जो चुप रहते हैं क्या वह बेवकूफ होते हैं ?

चुप हर कोई नहीं रह सकता है । चुप रहने वालों को बेवकूफ समझना , सबसे बड़ी बेवकूफी है जिससे नादानी भी कह सकते हैं । परन्तु वास्तविकता कुछ ओर ही नही है ।
चुप रहकर कार्य करना भी बहुत बड़ी कला है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
जो चुप रहते हैं,वो बेवकूफ हो यह जरुरी नहीं और जो बोल रहे हैं होशियार ही हो यह भी जरुरी नहीं। इसमें एक बात यह भी है कि बोलने पर, होशियारी कितनी यह पता चल जाता है। चुप रहने से यदि अनर्थ टल रहा हो तो चुप रहना ही बेहतर। अनावश्यक उर्जा खर्च करने से क्या लाभ? यदि चुप रहने से अनर्थ की आशंका हो तो बोलना ही बेहतर। वैसे बोलना मानवीय प्रवृत्ति है,हर व्यक्ति बोलना चाहता है, बोलता है।सुबह 7:20 के समाचारों से पहले आकाशवाणी गोरखपुर से किसी विद्वान के विचार बोले जाते हैं, जिनमें कहा गया है कि विद्वान व्यक्ति इसलिए बोलता है कि उसके पास कुछ कहने को है,जबकि मूर्ख व्यक्ति इसलिए बोलता है कि उसे कुछ भी बोलना है।
चुप कोई नहीं रहना चाहता विद्वान हो या बेवकूफ। जो चुप रहता है वो इन से परे होता है,
संत प्रवृत्ति। वह तो
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यम अप्रियं।
सत्य बोलें , प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें ।
को मानने वाला होता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
यह कहना तो अनुचित होगा कि चुप रहने वाले बेवकूफ होते हैं किंतु कभी कभी निजी तौर पर देखा गया है कि व्यक्ति बेकसूर होकर भी  डर से अथवा किसी का मान रखते हुये मार खा रहा है अथवा अन्याय सहन कर रहा है तब हममे से ही कोई जो जानता है की उसने गल्ती नहीं की है जिसका दंड वह भोग रहा है तब हम उसे कहते है अरे बेवकूफ अब तो कह दे कि तुने यह गल्ती नहीं की है बेवजह मार खा रहा है ! चुप रहकर किसी काअन्याय सहन करना भी ठीक नहीं है ! किंतु बेवजह भी सभी जगह बोलना सही नहीं है !जितना कम बोलेंगे उतनी उलझन कम होगी !
चुप रहना अच्छी बात है किंतु कभी कभी चुप्पी वैमनशष्यता को जन्म देती है और अंदर ही अंदर विस्फोट बन फूटकर लावा बन निकलती है अतः यदि किसी की बात से कोई दुख है तो चुप ना रहें दिल हल्का कर लें ! यदि चुप रहने से शांति होती है और मिलती है तो चुप रहना ही सुखकर है ! हां! चुप रहकर अन्याय सहना बेवकूफी है ! भरी सभा में द्रोपदी चीर हरण के वक्त पितामह, कुलगुरु , धृतराष्ट्र आदि वडिलों ने जो मर्यादा को ध्यान में रखते हुए चुप ना रहकर आवाज की होती ,विद्रोह किया होता तो महाभारत होता ही नहीं !
समय ,स्थान और परिस्थितियां के परिणाम के अनुसार चुप रहने में भलाई होती है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
चुप रहना और बेवकूफ होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। यह माना जा सकता है कि बेवकूफ मनुष्य चुप रहते हैं। साथ ही यह भी देखा जाता है कि बेवकूफ अक्सर अपनी वाचालता से अपनी मूर्खता का परिचय दे देते हैं। 
परन्तु जो चुप रहते हैं वह बेवकूफ नहीं होते। हां, यह जरूर है कि समझदार मनुष्य इस बात को समझते हैं कि कब और कहां चुप रहना है। अवसर को भांपकर चुप रहने वाले लोग मूर्ख नहीं हो सकते। बहुत से चुप रहने वाले लोग इस बात पर अमल करते हैं कि "एक चुप सौ को हराये"। परन्तु जहां बोलने की आवश्यकता होती है वहां भी चुप रह जाने वाले लोग मूर्ख कहे जा सकते हैं।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
