क्या संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए ?

कहते हैं कि हर संकट का समाधान सम्भव है ।परन्तु समाधान सही हो तो संकट समाप्त हो जाता है । ऐसा सभी सोचते हैं । क्या ऐसा होता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
जी हाँ - - सत्य है कि संकट से बड़ा समाधान का प्रयास होना चाहिए अपनी अंश्चेतना के जरिए। 
       हनुमान चालीसा में वर्णित है--"संकट कटै मिटे सब पीरा जो सुमिरौ हनुमत बल बीरा"
यहाँ तो संकट के साथ ही समाधान की बात को ज्यादा ध्यान में लाया गया है फिर--निःसंदेह समाधान ज्यादा जरूरी है।  precaution is better than cure घुमा-फिराकर इन शब्दों में भी संकट से अधिक समाधान की पहल को ही प्रधानता दी है। संकट तो अनागत होते हैं - - अनचीन्हे होते हैं अचानक आ जाते हैं - - मगर समाधान तो एक सोची समझी प्रक्रिया होनी चाहिए। उदाहरण के लिए मैं कहूँ कोविड 19 के हर नये वेरिएंट के साथ आने वाले बढते  संकटों पर समाधान तो हर एक की जिम्मेदारी है। सिर्फ सरकार के भरोसे बैठकर सरकारों को  व्यवस्था को गालियाँ देकर हम अपने आप को बरी नहीं कर सकते। अपने-अपने तरीके से अनुशासित जीवन का समाधान संकट से पहले जरूरी है। जादू की छड़ी नहीं है कहीं भी कि घुमाई और समाधान हाजिर।
      चक्रव्यूह में प्रवेश करने के पहले यदि अभिमन्यु बाहर निकलने की कला भी सीख रखते तो शायद महाभारत की परिणति में बहुत बदलाव होते लेकिन मानवीय संचेतना संवेदनशीलता के साथ मिलकर दिमाग से नहीं दिल से काम लेती हैं और समाधान के पहले ही संकट हावी हो जाता है। 
      संकट की आहट को पहचान कर समाधान की राहें खोज लेना ही सहज और सही मानव धर्म है--समाज धर्म है--देश धर्म है। हम बादलों की आराधना करते रहे और हवाओं ने हमारी छत ही छीन ली--तो यही कहना पडे़गा कि--"अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। "
        तो चलिये समाधान खोजते हैं हर भावी संकट का--एक जुटता के साथ। समस्त जाति वर्ग द्वेष को भूलकर अपनी उज्वल अंश्चेतना को जगाकर
- हेमलता मिश्र मानवी
 नागपुर - महाराष्ट्र 
     जीवन तंत्र में संकट और समाधान एक सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों की क्रियाऐं एक जैसी ही हैं, लेकिन कुछ लोग स्वार्थ के लिए संबल रुप में ध्यानाकर्षण कर संकट उत्पन्न करते हैं , फिर समाधान करने के लिए लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं। वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों की जन व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो रहे हैं और अपने आप संकटों को आमंत्रित करते हैं और कोर्ट कचहरी के चक्कर में समय व्यतीत करते हैं, अगर हम पूर्व से संबंधों में समाधान की दिशा में कार्य करते तो संकट उत्पन्न नहीं होता। आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं और जिससे दूसरे को हँसने-हँसाने से कभी-खुशी, कभी-गम से सहानुभूति के आधार पर परिभाषित करेगें, तो सामने वाला सोचने पर मजबूर हो जायेगा। इसलिए हनुमान जी को संकट मोचन के नाम से जाना जाता हैं। आधुनिक युग में भक्त गण संकट का समाधान करने इन्हीं के द्वार माथा टेकने जातें हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
जरुरी है संकट का समाधान तो होनी ही चाहिये पर होता नहीं जनता दोषी या सरकार यह मुद्दा नहीं है । संकट कई तरह के होते हैं और आने का आभास देते है । पर हमारी कोई तैयारी नहीं होती । 
जल संकट , ऊर्जा संकट , पर्यावरण संकट , आपदा , महामारी , ये तमाम संकटों से निपटने के लिये हमारे पास समाधान होना चाहिये ..,पर 
अफसोस की बात यह है कि इस संकट के समाधान के लिए जो सही प्रयास होने चाहिए वे कहीं से भी शुरू नहीं किए जाते - न तो प्रशासन, न सरकार की ओर से और न जनता की ही ओर से। बड़ी-बड़ी योजनाओं पर बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन भारी-भरकम लागत के कारण इन पर काम कुछ भी नहीं हो पाता है। हालांकि जिन छोटी योजनाओं पर कम लागत में काम हो सकता है, उनकी चर्चा तक नहीं की जाती। 
कोरोना को ही ले लो पिछले साल दस्तक दी थी पर हमने बहुत देर से सुनी और आने वाले संकट की तैयारी नहीं की , दूसरी लहर आने में तीन महिने हमारे पास थे पर प्रशासन और सरकार किसी ने कोई योजनबद्घ तरीक़े से समाधान नहीं किया । 
आज हालात। क़ाबू से बहार है । हम बडे संकट से जूझ रहे पर अभी तक कोई पर्याप्त समाधान नहीं हो पाया है । 
न कालाबाज़ारी बंद हो रही न 
मौत ....
