साप्ताहिक कार्यक्रम : मां गंगा
जैमिनी अकादमी द्वारा इस बार साप्ताहिक कार्यक्रम " मां गंगा " पर रखा गया है । जो विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । अच्छी व सार्थक कविताओं के कवियों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है । सम्मान भी आचार्य सत्यपुरी नाहनवी के नाम से रखा गया है । जो हिमाचल प्रदेश की जानी मानी कवित्री रही है । उन की कविताओं का आनंद आज भी लिया जा सकता है । अब सम्मान के साथ कविता का भी आनंद ले : -
भगवान शिव की जब गंगा नदी के हालात पर नजर पड़ती है तो वे अचानक एक कार्यक्रम में अपने भक्तों को समझाने आते हैं और कहते हैं।
मेरे प्रिय भक्तों मुझे देख कर चौंक गए ?
मेरे यहाँ आने का एक उद्देश्य है।
वह उद्देश्य क्या है मैं तुम सबको बताता हूँ।
चौपाई
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सर से मेरे गंगा निकली।
कितनी थी ये उजली उजली।
इसकी हालत क्या कर दी है।
हर दिन ये मैली दिखती है।
कूड़ा इसमें तुम मत डालो।
कर के साफ इसे संभालो।
अगर करोगे इसको गंदा।
गायब हो जाएगी गङ्गा।
जिस प्रकार आप सब मुझे प्रिय है उसी प्रकार गंगा भी मुझे प्रिय है।
गंगा नदी को साफ रखें और इसे विलुप्त होने से बचायें।
इसी में मुझे अत्यंत प्रसन्नता मिलेगी।
- कमल पुरोहित
कलकत्ता - प. बंगाल
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होसलों के साथ
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शीतल गंगा की धार....
पथ पर बढती हर पल
करती कल कल अविरल
जीवन के रंगो का देती संन्देश
बढते चलो जीवन पथ पर
कठिनाईयों मे भी
ना डगमगाएं कदम
कर्मपथ पर
चल हर पल अविरल
पथ पर बढो आत्मविश्वास से
बनाते रहो पथ को सरल
जीवन के नाना रंगो को समेटते
नव जीवन सृजन करना .....
बढतें रहना हौसलों के साथ ।
- बबिता कंसल
दिल्ली
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माँ गंगा
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ब्रह्मा की पुत्री महादेव शंकर की जटा पर विराजे
धरा पर उसकी निर्मल शोभा साजे
पर्वत हिमालय की वो तो चहेती बंगाल की खाड़ी उसकी प्रीति
राजा की विनती से आई धरा पर स्वागत हुआ बजे गाजे-बाजे।
भारत की भूमि को सदियों से पावन कर रही
अपने स्नेह से उसे वह सदा भर रही
पापियों का पाप धो कर भी है निर्मल
अपने सौंदर्य में भी देवी माँ का रूप धर रही।
माँ गंगा नदी अपने में सभी नदियाँ हैं समाती
घर और वन में जन-जन को सुखी बनाती
मरण में भी हो लेती संग सभी के
आस्था की डोर पकड़ लहर - लहर लहराती
जै गंगा मैया की गूंज विश्व को सहलाती
अपने होने का एहसास सभी को कराती ।
- आभा दवे
मुंबई - महाराष्ट्र
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मतवाली मां गंगा
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मतवाली माँ गंगा
बलखाती माँ गंगा
गोद हिमालय खेली गंगा
भागीरथ के तप का फल है
महादेव ने तुझे सँवारा
पल -पल निर्मल बहे है गंगा
मतवाली ये गंगा
अनंत कथा है लहरों के उर
सूखी धरती है लहराये
जहाँ जहाँ तू जाये है गंगा
तीरथ सारे तेरे द्वारे
बलखाती माँ गंगा
तेरे पावन तट पर मानव
पापों से तर जाये,हे गंगा
मोक्ष प्रदायिनी जय माँ गंगा
स्तुति करते माँ तेरी गंगा
हर हर गंगे जय माँ
गंगा सागर तुझे बुलाता
रुक न पाती अविरल बहती
सागर की बाहें उसे बुलाती
हर बाधा को लाँघ के चलती
मतवाली माँ गंगा
घाटी वन उपवन का
नित करती अभिसार
