क्या कोई जवाबदेही से बच सकता है ?

जवाबदेही सभी की बनती है । कोई स्वीकार करें या नहीं । यह निर्णय स्वयं ने लेना होता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मनुष्य को अपने परिवार, समाज और देश के प्रति समयानुसार कुछ जिम्मेदारियों को निभाने के लिए सजग और प्रयत्नशील रहना चाहिए। हमारा परिवार, समाज और देश हमें सदैव कुछ न कुछ देता रहता है परन्तु जब संकटकाल आता है तो इन सबके प्रति हमारी जवाबदेही बनती है। ऐसे में यदि हम निष्क्रिय रहे तो अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। 
इसलिए जिनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही होती है, यदि वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में जान-बूझकर लापरवाही दिखाते हैं तो निश्चित रूप से समय आने पर उन्हें इसका जवाब देना ही पड़ता है।
एक कहावत है कि "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे"....कोई माने या न माने.....जरा इतिहास उठाकर देख लीजिए....एक न एक दिन करनी का फल अवश्य मिलता है। यही करनी का फल तो जवाबदेही है।
जिम्मेदारी की कुर्सी पर बैठकर मलाई खाने वाले समय पर अपने हाथ पीछे कर लेंगे तो उन्हें याद रखना चाहिए कि यदि आज वे, "बिल्ली के आने पर कबूतर की तरह आँख बंद कर बैठ गये" तो निश्चित रूप से बिल्ली रूपी वक्त उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा। अर्थात् कोई भी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
बिल्कुल नहीं, जिम्मेदार व्यक्ति जवाबदेही से कतई नहीं बच सकता। हर हाल में उसे अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए और यदि नहीं निभाया है तो निभाना ही होगा। गैर जिम्मेदाराना हरकत किसी को भी शोभा नहीं देती। जिस भी व्यक्ति को जो भी कार्य सौंपा जाए उसको पूर्णतःनिभाने का दायित्व उसी का रहता है। यदि व्यक्ति करने में असमर्थ है तो उसे जवाबदारी लेना ही नहीं चाहिए।
- गायत्री ठाकुर ”सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
नहीं बच सकता,जवाब तो देना ही होगा।अब ये अलग बात है कि सवाल करने वाला कोई अधिकारी है,बड़ा है तो वह आपके जवाब सुनकर संतुष्ट हो जाएं।या न भी संतुष्ट हो और आपको हल्का फुल्का दंड भी दे दे। लेकिन यदि इनकी जवाबदेही से बच गये तो स्वयं की जवाबदेही से नहीं बचोगे अपनी अंतरात्मा बार बार कचोटती रहती है किसी भी गलती के लिए। चलो इससे भी बच निकले तर्क कुतर्क करके किसी तरह, तो फिर प्रकृति है न,यह सब से जवाब तलब कर लेती है और इसके सामने बहानेबाजी,झूठ नहीं चलता।तो फिर भला कैसे बच सकता है कोई भी जवाबदेही से। यहां जवाबदेही से आशय है अपनी जिम्मेदारी यानि उत्तर दायित्व से भी है। आज भी कहा जाता है,जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था।यानि इतना समय बीत जाने पर, आज भी नीरो से उत्तरदायित्व न निभाने के लिए जवाब-तलब किया जाता है।अनेक उदाहरण है ऐसे।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
