फिल्मी गीतकार अनजान स्मृति सम्मान -2025

        तारीफ़ हर किसी को चाहिए। तारीफ़ का कोई अंत नहीं होता है। तारीफ़ के लिए झूठ का भी ‌सहारा लिया जाता है। फिर भी तारीफ तो चाहिए। तारीफ़ का कोई नियम काम नहीं करता है। इसलिए तारीफ़ को तारीफ़ तक सीमित रहना चाहिए। जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय के रूप में पेश किया है। अब आयें कुछ विचारों को पेश करते हैं:-
      तारीफ के लिए झूठ बोलना जरुरी तो नहीं लगता और कोई बिना तारीफ खुश नहीं होता यह भी पूर्ण सत्य नहीं। हां यह जरुर है कि आप जिसकी तारीफ करें वो आपसे खुश हो जाए, लेकिन आपके तारीफ किये बिना वह खुश नहीं था,यह कहना ठीक नहीं। तारीफ बिना झूठ बोले की जा सकती है,बस कहने का तरीका आना चाहिए। नीति कहती हैं - सत्यं ब्रूयात,प्रियम् ब्रूयात।न ब्रूयात सत्यं अप्रियं। जब अप्रिय बोलने की मनाही है भले ही वह सत्य हो,तो फिर बोले ही क्यों? तारीफ यदि झूठी की जाए तो सामने वाला चापलूस और झूठा तो  मान ही लेगा आपको, फिर भला वह आपसे प्रसन्न होगा क्या? दिखावे के लिए मुस्कुरा भले दें लेकिन आपके प्रति सजग रहेगा।आप भी तो ऐसे ही करते हैं न कि झूठी तारीफ करने वाले के प्रति सजग रहते हैं।  यही मानवीय प्रवृत्ति है।

 - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर - उत्तर प्रदेश 

      “तारीफ़ किए बिना कोई खुश नहीं होता, झूठ बोले बिना किसी की तारीफ़ नहीं होती” यह कथन आज के समय की एक कटु लेकिन सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है। मनुष्य के जीवन में तारीफ़ वह मधुर रस है जो थके हुए मन को स्फूर्ति देता है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी मेहनत, उसकी उपस्थिति, उसके अस्तित्व को कोई सराहे। परंतु विडंबना यह है कि आज अधिकांश तारीफ़ें भावनाओं से नहीं, प्रयोजन से जन्म लेती हैं। लोग सच्चाई से नहीं, सुविधा से प्रशंसा करते हैं। रिश्तों में अपनापन घटा है, पर दिखावटी शब्दों की मिठास बढ़ी है। यही कारण है कि आज सच्ची तारीफ़ दुर्लभ और झूठी तारीफ़ सामान्य हो गई है। झूठी प्रशंसा क्षणिक प्रसन्नता देती है, पर संबंधों की जड़ों में खोखलापन भर देती है। जब किसी की त्रुटि पर भी केवल प्रसन्न करने के लिए वाहवाही की जाती है, तो सुधार की संभावना समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत, सच्ची और हृदय से निकली तारीफ़ व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यह न केवल आत्मविश्वास जगाती है, बल्कि संबंधों में सच्चाई और सम्मान का रंग भी घोलती है। अतः आवश्यक है कि हम चापलूसी और सच्ची सराहना के बीच का अंतर समझें। किसी की तारीफ़ करते समय शब्दों में मिठास हो, पर मन में सच्चाई भी बनी रहे। क्योंकि सच्चे मन से की गई प्रशंसा ही आत्मा को छूती है और झूठी प्रशंसा केवल कानों में गूँज कर रह जाती है। “सच्ची तारीफ़ वह आईना है जो अच्छाई को पहचानती है, झूठी तारीफ़ वह मुखौटा है जो सच्चाई को छिपा देती है।