धरती के कण कण को
करती माँ प्यार मधुर
मतवाली माँ गंगा
बलखाती माँ गंगा
जल अमृत माँ गंगा
लहराती चल माँ गंगा
- डॉ. छाया शर्मा, अजमेर
राजस्थान
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गंगा का गुणगान
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वर्णित वेदों में सदा, गंगा का गुणगान
भागीरथी के तप से, वसुन्धरा हुई महान।।
जटा शोभे शंकर के, माथे विराजमान
उतरी जन कल्याण हित, धरा पर माँ समान ।।
चरण इसके जहाँ पड़े, पावन पुनीत धाम
श्रद्धा सैलाब उमड़ता, कुंभ बना आयाम ।।
काया जीवित है अभी, कल होगी निष्प्राण
मंदाकिनी देवनदी, सबका करे कल्याण।।
तीरथ बार-बार सभी, कहे सागर पुकार
लेलो तुम डुबकी अभी, आकर सब परिवार।।
- कल्याणी झा कनक
राँची, झारखंड
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जय जय मां गंगे
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जगत जननी गंगा को
प्रणाम करके
मैं आत्मीय रूप से
शुद्ध हो जाता हूँ
जगत माँ गंगा के दर्शन करके
मैं मोक्ष की अनुभूति
करने लगता हूँ
जगत जननी माँ गंगा में
डुबकी लगाकर मैं
स्वर्ग समान पवित्र हो जाता हूँ
माँ गंगा सारी धरती की माँ है
सारे जगत की माँ है
सभी प्राणी जगत की माँ है
माँ गंगा ने हम सब को
पाला पोषा धन्य किया
बड़ा किया
और विरासत में हमें
महान संस्कृतियाँ प्रदान की
जगत जननी गंगा
तुम सब का उद्धार करती हो
सबका बेड़ा पार करती हो
मुझे भी आशीष दो
कि मैं तुम्हारे
पवित्र अमृत समान जल में
स्वयं को डुबोकर
धन्य हो जाऊं
- राजकुमार निजात
सिरसा - हरियाणा
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गंगा
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स्वर्ग से आई है एक खबर
पछता रहें हैं भगीरथ
गंगा को धरा पर लाकर
कैलाश पर्वत से आई है ये खबर
पछता रहें हैं शिवशंकर
अपनी जटा को खोलकर
ब्रह्मलोक से आई है एक खबर
पछता रहें हैं ब्रह्मा
अपने कमंडल से गंगा निकालकर
हिमालय से आई है एक खबर
पछता रही है गंगोत्री
गंगा को अपने घर से निकाल कर
पर्वत मालाओं से आई है ये खबर
पछता रहें हैं पर्वत
गंगा को आगे जाने का रास्ता देकर
गंगासागर से आई है एक खबर
पछता रहें हैं मुनिवर कपिलमुनि
सगर पुत्रों को शाप देकर
गंगा की लहरों से आई है ये खबर
पछता रही स्वयं गंगा
पतित पावनी होकर
धरती पर खबर कब आयेगी
मानव कब पछतायेगा
"दीनेश" अपनी गलती मानकर
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
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हे गंगा मैया
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हे गंगा मैया हे पावन मैया
भवबारिधी सुरसरि मेरी मैया
उदधारिणी अतिहि सुदृढ़ माता
तारिणी पापी सकल सुख दाता
इंसा पशु पक्षी , गति तुझसे पायें
खुद में समाये हमारी अस्थियां-----हे गंगा मैया
ब्रह्म विष्णु और महेश भी गायें
तेरी अमरता तिहूलोक उचारे
हर-हर गंगे जन जो उच्चारे
उनको परम धाम देती तु मैया-----हे गंगा मैया
माता दयालु हो किरपा कीजे
स्नेह सुधा की बारिश कीजै
जैसे,...भी है-हम है तिहारे
दोष भुला सबको दे दे खुशियां----हे गंगा मैया
भागीरथी कहलाती तु माता
आवाहन पर उनके आ गई माता
विस्तार इतना किसी का ना जग में
बहती पूरे विश्व में गंगा मैया
गोमुख से बंगाल तक बहती जाए
काशी बनारस इलाहाबाद आए
भारत के हर गंगा घाट पे दिखते
साधु पंडे गाते भजन गंगा मा के
हे मानव देखो अब तो तुम जागो
गंगा प्रदूषण के परिणाम आंको
