क्या भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य बनाना चाहिए ?

हर कोई भगवान को पाना चाहता है । सभी की इच्छा अपनी - अपनी होती है । फिर भी भगवान के प्रति आस्था सभी की होती है। यही कुछ जीवन में लक्ष्य भी बन जाता है । यह भारतीय सस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है । जो जनमानस पर हावी नज़र आता है । फिर भगवान जैसा दर्जा ही आस्था से जुड़ा है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
 जीवन ही अपनी पूर्णता में परमात्मा है ...सृष्टि की रचना ही  प्रभु ने इस तरह की है कि प्रत्येक जीव को प्रथम अपने जीवन की हर अवस्था को अपने कर्म से जीवन में  आने वाले हर पड़ाव का न्याय पूर्वक सामना पूर्ण रूप से करना है और यही उसका धर्म है ! ईश्वर तो कण-कण में है... उन्होंने ही तो हमारा निर्माण किया है ! पेड़ पौधे, पशु पक्षी ,और मनुष्य का अवतार दे सृष्टि की रचना की है ... यही ईश्वर की लीला थी ! 
प्रथम हमें अपने सांसारिक जीवन के धर्म का पालन करना चाहिए हमारे कर्म को ईश्वर ने भी विशिष्ट प्राधान्य  दिया है ! सांसारिकता में हमारे कर्म अच्छे होने चाहिए इसमें हमारा शरीर जो नश्वर है वही सब करता है किंतु हमारी जीवात्मा ही परमात्मा से जुड़ी रहती है आत्मा ही परमात्मा है !
मनुष्य जीवन में ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं कई योनियों के बाद हमें मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य जीवन में सद्कर्म, दया, प्रेम ,त्याग की भावना के साथ सांसारिक जीवन का पथ ले प्रभु को याद करें... जीवन का यही लक्ष्य होता है कि अंतिम क्षण ईश्वर की शरण में हो मुझे मोक्ष मिले !  भागवत में कृष्ण भगवान ने कर्म को ही लक्ष्य बनाया है !  मनुष्य जन्म में उसके अच्छे कर्म ही उसकी बैकुंठ धाम जाने की सीढ़ी बनती है ! ईश्वर ने कहा है किसी भी जीव की आत्मा को  दुखी ना करें .....
मैं कण-कण में व्याप्त हूं .... अपने कर्मो को ही लक्ष्य की  सीढ़ी बना मुझे प्राप्त कर सकते हो .....!
           - चंद्रिका व्यास
         मुंबई - महाराष्ट्र
        भगवान को पाना या आत्मा का परमात्मा में समाना ही मृत्यु लोक में जन्म लेने का मुख्य लक्ष्य होता है। जिसे दूसरे शब्दों में मोक्ष का उद्देश्य भी कह सकते हैं।
        सर्वविदित है कि परमात्मा निर्गुण निराकार भी हैं और सगुण साकार भी हैैं। अर्थात ईश्वर के के कई स्वरूप हैं। जिन्हें पाने वाले उपासक भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे हीर-रांझा इत्यादि अनेक प्रेमी उपासकों ने प्रेम के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया। कर्मयोगियों ने कर्म के अनुसार ईश्वर को पाया। कुछ विशेषज्ञों ने अपने शोधों से भगवान को मोह लिया। 
        इसके अलावा कई राष्ट्रभक्तों ने राष्ट्र और मातृभूमि की सेवा-सुरक्षा में बलिदान देकर अमरत्व प्राप्त किया। कई लेखकों ने लेखनी के माध्यम से ईश्वरीय शक्ति प्राप्त कर परमात्मा में विलीन हो गए। वेद-पुराण आज भी उदाहरण हैं जिनमें प्राणियों से लेकर प्रकृति का सम्पूर्ण वर्णन विस्तार से है और रहेगा।
        अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि हर प्राणी के जीवन का मुख्य लक्ष्य भगवान को पाना होता है। जबकि उनके रास्ते अलग-अलग होते हैं। जैसे मेरे जीवन का लक्ष्य ही न्याय के रूप में ईश्वर को प्राप्त करना है और तब तक संघर्षरत रूपी तप व तपस्या में लीन रहना है जबतक सम्पूर्ण न्याय रूपी भगवान के दर्शन न हो जाएं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि भगवान कौन है, कहाँ है, कैसा है और यदि हमारा मन भगवान को किसी भी रूप में मान भी लेता है तो उसे  पाने के लिए जीवन में कैसे कोई लक्ष्य निर्धारित किया जाए, इस विषय को लेकर आज मुझे महात्मा 'कबीर'के दोहे याद आ रहे हैं- जिसमें उन्होंने कहा है --
