साप्ताहिक कार्यक्रम : रोटी
जैमिनी अकादमी द्वारा साप्ताहिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है । जो फेसबुक द्वारा पेश किया है । सम्मान पत्र के साथ कविता को भी दिया गया है । जो इस प्रकार है : -
रोटी का महत्व
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रोटी का सम्बन्ध
सदियों से है मानव से
उसके अस्तित्व
शरीर धारण से
जीवन मरण से
सुख दुख से
पेट की आग
उसके भरने
उसके लिए
क्या क्या न करा देने
वफादार को गद्दार
भूख के लिए
परिभाषाएं बदल जाने तक,
भूख कैसी कितने प्रकार की
बतलाना भले ही कठिन
परन्तु
खानदानी नानवाई
छप्पन प्रकार की बना देता
कोई कोई तो
कुएं में बना देता
पर
आजकल राजनीति में भी
रोटियां सिंकती हैं
समाज में
लोभ लालच की
तन मन शान्त करने के लिए
रोटियां
कुछ कहो
रोटी रोटी है
उसका अपना अस्तित्व है
अपना महत्व भी
यह स्वीकार्यता
एक के लिए नहीं
सभी के लिए आवश्यक है।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
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दुनिया की सबसे जरूरी नियामत है रोटी
जिसे भर पेट मिल जाए
वही खुशनसीब है
वरना रोटी के लिए
दिन रात न जाने
कितने ही पापड़ बेलने पड़ते हैं
न जाने कितनी लंबी लंबी उड़ाने भरकर
मीलों दूरियां नापनी पड़ती हैं ।
इसकी तलाश में देश प्रदेश वक्त बेवक्त
सबका भेद मिट जाता है
मान स्वाभिमान भी गिरवी रखना पड़ता है
कभी कभी
बेशक दुनिया की सबसे बड़ा सुकून है रोटी
इसके आगे हरेक सुकून
बेस्वाद और फीका है ।
मगर हाथ पसारने की बजाय
पसीना निचोड़ कर पकाई रोटियों का
सुगंध और स्वाद में
दुनिया में कोई सानी नहीं है ।
- अशोक दर्द
डलहौज़ी - हिमाचल प्रदेश
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रोटी
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दुनिया हो आ रही है बहुत छोटी
देश -विदेश में समाई है सिर्फ रोटी
मेहनत के रूप है अलग-अलग सभी के
रोटी की खातिर ही जमा रहे सभी अपनी गोटी।
कविताओं में अक्सर रोज ही ढलती है रोटी
कभी मोटी कभी पतली रूप धरती है रोटी
किस्से -कहानियों में महकती चली आ रही है
चाँद पाने जैसी कठिन और पृथ्वी सी सहज है रोटी।
किसानों की मेहनत, धरती का धीरज
गेहूँ की बाली में छुपा है रोटी का सूरज
भोजन की थाली का अभिमान है रोटी
कृष्ण - कौआ की कहानी में समाया रोटी का
अचरज।
- आभा दवे
मुंबई - महाराष्ट्र
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रोटी तेरी दुनिया अजब
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रोटी तेरी दुनिया अजब,
रंग दिखाये गजब-गजब।
तुझको पाने की चाह में,
इन्सान करे अनेक करतब।।
चीत्कार भरता पेट तब,
भूख से व्याकुल हो जब।
कोई रोटी पा जाता है,
किसी को भूखा रखता रब।।
रोटी तेरे अनेकानेक प्रकार,
कुछ रोटी होती हैं विकार।
रोटी जब बन जाती है हवस,
खा जाती है मनुष्य के आचार।।
पेट की भूख अगर दी है ईश्वर ने,
साधन भी क्षुधा तृप्ति के किये हैं।
जो रोटी स्वयं पैदा करे मनुज,
उसने संतोष के फल दिये हैं।।
इच्छा, लोभ-लालच, स्वार्थ,
कुमार्ग से रोटी पाने की।
भूख ना मिटाए ऐसी रोटी,
गिराती है नजरों में जमाने की।।
माना रोटी की दुनिया अजब है,
पर रोटी के पीछे कोई सबब है।
रोटी ने परेशां किया जग को सदा,
पर रोटी ही जीवन का करम है।।
रोटी की जरूरत है हर मानव को,
पर मेहनत की रोटी सबसे भली।
रोटी ना बने अपयश का कारण,
बात यही मनुज है सबसे भली ।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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रोटी
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रोटी की खातिर मानव भटक रहा
न जाने कौन कौन सा दुख सहा
