गौरा पंत ' शिवानी ' स्मृति सम्मान - 2025

       किसी को रूप पर घमंड होता है किसी को पैसे का घमंड होता है। घमंड कब टूट जाये ? किसी को भी पता नहीं होता है। यही वास्तविकता है। क्योंकि बिमारी से कब गरीबी दस्तक दे देती है। यह भी किसी को पता नहीं होता है। फिर भी जिंदगी चलती है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। अब आयें विचारों में से कुछ को पेश करते हैं :-
      रूप और पैसा दोनों चिर स्थायी नहीं होते ,पर व्यक्ति व्यक्तित्व की पहचान उसके गुणों से सीरत से सूरत को याद किया जाता है !सदियों तक रूप के साथ याद किया जाता है ! आज भी  पहिरावा खाना पान ,गीत संगीत नित्य लोगों के दिलों में अपनी अचूक पहचान बनाए हुए है ! जिसमें धन अभिमान की आवश्यकता नहीं होती  है! लोगों को अपनी पहचान बनाने का घमंड होना चाहिए .आप ने जनहित अब तक कौन सा ऐसा काम किया हो आपको लोग आपके कृत कर्म व्यवहार से जानेंगे ! जिसे प्रमाणित करने कीआवश्यकता नही है !ऐसे अनेकों उदाहरणों है! रावण को अपने बुद्धि बल धन वैभव का घमंड था अंततः माना मृत्यु शैया पर राम से कहा । मुझे अभिमान था और तुमने अपना स्वाभिमान जनहित में परहित कर बढ़ाया ! तुमने मिट्टी से सोना बनाया मैं परम ज्ञानी होते हुए भी घमंड सोना से मिट्टी बबने, मुझे लोग अपने अंदर की बुराई हटा कर याद करेंगे और तुम्हें पुरषोत्तम राम के नाम से पूजेंगे!  प्रकृति का यही न्याय है इंसान को कब राजा और कब रंक बना दे ! तभी कहते है सूरत सिरत के साथ कर्मों को सफल बनाए जाने आने का मार्ग ख़ुद बख़ुद सुगम सरल हो जाएगा ! चित्र गुप्त के पास रखी वंशावली सारे चीजीं का हिसाब लिखा रहता है ! पृथ्वी लोक की माया में सभी ज्ञानी ध्यानी है ! इंसानी फ़ितरत कभी बदल नहीं सकती ! प्रयास ज़रूर सूरत से नहीं सीरत से प्यार करना होगा! क्योंकि बीमारी कभी पूछ कर नही आती है!

- अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

       कहा जाता है , 'घमंड का घर खाली होता है। ' यानी घमंड किसी भी वजह से हो, वह एक दिन नुकसानदेह ही होगा। क्योंकि घमंड ऐसा दुर्गुण है जो ज्यादा दिन नहीं रहता और एक न  एक दिन संताप देकर, सारी हेकड़ी निकाल देता है। इन्हीं घमंड की सूची में प्रमुखत: रुपये और रूप प्रमुख हैं। अक्सर जो लोग सुंदर या पैसे वाले होते हैं, इनमें से अधिकांश में अपने रूप या पैसों का घमंड देखने मिलता है। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। समय बदलते देर नहीं लगती। कब किसके साथ क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। जीवन चक्र और काल चक्र घुमते हुए पहिये की तरह होते हैं। सच कहा है, बीमारी और गरीबी कभी पूछ कर नहीं आती हैं। इसीलिए हमेशा विनम्र और सहृदयी होना चाहिए। इससे सभी से रिश्ते मधुर रहेंगे और जरूरत पड़ने पर सभी से सहयोग मिलेगा। घमंडी लोगों को लोग सहयोग देना तो दूर कोई ऐसे लोगों को पसंद भी नहीं करता।

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

     आज जो हसीन है , खूबसूरत है , कल को वो बदसूरत भी हो सकता है , इसलिए हमें रूप पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए! पैसा तो हाथ का मैल है , आज यहां , कल वहां !! पैसे पर इसलिए घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि राजपाट वाला राजा भी पल में रंक बन जाता है , व पल भर में ही रंक राजा  बन जाता है !! सुंदरता भी अस्थिर होती है , क्योंकि जो आज स्वस्थ और सुंदर है , कल को किसी बीमारी के चलते , देखने योग्य भी नहीं रहता !! बीमारी बताकर नहीं आती , अचानक से आ जाती है व स्वर्णिम काया को धूमिल कर देती है ! गरीबी भी अचानक से आ जाती है , वक्त और हालात के अनुसार !! जब ये सब , अचानक और बिन बताए होता है , तो इनपर क्या इतराना ?? राजा भोज और गंगू तेली को अपना किरदार बदलने में, क्षणों का समय ही लगता है , इसलिए हमें अमीरी पर , या रूप पर कभी घमंड नहीं करना चाहिया !! 

- नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

       माना की  रूप और रूपए दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण हैं लेकिन इन पर घमंड करना उचित नहीं है क्योंकि व्यक्ति को अपने अंदर की  सुंदरता और योग्यता पर गर्व करना चाहिए बाहरी सुन्दरता और धन तो अस्थायी हैं लेकिन बहुत से लोग अपनी सुंदरता और  धन पर बहुत घमंड करते हैं और दुसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं तो आईये आज की चर्चा इसी बात  पर करते हैं कि  रूप और रूपए पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि बिमारी और गरीबी कभी पूछ कर नहीं आती, यह अटूट सत्य है कि रूप और रूपए पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि गरीबी और बिमारी बिना पूछे आती है और दोनों को राख कर सकती है इसलिए इंसान को विनम्र रहना चाहिए क्योंकि जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं बिमारी और गरीबी कभी  भी ठोकर मार सकती है, यह समस्याएं किसी भी‌ समय किसी को भी आ सकती हैं इसलिए किसी को भी  अपने रूप और  धन पर घमंड नहीं करना चाहिए ,हमेशा अपनी बातचीत अपने चालचलन का ध्यान रखते हुए शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए चाहे आपका  मन शान्त हो या अशान्त क्योंकि खराब मन को शान्त करने के मौके बहुत मिल जाते हैं  लेकिन शब्दों को बदलने के मौके नहीं मिलते, जीवन के अनुभव यही कहते हैं कि गरीबी और बिमारी कभी पूछ कर नहीं आती और जब आती है सबकुछ छीन कर ले जाती है चाहे रूप हो या रूपया दोनों कभी भी समाप्त  हो सकते हैं इसलिए कभी भी रूप और धन का घमंड करना उचित नहीं है  यह दोनों अस्थायी हैं और इनका कोई भरोसा नहीं कब लुप्त हो जांए,अक्सर देखा गया है कि लोग रूप के घमंड में अंदर की सुदंरता को भूल जाते हैं और दुसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं इसी तरह से धन भी स्थायी नहीं है लेकिन रूपए  के घमंड से भी लोग  इंसानियत को भूल जाते हैं और अपने आप को महान समझने लगते हैं तथा दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं ,अन्त में यही कहुंगा कि धन और रूप दोनों अस्थायी हैं जबकि  इन दोनों का घमंड अंहकार को जन्म देता है और अंहकार बड़े से बड़े व्यक्ति का‌ सत्य नाश कर देता है,इससे रिश्ते नाते खराब होने लगते हैं,समाज में सम्मान कम होने लगता है और व्यक्ति अकेला पड़ जाता है,अधिक धन   नकारात्मका  का कारण बनता है और सुन्दरता समय के साथ ढलती जाती है,तथा बाहरी सुन्दरता या रूप मानसिक और भावनात्मक सुंदरता को नजरअंदाज करती है जिससे दुसरों से दूरी बढ़ती है और व्यक्ति अकेला बन कर रह जाता है,इसलिए हमें नम्रता और सेवाभाव का मार्ग अपनाना चाहिए तथा भगवान का शुक्र गुजार होना चाहिए कि उसने ही सब कुछ दिया है इसके‌ साथ  साथ मानसिक और भावनात्मक सुंदरता पर ध्यान देना चाहिए, असली सुंदरता व्यक्ति के चरित्र मे छिपी होती है जिसमें अच्छाई, कोमलता,आत्मविश्वास और संतुलन जैसे गुण होते हैं  इसके अलावा दयालुता,सहनशीलता, उदारता उत्साह तथा अनुशासन गुण ही इंसान की सुंदरता को बढावा देते हैं और देर तक स्थायी रहते हैं इसके साथ दुसरों की खुशी मे खुश रहना ,साहसी और कल्याणकारी होने का भाव,सकारात्मक सोच इत्यादि गुण ही मनुष्य के लिए सुंदरता और धन दौलत है जो कभी खत्म नहीं होते और युगों युगों तक लोगों के दिलों में जगह बनाये रखते हैं।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

