क्या कर्म ही विचारों की व्याख्या है ?

कर्म बिना कोई जीवन नहीं है । विचारों से कर्म बनते हैं । यानि विचारों की व्याख्या ही कर्म होता है । विचार संधर्ष से बनते है । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा "  आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
"कर्म तेरे अच्छे हैं तो, किस्मत तेरी दासी है, नियत तेरी अच्छी है, तो घर में मथुरा काशी है"। 
कर्म एक क्रिया है चाहे शारीरिक हो या मानसिक प्रकृति के नियमों अनुसार मानव को अपने सभी किये गये गलत या सही कार्यों के अनुसार ही फल मिलता है, 
कहने का मतलब जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल पायोगे, 
तोह आईये आज चर्चा करते हैं कि क्या कर्म ही विचारों की व्याख्या है? 
मेरे ख्याल में जीवन को हर कदम पर हमारी सोच हमारे बोल व हमारे कर्म ही हमारा भाग्य  लिखते हैं, 
कहने का मतलब कर्म की भूमी की दूनिया मेंश्रम सभी को करना पड़ता है, 
कर्म हिन्दू धर्म की अवधारणा है कहा जाता है कि कार्यकरण सिदांत न केवल भौतिक दूनिया में लागू होता है बल्कि हमारे विचारों, शब्दो, कार्यों और उन कार्यों पर भी लागू होता है जो हमारे निर्देशों पर दुसरे किया करते हैं। 
जब पूर्णजन्म समाप्त होता है तो कहा जाता है कि उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हुई है, सभी पुन्जर्न्म मानव योनि में नहीं होते, कहा जाता है पृथ्वी पर जन्म और मृत्यु का चक्र ८४लाख योनियों मे़ चलता रहता है लेकिन अच्छे कर्मों के कारण ही मानव  योनी मिलती है इसलिए क्षों न हम अच्छे कर्म करते रहें और दुसरों कौ भी इस के लिए प्रेरित करें क्षों कि हमारे कर्म व सुदविचार ही हमारे जीवन को उत्तम बना सकते हैं। 
सच है, 
"मिटाने से  मिटते नहीं ये भाग्य के लेख, 
कर्म अच्छे तू करता चल, फिर ईश्वर की महिमा देख"। 
कहने का मतलब जीवन के हर कदम पर हमें अपनी सोच अपने बोल व विचार अच्छे रखने होंगे त़भी हमारे कर्म हमारा अच्छा भाग्य लिख सकेंगे। 
यह भी सच है, 
कर्म की भूमी में श्रम सभी को करना पड़ता है, 
भगवान सिर्फ लकीरें देता है रंग हमें भरना पड़ता है। 
कहने का मतलब कर्म ही  पर्म है हमें कर्मों के  बल पर ही जीवन मिलता है  यानि हमारे कर्म ही विचारों की व्याख्या है, 
अन्त में यही कहुंगा मनुष्य के सभी कार्य इन में से किसी एक या अधिक वजह से होते हैं मौका, मजबूरी, आदत, जूनून, इच्छा आदि इसलिए इन सभी को  नजर में रखते हुए हमे  हमेशा ऐसा कार्य करने चाहिए जिनमें दुसरों का भी भला हो सके सिर्फ अपना हित देखकर किया गया कार्य हानिकारक सिद्द होगा, इससे साबित होता है कि कर्म ही व्चारों की व्याख्या है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
*विचारों की उत्पत्ति  पर आपके आगे का भविष्य निर्भर होता है*
मानव जीवन में किसी भी कर्म को करने से पहले मन मस्तिष्क में उसके  विचारों का उत्पन्न होना होता है आपके जैसे विचार होंगे आपके जीवन में कर्म भी आप‌ वैसा ही करेंगे अच्छी भावनाएं संस्कार सभ्यता दया धर्म यदि आपके मन मस्तिष्क में उपज है तो सद मार्ग पर चलेंगे यदि आपके मन मस्तिष्क में
कटुता प्रतिशोध वैमनस्य भाव दूषित विचार होंगे तो आप उसके अनुरूप ही अपने कार्य को करेंगे  निश्चित रूप से
आपके कर्म ही आपके विचारों की व्याख्या करते हैं।
*मन में उपजे विचारों के बीज से*