मोको कहां ढूंढे रे बंदे, 
मैं तो तेरे पास में । 
ना तीरथ में ना मूरत में, 
 ना एकांत निवास में, 
 ना मंदिर में ना मस्जिद में, 
 ना काबे कैलाश में ,
मैं तो तेरे पास में बंदे
 मैं तो तेरे पास में । 
अर्थात् परमात्मा तो हमारे अंदर ही है बस हमें विश्वास रखना होता है जिस प्रकार मृग की नाभि में ही कस्तूरी होती है पर उसे पता ही नहीं होता है कि जिसकी तलाश में इधर उधर भटक रहा है ,वह तो उसके पास ही है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा हमारे भीतर ही है और हम उसे बाहर की दुनिया में ढूंढते हैं । रही बात परमात्मा को पाने के लिए जीवन में लक्ष्य बनाने की, तो परमात्मा भक्ति का आधार सत्कर्म है ,कल्याण, परोपकार की भावना रखते हुए हम किसी दीन दुखी का दुख दूर करते हैं ,असहाय व्यक्ति की सहायता करते हैं ,समाज सुधार के कार्य करते हैं, अपने मन को पवित्र रखते हैं ,ईर्ष्या द्वेष जनित किसी भी प्रकार का भेदभाव मिटाकर भाईचारे की भावना को प्रबल करते हैं ,,मानव हित और राष्ट्रहित की कामना रखते हैं, मानवता के बारे में सोचते हैं ,सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते हैं ,मन के पवित्र भावों के आधार पर जीवन यापन करने का लक्ष्य अपने जीवन में निर्धारित करते हैं ,तो परमात्मा की प्राप्ति स्वयमेव ही हो जाती है । हर प्राणी में परमात्मा है, प्राणी मात्र की सेवा सबसे बड़ी परमात्मा- भक्ति है ,अच्छे, पुण्य दाई, कल्याणकारी ,सत्कर्मो का आधार हमारा जीवन लक्ष्य होना चाहिए। यही परमात्मा प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
_जी हाँ, सत्य है कि हमें यह मनुष्य का जीवन, पिछले पुण्य कर्मों के आधार पर ही प्राप्त हुआ है। हम आज मनुष्य बनकर अपना,सर्वश्रेष्ठ जीवन यापन कर रहे हैं। सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ बनकर।
   जिस तरह से प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में, सफल होने के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है। उसको पूरा करने का प्रयास करता है,कर्म करता है। वह कभी सफल होता है कभी असफल होता है। 
    परंतु वह लक्ष्य को विस्मृत नहीं करता है।उसी तरह हम सभी को, इस जीवन को पूर्ण करते हुए परमेश्वर को पाने का भी ,लक्ष्य बनाना चाहिए ताकि जीवों के इस(जीवन और मृत्यु के क्रम को)विराम दिया जा सके।
  यह तभी संभव है जब हम मनुष्य के रूप में ,अपने जीवन में परमेश्वर को पाने का लक्ष्य निर्धारित करें और उसे अमलीजामा पहनाये।
    यह तब हो पायेगा जब हम ,प्रभू की भक्ति करें, सेवा करें, दूसरों की मदद करें, किसी का अहित ना करें, इंसानियत का परिचय देवें। 
    अपना जीवन सदाशयता से ओतप्रोत बनायें और अच्छे कर्म,भक्ति करते हुए अंततः परमेश्वर में विलीन हो जायें। 
     -  डाॅ .मधुकर राव लारोकर 
         नागपुर -महाराष्ट्र
भगवान को पाना हर कोई चाहता है लेकिन कैसे पाया जाये यह बहुत कम जानते हैं l परमात्मा तो कण कण में बसते हैं l हर जीव में परमात्मा का वास है l
"न जाने किस वेश में बाबा
 मिल जायें भगवान रे l "
हम हमारे कर्म अच्छे करें, जीवों पर दयाभाव रखें, अपने बोधि उत्तरदायित्व को निभाएं l परमात्मा आपको स्वतः ही मिल जायेंगे l
प्रभु छल -कपट,, झूँठ-फरेब में निवास नहीं करता l वह तो निर्मल सरल हृदय में निवास करता है l
कबीर ने भी कहा है -
"मोको कहाँ ढूंढे वंदे