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
"समाधान हर मुश्किल है
अगर वुद्दि और विवेक से काम लिया जाए, 
थोड़ा साहस और थोड़ा धैर्य से काम  किया जाए, 
कड़ी मेहनत करते रहें और ईश्वर का नाम लिया जाए"। 
इस समय कोरोना के कहर ने  सारे विश्व को घेर लिया है
यहां तक की भारत मे़ इसका प्रकोप महमारी का रूप ले चुका है और इसका कहर  रूकने का नाम नहीं ले रहा है 
ऐसी संकट की घड़ी में हमें क्या क्या कदम उठाने चाहिए व कैसे समाधान अपनाने चाहिए, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या संकट से  बड़ा समाधान होना चाहिए? 
 मेरा मानना है कि मौजुदा संकट को देखते हुए जो केवल स्वास्थ का संकट ही नहीं है बल्कि यह सभ्यता का व वितीय संकट भी बन कर  उभरा है जिससे भारत की  इकोनामी पर भी बहुत बडा असर होने लगा है  इस महा संकट के लिए हमें सच मे़ बहुत  बडे समाधान की जरूरत है जिसे अपना कर हम इस कहर से निजात ही नहीं पा सकें अपितु जन जीवन को भी संभाल सकें ताकि जन जीवन भुखमरी की कगार तक न पहुंच जाये, 
 यह संकट हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती बन कर उभरा है
इसलिए हमें  इसका समाधान  उस ढंग से करना चाहिए कि हम अपने अस्तित्व को बचा पांए
सच कहा है, 
"समाधान हर मुश्किल है बस
शर्त इतनी है कि आप उसे संभालते कैसे हो। 
 मेरे ख्याल में ऐसे संकट काल में कोरोना वैक्सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ करना चाहिए जिसके लिए लोगों का योगदान बहुत जरूरी है, 
इस वायरस ने दूनिया की अर्थव्यबस्था को झंझोड़ कर रख दिया है जिसका असर भारत की अर्थव्यबस्था पर  भी कम नहीं आंका जा सकता भारत की इकोनामी को गहरा धक्का लगा है जिसका कारण हम लाकडाउन भी कह सकते हैं जिसके कारण सभी फैकटृी 
आफिस, माल्स आदि सब बंद पड़े हैं जिससे अर्थव्यबस्था मुश्किल दौर मे पहुंच चुकी है, 
इसलिए इस महमारी व  वितिय संकट से निपटने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा प्रभावी कदम उठाने होंगे नहीं तो यह आर्थिक संकट हमे बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा क्योंकी अगर लाकडाउन आगे बड़ा तो वृदि दर चार फीसदी से घट कर 1.5 फीसदी तक पहुंच सकती है, 
इसलिए हमें जान और जहान दोनों को बचाना है जिसके लिए हमे अपने मे कुछ बदलाब लाने होंगे, 
सच कहा है, 
"मुश्किल कोई आन पड़े तो घवराने से  क्या होगा
जीने का तरीका निकालो
मर जाने से क्या होगा"।  
हमें आर्थिक मंदी  पर अपने बजट पर फिर से विचार करना होगा तथा गैर जरूरी खर्च घटाने होंगे और सस्ते विकल्प पर विचार करना होगा इसके साथ साथ हैल्थ पालिसी भी हमारे लिए कारागार सिद्ध हो सकती है तथा हमे़ एक इमरजैंसी फंड भी अपने पास रखने की जरूरत है इसके  ऐलावा हमै़ अपने शौक पर फोकस रखने की जरूरत है, 
इसके अतिरिक्त पूर्व प्रधाममंत्री मनमोहन जी की मानें तो भारतिय  सरकार को तीन कदम उठाने होंगे जिनमें
सरकार को लोगों की आजीवका को सुनिच्छत करना होगा, सरकार को  क्रेडिट गारंटी प़्रोग्राम के तहत पर्याप्त पुंजी उपलव्ध करानी होगी, 
फानेंशिल सेक्टर को ठीक करना होगा, 
अन्त में यही कहुंगा कि अगर हम इन सारी बातों को ध्यान में रखकर चलते  हैं तथा सरकार भी सभी नियमों को ताक कर कार्य करती है तो यह संकट भी आसानी से संभल सकता है, सिर्फ हमें वुदि और विवेक से काम लेना होगा तथा हिम्मत दिखानी होगी तब हम हर समस्या का समाधान कर सकते हैं, 
सच कहा है, 
"समाधान हर मुश्किल का है
बस तुम हार मत मानो, 
अगर आए मुश्किल रास्ते मे़ कहीं तो रास्ता वदल डालो
मगर मंजिल पाने की जिद्द मत टालो"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
किसी भी प्रकार के संकट से उबरने के लिए उससे अधिक समर्थ समाधान का उपयोग किए जाने पर ही संकट से उबरा जा सकता है। यदि संकट बड़ा है ,अधिक शक्तिशाली है और उसका समाधान उस से कमतर है तो कभी भी संकट टाला नहीं जा सकता। इसलिए किसी भी प्रकार के संकट को दूर करने के लिए उससे अधिक शक्तिशाली या प्रभाव कारी समाधान खोजना नितांत आवश्यक होता है। जैसे कि अभी कोरोना महामारी का संकट  का दौर चल रहा है इस संकट को दूर करने के लिए कोरोना से अधिक शक्तिशाली दवाई का निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। तभी वह इस महामारी के वायरस को खत्म कर पाएगी अन्यथा नहीं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
कोई भी संकट बड़ा ही तब होता है जब उसके समाधान छोटे होते हैं। इसको यूँ भी समझा जा सकता है कि संकट के समाधान हेतु जब पर्याप्त रूप से प्रयास नहीं किए जाते तो संकट विकराल होता चला जाता है।
संसार में समय-समय पर विभिन्न संकट आते रहते हैं और प्रत्येक संकट ऐसी सीख दे जाता है कि भविष्य के लिए समाधान हेतु पूर्व में ही आवश्यक कार्य कर लिए जायें।
क्या गत वर्ष कोरोना के संकट ने हमें कुछ सिखाया नहीं था?
