विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर फेसबुक कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी द्वारा ब्लॉग पर विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर फेसबुक कवि सम्मेलन का आयोजन रखा है । जिस का विषय " रवि " रखा गया है ।
विधिवत रूप से फेसबुक कवि सम्मेलन शुरू हुआ । जिसमें आई कविताओं में से विषय अनुकूल कविताओं को सम्मानित किया जा रहा है । जो इस प्रकार हैं : -
रवि
***
सूर्योदय होता उजियारा लाता
तम को दूर कर प्रकाश फैलाता।
भास्कर देता भोर में आकर जीवन
प्रभू कृपा से हमें एक दिन और मिलता।।
पंक्षी चहकते सुमधुर तान छेड़ते
धरा के प्राणियों को उर्जावान बनाते।
सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव को अहिंसा
सद्कर्म मानवता का पाठ पढ़ाते।।
जीवन मिला हमें पुण्य कर्मों से
अनमोल आदमी से इंसान बनने।
परोपकार करने पुण्य कमाने
प्यार पाने और प्यार बांटने।।
कहते हैं जहाँ न पहुंचे रवि
वहां पहुंचे सभी कवि।
समाज राष्ट्र के विकास में
अपनी भूमिका निर्वहन करें सभी कवि।।
-डाॅ•मधुकर राव लारोकर 'मधुर '
नागपुर - महाराष्ट्र
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जय सुर्यदेव
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हे सूर्यदेव!, हे सत्यमेव!, मन में सबके, प्रकाश हो।
मिट जाये तम, जग में हो सम, हर मानव का, विकास हो।।
यह है आग्रह, मिटे दुराग्रह, राग द्वेष का, निकास हो।
हृदय में चाव, हो प्रेम भाव, समरसता का, न ह्रास हो।।
रवि कहलाये, जग को भाये, महिमा उसकी, न्यारी है।
है आलोकित, करे प्रकाशित, आभा उसकी, प्यारी है।।
अनुग्रह करते, बाधा हरते, कृपा सूर्य की, सारी है।
सुख समृद्धि दे, ज्ञान वृद्धि दे, दिनकर महिमा, भारी है।।
नित्य दिवाकर, किरणें लाकर, जीवन देने, तुम आते।
निकल भोर में, सभी छोर में, उष्मा देकर, छा जाते।।
प्रकाश भरते, उजास करते, उर्जा किरणें, पहुँचाते।
सृष्टि आधार, करें उपकार, जन-जन के मन, तुम भाते।।
नमन दिवाकर!, वन्दन भास्कर!, पूज्य प्रभाकर!, शरण धरो।
हम अज्ञानी, कर नादानी, हमारे सभी, विघ्न हरो।।
हमें दो दीप्ति, बढ़े नित कीर्ति, भगवन हममें, शक्ति भरो।
प्रकाशित रहें, सुवासित रहें, मन-कर्म-वचन, शुद्ध करो।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
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सूरज तो….
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सूरज तो
नित्य ही निकलता था
और अच्छा भी लगता था
पर आज का सूरज निकला
तो लगा कोई नई बात हुई
आज की सुबह ने भी
जैसे कहा…..बताना तो जरा
आज क्या नई बात हुई
सब कुछ नया लग रहा है
पहले से भी अधिक
मन चंचल हुआ जा रहा
तुमने पूछा भी
आज कोई बात है क्या?