       रूप और रुपये पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि बिमारी और गरीबी कभी पूछ कर नहीं आती....  इस बात से सभी अवगत है और जानते हुए भी सभी इस कड़वे घूंट को पीकर रह जाते हैं किंतु सत्य जानते हुए भी क्या कोई अमल करता है...? कहते हैं ना..." यौवन, रूप ,सौंदर्य, श्री-संपत्ति सभी क्षण-भंगूर है। इसी के लिए तो हम यह कहावत कहते हैं ना!कि " चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात" हमें इसका कभी घमंड नहीं करना चाहिए। रूप तो यौवन खत्म होते ही ढल जाता है , और रुपये तो हाथ का मैल है आज है कल नहीं। फिर किस बात का घमंड? घमंड तो राजा रावण का भी नहीं रहा पूरी सोने की लंका जल कर राख हुई। जिस तरह बिमारी और गरीबी पूछकर, बता कर नहीं आती उसी तरह अचानक बाढ़,भूकंप में  लोग रस्ते पर आ जाते हैं। अमीर गरीब सब एक समान रस्ते पर खड़े रहते हैं, सर्वस्व नाश हो जाता है और रूप किसी हादसे अथवा दुर्घटना में भी जा सकता है , यदि कुछ साथ रहता है तो वह हमारे अच्छे कर्म ही होते हैं बाकी सब तो नश्वर है। अतः हमें हर स्थिति में अपना आचरण संतुलित रखना चाहिए।

- चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र

       रुप और रुपए की तो बात ही क्या घमंड तो किसी भी वस्तु का नहीं करना चाहिए, क्योंकि वक्त कब बदल जाए,पता नहीं चलता।रही बात बीमारी और ग़रीबी की तो सच है,वो किसी से पूछकर तो आती नहीं।इनके आने पर मानव हर तरह से टूट जाता है। यदि इनके आने का पते पहले से चलते तो इनसे बचने का इंतजाम कर लेते पहले ही। लेकिन घमंड में चूर होने पर इतना होश ही कब रहता है कि वक्त की चाल को समझ सके,जान सके। बड़े बड़े ज्ञानी भी समय को नहीं  समझ पाते। रुप और रुपए तो किसी के भी सदा नहीं रहते।समय के साथ साथ रुप बदलता रहता है और धन तो होता ही चंचल है।इन पर घमंड न करने वाले को इनके क्षीण होने पर कष्ट कम होता है या नहीं भी होता। जग और समय परिवर्तनशील है और इस परिवर्तन को घमंड में चूर व्यक्ति झेल नहीं पाता। इसलिए सहज जीवन व्यतीत करते हुए कभी घमंड नहीं करना चाहिए।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर - उत्तर प्रदेश 

       घमंड किसी पर भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि सब चीजें आनी-जानी हैं. पद पर भी कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि पद से कभी भी च्युत किए जा सकते हैं. बल पर भी कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि हो सकता है सामने वाला आपसे भी ज्यादा बलवान हो! राम-रावण की मिसाल हमारे सामने है. विशेषकर रूप और रुपए पर तो कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि बीमारी और गरीबी कभी पूछकर नहीं आती हैं. बीमारी आई तो रूप वाला भी कुरूप हो सकता है, बीमारी से धनवान भी कंगाल हो सकता है. इसके अतिरिक्त धनवान भी हमेशा धनवान नहीं रह सकता, किसी कारण व्यवसाय में थोड़ी-सी भी चूक हुई या किस्मत खराब हुई तो राजा भी रंक हो सकता है. इसलिए रूप और रुपए पर भी घमंड नहीं करना चाहिए ।क्योंकि बीमारी और गरीबी कभी पूछकर नहीं आती हैं.

- लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

     रूप और रुपए दो सिक्के के दो पहलू है। जिसका घमंड अधिकांशत:  रहता है, हम है तो कोई नहीं, जिसका बखान हमेंशा करते रहते है, इस तरह अपने आपको सर्वोपरि समझने लगते है, उन्हें समस्त क्षेत्रों में देख लीजिए, अपना गुणगान स्वयं करते है, आमजन भी इस कदर उनके प्रति ऐसे प्रभावित होते रहते है, पूछो मत? जिस तरह ऋतुएं परिवर्तित होती है, सूर्य-चांद को देख लीजिए, हमनें देखा है परिस्थितियां भी बदली है, एक जैसे नहीं रहती है,घटनाएं बताकर नहीं आती है, इसी तरह बिमारी और गरीबी कभी पूंछ कर नहीं आती हैं, याने जैसा कर्म करोगें वैसा फल भी प्राप्त होता है, हमेशा समानता वादी बन कर जीना चाहिए,किसी भी तरह का घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड का भी अंत निश्चित है। सब की अपनी-अपनी सीमाएं होती है।

 - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

        बालाघाट - मध्यप्रदेश

       "धूप में निकला ना करो"इस गीत के साथ ही यह सीख माशाल्लाह - - बड़ी प्यारी सी सीख कि रूप पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। और रुपैया - - रुपये को तो पाँव होते हैं। आज आपके हाथ कल उछल कर किसी और की झोली में - - सो आज की दुनिया का सबसे बड़ा सच है कि रूप और रुपये पर कभी घमंड न करें। उम्र का बहाव तो रूप पर प्रभाव डालता ही है साथ ही जीवन की धूपछाँव भी रूप की बधाईयाँ छीन लेती है। सच है कि जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है। बीमारी और विपदायें पूछ कर नहीं आतीं। रूप का घमंड आपके व्यक्तित्व की अच्छाइयों को छीन लेता है--आपकी छबि खराब कर सकता है। उसी तरह रुपये के बल पर कुछ भौतिकतावादी हासिल हो सकता है लेकिन शाश्वत कुछ नहीं। घ्यान रहे कि स्वास्थ्य से बढ़कर कोई धन नहीं होता। बचपन से किंडरगार्टन से बच्चों को सिखाया जाता है - -"स्वास्थ्य ही धन है"! इस एक वाक्य में बीमारी और गरीबी का सच्चा स्वरूप दिखाया जाता है बचपन से ही। जरूरत है कि इसे एक वाक्य मात्र न मानते हुये जीवन का सार माने और रूप रुपैया भूल कर सच्चा धन स्वास्थ्य की खोज में उन राहो पर चलें जो जिंदगी को जिंदगी बनाये - - बोझ नहीं।

- हेमलता मिश्र मानवी 

नागपुर - महाराष्ट्र 

        रूप और रुपए पर घमंड करना ऐसा ही है जैसे रेत के घरौंदे पर राजमुकुट रख देना, जिसे नदी की पहली लहर ही बहा ले जाती है। ऐसे ही सुन्दरता का तेज़ समय के साथ मुरझा जाता है और जिसके पास आज जो रुपया है वह कल किसी और की मुट्ठी में होता है।  परन्तु मानवता, करुणा और सच्चा चरित्र ऐसी संपत्तियाँ हैं जो कभी नष्ट नहीं होती हैं। बीमारी और गरीबी भी किसी का धर्म, जाति, पद या प्रतिष्ठा नहीं देखती हैं। वे इस संसार में बिना सूचना, बिना अनुमति, और बिना किसी भेदभाव के आती हैं और सब कुछ नष्ट कर जाती हैं। इसलिए, जो व्यक्ति अपने रूप पर गर्व करता है,वह भूल जाता है कि एक दिन वही चेहरा दर्पण से प्रश्न करेगा कि मेरा सौंदर्य और सामर्थ्य का कहॉं लुप्त हो गया है जिस पर मैं अहंकार करता था? यही हश्र रुपए पर अहंकार करते वाले व्यक्ति का होता है। अतः सादगी, निष्ठा, निष्पक्षता और परमार्थ ही अन्ततः मरणोपरांत भी लोग स्मरण रखते हैं। यही मानव का सच्चा सौंदर्य, नम्रता और धन सम्पत्ति है। 

