योगेन्द्र मौदगिल की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा इस बार  योगेन्द्र मौदगिल की स्मृति में  " लघुकथा उत्सव "  रखा गया है । विषय  " पुलिस "  को फेसबुक पर दिया गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं के लघुकथाकारों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है ।
योगेन्द्र मौदगिल का जन्म 25 सितम्बर 1963 को हुआ है । ये पांच भाईयों में सबसे बड़े थे । पिता सेल्स टैक्स विभाग में ओफिसर थे । इनके दो बच्चें है । एक बेटा व एक बेटी है । 
इन का अपने नाम पर यू - टयूब चैनल व ब्लॉग  है । पानीपत सांस्कृतिक मंच के संस्थापक है । इनके कवि गुरु श्री कृष्णदास तूफान पानीपती है। जो राज्य कवि हुए करते थे । कलमदंश पत्रिका का सम्पादन व प्रकाशन छ़ वर्ष तक किया है । दैनिक भास्कर के हरियाणा संस्करण में सन् 2000 व दैनिक जागरण में सन् 2007 में दैनिक काव्य स्तम्भ लिखते रहे हैं । गढगंगा शिखर सम्मान - 2001 , कलमवीर सम्मान - 2002 , युगीन सम्मान - 2006 , उदयभानु हंस कविता सम्मान - 2007 , पानीपत रत्न सम्मान - 2007  आदि प्राप्त हो चुके हैं ।
      इन की रचनाएं सब टीवी , इंडिया न्यूज , जीटीवी , ई टीवी , एम एच वन , इरा चैनल , ईटीसी , जैन टीवी , साधना चैनल आदि पर प्रसारित हो चुकी है । 
     इनकी 06 मौलिक व 12 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । बहुत कम लोगों को जानकारी है । ये लघुकथाकार भी है । चर्चित व्यंग्य लघुकथाएँ ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन 2004 में किया है । जिस का प्रकाशन ज्ञान गंगा द्वारा हुआ है । जिन का देहावसान 18 मई 2021 को हुआ । 
सम्मान के साथ लघुकथा : -
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पुलिस मित्र
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     आज सुबह ही खबर आयी कि संवेदनशील क्षेत्र मे पोस्टेड राजेश जी,विद्रोहियों के मुठभेड़ का सामना करते हुए वीरता से लडते हुए शहीद हो गये।
       आंखे भीग गयी।याद हो आया, दस वर्ष पूर्व मै भी संचार विभाग मे उसी क्षेत्र मे पदस्थ था।युवा अधिकारी के रूप मे उनका बडा नाम था।हमारा काम उनसे पडता रहता था।वे सीआरपीएफ मे बडे आफिसर थे।
     उनसे मिलकर ही जाना कि पुलिस विभाग  के लोग कितने मुस्तैद और मिलनसार होते है।
        इस बीच यह बताना जरूरी है कि बचपन से ही मुझे पुलिस नाम से डर लगता था।बचपन मे कम कपडे पहनता था।तो मां या दीदी पुलिस का नाम लेकर डराकर कपडे पहनाती।
       बडे होने पर एक अवसर यह भी आया जब लोक सेवा आयोग की परीक्षा मे डीवाय एसपी मे चयन हो गया।तब भाई बोले,तुम ठहरे भावुक ह्रदय।पुलिस नहीं कर पाओगे।तो टेलीकॉम जाईन किया।
     तब से आज तक अनेक डीजीपी,आई जी रैंक आफिसर्स से परिचय हुआ।सभी पढे लिखे.डाकटरेट,कवि ह्रदय।तब अपनी गलती का एहसास हुआ और तब तक तीर कमान से छूट चुका था।
    क ई मीटिंग या अन्य अवसरों पर राजेश जी से मुलाकात होती।मैंने उनके जैसा जुझारू ,साहसी आफिसर कभी नहीं देखा।एक बार मैंने पूछा था कि ,जो लडाई या होती है,उसमे छोटे सिपाही या आफिसर ही शहीद होते है।कोई बडा नाम नहीं होता।इस पर वे बोले ऐसा नहीं है,हम नीति बनाते है फिर विभागी नियमों के अनुसार ही रणनीति तैयार होती है।आगे उन्होंने बताया,क ई बार सुनसान जंगलो से घायल साथियों को कंधो पर ढोकर उन्होंने स्वयं अस्पताल पहुंचाया है।तब मन मे पुलिस विभाग के प्रति एक अनोखी श्रद्धा जाग उठती।
  समय बदला है।मानक बदले है।घर परिवार छोडकर यह वीर देश की सुरक्षा के लिये,अपने परिवार से दूर,तन मन.धन से देश की सेवा करते है।धन्य है,।।
   मन से राजेश जी को सच्ची श्रद्धांजलि और पुलिस मित्रोँ को नमन। जय हिंद।
- महेश राजा
महासमुंद - छतीसगढ़
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पुलिस
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      हमेशा की तरह जैसे ही सायरन सुनाई दिया तो चौराहे पर लोगों में बेवजह ही अफरातफरी सी मच गई।कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि पुलिस आई है।सब भाग रहे हैं क्योंकि ये लोग बेवजह ही परेशान करते हैं।कौन लफड़ों में पड़े।परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे जो स्थिर खड़े रहे और आदर की मुद्रा में खड़े हो गए।
          उनसे पूछा तो कहने लगे ये लोग भी सच कह रहे हैं पर ये बातें पहले की हैं अब तो पुलिस मानो खाकी में भगवान का रूप बन गई है।ऐसी कई मिसालें पेश की हैं और समाज के सामने आई हैं।इसलिए अब हमें पुलिस से डर नहीं लगता बल्कि जहां दिख जाएं उनके आदर में खड़े होकर सैल्यूट करने का मन करता है और करते भी हैं।
        दरअसल इस कोरोनाकाल ने सचमुच पुलिस की एक अलग ही तस्वीर प्रस्तुत की है।वो केवल कानून नहीं बल्कि पेट और दिलों तक भी पहुंची है।फिर परिस्थितियां कैसी ही क्यों न रही हों।उत्तराखंड पुलिस जो मित्र पुलिस कहती रहती थी आज तक लेकिन आज हम आम आदमी से सुनते हैं सचमुच मित्र पुलिस बन गई है।मानो सभी की जुबान पर हो कि विकट परिस्थितियों में भी घिर जाएं तो दिल से आवाज निकलती है "पुलिस है ना"।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून  - उत्तराखंड
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 पुलिस
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फकीरन..नसीब की मारी टूटे घर मे रहती पति की मौत कैंसर से हुई थी इकलौता बेटा पिछले बरस करोना का शिकार हो गया था ग्रामीण दंबगों ने उसकी खेती की जमीन कब्जा थी थी. दुखी फकीरन की फरियाद सभी जगह अनसुनी कर दी गई थी पिछले महीने तो हद ही गई लोगो ने उसका घर भी छीन लिया वह दुलारी के बरामदे मे सर्दी के दिन काट रही थी उसने सुना कि शहर में नया दरोगा अमित विश्वा आया है वह दरोगा के पास गई तो  पुलिस थाने मे दरोगा ने उसकी शिकायत दर्ज करने से पहले उसे अम्मा कहकर पाना दिया व खाना खिलाया और आँसू पूछे दबंगों पर केस दर्ज कर उन्हें थाने मे बुलाकर हिदायत दी कि कोई भी अम्मा को परेशान न करे
फकीरन का घर उसे मिल गया दबंग ने ही दरोगा के कहने पर उसे ठीक करा दिया था. फकीरन से दरोगा ने यह भी कहा कोई परेशानी हो तो सीधे मेरे पास चली आना अम्मा ..अमित विश्वा की कार्य शैली से थाने की पुलिस का बदला रवैया देख सभी ग्रामीण खुश थे... फकीरन भी बहुत खुश थी उसने सभी पुलिस वाले को बहुत आशीर्वाद दिया.

- डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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शांत हुई अगन 
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देश के कई शहरों में कर्फ्यू लगा था। कर्फ्यू में लोग तो फिर भी चौबीस घंटे घरों में रहते हैं पर पुलिस बाहर मुस्तैदी से गश्त लगा रही होती है। इस दौरान एक पुलिस वाले को देख दीपक को कुछ पुरानी बातें याद आ गयी।
      एक दिन सिग्नल तोड़ने पर दीपक को एक पुलिस वाले ने पकड़ लिया था। गलती होने के बावजूद वह पुलिस वाले से भिड़ गया और चिल्लाने लगा। बगल में बैठी पत्नी रागिनी ने जब समझाया तो दीपक बोला," तुम चुप रहो, तुम इन लोगों को नहीं जानती, इनका मकसद तो हमसे पैसे ऐंठकर अपनी जेब गरम करना होता है।"
       एक बार फिल्म देखते हुए दीपक पुलिस का मजाक उड़ाते हुए बोला," यह है हमारी नाकारा पुलिस, हमेशा आखिर में आती है।" पुलिस से नाहक ही उलझना और उन्हें उलाहना देना दीपक की फितरत थी।
      तभी टीवी का चालू होना दीपक को वर्तमान में ले आया। न्यूज़ चैनल पर बताया जा रहा था कि कैसे कुछ असामाजिक तत्व पुलिस पर पत्थर फेंक रहे थे। कुछ और देखने के इरादे से दीपक ने चैनल बदला। उस पर एक व्यक्ति कह रहा था," शर्म से आँखे झुक जाती है जब कुछ बेशर्म लोगों को उन पुलिस वालों को मारते, उनका उपहास उड़ाने में आनंद लेते देखता हूँ, जो हमारे रक्षक है। आज के हालात में यदि अपना अपमान सह कर भी ये लोग हमारी चौकसी न कर रहे होते तो हमारा क्या हश्र होता, यह सोचकर ही रूह काँप उठती है। मेरा सलाम है पुलिस के उन वीर जवानों को और देशवासियों से विनम्र अपील है कि जब कभी भी किसी जवान को देखें तो अपनी गति को विराम देकर कुछ पल उनके सम्मान में रूक जायें।" 
     उस व्यक्ति के शब्द दीपक को पश्चाताप की अग्नि में जला गये। उसके रूह में कुछ हलचल हुई। उसने गश्त लगा रहे पुलिस वाले को बुलाया और प्रेम से चाय-नाश्ता करवाकर अपनी अगन को शांत किया। ****
     