      भगवदगीता ..श्रीकृष्ण के उपदेश, जीवन- मरण का सार, कर्म और फल की व्याख्या,  निष्काम कर्म जैसे कठिन और नये निरंतर चिंतनीय सवालों के जवाब ढ़ूढ़ने पर मिल जायेंगें। हमारा हर दूसरा कदम, पहले कदम की मजबूती के आधार पर आगे बढ़ता है। सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक हम जो भी काम करते हैं चाहे वो कितने ही साधारण या मामूली हों उसके प्रति भी हमारी जवाबदेही बनती है । यह हमसे कोई माँगता नहीं है पर हमारी जिंदगी का यह अटूट हिस्सा है। हम यदि कोई काम बिना सोचे समझे करते हैं या यूँ ही मात्र मजाक या समय बिताने के लिए करते तब भी उसका निम्न स्तरिय 
अंजाम भी हमें भुगतना ही पड़ता है। 
   जवाबदेही से तो मानव क्या जीवमात्र बच नहीं सकता है। प्रकृति का दोहन हो , पर्यावरण का विनाश हो, पशु-पक्षियों ,जीव जन्तुओं ,जल, हवा, अग्नि, धरती  ,आकाश  सभी के  प्रति जवाबदेही बनती ही है। 
  माता- पिता भी यदि बालक की परवरिश सही नहीं करते तो युवावस्था में उसके अनैतिक कर्मों की जवाबदेही उनके लालन पालन की ही है। आज जिस महामारी से पूरा विश्व त्राही -त्राही कर रहा है  यह  मानव और प्रकृति के बीच जो संतुलन था उसे असंतुलित करने का ही परिणाम है ।  अब हम सब की जवाबदेही बनती है कि हम पुनः प्राकृतिक और शुद्ध जीवन की ओर मुड़े।
     - डॉ.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
     जन्मांतर के पश्चात समस्त प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने एक अभिलाषा होती हैं, जिसके परिपेक्ष्य में उस प्रकार से व्यक्ति की पहचान होती हैं और जिससे दूसरे को सबक मिलता हैं, कि हमें भी हाथ बटाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई दुष्परिणाम सामने नहीं आये। प्रायः देखने में आता हैं, कि जिनकी प्रवृत्ति कुछ नहीं करने की होती हैं, किसी भी तरह की जवाबदेही से मुंह फेरना आदतों की मजबूरी समझते हैं, दूसरों को बोझ के तले तेरी-मेरी करते रहते हैं,  टकराव की स्थिति निर्मित हो  जाती हैं, अनंत: कुछ भी नहीं बच पाता, अगर ईमानदारी से कर्म किया जायें, कोई जवाबदेही से बच सकता हैं ?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
जवाबदेही को हम उत्तरदायित्व भी कह सकते है । ज़िम्मेदारी दायित्व आदि से  
से लोग बच नहीं पाते हैं ।
हमारी जवाबदेही तो हमें उँठानी ही पड़ती हैं । 
हाँ यह अलग बात है कुछ लोग अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करते वह दोषारोपण कर मुक्त हो जाते है । पर यह समाजिक क्षेत्र में ही संम्भव है । 
सरकारी महकमें में  भी जवाबदेही लागू होती है ।
जवाबदेही बिना उचित जिम्मेदारी के अस्तित्व में नहीं रह सकती, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जहां जिम्मेदारी नहीं होगी, वहां जवाबदेही नहीं होगी । 
सरकार के प्रशासन में नौकरशाहों को जवाबदेह बनाने के लिए आंतरिक नियमों और मानदंडों के साथ-साथ कुछ स्वतंत्र आयोग भी होते हैं। 
दूसरे नौकरशाह पदों के मुताबिक अपने वरिष्ठों के मातहत होते हैं और उन्हीं के प्रति जवाबदेह होते हैं।
जवाबदेही हर क्षेत्र की है , राजनैतिक , व्यवसायिक स्कूलों की , नैतिक, प्रशासनिक, प्रबंधकीय, बाजार, कानूनी , न्यायिक, निर्वाचन क्षेत्र के संबंध और पेशेवर शामिल है , नेतृत्व की जवाबदेही इनमें से कइयों में शामिल होती है।
हम देखें तो जवाबदेही को बहुत विस्तृत चर्चा का विषय है संक्षेप में तो बस यही कहाँ जा सकता है ...कि हर व्यक्ति कहीं न कहीं किसी रुप में जवाबदेही है वह अपना काम अपने दायित्व को निभाये , नहीं तो बहुत सी गड़बड़ी यहाँ होती है 
क्योंकि ......