ये मेरा मनपसंद हलवा
जो बिन माँगे आज मिला है,
अब कैसे बताऊँ
पुनः जीवन पाने के बाद
स्मृति की गलियों में
भटकते/भरमाते/घूमते हुए
मेरी इतनी लम्बी प्रतीक्षा के बाद
आज तुमने मुझे
मेरे नाम से जो पुकारा है
फिर से मेरा जीवन सँवारा है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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रवि/सूर्यदेव पर छंद
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दिव्य दिवाकर,नाथ प्रभाकर ,देव आपको,नमन करूँ।
धूप-ताप तुम,नित्य जाप तुम,करुणाकर हे!,तुम्हें वरूँ।।
नियमित फेरे,पालक मेरे,उजियारा दो,पीर हरो।
दर्द लड़ रहा,पाप अड़ रहा,नेह करो हे!,शक्ति भरो।।
सबको वरते,जगमग करते,हे ! स्वामी तुम,सकल धरा।
मन है गाया,जीवन पाया,नवल ताज़गी,लोक वरा।।
तुम भाते हो,मुस्काते हो,जीव सभी ही,प्राण वरें।
धूप लुभाती,मौसम लाती,किरणें सबका,शोक हरें।।
शक्तिमान तुम,धैर्यवान तुम,,गति साधे हो,तेज बढ़ो।
दिखता काला ,वहाँ उजाला ,बिखराओ अब,नेह मढ़ो।।
दुर्बल काया,बिखरी माया,अर्ज़ करूँ मैं,नाथ सुनो।
हे! नभस्वामी,अंतर्यामी,देव प्रखरतम,शूल चुनो।।
नत अँधियारा,है उजियारा ,लिए दिव्यता,मान चुनो।
दयासिंधु हो,दीनबंधु हो,हो जगपालक,गान सुनो ।।
कितना दुख है,रोता सुख है,घबराया नर,भोर करो।
दया करो अब,नेह झरोअब,देव दिवाकर,शोर हरो।।
उजियारे पल,हारे हर छल,,देव दिवाकर,हाथ गहो।
कर्मठ शाही,नभपथराही ,प्रीत बढ़ाओ,रोज़ बहो।।
खुशियाँ रचते,नीती सृजते,गहन तिमिर को,मात करो।
चुप ना रहना,सदा विहँसना,मुखरित होकर बात करो।
- प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
मंडला - मध्यप्रदेश ============================
रवि
***
देखो पूर्व में रवि निकला,
हुआ उजाला मिटा अंधेरा,
जीवजगत का हुआ सबेरा,
पंछियों ने अपना डेरा छोड़ा,
किसानों ने खेतों को जोता,
मानव ने अपने-अपने काम संभाले,
नभ में पंछी लगे उड़ने, दाना लाने,
पेड़-पौधे सजीव हो उठे,
फूलों की खुशबू से महक उठीं बगिया सारी,
भोंरे भी कर रहे गुंजन,
तितलियां उड़ रहीं डाली-डाली,
रवि सिखलाता आलस त्यागो,
मेहनत करना ही जीवन है,
यही है बस जीवन का सार,
फिर चाहे जितनी खुशियां भर लो,
जिसने रवि को गुरु मान लिया,
समझो उसने जीना सीख लिया,
जिसने रवि ऊर्जा को किया आत्मसात,
वह जिंदगी में न खाये कभी मात।
- प्रज्ञा गुप्ता
बॉसवाड़ा - राजस्थान
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देखो रूठ गया सूरज
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सूरज गुजर कर पुरा शहर
मेरे भी घर आया
कह रहा था
है मुझे बड़ा अफ़सोस
पूरी धरा को रौशन मैं करता हूं
गजल की बारी आती है तो सबको
चांद याद आता है ।
मैं समझाई
ना रे ऐसी कोई बात नहीं
तेरी रोशनी में नहा कर सभी
दुनियादारी निभाते हैं
पसीना बहाते हैं
चार लोग जमघट लगाते हैं ।
तुम जब आसमान से जाते हो
तब चांद की बारी आती है
थक कर जब सब सो जाते हैं
खिड़की से चांद तब धीरे से कमरे मे आता है
अंगड़ाई लेते हुए लोरियां सबको सुनाता है ।
कल बीच रात
मेरी खिड़की पर चांद ठहर गया था
कह रहा था इतरा कर
मुझ पर गज़ल लिखती हो कितना
तभी तो मेरी चाल में इठलाहट है इतना
पर सूरज है भाई मेरा
आना छोड़ दे अगर गगन में
नज़र आ जाएंगे तारे जम़ी पे ।
कभी - कभी उसके लिए भी गुनगुना दिया करो
अपने प्यार का अहसास उसे भी दिला दिया करो
बढ़ाई की भूखी है दुनिया सारी
कभी - कभी उसे भी सर पर चढ़ा दिया करो ।
- मीरा जगनानी
अहमदाबाद - गुजरात
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स्याह रात
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जीवन के अंधेरे घेर रहे थे जब मुझे
थाम लिया था तुमने मुझे कुछ ऐसे
जैसे एक काली स्याह रात को
थाम कर रवि अपनी बाँहों में
लौटा देता है उसे उसकी आभा
बदल देता है उसे उजली जमी में
लालिमा सी ला देता है उसके अंतस में
