क्या कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है ?
कर्मवीर व्यक्ति ही देश व समाज का उथान कर सकता है । कर्मवीर व्यक्ति उसे कहते है जो कर्म में विश्वास रखता है । कर्मवीर व्यक्ति ही संसार की रचना करते हैं । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
हमें यह जीवन कर्म करते हुए (सद्कर्म)मोक्ष प्राप्त करने के लिए मिला है। ताकि शरीर बार बार न धारण करना पड़े।व्यक्ति बंधनमुक्त हो जाये।
जो व्यक्ति कर्म को ही धर्म समझकर कार्य करते हैं, वे ईश्वर से सीधे ही जुड़ जाते हैं। वे अपने परोपकार की भावना से प्रभू को भी सम्मोहित कर देते हैं।
कर्मशीलता का सबसेअच्छा उदाहरण हैं गीता कि ज्ञान। जो कृष्ण भगवान ने अपने प्रिय शिष्य और सखा अर्जून को कुरुक्षेत्र में दिया था।
संपूर्ण जगत में भगवद्गीता से बढ़कर कर्तव्यपरायणता का उदाहरण कहीं नहीं है। जिनके कर्म की शक्ति भक्ति में परिवर्तित हो जाती है तो ऐसा मनुष्य परमेश्वर के विशेष कृपापात्र बन जाते हैं और भगवान भक्तों के आधीन हो जाते हैं।
भक्त प्रहलाद वैसे तो राक्षस कुल में जन्मा था ।किन्तु परमेश्वर ने उसे अपनी गोद में स्थान दिया था।
आज कलियुग में जो कर्म पथ पर सदैव गतिमान रहते है,जो कर्म कर हरि को समर्पित कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति परमेश्वर की विशेष कृपा के पात्र बन जाते हैं।
- डॉ•मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
क्या पूजा क्या अर्चना रे
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे
स्नेह भरा जलता है झिलमिल
मेरा यह दीपक मन रे
"कर्म प्रधान विश्व रचि राखा "कर्म इस शाश्वत सत्य का उपासक है l वही ईश्वर के सबसे नजदीक है l उसे पूजा या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं l आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी इस उपासना में श्रेष्ठ कर्म पुष्प अर्पित करें l
कर्मवीर व्यक्ति पीछे मुड़कर नहीं देखता पूजा में श्रम के मोती लुटाता चलता है l
चलते चलते ----
हम लुटा चुके अपना सब कुछ
हमें कुर्सी और ताजों से क्या लेना?
तुम खेलो उनकी किस्मत से जो किस्मत पर ही पलते हैं
हम कर्मवीर करके खाते हैं
मंदिर गुरुद्वारों से हमें क्या?
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कर्मवीर होना और ईश्वर के नजदीक होना ये अलग अलग बिन्दु हैं । ये जरुरी नहीं कि कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर का उपासक भी हो । दूसरे ये भी जरुरी नहीं कि ईश्वर को आत्मसात कर चुका व्यक्ति वास्तव में कर्मवीर भी हो ।
पर यदि कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के भी नजदीक हो तो सोने पर सुहागा । भगवान का ध्यान कर के जो भी कार्य किया जाता है उसमें निसन्देह सफलता मिलती ही है ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है "कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन"।
अर्थात कर्म करो फल की चिंता मत करो। कर्म पर तुम्हारा अधिकार है। अच्छे कार्य करोगे तो अच्छा फल मिलेगा बुरा कार्य करोगे तो बुरा फल मिलेगा। सत कार्यों का हमेशा अच्छा परिणाम निकलता है। जब ईश्वर ने स्वयं कर्म को प्राथमिकता दी है उसे ही महत्वपूर्ण प्रतिपादित किया है ।तब जाहिर सी बात है कि कर्म करने वाला व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है एवं उनको बहुत ही अधिक प्रिय होता है। हम कह सकते हैं कि कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है क्योंकि ईश्वर को भी कर्म करने वाले व्यक्ति अत्यधिक प्रिय हैं। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को सत्कर्म करना चाहिए। एक कहावत है––
"कर्मन की गति न्यारी"।
जो व्यक्ति जितने श्रेष्ठ कर्म करेगा उसको उतनी ही अच्छी गति प्राप्त होगी क्योंकि विधाता भी श्रेष्ठ पुरुष या इंसान पसंद करता है। कर्मवीर इंसान को ईश्वर बहुत ही प्रेम करता है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
