क्या लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संम्भव है ?
वर्तमान में लोकतंत्र ही दुनियां में सबसे अधिक कामयाब है । भारत में भी लोकतंत्र अग्रेजों के समय से ही शुरू हो गया था । परंतु समय बीतने के साथ - साथ लोकतंत्र में चुनाव प्रणाली में सुधार की आवश्यकता महसूस हो रही है । क्योंकि आये दिन के चुनाव से देश व जनता पर आर्थिक बोझ बढता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
एक राष्ट्र एक चुनाव प्रणाली हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं शायद आप लोगों को याद हो या न हो लेकिन - ये प्रक्रिया 1952 , 1957, 1962, 1967 में अपनाई जा चुकी है। बाद में इस को 1968 -69 में रोक दिया गया था।
ये प्रणाली क्या है - मैं इस पर लिखने से पहले इसके कारण , लाभ व् हानियाँ गिनाना अधिक जरुरी समझता हूँ चूंकि संक्षेप में आज इतना ही हो पायेगा फिर भी , इसके कारण , लाभ व् हानियाँ पढ़ कर आप सब इस प्रणाली से परिचित हो ही जाएंगे। अपितु
एक राष्ट्र एक चुनाव प्रणाली की बात अपने देश में दोबारा कुछ साल से ही उठनी शुरू हुई जब से एनडीए की सरकार सत्ता में आई उनमे भी बीजेपी घटक इसके लिए सबसे अधिक समर्थक हैं। इलेक्शन कमीशन भी इसका समर्थन करता है। कारण हमारा देश संसार का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है व् इसके चुनाव पर होने वाला का खर्च व् ऊर्जा भी उसी अनुपात में सर्वाधिक है। इस के विविध प्रांतों में अस्थिर सरकार, उनके अन्य सहयोगी दलों से सैद्धांतिक मतभेद , विघटन , जल्दी जल्दी चुनाव होना, छोटी २ बात पे सरकार गिरा देना दल बदल आदि २।
अन्य प्रणलियों की तरह एक राष्ट्र एक चुनाव प्रणाली के भी अपने अपने लाभ व् हानियां है
लाभ :-
१ पैसे की बचत, २ विकास कार्य में तेजी , चुनाव कार्य में लगने वाली मानव/मशीन ऊर्जा क्षय की रोकथाम ३ काले धन पर नियंत्रण ४ सरकारी काम काज सुचारु रूप से होना ५ सरकारी मशीनरी के कार्यों में गुणवत्ता आदि आदि।
हानि :- १ लोकल मुद्दों से भटकाव २ रीजनल पार्टी को समुचित महत्व न मिलना ३ चुनाव के नतीजों में देरी ४ संवैधानिक विसंगतियां ५ विशाल स्तर पर मानवीय व् यांत्रिक ऊर्जा की जरुरत ६ संविधान के अन्यान्य धाराओं में परिवर्तन करके नए सिरे से अध्यादेश लाना पड़ेगा। आदि २।
मेरा विचार इस बारे में
मेरा मत मेरी सोच - एक राष्ट्र एक चुनाव प्रणाली के प्रति
संसार में अभी ये प्रणाली कहाँ कहाँ - मेरी जानकारी अनुसार लगभग १० देशो में सुचारू रूप से कार्यरत।
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
जी बिल्कुल लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संभव है |एक राष्ट्र एक चुनाव भारत की ज़रूरत है | एक राष्ट्र और एक चुनाव प्रणाली कोई अनूठा प्रयोग नहीं है बल्कि ऐसा पहले भी भारत में प्रयोग किया जा चुका है | यदि हम बात करें इतिहास की तो 1952 से 67 तक भारत में एक चुनाव प्रणाली ही लागू थी परंतु 1968 में लोकसभा भंग होने के कारण यह प्रणाली टूट सी गई |
चाहे बात विकसित देशों की हो या विकासशील देशों की एक चुनाव प्रणाली से देश के विकास में मदद मिलती है |
हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की और देखें या फिर अमेरिका की और नजर दें तो वहाँ पर यही प्रणाली प्रचलित है| इस से समय और धन की भी बचत होती है और जो समय बार - बार और अलग- अलग समय पर हो रहे चुनाव पर खर्च होता है उसकी बचत होगी और वो समय देश के विकास में उपयोग हो पायेगा | लोकतांत्रिक देश में तो एक चुनाव प्रणाली ही देश के लिए हितकारी होगी |