 मैं तो तेरे पास में
न मैं मंदिर, न मस्जिद
न काबा कैलाश में l "
    - डॉ. छाया शर्मा 
अजमेर - राजस्थान
     हमारी संस्कृति और संस्कार धार्मिक प्रवृत्ति की हैं। जहाँ कुछ पाने के लिए लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं। जैसा कि पूर्व में ॠषि मुनियों को देखिये किस तरह से स्वयं का परित्याग करते हुए घोर तपस्या करते थे और अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पूर्ण विश्वास के साथ एकाग्रचित्त होकर भगवान को प्रसन्न करने में सफलता अर्जित करते थे। आधुनिक युग में भी वहीं परिपाटी देखने को मिल रही हैं परन्तु वह परिपक्वता नहीं हैं। वर्तमान परिदृश्य में भगवान को पाना लक्ष्य नहीं अपितु मन के विकेन्द्रीकरण के ज्ञानेन्द्र को प्राप्त करना लक्ष्य हैं और मन चलायें मान होने से लक्ष्य प्राप्त करना दिखावटी सहानुभूति के आधार पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो रहे हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
    सब से  पहले भगवान, ईश्वर, खुदा , लार्ड़, खुदाय किसी 
अन्य नाम से भी याद करे तो हर धर्म, जाति, ,वर्ण में मनुष्य ने अपनी कल्पनाओं एवं आस्थाओं से उस का रूप गढ़ा है। मन आत्मा में बसाया है। भगवान का अर्थ है वो शक्ति जो अनंत है , आत्मिक है, परमानंद है, हजारों हाथों से, करोड़ो लोगो की रक्षा एक क्षण में कर सकती है ।यह हमारे भीतर का अटल विश्वास है जो ईश्वर को ईश्वर बनाता है। यह सत्यम् शिवम् सुंदरम है ।
    जीवन में भगवान को पाने का लक्ष्य बनाना चाहिए अर्थात उसके सात्विक गुण, बुराई से लड़ने की नीति, सभी वर्गों को समान दृष्टि से देखना, अवगुणों का त्याग, मोहमाया को छोड़ना, माता -पिता की सेवा करना आदि गुणों को जीवन में उतारना ।भगवान को पाने के लिए बाह्य आडंबरों को त्याग कर निस्वार्थ भाव से, सहज रूप से जीव मात्र के कल्याण करने की सोच ही भगवान को पाना है
   गुणीजनों ने भी कहा है कि भगवान या वो अनंत शक्ति हमारे भीतर  ही है । उसे बाहर नहीं ढूंढना है ।इस दृष्टि से देखें तो यह लक्ष्य मानव को एक बेहतर इंसान बनाता है और इस का स्वागत करना चाहिए।
        - ड़ा.नीना छिब्बर
           जोधपुर - राजस्थान
जीव वो हमारे शरीर में है, जीवात्मा हमारे शरीर के अंदर है। जीव लौकिक है सांसारिक है। उसके लक्ष्य भी  लौकिक है सांसारिक है। जीवात्मा अलौकिक है सांसारिक से भी परे है।यह ईश्वरीय अंश है। इसके लक्ष भी आलौकिक है। सांसारिकता से परे है। ईश्वर को प्राप्ति के लिए जीवात्मा का ही उद्देश्य है।
लेखक का विचार:-मनुष्य के अंतिम लक्ष्य को पाना मान सकते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
अरे भगवान को पाना यदि जीवन का लक्ष्य हो तो कुच्छ और पाने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है । जब इन्सान जन्म लेता है तो बच्चा होने के कारण उसको अज्ञानी होने की वजह से माफ किया जा सकता है । फिर जब जवानी आती है तो व्यक्ति मद में अन्धा3हो कर भगवान को भूल जाता है ।प्रौढ़ होने पर3व्यक्ति के अन्तर्चक्षु खुल्ने लग्ते हैं तो वो भगवान की ओर उन्मुख होने लगता है धूप बाती शुरु करता है ।
किन्तु जब बुढापा घेर लेता है तो रात दिन भगवान का ध्यान करने लगता है । मौत को सामने देख कर किया गया भागवत ध्यान डर के कारण होता है ।
यदि मनुष्य बचपन से बुढापे तक भगवान का ध्यान करे तो उसमे संतुष्टि और शान्ति स्वमेव जागृत हो जायेगी । 
  -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