अब हर नदी को स्वच्छ रकेंगे
लेते हैं हम सब कसम मेरी मैया
- शुभा शुक्ला निशा
रायपुर - छ्तीसगढ़
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गंगा मैया
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पतित पावनी गंगे मैया, करते तेरा हमअभिनंदन।
तव चरणों में कोटि कोटि, करते मैया हम वन्दन।।
तप किया था भगीरथ ने जब,
तब धरती पर आयी थी।
इस धरा पर आने से पहले,
शिव जटा में समायी थी।
तेरे रूप का करते मैया,हम सब मिलकर आराधन।
पतित पावनी गंगे मैया, करते तेरा हम अभिनंदन।।
अमृत समझो तेरा जल मैया,
शीतल पावन-पावन।
रोग शोक सब दूर करे यह,
सबका ही मनभावन है।
अन्तर्मन निर्मल हो जाता,करे जो तेरा आचमन।
पतित पावनी गंगे मैया,करते तेरा हम अभिनंदन।।
प्यास बुझाती इस धरती की,
जन-जन का उपकार करे।
जो भी तेरी शरण में आये,
उसका तू उद्धार करे।
श्रद्धा और भक्ति के माता, करते भाव हम अर्पण।
पतित पावनी गंगे मैया, करते तेरा हम अभिनंदन।।
- डा. साधना तोमर
बड़ौत (बागपत) - उत्तर प्रदेश
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मां गंगा
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उच्चारण ही मानो देता है संबल
लगता है दूर होंगे कष्ट
मिलेगा बहुत कुछ
जिसे हम ढूंढ रहे हैं मिलेगी
वह शांति इसी आस में तो
हम सब जाते हैं
मां गंगा के पास
और मैला कर रहे हैं उसकी देह
अपने पापों को धो लेने की लालसा में
अपने लालच की लप-लपती जीभ
से भर रहे हैं उसमें असंख्य
रसायन तमाम तरह का
कूड़ा करकट और भी न जाने क्या-क्या
परंतु गजब है ना आदमी का विश्वास भी
फिर भी है कामना की मां गंगा
करती रहेगी हम सबको निर्मल
परंतु कब तक आखिर कब तक
कब सुधरेंगे हम कब सोचेंगे
हम कि कष्ट होता होगा
उसको भी उन सब चीजों से
जो नहीं डालनी चाहिए
उसके निर्मल जल में
उसमें रहने वाले जलीय जीव
कष्ट पाते होंगे ना
उन हानिकारक रसायनों से
उस सीवेज के जल से जो कहीं ना कहीं उसके यात्रापथ में मिल रहा है
उसके निर्मल स्वच्छ जल में
बना रहा है उसे अशुद्ध
यदि है इतनी अगाध श्रद्धा
मां गंगा मिटाती है कष्ट हम सब के
तो क्यों कर रहे हैं हम उसके साथ
अन्याय क्यों मिला रहे हैं हम
उस जल में अपशिष्ट सोचो
आखिर कब तक यह सब
सहेगी मां गंगा
कम हो रही है आक्सीजन उस जल में
घुट रहा है दम कहीं कहीं कुछ जल का भी क्या हमें अंदाजा है उस गंगा के दुख का
जिसे हम कहते हैं
मां गंगा
- डा0 प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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मां गंगा
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तुम्हारी भी माया निराली है,
जटा से निकली मैया,
सबको खूब प्यारी है,
पाक है पवित्र है,
कोई हरिद्वार जाकर डुबकी लगाता,
तो कोई भरकर कलश ,
घर अपने ही ले आता ,
तुमने किया सबका भला,
हर उम्मीद का ख्याल रखा,
सबकी आस्था को परिपक्व किया,
हर हर गंगे सभी करते हैं,
विभिन्न रूपों में तुमको पूजते,
धार्मिक अनुष्ठान तुम पूर्ण न होते,
तुम्ही को सब पूछते,
तुम निर्मल यों ही बहती रहना,
हमारी आस्था में जीवंत रहना,
हे मां गंगा तुम ऐसे ही,
अपनी कृपादृष्टि सभी पर बनाए रखना।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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गंगा का आँचल
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गोमुख के हिमाच्छादित जटाओं से,
अवतरित मेरी काया गंगोत्री की।