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
एक देश,एक चुनाव।माननीय प्रधानमंत्री जी ने अभी संविधान दिवस पर पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में अपनी यह बात दोहराई। लोकतांत्रिक देश है तो चुनाव होना लाजिमी है पर ग्राम स्तर से राष्ट्र स्तर तक के सभी चुनाव एक साथ बात जयंती नहीं।हर चुनाव के मुद्दे और प्रकृति अलग होती है।एक साथ चुनाव में यह सब गड्मड् जो जाएगा।स्थानीय मुद्दे तो राष्ट्रीय मुद्दों को प्रभावित करने या न करें,राष्ट्रीय मुद्दों में स्थानीय मुद्दे हाशिए पर जरुर चले जाएंगे।
अब बात एक चुनाव संभव है या नहीं।तो संभव तो है, उचित या सफल कितना होगा यह भविष्य के गर्भ में है।इतना जरुर है इससे बार बार के चुनावी खर्च की बचत होगी और समय तो बचेगा ही।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
किसी भी जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है. स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं. लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संभव हो सकती है. भारत में एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे. बाद में भिन्न-भिन्न कारणों से यह क्रम तब टूट गया. एक देश एक चुनाव के पक्ष में कहा जाता है कि यह विकासोन्मुखी विचार है. लगातार चुनावों के कारण देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है. इससे बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी और इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में भी मदद मिलेगी. एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
हमारे देश में एक देश एक चुनाव के विरोध में भी कई तर्क दिए जाते रहे हैं. पहला एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है. संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस विचार के बिल्कुल विपरीत दिखाई देते हैं. दूसरा लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं के मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है. तीसरा तर्क यह है कि अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें. चौथा लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है. इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है, कि भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है. लिहाजा बड़ी आबादी और आधारभूत संरचना के अभाव में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराना तार्किक प्रतीत नहीं होता. यहां यह भी ध्यान रखने वाली बात है, कि जनसंख्या के विस्तार के साथ तकनीकी सुविधाओं का भी विस्तार हुआ है. अतः सभी राजनीतिक दल सहमत हो जाएं, तो सुविधा और किफायत को ध्यान में रखते हुए लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली को संभव बनाया जा सकता है.
- लीला तिवानी
दिल्ली
लोकतांत्रिक देश में एक चुनाव प्रणाली संभव नहीं है। क्योंकि पार्षद चुनाव,विधानपरिषद चुनाव,राज्यसभा चुनाव,सांसद चुनाव वगैरह होते रहते हैं। फिर उपचुनाव भी चलते रहते हैं। प्रत्येक चुनाव में सुरक्षा, प्रशासनिक व्यवस्था अलग अलग होती है।
ये सभी एकल चुनाव प्रणाली से संभव कैसे हो सकता है। फिर इन सभी चुनाव का स्वरूप कैसा होगा?