सही तो यह ही है कि हमने उससे कोई सबक नहीं लिया और न ही समाधान हेतु पर्याप्त प्रबंध किए।
मानव मन की यह दुर्बलता है कि वह संकट के समय तो अनावश्यक चिंता से हानि उठाता है और संकट टल जाने के बाद सब कुछ भूलकर लापरवाह हो जाता है।
यही लापरवाही संकट को समाधान से बड़ा बना देती है। 
निष्कर्षत: यही कहूंगा कि संकट के समय अतिरिक्त सावधानी और संकट से पहले उसके समाधान के विषय में विचार और प्रबंध किए जायें तो प्रत्येक संकट का सार्थक समाधान हो सकेगा। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
जी बिल्कुल ,समाधान  को संकट से बड़ा होना चाहिए क्योंकि समाधान पर ही जीवन चलता है ।
कहते हैं की उम्मीद पर दुनिया कायम है, अतः उम्मीद रख कर समस्याओं के हल खोज कर निस्तारित करने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि समाधान पर ही जीवन चलता है ।
जिस स्थिति या परिस्थिति को हमारा मन जटिल मानता है या यूं कहें जिसमें अनुकूलित नहीं हो पाता उसे समस्या माना जाता है।
 कहने का आशय यह है कि समस्या हमारी दृष्टि पर आधारित होती है ।
जीवन है तो समस्याएं तो आएंगी ही ।
किसी ने ठीक ही कहा है कि हमारी दृष्टि ही सृष्टि की निर्मात्री है। बहरहाल जीवन में कभी कभी बाहरी कारणों की वजह से हमारे सामने ऐसी विषम परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसका सामना ना चाहते हुए भी करना पड़ता है। ऐसी दशा में हम क्या करें और कैसे उस से निपटें अर्थात वस्तुगत रूप से कौन सी प्रक्रिया अपनाएं ।
दरअसल समस्या विहीन जीवन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
समस्या आने पर कैसे हल् करें , उसका समाधान कैसे निकालें।
 इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बातों की जानकारी लेना जरूरी है ,जैसे कि सबसे पहले अपने मन में झांकें कि आपको कौन सी बात मूल रूप से तनाव दे रही है ।यह आपका कोई व्यवहार, विचार या भाव हो सकता है ।
समस्या का दूसरा पहलू है संभावित विकल्पों पर विचार करना। आप के मन मस्तिष्क में जितने हल हो लिख डालें ।इसके बाद तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन करना ।अब बारी बारी से एक एक विकल्प को व्यावहारिकता के आधार पर निस्तारित करते चलें ।
कहने का आशय यह है कि  जो सबसे उपयुक्त लगे उसका चयन करें फिर उसे लागू करें। जानना वही होता है जो जीवन में लागू किया जा सके ।
अगर हम ठीक से जानेंगे तो ही ठीक से करेंगे।
 वास्तव में उधार का ज्ञान बहुत ज्यादा काम नहीं आता, हां अपने ज्ञान से अपनी सोच से समस्या का हल निकालने का प्रयत्न करें।
 मगर दूसरों से भी उचित मार्गदर्शन ले सकते हैं ,उस पर अमल कर सकते हैं ।
हर समस्या का कोई न कोई समाधान तो होता ही है और समाधान  पर ही जीवन चलता है,,, समस्याओं से लड़ें व परास्त करने का प्रयत्न करें  ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए? बात तो ठीक ही कही है। लेकिन संकट हमेशा अप्रत्याशित रुप से सामने आता है। यदि प्रत्याशित हो तो वह समस्या होती है और उसके समाधान का पहले से प्रयास भी किया जाता है। लेकिन संकट तो नाम ही उस स्थिति का है,जब संभलना भी कठिन हो। आपदा ही संकट का दूसरा नाम है।वह प्राकृतिक हो या मानवजनित संभलने का अवसर ही नहीं देती।
हालांकि आपदा प्रबंधन जैसी योजनाएं हैं, लेकिन यह सब बहुत बाद की बातें होती हैं। संकट समाधान भी इसी के अंतर्गत आता है।