       आम लोगों की यही धारणा रही है कि भरपूर धन दौलत, नाम शोहरत, मान इज्जत कमाने में ही जीवन की सार्थकता है। लेकिन यह मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। जीवन का लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना अर्थात अपने आप को जानना है। भाव,विचार, वाणी और क्रिया के साथ एकरूप हो कर जीवन जीना ही समग्रता से जीवन जीना है। समग्रता प्राप्त करना ही जीवन का परम लक्ष्य है। 
         भगवान को पाने के लिए जंगलों में भटकना या सन्यासी होना जरूरी नहीं है। भगवान तो कण-कण में विद्यमान है ।अपने कर्म ,भाव और निरछल व्यवहार से भगवान को पा सकते हैं। धन्ना जाट ने तो पत्थर में ही भगवान के पा लिया था।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
मानव जीवन में ईश्वर प्राप्ति के लिए सदैव जतन करते रहने चाहिए। भगवान को पाने का लक्ष्य मनुष्य को जीवन-पथ पर भटकने नहीं देता और सदैव सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रखता है। ईश्वर निराकार है। साकार रूप में ईश्वर को यदि पाना है तो अपने कर्म और व्यवहार को सदैव मानवीय गुणों से सजाना ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। जिस पर चलते हुए मनुष्य को आध्यात्मिक सकारात्मकता के दर्शन होते हैं और जीवन की यही सकारात्मकता ईश्वर का साकार रूप होती है। 
इसलिए मैं इस बात से सहमत हूँ कि मनुष्य को जीवन में भगवान को पाने का लक्ष्य अवश्य बनाना चाहिए क्योंकि इस लक्ष्य के संकल्प से मानव जीवन दोषरहित रहता है और परम आनन्द की अनुभूति का आभास करते हुए अपने जीवन को सद्मार्ग पर गतिशील रखते हुए सदैव सद्कर्म करता है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
 भगवान को पाने के लिए ही मनुष्य शरीर यात्रा कर रहा है। भगवान जड़ वस्तु में क्रिया सील के रूप में विद्यमान हैं और मनुष्य में ज्ञान स्वरूप में विद्यमान हैं। इसी ज्ञान को पाने के लिए मनुष्य पुनः पुनः जन्म लेता है क्योंकि ज्ञान को पाकर ज्ञान के प्रकाश में जीता हुआ परमानंद को प्राप्त करता है यही मनुष्य का लक्ष्य है जब तक यह लक्ष्य नहीं मिल पाता तब तक मनुष्य इस भवसागर में शरीर यात्रा करता है भगवान हर मनुष्य के अंतरात्मा में ज्ञान स्वरूप में विद्यमान रहते हैं किसी ज्ञान को समझना और ज्ञान के अनुसार आचरण करना और आचरण के अनुसार व्यवहार करते हुए सुख समृद्धि के साथ जीता हुआ सभी के साथ अभय और विश्वास के साथ जीता हुआ अपने को प्रमाणित कर पाता है वही भाग्यवान कहलाता है भाग्यवान व्यक्ति भगवान अर्थात ज्ञान को पाता है ज्ञान ही भगवान है ज्ञान के बिना कोई भी मनुष्य का जीना जड़ के समान है मनुष्य को अगर को लक्ष्य के स्वरूप में पाना है तो ज्ञान को पाना है अतः यही कहा जा सकता है कि भगवान को पाने के लिए जीवन में लक्ष्य बनाना चाहिए।
   - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन का तो कोई न कोई लक्ष्य होना ही चाहिए। निरुद्देश्य जीवन कोई जीवन नहीं है। आज की चर्चा का विषय बहुत गंभीर है। भगवान को पाना कोई कठिन काम नहीं है और बहुत ही कठिन काम है। कुछ लोगों के अनुसार भगवान को पाने के लिए कठिन तपस्या करनी पड़ती है। कुछ लोगों के अनुसार सादा संयमित जीने से ही भगवान की प्राप्ति हो जाती है।
सब काम धाम छोड़कर केवल भगवत प्राप्ति में लग जाएं तो फिर बाकी का काम कौन करेगा। जीवन यापन कैसे होगा। जीवन में कर्म करते हुए भगवान को पाने के लिए कुछ किया जा सकता है।
