मेरी मानदं पी एच् डी पर लोगों की जलनशीलता



15 अक्टूबर 1995 में विक्रमशीला हिन्दी विधापीठ , भागलपुर - बिहार द्वारा मुझे विघावाचस्पति ( पी०एच्०डी ) मानदं उपाधि दी गई । मेरी उम्र उस समय तीस साल पूरी भी नहीं थी । मैंने यह समाचार अपने जैमिनी अकादमी समाचार पत्र में प्रकाशित कर दिया । यह समाचार चारों ओर फैल गया । इसी बीच पानीपत के जनकवि टेकचन्द गुलाटी को पता चल गया । कवि महोदय ने मेरे खिलाफ विक्रमशिला हिन्दी विधापीठ को पत्र लिख दिया । मुझे इसकी जानकारी मिल गई । मैंने गुलाटी साहब से पूछा तो उनके पास जबाब नहीं था । इस स्पष्ट हुआ कि यह जलनशीलता के अतिरिक्त कुछ नहीं है । मेरे जीवन में गुलाटी जैसों की कमी नही हैं । फिर भी मैं इन जैसों की परवाह कभी की नहीं ।

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