क्या व्यग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है ?

व्यग्रता से नुकसान होने की सम्भावना बढ़ जाती है यही इस का प्रथम अवगुण है । जबकि सहजता से बड़ीं से ब़डी मुश्किल से पार होना सम्भव हो जाता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य के मन-मस्तिष्क में व्यग्रता की उपस्थिति एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। परन्तु इस व्यग्रता पर नियन्त्रण करते हुए स्वयं को सहज रखना हमारे मन-मस्तिष्क की दृढ़ता को दर्शाता है। 
वर्तमान में, कोरोना के कारण प्रत्येक मनुष्य व्यग्र हो रहा है। जबकि इस समय सहजता की अत्यन्त आवश्यकता है। 
मैं समझता हूँ कि सहजता की प्राप्ति हेतु हमें नकारात्मक समाचारों और दृश्यों से स्वयं को दूर रखना चाहिए। कहते हैं कि "होनी बलवान होती है"। इसको सही मानते हुए भी हम स्वयं को इस तरह सहज रख सकते हैं कि, "गिलास का आधा खाली होना न देखकर गिलास का आधा भरा हुआ देखना चाहिए"। यह सकारात्मक दृष्टिकोण हमें सहज होने में बहुत मदद करेगा। 
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यग्रता में मनुष्य के मन-मस्तिष्क की शक्ति क्षीण हो जाती है। इसकी अपेक्षा सहजता हमें परिस्थितियों से जूझने में सहायता प्रदान करती है। 
मैं मानता हूँ कि परिस्थितियों से लड़ना और परिस्थितियों पर टिप्पणी करने में जमीन-आसमां का अन्तर होता है, लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं हैं कि मनुष्य को ईश्वर ने इतनी शक्ति प्रदान की है कि वह अपने मन-मस्तिष्क की क्षमताओं का सहजता से उपयोग करते हुए विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है। 
इसलिए मेरा कहना है कि ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था और अपने ऊपर पूरा विश्वास रखते हुए अपनी व्यग्रता पर नियन्त्रण किया जाये क्योंकि सहजता ही मार्ग को सहज-सरल-सुगम बनाती है। सहजता इसलिए भी आवश्यक है कि इसमें मानव सावधान रहता है जबकि व्यग्रता गलती करने को उकसाती है। 
इसीलिए कहता हूँ कि....... 
"मन मेरे, तू संकट में भी सहज-सरल पवन बहाते रहना। 
मस्तिष्क मेरे, तू व्यग्रता में भी सुधा रस बरसाते रहना।।
मन-मस्तिष्क तेरे संगम से सदा सहजता बसी रहे मुझमें, 
जीवन को सरस-सरल गुणों से परिपूर्ण आयाम देते रहना।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अवश्य! अति व्यग्रता से काम करने के चक्कर में हम काफी गलतियां कर बैठते हैं ! व्यग्रता का आना यानी अधीर हो जाना ...मतलब धैर्य खो देना, उतावलापन और हड़बड़ी! अक्सर सुनने में आता है हड़बड़ का काम गड़बड़  होता है! चूंकि उसका विवेक और धैर्य काम ही नहीं करता! 
आज कोरोना में लोग वैक्सीन ,आक्सीजन जाने कितनी चीजों के लिए  व्यग्र हो रहे हैं! न मिलने पर वे या तो अपना आपा खो रहे हैं अथवा किसी भी तरह पाने के लिए  अधीर हो रहे हैं फिर  चाहे नियमों की ऐसी तैसी हो! अधीरता हमारे सोचने समझने की शक्ति को मंद कर देती है! यही काम सहजता से भी किया जा सकता है! 
व्यग्रता में लिए गए फैसले लगभग गलत साबित होते हैं....  
 दुर्योधन अपने व्यग्र और अधीर स्वभाव से ही तो ग्रसित था इसीलिए तो उसने प्रभु कृष्ण को छोड़ कृष्ण की पूरी सेना मांग ली और यही उसके पराजय का कारण बना! 
स्वभाव  में सहजता होने से विवेक और विनय एवं नम्रता भी आ जाती है!  व्यक्ति के सोचने समझने की शक्ति बढ़ जाती है! समझदारी से काम करने से भूल नहीं होती और होती भी है तो बहुत कम !