तुमने भी ला दी है मेरे चेहरे पर आभा वही
खो गई थी जो वक्त की आंधियों में
भर दिया है तुमने उजास वही मुझमें भी
स्वर्णिम किरणें रवि की भर देती है
उजाला अंधेरे में डूबी धरती का
देखकर तुम्हें खिल उठी हूँ मै भी वैसे ही
जैसे सर्द दिनों में खिल उठे बुजुर्ग कोई
ऊष्मा से भरी रश्मियों को देखकर
पुलकित हो उठे शिशु कोई
किलकारी मार हुलस उठे
देखकर स्वर्णिम आभा रवि की
- नीलम नारंग
मोहाली - पंजाब
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रवि
***
एक सूरज,
मेरी आंखों में चमकता है ,
और ,
एक सूरज
मेरी हथेलियों के बीच
पिघलता है ।
और हथेलियां जल जाती हैं
बूंद बूंद होकर पिघल जाती हैं
पर
इन टपकती हथेलियों को
जब अर्घ्य के लिए उठाती हूं
तो , लगता है
आंखों का सूरज
जैसे
हथेलियों में उतर आता है ...।
- कनक हरलालका
धूबरी - असम
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रवि
***
रवि रश्मियों की प्रकीर्णना।
प्राची दिशि, मन- भावना ।।
लालिमा नवयौवना सी खिल रही।
चहकी चिड़िया कली से मिल रही।
है सुगंधित हवा भी बहकी हुई ।
प्रकृति भी उल्लास से महकी हुई।
पक्षियों के पंख की प्रसारणा
आसमां छूने की है नवधारणा।।
कर्म में हों सजग ऐसा रवि संदेश है।
अस्त या उदय समभाव का आदेश है।।
मैं जुड़ा हर प्राणी के अस्तित्व से।
पर मेरा अस्तित्व भी रव तत्व से।।
विविध नामों से मेरी संकीर्तना ।
प्रकाश से करके विलग न आंकना।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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रवि
***
रवि बन तेज चमको तुम,
प्रतिभा संपन्न दमको तुम।
कठिन परिश्रम निखारेगा,
निराशा मन में न रखो तुम।
काले-काले बादल छायेंगे,
रवि किरण से छंट जायेंगे।
खिलेंगे फूल सुनहरी धूप से ,
खुशबू बागों में फैल जायेंगे।
साधना कभी व्यर्थ न जाती है,
संयम धैर्य विश्वास जगाती है।
व्याकुल न हो बादल-गर्जन से,
उन्मादी नदियां राह बनातीं है।
अविरल धारा सा बहते जायेंगे,
दिनकर जग रौशन कर जायेंगे।
सुनहली प्रभाती किरण भास्कर ,
आलस्य दूर कर स्फूर्ति जगायेंगे।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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रवि तुम हो महान
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सूरज आसमां से झाँके ।
गालो को जरा फुला के।
हम करे सुबह का प्रणाम
तुम भेजते हो दूर से अग्नी बांण ।
बादल भी दूर -दूर भागे
सूरज की अगन से घबरा के
हम तो गरमी से हुए बेहाल ।
प्यास के मारे हमारा बुरा हाल।
बोला बादल रवि से क्यो क्रोधित हो
क्रोधाग्नी से मुझको पिघलाते हो ।
सूरज भैया मान भी जाओ
आओ मिलकर खेले आँख मिचौली।
सूरज बोला सब से हमारी कट्टी है ।
बात करो चाहे कितनी चटपटी।
बादल चाहे लगालो मक्खन।
अब न पिघलेंगे हम।
सूरज तुम करो ना गुमान।
कल फिर निकलोगे आसमान।
कुछ दिन मनालो छुट्टी
चाहे चीन चाहे जापान
कल फिर निकलोगे
मेरे भारत में तुम हो महान
- अर्विना गहलौत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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रवि देवता की जय हो
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हे! भानुदेव, हे! सत्यमेव, मानव तन में, ओज भरो।
रश्मि प्रचारक, रोग निवारक, शरण पड़ों का, ध्यान धरो।।
वैभवदायी, जीवनदायी, हम जीवो के , विघ्न हरो।
हे! जग पालक, हे! संचालक, दीन हीन हम, दया करो।।
आकर घेरे, नित अंधेरे, लड़ने की तुम, ताकत दो।
आशा दुर्बल, साँसे निर्बल, मानव तन मन, हिम्मत दो।।
नर कष्ट कटे, हर क्लेश मिटे, सबके मन में, चाहत दो।
जीवन कारक, पीर निवारक, नित धरती पर, राहत दो।।
मन प्रकाश हो, तन विकास हो, हर ललाट में, आभा हो।
हृदय तुष्ट हो, देह पुष्ट हो, दूर जीव की, बाँधा हो।
सहयोगी हो, उपयोगी हो, लक्ष्य सभी ने, साधा हो।