‌- डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर -  राजस्थान

      आज के समय में तारीफ़ से लोग खुश होते हैं। तारीफ़ तभी मिलती है,जब हम झूठ बोलते हैं।हमें इन बातों की परवाह नहीं करना चाहिए।अगर हमें तारीफ़ पाना हो तो हमें गुणवान बनना होगा।हमें अच्छे कर्म करने होगें।हमें सफलता मिलेगी।लोग मेरा गुणगान गाएंगे।हम तभी खुश होंगे,जब मेरा नाम होगा।जब मेरा नाम होगा,मेरी शोहरत भी होगी।इस प्रकार स्पष्ट है कि लोग मेरी तारीफ़ करेंगे और मैं खुश हो जाऊंगा।

 - दुर्गेश मोहन 

 पटना - बिहार

        कुछ हद तक यह सत्य है कि तारीफ किए बिना कोई खुश नहीं होता है और झूठ बोले बिना किसी की तारीफ नहीं होती है. ऐसा होता देखा गया है कि अच्छे काम करने वाले भी अपने काम के आंकलन के लिए तारीफ के मोहताज होते हैं और तारीफ से खुश भी हो जाते हैं और प्रोत्साहित भी. जहाँ तक "झूठ बोले बिना किसी की तारीफ नहीं होती है'' की बात आती है, हमारे विचार से यह पूर्णतः सत्य नहीं है. कुछ लोगों पर यह बात लागू हो सकती है, पर सचमुच दिल से अच्छे काम करने वालों को तारीफ की दरकार ही नहीं होती, उनके लिए स्वतः ही दिल से तारीफ के उद्गार प्रकट हो जाते हैं. 

 - लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

          त्यौहारों की छुट्टी के बाद आज फिर चर्चा में भाग लेने का मौका मिला. यह बात सही है कि दुनिया का हर व्यक्ति तारीफ की दुनिया में सैर करना चाहता है. तारीफ एक ऐसी चीज़ है जो भगवान को भी प्यारी लगती है.इस स्थिति में आदमी की क्या गिनती है. किसी से कोई काम लेना हो या काम करवाना हो झूठी तारीफ की पुल बांधिये आपका काम हो जाएगा या वो शख्स आपका काम कर देगा. चूकीं मनुष्य गलतियों का सरताज होता है. हर मनुष्य में कोई न कोई गलती होती ही है इसलिए तारीफ करने पर झूठ तो बोलना ही पड़ेगा. सत्य बोलने पर तारीफ नहीं हो सकती है. घर परिवार हो या दफ्तर काम निकालने के लिए झूठी तारीफ करनी ही पड़ती है. घर में खाना अच्छा न भी बने तब भी झूठी तारीफ करनी पड़ती है बनाने वाले को खुश करने के लिए. दफ्तर में भी किसी से ज्यादा काम लेने के लिए झूठी तारीफ कर के ही उसे खुश कर काम लिया जाता है. इसलिए ये बता पूर्णतः सत्य है कि तारीफ किए बिना कोई खुश नहीं होता है. और झूठ बोले बिना किसी की तारीफ नहीं होती. 

- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

कलकत्ता - प. बंगाल 

ये आज के जीवन की कटु सच्चाई है कि तारीफ आज हर शख्स की जरूरत है , व तारीफ के बिना कोई खुश नहीं होता !! तारीफ करनेवाला व्यक्ति , यह जानते हुए भी , कि वह झूठी प्रशंसा कर रहा है , करता है ज़रूर क्योंकि तारीफ के बिना कोई खुश नहीं होता !! तारीफ में झूठ का ऐसा सम्मिश्रण होता है , कि वह झूठी तारीफ , सुनने वाले को सच्ची लगती है !! झूठ बोले बगैर किसी की तारीफ नहीं होती क्योंकि सच्ची तारीफ के काबिल बहुत कम लोग हैं आज की दौर और आज की दुनियां में !!

- नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

      इंसान और जानवर दो ऐसे है जब तक इनकी तारीफ़ नहीं की जाए, तब तक इनका खाना हजम नहीं होता। नवजात शिशु को भी देख लीजिए, तारीफ़ किए बिना कोई खुश नहीं होता है, झूठ बोलें बिना किसी की तारीफ़ नहीं होती है। सत्यता झलकती है। कोई सामने करता है, कोई पीठ पीछे। दोनों का उद्देश्य चाटुकारिता है, दोनों को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है, इसी में ही घोका भी हो जाता है, समझ नहीं पाते, सच क्या है, झूठ क्या है? जब सत्य और झूठ का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। लाभ और हानि पर्यायवाची शब्द है। पतन और अपतन होना ही है, हम किसी के मन स्थिति को समझ हीं नहीं पाते और इसी में खेल हो जाता है.....

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

       बालाघाट-मध्यप्रदेश

      वाह! तारीफ...भला अपनी तारीफ सुनना किसे पसंद नहीं होगा। तारीफ करने के एवं तारीफ के अपने अलग अलग अंदाज हैं। जैसे...किसी बच्चे, मजदूर, विद्यार्थी,कलाकार या किसी नौसिखिए के काम की हम तारीफ करते हैं वह हमारा सच्चे दिल से उसे प्रोत्साहित करना होता है और हमारे प्रोत्साहन से प्रेरित हो वे आगे और अच्छा अपना काम करते हैं। वहीं, झूठी तारीफ करने से   मनोबल भी टूटता है। जैसे-:  अपना मतलब निकालने के लिए किसी की हम झूठी तारीफ करते हैं। किंतु  वहीं, पति को... पत्नी के  खाने की, सुंदरता की, कपड़ों की तारीफ करना ही चाहिए चाहे झूठी ही क्यों ना हो, प्रेम बढ़ता है। ऐसी तारीफ कौन नहीं चाहेगा। बस इतना ध्यान होना चाहिए कि  अपने अहंकार को बनाये रखने के लिए, अपना बड़प्पन दिखाने के लिए हम अपनी , झूठी तारीफ को मान देते हैं तो स्वयं को नुकसान पहूंचाते हैं जिसका भुगतान आगे भोगना पड़ता है।

- चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र 

      आज का समाज ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जहाँ सत्य और प्रशंसा साथ-साथ चल नहीं पाते। लोग सच्ची बात सुनने से अधिक, अपने अहंकार को सहलाने वाली बातें सुनना पसंद करते हैं। इसीलिए ‘तारीफ़ किए बिना कोई खुश नहीं होता’, और ‘झूठ बोले बिना किसी की तारीफ़ नहीं होती’। यह एक ऐसी विडंबना है जो हमारे सामाजिक और नैतिक पतन का दर्पण है। लेकिन उक्त दर्पण मनोवैज्ञानिक और नैतिकता के द्वंद्व को उजागर करता है। सच्ची प्रशंसा अब दुर्लभ हो गई है, क्योंकि जब कोई सच्चाई बोलता है तो लोग उसे आलोचना समझ लेते हैं। झूठी तारीफ़ ने सच्चे मूल्यांकन की जगह ले ली है, जिससे व्यक्ति के भीतर आत्ममूल्य की भावना कमजोर होती जा रही है।हमें ऐसे समाज की ओर लौटना चाहिए जहाँ सत्य बोलना अपराध न माना जाए और सच्ची प्रशंसा को झूठ से अधिक सम्मान मिले। तभी व्यक्तित्व का वास्तविक उत्थान संभव है। 

 - डॉ. इंदु भूषण बाली

ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर

        शरीर मिला, शक्ति मिली, चेतना मिली और बोध मिला इसलिए कि मनु अंश अपनी उन्नति करें, अपने सफल जीवन-पथ पर आगे बढ़े, स्वयं सुख-शान्ति से रहे और उसके संग-संग समाज के अन्य प्राणियों को भी सुखी होने में सहयोग दे सके, लेकिन कुछ आलस्य में पड़ा अकर्मण्य व्यक्ति आत्महत्या की ओर बढ़ता है।काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार में लीन होकर समाज के विनाश का कारण बनता है।तारीफ़ की भूख उन्हें ज़्यादा होती है जो किसी प्रकार से प्रसिद्धि पाना चाहते हैं लेकिन योग्यता शून्य होती है। अब ऐसे व्यक्ति की तारीफ़ सच्चे शब्दों में कैसे हो…! और तारीफ़ ना हो तो दुश्मनी मोल लेने की भी शक्ति कुछ लोगों में नहीं होती है। ऐसों का कुनबा बनता जाता है। समाज के उन्नति में लगे दीमक