व्यक्ति का स्वभाव  है वह अपने द्वारा किये गए कार्य के परिणाम को जानने के लिए काफी व्यग्रता से इंतजार करता है अपनी धारणा से विपरीत परिणाम आने से दुख होता है अथवा अपना आपा खो देता है वहीं यदि सहजता और सरलता के साथ इंतजार करता है परिणाम जो भी आये वह अपना धैर्य नहीं खोता! सोचने की शक्ति समर्थ और बलशाली होंगे तो परिणाम  सुखद ही होगा! 
अतः व्यग्रता से अधिक सहजता अधिक आवश्यक है! 
                - चंद्रिका व्यास
                खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र
"दहकती हुई इस दूनिया में
सहजता ही परम पथ है, 
खुदगर्जी में खुद प्राणी खोया, 
जो सबसे बड़ा अनर्थ है"। 
देखा जाए संयम और सहजता दो मानवीय गुण हैं, सुख को भोगना यदि सरल है तो संयम रखना उससे भी लाभकारी है, 
तो आईये बात करते हैं कि व्याग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है, 
यह अटूट सत्य है कि  दुख और सुख में संयम से काम लेना चाहिए, प्रत्येक क्रिया में संयम यानि सहजताअति अनिवार्य है, 
यह परखी हुई बात है कि भाषा और वाणी पर संयम अति आवश्यक है क्योंकी भाषा और वाणी पर संयम हमें सुखद अनुभूति का परिचय कराती है, 
इसलिए मानवता को राह पर लाने के लिए सहजता अति आवश्यक है, 
दुसरी तरफ हम व्यग्रता की बात करें तो इससे  कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता व जिंदगी मे़ उथल पुथल ही होता रहता है  हर कार्य  को शीघ्रता से लेने से कार्य बिगड़ता है न कि सुधरता है  इसलिए हमे कोई भी कार्य करते वक्त व्यग्रता  नहीं  दिखानी चाहिए, 
सच कहा है, 
 "सहज पके सो मीठा होए"
कहने का भाव, सहजता से किए गए कार्यों का  फल मीठा होता है, 
लेकिन आज की दौड़ धूप ने इन्सान को परेशानी में डाल रखा है हर इंसान रातों रात अमीर बनना चाहता जिसके लिए वो दिन रात बिना सोचे समझे दौड़ धूप करता रहता है और कार्य में स्थिरता नहीं दिखाता वरना परेशानी की सवव बना लेता है जिससे उसे व्याकुलता, व घवराहट  घेर रखती है जो कार्य उसने हाथ में लिया होता है  व्यग्रता के कारण उल्टा पड़ जाता है जिससे इंसान अपनी स्थिरता खो देता है और जिंदगी को  स्वर्ग के वजाय नरक में धकेल देता है, 
सच कहा है, 
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये, 
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये ही फल होए। 
कहने का भाव हमारे उतावले पन से कुछ नही होने वाला, सहजता से किया हुआ प्रत्येक कार्य ही सफल होता है, 
अन्त में यही कहुंगा कि केवल संयम ही सहज वातावरण बनाने में साथर्क हो सकता है चाहे परिवार हो, राष्टृ हो या संपूर्ण भूखंड, 
इसलिए जो व्यक्ति अपना कार्य समय पर  करता है उसे कोई व्यग्रता नहीं होती तथा समय पर कार्य करने से अपना व अपने समाज और राष्टृ  का भी भला होता है, 
इसलिए व्यग्रता से अ़धिक सहजता अति आवश्यक होती है लेकिन आजकल, 
"जितनी सहजता के साथ हम निखरे हैं, 
उतनी ही सहजता  हम बिखरे भी हैं, 
अब नहीं चुभती है किसी की बात, 
वक्त के साथ हम भी बदल गए हैं"
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी बिलकुल व्यग्रता से अधिक सहजता का विशेष महत्व है । सहजता से मानव हर मुश्किल को संकट को आराम से निपट लेता है । 