ईश्वर के करीब होने के लिए कर्मवीर होना एक आवश्यक गुण है।प्रभू श्रीराम के नजदीक सभी वह लोग मिलते हैं जो कर्मठ है, जैसे हनुमान,नल नील,जामवंत आदि। इसी तरह कृष्ण के सबसे समीप अर्जुन है।कर्मण्येवाधि कारस्ते मां फलेषु कदाचन का संदेश देते हुए गीता में भगवान ने स्वयं कर्म की महत्ता बताई है। रामचरितमानस में बाबा तुलसीदास जी लिखते हैं सकल पदारथ हैं जग माहीं,करम हीन नर पावत नाही। कर्म तो करना ही होगा, प्रभु की नज़दीकी पाने के लिए।भक्त कबीर,संत रैदास आदि इसके उत्कृष्ट उदाहरण है।सदना कसाई की कथा सब जानते हैं, उसके मूल में कर्म ही तो है।अपने कार्य के प्रति निष्ठा और प्रभु के प्रति समर्पण भाव,जगत से सरल व्यवहार ईश्वर के करीब ले ही जाता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हम सब ईश्वर की संताह हैं. ईश्वर सबसे समान रूप से प्रेम करते हैं, लेकिन कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है, ठीक वैसे ही जैसे मात-पिता को आज्ञाकारी और सेवाभावी संतान सबसे अधिक प्रिय होती है. कहा भी जाता है, कि तुम एक कदम बढ़ाओ तो ईश्वर दस कदम बढ़ाएंगे. कदम बढ़ाना और कदम बढ़ाकर सफलता प्राप्त करना कर्मवीर का ही काम है. यह सफलता प्राप्ति ही ईश्वर का वरदान है और ईश्वर की करीबी का आभास भी कराती है. कर्मवीर व्यक्ति के लिए कोई बाधा अड़चन नहीं बन सकती. कर्मवीर के लिए ही कहा गया है-
''कर दिखाते हैं असंभव को वही संभव यहां,
उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहां.''
- लीला तिवानी
दिल्ली
कहते हैं कि "ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो कर्म करते हैं"। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ईश्वर को भी कर्म और कर्मवीरों से प्यार होता है। मेरी दृष्टि में 'ईश्वर के करीब होने' का अर्थ है.... मनुष्य जीवन-पथ पर अपने कर्म का पूर्ण निष्ठा और समर्पण से निर्वहन करते हुए सभी प्रकार के भौतिक, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करे।
मनुष्य जीवन में सुख-दुख, हानि-लाभ, उतार-चढ़ाव तथा व्याधियों से सामना जीवन का अंग हैं। ईश्वर के करीब होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि जीवन में उतार-चढ़ाव न आयें। परन्तु सांसारिक विषमताओं और बाधाओं से एक कर्मवीर ही जूझता है और ईश्वर की कृपा से सफलता का वरण भी करता है।
सात्विक कर्मों के द्वारा ही मनुष्य को मन-मस्तिष्क की शान्ति और सुख-समृद्धि तथा सफलता प्राप्त होती है। सांसारिक एवं आध्यात्मिक सुखों से कर्मवीर का ही दामन भरा होता है। यही सुख ईश्वर के करीब होने का परिचायक है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कर्मवीर व्यक्ति हर इंसान के दिल के करीब होते हैं उन्हें कर्म करने में आत्म संतुष्टि मिलती है तो निश्चित ही है कि ईश्वर के भी करीब होते होंगे ईश्वर को तो किसी ने देखा नहीं है ।
कर्मवीर व्यक्ति हमेशा दिन में या ख्याल बनाए रखता है कि मैं अपनी मेहनत से दूसरे को सुकून दे सकूं दूसरों को मदद पहुंचा सकूं तो निश्चित है कि सेवा के भाव जिसमें रहेगी उन पर ईश्वर का हाथ हमेशा बना रहेगा परोक्ष या अपरोक्ष रूप से कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के करीब ही होते हैं ऐसा सभी का मानना है कर्मवीर का अर्थ होता है मेहनत लगन समर्पण की भावना से किया गया कामयाबी वाह जिसमें आत्म संतुष्टि मिलती है और दूसरे को भी फायदा पहुंचता है।
कर्मों के माध्यम से ही व्यक्ति महान बनता है पूजनीय होता है आदरणीय होता है और उन कर्मों के द्वारा ही ईश्वर का एक रूप होता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