*आपका जीवन रूपी पौधा तैयार होता है*उसी के अनुरूप फल प्राप्त होता है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
मानवीय मानस चिकित्सा विज्ञान के एक खोज के अनुसार अस्सी हजार विचारों से प्रतिदिन सतत बिना रुके रु ब रु रहता है , अर्थात एक अनुमान के अनुसार  मानव दिमाग का EEG अध्ययन करने पर ये पाया गया की मानव दिमाग नित नए वैचारिक उद्घोष से हमें व् हमारे मानस को मुखरित करने का जाने अनजाने में कार्य करता रहता है जैसे ही हमारी दृष्टि , अर्थात conscious mind [ सतर्क प्रज्ञा ] का इनमे से किसी भी विचार पर ध्यान जाता है हम उस कार्य में उसके निहित प्राथमिकता होने या न होने के बावजूद भी उस में या उसके प्रति उन्मुख हो जाते हैं फिर पुनः उसकी प्राथमिकता या अप्राथमिकता का मनन करने पर उस को छोड़ भी देते है या उस कार्य के मध्य किसी अन्य प्राणी द्वारा बाधित या सम्पर्क करने या प्रार्थना करने के निहित उस कार्य में लग जाते हैं 
**अब सबसे बड़ा सवाल ये हुआ के क्या ये कर्म ही हमारे अंदर उमड़ घुमड़ रहे विचारों की सच्ची  व्याख्या है ?**  या आपके द्वारा हो/ किया जा  रहा ये  कोई भी कार्य आप के लिए अतिविशेष रूप से सच्ची प्रेरणा /  हैं।  **मेरे विचार आज की चर्चा प्रदत्त विषय -  की गहराई को अपनी समझ अनुसार मेरा कहना ये है की  ** सिर्फ  कर्म ही  हमारे विचारों की सच्ची  व्याख्या नहीं  है ** क्योंकि हम बाहर की अनेकाएक संवेदनाओं से क्षण प्रतिक्षण प्रभावित होते हैं कोई कोई विरला मानव [ २ प्रतिशत ]  ही उन बाहरी संवेदनाओं / impulses से अप्रभावित हुए रह सकता है / उसके लिए ये सवाल पूर्णतया सत्य कहा जा सकता है / लेकिन ९८ प्रतिशत प्राणियों के लिए नहीं // इसलिए हमारा कर्म अकेला  हमारे विचारों की सत्यनिष्ठ व्याख्या नहीं हो सकता।  
- डॉ. अरुण कुमार शस्त्री
दिल्ली
इंसान के मन में जो विचार आते हैं उसी के अनुसार वह कार्य करता है। अतः कह सकते हैं कि कर्म ही विचारों की व्याख्या है। इंसान का मस्तिष्क का क्रियाशील होता है और उसमें कुछ ना कुछ विचार पनपते रहते हैं ।उन्हीं में से कुछ विचारों को वह अपने जीवन में अपनाकर क्रियान्वित करने लगता है, जिन्हें हम कर्म का नाम देते हैं। इस तरह से विचार ही कर्म रूप में परिणित हो जाते हैं। अतः कर्म ही विचारों की व्याख्या है हम कह सकते हैं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     जीवन में कर्म ही प्रधान हैं, जिसके परिपेक्ष्य में सब ही व्यर्थ?, जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा  यह चरित्रार्थ हैं। इसलिए कहा जाता हैं, कि अपने-अपने घर संसार, समसामयिक व्यवस्थाओं में विचारधाराओं का विकेन्द्रीकरण किया जायें, ताकि सामने वाले को किसी तरह का बुरा नहीं लगें और अपनी बात यथावत रहे। बातें-बातों में ही बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं और वही से प्रारंभ होता हैं, कर्मो का सिलसिला? जैसी विचारधारा रहेगी, वैसा ही आगे वाला प्रभावित होगा।  आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए कोई भी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, अपने मद होश से घिरा रहता हैं, जिसका प्रतिफल अंतिम समय में दिखाई देता हैं। इसलिए मानव रुपी संसार में विचारों की श्रंखला में व्याप्त रुप में व्याख्या प्रस्तुत करना सर्वोपरि होगा, तभी कर्म चिरस्थायी होगा? 
