जन्मतिथि : 21 दिसम्बर 1953
जन्मस्थान ऋषिकेश - उत्तराखंड
शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड
संप्रति : :सेवा निवृत हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई
कृतियाँ :-
प्रांतपर्वपयोधि (काव्य) ,दीपक ( नैतिक कहानियाँ),सृष्टि (खंडकाव्य),संगम (काव्य) अलबम (नैतिक कहानियाँ) , भारत महान (बालगीत) सार (निबंध), परिवर्तन सामाजिक प्रेरणाप्रद कहानियाँ।
दोहों में : मनुआ हुआ कबीर (923 दोहे )
प्रकाशन :
देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित , जारी हैं ।
उपलब्धियां :
समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माडर्न कॉलेज वाशी द्वारा गुण गौरव सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ , कहानियाँ, आलेख प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार से विद्या वाचस्पति से सम्मानित । नवभारत में प्रकाशन , नवभारत टाइम्स में मेरे मत , बोध कथा आदि प्रकाशित .सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि पाठक सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन , काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान , जैमिनी अकादमी लघुकथा प्रथम पुरस्कार , अग्निशिखा काव्य मंच काव्य सम्मान , मगसम रचना रजत प्रतिभा सम्मान , आशीर्वाद २४ घंटे कवि सम्मेलन काव्य पाठ , के जे . सोमैया मुबई पुरस्कृत , गुरु ब्रह्मा सन्मान , सबरंग कवि रत्न अवार्ड , कोपरेटर नवी मुंबई साहित्यसम्मान , इपीक लीटरी कौंसिल सम्मान , विश्व हिंदी संस्थान कनाडा से विश्व हिन्दी कथा शिल्पी सम्मान और हिंदी उपन्यास रचना सहभागी सम्मान ओंकार प्रतिष्ठान सम्मान , हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुम्बई , सेलिब्रेटिंग आईडिया जूरी पेनल सम्मान , नेपाल आकाशवाणी में मेरा साक्षात्कार , काव्य वाचन , आदि। मुंबई आकाशवाणी से जारी हैं कविता , कहानी , आलेख , मेरा साक्षात्कार आदि प्रसारण।
विशेष :
अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर गोल्डन बुक में प्रूडेंट पब्लिकेशन द्वारा मेरा बायोग्राफी 21 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ प्रकाशित ।
लाइव कार्यक्रम फेसबुक पर भजन , काव्य , हाइकू , लघुकथा पाठ आदि का जारी ।
पता: -
वाशी, नवी मुंबई - 400703 महाराष्ट्र
1.गोद उठाई की रस्म
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" माँ ! जल्दी से नवजात के लिये ओढ़ना , बिछोना , कपड़े दो । '"
डॉ बेटी विभा ने अपनी माँ से कहा .
"अचानक ऐसा क्यों कह रही हो ?"
