मेरी पांचवी कक्षा का पैन

मैं पांचवी कक्षा में पढता था । तब मेरे पास एक पैन था । जिसकी कीमत एक सौ दस रुपये थी । उस जमाने में एक सौ दस रुपये बहुत होते थे । मेरे टीचर श्री वेद प्रकाश जी ने मेरा पैन देख लिया और मुझे पूछताछ करनी शुरू कर दी । मैंने भी साफ - साफ बता दिया कि इस पैन की कीमत एक सौ दस रुपये है। जो मैं कलन्दर चौक के पास कुमार जनरल स्टोर से लाया हूँ । परन्तु मेरे टीचर का शंक दूर नहीं हुआ । ये कहँ कर कि मैं आपके पापा से भी पूछूंगा और मेरा पैन अपने पास रख लिया । ये टीचर मेरे पापा के अच्छे दोस्तों में से एक हैं ।
शाम को स्कूल से घर आते ही सारी बात मैंने अपने पापा को बता दी । पापा और टीचर की बात भी हुई। टीचर ने मेरे पापा से वादा किया कि मै आपके बच्चें का पैन स्कूल में वापिस दे दूगा ।परन्तु टीचर ने मेरा पैन आज तक वापिस नहीं दिया ।
मैं भी पापा को हर रोज वापिस पैन दिलाने की फर्याद करता रहा । परन्तु पापा ने दुबारा टीचर से नहीं कहा ... । और मुझे वहीं पैन दुबारा दिला दिया गया ।
यह टीचर आज भी हमारे परिवार का प्रिय है और हम सब पूरा आदर देते हैं । आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सब अच्छे स्वास्थ्य व लम्बी आयु की प्रभु से प्रार्थना करते हैं ।
" मेरी दृष्टि में " शिक्षकों द्वारा लडकियों के साथ छेड़छाड़ व बल्तकार जैसी घटनाएं हर रोज कहीं ना कहीं सुनने के लिए मिलती रहती है । इसका जिम्मेदार कौन है ? इसका समाधान क्या है ? कोई बता सकता है ! मै कई प्रोफेसर को जानता हूँ । जिन्होंने अपने विधार्थी से ही शादी कर ली है और आज कालेज के प्राधानाचार्य हैं ।

Comments

  1. बहुत खूब जैमिनी जी । जीवन के अनुभव हीं मानव के मष्तिष्क में बनने वाली छवि का आधार होते हैं।

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    1. आदरणीय बहुत पसंद आयी आपकी रचना।हृदयस्पर्शी व सटीक कथन।बधाई आपको ।सम्मिलित करने लिए लिए भी आभार ।

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