सुख समृद्धि से, ज्ञान वृद्धि से, परहित सेवा, ज्यादा हो।।
जीवन में तम, फैला हरदम, सबका बेड़ा, पार करो।
मरे कीटाणु, मिटे जीवाणु, बीमारी की , मार हरो।।
देकर उजास, फैला प्रकाश, मानव मन में, ज्ञान भरो।
छटे अँधेरा, दिखे सवेरा, हे! करुणाकर, ध्यान धरो।।
मन से जागे, मिथ्या त्यागे, रवि ले सत की, ओर चलो।
चमक बढ़ाकर, तमस मिटाकर,थाम हमारी, डोर चलो।।
जन जीवन में, मन आँगन में, प्रेम सुधा रस, दौड़ चले।
अश्व बैठकर, आना दिनकर, 'सूरज' प्रकाश, छोर चले।
- पवन कुमार सूरज
देहरादून - उत्तराखंड
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रवि
***
रवि करवट ले रहा है
कल यही बनेंगी चिंगारियां,
पेड़ भी वस्त्र बदलेंगे
जंगल जंगल है निमंत्रण
पतझड़ की है तैयारियां,
ठंड के वो लम्हें
रवि रोज सहलाती थी
दिन दोपहर चढ़े
रहती थी मुस्काती,
गुनगुने धूप ही लाती थी
झील नदी नाले
झुलसेगी अब अमराइयां
माली के आंसू मोल नही
जल जाएंगी क्यारियां।
- डॉ वासुदेव यादव
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
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रवि चाचा से बतियाती
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रोज सुबह उठ , बिटिया जब ,
रवि जी से है ,खुलकर बतियाती ।
चाचा ! नभ पर , जब आते ,
प्राची में है , लाली छा जाती।।
गोल लाल मुख , सुंदूरी
मेरे मन को , है खूब लुभाता ।
उदित नवजात , शैशव तब ,
आसमान पर , कुछ पल रह पाता ।
तभी तुम्हें मैं , बाँहों में ,
भर , चूम - चूम , फिर गले लगाती ।
परियोंवाले , लोक घूम ,
धरा -चाँद की , कहानी सुनाती ।
खुद तप जलकर, , किसान की ,
हरियाली बन , कभी न कुछ लेते।
प्रकृति पाल के , नदी , पेड़ ,
संचालित कर , जगजीवन देते।
तेज , शक्ति भर , कुदरत में ,
सब प्राणी का , आलस्य भगाते ।
खगगण कलरव ,करते तब ,
नया जोश तुम , उनमें भर जाते ।
मोबाइल पर , देर तलक ,
जो रहें और , देर रात जागें ।
उदित सूर्य पर , जो न उठे ,
स्वास्थ उसी का , जीवन से भागे ।
नयी आस का , नयी प्रात ,
बनकर जग में , प्रकाश तुम लाते
पाठ ताजगी , परिश्रम का ,
अनुशासन का , ' मंजू ' सिखलाते।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
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सूरज
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प्राची हो या अस्तांचल हो
सूरज तो रहता है चंचल ।
इक लाली हँसती खिलती सी
दूजी लज्जा सी कुलमुल ।।
लाल रंग में सूरज उगता
पीला हो कर ढलता है ।
रंग बिरंगा नभ कर देता
कालिख बन गल जाता है ।।
अब तो सूरज लाल हो गया
कैसे अब होंगे नखरे ।
ला कर रात थमा देगा जब
कहाँ मिले प्रकाश छितरे ।
शांत झील में आ उतरा है
भरी खून उसकी काया ।
ठहरा भीतर पैठ बना कर
आकुल सी दिखती माया ।।
सन्नाटों की लंबी डोरी
अपने सँग ले आया है ।
तमस कुहासा बंधा छोर से
तन पर धुँधली छाया है ।।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
================
रवि
***
रवि के उठने से पहले,उठ जाती है दो जोड़ी आँखें।
खींचने गृहस्थी की गाड़ी,सींचतीं है तरू की शाख़ें।
लिए समाहित रवि सा उष्मा,लुटाती स्नेह निश्छल ।
सिंदूरी आभा का दर्प,छलकता है मुख मंडल।
समान आँखों से देखे ,फैलाती आँचल विशाल।
कभी माघ कभी जेठ का रूप बदल कर बने मिसाल।
घुमे उसके धुरी पर,हरा भरा सारा परिवार।
जैसे रवि के होने से,पुष्पित हो सारा संसार ।
तुम बिन जीवन हो न अवनि पर सृष्टि के रचयिता तुम।
प्रातः अर्चना से रवि की,चले जीवन की गाड़ी झूम।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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रवि
***
उजली किरणों से दमकेगा, हर चेहरे का नूर ।
मन का पंछी बना बसेरा, रवि चमके भरपूर ।।
तेज ओज का मिश्रण होवे, गरिमामय आदित्य ।
नमस्कार कर सूर्य देव को, योग करेंगे नित्य ।।
बारह मुद्राएँ होती हैं, साध्य साधना सिद्ध ।