पहाड़ी रास्ते से उतरती वेग से बहती,
मैं अलकनंदा, मंदाकिनी कहलाती।
हर की पौड़ी में मिल निर्मल पावन सी,
कल -कल बहती पवित्र गंगा कहलाती।
खाते सौगंध माँ गंगा के धारा की,
पूजते चूनर चढ़ाते मेरे किनारे पर।
अथक प्रयास करती माँ गंगा ,
निरंतर बहती धारों संग जुझती।
बंट जाती अनगिनत टुकड़ों में,
शांत,सुस्त पड़ जाती मार्गों में।
फिर लग जाता ग्रहण माँ गंगे को,
सँकरी लकीरों में नाले में बहती।
पाक जल खो देती है वजूद अपनी,
सूखी गंदी झाग भरी बदबू से घिरी।
चित्कारती कर लो मुझको संचित ,
मटमैला आँचल को सुरक्षित।
अविरलता लौटा बूँद बूँद करो संग्रहित ,
गोद मेरी पवित्र कर जीवन करो हर्षित।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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गंगा मइया
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अमृत है तेरा निर्मल जल
हे! पावन गंगा मइया ।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।
मां सब के पाप मिटा दो
हे! पापनाशिनी मइया ।
अब सारे क्लेश मिटा दो
हे! पतित पावनी मइया ।
भागीरथ के तप बल से
तुम आई धरणि पर मइया।
शिवशंकर के जटा जूट से
प्रगट हुई थी मइया ।
हे !जान्हवी हे! मोक्षदायिनी
अब पार लगा दो नइया।
सगरसुतों को तारण वाली
भव पार लगा दो मइया ।
इस धरती पर खुशहाली
तुमसे ही गंगे मइया।
आंचल तेरे जीना मरना
हम सबका होवे मइया।
मां शरण तुम्हारी आयी
हे! मुक्तिदायिनी मइया ।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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भारत की पहचान
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गंगा के सद् गुणों का, करते वैद्य बखान ।
वात पित्त कफ रोग में, गुणकारी जलपान ।।
अवसर जो पाओ कभी, अनुभव करिये आप ।
गंगा जल में नहा कर, मिटे तिजारी ताप ।।
गंगा गीता गाय हैं, भारत की पहचान ।
तीनों अद्भुत कृतियाँ, देवों का वरदान ।।
डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर बिजनौर उ०प्र०
गंगा के तट पर बसें, दिन दो दिन को गाँव ।
खिचड़ी दही अचार खा, सैर करें चढ़ नाव ।।
गंगा गोमुख से निकल, पहुँच गई बंगाल ।
दो देशों को सींचकर, करती मालामाल ।।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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माँ गंगा
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माँ गंगा पतित पावनी है
माँ गंगा सुख दायिनी है।।
अवतरित हुई भूतल पथ पर
अविरल जल वेग समाहित कर
माँ गंगा मुक्तिदायिनी है
माँ गंगा पतित पावनी है।।
शिव शीश सजी निर्मल धारा
बह चली बनी अविरल धारा
माँ गंगा पाप नाशिनी है
माँ गंगा पतित पावनी है।।
निर्जन वन हरित बनाने को
शीतल मन त्वरित सजाने को
माँ गंगा शक्ति दायिनी है
माँ गंगा पतित पावनी है।।
उद्धार किया जन जीवन का
संचार किया नव जीवन का
माँ गंगा अभय दायिनी है
माँ गंगा पतित पावनी है ।।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
फ़रीदाबाद - हरियाणा
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मां गंगा
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झलमल झलमल गंगा जल
दीप जले पावन निर्मल ।
उतरी सांझ उनींदे जल में
पावन थल का स्वर्णिम घाट
फिरी चहुंदिसि मृदुल शंखध्वनि
मानव मन का दिव्य हाट ।
लिए करों में कई विप्रवर
जाज्वल्यमान महकी ज्वाला
करें आरती सुरसरि तट पर
देदीप्यमान दहकी माला ।
