राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त स्मृति सम्मान - 2025
जैसे सभी की अपनी-अपनी, अलग-अलग कहानियाँ होती हैं, वैसे ही कर्ण की अपनी कोई अलग कहानी होती अगर दुर्योधन तत्काल यह निर्णय नहीं कर लेता कि अधिरथ -राधा का जो पुत्र है, बड़ा तेजस्वी है, बड़ा योद्धा है, शस्त्र संचालन में बड़ा निपुण है। और यह भी उसे दिख गया था कि अर्जुन से उसकी ठन गई है। दुर्योधन ने कर्ण को कर्ण बनाया…! और कर्ण ने उस विपरीत परिस्थिति में मित्रता के लिए दुर्योधन के बढ़े हाथ को थाम कर महाभारत में उऋण होने का मौक़ा चुना। दुर्योधन के द्वारा किए गए ग़लत कामों का विरोध नहीं करना उसके द्वारा मित्रता निभाना हो रहा था। मित्र ऐसा होना चाहिए जो मित्र ग़लत रास्ते पर जा रहा हो तो बेधड़क उसे सही राह पर चलने के लिए मजबूर कर सके…! जीवन में ऐसे मित्रों की बेहद कमी है। और कोई ऐसे मित्र को बर्दाश्त भी नहीं करना चाहता!
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
जीवन में मित्र की अहमियत विशेष होती है। इतनी कि हम अपने मित्र के लिए खुली किताब की तरह होते हैं। कोई संकोच नहीं,कोई परदा नहीं,कोई बंधन नहीं कोई शर्त नहीं, कोई समझौता नहीं।मित्र के संबंध में हम यह तक कह सकते हैं कि वह हमारा इतने नजदीक होता है कि कोई बात हम अपने माता-पिता, भाई-बहन यहाँ तक कि अपनी पत्नी से छुपा सकते हैं परंतु मित्र से नहीं। यानी कि मित्र कीमती तो है ही, बहुमुल्य भी है,बेजोड़ भी है। इसके लिए कृष्ण -सुदामा, कर्ण-दुर्योधन की मित्रता ऐसे ही अनुपम उदाहरण जग जाहिर हैं। वैसे हम यह भी कह सकते हैं कि हम में से शायद ही कोई अभागा होगा , जिसका कोई एक मित्र उसके लिए विशेष न हो। हम सभी का कोई न कोई एक मित्र तो विशेष होता ही...होता है और होना भी चाहिए। मित्र हमारा निश्चल और निश्छल सहयोगी होता है। हमारी ताकत होता है, हमारा भरोसा होता है। यूँ तो जीवन में हमारे अनेक मित्र होते हैं, हम उम्र होते हैं, सहपाठी होते हैं, सहकर्मी होते हैं। मित्रों की कोई कमी नहीं होती।परंतु इन सब में जो मित्र हमारा विशेष होता है, वह कब हमारा विशेष बन जाता है, हमें पता नहीं चलता। मित्र की एक विशेषता होती है, वह विश्वसनीय होता है, समर्पित और निस्वार्थ भाव लिए होता है। यह तो एक पक्ष है,जो वंदनीय है, अनुकरणीय है। इसका एक दूसरा पक्ष भी होता है, जो निंदनीय है।दुखद है।वह है, मित्रता के नाम पर विश्वास तोड़ना, धोका देना,मित्रता को कलंकित करना। अत: हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसे मित्र भी मिल जाते हैं, जो ऐसा घृणित कार्य कर जाते हैं।खैर, हमें इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि हम जिससे भी मित्रता रखें, उसके विश्वास को बनाए रखें।- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मित्र सच्चा है वो जो मित्रता निभा जाए , मित्र सच्चा है जो मित्रता की वेदी पर कुर्बान हो जाए !! कर्ण जैसा मित्र होना चाहिए , पर ये आदर्श स्थिति आज के युग मैं बहुत कम मिलती है देखने को !! मित्र आजकल अधिकतर मौका परस्त होते हैं और मतलबी होते हैं !!सुख के सब मित्र , दुख में न कोय !!....इस प्रवृति के मित्र बहुतायत में पाए जाते हैं!!आज के युग में जिसे कर्ण जैसा मित्र नसीब में हो , वो निश्चय ही बहुत किस्मतवाला है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