                कहा जाता है कि हम आत्मा है जो एक ही परम पिता परमात्मा की संतान हैं। धरती पर उन्होंने ही भेजा है।समय पूरा होने पर फिर उन्हीं के पास जाना है। तो फिर अपने पिता को पाने के लिए लक्ष्य की क्या जरूरत है वो तो हमें सहज ही मिल जाएंगे। भगवान धरती पर भेजे हैं कुछ कर्म करने के लिए। उन कर्मों से विमुख होकर यदि हम उनको पाने के लक्ष्य में ही लग जाय तो फिर धरती पर आने से क्या फायदा। जिसके माध्यम से हम धरती पर आते हैं उनके लिए तो हमारा कुछ कर्तव्य बनता है। अगर हम उन्हें छोड़  भगवान को पाने का लक्ष्य बना लें तो उनके प्रति अन्याय होगा। माँ-बाप की सेवा ही भगवान की प्राप्ति है। असहायों की मदद करना भूखों को खाना खिलाना। जरूरत मंदों को वस्त्र देना। संकट की घड़ी में अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी की मदद करना। भगवत प्राप्ति के समान है। यही लक्ष्य होना चाहिए। अलग से कोई लक्ष्य बनाने की जरूरत नहीं। लोककल्याण ही भगवत प्राप्ति है इसे ही लक्ष्य बनाना चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
भगवान् को पाने का जीवन मैं लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए .....ये मेरी व्यक्तिगत राय है
मनुष्य ने मृत्युलोक मेंजन्म लिया है जीने के लिए व अपनी कर्त्तव्य पूर्ण करने के लिए
भगवान् में विश्वास करना ....भगवान में आस्था रखना ..कोई गलत बात नहीं है अपितु जीवन में मनुष्य का सम्बल बढ़ाते हैं पर भगवान् को प्राप्त करने का मार्ग सर्वथा भिन्न है
जीवन जीते हुए व अपनी जिम्मेदारिओं को पूरा करते हुए भगवान् को स्मरण करना व भगवान् की भक्ति करना ठीक है पर भगवान् को प्राप्त करने का जो लक्ष्य बनाते हैं वो मरी राय में कर्तव्य विमुख होते हैं
कर्तव्यों को पूर्ण करना ही भगवान् को पाना है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य होना चाहिए तो मैं कहना चाहूंगा कि हां लक्ष्य होना चाहिए ईश्वर हर चीज में हर वस्तु में विराजमान है उसके होने का एहसास जीवंत होता है ईश्वर की प्रार्थना करने का यह मतलब कदापि नहीं कि हम सब कुछ छोड़कर रात दिन केवल पूजा और पाठ ही करते रहें यह ईश्वर कभी नहीं कहते ईश्वर केवल यह कहते हैं या चाहते हैं कि हम जो कुछ भी करें वह सत्यता इमानदारी और परोपकार व लोकहित की भावना से करें  वास्तव में यह ईश्वर को पाने का सच्चा रास्ता है जहां तक मैंने पढ़ा और समझा तो केवल मुझे यही लगा इससे अच्छा तरीका उसे महसूस करने का कोई दूसरा नहीं है 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
भगवान तो कण-कण में व्याप्त है शरीर में आत्मा में कर्मों में आसपास हर रूप में भगवान व्यक्त हैं उनको पाने का क्या लक्ष्य उनको स्मरण करने की बात अवश्य हो सकती है जिस दिन व्यक्ति यह समझ जाए हर काम ईश्वर के नियति के अनुरूप हो रहा है हम तो एक नायक हैं बुद्धि भी ईश्वर से मिलती है प्रेरणा भी ईश्वर से मिलती है हौसला भी ईश्वर से मिलती है सफलता भी वही देते हैं हम लोग तो इस मायावी संसार सांसारिक दुनिया में एक नायक की तरह हैं जो उनकी मर्जी से घूमते रहते हैं लेकिन समझते हैं कि मैंने किया मैं कहां हूं मैं तो हूं ही नहीं इस ज्ञान को जिस दिन हर इंसान समझ ले उस दिन वाह ईश्वर को पा ले।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
वे सभी इंसान जो भगवान में आस्था रखते हैं, आस्तिक विचारों के हैं, भगवान को जानने की, पाने की इच्छा रखते हैं और उसके लिए अपने अपने तरीके से प्रयास करते हैं। यहां भगवान को पाने का अर्थ यह नहीं है कि वे साक्षात् आपके सामने मिल जायें और आप धन्य हो जायें। भगवान वह शक्ति है जो इस सृष्टि को चला रही है जिसकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। भगवान एक हीरो के समान हैं। जिस प्रकार अनेक लोग फिल्म के हीरो से प्रभावित होकर उस अपने सामने देखने का, पाने का लक्ष्य बनाते हैं, उसी के अनुसार आचरण करने लगते हैं और उनमें से अनेक सफल भी हो जाते हैं। उसी प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान को जानने और पाने की ललक होती है और भगवान में आस्था रखने वाले अपने सत्कर्मों के जरिए भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य बना सकते हैं।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