जग में उत्तम काज करे जो, होगा वही प्रसिद्ध ।।
निर्मल मन पावनता धारे, ओमकार का मंत्र ।
प्राणायाम दिव्य आसन से, सुधरे जीवन तंत्र ।।
ऋतु बसंत की बौर आम्र की, महादेव का संग ।
कोयल मधुरस गीत सुनाती, तन मन भरे उमंग ।।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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रवि
***
उठकर बड़ने लगते हो,
रंग बदलते बदलते अपना,
तपिश बढ़ाने लगते हो,
कहो ना रवि,
कैसे सुबह से शाम तक,
इतना सब कर लेते हो,
रात का भ्रम तोड़,
उसपर दिनभर हावी रहते हो,
फिर धीरे धीरे क्या तुम,
उसकी सल्तनत को,
रात को लौटाने,
रवि चंदा मामा बन जाते हो,
तुम्हें सब नमन करते हैं,
प्रातः पूजन करते हैं,
फिर दिनभर अपना काम करके,
शाम को फिर तुम्हें देखने,
रवि सब खड़े हो जाते हैं,
तुम मानो सुबह चोटियों से,
धीरे धीरे उजागर होकर,
अपना सफर फिर से,
उनकी गोद में ही,
क्या रवि तुम,
पूरा किया करते हो,
तुम ऊर्जा भरते हो,
सभी की नींद खोलते हो,
आगे बड़ने की सीख देते हो,
सभी के स्वास्थ का भी,
रवि तुम ध्यान रखते हो,
कहो ना इतना सबकुछ,
एक दिन में,
फिर प्रतिदिन,
कैसे कर लेते हो,
नमन है तुमको रवि,
तुम सभी पर,
अपना आशीष भरपूर,
बनाए रखते हो।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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रवि
***
रवि!तुमने ही कवि बनाया-
मेरे इस चंचल से मन को,
ऊर्जा का ही स्रोत बनाया-
पंचतत्व चेतन से तन को.
रोज सुबह नभ में मुस्काते-
स्वर्णिम किरणें संग ले आते,
जीवन के आधार बने तुम-
जग में सूर्य देव कहलाते.
बाग-बगीचे,वन,उपवन सब-
तुमसे ही हैं जीवन पाते,
तरु, पात, शाख लहराते-
चटकें कली,फूल मुस्काते.
इस सृष्टि को रोशन करके-
अंधकार को दूर भगाते,
सतरंगी घोड़ों पर चढ़कर-
खुशियां चारों ओर फैलाते.
प्राची की किस्मत तो देखो-
रह-रह कर इठलाती है,
लिये गोद में 'बाल रवि' को-
हरदम ही सहलाती है.
- डा.अंजु लता सिंह गहलौत
दिल्ली
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रवि
****
रविऔर चंदा करले धरती से प्रस्थान।
रोज सुबह को सूरज आकर सब कुछ सदा जगाता है।
शाम हुई लाली फैलाकर अपने घर को जाता है।
दिल भर खुद को जला जला कर यह प्रकाश फैलाता है।
उसका जीना ही जीना है,
जो सभी के काम आता है।
रवि, चंदा धरती से करते,....
चंदा मामा नील गगन में
जब देखो हंसते रहते हैं।
चमचम चमचम वह तम हरते।
अगर प्रस्थान कर जाएंगे तो, दुनिया में हाहाकार मचेगा।
- उमा मिश्रा प्रीति
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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रवि/ सूरज
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है
तेरा
प्रकाश
चहु दिश
जगमगाता
आव्हान का रथ
जीवन को गति देता।
मैं
चाहूँ
सीख लूँ
समदृष्टि
समभावना
बाँट दूँ सब ओर
फैल जाए नवप्रकाश ।
दे
रवि
रोशनी
घटे तम
जगमगाए
सम्पूर्ण विश्व
आरंभ हो जीवन।
जो
छाए
गहरा
अंधकार
ये है इशारा
आने वाला रवि
भागेगा हर त्रास ।
ले
सभी
प्रेरणा
हर रोज
हो उर्जावान
हों कर्मप्रधान
सूर्य सा हो जीवन ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
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रवि
***
रवि के उदय होने से होती प्रभात
रवि के ढलते ही हो जाती रात
भोर होते ही सब प्राणी जाग जाएं
नतमस्तक हो रवि का आभार जताएं
पक्षी अपने आहार-विहार लिए उड़ जाएं
मनुष्य अपने तन मन से कामों में जुट जाएं
तेज रवि का भरता नया ओज
नव चेतना,उमंगे भर देती जोश
सभी को एक नजर से देखो" है सिखाता
भेद भाव को दूर करो,प्रेम का पाठ पढ़ाता
कभी बादलों की ओट में छिप जाता
घोर निराशा से निकलना हमें सिखाता
बदले में हमसे न कुछ लेता रवि
खुद जलकर प्रकाश फैलाता रवि
दूसरों के लिए जीना सीखो" हमें सिखाता
जीवन का रखो यही लक्ष्य "पाठ पढ़ाता