मित्र तो एक कर्ण जैसा अवश्य होना चाहिए ! कर्ण जानते हुए भी युधिष्ठिर का साथ नही छोड़ा मित्रता में सर कटा जान दे दिया जिसने उसे राज पाठ सम्मान दिलाया जानते हुए भी उसका पक्ष सही नही है ! फिर भी मित्रता का साथ नहीं छोड़ा युद्ध कर जान निछावर किया ।बाल सखा की दोस्ती सुदामा जैसे द्वारका पहुंचे द्वारिकाधीश राधा को भूले पर सुदामा के लिए नग्गे पैर मिलने दौड़ पड़े और जब राधा से मिलने कृष्ण आए तो राधा ने कहा-“कैसे है द्वारकाधीश “ कृष्ण को ये व्यंग बाण एहसास बदन में जलते अंगारे की तरह हो गया !फिर नैनीं की भाषा दिल के एहसास में मित्रवत प्रेम में कमी नही आई !जीवन में मित्रों की कमी नहीं समय ,समझ अवसर की चूक होती है ! पर दोस्ती यथावत अपनी पहचान बता मित्रता को जीत लेती है ! इसी लिए मित्रता रिश्तों की अनमोल घड़ियाँ होती है । जो जीवन में समय समय एहसास. चेतन अवचेतन में आगाह कर सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है सही ग़लत मार्ग प्रशस्त करने दोस्ती का हाथ बढ़ा कामियों को दूर कर मन के मैंल की तरह साफ़ करती है तब इंसान गुणकारी लाभकारी औषधि की तरह स्तमाल कर मित्रता को जीवन पर्यन्त बनाए रखता है ! फिर भी ये कहावत है सौ बेईमान से एक ईमानदार मित्र जरूर होना चाहिए ! उस ईमानदार मित्र की पहचान भरोसा उसके दुश्मन भी करते कहते है जरूरत पड़ी तो मित्र दुश्मन ईमानदार का ही साथ दूँगा! क्योंकि वह दुश्मन होते हुए भी धोखा नहीं देगा छल कपट जालसाजी नहीं करेगा ! मित्रता कठिन परिश्रम की घड़ियों कभी साथ नहीं छोड़ती ये जीवन में परीक्षा की घड़ियाँ होती है ! ये जीवन पर्यन्त उस मित्र को एहसास होता है !वरना अपने जीवन में मित्रों की कमी नहीं है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
"मथत मथत माखन रहे, दही, मही बिलगाय, रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय"। रहीम जी का यह दोहा, मित्रता कि तरफ इशारा कर रहा है कि दही को जब माथा जाता है, जब उसे रगड़ा जाता है, तो माखन अलग हो जाता है, ऐसा मीत नहीं होना चाहिए जो मुसीबत में अलग हो जाये, मित्र उसे कहा जाता है जो मुसिबतों में भी साथ न छोड़े, लेकिन आजकल के जमाने में ऐसे मित्र बहुत कम मात्रा में मिलते हैं, खैर बात करते हैं दुर्योधन और कर्ण कि मित्रता की, क्या कम से कम एक मित्र कर्ण जैसा होना चाहिए, देखा जाए समाज में बहुत से लोग मित्र बनना चाहते हैं और होते भी हैं लेकिन उनकी मित्रता बहुत कम समय तक चलती है, जिनका मुख्य कारण आपस में स्वभाव का न मिलना, खुदगर्ज होना, मुसीबत में साथ न देना इत्यादि होते हैं और ऐसा ही हो रहा है कुछ मिल जाए तो दोस्त, नहीं तो जैसे थे, कहने का भाव मतलबी लोग, मतलबी संसार ,कौन अपना कौन पराया कोई पता नहीं चलता, इसलिए कहा है कि मित्रता करते समय दुसरे के चित और चरित्र का ध्यान भली भाँति जाँच लेना चाहिए तभी जाकर मित्रता फलती फूलती है, नहीं तो विगाडने वाले मित्र तो बेशुमार मिल जाते हैं, अब बात आती है कि कम से कम एक मित्र कर्ण जैसा होना चाहिए हाँ इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कर्ण ने हर दुख सुख में दुर्योधन का साथ दिया लेकिन एक मित्र होने के नाते कर्ण ने दुर्योधन के अंहकार, गलत धारणों को, लोभ लालच को मिटाने की कोशिश नहीं कि और जैसे दुर्योधन