व्यग्रता में मन में अधिकता छटपटाहट दिलोदिमाग़ पर छा जाती तब व्याकुलता , आतुरता हर बनता काम बिगाड़ देती है । हमारे निर्णय की क्षमता कमजोर हो जाती है हम मन कोअपने संयम में नहीं रख पाते और बहुत बड़ी गड़बड़ी कर बैठते है । व्यग्रता  को बहुत ही संयम के साथ धैर्य दृढ़ता के साथ रोकना चाहिये , और सहजता के साथ चिंतन मनन कर अपनी व्यग्रता को क़ाबू लाना चाहिये यह कमजोरी नहीं बनने पाये हमें सहजता से इससे निकलना चाहिये । हमे अपना आत्मविश्वास को बढना चाहिये और सहज रह कर ही हम सही सोच व समझ के साथ अपने उद्देश्य को पूरा कर मंज़िल पायेगे । 
सहजता बहुत जरुरी है सहजता हमें मानसिक बल और मानसिक शांति देती है । 
व्यग्रता मानव के मन में अनेक व्यवधान उत्पन्न करता है । 
यह कुछ लोगों के स्वभाव में ही होता है । इससे निजात पाना अति आवश्यक है । 
सहजता ही हमें आंतरिक ख़ुशी , आत्मबल प्रदान करती है 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई -महाराष्ट्र
     मानव हो या जीव जंतु शारीरिक-मानसिक प्रवृत्तियों से ही व्यग्रता उत्पन्न होती हैं और जिससे दूसरों को परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, कुछ सोचकर हाव भाव प्रकट करते हैं, तो कुछ तत्परता के साथ? जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम,  गंभीर समस्या पैदा कर देते हैं। फिर क्या था, कोर्ट-कचहरी का जन्म हो जाता हैं। अगर हम सहजता के साथ व्यग्रता को काबू में कर लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती रहेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि आमतौर पर प्रवृत्तियां बन चुकी हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
जीवन में  हमेशा ही व्यग्रता से अधिक सहजता की आवश्यकता होती है। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी लिखा है"कारज धीरे होता हैं, काहे होत अधीर,समय पाए तरुवर फले,केतक सींचो नीर।हम अपनी अधीरता से होते काम भी बिगाड़ लेते हैं। काम समय आने पर ही पूर्ण होते हैं । 
        आज भी हम बहुत नाजुक दौर से गुजर रहे है।हम सब बहुत बड़ी आपदा का सामना कर रहे हैं। ऐसे समय में अगर हम व्यग्रता से काम लें गे तो फायदे की बजाय नुकसान उठाएं गे।साधारण हालतों में तो किसी समय अधीरता खप जाती है लेकिन मुश्किल घड़ी में मनुष्य को सहजता को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। सहज व्यक्ति जीवन में सफलता जरूर हासिल करता है।धैर्य वान की सभी प्रशंसा करते है।जीवन में कभी भी सहजता का पल्ला नहीं छोड़ना चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
जब हम कोई भी कार्य करते हैं तो उसे हम दो तरह से करते है 
         एक तरीका है किसी कार्य को व्यग्रता से बडे आवेश या क्रोध से करना ।
      दूसरा और अच्छा तरीका है कि कोई भी कार्य को  सहजता ,शालीनता और ठंडे दिमाग से किया जाये ।
        व्यग्रता से किया गया कोई भी कार्य ये नहीं कि पुर्ण नहीं होता परंतु कई बार अपूर्ण भी रह जाता है ।
               जबकि सहजता  , शालीनता और शान्त मन से किया गया कार्य सदैव सफलता पूर्वक पूर्ण होता है ।
   - सुरेन्द्र मिन्हास  
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हाँ,जी,
व्यग्रता से उत्तम सहजता से काम करने पर अधिक सन्तोषप्रद परिणाम प्राप्त होता है। 
क्योंकि व्यक्ति के दिल दिमाग की बेचैनी ही उसकी व्यग्रता को प्रकट करती है। धैर्य खोने से मानसिक शान्ति और संतुलन दोनों का अभाव हो जाता है और ऐसे में अधीर व्यक्ति न करने योग्य कार्य को कर बैठता है और फिर उसके परिणाम गलत प्राप्त होने पर उसके पास हाथ मलने के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता है।