मौन :सभी प्रश्नों का समाधान है l तनाव से मुक्ति पाने की प्रभाव पूर्ण विधि मौन का अभ्यास करने की है l प्रतिदिन किसी भी समय पूर्ण मौन और शांति का अभ्यास करने से मन तनाव से छुटकारा पाया जा सकता है l अपनी मौन रहने की शक्ति का निर्माण करना उतना ही महत्त्व पूर्ण है जितना अपनी शब्द शक्ति का निर्माण करना l मौन वह शक्ति है जिसमें महान वस्तुओं का निर्माण होता हैl 
तनाव से आंदोलित हमारे मन की सतह के नीचे पूर्ण शांति का गहन स्तर है l मन की गहराइयों में उसी प्रकार शांति व्याप्त रहती है जैसे ऊपर से लहराते गरजते सागर के तल पर l 
मौन रहते हुए परमात्मा का ध्यान करने से मन के अवचेतन में रहने वाली शांति चेतन स्तर पर आने लगती है l 
       चलते चलते ---
1. अपनी समस्या को परमात्मा को सौंप दो l मन में शांति रखो, परमात्मा पर विश्वास रखो, तुम्हें शक्ति प्राप्त होगी l 
2. बात कम कीजे जहालत को छिपाते रहिए l 
अजनबी शहर है ये दोस्त बनाते रहिए ll 
जहालत =मूर्खता 
  3. एक चुप सौ को हराती है l   
 - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जी नहीं। बिल्कुल भी नहीं। जो चुप रहते हैं, वे बेवकूफ या मूर्ख होते हैं। 
  सज्जन,बुद्धिमान व्यक्ति जो होते हैं। वे मूर्खों द्वारा बेवकूफी की बातें जो बोली जाती है, उन्हें सुनकर भी चुप रहते हैं। कारण यह है कि मूर्खों से कितनी भी अच्छी और ज्ञान की बातें बोली जायें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। 
     कहा भी गया है कि चुप रहना सबसे बड़ी (अनकही)बात होती है। कभी-कभी चुप ना रहना भी अपनी जान को जोखिम में डालने जैसा होता है।
    मान लीजिए कि कोई घटना घटी है और बहुत से लोगों के साथ ही आपको भी घटना के बारे में पूछा जाता है।सभी चुप रहते हैं और आपने घटना के बारे में बता दिया।तो पुलिस वाले कई तरह से परेशान कर सकते हैं। ऐसे समय चुप रहना ही श्रेयस्कर होता है। 
   इसका अर्थ यह नहीं है कि आप मूर्ख हैं। कभी-कभी चुप रहने से किसी का बिगड़ा हुआ काम बन जाता है।हमें दूसरों का आशीर्वाद मिलता है।
   याद रखें कि हमें चुप रहने कहा गया है, झूठ बोलने नहीं। 
- डॉ• मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
ऐसी बात नहीं है चुप रहने वाला  हर व्यक्ति बेवकूफ नहीं होता। कुछ व्यक्ति होते हैं जिन्हें समझ नहीं होती तो वह समय पर चुप रह जाते हैं। पर अधिकांशतः  जो व्यक्ति चुप रहते हैं,वह बेवकूफ नहीं समझदार होते हैं।  ऐसे व्यक्ति किसी भी बात को बड़ी गंभीरता से लेकर उस पर मनन करते हैं और बहुत सोच-विचार के बाद अपने विचार व्यक्त करते हैं। उनमें पर्याप्त बुद्धि कौशल होता है और अपने विवेक के अनुसार अपने उद्गार प्रकट करते हैं। यह गंभीरता की निशानी है न कि बेवकूफी की। इसीलिए यह नहीं कहा जा सकता कि  चुप रहने वाला हर व्यक्ति बेवकूफ होता है।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
 जो व्यक्ति चुप रहते हैं वह बेवकूफ नहीं होते बल्कि अपने ज्ञान रूपी एनर्जी को फालतू खपत नहीं करते जहां जरूरत होती है वहीं पर इस्तेमाल करते हैं बेकार का बकबक में अपना एनर्जी खत्म नहीं करते जो व्यक्ति नासमझ होता है वही इंसान ऐसे चुप व्यक्ति को बेवकूफ समझते हैं जबकि  ऐसा सोचने वाले स्वयं  बैकुप होता है।  आजकल ज्यादा बोलने वाला  बैवकूप कहलाते हैं।
 करना तो कुछ है नहीं बस बकबक करना आता है ऐसे व्यक्ति ही बेवकूफ होते हैं सोच समझकर जीने वाला व्यक्ति बहुत कम बोलता है लेकिन दुरुस्त बोलता है सार्थक बोलता है ऐसे ही लोगों को खुश लो बेवकूफ मान लेते हैं जब भी आता होते नहीं अतः अंतिम यही कहते बनता है कि जो व्यक्ति समझदारी के साथ चुप रहता है वह व्यक्ति बयकूप कभी नहीं होते।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