ऐसा स्वरूप तो आज सरकार या चुनाव आयोग के पास भी नहीं है।
हालांकि हमारे प्रधानमंत्री जी ने चुनाव अधिकारीयों एवं चुनाव आयोग से कहा है कि वे एकल चुनाव प्रणाली का स्वरूप या मसौदा तैयार कर सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाये।वह भी जल्द से जल्द।
एक बात तय है कि अगर ऐसा संभव हुआ तो पैसा और समय दोनों ही की बचत होगी।
- डाॅ•मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
किसी जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है क्योंकि निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है। भारत देश की बात करें तो इतने बड़े देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से ही एक चुनौती रहा है। हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं लगातार चुनाव के कारण देश में हमेशा चुनावी वातावरण बना रहता है प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते रहते हैं इसके साथ साथ अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ता है। इन प्रभावों से बचने के लिए नीति निर्माताओं ने लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार भी बनाया। 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ भी करवाए गए थे । यह क्रम तब टूटता है जब किसी राज्य में समय से पहले चुनाव करवाये जाते हैं । एक चुनाव प्रणाली को अपनाने से कोई समस्या नहीं है। बार-बार चुनावों के कारण देश में बार-बार आचार संहिता लागू करनी पड़ती है जिसकी वजह से सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और अन्य योजनाओं को लागू करने में भी समस्या आती है विकास कार्य बहुत प्रभावित होता है। बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में भी कमी आती है सरकारी खजाने पर जो अतिरिक्त बोझ पड़ता है उससे भी बचा जा सकता है। चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा काले धन का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है ।यद्यपि हमारे देश में प्रत्याशियों द्वारा चुनावों में किए गए जाने वाले खर्च की सीमा निर्धारित की गई है किंतु राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसके अतिरिक्त लगातार चुनाव होते रहने से राजनेताओं और पार्टियों को सामाजिक समरसता भंग करने का मौका मिल जाता है और तनाव की परिस्थितियां बन जाती हैं। इस प्रकार लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली कुछ हद तक सफल भी हो सकती है। लेकिन यदि संविधान के नियमों को पढ़े तो अनुच्छेद 85 (2)ख के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा और अनुच्छेद 174 (2) ख के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को 5 वर्ष पहले भी भंग कर सकते हैं । अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध ,बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। और अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है ,ऐसी स्थिति में उस राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर अब होने से वहां फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है । ऐसी परिस्थितियों में लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली सफल नहीं हो पाती । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं, लोकसभा के चुनाव जहां राष्ट्रीय सरकार के गठन करने के लिए होते हैं वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिए होते हैं । कई बार राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य मुद्दे गौण हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों में समरसता जरूरी है और एकमत का होना अति आवश्यक है ।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
देश में समय-समय पर हमेशा ही किसी न किसी रूप में चुनाव प्रणाली में संशोधन होता आया हैं, किन्तु मूल स्वरूप में संशोधन होना शेष हैं। आज भी अपराधी प्रवृत्तियों के जन मानस में हमेशा प्रभाव जमाना आम बात हो गई हैं, दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जायें तो शिक्षा प्रणाली का कोई भी महत्व नहीं रहा हैं, आज भी अशिक्षित उच्च पदों पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। देश में अलग-अलग राज्यों में अपनी विवेकानुसार चुनाव हो रहे हैं, जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक नहीं हो पाते हैं, अगर एक साथ सभी तरहों के चुनाव हुए तो एक छत्र किसी न किसी का बहुमत तो होगा ही और गोपनीयता बनी रहेगी, प्रचार-प्रसार में भी कम से कम व्यय होगा ही। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कुछ हद तक सुधार तो किया था, जिसमें काफी कारगर कदम सफलता की ओर अग्रसर हुए थे, नहीं तो उस समय के चुनावों में अनेकानेक ध्रुवीकरणियता थी। आज वर्तमान परिदृश्य में लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संभव को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर संभावित बनाने की अत्यंत आवश्यकता प्रतीत होती हैं। जिसके चलते विभिन्न प्रकार के अनेकों दलबदलू में रोकथाम के अतिरिक्त कई दलों में वृहद स्तर पर रोक लगेगी। इसके लिए सहजता के साथ गणतंत्र के गणमान्यजनों की विश्वसनीयता के साथ अहम भूमिका होनी चाहिए ताकि भविष्य में सौहार्द का लक्ष्य पूर्णता के साथ हो?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान से पूरे देश भर में भूचाल सा मचा हुआ है, जिसमें उन्होंने कहां है कि अब समय आ गया है एक देश एक चुनाव हो और इसकी जरूरत भी है। पूरे देश में इस विषय पर जोरो से चर्चा हो रही है। अब लोग चर्चा करने लगे हैं कि क्या लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संभव है। यह मुद्दा आसान नहीं है क्योंकि इसमें लोग यह कहते हैं कि देश में एक चुनाव प्रणाली से लोकतंत्र का गला घोटने जैसी स्थिति हो जाएगी। लेकिन यह भी सच है कि जहां चाह वहीं राह, मोदी है तो मुमकिन है। इस बात को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित करके भी दिखला दिया है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना, तीन तलाक प्रतिबंध लगाना, नागरिकता संशोधन कानून लाना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला क्या यह संभव था, लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपने दृढ़ इच्छा शक्ति से करके दिखला दिया है। और जब नरेंद्र मोदी ने कह दिया है तो आने वाले समय में देश में एक देश एक चुनाव प्रणाली को भी संभव कर कर दिखला सकते हैं ? यह तय माना ज रहा है।
लोकसभा और राज्यों के विधान सभा के चुनाव एक साथ कराए जाने के मसले पर काफी लंबे समय से बहुत चल रही है। इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल में ही विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिए तीन दिवसीय कांफ्रेंस का आयोजन किया था। इसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार से सहमति जताई जबकि अधिकतर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। जाहिर है कि जब तक इस विचार पर आम सहमति नहीं बनती तब तक इसे धरातल पर उतारना आसान नहीं होगा। अभी यह गंभीर मुद्दा है कि देश में एक साथ चुनाव कराया जाना क्यों जरूरी है। किसी भी जीवंत लोकतंत्र में एक चुनाव अनिवार्य प्रक्रिया है। स्वस्थ और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र के आधारशिला होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से एक रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है।अगर हम देश में होने वाले चुनाव पर नजर डालें तो पाते हैं कि हार बहुत किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। सबसे पहले तो चुनाव की घोषणा होते ही चुनाव आचार संहिता लागू हो जाता है। अब चुनाव आचार संहिता लागू हो जाने के बाद किसी भी नई योजना की घोषणा या उसकी शुरुआत नहीं की जा सकती है। एक तरह से देखा जाए तो देश व उस राज्य का विकास रुक जाता है। चुनाव में सरकारी कर्मचारी और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ सुरक्षा बलों को भी लगाया जाता है। जिसके कारण भारी भरकम खर्च पड़ता है। चुनाव में काले धन का खुलकर उपयोग होता है। बार बार चुनाव कराए जाने से आम जनता भी काफी परेशान रहती है। एक देश एक चुनाव प्रणाली लागू हो जाता है तो यह देश हित में होगा जिसमें सबका भला होगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
देश में एक चुनाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो तकनीकी और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है।
इसमें राजनीतिक दल एवं प्रशासनिक सेवा की इच्छा शक्ति पर निर्भर है।
एक देश एक चुनाव के पक्ष में सभी राजनीतिक दल सहमत हो जाएं तो देश के विकास कार्य बिना रुकावट के प्रगति की ओर बढ़ेगी।
जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते है।
हम चुनाव पर नजर डालें तो पाते हैं कि हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं इससे बचने के लिए नीति निर्माताओं ने लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ कराने के पक्ष में हैं।
अगर सभी राजनीतिक दल सहमत हो जाते हैं तो भी देश के विकास की पहिया बिना कोई रुकावट के आगे की ओर बढ़ते जाएगी।
लेखक का विचार:-एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है। जब देश में "एक देश कर" यानी GST लागू हो सकता है तो एक देश एक चुनाव
क्यों नहीं हो सकता है?