- दर्शना जैन 
खंडवा - मध्यप्रदेश
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अवसर
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जब रिश्तेदारों और सगे संबंधियों ने भी कोरोना की दुहाई देते हुए इस अवसर पर आने से साफ इंकार कर दिया  तो भला पास पड़ोसी,मुहल्ले वालों से ही क्या शिकायत।उसने प्रशासन से सहयोग की गुहार लगाई।
"सर ! मैं घर में अकेला हूं।मेरी मां का निधन हो गया है और कोई पड़ोसी , रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ रहा।हेल्प मी प्लीज़।"
इससे आगे उसकी रुलाई फूट पड़ी। 
"अरे आप रोइए नहीं,अपना एड्रेस नोट कराइए।हम पंहुचते है।" एस एस आई ने पता
नोट करते करते सांत्वना दी।
अपने तीन चार साथियों के साथ पी पी ई किट पहन, एस एस आई बताए गये पते पर पहुंचे और तत्काल मृतका के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।इतना ही नहीं शव को शमशान तक पहुंचाकर अंतिम संस्कार होने तक वहीं रहे।
चलते समय अपना पर्सनल नंबर देते हुए उससे कहा,"चिंता,मत करना कोई परेशानी हो तो काल करना।हम है न। हमारे सीने में भी दिल धड़कता है यार।कुछ पुण्य कमाने का अभी तो अवसर मिला है।" ****

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
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लाकडाउन में वेक्सिनेशन 
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लॉक डाउन में घर रह बोर हो रहे थे । जैमेटो स्विगी से बच्चों की मन पसंद चीजें घर आ जाती है ।पर रेस्तराँ भी जन सामान्य की सेवा आर्डर एक घंटे पहले दिये जाते है । लोगों भीड़ इकट्ठी ना हो वहाँ बैठ खाने की सुविधा उपलब्ध नही है । पुलिसकर्मी डंडे मार उठक बैठक करा ,झाड़ू लगाव रही थी ।  पर जीभ चटकारों को चाट गुपचुप चाहिये । बच्चों ने योजनाएँ बनाई चाचू को तैयार करते है । दादी को वेक्सिनेशन के लिये जाना है । बच्चों ने कहा- चाचू हम सब बच्चे कार के पीछे सीट मास्क लगा बैठ जायेंगे ।एक राउण्ड घूमना हो जायेगा । चाचू ने कहा - हाँ भाभी बच्चे मेरे साथ रहेंगे मै पूरा ध्यान रखूँगा ।
कार हास्पिटल केम्पस चौराहे पर पहुँची पुलिसकर्मी ने रोका और कहा - ये बच्चे बाहर क्यूँ  चाचू ने कहा । इन्हें देखने वाले इनकी दादी है और मै हूँ माँ को वेक्सिनेशन के लिये लाया हूँ । पुलिसकर्मी अरे वाह सारे ने मास्क लगाया वेरीगुड  ,
दादी को लेकर चाचू वेक्सिनेशन के लिए लेकर गये ।बच्चे कार में बैठे बहार का सुनसान नजारा देख रहे थे । तभी बच्चों ने देखा - एक बाराती गाड़ी को पुलिसकर्मीयों ने रोका उसमें बीस जगह तीस बैठे थे । पुलिसकर्मीयों ने दूल्हा दूल्हे और बुजुर्गों को छोड़ सबको निकर पहन उठक बैठक करा डांस कराया ।बच्चों का शानदार मनोरंजन हुआ । बच्चों ने कहा - अरे दादी आप चूक गई 
दादी ने कहाँ - हम कहाँ चुकने वाले थे ।जैसा ही मेरा न . आने वाला था , मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी  छुटंकी ने कहा -जल्दी आओ दादी।
। मैंने कहाँ -डा . साहब मै शुगर पेसेंट हूँ ।कार में केला रखा है में खा कर आती हूँ । हुआ ना मनोरंजन चाचू मेरी जगह खड़े है ।यूँ गई यूँ आई । ***

- अनिता शरद झा
 मुंबई - महाराष्ट्र
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  सेवा का व्रत
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माइक से आवाज आ रही थी कि इस कोरोना महामारी में लाकडाउन लगा हुआ है ।कोई भी अपने घर से बाहर न निकले । यह शासन का आदेश है और सब को पालन करना होगा । यह आवाज अनेक बार अपने कानों से सुनकर भी एक सात वर्ष का बच्चा अपने छोटे से घर से बाहर आया । धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रहा था कि एक पुलिस वाले ने आगे आकर उसे रोका और पकड़ लिया । पुलिस वाले ने कहा कि बेटा आपको पता है कि लोकडाउन है फिर भी घर निकल आये हो ।
बच्चे ने बड़ी हिम्मत कर के जबाब दिया ।" अंकल और मेरी माँ घर पर अकेले है । माँ की तबीयत ठीक नहीं है । बीमार है । मैं और मेरी माँ दोनों भूखे है । मैं पड़ौसिन के घर से खाना मांग ने जा रहा हूँ । कृपया मुझे मारना मत क्योंकि पुलिस बहुत बेपीर हो कर मारती है । अगर मेरे हाथ पैर टूट गये तो मेरी माँ की सेवा कौन करेगा  । अंकल प्लीज मेरी परेशानी को समझो मुझे मत मारो "। यह कह कर रोने लगा ।
पुलिस वाले ने बड़े प्रेम से बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ।
" बेटा रोओ मत मैं आपको मारुगा नही ।लो पहले खाना खालो मेरा यह टिपिन है इसमें देखो क्या क्या रखा है "।ऐसा कह कर बच्चे को खाना खिलाया और शेष बचे खाने को टिपिन उसके घर भेज दिया । अगले दिन सरकारी राशन उसके घर पहुंचा दिया ।राशन पाकर कर बच्चे ने खुश होकर स्लूट कर जय हिन्द बोला ।
धन्य है ऐसे पुलिस वाले  जो सेवा का व्रत लेते है ।

- राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी - उत्तर प्रदेश
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 चेतावनी
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 दरोगा अभय यादव की शैतानियत से बच्चा-बच्चा परिचित था । रिश्वत खाने की उसे ऐसी बीमारी थी कि आदमी कितना भी गरीब हो उससे उसे पैसा चाहिए ही चाहिए ।
 रात को एक मामला थाने में आया । झगड़ा पारिवारिक था, फिर भी रफा-दफा करने के बजाय अभय यादव ने उसे उलझा दिया । पूरे दो घंटे थर्ड डिग्री दी और बीस हजार में अभय यादव ने अपने कंधों के सितारों का सौदा उस गरीब से कर दिया । 
उस गरीब ने पैसे जुटाने की भरपूर कोशिश की पर किसी ने उसे फूटी कौड़ी न दी । मजबूरन उसे अपनी दूध देती भैंस बूचड़ खाने वालों को बेचनी पड़ी । बीस हजार लेकर अभय यादव निकला मौज-मस्ती के लिए । मुफ्त के पैसों की बहुत गर्मी होती है । हवा खाने के लिए अभय यादव ने अपनी बुलैट वाइक की गति और तीव्र कर दी, तभी पता नहीं कहां से विदेशी नस्ल का काला सांड आकर बीच सड़क पर प्रकट हो गया । अभय यादव कुछ सोचते- समझते तब तक वे हवा में उड़ गये...।
 पूरी रात बेहोश रहे, सुबह होश आया तो हॉस्पिटल के बेड पर पड़े थे । दांत गायब, पैरों की हड्डियों का चूर्ण बन गया, बायां हाथ धनुष बन गया । बस न जाने कैसे पाप के तालाब में पुण्य का एक छोटा सा कमल  खिल गया कि जान बच गई । या यूं कहें कि ईश्वर की चेतावनी थी कि बेटा सुधर जा, ये वर्दी, ये पॉवर सदा न रहेंगे, कर्म सुधार ले ।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा -उत्तर प्रदेश
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पालनहार
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सपन को पंद्रह दिन बाद थाने में  दोबारा तलब किया गया। इससे पहले जब पुलिस पकड़ कर ले आई थी तो- 
"थानेदार साब ! मैंने क्या कसूर किया जो आप मुझे हवालात ले आए ?"
"कसूर ?" घूरती निगाहों और तल्ख आवाज़ में थानेदार ने कहा।
"ठीक है सर ! मुझे पता नहीं था कि तीनों आटो चोरी के हैं। सर, मुझे मुनेश ने बेचे हैं।मैं इस बात का दोषी हूँ। आप मुनेश को पकड़ें। "
"दोबारा बुलाऊंगा थाने में, अभी तो मुनेश को पकड़ना है।"