" अभी बस में प्रसव वेदना से पीड़िता ने लड़की को जन्म दिया है । विविध जाति , धर्म के लोगों से भरी बस में किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की । संजोग से मेरे संग मेरी डॉ सहेली शिल्पा भी उसी बस में थी । अभी उसे नगरपालिका के अस्पताल में भर्ती करा के आयी हूँ । हमारी सहायता से डाक्टरों ने उस गरीब , दलित स्त्री को भर्ती करने में कोई आनाकानी नहीं की । उसके पति ने उसे छोड़ा हुआ है । उसे आर्थिक मदद भी चाहिए । "
" ठीक है , यह लो उसके पहनने के लिए मैक्सी , धोती , नवजात के लिए कम्बल ,चादर , कपड़े और जच्चा के लिए हरीरा , एक हजार का नोट भी और आगे भी उसे जरूरत होगी तो हम उसकी मदद करेंगे ।"
सब समान फटाफट थैले में भर चेहरे पर मानवता की मुस्कान लिए डॉ विभा फुर्ती से अस्पताल में पहुँची और दूसरे की अजनबी नवजात बेटी को अपनत्व की गोद में ले के गोद उठाई की रस्म कर खुशी से झूमने लगी और मानवता की रक्षा हेतु एक बेटी के कंधों ने दूसरी नवजात बेटी की ऊँगली थाम के उसकी माँ के हाथ में पर्स में से एक - एक हजार के दो नोट थमा के फिर मिलने का और आर्थिक मदद देने का वादा कर के दोनों सहेलियाँ फर्ज का आशियाना बन अपने घर चल दी . नवप्रसूता ने अपनी आँखों में गरीब - अमीर , जातिभेद , ऊँच - नीच की लकीर मिटी देख के उन दोनों की इंसानियत की ऊँचाई की चमक को देख रही थी . जो समरसता की गंगा बहा रही थीं ।
ऐसा महसूस कर थी जैसे लक्ष्मी ने लक्ष्मी का स्वागत कर खुशियों ने दिवाली मनायी है ।. ****
2. लाकडाउन की खुशी
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कोरोना काल में लीना अपने माँ के घर जाने की मन ही मन में सोच रही थी , नौवां महीना भी चढ़ गया , डिलीवरी किधर , कैसे होगी ? माँ के घर में तो सब सुख , सुविधाएँ हैं और माँ को तो बच्चे पालने का अनुभव भी है । ट्रेन भी नहीं चल रही है। कैसे माँ के घर जाऊँगी ?
सासु माँ ने कह दिया था , " पहला बच्चा माँ के घर ही होता है । "
पति ललित ने ध्यान मगन अपनी पत्नी लीना के कँधे पर हाथ रख के प्यार से कहा , " अरे लीना ! सरकार ने श्रमिक विशेष ट्रेन प्रवासी मजदूरों के लिए चला दी है । तुम अपनी माँ को फोन कर के कह दो कि आज हम आ रहे हैं ।"
"ठीक है।"
उत्साह के साथ लीना जाने की तैयारी में जुट गयी। ललित सुटकेस लिए लीना के संग मुंबई स्टेशन पर श्रमिक ट्रैन में बैठ गए।
ट्रैन छुक - छुक करते हुए अपनी गति पकड़ते ही स्टेशनों को छोड़ते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ी जा रही थी ।
लीना अपने चेहरे पर खुशी लिए बेसब्री से अपने माँ के घर देवास जाने के लिए स्टेशन गिने जा रही थी । देवास महज तीन स्टेशन की दूरी पर था ।
तभी लीना की असहनीय प्रसव वेदना शुरू हो गयी । कभी दर्द रुकते तो कभी तेज हो जाते थे ।
वहीं डिब्बे में सामने बैठी महिला ने कहा , " इसके दिन पूरे हो गये हैं , बच्चा होने पर ऐसे ही दर्द होते हैं ,
रेलवे प्रशासन से मदद मांगों । "
यह सुन के ललित ने रेलवे प्रशासन के अधिकारी को सारी बात बतायी , तुरंत अधिकारी ने डॉक्टर की टीम ललित की बोगी में भेजी ।
डॉक्टर ने लीना का चेकअप करके रेलवे अधिकारी को रेल रोकने को कहा ।
रेल के रुकते ही पुलिस अधिकारी की मदद लिए रेलवे के कर्मचारियों ने लीना को अस्पताल में भर्ती कराया ।
लीना के दर्द बढ़ते जा रहे थे । डॉक्टर ने उसे ढाढस बंधाया।
चेहरे पर मुस्कान लिए डॉक्टर ने आशीर्वाद देते हुए कहा ," लो यह तुम्हारे वंश की लाली पुत्र रत्न हुआ और बेटे ने लीना को माँ और ललित को पिता बनने के रिश्ते से जोड़ दिया । ललित ! इन दोनों का ध्यान रखना , यह मेरा फोन नम्बर है , जब भी लीना, बच्चे को कोई तकलीफ हो फोन से बताना । "
वरदान बना लाकडाउन ललित और लीना को खुशियाँ लुटा रहा था। ईश बने डॉक्टर ने लीना को पुनर्जन्म दिया और डॉक्टर के नाम पर ही अपने नवजात बेटे का प्रताप नाम रखा । *****
3. सच्ची श्रद्धांजलि
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कोलकता के वृद्धाश्रम के ' बहुउद्देशीय सेवा केंद्र ' द्वारा भेजे गए कोरियर में
" रीमा , बिल फॉर फ्युनरल यूअर मदर " को विस्मृत नेत्रों से पढ़कर इकलौती बेटी रीमा अपनी बूढ़ी माँ की अंतिम क्रिया में न शामिल होने के दुःख से फफक - फफक रो पड़ी . उस की अंतरआत्मा उसे धिक्कार रही थी . तभी पास बैठे उसके पति ने रीमा से रोने का कारण पूछा तो रीमा ने वह बिल दिखाया .