जिस देश के प्रबंध की सोच में जवाबदेही ना हो, जिस देश की व्यवस्था को नागरिकों की जान की परवाह ना हो. जिस देश की प्रणाली बड़े-बड़े हादसों के बाद भी खुद को बचाने में कामयाब हो जाए, उस ज़ीरो जवाबदेही वाली पद्धति से खुशहाल देश कैसे बनाया जा सकता है .... जवाबदेही  को सोचना पड़ेगा ....जवाब देना पड़ेगा । 
कोरोना के पीछे भी जवाब देह लोग है ........? 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
नदी अपना मुँह मोड़ बहना छोड़ दें, सूर्य तेज और चंद्र शीतलता छोड़ दे, वायु अपना रुख बदल चलना छोड़ दे तो संसार की हालत क्या होगी? डॉक्टर अपना पेशा छोड़ दे, किसान अन्न पैदा करना छोड़ दें, कैसी विकट स्थिति आ खड़ी होगी l कोई बचाने वाला नहीं l कोई भी व्यक्ति अपने बोधि उत्तरदायित्व से कैसे बच सकता है..?
कोउ नृप होउ हमहि का हानि... क्यों? सदियों से सीखा -कर्म करो, फल की आशा मत करो l दुःख तकलीफ हो उफ़ न करें, शिकवे शिकायतें जुबान पर न लाये.... आखिर क्यों? कदम कदम पर ये हालात क्यों बने, इतनी खामिया क्यों है? व्यवस्था चुस्त दुरुस्त क्यों नहीं है? हमने तुम्हें जिम्मेदारी सोंपी थी, बताओ क्या किया? यह सवाल उठाना नकारात्मकता नहीं है l जिम्मेदारों को मुस्तैद बनाए रखने का कारगर उपाय है l
कोरोना के भीषण संकट की इस घड़ी में वे क्या कर रहें थे l जनता की तकलीफें दूर हो, इसके लिए कुछ कर भी रहें थे या नहीं? कारपोरेट संस्कृति की सत्ता l मुनाफा और कमाई कैसे भी हो, करना l नीति, नैतिकता, जीवन मूल्य की बातें... मत करो l कफ़न
चोरों तक के कुकर्म सामने आ रहे हैं l
फिर भीजिनका कोई नहीं उन आर्थियों और जनाजो को कंधा देने वाले ऐसे इंसान मौजूद हैं जिनके लिए मरने वालों का धर्म नहीं बल्कि इंसानियत का धर्म सबसे बड़ा है l
आओ, हम फिर से मनुष्य हो जाये और मानव धर्म को निभायें l
 अपने अपने बोधि उत्तरदायित्व निभायें l
       - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
         जब संविधान के चारों स्तम्भ अंधे व बहरे हो जाएं और दृढ़ संकल्पित प्रश्नकर्ता को साम दाम दण्ड भेद के बल पर भी परास्त नहीं किया जा सके, तब उसे पागल एवं देशद्रोही घोषित कर लम्बे समय तक जवाबदेही से बचा जा सकता है।
         उदाहरणार्थ मैंने 1994 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज क्या उठाई कि भ्रष्टाचारियों ने मुझे इतना पीड़ित-प्रताड़ित किया कि आज तक जवाबदेह अपनी जवाबदेही से बचने में कामयाब हो रहे हैं? क्योंकि उन्होंने ने एकता में बल की शक्ति का प्रयोग किया और मुझे पागलखाने पहुंचा दिया। जब वह मुझे पागलखाने में पागल नहीं करवा सके तो उन्होंने न्यायालय से मिले न्यायमित्र और न्यायमूर्ति को खरीद कर मुझे पागल घोषित करवा दिया। जो भ्रष्टाचारी न्यायमित्र और न्यायमूर्ति खरीद सकते हैं वह डाक्टरों के बोर्ड खरीदने से पीछे कैसे हट सकते हैं? इसलिए उन्होंने ने न मात्र डाॅ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टरों को खरीद लिया बल्कि सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल बोर्ड के डाॅक्टरों को भी खरीद लिया। मेरे अधिवक्ताओं को खरीद लिया। 
         चूंकि जो भ्रष्ट और क्रूर अधिकारी अपने बीमार कर्मचारियों की नौकरी परमानेंट करने के लिए घूस एवं ऐयाशी हेतु उसकी धर्मपत्नी की मांग कर सकते हैं। वह कुछ भी कर सकते हैं अर्थात जवाबदेही से बचने के अपनी मां, बहन, बेटी या धर्मपत्नी की अस्मत को भी दांव पर लगा सकते हैं। क्योंकि यह अंग्रेजी कल्चर (विदेशी संस्कृति) अंग्रेजों के समय से चलता आ रहा है।