इस बार सपन 'सेटिंग' को साथ लेकर आया था। थाने में सेटिंग ने उससे तीस हजार लिए और थानेदार को थमाए। बगल में सीखचों के पीछे सपन ने मुनेश को देखा तो उसके पास गया।
"पकड़ा गया बदमाश ! मेरे तो चलो तीस हजार गए, तेरी तो खूब ठुकाई हुई होगी ?"
ठहाका मारते हुए मुनेश बोला, "ठुकाई ! ये थानेदार साब ही तो मुझे वार- त्योहार याद करते हैं। मैं चोरी करता हूँ, माल बेचता हूँ और ख़रीदने वाले का पता इन्हें बता देता हूं। मुझे ये मुर्गा भी खिलाते हैं और दारू भी पिलाते हैं। यही तो हैं मेरे पालनहार। " ****

डॉ अंजु दुआ जैमिनी
फरीदाबाद - हरियाणा
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पुलिस
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शौर्य ने किशोरावस्था से ही पुलिस में जाने का स्वप्न देखा था। शौर्य अक्सर पुलिस की खराब छवि के किस्से सुनता था। इसीलिए वह, जनता के समक्ष, पुलिस की उज्जवल छवि बनाने का सपना संजाये हुए था। 
पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्ति के पहले दिन ही उसको जोर का झटका लगा। जब उसके निजी सहायक ने एक लिफाफा उसे दिया।
लिफाफा में से झाँक रहे नोटों के कारण उत्पन्न उसकी आँखों के प्रश्नचिह्न को सहायक ने तत्काल भाँप लिया।
उसने कहा..... "सर! यह यहाँ की परम्परा है और इस परम्परा को यहाँ के सम्मानित लोग निभाते हैं।" 
सम्मानित लोग......?
जी सर! सम्मानित लोग..... "मतलब! जनता के प्रतिनिधि, भू-माफिया , कालाबाजारी और दो नंबर के रास्ते धन उपार्जन करने वाले कुबेर एवं बाहुबली आदि।"
सर! यह पैसा लेना आपकी विवशता है, अन्यथा आप पहली नियुक्ति पर ही अधिक दिन नहीं टिक पायेंगे। और स्थानांतरण होने के बाद जहाँ भी जायेंगे, वहाँ पर भी एक लिफाफा आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। बस, देने वाले चेहरे बदल जायेंगे।
शौर्य को, पुलिस की छवि बदलने के अपने स्वप्न चटकते नजर नहीं आये बल्कि वे सपने और भी दृढ़ हो गये। 
शौर्य ने सहायक को लिफाफा वापिस करने के लिए कहा। 
उसने उसी दिन कनिष्ठ अधिकारियों की बैठक में स्पष्ट कर दिया कि भ्रष्टाचार की एक बूंद भी उसे स्वीकार नहीं होगी।
जनता से नियमित संवाद ने उसके सुधारात्मक कार्यों को गति दी। 
जनता ने शौर्य जैसे पुलिस अधिकारी आने से राहत की साँस ली ही थी कि उसका स्थानान्तरण आदेश आ गया।
तब से पुलिस अधीक्षक शौर्य मेहता और स्थानान्तरण आदेश का चोली-दामन का साथ हो गया। 
लेकिन अपनी दस साल की सेवा में अनेक स्थानान्तरण आदेश के बावजूद शौर्य के सपने टूटे नहीं। वह अपने संकल्पों पर आज भी कायम है और जहाँ भी नियुक्त होता है, वहाँ की जनता के मध्य पुलिस की छवि को बदलने के प्रयास जारी रखता है। 
शौर्य जैसे कुछ पुलिस अधिकारियों के कारण ही जनता अपना दर्द लेकर पुलिस के समक्ष जाने की हिम्मत जुटा पाती है। 
जनता सोचती...... काश! पुलिस के सब अधिकारी-कर्मचारी शौर्य मेहता जैसे हो जायें। 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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पुलिस का चेहरा 
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मालती परेशान थी घर में एक दाना नहीं खाना कैसे बने।पति भी कहीं गए हैं।तभी फोन की घण्टी बजी कि बण्डा से वापस आते समय आपके पति का एक्सीडेण्ट हो गया है।काफी चोट लगी है।पुवायां कोतवाल का फोन था।
           इतना सुनना था कि चीख निकल गई।हे भगवान यहां खाने के लिए एक दाना नहीं अब इलाज कहां से करवाऊं।
           आप बस अस्पताल पहुंचो।ऐसा कहकर कोतवाल ने फोन काट दिया।
           बात एसपी साहब तक पहुंची।उन्हें समझते देर न लगीं।
           शाम को दरवाजे पर खटखट से मालती चौंकी ।बाहर आकर देखा तो महिला आरक्षी पिंकी खड़ी थी।उसने पन्द्रह दिन का राशन साहित आवश्यक सामान व दस हजार रुपए देते हुए कहा -
           बहन जी यह सब आपके लिए एसपी साब ने भेजा है।आप बिलकुल चिन्ता मत करिए।हम सब आपके साथ हैं।
           ऐसा सुनकर मालती अपने आपको रोक न पाई।आंखू में आंसू गए।गला रुंध गया।यह सोचती अन्दर चली गई कि साहब पुलिस अथवा उसका चेहरा ..........???

- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश 
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गुमशुदा की तलाश
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‘अंकल मुझे रिपोर्ट लिखवानी है’ बालिका ने पुलिस वाले से कहा।  ‘ क्या रिपोर्ट लिखवानी है?’  ‘अंकल ... मेरी मम्मी .....’ बात पूरी होने से पहले।  ‘ठीक है .... ठीक है .... तुम्हारी मम्मी खो गई है न .... अन्दर बड़े साहब के पास चले जाओ, वह रिपोर्ट लिखेंगे ... जाओ।’  बालिका कमरे में गई।  ‘क्या बात है बेटी, यहाँ क्यों आई हो।  घर जाओ।’  ‘अंकल मैं रिपोर्ट लिखवाने आई हूँ।’ ‘क्या रिपोर्ट लिखवानी है’।  ‘अंकल मेरी मम्मी .....’ ‘बेटी तुम्हारी मम्मी खो गई है तो उनकी फोटो ले आओ, हम गुमशुदा की रिपोर्ट लिख लेंगे।’  थोड़ी देर बाद। ‘अंकल’ बालिका के हाथ में फोटो थी।  ‘अच्छा, तुम फिर अकेले आई हो?  वह बालिका के हँसते-खेलते परिवार की फोटो थी।  ‘तो यह है तुम्हारी मम्मी ... कब खोई ... कहाँ खोई ... कैसे खोई ... कितने बजे खोई .... बताओ’।  ‘अंकल, मेरी मम्मी थोड़ी न खोई हैं, वह तो घर पर हैं’।  ‘क्या मज़ाक है, सुबह से मेरी मम्मी, मेरी मम्मी की रट लगा रही हो।  अगर तुम्हारी मम्मी खोई नहीं है तो फिर यहाँ पुलिस स्टेशन में किसकी रिपोर्ट लिखवाने आई हो।’  ‘नहीं अंकल ... मेरे माँ-बाप को तो मालूम ही नहीं कि मैं यहाँ आपके पास आई हूँ।  ‘तो बेटी बताओ तुम क्या रिपोर्ट लिखवाने आई हो’ ‘अंकल ... बताऊँ ... आप डाँटोगे तो नहीं’। ‘नहीं, नहीं, तुम बताओ तुम्हारी क्या चीज़ खो गई है?  क्या वह इस फोटो में है?’ ‘हाँ अंकल, जो चीज़ खोई है वह इस फोटो में है और मेरी मम्मी ने एक बार मुझे बताया भी था कि अगर कोई चीज़ खो जाती है तो पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करवानी पड़ती है।’  ‘क्या खोया है?’  ‘अंकल ... इस फोटो में हम सब के चेहरे पर ‘हँसी’ थी वह खो गई है।  आप रिपोर्ट लिखकर उसे ढूंढने में मेरी मदद करें।  क्योंकि मम्मी आज सुबह ही पापा से कह रही थीं कि हमारी तो हँसी ही कहीं खो गई है।  आप प्लीज़ ढुंढवा देंगे न, आपने वायदा किया है।  हमें पता नहीं कहाँ चली गई है।  पहले हम सबके पास हँसी थी।  अब तो मम्मी पापा गुस्सा ही करते रहते हैं।  मेरा भाई भी नहीं हँसता।’ अफसर भौंचक्का रह गया। सुबह उसने बालिका को लगभग डाँट दिया था।  इसका मतलब उसकी अपनी ‘हँसी’ भी खो गई है।  ‘अंकल आपकी भी कोई चीज़ खो गई है’।  ‘हाँ बेटी, मेरी भी ‘हँसी’ खो गई है’। अफसर ‘हवलदार ... हवलदार’।  ‘जी सरकार ... ’ हवलदार आ खड़ा हुआ।  अफसर ने दो सौ रुपये दिए ‘टाॅफियाँ ले आओ।’ ‘अरे साहब ... रुपये रखो ... आपसे कौन पैसे लेगा।’ ‘सुनो, जैसे मैं कहता हूँ वैसे करो’। थोड़ी देर बाद ‘सर, यह लीजिए’।  ‘बेटी, यह लो टाॅफी खाओ।’ बालिका मुस्कुराते हुए खाने लगी।  ‘अब मेरे पूरे आॅफिस में हरेक को टाॅफी बाँट दो’ अफसर ने बेटी से कहा।  बालिका के माँ-बाप को बुलवा लिया था।  बालिका टाॅफी बाँटती रही और सभी बालिका का धन्यवाद करते रहे।  सबके चेहरे पर ‘हँसी’ आ गई थी।  अफसर मुस्कुरा रहा था।  बालिका वापिस आई अपने माँ-बाप को बैठा देखा तो भाग कर गई और हँस दी।  माँ-बाप भी हँस दिए।  अफसर भी मुस्कुराते हुए बोला ‘देखा बेटी, कितनी जल्दी ढूँढ दी हमने तुम्हारी खोई हुई ‘हँसी’ । इधर रिपोर्ट लिखी और उधर गुमशुदा ‘हँसी’ मिल गई।  देखो तुम्हारे मम्मी-पापा के चेहरों पर भी ‘हँसी’ आ गई है।  ‘तुम्हारी बिटिया ने आज अपनी और आपके साथ साथ हम सब की खोई हुई हँसी ढुंढवा दी है।  इसे मेरा आशीर्वाद है।’ पुलिस अफसर भावुक हो उठा था। ****