जैसे कोरोना महामारी वैश्विक संकट आया। इसने संभलने का मौका भी नहीं दिया,कितनी बड़ी संख्या में जान इसकी भेंट चढ़ गयी। समाधान के रुप में वैक्सीन आने में एक वर्ष से अधिक का समय लग गया। इसके बाद अब भी कोविड-19 वायरस की प्रकृति नित बदल रही है। इसलिए यह भी कोई बड़ा समाधान नहीं।संकट से बड़ा समाधान यदि पहले ही हो जाए तो फिर संकट होगा ही नहीं, समस्या ही होगी, जिसका समाधान होना कठिन नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
   .  संकट. और समाधान दोनों "स" से आरंभ होते हैं ।सं+कट और सम+ आधान यह संधि भाषा विज्ञान के अनुसार अशुद्ध हो सकती है पर मन के विज्ञान के अनुरूप एकदम सही है । भारत के आम जन के कुछ सिद्धांत सामान्य दिखते हैं पर होतें हैं गूढ़ ।दवा से ज्यादा दुआ, खर्च कम बचत ज्यादा, वर्तमान काल से ज्यादा भविष्य की चिंता, इस लोक से ज्यादा ईहलोक की चिंता ज्यादातो उसी तरह संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए।
संकट समय बता कर, पूछ कर नहीं आता कि मैं दुख देने आ जाऊँ क्या?. संकट के समय व्यक्ति घबराहट में छोटी तकलीफ को भी बड़ा समझता है। समाधान सामने हो तो भी दिखता नहीं है ।
  जिस प्रकार शरीर से ज्यादा  मन की शक्ति बड़ी होनी चाहिए उसी प्रकार संकट से बड़ा समाधान होना ही चाहिए। संसार में संकटों से वही उभरता है जो व्यवहारिक समाधान खोज कर उस पर अमल करता है ।
समाधान ठोस धरती और विस्तृत आसमान की तरह होना चाहिए ।
    -  डा.नीना छिब्बर
     जोधपुर - राजस्थान
*हां* संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए।
 हमारे देश में जनसंख्या बहुत अधिक है इस पर कानून बनाकर लागू करा के समाधान निकाला जाए ना चाहिए।
अभी देश में कोरोनावायरस बहुत बड़ा संकट बन कर आया है। इसके लिए सरकार ने कुछ कडें नियम  बनाकर देशवासियों से पालन भी करवाएं तो पहले लहर अधिक प्रभावशाली नहीं हो पाया। इसी बीच वैक्सीनेशन के अविष्कार करने के बाद हर देशवासियों को देने का निर्णय लिया गया। पहले सीनियर सिटीजन, उसके बाद 18 से 45 वर्ष के उम्र वाले को दिया जा रहा है। यानी संकट से बड़ा समाधान की जा रही है। लॉकडाउन के चलते देश की आर्थिक स्थिति यानी जीडीपी बहुत निचले स्तर पर आ चुका  था।इसलिए दूसरी लहर में जिस शहर या राज्य में ज्यादा प्रभावित है उस जगह को ही लॉकडाउन किया जा रहा है,साथ ही  साथ कडे नियम के पालन भी जनता से करवाया जा रहा है। इसके कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगड़े नहीं। इसको भी ध्यान रखा गया है।
तीसरा बड़ी संकट जल। पृथ्वी पर 74% जल है लेकिन पीने के लिए मात्र 18% है।
आयोग ने इस पर चिंता व्यक्त की है और सुझाव दिए हैं जल संरक्षण के लिए। जनता को जागरूक किया जा रहा है बताया जा रहा है जल का महत्व अगर जनता नहीं मानेगी तो 2025 के बाद पीने के लायक पानी नहीं रहेगा।
लेखक का विचार:--
यह सब देश के संकट है बड़ा समाधान की जरूरत है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
संकट है तो समाधान होना ही चाहिए फिर वह संकट से बड़ा हो अथवा छोटा!  संकट के समय तात्कालिक समाधान ढूंढते हैं जिससे हमें राहत मिले तत्पश्चात उसका ठोस समाधान ढूंढते हैं! 
आज कोरोना महामारी से बचने के लिए  हमारे पास वैक्सीन बड़ा समाधान के रुप में है चूंकि हमने इसके लिए  समय दिया किंतु 2020 में हमने उस समय  महामारी को रोकने के लिए ताबड़तोब में पूर्ण लॉकडाउन को ही समस्या का समाधान बनाया यह सोचते हुए 'जान है तो जहांन है ' !तकलीफे आई किंतु समय की नजाकत के अनुसार वही ठीक था! हम सफल रहे और बड़े समाधान (वैक्सीन) के लिए  समय दे पाये! समस्या से समाधान बेशक बड़ा होना चाहिए  किंतु साथ ही समस्या का समाधान समय और स्थिति के अनुसार होना चाहिए! 