सांत्वना देते हुए पति ने उसका ढाढ़स बंधाया और फिर रीमा से कहा -
" तुम्हारे कहने से ही तो मैं अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ आया था . चलो हम उसे वापस घर ले आते हैं . "
रीमा ने अपने पति को हाँ में गर्दन हिलाकर अपनी सहमती जताई .
रीमा ने मन ही मन में सोचा यही मेरी माँ के लिए मेरा प्रायश्चित और सच्ची श्रद्धांजलि होगी . *****
4. इकोफ्रेंडली थैला
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कनाडा में वर्ल्ड डिजाइनर संस्था से जब मीना विश्वस्तरिय अवार्ड ले रही थी। तभी मंच के संग दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट से उसे बधाई दे रहे थे । जो मीना के उत्साह को बढ़ा रहा था । मोबाइल , कैमरे में मीना की फोटो लोग कैद कर रहे थे । यह सम्मान मीना को स्वदेशी इकोफ़्रेंडली सूती कपड़े के थैला बनाने के हुनर को पहचान दे रहा था ।मीना आत्मविश्वास के जज्बे से आगे बढ़ रही थी । तभी सारे पड़ोसियों , लोगों के व्यंग्य उसकी आँखों के सामने घूमने लगे ।जब पड़ोसिन सुधा ने मेरी सासू माँ से कहा था ।
" अरी सरला ! , तेरी बहू मीना सिर उघाड़े रोज बाहर जाती है ।जिन घरों का हम पानी नहीं पीते हैं । उन घरों में क्या करने जाती है ? "
" हाय दैया तू !, मेरी बहू के पीछे क्यों पड़ी है ? ताने क्यों मारती हो ? तुझे मालूम नहीं है क्या ? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश हित में प्लास्टिकों की थैली पर प्रतिबंध लगाया है । क्योंकि प्लास्टिक के कचरे में काफी वृद्धि हुई है । जिससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या विकराल हो गयी है और न ही इस प्लास्टिक को हम नष्ट कर सकते हैं ।"
" हम्मे , सुना तो है । इतने सालों से भारत की जनता प्लास्टिक की थैलियों , सामानों का उपयोग कर रही है । प्लास्टिक की थैलियाँ तो हल्की होने से अपने पर्स , जेब में रख के सामान आसानी से भर के ले आते हैं । सच में बातों से किसी की आदत को नहीं छुड़ा सकते हैं । "
" सेहत की बहुत अनदेखी कर ली हमने । प्लास्टिक तो मनुष्य , जीव - जंतुओं , समुद्रीय जीव संसार के लिए हानिकारक है । प्लास्टिक प्रदूषण से कई जीवों , समुद्री जीवों की मृत्यु हो गयी है ।अब हमें सावधान होना पड़ेगा । प्लास्टिक की थैलियों में लाया या रखा हुआ सामान हमारे लिये जहर के समान है ।जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और बीमारियों को जन्म देता है । "
" हमें तो न पता है । "