शांत रहना एक उच्चतम स्तर के गुणों मे शामिल है।चुपचाप बैठे रहने का कतई मतलब नहीं कि वह बेवकूफ है।जीवन मे कभी कभी हम अपनो के अभिमान मान सम्मान हेतू अपने खामोशी को दर्शाते हैं हम जानते है जुबां खोलने से आपसी तालमेल और सामंजस्य बिगड़ सकती है इसलिए हम चुप रहते हैं और लोग कभी कभी हमें बेवकूफ समझने की भूल कर बैठते है।लोगों के लिए हम अपनी खामोशी को दिखाते और हमे मंदबुद्धि बेवकूफ जैसे विशेषता दी जाती है।जब हृदय की पीडा़ अत्यधिक महत्व देती हैं तो अधर चुप हो ही जाते है जब विश्वास की डोर खत्म होती तो आसुओं के साथ नयन भी खामोशियों की परतें ओढ़ लेती है पर लोगों की समझ छोटी हो जाती है और हमें बेवकूफ कहते है।मनोदशाओं की रेखा बेहद मार्मिकता मोड़ से गुजरने लगती दिल किसी के धोखाधड़ी का शिकार होता जज्बात टुटने लगते तब हम बेहद चुप होते है और खामोशी से ही हम अपना पीर को पीने लगते है।तब अन्य हमे उल्लू बेवकूफ कहते हैं।कभी कभी हम जीती हूई बाजी जीत कर किसी खास कारण से हार जाते है।हाथों से जीत की मंजिल निकल जाती और हम चुपचाप बैठे रह जाते ताकि किसी और या अपनों को खुशी मिले।तब हम अपने कार्य ये रिश्तों से प्रेम करते हैं इसका परिणाम हमे बेवकूफ कहा जाये ये उनकी सोच होती है।हम बेहद तकलीफों से गुजरने लगते तब भी चुपचाप चुप्पी साधे हुए रहते इससे अपनों की अहमियत पता चलती है।चुप रहना एक गुणवत्ता भी है अपनी स्वाभिमान को चुपचाप बैठ कर उजागर करना बातों को सही तरीके से जाहिर करना एक मानवता गुणों मे शामिल है।बेवकूफ नही कहा जाना चाहिए क्योंकि हम चुप रह कर अपनी अहमियत को उजागर करते हैं।
अधर चुपचाप बैठ हैं यादों मे गुम
लोगों ने मुस्कुरा पागल कह दिया
ये अपनी धडकन की बात होती है कि हम खामोशी से अपनी बातें स्थापित करे।पर बेवकूफ नही है ।परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करने केंद्र मे हमारे चुप्पी साधे हुए सफलता प्राप्त हो जाती है तो हम बेवकूफ कैसे हो सकते ।चुप जो रहते बेहद खूबसूरत सरलीकरण स्वभाव को उजागर करने मे सक्षमता सिद्ध करते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -झारखंड
भावावेश मैं आकर बिना सोचे समझे अनावश्यक वअनावांछित कथन की तुलना मैं चुप रहना ही उचित है ....बोलना चाहिए व अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए उचित अवसर पर
कई बार किसीविवाद को शांत करने हेतु व किसीअप्रिय स्थिति से बचने के लिए चुप रहना उचित है व बुद्धिमानी का द्योतक है
बड़े खेद का विषय है कीबुद्धिमानी का परिचय देते हुए ..चुप रहने को लोग बेवकूफी का पर्याय समझते हैं
मैरी व्यक्तिगत राय है की यदि किसी समय मैं चुप रहने मैं ही भलाई है तो हमें चुप रहना चाहिए .......कहावत ही है .....एक चुप ...सौ सुख
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जो चुप रहते हैं वे बेफकूफ नहीं होते हैं ।मैने अधितर विद्वानों को  बड़े-बड़े सेमिनारों , साहित्यिक कार्यक्रमों में चुप रहते हुए देखा है । उनकी खामोशी में भावनाओं का शोर सुनायी देता है । इसलिए कहावत भी बनी है -एक चुप सौ को  हराए । चुप रहनेवाला व्यक्ति होशियार होता है ।वह बोलने मेंअपनी ऊर्जा , शक्ति को नष्ट नहीं करता हैइसलिए चुप रहना बेहतर समझता है ।बोलना तो हर इंसान  को आता है जबकि चुप रहना हर इंसान को नहीं आता है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुम्बई - महाराष्ट्र
चुप रहना बेवकूफ होना नहीं होता क्योंकि यह भी कहा जाता है कि।
एक चुप सौ सुख