भगवान को पाने का लक्ष्य तो हर व्यक्ति का होता है। लेकिन इसके लिए भगवान के व्यापक रूप को समझना जरूरी है। बड़े-से-बड़ा अपराधी भी भगवान के मंदिर में सिर झुकाता है। किलो में सोना दान दिया जाता है। 
 यह सब भगवान को पाने के मार्ग नहीं हो सकते। अगर भगवान को पाना है तो पहले उनके द्वारा बताए गए गुणों का अनुसरण करना होगा। उसके लिए हमें सत मार्ग व 'दूसरों की भलाई न भी करें तो बुराई भी न करें' की भावना जीवन में उतारनी होगी।
इन्हीं विचारों को आत्मसात करना भगवान को पाने का रास्ता है। इससे ही मनुष्य जीवन की सफलता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सत्य तो यही है भगवान को पाने का लक्ष्य तो बनाना ही चाहिए परन्तु सबकी अपनी समझ के अनुसार ही यह विषय महत्वपूर्ण होता है क्योंकि मेरी व्यक्तिगत समझ तो यह है कि ईश्वर और भगवान दो अलग-अलग विषय हैं जिन सांसारिक उपक्रमों को पूरा करने के लिए मनुष्य ने भगवान रूपी शक्ति की स्थापना को बढ़ावा दिया है वह कुछ आदर्श बिंदुओं के साथ या तो जन्म लेता है या पलता बड़ा होता है हालाँकि उसे ईश्वर का दूत या अंश कहकर पुकारा जाता है इससे साफ़ है कि ईश्वर जन्म नहीं लेता और कहा जाता है कि वह अजन्मा है सर्वत्र है सर्वव्यापक है फिर तो उसे पाने, खोजने की ज़रूरत नहीं है जबकि निजी जीवन में उच्च आदर्शों को आत्मसात् करने के लिए किसी व्यक्ति विशेष के लिए पाने और खोजने की ज़रूरत अवश्य ही हो सकती है । 
 वैसे भगवान को पाने का लक्ष्य जीवन में इसलिए रखना चाहिए क्योंकि हम उसके चिंतन मनन करने से उसके आदर्शों को अपनाने से अनुसरण करने से जीवन के आनन्द की अनुभूति कर सकते हैं ।संभवतः यही भगवान को पाने का लक्ष्य हो सकता है इसके अलावा अगर किसी अन्य कारण से खोज करनी हो तो मुझे अनभिज्ञता ही प्रकट करनी पड़ेगी । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जीवन में अपने भगवान को पाने के लिए हमेशा लक्ष्य बनाना चाहिए ।ताकि हम अपने जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ सके भगवान की अनुकंपा हमारे ऊपर हमेशा बनी रहे। तब हम अपने जीवन की सफलता को पा सकेंगे। विपरीत कठिनाइयों की परिस्थितियों में हमें भगवान के सहारे की जरूरत पड़ती है भगवान को पाने का लक्ष्य जीवन का एक अद्भुत लक्ष्य होना चाहिए ।इनको पाकर हम सारी सुख सुविधाओं एवं शांतिपूर्ण जीवन का उपयोग कर सकते हैं मन में किसी के प्रति द्वेष घृणा नहीं रखना और अपने निरंतर कार्य में बढ़ना भगवान को पाने का एकमात्र साधन होता है। तथा किसी और का दिल ना दुखाना अपने कार्य के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रक्रिया भगवान के नजदीक ले जाती है ।अपने जीवन की सारी तकलीफ  को अपने अंदर रख कर दूसरों को भी हसीं देना जीवन की एक परंपरा होनी चाहिए ।और भगवान को पाने का लक्ष्य जीवन को निरंतर आगे की ओर ले जाता है। हमें अपनी भावनाओं के साथ साथ सामने वाले की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए तभी भगवान हमें अपने जीवन में प्राप्त होते हैं ।और उनका आशीर्वाद हमारे ऊपर होता है तो हम जिंदगी के सारी कठिनाइयों को पार करके जीवन की सफलताओं को प्राप्त करते हैं भगवान को पाने का जीवन में एक प्रकार का लक्ष्य बहुत ही सार्थक होता है हम अपने जीवन को बहुमूल्य जीवन को बड़े ही आराम से बिता सकते हैं शांति पूर्वक जीवन जीने की परंपरा को हम अपना सकते हैं भगवान को पाने के लिए हमें प्रार्थनाएं और कर्म की आवश्यकता होती है ।दोनों का अनुराग से संबंध होता है अगर दोनों में सामंजस्य स्थापित हो तो भगवान के पाने की लक्ष्य पूरी होती है भगवान को पाने का लक्ष्य जीवन में हमें सदैव बनाना चाहिए