- सुदर्शन  खन्ना
      दिल्ली
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देशरक्षक पुलिस 
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सीमा अपने वायुयोद्धा पतिदेव से पुलिस की तारीफ़ करते हुए कह रही थी--- आप तो सीमा पर माहौल गर्म होने पर,दो देशों में तनातनी होने पर जान जोखिम में डालकर युद्ध करते हैं--- जबकि इन बेचारे पुलिस वालों का चौबीसों घंटे जान जोखिम में रहता है-- कहीं आतंकवादी घुस जाये,कहीं हमला हो जाए--उनकी कड़ी ड्यूटी शुरू हो जाती है। थोड़ी चूक हो जाए, मंत्रियों की बात न मानी--तुरंत तबादला।
    कोरोना महामारी में नेताओं की रैलियों में भीड़ संभालने में, धार्मिक अनुष्ठान में अंधभक्तों की भीड़ नियंत्रित करने में,लॉकडाउन में लोगों को समझाने में ----जान जोखिम में डाल बेचारे पुलिस वाले जिम्मेदारी निभा रहे हैं-- असली देशरक्षक तो पुलिस वाले हैं-- इनके सिर पर हर पल तलवार लटकी रहती है। फिर भी कुछ रिश्वतखोर पुलिस वाले के कारण जनता की नजरों में वो हल्के बने रहते हैं और आप सेना अधिकारी और जवान सैनिक के नाम पर इज्जत पाते हैं।
     धाराप्रवाह भावुकता में बोलती जा रही सीमा की बातों की सच्चाई से सुरेश का अंतर्मन झकझोर रहा था।
     वह सोचने को मजबूर हो गया था-- वास्तव में पुलिस वालों की जिम्मेदारियां हमसे सौ गुना ज्यादा रहती है-- उस पर भी आज के नेताओं की मनमानी को झेलना--कितना मानसिक रूप से तनावग्रस्त करता होगा पुलिस वालों को।
      हां, वास्तव में देशरक्षक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस वाले हीं हैं जो हर जगह हर पल कुख्यात अपराधियों से निपटने के साथ-साथ हर विषम  परिस्थिति में जिम्मेदारी पूर्ण अहम भूमिका निभाते हैं। नमन करता हूं पुलिस वालों को 
      
              - सुनीता रानी राठौर 
              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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तकदीर 
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     छत्रपाल के पिताश्री पुलिस-प्रशासन में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ थे, एक दिन हृदयाघात से आकस्मिक निधन हो गया और बृजपात परिवार पर सहसा आ पड़ा। छत्रपाल सहज नाबालिक, अध्ययनरत और परिवार में इकलौते थे।  नियमानुसार पुलिस-प्रशासन ने उन्हें अनुकम्पा नियुक्ति तो दे दी, कम आयु में पुलिस तो बन गये, उनसे कार्यालय में ही फाईल इधर-उधर, डाक का काम सौंपा गया,शर्मिंदी भी होती थी, मित्रगण भी मजाक उड़ाते। जैसे-तैसे अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ, परिवार-कार्यालय का कार्य करते-करते बड़े हुए, विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए, उप निरीक्षक बन गये, अपने कार्यों में दक्ष, सभी से मधुर संबंध बन चुके थे,  शीघ्र ही निरीक्षक बन कर थाना प्रभारी हो गये थे, जहाँ अपने नाम के अनुरूप शहर में अराजकता का जो माहौल था, जिसे अपने सहयोगियों के साथ तत्परता के साथ निपटाने में सफल हो रहे थे। जिसे प्रशासन ने प्रशस्ति-पत्रों से सम्मानित भी किया। उन्हीं के विभाग में एक महिला थाना प्रभारी थी, जिससे विवाह सम्पन्न हुआ, फिर क्या था सोने में सुहागा।
दोनों के पुलिस-प्रशासन में चर्चित होने लगे, यही पूर्व जन्मों का फल.....! तकदीर!!

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर" 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
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कड़वाहट
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कभी-कभी स्थिति परिस्थिति ऐसी लगती है कि सब्र टूटने लगता है। मोना बहुत शांत स्वभाव की और मिलनसार सबकी मदद करने वाली लड़की थी अचानक कमला  आज सुबह से बहुत डरने लगी उसने कहा चलो छुट्टी हो गलती क्या है?
लेकिन वह लड़ने पर उतारू हो गई हिसाब किताब लेने लग गई।
हिसाब किताब में   नहीं दूंगी ।
वह मैं बॉस को जाकर बताऊंगी तो मुझे बता दो कौन हो  मुझे डांटने वाली?
इतने में बॉस आकर उससे ही डांटने लग गए और बोले कि तुम्हें काम से निकाल दिया जाता है  । चौकीदार को बुलाकर कहा मैडम को बाहर का रास्ता दिखा दो।
मोना के आंखों से आंसू की नदी बह रही थी और वह सोच रही थी ।
लॉकडाउन में  क्या करें उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई तभी एक पुलिसवाला उससे रास्ते में रोककर डांटने लगा एक इधर आओ कहां जा रही हो?
जोर जोर से रोने लग गई वह बोली कि आज पता नहीं क्या हो रहा है सारे लोग मुझे डांट रहे हैं और उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। पुलिस वाले को लगा कि उसे भूख लगी है इसलिए उसने उसे खाने का पैकेट और पानी दिया। मोना ने पुलिस वाले को कहा कि मुझे भूख नहीं लगी है मैं तो कल की चिंता में रो रही ।
पुलिस वाले ने कहा महामारी फैली है
जाओ चुपचाप घर के अंदर रहो।
मोना और जोर जोर से रोने लग गई तब पुलिस वाले ने कहा कि बहन क्या बात है?
उसने  सारी घटना उसे बता दी बात सुनकर उसने कहा कि चलो बहन तुम अपना ऑफिस मुझे दिखाओ जो डर रही थी।
उसे गाड़ी में बिठा के ऑफिस गया और बोला बहन तुम गाड़ी में बैठे और वह अंदर गया और साथ में उसने देखा कि उसका बॉस भी आ रहा है और बॉस ने उससे माफी मांगी और उससे कहा कि मोना मुझसे गलती हो गई चलो तुम काम पर और पहले की तरह ही काम करो ।
वह पुलिस वाले को बहुत आशीर्वाद दे रही थी और उसकी निगाहें उसके आभार व्यक्त कर रही थी और वह सोच रही थी कि मैं पुलिस को कितना गलत सोचती थी पुलिस के प्रति उसकी कड़वाहट  सम्मान में बदल गई।
नम आंखें उसका शुक्रिया अदा कर रही थी और मुंह से उसके एक शब्द नहीं निकल रहा था...........। 

- उमा मिश्रा 'प्रीति'
 जबलपुर - मध्यप्रदेश
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 पांडू....रंग 
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    राजीव का आज सपना पूरा हुआ था। पुलिस भर्ती की विज्ञप्ति निकलते ही लिखित परीक्षा की तैयारी और शारिरीक क्षमता के लिए  व्यायाम और दौड़ पर लक्ष्य साधा था उसने । उसके पिता भी पुलिस में थे। सीमित आय, मँहगाई और संयुक्त परिवार में सब से बड़े थे ।
जैसे तैसे चल रहा था। राजीव को सरकारी स्कूल में भरती करवाया था। जब भी पिताजी पुलिस की वर्दी पहन उसे छोड़ने या लेने आते तो कुछ शरारती विद्यार्थी
उसे छेड़ते। " ए राजा,तेरे तो मजे होंगे। मुफ्त की चीज़े घर में आती होंगी। तेरे पापा तो पांडू हैं पांडू ।एक डंड़ा मार कर  ही माल ले लेते होंगे। दूसरा बोला," अरे नहीं डंडा दिखा कर ही काम चलाते होंगे। राजीव का मन दुखता वो रोते हुए कहता मेरे पिताजी पुलिस में हैं । ईमानदारी से काम करते हैं। वो पांडू नहीं हैं पांडूरंग हैं ।
   बाहरी बातें और घर की स्थिति उसके सामने थी।  व्यंग्य ,ताने मजाक,सब पीता और चुप रहता। मुम्बई बाम्ब ब्लासट  में आतंकियों के साथ पुलिस दल में वो भी थे।आतंकियों को लोहे के चने चबवाया दिए। सीने पर चार गोलियाँ खाई पर हाथ आए आतंकवादी को  सौंप कर ही प्राण त्यागे। अखबारों में पांडूंरंग विकास शिंदे की बहादूरी के चर्चे थे। अंतिम दर्शन के वक्त ही राजीव पांडू रंग शिंदे ने पांडू बनने का निर्णय ले लिया था। आज उसे पांडू होने पर गर्व था।