मगर हां जहां बात अपनी बात रखने की हो वहां चुप नहीं रहना चाहिए क्योंकि वहां हम मूर्ख कहलाते हैं सही,गलत को सही शब्दों से रखना हमेशा सही होता है
अगर बात दिल में रह जाती है तो वह दिल का नासूर बन जाती है जो गलत फहमी बन रिश्तों में दरार डाल देती है। अतः परिस्थिति के अनुसार ही बोलना व चुप रहना सही होता है।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
    चुप रहना सब से कठिन काम है। मानव की प्रकृति ईश्वर ने ऐसी बनाई है कि वह बोले बिना रह ही नहीं सकता है। हम सब ने देखा है कि संसार में बड़े बड़े युद्ध भी चुप ना रह पाने के कारण हो गये। चुप रहना , मौन रहना सरल नहीं है। इस के लिए भी साधना और आत्मसंयम की आवश्यकता होती है। चुप रहने वाला बेफकूफ नहीं ज्ञानी होता है । बेबात की बातें ,दूसरों के मामले में अनावश्यक बोलना आपसी मनमुटाव बढ़ाता है। मौन स्वर्ण की तरह अमूल्य है। जो व्यक्ति चुप रहता है अर्थात वह ध्यान से  सुनता है और समयानुसार प्रतिक्रिया देता है ।
चुप रह कर वह अपनी उर्जा को बचाता है। हरसमय, हर बात टर हर कहीं बोलने वाला ज्यादा बेफकूफ बन जाता है। हमारे धर्मग्रंथों, ऋषि मुनियों ने ओर कथा कहानियों ने भी मौन को सर्वोपरि माना है । 
एक चुप सौ सुख।
  मौलिक और स्वरचित है 
 - ड़ा.नीना छिब्बर
  जोधपुर - राजस्थान
समय, परिस्थिति, वातावरण , घटना,  प्रसंग  और किसी अनुकूलित विषय के आधार पर चुप रहना जीवन जीने की कला है, परंतु यह कला- प्रतिभा 'अति चुप 'की ओर न धकेले । फिर जीवन जीना कठिन हो जाता है । 'चुप रहना' और 'जुर्म सहना 'दो अलग-अलग बातें हैं  । जहां घर ,परिवार और रिश्तो को संवारने , हितार्थ अथवा कल्याणप्रद  प्रसंग आता है , वहां चुप रहना हमारे अच्छे संस्कारों की ओर इंगित करता है । लेकिन बिना किसी कारण अन्याय ,जुर्म ,दबाव सहना अहितकर होता है । कहा भी गया है---' कि अन्याय करने वाला तो अपराधी होता ही है परंतु अन्याय को सहन करने वाला उससे बड़ा अपराधी है।' परिवार ,समाज में रहकर जुर्म सहते हुए चुप्पी साधे रहना एक विकृत मानसिकता और घृणित परिपाटी को जन्म देने का कारण बनता है । बचपन से लेकर युवा अवस्था तक अन्याय सहते रहना और चुप रहना किसी भी स्त्री या पुरुष में 'दब्बूपन' का भाव पैदा कर देता है । दबी मानसिकता से युक्त प्राणी कभी भी आत्महितार्थ हेतु जागृत भाव  आत्मसात नहीं कर पाता। कई बार रिश्तो को बचाना बहुत आवश्यक हो जाता है जिस कारण हम चुप रहना अच्छा मानते हैं, और अन्याय सहन करते हैं परंतु इस दुर्भावना की आदत  को हावी नहीं होने देना चाहिए । जुर्म करने वाला इसे हमारी कमजोरी/ बेवकूफी मानता है  और जुर्म करने वाले के हौसले बढ़ते जाते हैं । अतः समय ,परिस्थिति और प्रसंग को ध्यान में रखते हुए हमें आत्म- निर्णय लेने में सक्षम अवश्य होना चाहिए ।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जो चुप रहते हैं  वे बेवकूफ नहीं होते हैं, वे सही समय पर सही बोलने का मंथन कर रहे होते हैं. कहा भी जाता है, कि चुप्पी सबसे अच्छी दोस्त है, कभी धोखा नहीं देती. चुप रहने के कई मायने होते हैं. आपको उन सभी चीजों के बारे में चुप रहने में सक्षम होना चाहिए जो केवल आपके लिए ही मायने रखती हैं. चुप रहने से पहले तीन बार सोचें, और फिर चुप रहें. यह सोचना अत्यावश्यक है, कि कहीं चुप रहने को आपकी कमजोरी तो नहीं माना जा रहा? कभी-कभी चुप्पी का अर्थ कठोर आलोचना भी होता है. बुद्दिमान व्यक्ति तब तक चुप रहते हैं, जब तक वे एक शब्द बोलना भी उपयुक्त नहीं समझते. अंत में दो पंक्तियां हमारी एक कविता से-
''मौन में भी तरन्नुम होता है,
मौन का परिणाम मुखर होता है.''