" इसलिए तो बता रही हूँ कि स्वास्थ के प्रति हमने खूब लापरवाही की है । हमें प्लास्टिक की चीजों , थैलियों को उपयोग करने से बचना होगा । मेरी बहू तो उन पिछड़ी बस्तियों में जाकर उन्हें प्लास्टिक की थैलियों को उपयोग में न लाने के लिए जागरूक करती है और इको - फ्रेंडली कपड़े के थैले बनाने का काम सीखा के उन गरीब लोगों , लड़कियों को रोजगार का साधन दे रही है । "
कई सारे माइक से घिरी मीना बड़ी खुश थी । विदेशी धरती पर अखबार , दूरदर्शन , मीडियावालों को अपना इंटरव्यू दे रही थी ।
विदेशियों को अपने स्वदेशी थैले उपहार में दे के उन्हें थैला बनाने की कला सिखाने लगी और स्वदेशी थैले को बढ़ावा दे रही थी । प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले भयावह संकट को मुक्ति दे रही थी । ****
5. इंटरनेट पर मोहब्बत
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द्वापर की राधा जिसके संजोग में श्यामसुंदर लिखा था और इक्कीसवीं सदी की पच्चीस वर्षीय तलाकशुदा , तीन वर्षीय बेटे श्याम की माँ राधा सुसराल , समाज की उपेक्षा , तानों की मार और दुखों के पहाड़ , गम के कांटे लिए नासिक में अपने माँ - पिता की छत्र छाया में आर्थिक कष्ट झेलते हुए बैंक में नौकरी कर जीवन यापन करने लगी और उम्र के पैत्तीसवें पड़ाव पर आ गई थी . एकमात्र जीने का सहारा श्याम दसवीं कक्षा में आ गया था। बेटे और नौकरी की जिम्मेदारियों से चक्की के दो पाटों के बीच पीसने लगी। मनोरंजन के नाम पर फेस बुक पर चैट कर और वैवाहिक डॉट कॉम पर अपने लिए योग्य लड़कों की प्रोफाइल देख लेती थी ,
तभी उसकी नजर कनाडा के चालीस वर्षीय निःसंतान तलाकशुदा व्यापारी कनेडी के बॉयोडेटा पर पड़ी। उससे चैट कर दुःख - सुख बाँटे , दिल की धडक़नों में सिमटी रंगों की फुहार जैसे गालों पर होली का गुलाल लगाते हुए लालम …… लाल ....... सी महसूस कर रहीं थी। दिलों की दूरियाँ नजदीकियों में बदल गयी .बैंक से छुट्टी होने के बाद हर दिन राधा मोबाइल पर श्यामसुन्दर से बात करते हुए समय का पता ही न चलता था . प्यार के इन संबंधों में दोनों में औपचारिक्ता और झिझक की दीवारें ढह गयी थीं . एक दूजे के लिए वे आप से तुम और मैं से हम हो गए थे और इंटरनेट पर मौहब्बत ने शीघ्र ही कनेडी को नासिक में आने के लिए राधा के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए मजबूर किया।
सामाजिक अवेहलना, अकेलापन दूर करने के लिए और सुख - सुकून , सामाजिकता की जिंदगी जीने के लिए माता- पिता की रजामंदी आशीषों के साथ श्याम को बेटा मान के कनेडी ,राधा ने नासिक कोर्ट में शादी कर ली . राधा ने कनेडी को प्यार का नाम श्यामसुंदर रख दिया .