            - चंद्रिका व्यास
            नवी मुंबई - महाराष्ट्र
        निस्संदेह संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए। क्योंकि जब तक समाधान नहीं होगा तब संकट समाप्त नहीं होता। भले ही वर्षों बीत जाएं।
        जबकि समस्या के साथ-साथ उसका समाधान भी अनिवार्य है। जिसका महत्व भी अधिक है। चूंकि जीवन संकटों से भरा पड़ा है। जिनके निवारण हेतु हमारे पास मस्तिष्क और अन्य संसाधन हैं।
        परंतु एक कड़वा सच यह है कि संकट से निपटना समाधान से अधिक सरल और आरामदायक है। जिसका उदाहरण यह है कि मैं साजिशों का शिकार होता रहा और संकटों से जूझता रहा। जिनके समाधान हेतु मैं अधिवक्ता के पास गया। जिसने मुझसे फीस ली पर माननीय न्यायालय में याचिका दायर नहीं की थी जिससे मेरे संकट के साथ-साथ एक शत्रु भी बढ़ गया। उसके उपरांत दूसरे अधिवक्ता के पास समाधान हेतु गया। उसने भी फीस ली परंतु केस दायर नहीं किया। उसके उपरांत माननीय उच्च न्यायालय में समाधान हेतु धर्मपत्नी ने पत्र लिखा। जिसे माननीय न्यायालय ने याचिका मानकर सुनवाई हेतु न्यायाधीश के पास भेजा परंतु समाधान के स्थान पर न्यायमित्र और न्यायमूर्ति से अपमान मिला। संकट गहराता गया और नौकरी भी हाथ से गई परंतु समाधान नहीं हुआ।
        उसके बाद चौथे अधिवक्ता के द्वार पर दस्तक दी। जिसने अपनी इच्छा अनुसार मुझे पागल की पैंशन दिलाकर बहुत बड़ा एहसान किया परंतु मेरे एक भी संकट का निवारण नहीं किया। सच मानों तो मेरे संकट को बढ़ावा दिया। जिसके लिए मैं निरंतर संघर्षमय हूं और समाधान के लिए पिछले 28 वर्षों से उत्पीड़ित हूं और 1994 से अधिवक्ताओं और न्यायालयों में समाधान हेतु चक्कर काटते-काटते घर भी बर्बाद कर चुका हूं।
        जबकि सत्य यह है कि अधिवक्ताओं एवं न्यायमूर्तियों ने मेरे समाधान के नाम पर मुझे गिद्दों की भांति जीवत ही नोचा है। जबकि गिद्दें मृत्यु उपरांत नोचती हैं। जिससे सिद्ध होता है कि संकट से बड़ा समाधान होता है और गिद्दों से अधिक घातक अधिवक्ता होते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन चक्र एक पहिए के समान है। समय की घड़ी पल-पल चलती और बदलती रहती है कभी भी रुकती नहीं है जिस तरह एक रात के बाद नई सुबह आती है ठीक उसी तरह जीवन में संकट का आना एक आम बात है।
 जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
जीवन में आने वाले संकट छोटे बड़े हो सकते हैं लेकिन धैर्य से उसे समझा जाए तो उस संकट का समाधान अवश्य ही आसानी से निकलता है और वह संकट हमें छोटा लगने लगता है।
 जीवन में कभी भी हमें संकट का सामना करना पड़े तो कोई न कोई राह अवश्य निकलती हैं।ओर उस संकट का समाधान भी हो ही जाता है यदि संकटकाल में धैर्य से काम ले तो समाधान अवश्य ही निकलता है इसीलिए संकट से बड़ा समाधान ही होता है।
      - वंदना पुणतांबेकर 
            इंदौर - मध्यप्रदेश
किसी भी संकट को दूर करने के लिए उसका विकल्प होना चाहिए। कहने का तात्पर्य है कि संकट से बड़ा उसका समाधान होना चाहिए। पूरे विश्व में कोविड-19 सबसे बड़ा संकट बनकर सामने आया जिसमें लाखों लोग मौत की चपेट में आ गए। भारत में कोरोना का दूसरा स्टेज बहुत ही खतरनाक स्थिति में लोगों परेशान कर रखा है।कोरोना के इस दूसरे लहर में पूरे भारत देश में अभी ऑक्सीजन की बहुत ही संकट है। ऑक्सीजन के बिना हजारों कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो चुकी है। हर राज्य में मौत का तांडव देखने को मिल रहा है और इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भी पूरी तरह सक्षम नहीं दिख रही है। भारत में कोरोना के दूसरे स्टेज को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका, रूस, फ्रांस सहित दर्जन भर से अधिक देश मेडिसिन और मेडिकल उपकरण के रूप में मदद पहुंचा रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि अब इससे निपटने के लिए सुप्रीम और हाई कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ रहा है।
उदाहरण के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सख्त हिदायत देते हुए आदेश निर्गत किया है कि 48 घंटे के अंदर ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाए ताकि लोगों को मरने से बचाया जा सके। देश के हर राज्य में ऑक्सीजन कि संकट झेलनी पड़ रही है। इसके लिए लोगों को लंबी कतारें लगानी पड़ रही है। फिर भी ऑक्सीजन मुहैया नहीं हो पा रहा है। इसी बीच बहुत से लोग ऑक्सीजन की कि कालाबाजारी कर रहे हैं। यदि भारत में ऑक्सीजन प्लांटो की भरमार होती तो इस संकट से आसानी से निपटा जा सकता था, लेकिन यह जरूरत के अनुसार अभी पर्याप्त नहीं है। मनुष्य के जीवन में संकट कई प्रकार से आते हैं जैसे जल संकट, वायु संकट,आर्थिक संकट पारिवारिक संकट, पर्यावरण संकट आदि। अभी कोरोना संक्रमण के दूसरे स्टेज की मार से देशवासी त्राहिमाम कर ही रहे हैं कि इस कोरोना महामारी की तीसरे स्टेज का संकट आने वाला हैं जो बच्चों को काफी प्रभावित करेगा। कोरोना संकर्मन के इस तीसरी लहर की शुरुआत केरल में देखने को मिल रही है। कोरोना संक्रमण की संकटों से देश के लोग काफी डरे और सहमे हुए हैं। इसके बावजूद वह इससे निपटने की तैयारी भी कर रहे हैं। लोग घर पर ही रह कर अपना स्वदेशी उपचार कर रहे हैं ताकि इस संक्रमण से बचा जा सके।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