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 आध्यात्म की दृष्टि से देखा जाये अथवा सामान्य मनुष्य के रहन सहन में कर्म को समझे तो इसमें कोई दो राय नहीं है मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ! यदि हमारे कर्म अच्छे हैं तो विचारों की उत्पत्ति भी अच्छी होती है केवल हममे नहीं बल्कि अन्य लोगों के मन में भी हमारे प्रति अच्छी भावनाएं और अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं ! मानव के कर्म ही  उसे दण्डित भी करते हैं और कर्म ही से अच्छे फल भी मिलते हैं !कहावत है ना "जैसा बोवोगे वैसा पावोगे" ! यदि हमने कर्म उत्कृष्ट विचारों के साथ किये हैं, हमारी भावना भी उत्तम और निःश्चल भाव लिए है तो हमे अच्छा ही फल मिलेगा प्रतिकुलता लिए है तो प्रतिकूल फल प्राप्त होगा ! सामान्यतः यह हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण को लेकर ऐसा कहते हैं ! हम डरने लगते हैं ! हमने जो भी अच्छे ,बुरे कर्म किये हैं उसको लेकर हमारे मन में अनेक विचारों की उत्पत्ति होने लगती है और हम उसकी व्याख्या करने लगते हैं !
किंतु प्रेक्टीकली जीवन में किसी भी कार्य को करने से पहले हम विचार करते हैं कि हमे क्या करना है और क्या नहीं ! विचार के आते ही कार्य को चालू नहीं कर देते !धैर्य ,समय,लाभ हानि सभी देखते हैं!  कार्य करते समय हमारी सोच सकारात्मक एवं विचार उच्चकोटि के हो ! कर्म करते समय इस बात पर ध्यान दें कि दूसरों को भी उसका फायदा हो !
विचार हमारे सकारात्मक एवं उच्चकोटि के साथ दूसरों के हित में हो ! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
"जड़ से उखड़े तो ना रहे पेड़ों की छाया भी, 
पेड़ों के मीठे फलों के ही स्वाद-रस रहते हैं। 
कर्म ही शेष रहे साथ किसके गयी माया भी, 
विचारों से बने कर्म ही जीवन गाथा कहते हैं।।" 
कहते हैं कि "मनुष्य के चेहरे की पूजा नहीं होती.....कर्मों की पूजा होती है।" यह वाक्य इस बात को सिद्ध करता है कि कर्म ही विचारों की व्याख्या है। हां, कथनी और करनी में अन्तर वाले व्यक्तियों की यहां चर्चा करना बेकार है। परन्तु विचारों की शुद्धता लिए मनुष्य पवित्र कर्म ही करेगा और दुश्विचार वाला दुष्कर्म ही करेगा। इस तरह कर्मोंनुसार ही  उसके विचारों की व्याख्या की जायेगी। 
किसी भी व्यक्ति को उसके अच्छे-बुरे कर्मो से याद रखा जाता है। जिसके विचार जैसे होंगे, उसके कर्म भी वैसे ही होंगे। अपने विचारों के अनुसार ही मनुष्य उत्कृष्ट अथवा निकृष्ट कर्म करता है। उसके कर्मों के अनुसार ही उसकी चर्चा होती है। 
इसलिए कहता हूं कि...... 
"विचारों की स्पष्ट लय, हृदय की पावन धड़कन, 
मानव कर्म समेटे हैं, विचारों की उत्कृष्ट थिरकन।
आश्रित है सब कुछ तेरे चिन्तन और कर्म पर, 
बन पैरों की धूल या बन माथे का उबटन।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
सबसे पहले मन में विचार आते है, जब विचार उतपन्न होते हैं तो क्रियान्वयन होता है जिसे हम कर्म कहते हैं l संसार में जीवित रहने के लिए, कुछ पाने के लिए, कहीं पहुँचने या प्रगति एवं विकास करने के लिए, अपनी इच्छाएँ पूर्ण कर जीवन, समाज और संसार को सजाने संवारने के लिए विचार आते है जो कर्म में परिणत हो जाते हैं l कर्म के बिना गुजर बसर कतई संभव नहीं l एक कदम भी चल पाना कठिन है l इसी कारण प्राकृतिक नियम और आत्मिक प्रेरणा से संसार का छोटा बडा हर प्राणी आवश्यकता के अनुरूप कर्म में निरत रहता है l संसार में वस्तुतः कर्म ही विचार और विचार ही कर्म हैं l हमारे कर्म से ही हमारे विचारों की व्याख्या हो जाती है l
     केवल सपने देखना या कल्पनायें करते रहने से न तो अपना जीवन ही बन पाता है और न संसार के अन्य प्राणियों के लिए ही कुछ कर पाना संभव हुआ करता है l संसार ही कर्ममय है उसकी रचना का उद्देश्य ही कर्म करना है l यही उनकी मुक्ति है l
     चलते चलते ----
स्पष्ट है -कर्म ही विचारों की व्याख्या है l
"कर्म प्रधान विश्व रचि रखा "
     - डॉo छाया शर्मा 
अजमेर -  राजस्थान
      कर्म विचारों की ही नहीं बल्कि जीवन की भी व्याख्या है। क्योंकि कर्म मानव का परिचय है। जैसे उक्त व्यक्ति ने बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था में क्या-क्या किया है और कौन-कौन से गुल खिलाए हैं?