रवि के उदय होने से होती प्रभात
रवि के ढलते ही हो जाती रात
कैलाश ठाकुर
- नंगल टाऊनशिप - पंजाब
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सूरज
****
सूरज देवता तुम बहुत महान हो
सृष्टि में हर प्राणी के प्राण हो।
तुम बिन जीवन किसी का न होये, मनुष्य या प्राणी हो
घास का तिनका भी अपनी उपज खोए।
तुम हो देवों के देव
तुमे पूझते हैं देवो के देव
महादेव।
तुम देते हो हर प्राणी को प्रकाश,
तुम पर ही टिकी है हर प्राणी के जीवन की आस।
सर्दी के मौसम में तुम
सब को भाए,
गर्मी में बारिश के लिए
आपकी तपश भाए,
तुम को देख कर प्रसन्न होते
बूढ़े, बड़े, जवान, तुम तो हो हर प्राणी के प्राण, तुम्ही हो
सब देवतीओं में महान,
हर प्राणी करता है तेरा ही गुणगाण, हे सूरज देवता
तुझे कोटी कोटी प्रणाम।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
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रवि
***
दिनकर उगता पूर्व दिशा से,
बढ़ता जाता नभ की ओर।
दिन भर चलता अपनी चाल,
संध्या को दिखे वो पश्चिम छोर।
प्रात रवि की छवि है न्यारी,
भोर सुनहरी ओढ़े वो प्यारी।
जीव जगत उर्जा संचार करे,
प्रकृति हर्षित होती है सारी।
भरी दुपहरी बन क्रांति ज्वाला,
अरुण रवि ज्यों आग का गोला।
ऋतु ग्रीष्म में प्रचंड उमस से,
हुलसे संग में बनस्पति कोना।
शीत शिशिर का रवि है प्यारा,
सबको लगता तब राज दुलारा।
बादल जब ढक लेते उसकों,
असर दिखाता ठण्ड में सारा।
होता ऋतुओं का आना जाना,
रवि अनुशासन सब को दिखाए।
उदय होकर नित पूर्व दिशा से,
वह दर्शन अपने अवश्य दिखाए।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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रेडियो दिवस
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कुछ तो सुनाईये,
विश्व रेडियो दिवस पर,
चुपके-चुपके ना सुनाईये,
विश्व रेडियो दिवस पर,
नफरतों की बातों को,
इस तरह से सुनाईये,
कुछ इस तरह से सुनाईये,
विश्व रेडियो दिवस पर।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
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रवि का संदेश
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भोर की प्रथम किरण
लेकर रवि आया!
आते ही उसने
ये संदेश सुनाया!
कर्तव्य पथ पर
दृढ़ होकर बढते रहो!
स्वकार्य पूर्ण करो
भाग्य को ना कोसो!
जैसे बीत जाती
है निशा, मैं
निज कर्तव्य नहीं
भूलता , तुम भी
जीवन पथ पर
अडिग , बढे चलो !
वांछित कर्म करो !
बढे चलो! बढे चलो!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
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रवि नें लालित्य लिए
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तिमिर घन को कर विदा
भिणसारे में अलसाई रश्मियों
नें पलकें खोली
रवि ने लालित्य लिए
नवभोर का स्वागत किया
जगत को आलोकित किया
हर्षित धरा में ऊर्जा का
नवसंचार किया
खिली कलियां फूल मुस्काए
हरियाली भी हरी हुई
खेतों में सरसों भी विभोर हुई
नभ में खग भी दाने के लिए
डाले फेरा
हे रवि
कभी तुमसे राहत हुई
कभी तुम्हारी चाहत हुई
कभी भृकुटी ताने आते
कभी बादलों में छिप जाते
कभी जेठ दुपहरी जलाते
सुबह की लाली
दुपहर सुनहरी
शाम सिंदूरी हो जाते
समुद्र में डूबते गोते खाते
डाल रात कहीं ओर फेरा
फिर एक नई सुबह
शक्ति का संचार कर
जीवन का आधार बन जाते।
- डॉ.संगीता शर्मा
हैदराबाद - तेलंगाना
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रवि
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ऊष्मा का निरंतर स्रोत रवि ,
जग में उजास भरता है रवि।
सारे ग्रह परिक्रमा करते उसकी,
सौरमंडल केंद्र का तारा है रवि।
जगत की आत्मा सदा रवि ,
कहते हैं हमारे सभी वेद ।
इसमें कोई दो मत नहीं है ,
और नहीं है कोई भी भेद।
रवि की रोशनी में ही तो,
सारे कार्य हैं संपन्न होते ।