         परन्तु यह भी परम सत्य है कि यदि प्रश्नकर्ता जीवन के पांच भूतों अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकार को त्यागकर जवाबदेहों से जवाब मांगे तो वह किसी भी सूरत में अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
दो शब्द हमारे सामने हैं एक जवाबदेही दूसरा उत्तरदायित्व।
उत्तरदायित्व देने या लेने के फल स्वरुप ही जवाबदेही का जिम्मेदारी बनती है।
यह व्यक्ति के व्यक्तित्व के ऊपर निर्भर करता है कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो जवाबदेही लेने से कतराते हैं उनकी कोशिश यही रहती है अपनी जवाबदेही उत्तरदायित्व दूसरों को सौंप दें यह तो घरेलू और सामाजिक वातावरण में संभव है लेकिन जब आप कार्यालय में रहेंगे तो कार्यालय का पहला नियम यही है कि आप जिम्मेदारी और जवाब देगी अपने कामों का स्वयं लेंगे और वैसे क्षेत्र में इंसान अपनी जवाबदेही पूरे हौसले से निभाता है लेकिन यह कहा जाए कि जवाबदेही से बढ़ सकता है या नहीं तो इसमें कहीं ना कहीं थोड़ी बहुत गुंजाइश बनी है बचने की और हर इंसान कोशिश करता है की जवाबदेही ना उठाएं काम भले ही कर दें अच्छा हो तो उसका सेहरा बांध लें और गलत हो तो उसकी जवाबदेही ना ले
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
वर्तमान में अकसर लोग जवाबदेही से बचना चाहते है। कोई जिम्मेदारी  लेना चाहते हैं न, आई समस्याओं का समाधान देने  मे सक्षम है।  जो व्यक्ति स्वयं  समस्या से घिरा हो, वो क्या दूसरों की  समस्याओ का समाधान  कर जबाब देगा। इस मानव समाज मे कोई समझदार,  ईमानदार, जबाबदार,  जिम्मेदार  व्यक्ति नही दिखाई देता।  जबकि  कोई भी कार्य करने के लिए समझदारी, ईमानदारी जबाबदारी , जिम्मेदारी की  आवश्यकता होती है। लेकिन  वर्तमान समाज में इन चारो गुणों का अभाव दिखता है। न इसका प्रमाण  समाज मे देखने के लिए  मिलता है। अतः वर्तमान  समाज मे कोई जवाबदेही  व्यक्ति  दिखाई नही देता है। सब जवाबदेही से बचना चाहते हैं। सब वर्तमान मे लापरवाह और झूलते हुए ज़िन्दगी  जी रहे हैं।अगर कोई जवाबदेही  इंसान  होता तो समस्या  नही समाधान  होता।   वर्तमान समाज जवाबदेही से बच कर झूठी पूलंदियो के आधार पर खड़ा है। 
जिसकी जडे मजबूत नही होती। एक तूफान  से उड़ जाते है।  ठीक इसी तरह मानव की प्रवृति  मानव समाज मे दिखाई रही है। 
- उर्मिला सिदार 
 रायगढ - छत्तीसगढ़
हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है अपनी जवाबदेही का निर्वहन करना 
कोई भी व्यक्ति अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता। उसे जवाबदेही का निर्वहन करना ही पड़ेगा। आज पूरा देश ही नहीं बल्कि विश्व कोनो कोरोना संक्रमण के भयावहदौर से गुजर रहा है। रोजाना लगभग 400000 लोग को भी हो जो भी हो रहे हैं और लगभग 4000 मौतें भारत में प्रतिदिन हो रही है। चाहे केंद्र सरकार हो या राज सरकार सभी परेशान है। आम आदमी अपनी जान बचाने के लिए कई तरह के घरेलू उपचार कर रहा है। यह तो जवाबदेही हुई जिसका पालन सभी कर रहे हैं। सभी को सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करना पड़ रहा है और जो नहीं कर रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। कोरोना के कारण आज बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है जिसका व्यवस्था गार्जियन घर पर ही कर कर रहे हैं। सरकार भी अपनी जवाबदेही से पीछे नहीं हट रही है। आज से 18 साल से 44 साल के लोगों का भी टीकाकरण शुरू हो गया