- लीला तिवानी 
दिल्ली
एक कहावत हम सब बचपन से सुनते आ रहें हैं कि पहले तोलो फिर बोलो, कम बोलो- मीठा बोलो | साधारणतया आम दिनों और बातों पर चुप रहने वाले इंसान को समझदार माना जाता है लेकिन एसी जगह जहाँ पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा हो, जहाँ अन्याय हो रहा हो, जहाँ पर गलत और झूठ का बोलबाला हो रहा हो, परंपरा के नाम पर सामाजिक अन्याय हो रहा हो वहाँ पर चुप रहना निसंदेह बेवकूफी माना जायेगा | 
अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए आवाज़ उठानी ही पड़ती है | ऐसी बातों पर चुप रहने वाले निसंदेह बेवकूफ ही माने जायेंगे |
घरेलू हिंसायें भी अक्सर महिलाओ के अपने हितों को लेकर बोलने के कारण ही होती हैं ऐसी परिस्तिथि में उनका चुप रहना उनके हर सपने व अधिकारों को सिर्फ कानून की किताबों के पन्नों में ही सीमित करके रख जाता है क्या ये सही है? 
- मोनिका सिंह 
डलहौजी -हिमाचल प्रदेश
"चुप रहना भी एक तहजीब है संस्कारों की, 
लेकिन कुछ लोग हमें बेजुवां समझते हैं"। 
आईये  चर्चा करते हैं कि चुप रहना एक तहजीब है या बेवकूफी। 
मेरे ख्याल में  यहां कोई विवाद या झगडा हो वहां चुप रहना  एक अच्छी बात है , 
मगर  यहां पर गल्त कार्य या न सहने वाली बातें हो रही हों वहां चुपचाप सबकुछ सहते रहना बेवकूफी ही समझा जाऐगा। 
 सच कहा है , चुप रहना समझदारी है पर मौन रहकर अन्याय सहना अपराध है, 
यह भी सच है एक चुप सौ को हराय एक चुप सौ को सुख दे जाए इसलिए हम कई बार चुप रह जाते हैं क्योंकी  एक मूर्ख  व्यक्ति के सामने मौन रहने से अच्छा उतर कुछ हो ही नहीं सकता, लेकिन जीवन में सदैव चुप रहना उचित नहीं होता। 
 गीता में लिखा है यहां पाप वढ रहा हो छल कपट हो रहा हो वहां मौन रहना अपराध है। 
कई वार हन ताकतबर,  के सामने मौन रहते हैं और हमारा मौन रहना उस व्यक्ति का समर्थन करता है जो अपमे आप को शक्तिशाली समझने लगता है,  और गल्त कार्य करता रहता है  ऐसे में चुप्पी को तोड़ना ही अच्छा होता है क्योंकी अन्याय सहना अन्याय करने से वड़ा पाप है मगर यदि कोई  मूर्ख बोल रहा हो या वहस कल रहा हो वहां मौन रहना ही उचित है। 
बातचीत के लिए मौन और शील बहुत अच्छे गुण हैं, खामोश आदमी शायद कोई गल्ती करता हो, 
यही महीं बोलने की कला का उच्चतम स्तर चुप रहने की क्षमता है, चुप रहना बेहतर है, 
सामान्य तौर पर जो लोग बहुक कम जानके हैं वे बहुत बातें करते हैं और जो बहुत जानते हैं वे बहुत कं कहते हैं, 
इसलिए मौन एक साधारण आत्मा का शरण है यह भी कहा गया है कि महिला की सुंदरता सोने से नहीं वुद्दी और चुप्पी से जानी जाती है, 
मौन एक वफादार दोस्त है यह मूर्खता नहीं है। 
चुप्पी कई मुसीबतों के खिलाफ एक ढाल का कार्य करती है और बकवास हमोशा हानिकारक होता है 
जरा सोचिए व्यक्ति की जीभ तो छोटी होती है  लेकिन अगर वो खुल जाए तो वड़ी से वडी  रिस्तेदारियों को तोड़ देती है, सच कहा है, 
"नराजगियों को कुछ देर चुप रहकर मिटा लिया करो, 
गलतियों पर बात करने से रिश्ते  उलझ जाते हैं"। 
आखिरकार यही कहुंगा चुप रहने वाले बेवकूफ नहीं कहे जा सकते वो असल  में समझदार होते हैं।  
सच है, 
दूनिया की बेरूखी ने चुप रहना सिखा दिया, 
जिंदगी के हर गम ने हमें सहना सिखा दिया। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जो चुप रहते हैं वो बेवकूफ़ नहीं होते।समझदार लोग जब बोलने की जरूरत होती है तभी बोलते हैं। वह कभी भी बिना मांगे सलाह-मशवरा नहीं देते।वह हरेक बात को गहराई से चिंतन मनन करते हैं। इस का मतलब यह नहीं कि वो चुप रहते हैं तो बेवकूफ़ हैं। यह कहावत है कि "थोथा चना,बाजे घना" भाव जिन के पास लियाकत और समझदारी नहीं होती वो ही बातूनी बाते से शोर मचाकर सब का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। 