राजनीतिक दल खुले मन से इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे अमलीजामा पहनाया जा सके।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
लोकतंत्र का अर्थ ही व्यापक हो जाता है। अगर इस प्रणाली में सरकार बनानी है तो इसके मूलभूत नियमों का पालन होना आवश्यक है।
एक देश-एक व्यवस्था भी आवश्यक है। चुनाव प्रणाली लोकतंत्र की पहली शर्त है। तभी लोकतंत्र की कामयाबी है। यहाँ जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार मिलता है। एक ही व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव कार्य आवश्यक है। उसमें समय-समय पर परिवर्तन ला कर आधुनिकता की दौड़ में शामिल होना चाहिए। इससे जनता भी विकास के आयाम को समझती है और कार्य की गति बढ़ती है। पारदर्शिता बढ़ने से आत्मविश्वास बढ़ता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
वैसे तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। अगर सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है। इससे चुनाव खर्च कम होगा ? कैसे कम होगा पता नहीं। इससे एक फायदा होगा जो भ्रष्टाचारी है वो शायद असुविधा में पड़ सकते हैं।
जब किसी राज्य में चुनाव होता है तो तीन चार चरणों में चुनाव करना पड़ता है। जब सारे देश में सभी राज्यों के चुनाव एक साथ होंगे तो कितनी परेशानी होगी ये समझ से परे है। इससे देश का क्या भला होगा मेरी समझ से बाहर है। मुझे तो लगता है कि शायद भारत में एक चुनाव प्रणाली सम्भव नहीं हो सकती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
'एक देश एक चुनाव' कोई नया अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं अत: अब करवाने में कोई समस्या नहीं आने वाली है।
एक तरफ जहाँ कुछ जानकारों का मानना है कि अब देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है, लिहाजा एक साथ चुनाव करा पाना संभव नहीं है, तो वहीं दूसरी तरफ कुछ विश्लेषक कहते हैं कि अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो तकनीक और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है। इसलिए एक देश एक चुनाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
'एक देश एक चुनाव' के पक्ष में तर्क यह है कि इससे बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी। गौरतलब है कि बार-बार चुनाव होते रहने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है। चुनाव पर होने वाले खर्च में लगातार हो रही वृद्धि इस बात का सबूत है कि यह देश की आर्थिक सेहत के लिये ठीक नहीं है।
'एक देश एक चुनाव' के पक्ष में दिये जाने वाले तर्क में कहा जा सकता है कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। यह किसी से छिपा नहीं है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा काले धन का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है। हालाँकि देश में प्रत्याशियों द्वारा चुनावों में किये जाने वाले खर्च की सीमा निर्धारित की गई है, किन्तु राजनीतिक दलों द्वारा किये जाने वाले खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि लगातार चुनाव होते रहने से राजनेताओं और पार्टियों को सामजिक समरसता भंग करने का मौका मिल जाता है जाता है,जिसकी वजह से अनावश्यक तनाव की परिस्थितियां बन जाती हैं| एक साथ चुनाव कराये जाने से इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
जी हां सम्भव है। चूंकि असम्भव कुछ भी नहीं होता। बस एक बार धारा 370 को तोड़ने जैसे आत्मबल की आवश्यकता है। जो वर्तमान सरकार अर्थात मोदी सरकार के पास अत्याधिक है।