है। इतना ही नहीं बल्कि 2 साल से अधिक उम्र के बच्चों के टीकाकरण की भी स्वीकृति मिल चुकी है। करो ना का तीसरा अटैक आने से पहले छोटे-छोटे बच्चों का भी ठीक है काम शुरू हो जाएगा। हालांकि इसी दौर में कई ऐसे लोग भी हैं सरकार भी है तो जवाबदेही के नाम पर दो को ढकोसला कर रही है। लोग डरे सहमे हुए हैं कि कब को इस कोरोना की चपेट में आ जाएंगे और काल के गाल में समा जाएंगे। देश में आज ऑक्सीजन की मांग अचानक बढ़ गई है क्योंकि इस बीमारी में ऑक्सीजन लेवल लोगों का बहुत कम हो जा रहा है जिसके चलते हजारों मौत हो चुके हैं। देश में से भी कई गद्दार हैं जो ऑक्सीजन और दवाइयों का कालाबाजारी करने हैं और अपनी जवाबदेही से पीछे भाग रहे हैं हालांकि उनके खिलाफ भी सरकार सख्त से सख्त कार्रवाई करने से पीछे नहीं रह रही हैं। ऐसे कालाबाजारी करने वाले लोग समाज देश और मानवता के दुश्मन है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जवाबदेही उनकी बनती ही है, जिनके पास जिम्मेदारी है। जिम्मेदारों का यह कर्तव्य भी है और दायित्व भी है कि वे इसका निष्ठा, निष्पक्ष, लगन और समर्पित भावना से पालन करें और यह दिखना भी चाहिए। संघर्ष, कमीवेशी आदि को क्षम्य किया जा सकता है। मगर लगातार की असफलता, भाषणबाजी, बहानेबाजी आदि ऐसे विषय बिंदु हैं, जिनके आधार पर, जवाबदेही से बचा नहीं जा सकता। समस्या, निदान और उस समस्या के निदान के प्रति किये गये जतन तीनों ऐसे हैं जो सभी को नजर आते हैं और इनका मूल्यांकन सभी करते हैं। तब निष्कर्ष निकाला भी जाता है। इसलिए यह निश्चित है कि जवाबदेही से बचा नहीं जा सकता। पीड़ित, भुक्तभोगी सभी जानते और समझते हैं कि जिम्मेदारों ने उनकी जिम्मेदारी किस तरह और कितनी निभाई।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जवाबदेही शब्द जिम्मेदारी के साथ जुड़ता है ।जिम्मेदारी सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों होती है ।यदि एक भवन का निर्माण होता है ,कुछ ही समय पश्चात वह गिर जाता है ,तो उसकी जवाबदेही सामूहिक होती है । भवन का गिरना ,कई लोगों के लापरवाही की वजह होती है । कोई भी कार्य शुरु किया जाय तो उसके दो पहलू होगें ,सफलता या विफलता । आज कोरोना ने विकराल रुप दिखाया । उसकी  जवाबदेह जनता ,राज्य सरकारे और केद्रं सभी है । एक दूसरे पर दोषारोपण करके , हम सब अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते । एक दुसरे पर दोषारोपण से पूरे देश की छवि खराब हो रही है ।
हमेशा केलिए यह  नीयम बना लें कि जवाबदेही से बचे नहीं ,जिम्मेदारी निभाएं । हमारा और राष्ट्र् दोनों का निर्माण होगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
मनुष्य कर्म करने के लिए बना है। हर मनुष्य अपने अपने अनुसार कर्म करता रहता है। वह जो भी कर्म करता है उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार होता है, जवाबदेह होता है। अच्छा कर्म करे तब भी और बुरा कर्म करे तब भी। फर्क यह है कि अच्छे कर्म की जवाबदेही के समय उसका मस्तक गर्व से ऊंचा होता है और बुरे कर्म की जवाबदेही के समय उसका मस्तक शर्म से झुक कर नीचा होता है। कोई भी जवाबदेही से बच नहीं सकता।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
कतई नहीं!  सब की अपनी जवाबदारी होती है! यदि किसी कार्य को हम करने का बीड़ा उठाते हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी  हो जाती है कि सिद्दत से इमानदारी के साथ उसे पूरा भी हम करें, चाहे उसके लिए हमें किसी की मदद भी लेनी पड़े! 