     विद्वान लोग चुप को ही सबसे अच्छा दोस्त और हथियार मानते हैं। हमारा इतिहास गवाह है कि बहुत सारे दरवेश साधु महात्मा  मानसिक शांति के लिए मौन व्रत रख लेते थे। देश को आजाद कराने के लिए महात्मा गाँधी जी ने भी कई बार मौन धारण किया था। 
    यह बात बिल्कुल सही है कि "एक चुप ,सौ सुख " ।चुप रहने से मनुष्य फालतू के तनाव से बच सकता है। जरूरत से ज्यादा बोलना बेवकूफ़ी की निशानी है न कि चुप रहना।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
दुनिया में भांति भांति के लोग रहते हैं उनमें कुछ लोग की पहचान शांत (चुप) रहने की आदत होती है वे लोग बेवकूफ नहीं होते बल्कि ज्यादा तेज दिमाग के लोग होते हैं। जितने भी विद्वान आज तक हुए हैं वे सब शांत स्वभाव के थे हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद  राजनीति में शांत रहकर कर अपना काम करते थे अगर वह बेवकूफ रहते तो देश के प्रथम राष्ट्रपति ना हो पाते ।चुप्पी सबसे अच्छी दोस्त है इससे कभी धोखा नहीं होता। हमारे बीच में जितने विज्ञानिक हुए हैं सब शांत स्वभाव के थे।यहां तक अब्दुल कलाम साहब मिसाइल मैन से जाने जाते हैं और हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति भी हैं ।वे काम के बात करके चुप रहते थे। लोग के सुनते थे लेकिन जरूरत पड़ने पर ही अपना चुप्पी तोड़ते थे।
लेखक का विचार:--शांत रहना प्रकृति का देन है। जो शांत रहते हैं उनका विचार बहुत उच्च स्तर पर रहता है वे बेवकूफ नहीं होते। शांत व्यक्ति बहुत ज्ञानी होते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
चुप रहना या कम बोलना यह एक बहुत सर्वोत्तम गुण है। चुप रहना बेवकूफ नहीं बहुत ज्ञानी और बुद्धिमत्ता की निशानी है। वस्तुत: कहा जाता है कि तौल- मोल कर बोल , अर्थात बोलने से पहले इंसान को दस बार सोच कर हीं  कुछ बोलना चाहिए। कुछ बातें किसी के सुनकर तुरंत ज़बाब ना देना या चुप रह जाना, ऐसा जल्दी होता नहीं है, लोग बोल हीं देते हैं रिएक्ट के तौर पर। यदि व्यक्ति कुछ  ऐसा कुछ सुनकर भी ना बोले चुप रह जाए तो निश्चित है कि वह काफ़ी सहनशील  और बुद्धिमान व्यक्ति है,  क्योंकि चुप रहकर हम बहुत सी खामियों  से दूर रहते हैं, बोल कर सब एक जैसे हो जाते है। अतः  जो चुप  रहते हैं वह बेवकूफ नहीं बहुत समझदार होते हैं। 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
      कहते हैं कि चुप्पी वह मित्र है जो कभी धोखा नहीं देती। जो यह मानते हैं वे उच्च स्तरीय बेवकूफ हैं। क्योंकि वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि शव ही सदैव चुप रहते हैं। भले ही उन्हें नदी में बहा दिया जाए या चिता पर जला दिया जाए। वह चुपचाप चुप्पी साधे रहते हैं। लेकिन जो जीवित हैं उन्हें यदि सुई भी चुभाई जाए तो वह बोलते ही नहीं बल्कि चिल्लाते हैं। जबकि सत्य यह है कि बच्चे भी भूख लगने या टीकाकरण करने पर रोते हैं।
      दूसरे शब्दों में यदि कोई बोलने के डर के कारण चुप है तो समझ लीजिए कि वह अपनी आधी जिंदगी जी रहा है। क्योंकि जीवन जिंदा दिली का नाम है। जिसमें चुप रहना तो दूर शेर की भांति गरजने की आवश्यकता होती है।
      उल्लेखनीय है कि यदि किसी मानव के अधिकारों का हनन होता है और वह हननकर्ता के प्रति चुप रहता है तो वह बेवकूफ ही नहीं कायर भी है। दूसरे पहलू से यदि कोई पुरुष किसी महिला को अन्यथा छेड़ता है और वह महिला चुप रहती है तो भी उसका अर्थ शोभनीय नहीं माना जाता बल्कि उक्त चुप्पी को पाप माना गया है।
      सर्वविदित है कि हमारे धर्मग्रंथों में भी गलत के विरोध मेंं और अच्छे के स्वागत में बोलना ही उचित माना गया है। गीता उपदेश जिसका प्रमाण है। जिसमें शांति का कोई विकल्प शेष ना रहने पर युद्ध को ही अंतिम विकल्प के रूप में श्रेष्ठ माना गया है।