समाधान तो संकट से अवश्य ही बड़ा होना चाहिये परन्तु अमूमन ऐसा होता नहीं है। अक्सर संकट छोटा हो या बड़ा हम घबरा जाते हैं, विचलित हो जाते हैं और संकट ही हमारे दिमाग में चक्कर लगाता रहता है। समाधान हम चाहते हैं, सामाधान खोजने की कोशिश करते हैं किंतु ध्यान संकट की ओर ही ज्यादा होता है। दूसरे से समाधान पर चर्चा भी करते हैं, लगता है कि हम समाधान तलाश रहे हैं किंतु वास्तव में चर्चा के केंद्र में समाधान कम संकट ही ज्यादा होता है। अगर हम समाधान तक पहुँचना चाहते हैं तो पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ समाधान पर ही होना चाहिये तभी समाधान संभव हो सकता है, अन्यथा संकट ही हमारे आसपास मंडराते रहेगा।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
संकट कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। तैयारी तो करनी पड़ती है। हम घर से गंदगी दूर करते हैं। डोमैक्स, फिनायल कई तरह की सामानों का इस्तेमाल करते हैं। जिससे परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ्य और प्रसन्न रह सकें । और गेट के बाहर सड़क पर कूड़ा फेंक आते हैं । तो यह बीमारी को बुलावा देना ही है। 
 संकट से निबटने के लिए छोटी-छोटी बातें ही जरूरी होती हैं। टोके जाने पर हर व्यक्ति यही कहता नजर आएगा, 
"हमको मत सिखाओ।" 
लेकिन वह खुद सरकार पर जिम्मेदारी डाल कर निश्चिंत सोता है। यह सही है कि संकट से निपटने के लिए समाधान बड़ा होना चाहिए। 
सबसे पहले सभी नागरिक को संकट का आभास जरूरी है। संकट से निपटने के तरीके जानना जरूरी है। तभी सरकार भी उससे बचाव के उपाय कर पायेगी। अगर आज मास्क का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाता तो संक्रमण इतना ज्यादा नहीं बढ़ता । लापरवाही आज की इस भयानक परिस्थिति के लिए जिम्मेदार है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
समाधान बड़ा हो न हो पर संकट के लिए कई समाधान होने चाहिएं। एक ही समाधान होने से जलियांवाला कांड का स्मरण हो आता है जहां बचने का केवल एक ही रास्ता था। और रास्ते होते तो इतिहास कुछ और होता। बहरहाल समाधान बड़ा हो या बराबर का हो या छोटा हो पर असरदार होना चाहिए। कबीर जी ने भी कहा बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर। अतः समाधान जैसा भी हो प्रभावी होना चाहिए।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
संकट आने की सूचना तो नहीं देता पर आभास जरुर करा देता है । उसी वक्त हम यदि बचाव की तैयारी में लग जायें तो विपदा से बच सकते हैं । छोटे संकट के लिए छोटी तैयारी से चल जाता है लेकिन यदि  कोरोना जैसी महामारी से हो तो समाधान हेतु, हमारी तैयारियाँ भी बड़े लेबल पर होनी चाहिए । जहाँ प्रश्न जीवन का हो वहाँ कई तरह की तैयारी पूरी  करनी पड़ती है  । हम देख रहे हैं कि इस वक्त केवल केंद्र या राज्य की तैयारी से समाधान नहीं निकलने वाला है । हर व्यक्ति को इस महामारी के समाधान के लिए आगे आना होगा तभी विजय मिलेगी ।यद्यपि हमरी सरकारों ने समय रहते नहीं चेता जिसकी वजह से हर जगह हर व्यक्ति को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है , जितना बडा युद्ध उससे बढ़ कर उसे रोकने के उपाय होने चाहिए । प्रणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी तो चाहिए होती है ।
और उसके लिए कठिन परिश्रम और  योग्यता की आवश्यकता होगी ही ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए तो इस पर मैं कहना चाहूंगा हां संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए संकट हमेशा ही परेशानियां पैदा करता है लोगों के जीवन को दुष्कर बनाता है और जब संकट करोना जैसा बड़ा हो तब प्रभावी समाधान किया जाना बहुत आवश्यक है इस समय सांसो पर मौत का पहरा है और इसका समाधान होना ही चाहिए सभी ओर से लगातार प्रयास भी किए जा रहे हैं परंतु आम जनता की जितनी सहभागिता इसमें होनी चाहिए उतनी नहीं है लापरवाही अभी भी यत्र तत्र देखने को मिल रही है सावधानी जरूर बढ़ते काम भी जरूरी है लेकिन पर्याप्त दूरी बनाए रखें मास्क का उपयोग करें बार-बार अपने हाथों को अवश्य धोएं ठंडी चीजों का सेवन ना करें और घर का बना सादा भोजन ही करें समाधान हमेशा ही संकट को दूर करता है और जीवन को आसान बनाता है अतः संकट से बड़ा समाधान अवश्य होना चाहिए .......