     - डा.नीना छिब्बर
       जोधपुर - राजस्थान
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पुलिस 
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राम दयाल की सांसें उखड़ रही थी । दमकशी इतनी कि लग रहा था कि अब ये शायद ही बच पाए ।
उसका एकमात्र बेटा श्याम असहाय  भाव से देख रहा था । वो क्या करे । बाहर लाक डाऊन लगा था। कोई वाहन तो दूर कोई व्यक्ति भी घर से बाहर नहीं निकल सकता था । ऐसे माहौल में भी उसने एक फैसला किया ।अपनी गाड़ी निकाली ,उसमें पिता को लिटाया और गाड़ी को तेज गति से दौड़ा दिया डा कमल के घर की ओर ।
       अभी दो तीन किलोमीटर ही चला होगा कि उसकी गाड़ी खराब हो गयी । श्याम गाड़ी से उतर कर बेचैनी में सहायता के लिये देखने लगा ।तभी पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी आई । रुकी और उससे कारण पूछा ।जब उसने सारी बात उन पुलिस कर्मियों को बताई ।
 पुलिस जवानों ने मिलकर श्याम के पिता को अपनी पेट्रोलिंग गाड़ी में डाला और श्याम के बताये डाक्टर के घर छोड दिया ।
डाक्टर कमल ने भी तुरन्त रामदयाल का ईलाज शुरु कर दिया जिससे रामदयाल जल्दी ही ठीक हो कर अपने घर आ गया ।
       श्याम सोच रहा था कि यदि उस विपत्ति के समय पुलिस जवान उसकी सहायता ना करते तो वो आज पिता के साये को खो चुका होता । मन ही मन श्याम पुलिस विभाग और पुलिस  कर्मचारियों का शुक्रिया करता रहा ।।

   - सुरेन्द्र मिन्हास  
   बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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रक्षक
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           नवरात्रि का आखरी दिन था। दशहरे की तैयारियां चल रही थीं। विशालकाय रावण का पुतला बनकर तैयार खड़ा था और उसे देखने जन समुदाय उमड़ रहा था। पुलिस के द्वारा सुरक्षा की व्यवस्था भी की  जा रही थी। आसपास के इलाके को सुरक्षित करने का चाक-चौबंद काम चल रहा था। इसी बीच कुछ उपद्रवकारियों ने शोरगुल के साथ सुरक्षित क्षेत्र में घुसने का प्रयास किया और सबकी निगाह बचाकर उनमें से एक अंदर घुसने में सफल भी हो गया। वह अपने साथ कुछ विस्फोटक सामग्री लिए था। सबसे छुपते छुपाते वह रावण के पुतले के पास पहुंचने ही वाला था कि अचानक एक पुलिस जवान की नजर उस पर पड़ गई और उसके खतरनाक इरादों की गंध भी उसे मिल गई क्योंकि वह अपने जेब  से कुछ निकाल कर उसमें दियासलाई लगाने का प्रयास कर रहा था।
             तुरंत ही उस पुलिस जवान ने छलांग लगाते हुए उपद्रव कारी के हाथ से दियासलाई छीन कर  उसको अपनी गिरफ्त में लेने का प्रयास किया। पांच सात मिनट एक दूसरे से उलझते हुए आखिर उस पुलिस जवान ने उस उपद्रव कारी को दबोच लिया और हवालात भिजवाने का इंतजाम किया। इस तरह से पुलिस के उस वीर जवान ने रक्षक बन कर एक बहुत बड़े हादसे को होने से बचा लिया। वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुंह से  यही निकल रहा था कि जितनी भी तारीफ की जाए हमारे वीर रक्षक पुलिस जवानों की, कम ही रहेगी। वे हमारे राष्ट्र गौरव हैं।

 - गायत्री ठाकुर सक्षम
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
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पुलिस 
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      चंद्रपुर गांव में रहने वाली माही के मन में बचपन  से ही एक सपना पल रहा था कि वह बड़ी होकर पुलिस अफसर बनेगी, परंतु उसके गांव के लोग बहुत ही रूढ़िवादी किस्म के थे।
    वे लड़की को सिर पर चुन्नी लिए और बहू को केवल घूंघट में ही देखना चाहते थे l वे कभी अपने मन को इस बात के लिए तैयार नहीं कर पा रहे थे कि लड़की की भी अपनी दुनिया, अपने सपने होते हैं। 
        परंतु जब माही बड़ी हुई  तो उसने हार न मानी वह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद घर से चोरी - छिपे  पुलिस में भर्ती होने के लिए चली गई। उसको यह भी पता नहीं था कि वह पुलिस में भर्ती हो जाएगी l जब उसने तो परिणाम देखा तो वह अपने आप को प्रथम नंबर पर पाकर फूली नहीं समा रही थी, परंतु उसके परिवार वाले अभी भी इस बात का विरोध कर रहे थे  लड़कियां पुलिस की नौकरी नहीं करती, परंतु किसी तरह उसने अपने मम्मी - पापा व दादा- दादी को पुलिस की नौकरी करने करने के लिए मना लिया था। 
      आखिर वह दिन आया जब माही ने अपने ड्यूटी ज्वाइन की माही बहुत खुश थी परंतु परिवार और गांव वाले अभी भी अंतर्मन से यह मानने को तैयार नहीं थे कि माही पुलिस में जाए। माही के पुलिस में ज्वाइन करने के बाद जल्द ही उसकी परीक्षा की घड़ी आ गई।
    उसका  गांव व  उसका पूरा परिवार करोना की चपेट में आ चुका था। एकमात्र माही बची थी जब पूरे गांव के लोग करोना महामारी के कारण बहुत ज्यादा दुखी थे और गरीबी व बेरोजगारी के कारण उन्हें दो वक्त की रोटी के लाले पड़े थे तो माही ने अपने पुलिस विभाग के साथ मिलकर सबको उनके घरों में राशन पहुंचाया, उनकी देखभाल की और वे जल्दी ही इस बीमारी को मात देकर स्वस्थ हो गए। अब माही के परिवार के साथ - साथ पूरा गांव माही का व पूरी पुलिस का गुणगान कर रहा था। सभी पुलिस का बहुत एहसान मान रहे थे  पूरा गांव माही और  पुलिस को सेल्यूट कर रहा था और यह कह रहा था कि अगर पुलिस न होती तो हम सब भी आज नहीं होते।
     - विजय कुमारी सहगल
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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पानी_पानी 
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100 न. पर डायल करके मिसेज शर्मा ने पुलिस बुला ली । बड़ा सा घर देखकर पुलिस वाले अचरज में थे कि यहाँ से तो फोन गया था कि बेटा मैं दो दिनों से भूखी हूँ । तभी तो हम लोग भोजन की थाली लेकर आ रहे हैं ।
खैर उन्होंने कॉल बेल बजाई ।
छड़ी को टेकते हुए एक वृद्ध महिला बाहर आयी ,क्या बात है ?
पुलिस वाले ने पूछा , क्या आपने फोन लगाया था , खाना मंगाने के लिए ।
हाँ ।
आप तो धनवान लग रही हैं ,आपके घर में और कौन- कौन रहता है ?
कोई नहीं रहता ,बेटा अमरीका में , यहाँ मैं अपनी नौकरानी के साथ रहती थी किन्तु कोरोना के चलते उसे छुट्टी दे दी है ।
आप तो खाना बना सकती हैं, क्या आप के यहाँ समान नहीं है ।
तभी दूसरे पुलिस वाले ने गुस्सा होते हुए कहा अपना किचन दिखाइए , जो समान नहीं होगा , हम लोग लाकर रख देंगे ।
जैसे ही वे लोग घर के भीतर गए तो साफ- सुथरा, व्यवस्थित घर देखकर चौंक गए । बाई के न आने के बाद भी इतना साफ घर ।
हाँ, मैं करती हूँ । जब तक सब सेट न हो मुझे चैन ही नहीं आता । मेरा किचन देखिए ।
अब तो दोनों पुलिस वाले भड़क उठे ।
जब सब कुछ घर में था तो फोन क्यों किया, क्या हम लोगों का यही काम है । इतनी देर में तो सचमुच के जरूरत मंद लोगों की मदद हो जाती ।
आज तो ये खाना छोड़कर जा रहे हैं, पर आगे ऐसी गलती की तो आप जेल की सलाखों के पीछे होंगी ।
अब तो मिसेज शर्मा की आँखें शर्म से पानी- पानी हो रहीं थीं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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पापा और ड्यूटी
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पिछले तीन हफ्तों से लगातार शहर में सन्नाटा पसरा हुआ था। लाॅकडाउन की अपरिहार्यता जो थी।
कोरोना से लगातार मरने वालों की खबरें सुनकर लोग बहुत भयभीत थे।
ट्रैफिक पुलिस विभाग में  कार्यरत सुरेश चौधरी जी ईमानदारी और कर्मठता का परिचय देते हुए अपनी स्पेशल ड्यूटी पर पूरी मुस्तैदी से काम पर डटे हुए थे।
-मुंह पर डबल मास्क लगाए आने जाने वाले वाहनों में बैठे लोगों को चैक कर रहे थे।
पास ही रोड पर बने बीट बाॅक्स में वे फर्स्ट एड बाॅक्स में जरूरी दवाएं वगैरा, सूती कपड़े के हस्तनिर्मित ढेर सारे मास्क, जो उसकी पत्नी ने यू ट्यूब से देखकर जरूरतमंद लोगों को बांटने के लिये बनाए थे,रखकर कोरोनाग्रस्त मरीजों को दे रहे थे । कोरोना की जंग में हारकर दम तोड़ देने वाली पत्नी की याद दिल में  बसाए हुए जन-सेवा में संलग्न थे।
फोन घनघनाया-
-पापा!आप घर कब आओगे?
-आऊँगा जल्दी ही ..मेरी बिट्टो.
-नीनू,काशी,मानू और रूनझुन के पापा तो घर पर  ही रहते हैं  रोज।वो तो सब खूब मस्ती करते हैं पापा!
-कैरम,लूडो और सांप सीढ़ी भी खेलते हैं।बगीचे में भी घूमते हैं।  
-टी.वी पर कार्टून भी देखते हैं मिलकर । 
-आप  दादी,दादू और भैया के साथ एंजाॅय करो।बस छुट्टी मिलते ही जल्दी अपनी लाडो से आकर मिलूंगा।
- टी.वी पर बस न्यूज ही देखते रहते हैं दादू तो और दादी रोती ही रहती हैं।
-  प्लेन कब उड़ेंगे पापा?मम्मी नानी के पास से फिर आ जाएंगी ना?
-  हुं उं ऊ ..फिर बात करूँगा...बाॅय बेटू..लव यू
चार वर्ष की बेटी नोनू को मिथ्या दिलासा देते हुए वे बोले।
-  देखा तो उनके दो पुलिसकर्मी साथी रोड पर ऑटो रोककर उसमें बैठे  बुजुर्ग दंपत्ति से जिरह कर रहे थे-चालान तो कटेगा जी! निकालो दो हजार.
-मैंने पल्लू  रक्खा तो बेटा नाक और मुंह पर। इन्हें ऑक्सीजन भी तो दे रही हूँ मुंह से ..ये बचेंगे तभी तो जी पाऊँगी रे बचुवा।तुम जैसा ही था हमारा जवान बेटा कोरोना की बलि चढ़ गया। 
-हटो छोड़ो इन्हें ...शरम तो है नहीं तुम्हें... पुलिस-प्रशासन जनता की मदद के लिये है.. ना कि..
उन बुजुर्ग महिला को दो मास्क देते हुए उन्होंने उनसे साथियों की गलती की माफी मांगीऔर
पुनः अपनी ड्यूटी में व्यस्त हो गए।
    