उदाहरणार्थ रामचरितमानस में
मंथरा के उल्टी सीख सिखाने पर व्यग्र मन वाली रानी कैकेई के सोचने-समझने की बुद्धि शक्ति का हरण कर लिया। फलस्वरूप वो चारों भाइयों में सबसे अधिक प्रेम स्नेह करने वाले पुत्र राम के लिए ही वनवास माँग बैठी।
और कोपभवन में जाकर राजा दशरथ के समझाने पर किसी भी बात को समझने का प्रयास नहीं किया वरन् राजा को अपनी जिद मानने के लिए विवश कर दिया। 
परिणाम स्वरूप मंगल राजतिलक की खुशियाँ मनाने वाले सारी अयोध्या की खुशियों को तहस-नहस तो किया ही व्यग्रता से निर्णय लेने के कारण रानी को अपने सुहाग सिन्दूर राजा दशरथ  से भी हाथ धोना पड़ा।
साथ ही अपने पुत्र भरत के ह‌दय की कटुता और कोपभाजन की शिकार भी हुई।अन्तत: जीवन में ऐसे गलत निर्णय के कारण मन ही मन ग्लानि का अनुभव करते हुए पछताना भी पड़ा था।
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
क्या व्यग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है?जी हां सही बात है यह। लेकिन यह सब निर्भर करता है परिस्थितियों पर। परिस्थितियों के विषम होने पर, अनुकूल न होने पर सहजता रह ही नहीं सकती। व्यग्रता,चित्त की अस्थिरता होना स्वाभाविक है। याद करें वह प्रसंग जब मर्यादा पुरुषोत्तम, सहजता की प्रतिमूर्ति श्रीराम ने समुद्र के बात न मानने पर सहजता को छोड़, क्रोध दिखाते हुए,समुद्र को सबक सिखाने की बात कह दी। जरा सी परिस्थिति विपरीत होते ही,बीमार या परेशान होने पर क्या सहज रह पाते हैं हम। छोड़िए जरा सी पावर कट होने पर, पानी न आने पर क्या सहज रह पाते हैं?
अदना सा मच्छर आ जाएं तो मारने को हाथ उठ जाता है,भले ही वह हमारे ही लगे। 
कुछ बातें केवल किताबों में भली लगती है, व्यवहार में नहीं। वैसे अपवाद हर एक के होते हैं।हर स्थिति में सहज रहने वाले भी होते हैं।महर्षि दयानंद ने अपने हत्यारे को भी कुछ न कहते हुए सुरक्षित वहां से निकल जाने दिया। सहजता का एक और उदाहरण ऋषि भृगु ने, भगवान विष्णु के लात मार दी। भगवान सहजता से व्यवहार करते हुए कहते हैं,आपके पैरों में चोट तो नहीं लगी ऋषि। सामान्य बात यही है कि हर स्थिति में सहज रहना स्वाभाविक नहीं होता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
कुछ परिंदों को तो बस दो चार गाने चाहिए l
लेकिन हमें तो आसमानों के खजाने चाहिए ll
आज हमारी अपेक्षाएँ सुरसा की भाँति मुँह बाए खड़ी है उन्हें पूरी करने में व्यक्ति असहज, व्यग्र हो उठता है जबकि हमें सहज धीरे धीरे आगे बढ़ना चाहिए l
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय l
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय ll
अपने भविष्य के बारे में अच्छी आशाएँ करें लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहना होगा l वरना अनायास मुसीबत आने पर व्यग्र और असहज हो जायेंगे जबकि हमें साहस, हिम्मत और सहजता से उनका मुकाबला करना चाहिएl
        जब कोई व्यक्ति अपने आप को अद्वितीय समझने लगता है और अपने आपको चरित्र में सबसे श्रेष्ठ मानने लगता है तब उसका आध्यात्मिक पतन शुरू हो जाता है और व्यग्र होकर अंधी दौड़ दौड़ते हुए अपना सुख चैन खो देता है l
जीवन में चाहें अनचाहे "कभी ख़ुशी कभी ग़म "आता है लेकिन हर स्थिति में मन का संतुलन बनाये रखें और व्यग्र न हों l यहाँ प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसा कब होगा?