निस्संदेह कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है। बिल्कुल ऐसे जैसे गुरुदेव की आज्ञा का पालन करने वाला शिष्य गुरु के सबसे करीब होता है। उसके मन-मस्तिष्क में समाया रहता है। उसी प्रकार ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए जो व्यक्ति ईश्वर को साक्षी मानकर कर्म करता है। उसका ईश्वर के करीब होना तय होता है। जैसे अर्जुन अपने गुरु और गीता उपदेशक यशोदानंदन श्रीकृष्ण जी के सबसे करीबी थे।
यही कारण है कि कर्मवीर बड़ी से बड़ी विपत्ति से लेशमात्र भी घबराते नहीं हैं। बल्कि कर्मवीर विपत्तियों को ललकारते हुए परिणामों से डरे बिना उनसे भिड़ जाते हैं। चूंकि जो व्यक्ति विपत्तियों का सामना करने से डर जाते हैं। उन्हें कर्मवीर ही नहीं कहा जाता। क्योंकि कर्मवीर कर्म करने पर विश्वास रखते हैं। वह कठिन से कठिन कार्यों में भी भाग्य के भरोसे नहीं बैठे रहते और भाग्य से उपजे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने तक संघर्षरत रहते हैं। इसी संघर्ष को कर्मवीर की पहचान माना गया है।
ईश्वर ने व्यक्ति को कर्म करने की खुली छूट दे रखी है। वह कर्मभूमि पर चाहे तो सुकर्म करे अथवा कुकर्म। परंतु कर्मवीर की उपाधि मात्र सुकर्मी को प्राप्त होती है। जो निस्वार्थ मानव जाति की सेवा करे, जिसमें मानवता हो और कीड़े-मकोड़ों से लेकर राष्ट्रसेवा पर प्राण न्यौछावर करते हुए सुकर्म करने में सक्षम हो।
उल्लेखनीय है कि गीता उपदेश में भी कर्मों को ही प्रधान माना गया है और जो ईश्वर के उपदेश को मानते हुए सुकर्म करेगा वह कर्मवीर व्यक्ति अवश्य ईश्वर के सबसे करीब होगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कर्मवीर व्यक्ति कर्म पर विश्वास करता है मेहनत, संघर्ष पर आस्था रखता है। कर्म ही उसकी पूजा होती है। कर्मवीर व्यक्ति के लिए उसका कार्य ही ईश्वर निमित्त है। ईश्वर की भक्ति में सदा लीन रहने वाला व्यक्ति यदि कर्म मेहनत नहीं करता है , तो जीवन यापन करना मुश्किल हो जाये । पेट की भूख मिटाने के लिए कर्म करना पड़ता है। प्रभु सानिध्य पाकर प्रभु भजन भी भूखे पेट नहीं होता । दूसरी तरफ कर्मवीर व्यक्ति कर्म में निरत रहता हुआ स्वयंम ही ईश्वर की कृपा प्राप्त कर लेता है । वह भले ही ढोंग से दूर रहे परंतु हृदय में ईश्वर के प्रति पुण्य भाव अवश्य जागता है। खेतों में कड़ी धूप में काम करने वाला मजदूर आसमान में थोड़े से बादल छाने पर गर्मी से राहत पाकर ईश्वर का मन ही मन धन्यवाद तो अवश्य करता है। कठिन श्रम करने वाला मजदूर भी मेहनत का फल मिलने पर ईश्वर को जरूर याद करता है। मंदिर की सीढ़ियों पर दंडवत प्रणाम करता हुआ,लाेटता हुआ , आस्था दर्शाता हुआ भक्ति प्रदर्शन करता है, देखने वाले सोचते हैं कि यह तो भगवान का परम भक्त है। लेकिन सच्चाई यह है कि भगवान तो भावना देखते हैं । वह चाहे मंदिर में भजन करने वाले भक्तों की हाे या खेतों में काम करने वाले मजदूर की । हृदय के भीतर का भाव किसी ने नहीं देखा। अतः इस विषय को लेकर मेरा यह मानना है कि कर्मवीर व्यक्ति जो पाखंडों से बिल्कुल दूर है, लेकिन मेहनत को अपना जीवन उद्देश्य मानता है वह स्वयमेव ही ईश्वर के सबसे करीब होता है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।
यह बिल्कुल सच है कर्मों के अनुसार ही भगवान दवारा फल मिलता है, कहने का मतलब भगवान हर पल हमारे कर्मों को देख रहा है और वो उसी को अच्छा फल देगा जिसके कर्म अच्छे होंगे,
इसका सीधा सीधा यही अर्थ निकलता है कि कर्मवीर व्यक्ति हमेशा भगवान के हृदय में होता है।
तो आईये आज चर्चा करते हैं कि क्या सचमुच कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है,
मेरे कहने को मुताबिक यह बिलकुल सत्य है क्योंकी कर्म से ही सब कुछ मिलता है वशर्ते की कर्म अच्छे हों,
अच्छे कर्मों का ही फल हमेशा सु़खदायी होता है इसलिए हमें सर्वदा अच्छे कर्म करने चाहिए,