       जब व्याक्ति मंदिर जाने-आने का कर्म कर रहा होता है। तो उस समय उस मानव को ईश्वर के प्रति ही विचार आएंगे। राखी बंधवाते वक्त बहन-भाई का स्नेह उमड़ेगा और पत्नी के पास जाने पर दाम्पत्य जीवन के सुखद-दुखद अनुभवों के विचारों का लेखा जोखा मन-मस्तिष्क में उभरेगा। यह मानवीय प्रकृति का आधार है। अर्थात किसान को कृषि उत्पादन और व्यापारियों को व्यापार के ही विचार आयेंगे और वह उसी के प्रति व्याख्या करेंगे।
       अब सैनिकों की बात करें तो उन्हें रात को सोते समय भी सतर्कता एवं सावधानियों के स्वप्न आते हैं। चूंकि स्वप्न सुप्त अवस्था के विचारों को व्यक्त करते हैं। इसलिए वह रात को सोते समय भी सावधान जैसे शब्दों की रट लगाते हैं।
     हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथों में भी कर्मों को ही महत्वपूर्ण माना है और उन्हीं कर्मों के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचान मिलती है। जैसे अर्जुन को तीरंदाजी में निर्धारित लक्ष्य के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था। जिससे वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाया। 
      अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि कर्म और विचार एक दूसरे के पूरक हैं और सुविचार व्यक्ति के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या बन कर उभरते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हां कर्म भी विचारों की व्याख्या हो सकती है। जीवन, विचार और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं। जीवन बिना विचार नहीं, और विचार बिना कर्म नहीं। जीवन में विचार विशेष महत्व रखते हैं। विचार अच्छे हो या बुरे, अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। विचार तदनु रूप कर्म के आधार पर आचरण की उत्पत्ति करते हैं । अच्छे विचारों पर आधारित कर्म श्रेष्ठ मार्ग पर गमन करते हुए जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। हमारे शास्त्रों वेदों के अनुसार यदि हम अच्छा कर्म करते हैं परिणाम स्वरूप वह अच्छा फल ही देता है बुरे कर्म करते हैं तो उसका फल बुरा ही मिलता है। कर्म एक आदर्श है जिसमें कारण और प्रभाव एक दूसरे से नैतिक क्षेत्र में अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं जैसा कि  विज्ञान द्वारा भौतिक क्षेत्र में कल्पित है कि एक अच्छे कर्म के लिए पुरस्कार है और बुरे कर्म के लिए दंड है।  अतः कर्म ही विचारों की व्याख्या करते हैं।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
           हमारे के मन में जो इच्छा या मनोकामना उत्पन्न होती है। वह हमारे विचारों में परिणत होती  है। उसी के अनुरूप हम आचरण करते है, या कर्म करते है। अर्थात जैसे विचार होंगे मनुष्य वैसे ही कर्म करता है। विचार अच्छे या बुरे होते हैं, उसी प्रकार उसके कर्म भी अच्छे या बुरे होते हैं 
           बिना विचार के कोई भी मनुष्य कर्म नहीं कर सकता।पहले विचार आता है फिर कर्म। कोई व्यक्ति जिस प्रकार का कर्म करता है उससे यह पता आसानी से लगाया जा सकता है कि उस व्यक्ति के मन में किस प्रकार के विचार आते हैं।