नहीं होता अगर नभ में रवि ,
जगत तिमिर से घिरे होते।
रवि को मानते हैं भगवान ,
द्वादश नाम दिए हैं विद्वान ।
उसी से दिन रात संभव 'सक्षम' ,
रवि की महिमा सदा महान।
- गायत्री ठाकुर सक्षम
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
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रवि
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कर आघात तम के सीने पे,
आया रवि लिए नव प्रभात।।
मिटा अंधियारा लिए भाल ऊषा तिलक,
दिग दिगंत फैलाए उजियारा,दिखलाए नवल प्रभाष।।
गूंजे कलरव चटके कलियां हैं,
बतलाएं आया नया दिन,लिए नई आस।।
दूर आलस्य भगा,स्फूर्ति का वरण करें,
सोई इंद्रियां जागरण करें, करें ऊर्जा का संचार।।
जल चढ़ाएं हाथ जोड़ें,करें सूर्य प्रणाम,
रवि नाम नहीं मात्र प्रिय,है शक्ति का प्रतीक महान।।
दूर हो लक्ष्य दुर्गम राहें, न हो निराश,
देख रवि आगे बढ़ो, रखो उत्साह साहस पास।।
हो रात घनेरी पसरा हो अंधियारा न हो उदास,
रखो धैर्य सदा"आकाश"तुम्हें मिल जायेगा नया उजास।।
- पी एस खरे "आकाश"
पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
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रवि
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रवि की किरणें धरा धाम पर
जिस पल भी है आ जाती।
अलसायी अलसायी प्रकृति को
नयी चेतना दे जाती।।
रवि का दर्शन हर प्राणी को
कर देता है नव उर्जित।
गतिमान हो जाता जीवन,
गतिविधियां करती हर्षित।।
है प्रत्यक्ष देव रवि पूजित
सकल सृष्टि को दे जीवन।
उनके आने से निकले दिन,
प्रतिदिन दे जाते दर्शन।।
रवि देव की महिमा अनुपम,
सकल सृष्टि पर है उपकार।
रविवार दिन,रवि देव का
है रवि प्रभु की जय जयकार।।
- डॉ अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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उगता सूरज
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पूरे सौरमंडल का स्वामी है रवि
प्रकाशपुंज सी आकाश में है छवि
आठों ग्रह व चन्द्र को देता है प्रकाश
एक दिन में धरा घूमती है धुरी पर
इसी से होते हैं हमारे यहॉं रात व दिन
एक वर्ष लेती पृथ्वी रवि-परिक्रमा में
होते ठंड ग्रीष्मा व बरखा मौसम यहॉं
सूरज,चाँद पृथ्वी मिल करते करिश्मा
ग्रहण की आपदा सहती धरती माता
बिन रवि के तपाए वाष्प नहीं बनती है
न बनेंगे बादल ना बरसेगी अमृत बूंदे
सारा दारोमदार है सूर्य देवता पर
सारे कवि बुलाते चाँद को ही काव्य में
रवि राजा विराजते एक ही स्थान पर
शेष उनके चेले चपेटे घूमते आसपास
यूँ हम उनका उदय व अस्त पूजते हैं
चूंकि धरती घूमती है अपने नियम से
सूर्य बस दिखते हैं चक्कर लगाते
हम बैठे हैं चलती धरा की छुक छुक में
खिड़की से नज़ारा चलता दिखता है
रवि भी हमें धरा से बस दिखता है
पूर्व से उदय,पश्चिम में अस्त होते हुए
- सरला मेहता
इंदौर - मध्यप्रदेश
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रवि की गति
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तिमिर मिटा
हुआ सवेरा,
सुबह की सुन्दर लालिमा
चहुँ ओर रवि से बिखरे
धूप जो फैली ,
भंवरे भी अब आ गए बाहर
रात में जो बंद थे फूलों में।
महक उठी सारी धरती,
एक सर्द की रात कटी
फैली जो धूप तो
बर्फ़ भी लगने लगी सुनहरी।
काम को निकले
खेत को किसान , दिनभर नहीं
तनिक आराम।
ढल गई धूप ,
हो गई शाम,
घर को जाते पशु और किसान।
रवि भी छिपने अब चला,
आता चांद,
दिन का हो गया अबअवसान।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
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रवि
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रवि रश्मया फैली चहूँ ओर ।
चारो दिशाओं में प्रकाश का हुआ आगमन,
निशा की विदाई और भोर का आगमन ।।
कोयल कूके भंवरे गुनगुनाए,
चिड़ियाँ चहकी कलियाँ खिलती
मन्दिर में घंटा बजता ।।
भोर की मंद मंद पवन बहके .....