- डा अंजु लता सिंह 
    नई दिल्ली 
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मानवता 
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डर  से कांपते हुए लड़खड़ाते कदमों  से पूरी हिम्मत संजोए बेबस बूढ़ा रामलाल पहली बार थाने में  दाखिल हुआ। मजबूरी  में  आज ना चाहते हुए भी सीधे -साधे  रामलाल को  पुलिस थाना में  आना  हीं पड़ा। रामलाल  ने सबसे सुन रखा था कि  " पुलिस से ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी " । जैसे ही रामलाल ने थाने में  अपनी रिपोर्ट लिखानी चाही;  थानेदार  थोड़ा  कड़क  लहजे  में  कहने लगा कि तुम्हारी हीं  गलती से ऐसी वारदात हुई है आखिर तुमने ऐसे आदमी को अपने घर की रखवाली क्यूं  करने दिया था । 
रामलाल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा मुझे नहीं पता था कि मेरा पड़ोसी  ऐसा विश्वासघात करेगा । दरअसल  रामलाल अपने बड़े  बीमार  भाई को  इलाज हेतु शहर ले गया था और अपने घर की रखवाली के लिए चाबी दे गया था । पड़ोसी की नीयत डोल गयी और उसने घर में रखें सारे जेवर एवं अन्य क़ीमती वस्तुओ पर हाथ साफ कर दिया। इसीलिए  रामलाल  लोगों के सलाह देने पर  पुलिस थाने मे एफ ०आई ०  आर० करवाने आया था । थानेदार रिपोर्ट दर्ज करने में  आना- कानी कर रहा था और साथ ही रामलाल को उल्टे- सीधे तरीके से डरा धमका भी रहा था जो एक आम बात होती जा रही है आजकल हर थाने की । 
सहसा थाने में हलचल सी मच गई क्योंकि पुलिस कप्तान  साहब का अचानक आवागमन  हुआ।थानेदार फुसफुसाते हुए रामलाल को कल आने को कहता है । रामलाल  साहब का रौब - रूआब देखकर और सहम जाता है, मगर फिर साहस  जुटाते हुए साहब के कदमों में बैठ जाता है सहायता की याचना लिए । एस 0पी0 साहब ने कदम पीछे हटा लिए । आप खड़े होकर बताइये कि   क्या बात है?  साहब  मेरा पड़ोसी जो मेरा करीबी दोस्त भी है,  ने  मेरा सारा धन गायब कर दिया। एस 0 पी0 साहब थानेदार  से मुखातिब हुए और सारा मामला उनकी  समझ में आ गया। उन्होंने रामलाल की आँखो में सच्चाई का तेज देखा । कल से वे छुट्टी पर जा रहे थे ; अतः तुरंत रामलाल और थानेदार को संग ले गाड़ी से उसके घर पहुँचे । 
पड़ोसी पुलिस की गाड़ी देखकर मन - ही -मन सकपका गया कि अब तो वह नहीं  बच पायेगा ,  उसे  भीरू स्वभाव के  मित्र  से कतई  ऐसी साहसी कदम की उम्मीद  ना थी । आधी जान तो पहले   हीं   पुलिस को देखकर सूख गयी थी बाकी उनकी कड़क  अंदाज में पूछते ही अपनी सारी बेईमानी एक हीं  झड़प में  स्वीकार कर लिया ।गाय घर में रखें  बक्से  से  सारा समान लाकर दे दिया। रामलाल  अपनी खोयी जीवन भर की पूँजी  को पाकर खुशी से एस0 पी0 साहब  को  भींगे आँखो  से  हाथ जोड़ते हुए आशीर्वाद देने लगा । मन में सोच रहा था कि सभी पुलिस वाले बुरे नहीं होते हैं क्योकि आज भी  " मानवता " इस धरती पर  कहीं- ना - कहीं  जीवित  है । ।।

- डॉ  पूनम देवा 
पटना - बिहार
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पुलिस 
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जैसे ही मैं घर पहुंची मैने देखा मेरे सामान में  वह बैग है ही नहीं जिसमें मेरा आधार कार्ड व डिग्रियां थी। 
शायद वह मैं रेलवे स्टेशन पर ही भूल आई थी। मैं परेशान होकर घर से निकल कर जैसे ही रिक्शा वाले को आवाज दी मुझे पीछे से किसी ने पूछा की।
"बहन जी सुमन जी का घर कौनसा है ?"
मैने पूरा नाम पूछा तो पता चला कि वह मेरा नाम ही पूछ रहा है।
इतने में उसने वही बैग मुझे थमाते हुए कहा कि। 
"आप यह बैग स्टेशन पर छोड़ आई और यह पुलिस स्टेशन पहुंच गया। 
तो मैं यह देने आया हूँ। आप परेशान हो रही। होंगी "
मैंने खुशी से बैग पकड़ते हुए कहा।
भाई साहब आप एक सच्चे पुलिस वाले हैं। 
पुलिस जनता की सेवा,  रक्षा, व मदद करने वाली होती है।"

-ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
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पुलिस 
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माधव एक ग़रीब किसान था पर शारीरिक सौष्ठव की प्रतियोगिता में प्रथम आया था 
उसके चर्चे दूर दूर तक थे 
शादी के रिश्तों की भरमार होने लगी ,और माधव की माँ ने सुशील खुबसुरत कन्या  राधा से माधव का विवाह कर दिया ।
सारे गाँव के लोग माधव से किसी न किसी बहाने दोस्ती करने लगे , गाँव का संरपंच भी उसके साथ आजकल शालिनता से पेश आ रहाँ था ।क्यो कि उसकी नजर खुबसूरत राधा पर थी , कई बार वह राधा के साथ भद्दे मज़ाक़ कर चुका था , पुलिस थाने जाकर शिकायत की पर कोई असर नहीं हुआ .पुलिस इंस्पेक्टर संरपंच का सुनता था । 
वह बात बढ़ाना नही चाहती इसलिये माधव को नही बता रही थी । 
आज फिर परेशान हो कर वह पुलिस थाना गई वहाँ पर सीधे बडे आफ़िसर से मिली और पुलिस इंस्पेक्टर की बात भी सब बताई तो पुलिस ने कहाँ बहन जाओ अब तुम्हें कोई नहीं सतायेगा मैं औरतों की बहुत इज़्ज़त करता हूँ । 
राधा घर आ गई आज वह थोड़ा राहत महसूस कर रही थी 
सुबह राधा खेत में खाना लेकर माधव के लिये जा रही थी की कमिना संरपच राधा को उठा ले गया 
माधव ने पुलिस मे रपट लिखवाई पर रोई असर नही हार कर माधव बडें पुलिस आफिसर के पास जाकर सारी घटना बताई व आत्महत्या की धमकी दी , तब प्रभारी बोला कल तो राधा जी की शिकायत लिखी थी आज आडर्र देने वाला था ...पर आज मैं देखता हूँ इन बदमाशों को तुम्हें सिधे मेरे पास आना था । 
तुम्हें आत्म हत्या की थमकी देने की जरुरत नहीं हैं , हम आप की सुरक्षित लिये बैठे है .. धन्यवाद ऑफ़िसर यहाँ का इंस्पेक्टर सुनता नहीं है न इसलिए....,
ओ मैं समझ गया . ...ऑफ़िसर बोला यहाँ थाने में भी कुछ गुंडों के दलाल है , जो रक्षा नही भक्षण करते हैं । मैं अभी आदेश देता हूँ संरपच की गिरफ़्तारी का . आदेश मिलते ही राधा को ढूँढ लिया गया व पुलिस इंस्पेक्टर को छ:माह के लिये निलंबित किया गया और पुलिस आफ़िसर का स्वागत किया गया वसंरपच  पर अपहरण का केश चला
माधव ने कहाँ जब पहली बार संरपच ने तुम्हारे साथ बदसलुकी की थी तभी चाटा जड़ देना था वह गाँव वालो को चिल्ला चिल्ला कर बताना था । संरपच की हिम्मत नही बड़ती ,हमें डर कर नही हिम्मत से जवाब देना है ,आज राधा गाँव मे बालिकाओं को अपनी रक्षा कैसे करनी है , की पाठशाला चला रही है , जहाँ जूडो कराटे, आदि सिखाने के लिये 
पुलिस आफ़िसर ने गाँव में काफ़ी मददत की और राधा की भी मददत की स्कूल खोलने में राधा ने कहाँ भैया सारे पुलिस वाले आप जैसे हो जाये तो हर लड़की सुरक्षित हो जाये ...,
राधा अब गाँव में 
व्यक्तिव विकास व अन्य गतिविधियाँ  सिखा रही है  
वह कहती है हमारा मन का डर निकालाना जरुरी है , मुझे माधव की कही बात सही लगी बस तभी प्रण ले लिया व पुलिस भैया की मददत से यह काम संम्भव हुआ । 
सबसे पहले डर भगाना है अपने अंदर का हम नारी नही दुर्गा है ......