जब वस्तु, व्यक्ति और परिस्थिति कैसी भी हो हमें स्वीकारना चाहिए l सहजता से स्वीकार करते रहने में जीवन का आनंद है इसी में हमारा सुख और भलाई है वरना व्यग्रता, विकलता और असंतोष हमारे जीवन के अंग बन जायेंगे l
लोंगो की अनर्गल बातों से अपने आप को प्रबल मत बनाओ, अपने आप को बचाओ l
अपनी गलतियों को माफ करना और दूसरों की गलतियों को पहाड़ बनाने की प्रवृति आपको असहज करती है l अतः स्वयं की और दूसरों की गलतियों को एक ही तराजू में तोलें l
बीती ताहि बिसारिये, आगे की सुधि लेहि l
वर्तमान में जीते हुए जीवन को सरल और सहज बनाएँ l हम प्राणी मात्र में ईश्वर का अस्तित्त्व तो मानते है लेकिन इसे स्वीकार क्यों नहीं करते? यही जीवन में व्यग्रता का कारण है l
                 चलते चलते ----
प्रभु श्री राम कहते हैं -
निर्मल मन -जन सो मोहि पावा l
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ll
   हो सकता है रावण ने विभीषण को हमारा भेद लेने भेजा हो लेकिन अाग्नतुक विभीषण सरल, सहज, निर्मल हैं अतः हे सुग्रीव! हमें उनसे कोई भय, हानि नहीं है और यही सिद्धांत आज हम सब पर लागू होता है l
   -डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
वर्तमान समय में व्यग्रता यानी मानसिक समस्याओं का समस्या है। व्यक्ति मन के समस्याओं से डरे हुए हैं। यही कारण है सुख एवं शांतिपूर्ण जीवन के प्रमुख बाधा।  मन की समस्याओं यानी व्यग्रता से मुक्ति पाने के लिए सहजता  से समझना जरूरी है। व्यग्रता कोई स्थाई तत्व नहीं है एक केवल मनन- काल में होता है। जितनी व्यग्रता होती है उतनी ही लक्ष्य से दूरी बनी रहती है। अतः व्यक्ति ध्येय  के साथ के  सहजता के साथ मनन करें तो  अपने आप मिट जाती है। 
आज समय की पुकार है सहजता अति आवश्यक है जिससे आप अपने परिवार के साथ खुशहाल समय बिता सकते हैं।
लेखक का विचार:- कोरोना कॉल में भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। आप सरकारी निर्देश का पालन करें घर पर रहें सुरक्षित रहें। सुबह शाम योगा करें। संयम से रहे। व्यग्रता नहीं अपनाए।
किसी भी परेशानी को सहजता के रूप में ले।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जीवन में एक बात का ध्यान दें कि हमेशा जल्दबाजी में किए हुए निर्णय के परिणाम घातक होते हैं।
जल्दबाजी में बना हुआ काम भी बिगड़ जाता है।
जल्दी रहे , संयम रखना बहुत मुश्किल होता है पर कभी संयम रखकर देखें इसके परिणाम बहुत  सुखद होते हैं। 
जब मति भ्रष्ट होती है और छाती की और हम जाते हैं तो अपने आप ऐसे योग संयोग बन जाते हैं कि हम आंखों के सामने की सच्चाई भी नहीं देख पाते। 
संयम से हम बड़े से बड़ा कार्य कर सकते हैं।
यदि कार्य चित्त एकाग्र नहीं रहेगा तो कभी हम कोई काम सही रूप से नहीं कर पाएंगे इसलिए हमें अपने चित्त और को एकाग्र रखकर ही कार्य को करना चाहिए मन से या दिल से कोई भी कार्य हमें अच्छा लगे वही कार्य जब हम करते हैं तो हमें जीवन में सफलता प्राप्त होती है बिना मन के हम अन्य ने जो कार्य करते हैं उसमें हमें कभी सफलता नहीं प्राप्त होती और हो भी जाती है तो हमें आत्म संतुष्टि नहीं होती है।
एक  विद्यार्थी परीक्षा देने जा रहा है वह अपने मन को एकाग्र और शांत नहीं रखेगा सोचेगा कुछ लिखेगा कुछ तो वह परीक्षा क्या दे पाएगा उसे प्रश्न दो तीन बार पढ़ने के बाद भी नहीं समझ में आएगा और उत्तर व कुछ सोचेगा और उसे कुछ लिख जाएगा उसे परीक्षा में असफलता ही प्राप्त रहेगी इसीलिए विद्यार्थियों को परीक्षा में जाने से पहले एकाग्र चित्त होना चाहिए और हमेशा अपने प्रश्न पत्र को चित्त को एकाग्र रखकर दो तीन बार पढ़ना चाहिए अपने आप आप उत्तर लिख लेंगे ,तो आपको कक्षा में पढ़ा हुआ अभी याद आ जाएगा, इसलिए एक आदत होकर ही हमें हर कार्य को करना चाहिए ।