यह सच है जो व्यक्ति कर्मवीर होता है वही अच्छा धर्मवीर भी हो सकता है और भगवान के करीब भी कहा भी गया है कर्म ही पुजा है एक इमानदार तरीके से किया गया कर्म पूजा के समान वताया गया है और उसी में भगवान का वाश भी होता है तभी तो अच्छा कर्म करने वाला भगवान के करीब माना गया है, परमात्मा तक पहुंचने का एक रास्ता है कर्मयोग अथार्त कर्म के दवारा योग मन प्रण और चैत्य की क्रियाओं से हमेशा अपनी पुरी एकाग्रता से कार्य करो फल को महत्व मत दो पूरी निष्ठा से कर्म करो फल भगवान के पास है वह अवश्य आप को ही देगा क्योंकी तुम ही सच्चे कर्मवीर हो जव तक तुम काम कर रहे हो उसे ही अर्पित करो उसी भगवान के हो जाओगे।
भगवान की आरती में कहा भी गया है, तन, मन, धन सब कुछ है तेरा जब सब कुछ ही उसी का है ते नेक इंसान भी उसी का करीबी होगा,
यह सच है ईमानदारी से काम करने से जो खुशी व संतुष्टी मिलती है वो पूजा से नहीं मिल सकती क्योंकी भगवान का वास ही अच्छे कर्मों पर निर्वर करता है, कार्य के विना जीवन नीरस, निर्बाधव निष्क्रिय होता है कहने का मतलब कर्म ही प्रधान है,
आखिरकार यही कहुंगा भाग्य के दरवाजे पर सर पीटने से बेहतर है कर्म का तुफान पेदा करो निष्काम कर्म ही आपके सारे दरवाजे खोल देगा, जब आप अपने भीतर सदगुणों की प्रबृति में विकास करेंगे तभी आपके अन्दर भगवान प्रकट होंगे,
क्योंकी मनुष्य ईश्वर की सबसे वुदिमान कुशल और सक्षम रचना है और वो हमेशा कर्मवीर व्यक्ति के करीब वाश करता है।
सच है,
दूनिया के इस स्वंयवर में राजकनमारी किस्मत कर्मवीर को ही वरमाला पहनाती है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्म् - जम्मू कश्मीर
जी हां! श्री राम जी की सेना में अनेक वीर योद्धा थे। राम जी को सभी प्रिय थे लेकिन सबसे प्रिय तो श्री राम जी को हनुमान जी ही थे क्योंकि हम सब जानते हैं हनुमान जी श्री राम जी का प्रत्येक कार्य भाग कर, दौड़ कर कर आते थे। हनुमान जी कर्मवीर थे। श्री रामजी पर जब- जब विपदा की घड़ी आई तब- तब उन्होंने साथ दिया। जो कर्म में विश्वास रखते हैं वह ईश्वर को अधिक प्रिय हैं।
यूँ भी हमारा गीता का सिद्धांत भी यही कहता है -कर्म करो, पुरुषार्थ करो। जो व्यक्ति ईश्वर की पूजा तो करते हैं परंतु कर्म नहीं करते ईश्वर को वह प्रिय नहीं हैं। जो व्यक्ति पूजा भी करता है उसको याद भी करता है और साथ में कर्म भी करता है। इस संसार में रहते हुए किसी भी कर्तव्य को नहीं निभाना ईश्वर को प्रिय नहीं है। कर्म सबसे श्रेष्ठ है सो जो व्यक्ति उस ईश्वर के प्रति समर्पण भाव से अपना कर्तव्य निभाते हुए कर्म करता है वह ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है।
उस व्यक्ति के सभी संसार में कोई नहीं।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी हो कर्मवीर उसमें घबराते नहीं है। चाहे काम कितना भी कठिन हो घबराते नहीं वह भाग्य भरोसे नहीं बैठते।
कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर की देन है।कर्मवीर की पहली विशेषता होती है वह स्थान सुविधा को ध्यान में नहीं रखते उन्हें जो भी करना होता है उसे किसी भी परिस्थिति में संभव कर दिखाते हैं। अगर उनके सामने पर्वतकार समस्या भी हो तो धूल के सामान उड़ा देते हैं।समस्याओं को देखकर घबराते नहीं उन में नया उत्साह आ जाता है।
वास्तव में कर्मवीर को काम करने की अजब धुन होती है वह 24 घंटे परिश्रम करते हैं, कर्मवीर अपने कार्य कौशल से सभी प्रकार की समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
लेखक का विचार:-यदि देश के प्रत्येक नागरिक कर्मवीर हो तो देश का भला हो जाएगा। कर्मवीर लोग से देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचने में समर्थ है।
जैसे हमारे प्रधान सेवक मोदी जी कर्मवीर व्यक्ति होने से भारत बहुत जल्द ही दुनिया के पहली पंक्ति में हो जाएगा। देशवासियों से अपील है आत्मनिर्भर बने।
*सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास* ही मूल मंत्र है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