मनुष्य ही नहीं हर जीव मात्र में शिशु के मां के उदर में आते ही माता पिता को उसके आगे की जवाबदारी का अहसास हो ही जाता है, वह जिम्मेदारी से पूर्ण रूप से बंध जाता है ....अरे स्वयं ईश्वर भी उसके भोजन की व्यवस्था  में जुट जाता है !फिर पालक कैसे जिम्मेदारी  से भाग सकते हैं ! 
आगे बच्चे की जिम्मेदारी वृद्ध माता पिता के प्रति और बढ़ जाती है यह अलग बात है सभी नहीं कुछ अपवाद भी होते हैं जो अपने जवाब देही से बचते भी हैं !
कुदरत की बात करें तो कुदरत ने हमें बहुत कुछ दिया किंतु उसे संजोने की जिम्मेदारी  हमारी थी! हमने क्या किया स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी! स्वयं को बचाने की जिम्मेदारी  भी ना निभा पाये ! 
पर्यावरण के चलते कोरोना जैसे  विषाक्त बीमारी से जूझ रहे हैं  !हमारे सभी की जिम्मेदारी है कि हम इसे रोके ! प्रशासन सुविधा दे सकता है, नियम बना सकता है किंतु  नियम पालन कि जिम्मेदारी  हमारी है हम नकार नहीं सकते! किसी पर दोष लगा हम अपनी जिम्मेदारी  से भाग नहीं सकते! 
युद्ध में भी राजा सेनापति को जिम्मेदारी सौंपता है और सेनापति सैनिक को! प्रत्येक अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाते है विजय तभी मिलती है! 
दुनियां में यदि आये हैं तो जिम्मेदारी तो निभानी ही पडे़गी  इससे कोई नहीं बच सकता! 
            - चंद्रिका व्यास
          मुंबई - महाराष्ट्र
जवाबदेही बिना उचित जिम्मेदारी के अस्तित्व में नहीं रह सकती,दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जहां जिम्मेदारी नहीं होगी वहां जवाबदेही नहीं होगी।
हर व्यक्ति के जवाबदेही होते हैं जैसे:--
१) *नैतिक जवाब देही* :-- हर मां-बाप के जवाब देही है अपने बच्चों को उचित देखभाल करते हुए संपूर्ण शिक्षा दिलाना और उसे समाज में उचित स्थान दिलाए ताकि कल होकर अपने माता-पिता के *ऋणी समझे*। उसी प्रकार जब बच्चे पूरी सक्षम हो जाते हैं तो अपने बूढ़े माता-पिता की जवाबदेही को लेना चाहिए।
*प्रशासनिक जवाबदेही*:--सरकार के प्रशासन में नौकरशाहों जवाबदेह बनाने के लिए आंतरिक नियम और मानदंडों में रहना। नौकरशाहों पदो के अपने वरिष्ठ ओ के मातहत होते हैं। उनके प्रति जवाबदेह होते हैं। 
*राजनीतिक जवाब देही* :-- राजनीतिक जवाबदेही सरकार नौकरशाहों और राजनेताओं की जनता अथवा संसद के विधायिका के प्रति जवाबदेही है।
लेखक का विचार:--जवाबदेही से बनेगा न्यू इंडिया
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जवाबदेही जिम्मेदारी का पर्याय है। अपने द्वारा किये गए हर कार्य के परिणाम के लिए व्यक्ति खुद जिम्मेदार होता है। हो सकता है कि अन्य भी उसमें शामिल हों , जवाबदेही सभी की होगी। 