      अतः शव बनने से पहले शव की भांति चुप रहना ईश्वर द्वारा दी गई जीभ का भी घोर अपमान है। इसलिए ईश्वर और जीब्हा का सम्मान करते हुए यदि बोलने में सक्षम हैं तो अंतिम क्षण तक बोलते रहना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
चुप रहने वाला इंसान ज्ञानी समझदार और विद्वान होते हैं गलत बातों में अपनी उर्जा को खपत नहीं करते हैं एक कहावत है 100 दवा की एक दवा चुप्पी मीठी दवा।
चुप रहने का मतलब यह होता है की अपने इंद्रियों पर पूर्ण रूप से नियंत्रण है पर कभी-कभी परिस्थिति कि ना चुकता को ध्यान में रखकर चुप रहना भी हानिकारक होता है बहुत बार ऐसी परिस्थितियां समाज में परिवार में उत्पन्न हो जाती हैं जिसमें की चुप्पी को भंग करना पड़ता है लेकिन चुप रहने वाला इंसान अपनी चुप्पी जब तोडता है तब वह सौम्य तरीके से  अनैतिक भाषा का प्रयोग
 नहीं करता है
कभी-कभी चुप्पी विनाश का कारण भी बन जाती है इतना भी सहनशील नहीं रही है कि सामने में आग लगता रहे और अपनी भाषा को हम मॉल रखे हुए चुप रहना समझदारी अवश्य है पर परिस्थिति आवश्यकता को ध्यान में रखना अति आवश्यक है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
     चुप रहना शांति का प्रतीक हैं, किन्तु आमजन कमजोरियाँ समझते हैं,  उसके समस्त प्रकार के क्रियाकलापों का फायदा उठाकर, चर्चित होते हैं। चुपी में ही छुपी रहती अपनत्व की भावना और उसी के माध्यम से अहसास जनों को बोझ ही लगता, उसे बेवकूफ समझते हैं। जितने वैज्ञानिकों, समसामयिक, रचनाकारों, धार्मिक और रचनात्मक कार्यों में लिप्त हो कर चुपी के माध्यम से अग्रसर होते हैं, उनके मन मस्तिष्क में विभिन्न शब्दावली का जन्म होता, फिर अपनी वाणियों से जनसमूहों को अवगत कराने में सफल होते, जो चिंतन धारा सतत का ही सकारात्मक परिणाम हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं। इसलिए चुप रहने वाले को बेवकूफ़ समझना निराधार हैं, लेकिन जब चुपी खुलती हैं, तो कभी-कभी तात्कालिक नकारात्मक फैसला भी हो जाता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जो चुप रहते हैं वो बेवकूफ नहीं होते हैं। कभी- कभी चालक आदमी भी कई कारणों से चुप रहते हैं। कहा गया है कि मूर्खो की सभा में चुप रहना ही बेहतर है। यह भी कहा जाता है कि सौ वक्ता को एक चुप्पा हरा देता है। कहीं बात नहीं मानने पर भी भले आदमी चुप रहते हैं। किसी अज्ञात सभा में बैठने पर भी चुप रहना पड़ता है। कहीं-कहीं लोग कह देते हैं कि वह बेवकूफ है उसका चुप रहना ही बेहतर है। कहीं -कहीं जाता है आप बहुत ज्यादा बोलते हैं वहाँ मत बोलियेगा। आपके बोलने से काम खराब हो जाएगा। एक दम चुप बेवकूफ बन के रहिएगा तो काम बन जायेगा। ज़्यादा बोलना अच्छी बात नहीं इसलिए भी कहीं कहीं चुप रहना पड़ता है। इसलिए जो चुप रहते हैं वो बेवकूफ हरगिज नहीं होते हैं। चुप रहना भले आदमी की निशानी है। मौन की भाषा जो समझे अंतर का सुख वो पाता है। इसलिए भी बहुत से लोग चुप रहते हैं। बहुत से लोग अंतर्मुखी होते हैं। इसलिए चुप रहते हैं। बहुत से लोग मानसिक जाप करतें हैं इसलिए चुप रहते हैं।
इसलिए जो चुप रहते हैं वो बेवकूफ नहीं होते।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
अति का बोल ना भला ना अति चुप
मानव की अलग-अलग आदतें होती हैं
सभी का व्यक्तित्व भी भिन्न होता है
कोई हंसमुख होता है कोई वाचाल होता है कोई चुप होता है ऐसा कतई नहीं है कि चुप रहने वाले बेवकूफ होते हैं कई मामलों में यह ज्यादा समझदार होते हैं क्योंकि किसी भी बात को यह पूरी तरीके से ध्यानपूर्वक सुनते हैं समझते हैं फिर आत्म विश्लेषण कर उस पर कोई निर्णय बनाते हैं या निर्णय लेते हैं वह ज्यादा सटीक और व्यवहार पूर्वक होता है अब बिना मांगे राय देना भी आदत में नहीं होता है वैसे आज का परिवेश तो बिल्कुल ही भिन्न है