         कहा जाता है कि कर्मों से ही भाग्य बदलता है। इसका मतलब यह हुआ कि विचार परिवर्तन से ही भाग्य बदलता है। अतः विचार महत्वपूर्ण है जो कर्म के रूप में दिखाई पड़ता है।
            अतः हम कह सकते हैं कि हमारे कर्म हमारे विचारों की व्याख्या है।
- सुरेंद्र सिंह 
अफ़ज़लगढ - उत्तर प्रदेश
विचार और कर्म एक ही पहलू के दो रूप हैं विचार मानव मस्तिष्क का आंतरिक पहलू है और कर्म बाहरी रूपरेखा है कर्म को देखकर व्यक्ति के विचारों का पूर्ण रूप से अनुमान लगाया जाता है और व्याख्या भी की जाती है ज्ञानेंद्रियां के माध्यम से कर्म का निरूपण होता है कर्म और विचार व्यक्तित्व का एक दर्पण है शारीरिक हाव भाव बोलचाल की भाषा काम करने के तरीके के माध्यम से व्यक्तित्व का मूल्यांकन विचारों की अस्पष्टता हो जाती है एक उदाहरण दे रही हूं एक व्यक्ति साक्षात्कार के लिए बोर्ड में उपस्थित हो रहा था जैसे ही उसने साक्षात्कार भवन में प्रवेश किया तो देखा कि नल खुला है उसने नल बंद कर दिया क्योंकि पानी बर्बाद हो रहा था कुछ आगे बढ़ा तो सभी पंखे चल रहे थे और कमरे में कोई व्यक्ति नहीं था उसने पहले पंखा बंद किया फिर व साक्षात्कार के भवन में प्रवेश किया प्रवेश करने पर रास्ते में थोड़ी बहुत चीज गिरी पड़ी थी उसे सही जगह पर रखकर वह बोर्ड के सामने उपस्थित हुआ जानते हैं परिणाम क्या हुआ बिना सर्टिफिकेट देखे हुए साक्षात्कार के प्रश्नों का जवाब उन्हें मिल गया था और उस व्यक्ति का साक्षात्कार में चयन कर लिया गया इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि कर्म ही विचारों का व्याख्या है।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हिंदू धर्म की अवधारणा है जो एक प्रणाली के माध्यम से कार्य करने के सिद्धांत की व्याख्या करती है ।जहां पिछले  हितकरो कार्य का हितकर प्रभाव और हानिकार  कार्य का हानिकारक प्रभाव प्राप्त होता है। जो पुनर्जन्म की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की एक प्रणाली की रचना करती है।कहा जाता है कि कार्य कारण सिद्धांत न केवल भौतिक दुनिया में लागू होता है बल्कि हमारे विचारों शब्दों कार्यों उन कार्यों पर लागू होता है जो हमारे निर्देशों पर दूसरे लोग भी करते हैं।
लेखक का विचार:-कर्म हिंदू धर्म की अवधारणा है और एक प्रणाली के माध्यम से कार्य करने के सिद्धांत की व्याख्या करती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
मनुष्य जैसे कर्म करता है उसके विचार वैसे ही होते हैं कर्म करने के लिए सबसे पहले उसके मस्तिष्क में विचार आते हैं जिसके दिमाग में अच्छे विचार आते हैं उसके अच्छे कर्म होते हैं जिनके दिमाग में नकारात्मक विचार आते हैं उनके घर में भी नकारात्मक होते हैं। मस्तिष्क की सोच का प्रभाव हमारे जीवन में बहुत बनता है। मनुष्य आसपास के वातावरण को देखकर भी अपने दिमाग से सोचता है और उसी के अनुरूप कार्य करने लगता है इसीलिए हमें सज्जन पुरुषों या अच्छे व्यक्तियों की जीवनी या उनके बीच में रहने को कहा जाता है और उनके विचार सुनने को कहा जाता है महापुरुषों की जीवनी बहुत महत्वपूर्ण है सुनने के साथ-साथ व्यक्तित्व के कारण भी उच्च कोटी के होते हैं।
विचार और कर्म के लिए मनीष और को समाज और उसके परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है।