यह वाक्य हम अक्सर बोलते हैं कि ईश्वर भी उन की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं "।इस वाक्य से स्पष्ट हो जाता है कि कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सब से करीब होता है। गीता उपदेश में भगवान कृष्ण जी ने भी कहा है कि मैं हमेशा कर्मवीर के अंग संग रहूँ गा।कर्मवीर हमेशा दूसरों की मदद करते हैं और समय का सदुपयोग करते हैं। जो समय की कद्र करते हैं, समय उनकी मुट्ठी में होता है ।
वह बड़े से बड़े कार्य को भी आसानी से कर लेते हैं और मन चाही मंजिल पा लेते हैं। ऐसे कर्मवीरों के लिए हम कह देते हैं कि ईश्वर उन के करीब है। सच्ची बात तो यह है कि कर्म भगवान का ही सरूप है। इसी लिए तो दीवाली के अगले दिन विश्वकर्मा जी की पूजा होती है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप- पंजाब
मेरे विचार से ऐसा नहीं | यहां अपने विचार, मत को, बल देने के लिये मै पूर्व चर्चा में व्यक्त पुन्ह एक मुहावरे का उपयोग करके समझाना चाहूंगा -
**अंधे की माखी राम उडावें** अर्थात एक ऐसा व्यक्ति जो किसी शारीरिक असमर्थता के चलते अपना ख्याल नहीं रख सकता और कोई काम करने में भी असमर्थ हो , उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं तो उसका ख्याल उसके भोजन का ख्याल स्वयं प्रभु ईश्वर करते हैं
एक और अन्य मुहावरे से मै अपनी बात को बल एन चाहूंगा ** ईश्वर कि दुनिया में कोई भुखा नही रेहता भूखा उठा व्यक्ति जैसे सभी भूखे उठते है लेकिन कोई भुखा नही सोता। .. मतलब जिन जिन जीव को अन्न पैदा करने तक का ज्ञान नहीं वो उन उन सबको भी उनके शरीर की जरूरत का अन्न देता है
अब रही खास बात आपके सवाल से जुडी हम इस बात को सिरे से नकार नहीं सकते बाजह ये कि जो सामान्य जन से कुछ अधिक विशेषता रखता है मेहनत करता है कर्मठ है कर्मबीर है मालिक / ईश्वर का ध्यान वो अपने कृतित्व से अधिक आकर्षित कर लेता है बस इतना सा ही अंतर होता है अब इसको करीब होना भी कहा जा सकता है आप एक बात मुझे बताइए एक धार्मिक व्यक्ति हर समय जो प्रभु की पूजा करता है ओर एक मजदूर जो सबसे अधिक कर्म करता है मेहनत करता है दोनों में से कौन सबसे करीब होगा मलिक के ईश्वर के
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
कर्मवीर व्यक्ति के साथ-साथ आचरित होना आधार आचरण और कर्म प्रधान व्यक्ति ही ईश्वर के करीब होता है क्योंकि जीवन के लिए आश्रम और शरीर के लिए कर्म इन दोनों के व्यवहार और कार्य ठीक रहने से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है और यह दोनों ठीक ना रहने से मनुष्य का जीवन कष्टमय हो जाता है कष्ट में जीने वाला व्यक्ति कैसे ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। सही आचरण करने वाला व्यक्ति ही ईश्वर को प्राप्त करने के काबिल होता है जो व्यक्ति निरंतर सुख पूर्वक जीता है और दूसरों को सुख पूर्वक जीने के लिए प्रेरणा देता है वही व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है अतः मनुष्य को सही आचरण और सही कार्य व्यवहार करने की आवश्यकता है तभी ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
समय परिवर्तन शील हैं, जहाँ ईश्वरीय शक्ति के आगे सभी नतमस्तक हैं, शनैः-शनैः बढ़ते चले जातें हैं, कर्मो के प्रतिफल स्वरुप ही कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के करीब होता हैं, ज्ञान गंगा उसके करीब होती हैं, जो वह चाहता हैं, सब कुछ पृथ्वी पर मिल जाता हैं और यही से प्रारंभ होता हैं, जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा, सब कुछ उसे यही भोगने हैं। "गरुड़ पुरान" में अंकित हैं, अपने कर्मों से जन्म लेने के पूर्व ही माता के गर्भ में उसे सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं और ईश्वर से प्रार्थना करता हैं, यहाँ से शीघ्र निकालों, जब जन्म के समय, जो पिड़ायें होती हैं, उसी का परिणाम हैं। जन्म के पूर्व, पूर्व जन्म की सारी बातें याद रहती हैं और जन्म पश्चात सब भूल जाता हैं। जन्म के पश्चात वही कर्म करने लगता हैं। कर्मों का सिलसिला बना रहता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