जितनी तट पर उतनी जल में
दूनी अग्नि शिखा जलती
ज्यों प्रकाश गंगा बहती हो
देवों की दीवाली मनती ।
देवगणों के बीच खड़े हों
ऐसा होता भास यहां
मानवता अध्यात्म बनी हो
पावनता आकाश जहां ।
झलमल झलमल गंगा जल
दीप जले पावन निर्मल ।
- महेंद्र जोशी
नोएडा - उत्तर प्रदेश
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गंगा मैया
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विष्णु पद के स्वेद कणों में गंगा मैया तेरी कहानी।
बह्म लोक राधा कृष्ण रास नृत्य में बने दोनों पानी।।
बह्म ने अपने कमंडल लिए सृष्टि की नव रचना संभाली।
स्वर्ग में सबका कल्याण करती रही लेकर रवानगी।।
भागीरथ ने श्रापित सगर पुत्रों की मुक्ति लिए तपस्या कर डाली।
भोले की जटाओं की कर सवारी पृथ्वी पर सबकी मुक्ति कर डाली।।
गंगा मैया तूने सबको मुक्त कर दिया डूबकी जिसने लगा डाली।
गंगा तेरा पानी अमृत सबके जीवन में भर देता नयी रवानी।।
मानव ने फैलायी पानी में गंदगी प्रकृति ने साफ़ कर डाली।
गंगा मैया हरदम सबके पाप धोती करती रहती सबकी रखवाली।।
मृतक की अस्थियों को कर अपने अंदर मुक्ति दे डालती।
तभी तो मैया तू पावन पवित्र मोक्षदायिनी बनके सबको महकाती।।
- हीरा सिंह कौशल
मंडी - हिमाचल प्रदेश
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माँ गंगा
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माँ गंगा प्रतीक हैं,
हमारी सभ्यता की,
गंगा मात्र जल प्रवाह नहीं,
वरन हमारे सांस्कृतिक, धार्मिक और सभ्यता का आधार है।
गंगा हमारे सनातन विकास का आधार है,
गंगा की निर्मलता,
धीरे-धीरे हो रही विनष्ट,
क्योंकि उसका प्रवाह हो जाता बाधित,
पर्यावरणीय प्रवाह नष्ट होते जा रहे दिन प्रतिदिन,
कंपनियों द्वारा की जाने वाली कमाई,
सिंचाई, बांध, बिजली की परियोजनाएं,
सबसे बड़ी रुकावट हैं उसके अविरल प्रवाह में,
खानों से निकलने वाले दूषित जहरीले रसायनों का गंगा में निष्कासन प्रतिदिन,
यह कैसा विकास?
जिसमें छिपा है सर्वनाश,
हो रहा बड़े पैमाने पर,
गंगा घाटी में कटाव,
उस पर अतिक्रमण और भूजल का शोषण,
गंगा के जल प्रवाह क्षेत्र का दोहन/शोषण,
अवैध खनन और जंगलों की कटाई,
यही तो कारक हैं,
गंगा क्षेत्र में उत्पन्न हुए,
जलवायु परिवर्तन के लिए,
जो कभी अतिवृष्टि पैदा कर,
कारण बनता है महाप्रलय का,
तो कभी वह जल विहीन हो जाता है।
आवश्यकता है!
हम गंगा को सहेजें!
प्रदूषण मुक्त करें!
प्रवाहमान बनायें उसके निरंतर प्रवाह को!
इस तरह हम गंगा को अक्ष्क्षुण बनायें।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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गंगा धारा
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अविरल निर्मल बहे गंगा धारा
पूजे जिसे है संसार सारा ।
जिसे देवता और मानव ने पूजा
भागीरथ ने जप तप से उसको उतारा ॥
अविरल निर्मल बहे गंगा धारा - - - - - - -
वो बहती रही तेज और वेग से
जिसे शिव ने अपनी जटाओ में धारा ।
उसे पूजता है संसार सारा
सगरपुत्रो को है भव से उतारा ॥
अविरल निर्मल बहे गंगा धारा - -- - - --- --
तेरी गोद माँ डूबकी लगाऊं
चरण रज छूकर पावन हो जाऊं ।
हरिद्वार मे है सुंदर नजारा
हरि की है नगरी गंगा किनारा
अविरल निर्मल बहे गंगा धारा
पूजे जिसे है संसार सारा । ।
- नीमा शर्मा 'हँसमुख '
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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मैं गंगा!