यदि हम एकाग्र चित्त होकर भोजन बनाते हैं रसोई में भी तो वह भी भोजन बहुत स्वादिष्ट बनेगा और हमारा चित्त यदि शांत नहीं है तो उस दिन सब्जी या दाल में नमक नहीं रहेगा।
एकाग्र चित्त होकर एक चींटी भी हाथी को परास्त कर सकती है।
तभी हमारी कवियों ने कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा सब कुछ हमारे मन पर ही है एकाग्र चित्त होकर ही हम मन को दृढ़ संकल्प करके कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी हिमालय में चल सकता है और हम अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए कभी अपने मती को भ्रष्ट न होने दें।
स्वस्थ रहें स्वास्थ्य सच्चा धन।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
हाँ ! व्यग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है। व्यग्रता में शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है। और व्यक्ति सहज रूप से कोई कार्य नहीं कर सकता है। मनुष्य के लिए सहजता ही अति आवश्यक है। व्यग्र होने से मनुष्य के सही गलत निर्णय करने में असुविधा होती है। सटीक निर्णय नहीं हो पाता है जिसे बना बनाया काम भी बिगड़ जाता है। इसलिए व्यग्रता से अधिक सहजता की जरूरत हर कार्य में होती है। जब हम कोई भी कार्य सहज होकर करते हैं तो हम आसानी से उस कार्य को सम्पन्न कर लेते हैं। वहीं व्यग्रता से कुछ नहीं हो पाता है। केवल बेचैनी बढ़ती है और फालतू की परेशानी होती है। इसलिए व्यग्रता से सहजता अति आवश्यक है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
व्यग्रता के कारण यदि हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है तो सबसे पहले यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि ऐसा क्या कारण है और उसका निदान ढूंढना चाहिए। यह सही बात है कि व्यग्रता से हमारे दैनिक जीवन में नुकसान ही होता है इसलिए सहजता बहुत ही जरूरी है। व्यग्रता के कारण यदि किसी काम को करने में तनाव उत्पन्न हो तो उसका निदान ढूंढना चाहिए। जीवन में यदि व्यक्ति को विकास करना है आगे बढ़ना है तो उसे सहजता को अपनाना चाहिए। कोई भी व्यक्ति व्यग्रता, व्याकुलता, चिंता से परेशान ही हो सकता है। इसलिए कोई भी काम करने से पहले व्याकुल न होकर उसकी योजना सहजता से बनाना चाहिए ताकि जब काम शुरू हो तो उसमे बाधा उत्पन्न न हो सके। जीवन की उलझन व्यग्रता से सुलझा नहीं करती है। मौन रहकर कुछ क्षण तो हल सोचना होगा। जीवन की बाधा अवसाद में हल नहीं हुआ करती है उनमें व्यर्थ समय को गवाना पड़ता है। इसलिए गजरता से अति आवश्यक सहजता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
         सहजता वास्तव में व्यग्रता से कहीं अधिक आवश्यक है। क्योंकि सरलता और सहजता प्राकृतिक जीवनशैली का दूसरा नाम है और एक प्रकार की संजीवनी है। जबकि व्यग्रता अर्थात चिंता विष के समान है। जिसके लपेटे में जो व्यक्ति एक बार आया फिर कभी इसके चक्रव्यूह को भेद नहीं पाया। जो "चिंता चिता समान" मुहावरे को पूरी तरह चरितार्थ करती है।