सर्वविदित है कि एक चुनाव प्रणाली में लाभ ही लाभ हैं और वह लाभ भी ऐसे वैसे न होकर 'राष्ट्रीय लाभ' की सूची में आते हैं। चूंकि पांच वर्ष में एक मतदाता को एक बार ही निर्णय लेना पड़ेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री को भी रोज-ब-रोज राष्ट्रनिर्माण के कार्यों को छोड़कर चुनाव प्रचार में जुटना नहीं पड़ेगा। उससे राष्ट्रीय समय व पूंजी दोनों बचेंगे। इसके अलावा पांच साल में से बस चंद दिनों का ही चुनावी राजनैतिक तमाशा होगा। अन्यथा विकास के नाम पर बस चुनावी दंगल ही देखने को मिलते हैं।
उल्लेखनीय है कि नित्य रोज चुनावों के कारण चुनाव प्रचार में मंत्रियों के संग प्रधानमंत्री जी को भी जाना पड़ता है। वहां जाकर मतदाताओं को लुभाना भी पड़ता है। जिससे दूसरे राज्यों के मतदाताओं को बुरा लगता है। जिससे उन्हें अपने प्रधानमंत्री सौतेले लगने लगते हैं।
अतः हर प्रकार से और हर हाल में लोकतांत्रिक देश में सशक्त लोकतंत्र हेतु 'एक चुनाव प्रणाली' की व्यवस्था शीघ्र अतिशीघ्र करनी चाहिए। जो सम्भव तो है ही परन्तु उसके साथ-साथ उसकी राष्ट्रीय परम आवश्यकता भी है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली लागू होना थोड़ा मुश्किल तो अवश्य है लेकिन असंभव नहीं ।इसका सबसे बड़ी रुकावट राजनिति पार्टीयाँ स्वयं है।चुनाव के वक्त जनता को बर्गलाने ,प्रलोभन देने और खरीद फरोख करने में इनको मुश्किल आयेगी ॥ हर पार्टी अपना स्वार्थ साधने में लगेगी । एक चुनाव के पक्ष में जब कोई ठोस नीयम बने तभी यह संभव है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
भारत आजाद होने के बाद संसदीय लोकतंत्र अपनाकर देश-दुनिया की सबसे बड़ी चुनाव प्रक्रिया वाला राष्ट्र बना। लगभग हर आम चुनाव के समय भारतीय नागरिक विश्व में सबसे बड़े मतदाता समूह के रूप में पहचाने जाते हैं। चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र की चाहे जितनी खामियां निकाली जाएं, लेकिन इसे अविश्वसनीय उपलब्धि कहा जा सकता है। भारत का पहला आम चुनाव इसी रोमांचक के सामूहिक मनोविज्ञान में संपन्न हुआ था। उस चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा किया। भारत ने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया। भारत में लोकतंत्र की स्थापना अपने आप में एक अनूठी उपलब्धि है। देश के सभी नागरिकों को मतदान करने और सरकार चुनने का अधिकार मिला। भारतीय लोकतंत्र में आज इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिये मतदान प्रक्रिया पूरी होती है। लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली है जो नागरिकों को वोट देने और अपनी पसंद की सरकार का चुनाव करने की अनुमति देती है। कई देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारतीय लोकतंत्र में एक चुनाव प्रणाली को संभव बनाया गया है। अतः लोकतंत्र में एक चुनाव प्रणाली संभव हो सकती है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
हमारे देश में बहुदलीय प्रणाली है। अलग-अलग विचारधाराओं के बहुत से दल है जिनमें एक मत होना असंभव है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। वृहद स्तर पर एक साथ सभी तरह के चुनाव जनतांत्रिक तरीके कराना करीबन असंभव ही है। जब देश में एक तरह की शिक्षा प्रणाली ही नहीं है तो एक ही तरह की चुनाव प्रणाली किस तरह संभव हो सकती है। हरेक की अपनी विचारधारा है हरेक की अपनी सोच है। इस स्थिति में मेरे ख्याल से तो एक चुनाव प्रणाली देश में असंभव ही है।
श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
लोकतंत्र वह शासन तंत्र होता है जहां वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है और हमारा देश लोकतंत्र गणराज्य है ! यदि इस प्रणाली में सरकार बनती हैं तो शर्तानुसार उनके नियम पालन की अवहेलना नहीं की जा सकती !