*कर्मण्ए वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन*
इस संसार जगत में कर्म की प्रधानता है
कर्म के बिना मनुष्य का एक क्षण भी जीवन व्यतीत नहीं होता कर्म से पीछे हटना नहीं चाहिए प्रतिफल आपको अधिक मिले या कम नहीं भी मिले फिर भी जीवन में वही सफल होते हैं जो कर्मवीर कार्यशील सतत अग्रसर होते हुए कुछ कहने की हिम्मत करते हुए परिवार गांव समाज देश राष्ट्र को समर्पित करते हुए कुछ इतिहास रच जाते हैं ऐसे लोगों में देने की भावना प्रबल होती है इसलिए वह ईश्वर के करीब होते हैं भगवान भी उसी की मदद करता है जो कुछ करने की चाह रखता है खुद आगे बढ़कर कदम
बढ़ाता है ।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
मेरी राय में कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के करीब हो या न हो; अपने लक्ष्य के करीब अवश्य होता है। ईश्वर के करीब होने के लिए रामचरितमानस में स्पष्ट कहा गया है -
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा "
अर्थात मनुष्य के हृदय का निर्मल होना आवश्यक है ।वह कर्मवीर है या कर्मवीर नहीं है इसका उल्लेख किसी भी धर्म ग्रंथ में ईश्वर की निकटता के संदर्भ में नहीं किया गया है ।
बाइबिल और कुरआन में कहा गया है कि जो ईश्वर के बंदों से प्रेम करता है वह ईश्वर के सबसे करीब होता है।
"मानव सेवा ही माधव सेवा "भी इसीलिए कहा जाता है कि जो मानव की सेवा करता है वह साक्षात ईश्वर की सेवा करता है और वह ईश्वर के सबसे करीब होता है ।यथार्थ में कर्मवीर व्यक्ति का जीवन तो सफल होता है और वह अपने लक्ष्य को पा भी लेता है किन्तु ईश्वर की निकटता उसे प्राप्त होगी या नहीं होगी यह एक अलग विषय है ।हमारे इर्द-गिर्द बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में बहुत ऊंचाई हासिल की है लेकिन उनमें उस तरह के गुण नहीं पाए जाते हैं जो एक ईश्वर के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति में पाए जाते हैं ।उन व्यक्तियों में सामान्य व्यक्तियों की तरह से ही क्रोध,अहंकार, घृणा, ईर्ष्या आदि है।निरंतर कर्म करते रहने से बे भले ही व्यापार,शिक्षा, नौकरी आदि अनेक क्षेत्रों में बहुत आगे बढ़ जाते हैं पर ईश्वर के निकट होने के लिए अपने हृदय को पवित्र करना होगा ।ईश्वर के बंदों से प्रेम करना होगा ।ऐसा करने पर ही मानव ईश्वर के ज्यादा करीब होगा ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश
जी हाँ ..कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है क्यूंकि जो व्यक्ति सतत प्रयास व परिश्रम करते हैं वही ईश्वर को पसंद आते हैं
कहावत भी है की ईश्वर उनकी सहायता करते हैं जो स्वय की सहायता करते हैं अर्थात ईश्वर उनकी मदद करते हैं जो कुछ पाने के लिए मेहनत करते हैं
ईश्वर उनकी सहायता नहीं करते जो हाथ पर हाथ रखकर केवल प्रार्थना करते हैं पर कर्म या प्रयास नहीं
कर्मकरनाआवश्यक है ....फल देने मैं तब ईश्वर सहायता करते हैं
कर्म किये जा .....फल की इच्छा ...मत कर ऐ इंसान ....जैसे कर्म करेगा ......वैसा फल देगा भगवान्
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
‘देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं, रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं, काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं, भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं, हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले, सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले’ यही तो है श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का कर्मवीर और सच्चा कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है। क्योंकि उसे स्वयं पर भरोसा होता है, वह अपनी सहायता स्वयं करना जानता है और ईश्वर भी उन्हीं का साथ देते हैं तो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। अतः यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
