क्या जीवन में आशा और निराशा धूप - छांव के समान होती है ?
आशा और निराशा तो जीवन के दो पहलू है । जो धूप - छांव के समान साबित होते हैं । अक्सर हमें इन्हें समझ नहीं पाते हैं । यहीं जीवन की कठिनाई है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - हां जीवन में आशा और निराशा धूप छांव के समान ही होते हैं।सच तो यह है कि यदि ऐसा न होता तो शायद कोई बहुत अधिक दुखी और कोई बहुत अधिक सुखी होता।प्रकृति द्वारा निर्मित यह नियम बना ही ऐसा है कि दुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख जीवन में एक शीतल लहर बनकर आता है। - डॉ० विभा जोशी दिल्ली प्रकृति का चक्र है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। परिवर्तन अवश्यंभावी है। समर्थ से समर्थ इन्सान भी जीवन में उतार-चढ़ाव अवश्य देखता है। यही उतार-चढ़ाव क्रमशः निराशा अथवा आशा को जन्म देते हैं। आशा में मन प्रकाशित होता है और निराशा में घने अंधकार से घिरा होने के समान हो जाता है। यह सही है कि जीवन में आशा और निराशा धूप-छाँव के समान होती हैं। परन्तु यह इन्सान की जिजीविषा ही है कि वह निराशा रूपी छाँव पर विजय प्राप्त कर आशा की...