कहता रहा बैसा ही वो करता रहा और सहता भी रहा हालांकि कर्ण दानवीर, योद्धा व हर कार्य में कोशल था लेकिन उसने अपनी मित्रता वाला यह नियम अधूरा ऱखा इसमें कोई शक नहीं कि कर्ण ने दुर्योधन की लालसा के लिए अपने प्राणों तक की आहूति लगा दी, लेकिन अगर कर्ण चाहता तो काफी निहत्थे शूरवीरों की जान बचाई जा सकती थी, द्रौपदी चीरहरण में कर्ण का चुपचाप अन्याय सह लेना दोस्त को गलत व्यवहार करने देना दोस्ती के अवगुण बतलाता है वास्तव में सच्चा मित्र तो वही होता है जो अपने मित्र को कुपथ से हटाये और अच्छी राह पे लगाये लेकिन ऐसा करने से महावली कर्ण पीछे रह गए, देखा जाए मित्र के तीन मुख्य लक्षण, अहित से हटाना, हित में लगाना और मुसीबत में साथ देना आता है लेकिन कुछ कारणवश कर्ण ऐसा न कर पाया क्योंकि वो दुर्योधन का ऋणी हो चुका था तथा उसने दुर्योधन के साथ दोस्ती करते समय उसके गुणों अवगुणों को नहीं पहचाना था, कहने का भाव उन दोनों की मित्रता अपने अपने स्वार्थ में भरी पड़ी थी, दुर्योधन को शक्तिशाली यौद्धा की जरूरत थी और कर्ण को अपनी शान, शौकत और ताकत दिखाने की जो उसको दुर्योधन से मिल चुकी थी और ऋणी होने का कारण कर्ण को दुर्योधन के कहने पर चलना पड़ता था लेकिन फिर भी यह जानते हुए भी कि कौरवों की हार निश्चित है कर्ण ने दुर्योधन का साथ न छोड़ा जिसके कारण दोनों की दोस्ती अमर हो गई और कर्ण की दोस्ती ने वचनबद्ध होने का एहसास दिलवाया लेकिन यह मित्रता स्वार्थ, सम्मान और साम्राज्य के अधिकार पर भी आधारित रही, जिससे युद्ध का परिणाम विनाशकारी रहा, मेरे ख्याल में श्रीकृष्ण और अर्जुन जैसे दोस्त मिलना न मुमकिन हैं अगर मिल जाए तो मित्रता में अवगुण कोई नहीं मिलेगा दोनों ने एक दुसरे की बातों का माना और एक दुसरे का भला चाहा जिससे यह जाहिर होता है कि दोस्ती उनसे करिये जिनसे सोच मिलती हो ऐसी दोस्ती तरक्की की राह ले जाती है नहीं तो खुदगर्ज दोस्त बहुत से मिल जाते हैं, जब सेना बाँटने की बात हो रही थी अर्जुन ने भगवान कृष्ण जी के साथ कम सेना को माँगा था लेकिन दुर्योधन की सोच ने अधिक सेना को चुना और अपने अंहकार को बढ़ावा दिया जिसके कारण प्रलय का सामना करना पड़ा, अन्त में यही कहुँगा कि मित्र चाहे एक भी हो लेकिन ऐसा होना चाहिए जो मित्रता के साथ साथ अपने मित्र के अवगणों को भी दूर करके उसको सही दिशा दिखाये क्योंकि मित्रता का असली स्वरूप वो होता है जब मित्र के साथ मिलकर चुनौतियों का सामना किया जाए, ऐसे तो मित्र बहुत मिल जाएँगे तभी तो कहा है, " कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत, विपति, कसौटी जो कसे तेई साँचे मीत"।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
जीवन में सैकड़ों लोग मित्र कहलाते हैं, पर एक सच्चा मित्र वही होता है जो समय आने पर साथ निभाए।कर्ण की मित्रता का उदाहरण इसलिये दिया जाता है क्योंकि उसने दुर्योधन की हर परिस्थितियों में बिना शर्त साथ दिया।कर्ण न तो परिस्थिति से डरता था, न समाज की आलोचना से, क्योंकि उसके लिए मित्रता सर्वोपरि थी।ऐसा मित्र अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर मित्र के लिए त्याग करता है, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो। आज के समय में रिश्ते दिखावे में उलझ जाते हैं, पर कर्ण जैसे मित्र भावनाओं में जीते हैं।