हम सब ईश्वर द्वारा हीं बनाए गये इंसान हैं। अत: ईश्वर हमारे करीब, और हम सब ईश्वर के करीब हीं होते हैं। ईश्वर ने हमें इस सुंदर धरती पर अपने- अपने कर्म करने हेतु हीं भेजा है। इसलिए तो कहा जाता है जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान। सारांश यही है कि हर व्यक्ति को कर्मवीर होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। कुछ लोग हीं सच्चे कर्मवीर होते हैं तो निश्चित है कि वह ईश्वर के सबसे करीब होगा। व्यक्ति की सही पहचान उसके सही यानी अच्छे कर्म से हीं होती है। इसी कारण मरणोपरांत भी व्यक्ति अपने सत्कर्म से प्रसिद्ध और जाना जाता है। एक हीं कच्छा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में कुछ विद्यार्थी शिक्षक के खास प्रिय होते हैं और ज्यादा करीब भी कारण वहीं है अच्छे गुण,और कर्म। ठीक इसी प्रकार कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
अवश्य, कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के करीब होता है। क्योंकि इस दुनिया में कर्म ही प्रधान है। रामायण में भी लिखा है " कर्म प्रधान विश्व करी राखा ।" महाभारत में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं "कर्म करते रहो, फल की तरफ मत देखो।" इस तरह से ये बात साफ पता चलता है कि कर्मवीर यानी जो कर्म करता है वो ईश्वर के करीब होता है। कर्म करने वाले लोगों को ही दुनिया मान करती है। जाहिर है ईश्वर जिसे पसंद करता है दुनिया उसे पसंद करती है।
माँ-बाप भी अपने कार्यरत संतान को ज्यादा मान देते हैं।ज्यादा स्नेह देते हैं। ठीक उसी तरह हम सभी आत्माएं परमात्मा की संतान हैं। और जो कर्म वीर होगा वो अवश्य परमात्मा के नजदीक होगा। इसमें कोई शक नहीं है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
हाँ कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के बेहद करीब होता है इंसान को धैर्यवान और कर्मवीर होना चाहिए।भगवान उसकी मेहनत देखकर अपने दिल के करीब रखते है।हमेशा सहनशीलता से कार्य करना चाहिए।भगवान हमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे साथ होते हैं पंरतु जो इंसान कर्मवीर होते है उनकी सकारात्मक प्रभाव चारों तरफ़ एक प्रेरणादायक छवि बनकर उजागर होता है।ईश्वर हमें बेहद करीब रखते है जब हम अपनी सच्चाई और कर्मठता से सभी के हृदय मे राज करते है ।ईश्वरीय शक्ति उस व्यक्ति मे सैदव समाविष्ट होते हैं जो अपनी कर्म को लगन और परिश्रम से करते है।हृदय की ईष्र्या और द्धैष को समाप्त कर के उम्मीद शांति अहिंसा का दीप प्रज्वलित करना ईश्वर के पास और दिल मे रहने का सही मार्ग है।ईश्वरीय विधान दीप की लौ से उजाला फैलाते है उसी प्रकार इंसान अपनी कर्मवीर होकर अपने को प्रेरणादायक के रूप स्थापित कर सकता है।हम उनके करीब अपने स्वभाव और कर्म से हो सकते हैं।मन का बैर किसी से नही रखना मन से दुश्मनों को माफ करना ,हृदय से दोस्ती के प्रति समर्पित ,अपने से बड़ों का आदर सत्कार,छोटो को प्यार,सभी कंर्तव्यं को ईच्छा और ईमानदारी से निभाना भी ईश्वर के करीब लाता है।अपने मात पिता का दिल नही दुखाना सैदव उनके चरणों मे अपनी सफलता और कर्मठता को समर्पण भाव से अर्पित करना ईश्वर के करीब रहने का रास्ता है।कर्मठता होकर कर्मवीर बनकर देश और माँ पिताजी समाज का नाम रौशन करना ही जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है।ईश्वर के सबसे करीब वही व्यक्ति है जो निष्पक्ष निष्ठा भाव से अपने कर्मवीर होने का परिचय देता है । आराधना मे ईश्वरीय ज्ञान है।कर्मवीरता आराध्य देव से प्राप्त कर सकते है अपने परिश्रम को संवेदनशील होकर निभाने की अद्भुत कला एक सवोत्तम गुणवत्ता का परिचायक है।ईश्वर के लिए सभी व्यक्ति जानवर मनुष्य एकसमान है वो जगपाल है सभी की देखरेख करता है।उनके दिल तक पहूँचने के लिए हमें कर्मवीर होना अति आवश्यक होता हैं।ये हम पर लागू होता है कि हम कितने ईमानदारी से अपने जीवनकाल को निभाते है।कर्मवीर होना संसार के लिए एक वीरता का उद्देश्य और उदाहरण है।वह व्यक्ति निश्चित तौर पर ईश्वर के करीब होता है जो अपनी कर्मठता का परिचायक बनता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कर्मवीर ईश्वर के करीब होते हैं या नहीं ये मैं नहीं जानती। लेकिन मानव के हृदय के करीब जरूर होते हैं। हर अमीर-गरीब के दिल में बसते हैं।