सोच एक व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
अपनी सोच को अच्छे रखें सादा जीवन और उच्च विचार की विचारधारा पर जीना चाहिए।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
मनुष्य की ये प्रवृति है कि जो विचार उसके अंदर आतें है वह उसे क्रियान्वयन करना चाहता है। भले उसे कर पाए या न कर पाए। ये दूसरी बात है। कोई भी कर्म करने से पहले हम विचार करते हैं कि हमें ये कर्म करना है, उसके बाद ही उसे अमल में लाते हैं। इस तरह से हम कह सकते हैं कि कर्म ही विचारों की व्याख्या है।
एक विद्यार्थी के मन में ये विचार आ जाता है कि आज ये पाठ पढ़ना है। एक गृहणी के मन में ये विचार आता है कि आज ये भोजन बनाना है। दफ्तरों में काम करनेवाले को विचार करना पड़ता है आज ये काम करना है। इस तरह से हर क्षेत्र में ये बातें होती हैं। इससे साफ पता चलता है कि कर्म ही विचारों की व्याख्या है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
जी हाँकर्म ही विचारों की व्या ख्या है।विचारो के पूर्व और एक शब्द होता है,अनुभव,अनुभव के बिना विचार नही आता, विचार के बिना व्यवहार करते नही बनता।व्यवहार के बिना कार्य करते नही बनता।बिना कार्य का विकास नही होता।बिना विकास का जीना सफल नही होता।कोई भी मनुष्र असफल होना नही चाहता।असफल परिणाम से दुःख और सफल परिणाम से सुख की प्राप्ती होती है।अतः यही कहते बनता है कि मनुष्य कोई भी कार्य को अंजाम देने के लिए इन चार आयामो से गुजरना होता है। 1.अनुभव 2.विचार 3.व्यवहार4.कार्य।तभी मनुष्य सफल होता है। इसी लिए कहा जाता है कि जैसे विचार मान सिकता मे होती है, उसी के अनुसार कार्य करना  होता है।
 अतः मनुष्य जैसा विचार करता है उसी के अनुसार कार्य करता है तभी उसे सफलता मिलती है।
 अतः कहा जा सकता है कि विचार से ही कार्य की व्याख्या होती है और कार्य विचारों की व्याख्या है। 
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन में जीवंतता रहे अतः यह आवश्यक है कि संबंध बने रहें तथा हम कर्म करते रहें। हमारे संबंध हमारे विचारों और कर्मों से प्रभावित होते हैं अर्थात् हम अपने कर्मों और विचारों के अनुरूप ही संबंध बना पाते हैं। समाज की दृष्टि में यदि हमारे कर्म अच्छे होंगे तो हमारी विचारधारा अच्छी आंकी जाएगी। यदि हम बुरे कर्म करेंगे तो हम खराब विचारधारा वाले कहलायेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म ही हमारे विचारों की व्याख्या करेंगे जिस पर समाज में हमारी साख निर्धारित होगी। अगर हम लालची, ईष्र्यालु और हिंसक प्रवृति के हैं तो हम उसी प्रकार के समाज की रचना करेंगे। यदि हम मेहनती, ईमानदार और अहिंसा के पुजारी हैं तो हम उसी प्रकार के समाज की रचना करेंगे। हमारे कर्म हमारे विचारों की व्याख्या बनते जायेंगे और उसी प्रकार के समाज का निर्माण करते जाएंगे।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली 
मेरे विचार से तो कर्म और विचार दो अलग-अलग भाव हैं। कर्म तो व्यक्ति दिखावे के लिए भी करता है। बड़े-बड़े दान दे कर क्या 'विकास' को अच्छे विचार का व्यक्ति कहा जा सकता है? बड़े-बड़े ज्ञान की बातें करने से क्या  'राम रहीम' के कर्म अच्छे हो गए?
