सुकुमार राय स्मृति सम्मान - 2025

       काग़ज़ अपने आप में एक पूरी दुनिया है। बिना काग़ज़ के दुनिया कैसी थी। कल्पना कर के देखें। शायद सिर्फ जंगल ही जंगल होगा । अब तो बिना काग़ज़ के दुनिया की कल्पना हो सकती है। परन्तु पहले ऐसा नहीं था। अब काग़ज़ पर प्रेम पत्र लिखा हो या मेडिकल रिपोर्ट । ये सब जीवन में बहुत कुछ महत्व रखते हैं। आज़ काग़ज़ की दुनिया बहुत बड़ी है।‌ यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का विषय है। अब आयें कुछ विचारों को पेश करते हैं :-
       यह सत्य है कि कागज स्वयं नहीं रोते बल्कि उनके ऊपर अंकित लिखावट कभी रुला देती हैं साथ ही पूरा जीवन ही बदल देती है। यदि कोई व्यक्ति अपनी मेडिकल रिपोर्ट में जीने की आशंका ना रहने की रिपोर्ट पढ़ता है तो वह तन मन से तथा पूरे परिवार के साथ भयंकर रूप से दुखी और जीवन से निराश हो जाता है और ना रुकने वाले आंसुओं के साथ कभी-कभी जीवन को समाप्त ही कर बैठता है ।सोचने समझने की शक्ति भी उसकी चली जाती है, धैर्य भी जवाब देने लगता है। और वहीं इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति  के हाथ में प्रेम पत्र हो तो उसे अपना वर्तमान और भविष्य बहुत सुंदर लगने लगते हैं और यथार्थ के साथ कल्पनाओं की दुनिया में खोकर सब कुछ प्राप्त करने की जीवनदायिनी भावातिरेकता  के साथ-साथ उसके सुख के आंसू गालों पर ढुलक आते हैं वह खुश होकर ईश्वर को धन्यवाद देने लगता है प्रेम पत्र को चूमने के साथ और अपनी खुशहाल जिंदगी को तन मन से स्वस्थ महसूस करता है।

 - डाॅ. रेखा सक्सेना

 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश 

          प्रेम हो या रोग दोनों की अभिव्यक्ति का माध्यम कागज    प्रधान है और दोनों ही प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में दिल से या यूँ कहा जाये कि जीवन से जुड़े हुए हैं। दोनों ही स्थिति में सकारात्मकता  है तो सुखद हैं और ऐसा नहीं है तब पीड़ादायक होते हैं। अब भले ही अभिव्यक्ति के लिए ई-मेल और व्हाट्सएप  माध्यम भी उपलब्ध है किंतु कागज का माध्यम सशक्त, सहज,सरल और आकर्षक होता है और एक समय तो कागज ही एक मात्र माध्यम था। अत: वाकई कागज रोते नहीं, रुला देते हैं। क्योंकि प्रेम पत्र में भाव का अतिरेक होता है और मेडिकल रिपोर्ट में रोग की स्थिति यानी रोग की जटिलता। दोनों ही झकझोरने वाले होते हैं। संक्षिप्त में यही कहकर मन को दिलासा दी जा सकती है कि ऐसी स्थिति और परिस्थितियां भाग्य का हिस्सा हैं। जिसके हिस्से मैं जो आ जावे। धैर्य और हिम्मत से इनका सामना करना चाहिए।