प्यार के सतरंगी रंग दिलों की धडकनों को अपनेपन के रंग में रंग रहे थे और दाम्पत्य जीवन में प्रेम की मिठास को घोल रहे थे . ****
6.गांधी से महात्मा
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" गुरु जी ! यह बताओ गाँधी जी ने बचपन से लेकर जवानी तक और जब दक्षिणा अफ्रीका से भारत मेंं आए तब तक वे खूब बढ़िया कपड़े पहनते थे , जब वे चंपारण बिहार में गए , तो गाँधी जी ने सूट- बूट छोड़ कर धोती क्यों पहनी थी ? गांधी जी ने आजादी की लड़ाई कहाँ से शुरुवात की? "
आठवीं कक्षा के छात्र सुनील ने पूछा।
"सुनो , अँग्रेजी सत्ता किसानों पर अत्याचार करती थी और उन्हें नील की खेती करने के लिए मजबूर करती थी, तो किसान और महिलाएँ गाँधी जी को अपनी पीड़ा बताने के लिए इकट्ठा हुए। गाँधी जी ने देखा कि इन लोगों ने गंदे कपड़े पहने हुए हैं ,तो अपनी पत्नी कस्तूरबा से कहा कि इन औरतों को साफ कपड़े पहनने के लिए कहो ।
कस्तूरबा जब उन औरतों के पास गई तो पता लगा उन के पास एक ही मैली धोती है ,जो पहनी हुई है और जिसे स्नान करने के बाद धो नहीं सकती है ।
यह बात बा ने गांधी जी को बताई ,तो गांधी जी ने अपना चोगा उतार कर बा को उस औरत को देने के लिए कहा और उसके बाद गाँधी जी ने ताउम्र घुटनों जितनी लंबी धोती पहनी। यही से गांधी जी ने गुलाम भारत की आज़ादी और महात्मा बनने की शुरुवात की ।"
अब तुम बताओ सुनील, यह घटना क्या दर्शाती है ?
"हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए और निःस्वार्थ सेवा ही सच्ची सेवा है।
पलभर की भी पराधीनता नरक से भी बढ़कर है । "
" बहुत बढ़िया , हमारे हृदय में अहिंसा , दया , प्रेम , सहयोग , मैत्री और त्याग आदि की भावना होनी चाहिए । इन नैतिक मूल्यों से बाल , जन , वृद्ध , बड़े हर कोई जुड़ सकता है। ब्रिटिश सत्ता से आज़ादी पाने के लिए सारे भारतवासी बच्चे , बड़े -बूढ़े, युवा , स्त्री -पुरुष संगठित होकर स्वतंत्रता के लिए असहयोग आंदोलन , विदेशी वस्त्रों की होली जलायी थी , नमक पर टैक्स लगने पर गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च किया।
वीरों, अनाम देश - प्रेमियों , देश - भक्तों ने स्वतंत्रता आंदोलन में दी कुर्बानियों से भारत को आजादी मिली ।"
"जी गुरु जी । "
सुनीता तुम बताओ
" हमें मैले कपड़े नहीं पहनने चाहिए, रोज स्नान करना चाहिए और धुले कपड़े पहनने चाहिए ।"
" बिल्कुल सही बच्चो हमें यह भी सीख मिलती है कि
गंदगी बीमारी की खान होती है , जो रोग दे के जान ले लेती है औऱ स्वच्छता हमारे स्वास्थ के लिए औषधी है , इसलिए हमें अपने अंतर - बाहर को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए। स्वच्छता हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए , इसलिए हम सब अपने घर , देश को स्वच्छ बनाएँ । स्वच्छता में ईश्वर का निवास होता है । गांधी जी ने सच , अहिंसा का मार्ग अपनाके जीवन मूल्यों से अपने चरित्र को गढ़ा और उनकी कथनी - करनी में कोई अंतर नहीं था , बिना हथियारों के अहिंसा के बल से उन्होंने हमें आजादी दिलवायी है , इसलिए आज के इंटरनेट की सदी में गांधी जी का जीवन - दर्शन प्रासंगिक हैं । "