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
सत्कर्म और प्रेम व्यवहार के द्वारा इंसान का व्यक्तित्व निखरता है। मानवीय गुणों का विकास होने से और ईश्वर पर आस्था रखने से व्यक्ति का जीवन सुंदरतम हो जाता है, कलुषित विचारधारा निकल जाती है सद्भावों का उत्थान होता है और  ईश्वर इन्हीं गुणों वालों पर  अपनी कृपा बरसाते हैं ।ईश्वर को प्राप्त करने के लक्ष्य को लेकर चलने से व्यक्ति गलत काम करने से डरता है और सद्गुणों को भक्ति और श्रद्धा के साथ अपनाता चला जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार  ध्रुव और प्रहलाद ने भी भगवान को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाया था और उन्हें प्राप्त भी किया था। मानव मात्र भी ईश्वर को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाकर अपना जीवन सफल बना सकता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
"मंदिर में भगवान गायव, 
मस्जिद से गायव खुदा है, 
इंसानों की भीड़ में खोजा, 
इन्सानियत ही गुमशुदा है"
यह सच है इन्सानियत है यहां भगवान हैं वहां कहने का  मतलब भगवान का रूप इन्सानियत में छुपा हुआ है लेकिन आजकल के जमाने मै् इन्सानियत  गायव होती जा रही है, 
देखा जाए मनुष्य की जिन्दगी अहम बरदान है और यह एक अमुल्य अवसर है परमात्मा  के बारे मों जानने का, 
मनुष्य के जीवन का अर्थपूर्ण तभी होगा जब वह किसी के काम आऐगा। 
अगर वेदों व धर्मशास्त्रों को पढ़ें तो उनके अनुसार इंसान के जीवन का मुख्य लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है कि इंसान भगवान की भक्ति में लीन होकर मोक्ष की प्राप्ति करले जो भगवान की भक्ति से ही हासिल होती है, 
देखा जाए अगर इंसान प्रकृति  के नियं के अनुसार व उसके संतुलुन को समझकर हर कार्य करता है व औरों के लिए भी शुभ शुभ कार्य करता है व जीवन का सही अर्थ समझकर हर कार्य करता है तो भगवान खुद ही उस में वास करेंगे, 
तो आईये आज की चर्चा इसी बात से शूरू करते हैं कि क्या भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य बनाना चाहिए?  
मेरे ख्याल में मनुष्य की जिंदगी का उदेश्य परमात्मा को जानना है और इसके लिए इंसान को भरपूर कोशीश करनी चाहिए व इस  अनमोल जीवन को सही मार्ग में लगा कर परमात्मा को जानना हमारा लक्ष्य होना चाहिए इसके लिए हमें अपने अन्दर शुद्द संस्कार लाने होंगे जिससे हम नेक इंसान बन सकें, 
लेकिन इस संसार में अनेक प्रकार के लोग हैं जो अपनी जिंदगी अपनी सोच के मुताबिक जी रहे हैं हर एक  जिंदगी की दौड़ में शामिल है
आज किसी के पास वक्त नहीं है अपनों के लिए सब बिना सुकून जिंदगी जी रहे हैं परमात्मा के बारे में जानने की बात तो दूर वो परमात्मा को भी शक के  दायरे में रखते हैं, उनके लिए परमात्मा भी कई बन गए हैं अब तो इस बारे में बात होती है कौन सा परमात्मा  महान है क्या यही जीवन है, मेरे ख्याल में जब तक मनुष्य का हृदय पावित्र नहीं होगा तब तक परमात्मा को समझना नमुमकिन है, हमारा हृदय दुसरों की सेवा भाव से ही पावित्र हे सकता है, 
क्योंकी अपने लिए तो स़भी जीते हैं मगर जो दुसरों के लिए जीते हैं वोही  परम परमात्मा के रूप में जाने जाते हैं इसलिए भगवान को पाने के  लक्ष्य तभी कामयाव होगा कुछ बातों पर गौर से ध्यान देंगे जैसे, 
