है यानि ना शुरू का पता है ना ही अंत का पता है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संपादन व संचालन)
कर्म का हिसाब रखने वाले के पास दिव्य कलम है जो सभी के कर्मों को स्वत: लिखती रहती है। वह कलम कभी खराब नहीं होती है।
ReplyDelete- डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया
ग्वालियर - मध्यप्रदेश
( WhatsApp से साभार)