         उल्लेखनीय है कि मैं इस व्यग्रता का तथाकथित रोगी हूं और धीरे-धीरे इसके चंगुल से मुक्त हो रहा हूं। वर्णनीय है कि मैं सशस्त्र सीमा बल विभाग में वरिष्ठ क्षेत्र सहायक (मेडिकस) के पद पर 05-12-1990 को नियुक्त हुआ और उसके उपरांत मुझे विभागीय 80 दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया था। जिसे उत्तीर्ण करने के उपरांत मैंने मासूम ग्रामीणों को अंग्रेजी दवाइयां देने का अपना विभागीय दायित्व निभाना आरम्भ किया। जिसमें मुझे मेडिकल कौंसिल आॅफ इंडिया के अधिनियम 1956 के कारण भय हुआ कि यदि मेरी उक्त दवाई से कोई मर जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? क्योंकि उपरोक्त अधिनियम में "झोला छाप" डॉक्टरों द्वारा दवाई देना अपराध माना गया है। अन्य भ्रष्टाचार के घटकों के साथ-साथ मेरी उपरोक्त घटक के कारण व्यग्रता बढ़ती गई और एक दिन मैंने अपने-आपको मनोचिकित्सालय में पाया। जिसके बाद मुझे मेरे अधिकारियों ने अत्याधिक सताया और मेरे ऊपर देशद्रोह का घृणित आरोप भी लगा दिया। जिसे उसी मनोचिकित्सालय के डाॅक्टरों के बोर्ड ने विभागीय प्रताड़ना का सर्टिफिकेट दिया।
         हालांकि उसी प्रताड़ना को दिल्ली के डाॅ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों के मेडिकल बोर्ड ने "स्कीजोफ्रेनिया" का नाम दिया। जिसे बाद में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के मनोचिकित्सकों के मेडिकल बोर्ड ने मुझे मानसिक स्वस्थ पाया और अब न्यायालय में मेरी याचिका विचाराधीन है। जिसमें मेरा विभाग अपने शपथपत्र के साथ इसी न्यायालय में लगाए गए "देशद्रोह" के घृणित आरोप से शपथपत्र के साथ ही मुकर गया है। क्योंकि झूठ के पांव नहीं होते।
         अतः मेरी व्यग्रता सहजता में परिवर्तित हो रही है। चूंकि मैं एक देशभक्त हूं और वर्तमान सरकार देशभक्त और देशद्रोही में अंतर जानती है। जबकि सर्वविदित है कि यह व्यग्रता वह व्यग्रता अर्थात चिंता है जिसमें बड़े-बड़े अपराधी "फांसी के डर" से अपनी पतलून गीली कर देते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है। आपातकालीन परिस्थितियों में व्यग्रता का प्रदर्शन एक सीमा में उचित है। जब किसी के जीवन-मरण का प्रश्न हो तो व्यग्रता दिखाएं किन्तु सहजता के साथ। सामान्य जीवन में सहजता बहुमूल्य है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
 जी हां  व्यग्रता से अधिक  सह जता अति आवश्यक है क्योंकि कोई भी मनुष्य व्यग्रता में जीना नहीं चाहता   व्यग्रता मनुष्य को राज की ओर ले जाता है व्यग्रता मन तन दोनों  को उलझा देता है।  
 कोई भी मनुष्य उलझकर  अर्थात समस्या में जीना नहीं चाहता। हर व्यक्ति समाधान  पूर्वक सहज भाव से जीना चाहता हैअतः  कोई भी व्यवहार कार्य समझ कर करना चाहता है ताकि उस कार्य में किसी भी प्रकार की समस्या अर्थात व्यग्रता ना  आए क्योंकि व्यग्रता से किया गया कार्य मैं समस्या आने की संभावना बनी रहती है अतः व्यग्रता त्याग पर समझकर सहज भाव से करने से कार्य सफल होता है । इसीलिए हर मनुष्य को सहजता की आवश्यकता होती है। सहज भाव से कोई भी कार्य करने से परेशानी नहीं होती है और बिना परेशानी के साथ हर व्यक्ति जीना चाहता है इसीलिए स्वच्छता अति आवश्यक है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
व्यग्रता और सहजता दोनों प्राकृतिक गुण है । व्यग्रता को हम उतावलापन , जल्दीबाजी ,मनकी अधीरता का नाम दे सकते हैं । इस स्वभाव के लोग अपने काम या जिम्मेदारी को समय नहीं दे सकते ।बस उसके सुखद परिणाम का स्वप्न देखने लगते हैं जो कभी मिल भी जाता है नहीं तो , वे  विफल होते हैं । भावनाएं हमारे जीवन का आधार होती है ।उसी के जरिए हमारी सफलता या असफलता निर्धारित होती है । सहजता जीवन में शांती देती है ।
विवेक और धैर्य से सहजता जुड़ी होती है ।सहजता जीवन को समझने के लिए समय माँगती है ।
सोच समझ कर अपनी जिन्दगी को चलाने वाला व्यक्ति कभी जल्दीबाजी में निर्णय नहीं लेता ।वह प्रयः सफल ही होता है । व्यग्रता  एक दुर्गुण है ,प्रयास कर हमें उसे दूर करना चाहिए । सहजता एक सद्गुण है उसका दामन नहीं छोड़ना नहीं चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