 उत्तरदायित्व लेना मनुष्य की ही विशेषता है। मानव इन्हीं गुणों के कारण पशुत्व से भिन्न होता है। धर्म, कार्य और विकास ये तीनों ही मनुष्य की ही शक्ति का कमाल है। जब आप विकास की राह पर आगे बढ़ते हैं तो परिणाम को ईश्वर पर नहीं डाल सकते। 
जिस प्रकार आज कोरोना महामारी फैलने    की जिम्मेदारी सरकार पर डाल कर हम मुक्त नहीं हो सकते। उसके लिए कहीं-न-कहीं हम भी जिम्मेदार हैं। गाँधी जी के चलाये आंदोलन में तोड़-फोड़ होने पर उन्होंने इसकी जवाबदेही ली और आंदोलन बंद कर अनसन पर बैठ गए। अतः मानव धर्म से इतर हो या उसके सम्मुख हर कार्य के लिए हम जवाबदेह होंगे।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
"जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं, 
और क्या जुर्म है पता भी नहीं, 
क्यों होती है अक्सर सिर्फ सवाल ए गुफ्तगू, 
जवाब किसी को कोई देता नहीं"
देखा जाए अपने प्रति जिम्मेदारी हरेक को कोई न कोई मिली है और वो दुसरों के प्रति जवाबदेही भी बनती है की क्या जो इन्सान को जिम्मेदारी मिली है वो उसको वखूवी से निभा रहा है, इसका जवाब तो जिम्मेदार इन्सान ही दे सकता है, 
कई बार इंसान खुद के दायित्वों में इतना खो जाता है कि वो भूल जाता है कि मेरा दुसरों के प्रति भी कोई कर्तव्य है  क्योंकी वो  अपने कार्यों में इतना खो जाता है कि अपना फर्ज तक भूल जाता , 
लेकिन याद रहे भला इंसान  वोही होता है जो अपने और दुसरो़ के प्रति जवाबदेही को साथ साथ निभाये। 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या कोई जवाबदेही सो बच सकता है? 
मेरा  मानना है कि हर व्यक्ति जो  पैदा हुआ है उसको अपने जीवन का हिसाव चुकाना पड़ता है, कहने का भाव  उसको हर बात का जवाब देना  जरूरी बन जाता है कि जो उसको दायित्व सौंपे ग़ए थे क्या उसने उनको सही ढंग से निभाया या नहीं, उसको सौंपी गई हर जिम्मेदारी उसके सबालों का जवाब बनती है, चाहे जिम्मेदारी कैसी भी हो, इसलिए हर व्यक्ति को अपने कार्य को जिम्मेदारी से निभाना अनिवार्य बन जाता है, 
अक्सर इंसान कईबार अपने ही कार्यों मे़ इतना व्यस्त हो जाता है कि उसके अपनी जिम्मेदारी का एहसास तक नहीं रहता वो यही सोचता है कि मुझे कौन देख रहा है या मुझे कौन पूछ सकता है जो एक  गलत धारणा है, हर इंसान को अपनी जिम्मेदारी व फर्ज को सही ढंग से इंजाम देना चाहिए ताकि उस पर सवालिया निशान  ही न लगे और वो इस जहान व अगले जहान  मेंभी जवाबदेही दे सके, 
सच कहा है, 
"भलाई कर भला होगा, 
बुराई कर बूरा होगा, 
कोई देखे जा ना देखे खुदा तो 
देखता ही होगा"। 
अन्त में यही कहुंगा कि इन्सान को सबसे पहले यह समझना होगा कि जवाबदेही का मतलब अपनी जिम्मेदारीयों के प्रति जवाब देना  होता है, कहने का मतलब आपको जो भी कार्य मिला है उसकी जिम्मेदारी आप पर होती है उसका जवाब आपको हर सूरत देना पड़ेगा, कईबार  इंसान अपनी गल्ती दुसरों पर थोप देता है और जवाबदेही से बचने की कोशिश करता है लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता हरेक को पता होता है किआपका  दुसरों के प्रति क्या कर्तव्य है यह बात अलग है कि, 