 - विभा रानी श्रीवास्तव

 बेंगलूरु - कर्नाटक 

       तारीफ सुनना मन को प्रफुल्लित करता है और तारीफ करना  स्वार्थ सिद्ध करता है। ये दो ऐसे मनोवैज्ञानिक भाव हैं जो तीसरे देखने-सुनने वालों को भी लुभाते हैं। तारीफ वाली बात पर  जब तारीफ की जाती है तो वह बात अलग होती है, चूंकि वह दिल से निकलती है। लेकिन स्वार्थसिद्ध करने के लिए की जाती है तो वह झूठी, निराधार और खोखली होती है। चापलूसी लिए होती है। उसका कारण यह भी होता है कि कुछ लोगों की ऐसी धारणा होती है कि वे यह मानते हैं कि  तारीफ किए बिना कोई खुश नहीं होता और खुश किए बिना काम सिद्ध नहीं होता। ऐसे में तब तारीफ के योग्य न होने पर भी झूठी तारीफ की जाती है और मतलब पूरा कर लिया जाता है। यह प्रचलन में है और ऐसा होता है। लोग झूठी तारीफ के झांसे में आ जाते हैं और स्वार्थियों के बहकावे में आ जाते हैं। अत: तारीफ सुनकर अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर लेना चाहिए।ताकि झूठी तारीफ करने वाला अपना स्वार्थ पूरा न कर सके।

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

 गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       तारीफ़ किए बिना कोई ख़ुश हो न हों परंतु यह सच्चाई है कि प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई अच्छाई, कोई न कोई गुण अवश्य होता है।  यदि हम सकारात्मक सोच व ऊर्जा से ओत-प्रोत हैं तो हमारी नज़र अच्छाई पर अवश्य जाएगी। अच्छाई को नज़रअंदाज़ करने के बजाय  उसकी तारीफ़ कर देना अधिक गुणकारी है। इससे न केवल वह व्यक्ति जिसकी प्रशंसा की जा रही है अपितु हम स्वयं  भी एक अच्छे एहसास से भर जाते हैं। प्रशंसा केवल  मरणोपरांत ही नही की जाती जो की हम अमूमन करते हैं। यदि आप अच्छे दोस्त हैं तो उसकी नकारात्मकता, उसकी कमियों की ओर भी ध्यान  आकर्षित करें। हाँ, ध्यान आकर्षित करने का ढंग सलीकेदार होना चाहिए ना कि लट्ठमार।  यदि अगला व्यक्ति  इसे ठीक ढंग से नहीं लेता है तो इसका अर्थ है उसका व्यक्तित्व संतुलित नहीं है व आत्ममुग्धता से ग्रसित है।यह भी एक प्रकार का रोग  है। तारीफ़ करने के लिए झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं होती अपितु नज़र  अच्छाई की ओर होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की अनुपम कृति है।  किसी में कोई भी अच्छाई अथवा गुण न हो ऐसा संभव नहीं। 

 - रेनू चौहान 

नई दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " तारीफ़ इंसान की‌‌ सबसे बड़ी कमजोरी है। जो सिर्फ तारीफ़ सुनना पसंद करता है। कई बार तारीफ़ भी इंसान की दुश्मन बन जाती है। क्यों कि दूसरे की तारीफ बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इसलिए तारीफ़ भी इंसान की दुश्मन बन जाती है। तारीफ़ का अपना संसार होता है। जो आपके आगे पीछे चलता है।

           -  बीजेन्द्र जैमिनी 

         (संचालन व संपादन)

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