" हाँ गुरु जी , गाँधी जी ने लंदन से पढ़ाई की , भारत से ली सादगी, अहिंसा और भोग में त्याग की संस्कृति को अपना के देश को आजादी दिलवायी ।" एक छात्र ने कहा ।
शाबास बच्चों ! राष्ट्र , विश्व के साथ भारत की आजादी के अमृत महोत्सव पर गाँधी जी के साथ सभी स्वतंत्रता सेनानियों का हमारा नमन है ।
सारे बच्चे मिल के बोलो -
जयहिंद , वंदे मातरम् । *****
7. पिता का ब्याज
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" पिता जी , पॉलीहाउस खेती से बेमौसम में उगाए खीरा , शिमला मिर्ची के उत्पाद की बढ़ोत्तरी के लिए " उद्यमी किसान " का राष्ट्रपति जी ने शील्ड , चेक के साथ प्रमाणपत्र दिया है । " मुस्कुराते हुए भोला ने कहा।
" होठों पर मुस्कान और आँखों में खुशी की चमक लिए पिता ने बेटे भोला के कीर्तिमान स्थापित करने के लिए शाबासी दी । हाँ भोला , तुम्हारी सोच की वजह से हमने परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक पॉलीहाउस की खेती के लिए सरकारी योजना के तहत बैंक के लोन से सब्सिडी का लाभ लिया था और सोलर पैनल लगाके जैविक प्रबंधन से आधुनिक कृषि प्रबंधन की कम पानी
की ' ड्रिप सिंचाई ' को सोलर पंप की ऊर्जा का लाभ लेके बिजली की आँख मिचौलीऔर ज्यादा बिल के आने से बचे थे और पौष्टिक गुणवत्ता से भरपूर खीरे , ककड़ी शिमला मिर्ची आदि की खूब सारी पैदावार का रिकार्ड भी मेहनत के पसीने का परिणाम है,तू ही तो मेरा ब्याज है । "
" हाँ पिता जी , बचपन तो मेरा आपके साथ खेतों की मिट्टी में ही गुजरा है। कृषि की बारीकियों को आपसे ही तो सीखा है । जैविक खाद , कृषि प्रशिक्षण का ही नतीजा है कि खेती सोना उगल रही है। आप ही तो हमारे रोजगार की नींव हो ।अरे पिताजी ! वो देखो दूरदर्शन वाले भी मेरी कामयाबी का इंटरव्यू लेने आ गये हैं । अच्छा हुआ पिताजी मेरे साक्षात्कार से और वीडियों , यूट्यूब से हमारे किसान भाइयों को पॉलीहाउस से उपज बढ़ाने की भी प्रेरणा मिलेगी ।" ****
8.उदाहरण
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भिखारिन हेमा अपनी दो बेटियों के साथ ऋषिकेश में गंगा घाट पर बैठकर भीख में हर दिन लगभग 1हजार , दो हजार रुपये मिल जाते थे। इस तरह लाखों रुपये जमा कर बैंक में फिक्स डिपॉजिटिव ले ली थी ।
कोरोना में लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे थे। यह देख के उसका दिल पिघला । उसने अपनी बेटियों की सहायता से ऑक्सीजन भरे सिलिंडर दुकान से खरीद के
ट्रक में रखावाकर अस्पतालों में सप्लाई करने दानदाताओं का उदाहरण बन मानवता की रक्षा करने चल दी।
मुसीबत के वक्त धर्मार्थ का पैसा धर्मार्थ के काम में लगा के उसकी दैवीय मुस्कान मानवता की सेवा में मदद , सहयोग ,मिलजुलकर रहने की संस्कृति दशा रही थी।****
9.अगर वे न होते
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प्रोफेसर डॉक्टर मधु आज प्रधानाचार्या की पदोन्नति का नियुक्ति पत्र ले के घर आयी तो खुशी से फूली न समा रही थी । अतीत की यादों में खो गई।