व्यग्रता से अधिक सहजता अति आवश्यक है और ऐसा महत्वपूर्ण भी है। व्यग्रता में अधीरता भी निहित होती है जो मन को व्यथित तो करती ही है, दिलोदिमाग को अव्यवस्थित भी करती है। इससे हमारे सोचने और समझने की शक्ति में तत्समय व्यवधान उपस्थित हो जाता है और हम इस हड़बड़ी में अप्रत्याशित गड़बड़ी कर बैठते हैं। जो सामान्यतः संभव नहीं हो सकती थी। व्यग्रता एक स्वभावगत मनोवैज्ञानिक कमजोरी होती है जो अनेकों में होती है। इसे दूर करने के उपाय भी हैं। जिन्हें अपनाकर इसका निदान करने का प्रयास किया जाना चाहिए। जब हमसे व्यग्रता दूर होगी तभी हम सहज और सरल बनेंगे जिससे हमारी सोचने और समझने की शक्ति और सामर्थ्य बलवती होगी। हम जितने सहज और सरल होंगे हमारे काम, हमारे उद्देश्य उतने कारगर होंगे,जिससे परिणाम सुखद प्राप्त होंगे। संक्षेप में इसे आत्मबल और आत्मविश्वास के रूप में भी देखा जा सकता है। जिसे दृढ़ करना अति महत्वपूर्ण और बहुत आवश्यक है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
व्यग्रता मन के भटकाव का कारण होता है। मानव मन किसी एक लक्ष्य पर ही केंद्रित हो पाता है। उसके अन्य पहलू उसे नजर ही नहीं आते । इसलिए बुजुर्गों ने कहा है कि 'सोच-समझ कर कार्य करो।' इससे उस कार्य की कठिनाइयाँ , करने के तरीके और परिणाम पर विचार किया जा सकता है।
सहजता व्यक्ति के विवेक को जागरूक रखती है। कार्य के हर पहलू पर पैनी नजर डालने में सक्षम होती है। 
अतः किसी भी स्थिति में सहज भाव को बनाये रखना जरूरी है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या व्यग्रता से अधिक सहजता की जरूरत है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा वर्तमान समय में जब परेशानियों ने हम सब को घेर रखा है और कोरोना जैसे बीमारी चारों तरफ फैली हुई है ऐसे में मन का परेशान होना स्वाभाविक है परंतु अधिक व्यग्र होना और अधिक नुकसान का कारण बन सकता है ऐसे में अपने व्यवहार को सहज रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि सहजता के साथ ही हम परिस्थितियों का सामना विवेकपूर्ण ढंग से कर सकते हैं और कुछ न कुछ हल अवश्य निकल सकता है अतः व्यग्रता से अधिक आवश्यकता सहजता की है और यह आवश्यकता प्रत्येक समय में बहुत महत्वपूर्ण है और परेशानियों का हल इसी तरीके से निकाला भी जा सकता है व्यग्रता की स्थिति में व्यक्ति सही प्रकार से विवेक से निर्णय नहीं ले पाता हत्या यह कहा जा सकता है कि व्यग्रता से अधिक आवश्यकता सहजता की है
 
- डॉ प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
निश्चित रूप से व्यग्रता से अधिक सहजता आवश्यक होती है। किसी बात को लेकर उसके लिए अनावश्यक रूप से व्यग्र होने या कुंठा ग्रस्त होने से कोई फायदा नहीं होता। उससे मानसिक संतुलन ही बिगड़ता है। उसी बात को सहज रूप में लेकर उस पर बार-बार विचार करें, उसका निदान खोजने का प्रयास करें ।वह अधिक लाभकारी रहता है। व्यग्रता में उतावलापन होता है वह दूरगामी नहीं सोच पाता जबकि सहजता से किसी संबंध में विचार किया जाए तो उससे सकारात्मक परिणाम की सोच उपलब्ध हो जाती है क्योंकि वह हर तरफ से  परिस्थिति पर गौर करके निर्णय लेता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  प्राकृतिक का  शांत यानि सहजता सभी को अच्छी लगती है । आंधी - तूफान किसी को भी अच्छे नहीं लगते हैं । यहीं व्यग्रता का परिणाम है । बाकी प्राकृतिक सभी कुछ दिखा देती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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