हां ! यह अलग बात है आजकल भारी जनमतों से जीतकर भी धारासभ्य लोग दल बदल लेते हैं किंतु देश में एक चुनाव प्रणाली तो संभव है(वैसे आज की नेता की सेवा राज सेवा हीं धन सेवा हो गई है अतः चुनाव के नियमो में कुछ परिवर्तन होना चाहिए !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
चुनाव लोकतंत्र का महापर्व है, यहां लोकतंत्र शब्द का अर्थ लोगों का शासन होता है,
लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली होती है जिसके अंतगर्त जनता अपनी मर्जी से आए हु़ए किसी भी दल को वोट देकर अपना प्रतिनि़धि चुन सकती है।
लोकतंत्र को ही जनतंत्र कहा जाता है, लेकिन हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की वि़धानसभा़ओं के चुनाव अलग अलग समय पर कराये जाते हैं जिससे समय धन व कर्मचारियों का बार बार प्रयोग होने से देश की आर्थिक स्थिती पर वोझ पड़ता है, तो आईये चर्चा करते हैं कि क्या लोकतंत्र देश में एक चुनाव प्रणाली संभव है।
मेरे दृष्टिकोण में एक देश एक चुनाव कोई अनुठा प्रयोग नहीं है क्योंकी अगर बात करें 1952,1957,1962 व 1969की तो ऐसा हो चुका है जब लोकसभा और राज्यों की वि़धानसभा़ओं के चुनाव साथ साथ करवाए थे,
तो अब करबाने में क्या समस्या है।
अगर हम देश में होने वाले चुनावों की बात करें तो हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं, जिसके कारण देश हमेशा चुनावी भीड़ में रहता है जिससे देश के खजाने पर भारी वोझ पड़ता है, व अन्य समस्यांए उतपन्न होती हैं इन सबसे वचने के लिए निति नर्मताआों ने लोकसभा तथा राज्यों की वि़धानसभा़ओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया है।
यह देश के लिए कितना सही है कितना गलत होगा इस पर खत्म न होने वाली वहस की जा सकती है लेकिन इस विचार को धरातल पर लाने के लिए इसकी विशेताओं की जानकारी होना जरूरी है,
अगर सोचा जाए तो इसके लागु होने से भारी खर्चे में कमी आएगी, कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी सरकारी कर्मीयों की बार बार डयुटी नहीं लगेगी,
अन्त में यही कहुंगा एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है लेकिन राजनीतिक पार्टीयों दवारा इसका विरोध किया जा रहा है उससे लगता है इसे निकट भविष्य में लागू कर पाना संभव नहीं है।
मगर यदि देश में एक देश एक कर लागू हो सकता है तो एक चुनाव क्यों नहीं,
अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे अमली जामा पहनाया जा सके।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
नीति नियम और कानून के ऊपर चुनाव की प्रक्रिया निर्भर करती है यदि सरकार के एक आवाज पर पूरा देश एकजुट हो सकता है सभी जगह नोटबंदी हो सकते हैं जीएसटी लागू हो सकता है लॉक डाउन हो सकता है तो लोकतंत्र में चुनाव एक क्यों नहीं हो सकता
आज तो डिजिटल का जमाना है सारी प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं जो इंसान जिस देश में जिस राज्य में है वहां से अपने मतदान को आसानी से कर सकता है आर्थिक दृष्टिकोण से अगर पूरे देश में एक समय में चुनाव हो तो निश्चित तौर पर अर्थ कम खर्च होंगे और सरकारी खजाना सुरक्षित रहेगा लोकतंत्र का मुख्य मकसद मेरे दृष्टिकोण से जनता की भलाई के लिए किया गया काम इसलिए बिल्कुल संभव है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " एक देश एक चुनाव प्रणाली की समस्या को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री व मुख्यमन्त्रियों का चुनाव सीधे जनता द्वारा होना चाहिए । फिर सरकार को गिराने की समस्या नहीं रहेगी ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
Comments
Post a Comment