सुबह धूप दीप सुगंधित महके...
पूर्वांचल से रवि उदित हो रहा
रवि रश्मिया फैल रही चहूँ दिशाएं ।।
कृषक ने भी हल ले कर बैलों को दी प्यार बहरी थपकी,
माँ ने भी चुल्हे पर चाय चढ़ा दी
बहने बैठ गई कलेवा करने
दीदी ले झाड़ू हाथ में द्वार बुहारने चली
पापा ने पैरों में चप्पल डाली और काम पर चले
पूर्वांचल से रवि उदित हो रहा
रवि रश्मिया फैली चहूँ दिशाओं में
दिनचर्या हम सब की शुरू हुई,
विहंगो ने भी नीड़ो को छोड़,
नील गगन में उड़ान भरने लगे ।।
प्रकृति ने फूलों की महक से चमन को महका दिया
दुकानें खुलने लग गई सब में उमंगे भर रही।।
बच्चों ने मम्मी से बोला दे दो मेरा टिफिन देर हो गई है स्कूल को
पूर्वांचल से रवि उदित हो रहा
रवि रश्मि फैली चहूँ दिशाओ में।।
- अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
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सुबह-सबेरे
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सुबह-सुबह आया यह भाव
क्यों न आज सूरज से करू
बातें दो-चार।
गहरी नींद के समय ही
भोर क्यों हो जाती है।
रूख़सत भी न हुई अभी
नींद की खु़मारी.........है।
फिर यह दमदमाता
सूरज क्यों निकलने को
इतना आतुरता है।
कभी तो नींद,
सूरज को हराती है
तो कभी सूरज की
किरणें
नींद से जगाती है।
थोड़ी और ठहर जा तू,
बादलों के ओट में।
निंदिया रानी अभी रात्रि
के आगोश में है।
तू ही आकर सबको
प्रतिदिन जगाता है।
तू ही आकर सबको
काम से लगाता है।
तू जीवन में सबके यूँ
रोशनी बिछाते रहना।
तू न गर आए तो दुनिया
में सर्वत्र अँधियारा है।।
- डाॅ.क्षमा सिसोदिया
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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रवि
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नवप्रभात जब आता है
रवि नहीं उम्मीद जगाता है
असस्तांचल होने पर भी
इंद्रधनुषी रंग दे जाता है !
रवि की किरणें पड़ती अंबर पर
विचरते पानी के छल्लों पर जब
छल्लों से विचरता रवि का प्रकाश
सप्त रंगों में बंट जाता है तब
सात रंगों की माला में गूंथ
अंबर में इंद्रधनुष बन जाता है !
समीर ,नीर, अंतरिक्ष सब होते रंगहीन
जीवन में रवि प्रकाश करता है हमें रंगीन !
तम छाँट संघर्ष करता रवि
आलोक संग खिलता है तब
स्वागत में रवि रश्मि को मिलने
आतुरता संग कुदरत भी बांहे फैलाये
विहंग, प्रसून संग खड़ी रहती है !
उगता रवि कर्मशील बनाता
संघर्ष का पाठ पढ़ाता है
जीवो को नई राह दिखाकर
प्रेरणा स्रोत बन जाता है !
सौंदर्य की देवी पृथ्वी भी
नमन करे हैं प्रथम रवि किरणों को
रवि भी जीवन देता है
धरा में रहते हर जीवो को !
स्वयं अग्नि सा तपकर भी
रवि बना कुदरत की लीला
बना आग का गोला
प्रचंड ताप लिए कर्तव्य निभाता
जैसे विष पीकर शंभू भोला !
स्वर्णिम आभा के आते ही
व्योम में तारे भी छुप जाते हैं
रवि कहे,
जैसे स्थाई नहीं दिन-रात जगत में
वैसे जीवन में सुख दुख आते जाते हैं !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
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रवि शनै- शनै
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चीर कर घोर तिमिर रात का
हुआ उदित ज्यों रवि शनै- शनै
स्वर्णिम किरणें छू रही आँचल धरा का
फैल रही है लाली मद्धिम-मद्धिम
चिड़ियों ने चहकना सीखा
खिल उठी है डाली डाली
ज्यों गिरती हैं ओस कणों पर,
विस्तृर स्वर्णिम दिखती हैं।
जो चमके जीवन में तो
कर दे सोने से पल भर में
छूकर गुजरती है हिमशिखरों को
होकर सवार सप्त अश्वों पर
मरुथल में जो चमके दिनकर
मृगतृष्णा की बूंद बन कर
धीमे धीमे अस्ताचल गामी होकर
कर देता रक्ताभ गगन के छोर को।
- मधुलिका सिन्हा
कोलकाता प. बंगाल
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