इस तरह न कमाओ की पाप हो जाए, इस तरह न खर्च करो की कर्ज हो जाए, इस तरह न खाओ की मर्ज हे जाए व इस तरह न वोलो की कलेश हो जाए इत्यादी लेकिन आजकल का मनुष्य इनके विपरीत चल रहा है जिससे  भगवान जी के लक्ष्य तक पहुंचना असंभव हो रहा है लेकिन मनुष्य जीवन एक अमुल्य उपहार है जिससे हम भगवान को पाकर माोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, 
अन्त में यही कहुंगा हम सब परमात्मा का ही एक अंश हैं जिसे आत्मा कहा गया है जो आखिर में परमात्मा के साथ ही जुड़ जाऐगी किन्तु हमें फल हमारे कर्मों के अनुसार ही भुगतना पड़ेगा तो क्यों न हम ऐसा जीवन जींए जिससे किसी को तनिक भी दुख न पहुंच सके व हम कुसंगति से बचाव करते हुए अपना आतमज्ञान करके मोक्ष की प्राप्ति करके  परमात्मा का ही एक शुभ अंश बने रहें ऐसा करने से हम भगवान को पाने का लक्ष्य अवश्य हासिल कर सकते हैं, 
सच कहा है, 
कुछ पाने का जूनून है, इसलिए हर रोज कोशिश करता हुं, 
एक रास्ता बंद हुआ तो क्या, मैं उठकर नए रास्ते की खोज करता हुं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब एक दिन हम इस संसार में आए हैं और अंत में ईश्वर के पास ही पहुंचना है तो फिर भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य की कोई आवश्यकता नहीं। शास्त्रों में वर्णित ऋषि मुनियों की वाणी देववाणी है यदि मनुष्य भगवान के इन बताएं अनुसार समस्त गुणों को जीवन में ग्रहण करता हुआ जीवन यापन करता है तो यह ईश प्राप्ति का स्वयं सिद्ध लक्ष्य है क्योंकि 'ईश्वर अंश जीव अविनाशी"।
         लक्ष्य तो अप्राप्त एवं अनुपलब्ध के प्रति बनाया जाता है।बस भगवान तो मनुष्य की  हर अवस्थाओं में कर्मकांड की अपेक्षा कर्तव्य पालन पर बल देते हैं ।हर क्षण हर कार्य करते समय ऐसा लगना चाहिए कि वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सच्चिदानंद स्वरूप मुझे देख रहा है। हमारे सारे कार्य उस ईश्वर को ही समर्पित होने चाहिए।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
भगवान को पाने का जीवन में लक्ष्य बनाना ही चाहिए क्योंकि इससे "एकै साधे, सब सधे" वाली कहावत भी चरित्रार्थ होगी याने कि इस लक्ष्य के बनाने से जो पथ तय होगा वह सत्कर्म का ही होगा और सत्कर्म पारिवारिक, सामाजिक एवं व्यवहारिक जीवन को सुखद, सौहार्दपूर्ण व सामंजस्य बनाने में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। जीवन के उद्देश्य को सार्थकता देंगे... और भगवान को पाने के लक्ष्य को सहज,सरल करेंगे।
अस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मनुष्य अपने जीवन में एक दिन कभी-न-कभी यह जरूर चाहता है कि प्रभु मिल जाएँ । अर्थात् भगवान को पाने की इच्छा तो हर मानव  के अंतर्मन में दबा होता ही है । 
मेरे विचार से यदि कोई जीवन में ईश्वर को पाने का लक्ष्य बनाता है तो कोई बुरा नहीं है । क्योंकि लक्ष्य चाहे कोई भी हो, सभी सही है यदि व्यक्ति सन्मार्ग से चलकर प्राप्त करने का लक्ष्य रखता हो । साथ में अपनी जिम्मेदारी, कर्तव्य ईमानदारी पूर्वक निभाते हुए चल रहा हो ।
ये नहीं कि 'मुख में राम बगल में छूड़ी' वाली कहावत अपनाते हुए चले ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " भगवान आज तक किसी को प्राप्त नहीं हुये हैं । महात्मा बुद्ध कहते है कि मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ है । परन्तु भगवान नहीं मिलें है । यहीं जीवन का सत्य है । जिसे हर किसी को जानना चाहिए ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?