"शरीफ इंसान शराफत की वजह से चुप रहता है, और बदमाश कहता है कि उसे जवाब देना नहीं आता"
सोचना और  सवाल करना इंसान जेहन की पहली पहचान है, कभी दूनिया से कभी खुद से और कभी  कभी भगवान से, क्योकीं जिंदगी एक सवाल है, 
जिसका जवाब मौत है, 
और मौत भी एक सवाल है जिसका जवाब कुछ नहीं है, 
इसलिए हे इंसान  आपको हर हालत में जवाबदेही करनी पड़ेगी तू इससे बच नहीं सकता  वशर्ते की तू   अपने कर्म सही रख, 
सच है, 
"इंसान जवाब देने की जहद्दोजहद में इस कदर उलझ गया, 
की भूल ही गया कि मेरा सवाल क्या था"? 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
       दुनिया में चाहे नौजवान हो या बूढ़े हों,राजा हो या रंक हो,मर्द हो या औरत जवाबदेही से कोई भी नहीं बच सकता।अगर किसी वयवस्था के प्रबंध की हम जिम्मेवारी नहीं तह करें गे तो चाहे छोटी से छोटी ईकाई हो  या बड़ी,चाहे देश की वयवस्था की हो,काम नहीं हो सकेगा। सभी एक दूसरे पर रोप-प्रतिरोप करते रहें गे। जब एक जिम्मेदारी दे दी जाती है,तब लाख कोशिश कर ले,संबोधित व्यक्ति जवाबदेही से बच नहीं सकता।
           अगर कोई अपनी जिम्मेदारी से भागता है तो उसे दरकिनार कर देने में ही भलाई है। लोकतंत्र में जिम्मेदारी की भावना लेकर ही नेता देश को प्रगति की ओर ले जा सकता है।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
 आज भारत में  पीड़ा से परिपूरित परिवेश की निर्मिति में  हम सबकी  जवाबदेही बनती है।
अपने द्वारा,अपने ही आसपास का जीवन से जुड़ा वातावरण युगों युगों  से मनुसंतति ही बनाती आ रही है।
आदिम काल से लेकर सभ्यता और संस्कृति का
चरम आधुनिक काल माना गया।
ऐसे उन्नतकाल में कोरोना का कहर सचमुच हमारे गलत कार्यों का लेखा जोखा ही बयान करता है। 'स्वच्छ भारत' का संदेश इस ओर एक प्रभावी कदम रहा।
जवाबदेही से तो मानव क्या जीवमात्र बच नहीं सकता है। प्रदूषित पर्यावरण,पशु-पक्षियों की निरंतर घटती संख्या,जीव जन्तुओं का शनै:शनै: होता विनाश , पंचतत्वों जल, वायु, अग्नि, धरा एवं आकाश का  निरंतर होता दोहन सबके प्रति केवल और केवल स्वार्थी मानव ही जवाबदेह  है।मानव और प्रकृति के मध्य  असंतुलन की विकट समस्या आज विस्फोटक बन गई  है।
इस जवाबदेही को ईमानदारी से ही सबको निजी स्तर पर आकर सुधारना और संवारना होगा।
- डा.अंजु लता सिंह 
 दिल्ली


" मेरी दृष्टि में " जवाबदेही से कोई नहीं बच सकता है । यह सभी को समझ लेना चाहिए । वरना उसे कष्ट पर कष्ट का सामना करना पड़ता है । यह जिम्मेदारी से भागने का परिणाम होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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