 - डॉ इंदु भूषण बाली 

ज्यौड़ियॉं (जम्मू) -जम्मू और कश्मीर

     इस पंक्ति में जीवन-दर्शन की गहरी झलक है — “रूप” और “रूपये” दोनों क्षणभंगुर हैं, और इन पर घमण्ड करने वाला व्यक्ति वास्तविक मानवीय मूल्य भूल बैठता है। रूप और रूपये दोनों ही जीवन के अस्थायी आकर्षण हैं। इन पर गर्व करना उस रेत के महल पर गर्व करने जैसा है, जिसे एक लहर मिटा सकती है। सुंदरता समय के साथ ढल जाती है और धन परिस्थितियों के साथ बदल जाता है। जो व्यक्ति इन दोनों के अहंकार में जीता है, वह मानवीय संवेदनाओं से दूर हो जाता है। जबकि सच्चा सौंदर्य विचारों की पवित्रता में है और सच्ची संपत्ति चरित्र की समृद्धि में। बीमारी और गरीबी किसी की दहलीज़ नहीं पहचानतीं, वे सम्राट और सेवक दोनों के द्वार पर समान भाव से दस्तक देती हैं। इसलिए विवेक यही कहता है कि हमें नम्रता में समृद्ध और सरलता में सुंदर बने रहना चाहिए। "रूप मिटता है, रूपया लुप्त होता है, पर विनम्रता का उजाला कभी नहीं बुझता।"

 - डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

      जिस प्रकार से मृत्यु सत्य है ठीक उसी तरह ये बात भी सही है कि रूप और रुपया पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि बिमारी और गरीबी कभी पूछ कर नहीं आती. इसका सटीक उदाहरण हम फिल्मी दुनिया में देख सकते हैं. कितने सुन्दर चेहरे समयानुसार विकृत हो गये हैं.पहले जिन्हें लोग देखने को आतुर रहते थे अब उन चेहरों के तरफ झांकते तक नहीं. ठीक उसी तरह करोड़ पति लोगों को भी जीवन के एक समय में खाने के लाले पड़ गये हैं. रूप और रुपया स्थाई चीज़ नहीं है. इसलिए इसपर कभी घमंड नहीं करना चाहिए. क्योंकि दोनों में से कोई भी साथ जाने वाला नहीं है. जो बना है उसे एक दिन बिगड़ना ही है. फिर घमंड किस बात का. ये भी कहा गया है कि लक्ष्मी चंचला होती है वह एक जगह ठहरती नहीं. आज यहां कल वहां. इसलिए रुपये का घमंड भी नहीं करना चाहिए. अरबों खरबों की संपत्ति यही छोड़ कर जाना हैं. 

- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

कलकत्ता - प. बंगाल 

           बीमारी और ग़रीबी का कोई धर्म नहीं होता।जब जिसको आनी होती है ,आ ही जाती है। उसके लिए रूपवान होने का या धनवान होने का कोई अर्थ नहीं होता।यह मात्र हमारे अपने पुराने और पिछले कर्म हैं जिसके परिणामस्वरूप हमें सब भुगतना होता है।

- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'

वाराणसी - उत्तर प्रदेश 

     प्रकृति  परिवर्तनशील है । यह संसार परिवर्तन शील है। जो जैसा आज है वैसा ही कल वह नहीं रहेगा। सुख - दुःख अंधेरे और उजाले पक्ष की तरह आते - जाते रहते हैं। जो आज धनी हैं वे कल कंगाल भी हो सकते हैं। जो आज सुंदर हैं वे कल कुरूप भी हो सकते हैं। जो आज स्वस्थ हैं वे कल बीमार भी हो सकते हैं। इसलिए पद प्रतिष्ठा, धन - दौलत, रूप और बल आदि का घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि अर्श से फर्श पर गिरने में देर नहीं लगेगी।

- डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया 

ग्वालियर - मध्यप्रदेश 

       रूप और रुपए पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए,क्योंकि यह कभी किसी के पास नहीं रहता।आज मेरे पास पैसे हैं,कल किसी और के पास है।सुंदरता भी कम और अधिक होते रहता है।इसलिए मनुष्य को इन दोनों चीजों पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए।बीमारी और गरीबी कभी पूछ कर नहीं आती।मनुष्य के साथ बीमारी हो या गरीबी ,यह कभी आ सकती है।इसके लिए समय निश्चित नहीं होता।

- दुर्गेश मोहन 

 पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  बिमारी बहुत कुछ अपने साथ लातीं है। जिस में प्रमुख रूप से ग़रीबी होती है । ग़रीबी इंसान को लाचार बना देती है। यानी नरंक का सामना करवाया देता है।

            - बीजेन्द्र जैमिनी 

          (संचालन व संपादन)


Comments

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?