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

         कागज़ रोते नही रुला देते है चाहे प्रेम पत्र हो या मेडिकल रिपोर्ट , कागज रोते नही भावनाओं को दर्शाते है ग़म हो या ख़ुशी एहसासों में समाहित मन के भाव कागज में लिखे भाव चेहरे को देख भाव पढ़ सामने वाला अपनी भावना को जाहिर कर  रोते हुए को हँसा देते है !यदि कागज कर्ज अदालत नौकरी प्रेम का नोटिस है तो कहता है अरे बुझदिल रोता क्यों है ये कागज तो हमारी बनाई वस्तु है जब चाहे मनोभाव उकेरे अपने अनुरूप बना सकते हो ! ख़ुद में वो काबिलियत एहसास पैदा करो जो जो प्रेम से हर ग़म को भुला चरक ,संजीवनी औषधि बन इंसान को स्वस्थ दीर्घायु बनाए! दीर्घकाल तक प्रेम पर्ची का मतलब सिखाए ,धर्य और हिम्मत से काम ले ,कागज किस्मत से तक़दीर बदल देती है ! जिंदगी देनी होती  तो मौत भी टल जाती है ! प्रेम के बदलते रंग भी जब अपने शबाब में हो तो ताज महल खड़े कर देती है !प्रेम ,अनारकली बना दीवारों से चुनवा देती हैं इस तरह कागज़ रोते नही रुला देते है ! इंसान इंसानियत तालिम सीख ,रिश्तों को सँभलना प्रेम से जीना जानता है  

- अनिता शरद झा

रायपुर -छत्तीसगढ़ 

      देखा जाए इंसान में अलग अलग किस्म की भावनाएँ जागृत होती रहती हैं क्योंकि जिंदगी के कुछ पल हंसी व खुशी जाहिर करते हैं जबकि चन्द पल गम, दुख  या प्रेम का इजहार करते हैं और रूलाने पर मजबूर कर देते हैं चाहे किसी ने लिखित रूप मे कुछ कहा हो या जुवान से  चाहे प्रेम पत्र हो या कोई मैडिसन रिपोर्ट ,तो आज की चर्चा का विषय बहुत गंभीर है कि कागज रोते नहीं रूला देते हैं चाहे प्रेम पत्र हो या मैडिकल रिपोर्ट,  इसमें कोई दो राय नहीं की कागज रोते नहीं बल्कि रूला देते हैं, यहां तक प्रेम पत्र या मैडिकल रिपोर्ट की बात है यह दोनों ही गहरी भावनाओं को छूते हैं जबकि एक  प्यार और खुशी को दर्शाता है और दुसरा स्वस्थ संबंधी चिंताओं को सामने लाता है,प्रेम पत्र खुशी और प्रेम की भावनाओं को जगाता है जिसमें खुशी के आंसू आते हैं जबकि मैडिकल रिपोर्ट अगर अच्छी न हो तो चिंता,डर ,भय,घबराहट सें आंसूओं का आना संभव हो जाता है, प्रेम पत्र भावनाओं को इजहार करने का एक तरीका है जिनसे भावनात्मक रिलीज़ और राहत मिलती है जबकि मैडिकल रिपोर्ट चिंता और डर की भावनाओं को जागृत करती है इसलिए चाहे प्रेम पत्र हो या मैडिकल रिपोर्ट दोनों ही गहरी भावनाओं को छुते हैं और दोनों रूला देते हैं।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

         यह दो पंक्तियाँ जीवन की उन मूक भावनाओं का सशक्त चित्रण हैं जिन्हें “कागज़” मात्र साधन नहीं, बल्कि भावनाओं का साक्षी बन जाता है। पहली दृष्टि में यह वाक्य सरल लगता है, पर इसमें गहरी मानवीय संवेदना और दार्शनिक अर्थ छिपा है। “कागज़” यहाँ प्रतीक है — मनुष्य के उन क्षणों का, जिन्हें शब्दों में बाँधा गया है। वह स्वयं निर्जीव है, पर उस पर अंकित शब्दों की संवेदना जीवंत है —इतनी जीवंत कि वह रो नहीं सकता, पर रुला ज़रूर सकता है। “प्रेम पत्र” और “मेडिकल रिपोर्ट” — दो छोरों का चयन इस पंक्ति की कला-गंभीरता को उजागर करता है। एक ओर प्रेम, आशा और जीवन की मिठास है; दूसरी ओर बीमारी, पीड़ा और मृत्यु का साया। दोनों ही स्थितियों में कागज़ गवाही देता है —मानव भावनाओं की सबसे ऊँची और सबसे गहरी अवस्थाओं की। लेखक ने इन विपरीत प्रतीकों को जोड़कर संवेदना के चक्र को पूर्ण किया है —कि जीवन के हर रूप में, सुख या दुख में, शब्दों में दर्ज भावनाएँ ही अंततः हमें रुला जाती हैं। यह एक ऐसी सूक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति है जो शब्दों की सादगी में मनुष्य के अनुभवों की पूरी गहराई समेटे है। “कागज़ रोते नहीं — पर रुला ज़रूर देते हैं।”— यह पंक्ति साहित्य में “मौन की अभिव्यक्ति” का उत्कृष्ट उदाहरण कही जा सकती है।

 - डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

     काग़ज़ का जीवन भी अद्भुत है। पूर्व में काग़ज़ का महत्व नहीं था, जैसे-जैसे विस्तारीकरण होता गया, वैसे-वैसे महत्व बढ़ता गया। शिक्षालय से लेकर समस्त जगहों पर इसका प्रभाव बढ़ता चला गया। कोरा काग़ज़ से लेकर लिखाई,छपाई। दस्तावेज बन गया, उत्कृष्ट काग़ज़ को देखा और पसंद किया जाने लगा। काग़ज़ रोते नहीं हैं बल्कि रुला देते हैं, चाहें वह प्रेम पत्र हो या मेडिकल रिपोर्ट।  यह सत्य है, जब अपने-अपनत्व की घटित-घटनाओं का जब संदेश आता, तब असहाय रुप में आंखों से आंसू टपकने लगते है। एक प्रसिद्ध गाना बहुत चर्चित रहा, कोरा काग़ज़ मन मेरा, लिख दिया तेरा नाम....., कबूतर जा-जा...., जिसमें सुख और दुख का संदेश आता-जाता था। मेडिकल रिपोर्ट भी दो प्रकार की होती है, अच्छी और बुरी......

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

    बालाघाट - मध्यप्रदेश

        यह काफी हद्द तक सही है। कागज हमें रुला देते थे। पहले दूर रहते अपने स्वजनों को इस कागज पर लिखकर जिसे हम पत्र, चिट्ठी कहते हैं में अपनी भावनाओं को समेट भारी मन से, प्यार से अंकित कर भेज देते थे, फिर सामने से पत्र आने का इंतजार भी करते थे जो कितना सुखद होता था। चाहे वह दूर रहते पति-पत्नी का प्रेम से भरा खत हो अथवा,ससुराल से आया बहन बेटी का अथवा माता पिता का। यह तो पक्का था पढ़ते पढ़ते आंखें छलक आती थी। दूर रहकर भी कितना प्रेम था। स्वजनों की बीमारी अथवा मरने की खबर टेलीग्राम पर जो एक कागज ही है से मिलती थी। किंतु, आज टेक्निकली हम इतने आगे आ गये हैं कि मोबाइल में ही विडियो में एक दूसरे से जब मन चाहा बात कर लेते हैं ,देख लेते हैं। पत्र लिखना तो लगभग बंद ही हो गया है। पोस्टमैन का इंतजार, कागज के पत्र को बार बार पढना   आंखें भीगी होना सब याद आता है। वाकई उस समय कागज आंखें गीली कर जाती थी किंतु प्यार और स्नेह लबालब हो सैलाब बन जाता था। एक ही पत्र को बार बार पढ़ने में जो आनंद मिलता था वह मोबाइल में कहां....!

 - चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र 

       वाह, क्या शायराना बात कह दी।सच ये दोनों कागज नैन भिगो देते हैं।कभी खुशी और कभी ग़म की सौगात देते हैं। बस प्रेम पत्र की समानता मेडिकल रिपोर्ट से, बात कुछ जमी नहीं। कहां प्रेम पत्र और कहां मेडिकल रिपोर्ट, दोनों में बहुत विभिन्नता है। प्रेम पत्र प्रेमी मन की अभिव्यक्ति होती है तो मेडिकल रिपोर्ट तन की बीमारी का सूचना पत्र‌।प्रेम पत्र में प्रेम का इजहार तो मेडिकल रिपोर्ट में खून की कमी,तन में बुखार। प्रेम पत्र में मिलने की तड़पन और मेडिकल रिपोर्ट में संभावित बिछुड़न। लेकिन यह सच कि दोनों ही नैनों को भिगोने में कमी नहीं छोड़ते। इसलिए कागज रोते नहीं है बल्कि रुला देते हैं, चाहें वह प्रेम-पत्र हो या मेडिकल रिपोर्ट,हम इस बात से सहमत हैं।

- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल '

 धामपुर - उत्तर प्रदेश 

          कहा जाता है कि कागज रोते नहीं बल्कि रुला देते हैं. असल में कागज का रोना सापेक्ष होता है. परिस्थिति सकारात्मक तो कागज हंसता है. परिस्थिति नकारात्मक हो तो रोता भी है. इसी तरह प्रेम पत्र भावनात्मक रूप से लिखा गया हो और पाने वाला भी भावनात्मकता से ओतप्रोत हो तो प्रेम पत्र संयोग का हो या वियोग का रुला तो देता ही है. मेडिकल रिपोर्ट भी सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक रिपोर्ट हंसा देती है और नकारात्मक रिपोर्ट रोने को विवश कर देती है. रोने से आंसू आते हैं और कागज को भिगो देते हैं,  तब सचमुच ऐसा लगता है कि कागज रो रहा है.

 - लीला तिवानी

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

       काग़ज़ न रोते हैं न रुलाते हैं बल्कि उसमें व्यक्त भावना हमें रुलाती है, हँसाती है. प्रेम पत्र इसलिए रुलाती है कि उसमें प्रेमी से शीघ्र मिलने की उत्कंठा बढ़ती जाती है. लेकिन किसी कारण वश जल्दी मिलन सम्भव नहीं होता है तो रुलाई आती है.या प्रेमी के साथ बिताए हुए सुनहरे पल की याद आते ही रुलाई छुट जाती हैं कि वह सुनहरा मौका फिर नहीं मिल सकता या मिलेगा तो फिर कब मिलेगा. रही दूसरी बात मेडिकल रिपोर्ट की तो वह भय वश रुलाई आती हैं यदि उसमें कोई रिपोर्ट खराब रहता है. अन्यथा उसमें भी रुलाई नहीं आती है. सब रिपोर्ट अच्छा होने से खुशी ही होती है कागज तो सिर्फ एक माध्यम है अभिव्यक्ति का. इसलिए काग़ज़ को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

कलकत्ता - प. बंगाल 

         काग़ज़ ना रोते  हैं ना रुलाते हैं। काग़ज़ों का अपना कोई भी भावनात्मक संबंध अपनी कोई अहमियत नहीं होती। उनसे भावनात्मक संबंध बनता है उन पर लिखे शब्दों से जो हमें रुलाते हैं, हँसाते हैं, गुदगुदाते हैं। कभी ख़ुशी तो कभी ग़म देते हैं। प्रेम पत्र जैसा कि नाम ही बता रहा है, प्रेम से भरपूर होते हैं। एक  मीठा सा, प्यारा सा एहसास देते हैं। मेडिकल रिपोर्ट हमें चिंता, तनाव अथवा ख़ुशी भी दे सकती है, निर्भर करता है उस पर लिखे शब्दों पर। सारा खेला काग़ज़ पर लिखे शब्दों का है। 

 - रेनू चौहान 

     दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " प्रेम पत्र से लेकर मेडिकल रिपोर्ट तक की यात्रा का मार्ग बहुत कठिन लगता है। जो वास्तव में हैं। प्रेम पत्र बचपन से बाहर निकालता है। मेडिकल रिपोर्ट जीवन के अंतिम चरण की ओर ले जाती है। जो जीवन लीला को समाप्त कर देता है।

              - बीजेन्द्र जैमिनी

          (संचालन व संपादन)                       

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