भूखे पेट मानव जी नहीं पाता
दिन रात कमाने की होड़ में रहता
दो वक्त खाने के लिए भागम-भाग
हुआ रहता मानव इसी दौड़ मे हताश
पसीना बहा कर भी रोटी जुटा न पाए
अमीर बैठे बैठे दुगुना धन कमाए
अमीरी-गरीबी का पाट बढ़ता जा रहा
गरीब का परिवार भूख से मरता जा रहा
अन्नदाता भी कर्जे के बोझ तले दबा
प्रति दिन आत्म हत्या की राह पे चला
रोटी की खातिर प्रवास बहुत बढ़ा
नौजवान विदेशों की ओर भाग चला
भगवान!सभी को दो वक्त रोटी मिले
दुनिया में कोई भी भूखा न सोये।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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रोटी
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रोटी,मात्र रोटी नहीं,
उसमें बसी होती है,
मजदूर किसान के
श्रम की गंध,
धरा की सहनशीलता,
आटा पीसने वाली
चक्की की उर्जा,
रोटियां बनाने वाले
मन की प्रेम भावना,
और इन सबसे बढ़कर
होती है ईश कृपा,
जो करती है
हमारा पोषण।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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रोटी की तलाश में
पीछे छोड़ घर बार आया
बरगद का छाँव छोड़
नून रोटी का स्वाद भूल आया।
हर रोज़ मरता हूँ ,भूखा सोता हूँ
पानी पीकर पेट भरता हूँ
झूठ बोलकर घरवालों से,
भरी थाली की तस्वीर भेजता हूँ ।
कप प्लेट धोकर गुज़ारा करता हूँ
रोटी के ख़ातिर दिन रात खटता हूँ
पाई पाई गुल्लक का पेट भरकर,
पेड़ पर टंगे सपनों को देखता हूँ।
क्षुदा का मोल ,स्वेद कण से चुकाकर
भरता भंडार ,खेतों में सोना उगाकर
लहलहाते हरीतिमा की आभा से
चखता था निवाला गाँव में रहकर।
माँ के हाथों का स्वाद भूल गया हूँ
आती नहीं ख़ुशबू अब रसोई से
जहाँ दंभ में झटक देता था
ज़रा सी जली रोटी पत्नी की
क़ीमत उस चंदा सी रोटी का
परदेश में समझने लगा हूँ।
सविता गुप्ता
राँची-झारखंड
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रोटी
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रोटी गोल हो या चपटी,
भरती खाली पेट है।
मानो ऊर्जा का अन्तिम स्रोत,
नींद लमलेट है।
पेट भरने के बाद,
रोटी बनती लोगों का सहारा।
खुरचते दूसरे के हिस्से की रोटी,
बनकर चतुर चालाक बंजारा।
दूसरे के तवे पर सेकते रोटी,
नेताजी रोटी को बनाकर गोटी।
खेलते शतरंज के मोहरे की तरह।
रोटी से चलता रोजगार - व्यापार।
सब रोटी खाने पाने और लपकने को तैयार।
नरेन्द्र सिंह नीहार
नई दिल्ली
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रोटी
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अच्छे लगते हैं
जीवन के रंग
पर
भूखे पेट नही
रोटी के संग
सुबह से शाम
यहाँ से वहाँ
पर
हर एक कदम
रोटी है जहाँ
चाँद सूरज सी
गोल वृत्ताकार
पर
मोटी पतली
भिन्न आकार
ग़रीब अमीर
सारे लोग
पर
एक समान
रोटी के भोग
सबका रिश्ता
रोटी के साथ
बस
रोटी हो हाथ
हे जगन्नाथ
-डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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रोटी की कविता
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सुबह, दिन
और रात के बाद भी
आवश्यकता होने पर
रचती है औरत
रोटी की कविता
भर-भर परोसती
देती है थाली
खाने वालों की तृप्ति में
पाती सुख
पर अपनी ही रचना के
स्पर्श के वंचित/अतृप्त
रचने में लीन रहती है
रोटी की कविता
समाज की दृष्टि में
अखंड/शाश्वत
यही उसका धर्म है,
पर उससे कोई
नहीं पूछता
वह क्या
चाहती/सोचती है।
- डॉ भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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रोटी कमाने को
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रोटी कमाने को फ़क़त
कौन यहां पसीना है बहाता?