- डॉ अलका पाण्डेय 
 मुम्बई - महाराष्ट्र
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पुलिस वाला डॉक्टर
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रवि होनहार बालक था । घरके कृषि काम
 के साथ स्कूल की पढ़ाई भी अच्छे ढंग से कर रहा था । उसके पिता प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर थे । इसी कारण उन्होंने रवि को भी स्कूल में मेडिकल विषय दिला रखा था । प्री मेडिकल तक सब सामान्य था , अचानक परिस्थितियों में परिवर्तन आया और रवि ने कला विषय अपना लिया । जिससे रवि के पिता जी खासे नाराज थे । रवि के कुछ सहपाठी एम.बी.बी एस.के लिए चयनित हो गए । रवि के पिता जी ने रवि को व्यंग्य कसते हुए कहा देखो आपने भी डॉक्टर बनना था । रवि ने भी कह दिया कि डॉक्टर तो पी. एच डी. वाले होते हैं ,वे तो साधारण मेडिकल ग्रेड्यूट होंगे ।  " हाँ तूने जो असली डॉक्टर बनना है "। रवि स्नातक डिग्री के लिए प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था कि किसी के ताहने के कारण दोबारा घरवालों की मर्जी के विरुद्ध पुलिस में आरक्षी भर्ती हो गया । सभी समझाते रहे अभी पढ़ो पुलिस में ही भर्ती होना है तो अफसर भर्ती होना । पुलिस की नौकरी रातदिन की व बड़ी तकलीफ़ देह है । रवि ने सब अनसुनी कर दी । भर्ती तो हो गया लेकिन वहाँ का वातावरण बड़ा चुनौतीपूर्ण व संघर्षवाला था । घरवालों की बेमर्जी से आया था तो अपने आपको सिद्ध भी करना था । जमकर जी भरकर हर प्रशिक्षण प्रथम स्थान पर पूर्ण करता गया ।पढ़ाई भी जारी रखी । पदोन्नति भी मिलती गई । कार्यशैली न्यायवादी व ईमानदारी की होने के कारण जहां भी रहा जनता में पहचान बनाता गया । अधिकारी भी उसके काम से प्रभावित थे । जनता को जीवन का अर्थ समझाना कि " जीवन कितना है पता नहीं इसमें लड़ाई झगड़े के लिए कोई स्थान नहीं , जो पैसा और समय है वो परिवार व परोपकार के लिए है , उसे पुलिस अदालत व वकीलों के चक्कर में मत गंवाओ " को अपनी कार्यशैली का सिद्धान्त बना लिया था । इस सिद्धांत का जनता ने भरपूर साथ दिया और माना । जहाँ भी रवि रहा वहाँ के लोगों , विभाग और सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने उनके काम को देखते हुए कई समारोहों में सम्मानित किया । कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया । विपरीत परिस्थितियों में भी हर चुनौती को पार कर अपनी पढ़ाई पूर्ण करके पी.एच डी. की उपाधि महामहिम राज्यपाल के करकमलों से प्राप्त की । उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पुलिस का सर्वोच्च सम्मान राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर माता पिता के साथ सभी को गौरवान्वित किया । रात दिन अथक परिश्रम करके एक  पुलिस वाला अब डॉक्टर भी बन गया था । 
     - डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
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सपना
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         मम्मी पापा के काम पर चले जाने के बाद जब मैं  दादी का कहना नहीं मानता था या नाहक ही तंग करता तो दादी यही कहती,"अभी बुलाती हूँ पुलिस वाले को।"दादी की बातें सुनकर मेरे मन में पुलिस की छवि एक राक्षस की बन गई। जब मम्मी पापा के साथ बाजार जाते समय कहीं पुलिस वाला नजर आता तो मैं सहम जाता।मैं पापा का हाथ कसकर पकड़ लेता और पूछता,"पापा ,यह पुलिस इतनी निष्ठुर क्यों होती है?यह क्यों पकड़ कर ले जाते हैं। "
        पापा बड़े प्यार से समझाते, नहीं बेटा, यह तो हमारे रक्षक हैं। इन के सिर पर हम चैन की नींद सोते हैं। हम सोते हैं और ये जागते हैं। चोर,डाकू और लुटेरे कोई नहीं फटकता। "पापा की बातों से, किताबों और अखबारों में पुलिस के कारनामे पड़ता तो मुझे बहुत खुशी होती। कभी कभी रिश्वतखोरी और बेइन्साफी की बातें सुनता और पढ़ता तो भी पुलिस की अच्छाइयों का पलड़ा भारी होता।बचपन में दादी की बातों को सकारात्मक लेता कि दादी को खुद से ज्यादा पुलिस पर भरोसा था तभी तो वो पुलिस वाले को बुलाने के लिए कहती।
        मैंने ठान लिया कि मैं पुलिस में ही जाऊँ गा और पुलिस की गरिमा को बढ़ाऊंगा। आई.पी.एस.की कठिन परीक्षा में टाप किया। आपने ही राज्य में पुलिस अफसर लग गया।अपने जिले को भ्रष्टाचार मुक्त करने और पुलिस का अक्स सुधारने में जुट गया। सब से पहले जिले के नामी गैंगसटर को हाथ डाला जिसे बड़े बड़े लीडरों की शह प्राप्त थी और वो अनेकों संगीन जुर्मों में शामिल थे।मैंने अपनी सूझ बूझ से उसे जिंदा पकड़ा ता कि उस से और अधिक जानकारी जुटाई जा सके।
        साहिब जी----आप को स्टेज पर बुलाया जा रहा है। अभिनव के बाडीगार्ड ने सलूट मारते हुए कहा तो अभिनव अतीत से बाहर आया।आज बहुत बड़े समागम  में मुख्य मंत्री स्वयं उस के कंधे पर मेडल लगा रहे थे।अभिनव का सीना गर्व से फूल गया।जागती आँखों से देखा सपना पूरा हुआ। 

- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
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 रक्षक 
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          अपनी ड्यूटी पूरी करके लौट सुयश घर की ओर लौट रहा था। रास्ते में देखा पाँच-छह लोग किसी को घेरे हुए खड़े थे। पुलिस की नौकरी में उसकी यह आदत बन गई थी कि कहीं भी दो-चार लोग खड़े दिखते तो वह जानकारी जरूर लेता था। इन
            पता चला कि कोई कार वाला एक वृद्ध को टक्कर मार कर भाग गया।एक सौ आठ भी कहीं और मरीज को लेकर गई हुई थी। उसने तुरंत अपने चौकी में फोन कर जीप भेजने को कहा। जीप के आते ही उस वृद्ध को उसमें लिटा कर अस्पताल पहुँचाया। 
              खून काफी बह चुका था।खून चढ़ाने की आवश्यकता थी। उसका  रक्त समूह ओ था तो उसने खून भी दिया और वहीं बैठा रहा।
                   पाँच घंटे बाद जब डॉक्टर ने आकर कहा कि वह वृद्ध अब खतरे से बाहर है तब जाकर उसने पानी पिया। उस दिन शहर से बाहर होने पर वह अपने पिता को तो नहीं बचा पाया था पर आज उस वृद्ध को बचा कर वह दोबारा पितृहीन होने से बच गया था।

- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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सबक 
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खूबसूरत  सुधा गली से तेज कदमों से शाम के करीब छह बजे गुजर रही थी ,वह नीले रंग का सादा सा सूट पहने काफी खूबसूरत नजर आ रही थी।
अचानक दो शोहदे  दूसरी तरफ सुधा की तरफ़ तेजी से लपके और पीछे पीछे चल दिए ।
वे दोनों सुमन के करीब पहुंचते ही उसको देखकर कुछ भद्दा कमेंट करने  लगे । पहले तो सुमन कुछ नहीं बोली बस उनको घूर कर किसी शेरनी की तरह देखा।
 तब शोहदों की ढिठाई और बढ़ गई और वे उसको देखकर कुछ अश्लील छेड़छाड़ की बातें करने लगे और उसकी तरफ गलत हरकत करने की नीयत से तेजी से बढ़े ही थे कि सुधा किसी चीते की तरह उनकी ओर पलटी और दोनों के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया कि दोनों को गश आ गई। वे  दोनो जमीन पर गिर पड़े ।
सुधा बोली,  तुम्हारी शिकायत मिली थी मुझे  ,आज अपनी आंखों से देखने और तुम्हे सबक सिखाने  ही निकली थी । तुमने इधर से निकलने वाली लड़कियों को बहुत परेशान कर रखा है ना। यह सब इंस्पेक्टर सुधा का थप्पड़ कैसा लगा आशिकों ।
चलो सीधे मेरे साथ आना नहीं तो भी मार मार कर भुर्ता बना दूंगी। वो दोनों सब इंस्पेक्टर सुधा के कदमों में   गिर गए और माफी मांगते हुए गिड़गिड़ा रहे थे ,कि मुझे माफ कर दीजिए अब आइंदा कभी किसी लड़की की तरफ गलत नजर से नहीं देखेंगे, सबको अपनी बहन समझेंगे, मुझे माफ कर दीजिए, एक मौका दे दीजिए ।
परंतु तेजतर्रार सबइंस्पेक्टर सुधा  कहां मानने वाली थी । उसने उन दोनों को थाने अरेस्ट कर ले गयी और जेल भेज दिया ।  
आज  सही सबक सीखा मनचलों ने ।****

- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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  पुलिस
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            बचपन से ही श्याम को पुलिस की ड्रेस अच्छी लगती थी  ।  उसकी ऐसी ड्रेस में कई फोटो थे । जब भी कोई उसे पूछता कि बड़े होकर क्या बनोग ? तो वह तपाक से जवाब देता- 
"पुलिस ।"
" क्यों ?"
" देखते नहीं क्या कि चौराहे फर उसके एक इशारे से सभी को रुकना पड़ता है  । "
       ऐसे ही करते कहते वह बड़ा हो गया और पुलिस में भर्ती भी हो गया  । बचपन की साध पूरी हो गई । पुलिस की वर्दी पहन हाथ में डंडा लेकर जब वह घर से निकलता तो उसकी चाल ही बदल जाती । तथा जब चौराहे पर किसी को रोकता ......किसी से कुछ पूछताछ करता तो उसके रौब का तो पूछना ही क्या  । 
         ईमानदार तो इतना कि उस पर आंखें बंद करके भरोसा किया जा सकता था ।
        पांचों उंगलियां की तरह सभी पुलिस वाले भी  एक जैसे नहीं होते  । 
         ऐसे ही एक दिन उसने देखा कि उसका साथी पुलिस वाला रिश्वत ले रहा है तो पहले तो उसने उस समझाया जब नहीं माना तो उसकी आगे शिकायत कर दी । जिसका परिणाम यह हुआ कि उसका अपहरण करवा दिया गया  । 
      अपहरण कर जहां उसे रखा गया वहां ऐसे भ्रष्टाचारियों की बहुत बड़ी गैंग थी । अब उसने बहुत सूझ-बूझ तथा होशियारी से काम लेना शुरू किया  । उन सभी को विश्वास में लेकर उनका हितैषी बनने का नाटक किया और अंत में पूरी की पूरी गैंग को गिरफ्तार करवा दिया  । 
       स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रपति द्वारा उसे सम्मानित किया गया  देश के सभी अखबारों ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की । राष्ट्रपति जी ने कहा कि आज देश को तुम्हारे जैसे ईमानदार लोगों की आवश्यकता है  । उन्होंने उसे उच्च पद पर आसीन करना चाहा लेकिन आज उसका बचपन का सपना साकार ही नहीं हुआ बल्कि उसे तो पंख मिल गये थे । 
              - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
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फिर से चुनाव की तैयारी
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सुनती  हो ...  सुधा आज मेरी ड्यूटी दूसरे थाने में है तो टिफिन समय पर बना देना आज जल्दी निकलना है! इस कोरोना  में भी जबकि स्थिति भयावह है किसी को समझदारी नहीं है!  किसी को पार्टी करना है  ,किसी को बाहर तफ़रीह करनी है पूछने पर लॉकडाउन है मालूम नहीं...  कहते हैं बोरहोरहे थे अतः कुछ समय बाहर निकल उर्जा ले लें .....  किसी को रैली करनी है ! सामान्य लोगों को तो थोड़ी दमदाटी दे कंट्रोल कर लेते हैं पर इन नेताओं को कौन समझाये जो जेब में आर्डर लिए फिरते हैं! 
सुधा ने कहा आप चिंता मत करो उन्हें कोरोना समझा देगा.... तुम भी न सुधा और इस गंभीर स्थिति में भी विशाल मुस्कुराने लगे ! 
विशाल ने अपना टिफिन लिया और बाइक स्टार्ट करने ही वाले थे सुधा ने कहा वैसे हमारे राजा जी की तैनाती कौन से थाने में है? 
भवानीपुर कहते पत्नी को फ्लाइंग किस देते हुए गाडी बढा़ दी! 
नेता जी की गाड़ी पूरे रफ्तार से सड़क पर जैसे ही निकली सामने से एक कार स्पीड में आ रही थी से टकराई!  नेता जी गुर्राये .... गाड़ी  से उतरकर  बोले तुम्हें पता नहीं मैं कौन हूं ? अभी कुछ हो जाता तो...   
तुम कौन हो ? 
मैं कोरोना  हूं तुम्हें वार्निंग देने आया हूं... फिलहाल तो बच गये हो पर..... मै कह नहीं सकता दूसरे अटैक के लिए ....संभल जाओ
" जियो और जीने दो "
विशाल की तैनाती  नेताजी कि सुरक्षा थी..... आश्चर्य  सुधा की बात सच निकली! 
जिसको कौई नहीं पहुंचता उसे कोरोना पहुंचता है! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
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पुलिस
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जब रामजीलाल बीमार पड़े तो उनको कोई हॉस्पिटल लेजानेवाला भी नहीं था क्योंकि लड़का बाहर रहता था। उनके घर में स्कूटर तो था, उन्हें चलाना भी आता था मगर लाइसेंस नहीं था। उन्होंने हिम्मत की ओर वह लेकर हॉस्पिटल के लिए चल पड़े। रास्ते में जब उनको एक पुलिस वाले ने रोका तो वह घबरा गए और उन्होंने उस युवक पुलिस वाले से सब कुछ सच सच कह दिया। उस पुलिस वाले ने देर किए बगैर उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाया और कहा कि आप बिल्कुल भी चिंता न करें। मेरे लायक और कोई काम हो तो बताइए। यह सुनकर वे बोले कि पुलिस वाले तो व्यर्थ ही बदनाम हैं। समय पर काम तो वास्तव में यही आते हैं।


प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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 मददगार 
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लाॅकडाउन का आज पाँचवा दिन था । दीनानाथ जो पेशे से मजदूर था परेशान होकर गली में चक्कर काट रहा था ।आखिर वो मेन सड़क पर निकल आया। इतने में ही पुलिस की जिप्सी दिखाई दी। वह बिना डरे पुलिस वालों से बोला ," साहब चाहे डंडे मार लो पर बाहर जाने दो आज बच्चों के खाने के लिए कुछ नहीं है । " जिप्सी में बैठे पुलिस वालों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर उससे पूछा कौन से घर में रह रहे हो वहीं चलो हम आ रहे है । दीनानाथ सिर धूनता हुआ घर को हो लिया। अभी भी वह गली में चक्कर ही काट रहा था कि उसने देखा एक पुलिस वाला बहुत सा सामान लेकर उसकी तरफ ही आ रहा है । आते ही कहा ये रखो सारा सामान आगे भी किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना । सामान लेकर दीनानाथ सोचने लगा डंडे बरसाती पुलिस तो बहुत बार देखी सुनी है ये मददगार पुलिस से वास्ता तो पहली बार पड़ा है । उसका माथा श्रद्धापूर्वक झुक गया जैसे भगवान के आगे झुकता है । 
                           - नीलम नारंग 
                           हिसार - हरियाणा
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Comments

  1. बहुत बढ़िया

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  2. आदरणीय बीजेन्द्र जी, सादर प्रणाम.  आशा है आप स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं और कुशलता की ओर अग्रसर हैं. आपके द्वारा आयोजित इस मंच पर विविधताएं देखने को मिलती हैं. प्रबुद्ध जनों को जानने का अवसर मिलता है. लघुकथा जैसे आयोजनों से एक इंद्रधनुष का निर्माण होता है. हार्दिक आभार और सभी रचनाकारों को नमन और बधाई.
    - सुदर्शन खन्ना
    दिल्ली
    ( WhatsApp से साभार )

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  3. आ. बीजेंद्रजी, सादर अभिवादन. आप स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे, फिर भी आप मंच पर जो साहित्य सेवा कर रहे हैं वह स्तुत्य है.
    इसी तरह रचनाकार भी इसका लाभ लेकर इस प्रयास को सफल बनाने में लगे हैं उनका कार्य भी प्रशंसनीय है.
    - सरोज जैन
    खण्डवा - मध्यप्रदेश
    ( WhatsApp से साभार )

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  4. आदरणीय जैमिनी जी ,आशा है आप स्वस्थ महसूस कर रहे होंगे। लघु कथा के विकास के लिए आपके द्वारा किया गया कार्य एवं प्रयास सराहनीय है। साहित्यकारों को एक उत्कृष्ट मंच देकर उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए आपको साधुवाद।

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