किसी को कुछ ना कहना सुनना ही ज्यादा बेहतर है चुप रह कर सभी देखते ‌समझते रहते हैं राजनीति हो ऑफिस हो  समाज हो घर परिवार हो इन सभी जगहों पर जितना बोलने से बचा जाए सभी अपने आप को बचाते हैं आजकल लोगों में सहनशीलता धीरज धैर्य की बहुत कमी है बड़े छोटों का लिहाज भी कम हो गया है ।
एक चुप सौ सुख की सोच ही
 शिरोधार्य मानकर
बिना बात बोलना क्या बेहतर होता है
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
अवसर के अनुसार जो चुप रहते हैं वे बेवकूफ नहीं होते। परन्तु जहां बोलने की आवश्यकता हो वहां जो चुप रहते हैं वे बेवकूफ होते हैं। चुप रहने के संदर्भ में महाकवि कालिदास की घटना एक अद्भुत उदाहरण है। जब अनेक विद्वान् विद्योतमा से शास्त्रार्थ में हार गए तो उन्होंने मूढ़ कालिदास को एक योजना के अंतर्गत विद्योतमा के समक्ष शास्त्रार्थ के लिए पेश कर दिया। मूढ़मति कालिदास शास्त्रार्थ नहीं कर पायेंगे और चुप ही रहेंगे यह सोचकर विद्वान अपनी योजना में सफल होते प्रतीत होते थे। कालिदास चूंकि अनपढ़ थे अतः उनको तो बोलने का कोई अर्थ ही नहीं था। वे चुप रहे। पर जब विद्योतमा ने इशारों में शास्त्रार्थ करना शुरू किया तो वे अपने ही ढंग से प्रत्युत्तर में इशारे करने लगे। जिनका विद्योतमा ने अलग ही मतलब निकाला। उसके बाद का घटनाक्रम तो सभी जानते हैं। चुप रहकर अनेक मुश्किल परिस्थितियों को भी टाला जा सकता है। चुप रहने के अनेक गुण हैं। अतः जो चुप रहते हैं वह बेवकूफ नहीं होते।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
कहा गया है 
' बालू जैसी करकरी,उज्जवल जैसी धूप।
जैसी मीठी कछु नहीं, जैसी मीठी चूप।। '
अर्थात चुप रहने को मीठा याने मधुर माना गया है।
 अतः चुप रहने वाले बेवकूफ नहीं होते। 
किंतु इसे और सूक्ष्मता से अवलोकन करें तो चुप रहने को परिस्थितियों और मनःस्थिति के आधार पर गलत या सही कहा जा सकता है। जब हमसे कुछ पूछा जा रहा है और हम चुप रहते हैं तो इसे समझदार,ज्ञानी तो नहीं मानेगे। इसी तरह अन्याय के विरोध में भी अपनी राय जाहिर नहीं करना भी उचित नहीं माना जा कता। इसके विपरीत आपसे जब कुछ पूछा न जा रहा हो, कोई राय नहीं माँगी जा रही हो  तब चुप रहना समझदारी होगी।
संक्षिप्तः चुप रहने की वजह कोई भी हो, अनुचित भले ही हो सकता है, बेवकूफ तो नहीं कहा माना जा सकता और न ही माना जाना चाहिए।
द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य महाराज धृतराष्ट्र आदि विद्वान जनों का चुप रहना अनुचित माना गया है। उनकी विद्वता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाए गए।
 अतः जो चुप रहते हैं वह बेवकूफ  होते हैं, ऐसा कहना गलत होगा !
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक  यह प्रश्न है कि जो चुप रहते हैं क्या वे बेवकूफ होते हैं तो इस पर मैं यह कहना चाहूंगा  वास्तव यह सोचना अपने आप में बहुत गलत है दर असल समझदार व्यक्ति अक्सर गंभीरता के साथ सोच समझकर बोलते हैं और बेकार की बातों पर वह नहीं उलझते और अक्सर चुप रहते हैं उनकी बातों में तथ्य होता है जब वह बातचीत करते हैं तो तार्किक ढंग से बोलते हैं और बेकार के विवादों से बचे रहना चाहते हैं इसीलिए कम बोलते हैं तो यह नहीं सोचना चाहिए कि जो लोग सब चुप रहते हैं वह बेवकूफ होते बल्कि वास्तव में वही  समझदार होते हैं जो समय और अवसर के अनुसार ठीक ढंग से सोच विचार करके बोलते हैं ़
आप सभी को समर्पित मेरी पंक्तियाँ............
लोग कहते है वह अक्सर खामोश रहता है
मै जानता हूँ उसे सलीका.  है बात करने का
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  चुप रहने के लिए सहनशील होना पड़ता है । जिस से सफलता के दुश्मन बहुत कम होते हैं । यही चुप रहने का सबसे बड़ा गुण या लाभ कह सकते हैं । बाकी बेवकूफ समझने वालें अपनी नादानी प्रकट करते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान


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