सरकारी पुरस्कार के लिए सिर्फ सर झुकाने से ही काम नहीं चलता है। राजनीति हैसियत भी होनी चाहिए। तभी " मेरी दृष्टि में " सरकारी सम्मान की कल्पना करना चाहिए। यही सरकारी पुरस्कारों की सच्चाई है।
वृद्धाश्रमों की आवश्यकता दिनों दिन बढती जा रही है । जो चिंता का विषय है । परिवार दिनों दिन टूट रहे हैं । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - भारत की सनातन भारतीय संस्कृति संयुक्त परिवार की है । समाज में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से देश में परिवर्तन आया है । संयुक्त परिवार एकल परिवार में बदल गए । परिवार में बड़े , बूढ़ों की अवेहलना होने लगी और उनकी अहमियत शनैःशनैः खत्म होने लगी । मानव में मूल्यों , संस्कारों का ह्रास होने लगा । माता -पिता जिन्होंने संतान को स्वाबलंबी , आत्मनिर्भर बनाया । उन्हीं की औलाद अपने माता -पिता को बोझ मानते हैं । वे अपने संग रखना पसंद नहीं करते हैं । बुढापे में बच्चों की सेवा की जरूरत होती है तो वे बच्चे सेवा करना पसंद नहीं करते है । सन्तान को उनकी बात भी बुरी लगती है । माता - पिता की सेवा न करने से सन्तान आजाद रहना चाहती है इसलिए उन्हीं की संतान उन्हें वृद्धाश्रम में रखना पसंद करते हैं । समाज में यही नकारकात्मक भाव प...
लघुकथा - 2018 , लघुकथा - 2019 , लघुकथा - 2020 , लघुकथा - 2021 , लघुकथा - 2022 , व लघुकथा - 2023 की अपार सफलता के बाद लघुकथा - 2024 का सम्पादन किया जा रहा है । जो आपके सामने ई - लघुकथा संकलन के रूप में है । लघुकथाकारों का साथ मिलता चला गया और ये श्रृंखला कामयाबी के शिखर पर पहुंच गई । सफलता के चरण विभिन्न हो सकते हैं । परन्तु सफलता तो सफलता है । कुछ का साथ टूटा है कुछ का साथ नये - नये लघुकथाकारों के रूप में बढता चला गया । समय ने बहुत कुछ बदला है । कुछ खट्टे - मीठे अनुभव ने बहुत कुछ सिखा दिया । परन्तु कर्म से कभी पीछे नहीं हटा..। स्थिति कुछ भी रही हो । यही कुछ जीवन में सिखा है । लघुकथा का स्वरूप भी बदल रहा है। जो समय की मांग या जरूरत कह सकते हैं। परिवर्तन, प्रकृतिक का नियम है। जिसे नकारा नहीं जा सकता है। एक तरह से देखा जाए तो ये लघुकथाकारों का आयोजन हैं। जो सत्य से परें नहीं है। लघुकथाकारों के साथ पाठकों का भी स्वागत है । अपनी राय अवश्य दे । भविष्य के लिए ये आवश्यक है । आप के प्रतिक्रिया की...
आज सुबह की बात है। मैं ताऊ देवी लाल पार्क घुमने जा रहा था । अचानक रास्ते में कच्च पड़ा नज़र आया । मैं पांव से एक तरफ़ा करना लगा । तभी मैं एक दम घबरा गया । घुमने कर देखने पर स्पष्ट हुआ कि ये मेरी परछाईं है। तभी तय कर लिया गया कि जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय रखा जाऐगा । अब आये विचारों को देखते हैं : - सत्य को स्वीकार करना सहज नहीं होता है । परछाईं उसका अपना ही अक्स होती है, जो प्रकाश किस ओर से कितनी मात्रा पर पड़ रहा है, इस अनुसार निर्मित होती है । उसे देखकर विचलित होना स्वाभाविक ही है । बदलते हुए स्वरूप को देकर डरना मानव प्रवृत्ति । जो हिम्मती होते हैं वो हर परछाईं का स्वागत करते हैं । मनुष्य सबको तो बुद्धू बना सकता है किंतु अपनी परछाईं से बच पाना आसान नहीं होता है । यही कारण है कि मनुष्य अपनी परछाईं से डरता है । - छाया सक्सेना प्रभु जबलपुर - मध्यप्रदेश हर इंसान में "डरे काम" भावना है।यह नकारात्मक रूप में हमारे अंदर मौजूद रहती है। किसी को अज्ञात में उतरने का डर, किसी को पानी से फोबिया किसी को ऊंचाई का फोबिया होत...
Comments
Post a Comment