नही हालात अच्छे हैं..ये बतलाना जरूरी है
अगर चाहो रहे साँसे संभल जाना जरूरी है
बैठा ताक मे सबकी करोना एक शिकारी है
समय भारी है जीवन पे समझाना ज़रूरी है 
- डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सत्य ही कहा गया है कि मनुष्य भटका हुआ देवता है जिसके अंतःस्थ में देवीय शक्तियों का समग्र निवास है, पर दृश्य जगत के जाल जंजाल में स्वयं को भूल जाने के कारण संकटग्रस्त होकर यत्र तत्र सर्वत्र भटकता रहता है l
        मनुष्य ही हर परिस्थिति के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है तथा सुख दुःख संकट का सृजन करता है l "कर्म प्रधान विश्व रचि रखाl "
      कर्म करेंगे तो संकट /बाधा आना स्वाभाविक है,l जिस पर परिश्रम, पुरुषार्थ और पराक्रम से
विजय प्राप्त कर सकते हैं l या यूँ कहूँ कि हमेशा संकट से समाधान ऊँचा होना चाहिए l आत्मविश्वास हो, संकट काल में हमारा भरोसा /विश्वास है कि -
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु
जो कछु संकट होय हमारो.....
     संकट हमारा और हल करेंगे हनुमान जी महाराज... वह हमें प्रेरणा देंगें कि संकट से समाधान सर्वोच्च होना चाहिए l आखिर क्यों?
1. संकट से मुक्ति हेतु पुरस्कार में विश्वास नहीं अपितु सहयोग में विश्वास करें l
2. संकट के सहयोगी के प्रति आभार भाव या कृतज्ञता रखें l
3. किसी के प्रति आपने किया, करके भूल जाना लेकिन जिसने आपके प्रति किया उसे जीवनभर
मत भूलना l
4. संकट का मुकाबला योजनाबद्ध रूप से समय प्रबंधन करते हुए कार्य करें l हनुमान जी और प्रभु राम पहली बार मिले l राम ने समस्या बताई तो सुग्रीव से मित्रता की योजना राम को बतायी l टाइम मैनेजमेंट का संदेश -कितना बड़ा ही संकट हो यदि टाइम मैनेजमेंट सही है तो आप संकट से पार हो जायेंगे l जैसे,
सीताहरण के समय पक्षीराज जटायु अतिबलशाली रावण से भिड़ गया l परिणामस्वरूप श्री राम ने अश्रुधारा से उसका अभिषेक किया l
5. हनुमान जी ने बताया कि जोख़िम उठाये बिना संकट से मुक्ति नहीं हो सकती अर्थात रिस्क फेक्टर हनुमान जी में भरपूर था l लक्ष्मण के प्राण संकट में थे l सूर्योदय से पूर्व संजीवनी लानी थी, वह पूरा पहाड़ उठा लाये और श्री राम लखन को आसन्न संकट से
उबारा l
             चलते चलते ----
संकट से हनुमान छुड़ावे
मन, क्रम, वचन ध्यान जो लावे l
   संकट मोचन ने समाधान को सर्वोपरि रखते हुए संकट मुक्ति के उपाय बता दिये l साथ में शर्त भी लगा दी है कि मन, क्रम, वचन और एकाग्रचित्त होकर हम संकट मुक्ति के प्रयास करें, उपाय करें l
  - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
  इस प्रश्न  का उत्तर इस बात में निहित है कि  संकट का स्तर क्या है।संकट कितना बड़ा है? संकट कई प्रकार के हो सकते हैं -
सामान्य या साधारण  संकट,  सामान्य से बड़ा संकट, बहुत गम्भीर संकट, बार-बार पैदा होने वाला संकट आदि।  संकट के प्रभाव  के आधार पर हम उसके समाधान पर चर्चा कर सकते हैं। यदि बात कोरोना  जैसे गंभीर संकट के लिए कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर यह  कहना सही  होगा  कि यह संकट बार-बार आने वाला है। दूसरा दौर चल रहा है,  इसके बाद तीसरे दौर की संभावना व चेतावनी  है। भविष्य में कभी यह संकट फिर आ सकता है। ऐसी स्थिति में  संकट से बड़ा  उसका समाधान होना जरूरी है। यदि बड़ा समाधान  नहीं होगा तो संकट आने की स्थिति में बहुत खतरे पैदा हो जाएंगे ।हमें अपने बचाव के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
     - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश
संकट छोटा हो या बड़ा, उसके समाधान के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए ।अभी जो महामारी ने अपना  आतंक फैलाया है, अगर शुरुआत में ही हम इसके समाधान के लिए सतर्क रहते तो आज यह दूसरी लहर बन कर इतनी तबाही नहीं मचाती।जैसे ही यह महामारी थोड़ी क्षीण हुई थी हम सभी बेफिक्र हो गये।जब कि उस समय हमारे पास वक्त था कि इससे बचाव के लिए कोई बड़ा समाधान खोजें ।आज उसी असावधानी का खामियाजा सारा भारतवर्ष भुगत रहा है।किसी भी संकट पर विजय पानी है तो समाधान अवश्य निकालना होगा और हर समाधान संकट से बड़ा ही होता है।
    - रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखंड
 संकट अर्थात समस्या।  समस्या और समाधान है ही,  उस समाधान  तक समझकर (ज्ञान)    पहुंचा जा सकता है ।वर्तमान के मनुष्य को समस्या में जीने की आदत सी बन गई है चिंता करना है लेकिन चिंतन करना नहीं है मध्यस्थ दर्शन का सूत्र है "चिंता है तो चिंतन नहीं ,चिंतन है तो चिंता नहीं। अर्थात समाधान है समस्या नहीं और समस्या है  तो समाधान नहीं । संकट से बड़ा समाधान होता है क्योंकि कोई संकट समस्या में जीना नहीं चाहता। सभी समाधान चाहते हैं लेकिन समाधान के लिए चिंतन नहीं करते ।ज्ञान  से ही चिंतन  होता है। अतः संकट से बड़ा समाधान होता है। अतः समाधान के प्रति सभी लोगो को ध्यान देने की समीचीन आवश्यकता है।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ - छत्तीसगढ़
अवश्य संकट से बड़ा समाधान होना चाहिये। क्रिया से बड़ी प्रतिक्रिया होनी चाहिए तभी उसको खत्म किया जा सकता है। संकट ज्यादा शक्तिशाली समाधान होगा तभी संकट दूर होगा। जैसे किसी भी दुश्मन से निपटने के लिए उससे ज्यादा ही ताकतवर होने की जरूरत होती है उसी तरह संकट से बड़ा समाधान होना चाहिए। जैसे आग लगने पर आग को बुझाने के लिए आग से ज्यादा पानी की बौछारें देनी पड़ती हैं तभी आग बुझ पाती है। ठीक उसी तरह संकट से बड़ा समाधान होना चाहिये। किसी बीमारी में जैसे बीमारी से ज्यादा शक्तिशाली दवा की खुराक दी जाती है जिससे बीमारी खत्म हो जाती है। वैसे ही संकट से ज्यादा शक्तिशाली व बड़ा समाधान होना चाहिये।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
जी हां! किसी भी संकट की कोई औकात नहीं है कि हमारा कुछ बिगाड़ सके यदि उससे भी बढ़कर हमारे पास पर्याप्त समाधान हैं। सबसे बड़ा उदाहरण जो जन- जन जानता है कि जब लक्ष्मण जी मूर्छित हुए तब राम जी के पास हनुमान जी के रूप में संकट से भी बढ़कर समाधान था। वह संजीवनी ले आए और लक्ष्मण जी के प्राण तक बच गए।
जीवन में संकटों का आना एक आम प्रतिक्रिया है। प्रकृति का नियम है कि जहाँ सुख की वर्षा होती है वहाँ कभी न कभी किसी न किसी रूप में संकट के बादल भी अवश्य ही आते हैं। जो समझदार होते हैं वह घबराते नहीं बल्कि अपनी सूझबूझ से, ज्ञान- विवेक से समाधान ढूंढ लेते हैं और संकट की घड़ी से छुटकारा पा लेते हैं। 
कभी लिखी थी पंक्तियाँ :-
श्रम करने वालों की कभी हार नहीं होती। भयभीतों की नैया भव पार नहीं होती।। 
जो डरते हैं वह हार जाते हैं लेकिन कुछ विनम्रतापूर्वक ईश्वरीय बल को साथ लेकर बड़े ही परिश्रम से हँसते-हँसते संकटों की नौका को सुख के सागर की ओर ले जाते हैं वह जीत जाते हैं।  
संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़


" मेरी दृष्टि में " समाधान सही हो तो संकट छूमंतर हो जाता है । समाधान छोटा या सही नहीं रहा तो संकट जानलेवा बन जाता है । इसलिए समाधान बड़ा से बड़ा होना चाहिए । तभी समाधान की ओर चला जा सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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