मोटे लेंस के चश्मे में
मिचमिची आंखों से
टटोल थैला, घरघराता
बेचता वो टाफियां
प्लेटफार्म पर, गाड़ियों में
गलियों और चौबारों में,
झुकी कमरिया लाठी टेकता
बुढ़ापे में रोटी कमाए
रोटी तो मिल जाएगी पर
अद्धा खरीदने को ही तो वो
पसीना है बहाता,
रोटी कमाने को ----
पिचके से गालों वाला
श्यामवर्णी जनाना मर्द
गाली बकता ताली पीटता
चीख चीख कर भजन सुनाता
हाथ फैलाता शान से
इनकार कर दोगे तो
शापित कर जाएगा पुश्तें
सुबह सवेरे देसी पीकर
प्रकृति के अन्याय को
कड़वाहट में घोल कर
वहशी दरिंदों के सामने
देह भी है परोसता
रोटी कमाने को----
पंच सितारा संस्कृति में जीते
नई नवेली कारें बदलते
महँगे होटलों में वो खाते
ऊंचे महलों में वो बसते
ऊंची कुर्सियों पर वो बैठे
टेबल के नीचे से नोट पकड़ते,
भोगवाद के दलदल में
आदमी धंसता है जाता
रोटी कमाने को फ़क़त
कौन यहां पसीना है बहाता ?
- डॉ अंजु दुआ जैमिनी
फरीदाबाद - हरियाणा
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आम आदमी
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उसे( आम आदमी) चांद से कुछ नहीं लेना देना,
उसे सूरज से कुछ नहीं वास्ता,
टेढ़ा-मेढ़ा है उसका सफर उबड़-खाबड़ है उसका रास्ता
मगर उसे फिर भी चलना है,
चांद के साथ ढलना है,
सूरज के साथ निकलना है,
क्योंकि उसे दो जून भरपेट रोटियां दरकार हैं।
रोटियां ही उसका प्रजातंत्र है।
रोटियां ही उसकी सरकार है।।
- देवेन्द्र दत्त तूफान
पानीपत - हरियाणा
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रोटी
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रोटी की खातिर
अपने दूर बसे हैं
क्या क्या न जुल्म सहे
इस रोटी के कारण
बहाया खून पसीना
पापी पेट की खातिर
वन बिलाव ले भाग्यो
राणा का हृदय सिसक उठा
स्वाभिमान की रोटी
झुके नहीं राणा
ईमानदारी की रोटी
तो कहीं लोभ -लालच
की रोटी
सिकती देखि है भैया,
राजनीति की रोटी
पापी पेट की खातिर
नाच नचाये रोटी
चंदा जैसी रोटी
बच्चों को बड़ी लुभाती
गोल गोल वह घूमे
पृथ्वी जैसी है घुमाती l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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