कर्मवीर आत्मशक्ति के बल पर मानवता पर राज करते हैं । ऐसे लोग अपनी जरूरत नहीं देखते, बस उन्हें चिंता होती है कि दूसरे दुःखी न रहें। कैसे दूसरों का दर्द अपने अंदर समेट लें। जब दीन के दिल से दुआ निकलती है तो उसके नाथ(भगवान) की नजर भी जरूर उस सहायक को ढूँढती होगी।
इस तरह के व्यक्ति खुद तो इंसानियत के देवता होते ही हैं दूसरों को भी अपने पाप की सजा से मुक्ति दिलाते हैं।सही रूप में वे ही भगवान हैं।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कर्मवीर व्यक्ति ईश्वर के सबसे करीब होता है, यह बिल्कुल सही है,परंतु ईश्वर के करीब वे भी करीब होते हैं जो सद्चरित्र होते हैं, हितैषी, परोपकारी ,निष्ठावान, सहिष्णु,अहिंसक, दयालु, दानी,त्यागी आदि गुणों से लवरेज होते हैं।
जन्म- मरण ईश्वर का देय है। जब तक जीवन है, हमें ईश्वर की मंशा के अनुरूप कर्म करना चाहिए। सदैव सत्कर्म करना चाहिए। अनाचार, दुराचार, पापकर्म से बचना चाहिए और सच तो यह भी है कि हमें ऐसे कर्म कदापि नहीं करना चाहिए, जिसको करने के पहले हमारी आत्मा करने से रोके और तत्समय हमें आभास हो कि यह गलत है, इसे नहीं करो। ईश्वर ने हमें विवेक और बुद्धि दी है। हर गलत करने के पहले हमें संकेत मिलते। हैं कि ये गलत है, इसे नहीं करना है। मगर हम लोभ, स्वार्थ में दिल की यह बात अनसुनी कर देते हैं और ऐसा कर बैठते हैं जो नहीं करना चाहिए। परिणामतः हमें कभी न कभी उसका दंड भुगतना पड़ता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है,,, कर्मण्येवाधिकारस्ते माम फलेषु कदाचन,,।
कर्म ही धर्म है और धर्म ही ईश्वर है,,, जो लोग कर्मठ होते हैं कर्मवीर होते हैं वे ईश्वर के अत्यंत करीब होते हैं ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की पंक्तियां याद आ गई,,
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं ।
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं ।
जो लोग कर्मठ होते हैं वे किसी भी बाधा से घबराते नहीं और भाग्य के भरोसे बैठकर दुख नहीं भोगते ,वे पछताते भी नहीं है । कर्मवीर अपनी योग्यता का दिखावा नही करते हैं वह अपनी लगन और मेहनत से अपनी किसी भी परेशानी को दूर कर सकते हैं। ऐसे लोग सदा सुखी रहते हैं, एवं ईश्वर के करीब रहते हैं ।
कर्मवीर किसी भी काम को कल पर नहीं छोड़ते जो एक बार सोच लेते हैं करके ही दम लेते हैं।
बेकाम के लिए कभी दूसरों का मुंह नहीं सकते ऐसा कोई काम नहीं है जो कर्मठ व्यक्ति कर नहीं सकता।
कर्मवीर अपना समय व्यर्थ की बातों में नहीं गंवाते और किसी काम को कल पर नहीं छोड़ते ।
वो मेहनत से जी ही नहीं चुराते हैं।
कर्मवीर लोग अपनी कार्यकुशलता के दम पर दूसरों के लिए उदाहरण बन जाते हैं।
कृष्ण जी ने गीता में कर्म का योग सुना कर पूरे विश्व को संदेश दिया है ।रामायण में भी तुलसीदास जी ने लिखा है ,,,
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा ।
कर्मवीर होना गर्व की बात है ,ऐसे लोग सभी को प्रिय होते हैं व ईश्वर के करीब होते हैं ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कर्मवीर व्यक्ति ही ईश्वर के सबसे करीब होता है । जो कानून में रह कर कर्म करता है । यहीं सार्थक कर्म कहा जाता है । बल्कि समाज के उत्थान में कर्म माना जाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
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