कर्ण ने सिद्ध किया कि सच्चा मित्र वही होता है जो आपका साथ तब दे जब सारी दुनिया आपके खिलाफ हो। जीवन में भले ही कई मित्र हों, पर अगर एक भी कर्ण जैसा मित्र हो, तो जीवन धन्य हो जाता है। कर्ण जैसे मित्र न सिर्फ हमारी ताकत बनते हैं, बल्कि हमारे आत्मबल का कारण भी होते हैं। ऐसी मित्रता में ना स्वार्थ होता है, ना छल,बस एक निष्ठा होती है जो युगों तक मिसाल बनती है।इसलिए कहा गया है कि मित्र बहुत हो सकते हैं, पर एक कर्ण जैसा हो, तो ही मित्रता का अर्थ पूरा होता है।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
माना कि मित्र कर्ण जैसा अवश्य होना चाहिए मगर नहीं मिला कर्ण जैसा, तब भी हम मित्र बनाते हैं। लेकिन मित्र ऐसा होना चाहिए जिसको सामने हमें कुछ भी बताने में संकोच नहीं होना चाहिए। बगैर स्वार्थ और आपसी प्रेम और समझदारी होने पर ही मित्रता का रिश्ता निभता है। क्योंकि ना पति पत्नी का रिश्ता ऐसा होता ना ही रिश्तेदारों का नहीं न ही अड़ोसी- पड़ोसी का, न ही भाई बहन या मां बाप का। इस मामले में अपने को सौभाग्यशाली समझती हूं। क्योंकि मेरी एक मित्र बिल्कुल ऐसी ही है। भले ही वह कर्ण ना हो।
- अर्चना मिश्र
भोपाल - मध्य प्रदेश
मित्रता का मूल्य उसकी उपयोगिता या गहराई में होता है, न कि संख्या में। जीवन में अनेक लोग मित्र कहलाते हैं, लेकिन असली मित्र वही होता है जो ज़रूरत के समय साथ खड़ा हो।केवल दिखावे के संबंध या समय बिताने वाले मित्र जीवन में बहुत मिलते हैं, लेकिन जब कठिन समय आता है, तब वही व्यक्ति मित्र कहलाने योग्य होता है जो बिना कहे मदद करे, साथ निभाए और सच्चे अर्थों में सहभागी बने।इसलिए केवल "मित्रों की संख्या" से जीवन समृद्ध नहीं होता — "मित्र का गुण" अधिक महत्वपूर्ण होता है।मित्र वही सही, जो कार्य में आए।वरना मित्रता एक सामाजिक औपचारिकता बनकर रह जाती है।
- रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
वह मित्र सबको मिले यह आज के समय में ज़रूरी नहीं है।हाँ,मिल जाए तो आप बहुत भाग्यवान हैं वरना आज के ज़माने में एक अच्छा मित्र तो मिल जायेगा । जो कुछ परिस्थितियों में आपका साथ भी निबाहेगा और जिससे आप अपने दिल की बात भी कर लेंगे पर वह कर्ण जैसा सिन्सीयर हो यह बहुत मुश्किल है इसलिए आज बहुत घनिष्ठ मित्र से भी बहुत अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए।आज मित्रता की भी सीमाएं और श्रेणी हैं।इसलिए आम मित्रों में जो सबसे खास है वही श्रेष्ठ है।कर्ण जैसा मित्र तो अब विरले ही होते हैं।
- मंजू सक्सेना
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " मित्रता का अर्थ बहुत कम ही अमल में लाते हैं। शायद यह कलयुग का असर है। फिर भी मित्रता में बहुत कुछ देने की इच्छा होनी चाहिए। परन्तु आजकल सब लेना जानते हैं देने में किसी का कोई विश्वास नहीं है। शायद इसे कलयुग कहते हैं। फिर भी हर कोई कम से कम एक मित्र कर्ण जैसा चाहता है।
मित्र ऐसा होना चाहिए जो हमारे गम में गमगीन तो खुशी में खुश हो। उसके जुबान पर कभी मिठास तो कभी कटु सत्य भी हो। उसके होंठों पर हमारा दुःख मिटाने वाली मुस्कान हो। उसका हृदय शिद्दत से हमारे लिये कुछ अच्छा करना चाहे। उसके हाथ हर मुश्किल में हमारा हाथ थामने को और कदम हमारे साथ चलने को तैयार रहे।
ReplyDelete- दर्शना जैन खंडवा मप्र
(WhatsApp ग्रुप से साभार)