नहीं। दोनों में कोई सामंजस्य नहीं है। हाँ, ये बात है कि कर्म और विचार दोनों के अच्छे होने पर ही व्यक्ति की सामाजिक और राजनीतिक छवि स्वस्थ्य बनती है। महात्मा गाँधी हों या दयानन्द सरस्वती या अन्य कोई इन लोगों के कर्म और विचार दोनों ही निर्मल थे । वे जो कहते थे वही करते थे। इसलिए लाखों की भीड़ इनके पद -चिन्हों पर चल पड़ी और लाखों इनके अनुयायी बने।
अतः सफल मनुष्य बनने के लिए विचार और कर्म में सामंजस्य बैठाना जरूरी है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
विचारों की व्याख्या निम्नलिखित बातों और गुणों के आधार पर कर सकते हैं।हम  कर्म के आधारित भी विचारों का व्याख्यान हो सकता है।हमारी संस्कृति और सभ्यता को बनाए रखने के लिए अच्छे कर्मों की बेहद आवश्यकता है और मनुष्य के विचारधारा उनके कार्य पर आधारित होती है जैसे विचार आएंगे वैसे ही कार्य होगे।मानवीय संवेदनाओं को प्रफुल्लित करने मे अपनी समक्षता विचारों का व्याख्यान अभिव्यक्ति के लिये बेहद जरूरी है।कर्म मनुष्य को आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होता है।मानव जीवन के विचारों को उल्लेखित करता है इसलिए मानव के कर्म बेहतर अनुभव को प्रदर्शित करने मे और विचारधारा को सामने लाने मे अपनी भुमिका निभाती है।जीवन मूल्यांकन के लिए कर्मो का अच्छा और सच्चाई से करना ही अपनी अपनी विचारधारा की पहचान पत्र है।विचारों की व्याख्या बेहद ही मार्मिकता केंद्र से गुजरती है।जिंदगी मे हमेशा उच्चतम स्तर के विचारों का समावेश ही हमें पथरीली राहों से निकालने का कर्म करती है।हम हरपाल जीवन मे अपने विचारों का लेखांकन कर सकते हैं ।विपरीत परिस्थितियों के प्रभाव भी विचलित कर हमारे विचारों को बदलने अथवा अन्य लोगों के साथ सुव्यवहार या र्दुव्यवहार को उजागर करता है अपने विचारों की सीमा को हमेशां शांति निंयत्रित रखने की कला ही स्वस्थ मनुष्य और अच्छे जीवन का परिचायक बनता है।हम किसी के प्रति अपने विचारों को रखते हैं तो संयम से आदर्श आदर से रखें यही विचार अपनी कर्म की कसौटियों मे शामिल होते हैं।हर किसी को अपने विचारों के अनुरूप नही मान सकते अपने कर्म की प्रधानता को उचित समय पर विचारों की व्याख्या की  जाती है।हमें अपने जीवन  को कभी भी अपनी विचारधारा के विपरीत कोशनेकी जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योकि विचारों का अपना महत्व होता है जैसे विचार होते हैं वैसे ही कर्म ।
अपने कर्म ही विचारों की व्याख्या मे सार्थकता को प्रदर्शित करती है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
इस में कोई संदेह नहीं है कि कर्म ही विचारों की व्याख्या है कयोंकि जैसे विचार होंगे, वैसे ही कर्म होंगे। मनुष्य के जैसे  विचार होते हैं वैसी ही इच्छा शक्ति, आचरण और कर्म हो जाते हैं। कर्म का आधार विचार ही हैं। इस लिए हमारे शास्त्रों में अच्छी संगति को महत्व दिया गया है क्योंकि अच्छे कर्म करने के लिए अच्छे विचारों को लाना अति जरूरी है अच्छे महापुरुषों की संगति और पवित्र वातावरण में रहने से अच्चे विचार बनते हैं। अच्छी संगति से बुरे विचार छट जाते हैं साथ में बुरे कर्म भी।मनुष्य को उसके कर्म ही दंडित करते हैं और कर्म ही पुरसकॄत करते हैं। सुविचारों के लिए अच्छी साहित्यिक पुस्तकों का सहारा भी लेना चाहिए। हमारे कर्म और विचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।  जैसे विचार वैसे कर्म। जो बीजोगे,वही काटोगे।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
कर्म विचारों की व्याख्या भले ही न हो, पर कर्म और विचारों का अन्योन्याश्रित संबंध अवश्य है. मनुष्य जैसा संकल्प करने लगता है, वैसा ही आचरण करता है और जैसा आचरण करता है फिर वैसा ही बन जाता है. जिन बातों का बार-बार विचार करता है, धीरे-धीरे वैसी ही इच्छा हो जाती है, फिर उसी के अनुसार वार्ता, आचरण, कर्म और कर्मानुसारिणी गति होती है. स्पष्ट है कि अच्छे आचरण एवं चरित्र के लिए अच्छे विचारों को लाना चाहिए. बुरे कर्मों को त्यागने से पहले बुरे विचारों को त्यागना चाहिए. जो बुरे विचारों का त्याग नहीं करता वह बुरे कर्मों से छुटकारा नहीं पा सकता, क्योंकि कर्म का आधार विचार हैं. जैसे विचार, वैसे कर्म. अतः अच्छे विचारों को अपनाकर अच्छी कर्म करना ही श्रेयस्कर है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " विचारों से ही जीवन की उपयोगिता सिद्ध होती है । विचारों की व्याख्या से कर्म बन जाता है । कर्म से ही जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है ।
                                         - बीजेन्द्र जैमिनी 

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