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मैं
गंगा
जानते हैं सभी
बहती आई हूँ
सदियों से
अपनों के लिए
इस पावन धरा पर
अलग-अलग रूप लिए
अलग-अलग नाम से
उमड़ता है एक प्रश्न
मथता है मनो-मस्तिष्क
मेरे अपने
मेरे अस्तित्व को
बचाए रखने को बनाई योजनाएँ
अमल में लाते क्यों नही?
हर जन जब
स्वयं अपने से
आरंभ करे प्रयत्न
मुझे सुरक्षित रखने का
तभी मेरा अस्तित्व
अक्षुण्ण रह पाएगा
सोचो, करो, देखो
तुम सबका प्रयास
व्यर्थ नहीं जाएगा
वादा मेरा
मैं इस धरा पर
बहने के साथ साथ
बहूँगी सर्वदा
तुम सबके भीतर
नए विश्वास के साथ।
- डॉ भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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सब हैं तेरी ही संतान
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है पतित पावनी,कलि मल हरणी
भव व्याधि नाशिनी हिम सुता
तुम जगत हित उतरीं धरा पर
लेकर सुन्दर पावन धारा।
वंदनीय हैं राजा भगीरथ
जिसने उतारा तुमको धरा पर
तर गए राजा के वंशज
नृप भक्ति पर प्रसन्न हो माँ ने
भागीरथी नाम खुद धारा।
सारे तीरथ बस गए तट पर
हरिद्वार,ऋषिकेश,प्रयागराज
काशी नाम रखाया।
हरिद्वार में महाकुम्भ चल रहा
उमड़ पड़ी है जन सैलाब
सब मां के प्रेम में डूबे
भूल गए महामारी का नाम।
है माँ सबकी रक्षा करना
सब हैं तेरी ही संतान
महामारी को दूर ही रखना
तुम्हें मेरा शत शत प्रणाम।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर - छत्तीसगढ़
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जय माँ गंगा
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माँ गंगा तेरे पावन तट पे मानव तर जाते हैं।
गंगाजल से तन-मन के विकार हर जाते हैं।।
पवित्र पावन तेरा स्वरूप न्यारा है,
मां भारती के वक्ष को तूने संवारा है।
हिमालय की गोद से निकली धारा में,
भारत के कण-कण संवर जाते हैं।
मां गंगा तेरे तट पे मानव तर जाते हैं।।
भगीरथ के प्रयासों को नमन-वन्दन,
गंगा स्नान कर बने काया कंचन।
मिले मोक्ष मनुष्य को गंगाजल से,
ईश्वर के चरण-मस्तक पूजे जाते हैं।
मां गंगा तेरे तट पे मानव तर जाते हैं।।
देवनदी तुझे मान दिया देवों के देव ने,
स्थान दिया जटाओं में अपनी शिव ने।
हे सलिला! क्षमा करो अपराध हमारा,
हम मनुज तुझे कलुषित कर जाते हैं।
मां गंगा तेरे तट पे मानव तर जाते हैं।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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गंगा का पानी
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पावनी सलिल मां गंगा,
कर देती जग का उद्धार,
हर जन के मुख निकले,
दे दो मां थोड़ा सा प्यार।
सगर,अंशुमान तप किया,
नहीं आई मां धरती पर,
भागीरथ फिर चल आये,
पुकारा उन्हें बस हर हर।
सदियों से बहती आई है,
कितनों का किया उद्धार,
हजारों पाप विहीन हुये,
कितने ही उतारे भव पार।
कल-कल करके बहता,
अमृत सम गंगा का पानी,
सींच देती देश की भूमि,
नहीं करे कभी मनमानी।
मां मुझको दे दो अमृत,
कर देना मेरा बेड़ा पार,
तेरा साथ अगर न मिले,
हर मोड़ पर होगी हार।।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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