शादी होने के बाद जब मैं दिल्ली से अपनी प्रोफेसर की नोकरी छोड़कर मुम्बई में अपने ससुराल में आई तब मुझे मुम्बई का नाम अपनी कल्पनाओं की उड़ानों को पंख लगाने के समान लगा लेकिन मेरे अरमानों के पंख कुतर दिए थे ।
मैंने माताश्री से कहा , " मुझे नौकरी करनी है ।"
उन्होंने कहा , " हमारे खानदान में बहू घर -गृहस्थी सँंभालती है , न कि नौकरी करती है ।"
तभी चहक के नन्द बोली , " भाभी , भूल जाओ अपनी डिग्रियों को ।
यहाँ तो सबको दोनों वक्त उतरती गर्म रोटी परोसनी होती है ।"
पिताश्री बोले थे , " बहु , यहाँ मास्टरगिरी नहीं चलेगी ।"
यह सुनकर मेरी आँखों की नमी के बादल बरसने लगे
और सोचने लगी कि केरियर बनाने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की थी तभी पति किशोर ने मुझे धैर्य से कहा ,
" मैं तुम्हारे हर सपने को पूरा कर रहा हूँ ।तुम्हें नौकरी करने क्या जरुरत ? "
धीरे - धीरे मुझ में नौकरी करने की भावना दब गयी । इस बीच इतफाक से किशोर का तबादला वाशी , नवी मुम्बई हो गया तब मैंने किशोर से कहा , " अब मैं शिक्षण कार्य करुँगी ।"
उन्होंने कहा , " मैं तो कम्पनी के कामों से बेंगलोर टूर पर रहता हूँ , बिटिया कनिका अभी छोटी है । तुम अकेली घर की जिम्मेदारी नहीं निभा पाओगी ।"
यह सुनकर मुझे लगा कि मेरे सपनों पर फिर पानी फिर गया ।
मैंने हिम्मत नहीं हारी । कुंठित , हीन भावना मन में भर
गयी थी लेकिन मुझ में आत्मविश्वास जगा । उनकी अनुपस्थिति में पास के कॉलिज में अर्जी दे आयी ।
कुछ दिनों के बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया और मुझे प्रोफेसर नियुक्त कर दिया लेकिन मैने किशोर के डर से प्रधानाध्यापक को न कर दिया ।
अनुभवी , शुभचिंतक प्रधानाध्यापक ने मेरे चेहरे पर पर आते -जाते भावों को पढ़के मुझे प्यार से समझाया ,
'' तुम एम. , बीएड , पीएचडी हो , तुम्हारे में योग्यता है , शिक्षा की पूरी डिग्री है , घर की चार दीवारी से बाहर निकलो , स्वयं अपनी पहचान नाम और अस्तित्व बनाओ । पति की अँगुली पकड़ कब तक चलोगी ? "
उनकी बातों का मुझ पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा और मैंने स्वनिर्णय ले कर नौकरी के लिए हाँ कर दी और कॉलिज में पढ़ाने लगी ।
जब वे टूर से वापस आए तो कनिका ने कहा , पापा - पापा मम्मी तो कॉलिज में पढ़ाने लगी हैं । "
मैं वहीं खड़ी सोच रही थी कि ये हाँ करेंगे या न।
उन्होंने हँसकर हाँ में अपनी सहमती जताई तभी मुझ को लगा कि खुशियाँ स्वाबलंबन के आसमान को छू रही थीं ।
कनिका ने माँ ओ माँ कह के मेरा ध्यान भंग किया और होंठों पर चौड़ी मुस्कान बिखरते हए कहने लगी , " माँ , लो , गरमा गरम चाय ।"
तभी मधु ने दूनी खुशी के साथ अपनी पदोन्नति का नियुक्ति पत्र कनिका और किशोर को दिखाया ।
आँखों में खुशी की चमक लिए किशोर ने मधु को कहा ,
" प्रधानाचार्या के पाँच सुनहरे अक्षरों ने ' नारी सशक्तिकरण ' , बेटी बचाओ - बेटी बढ़ाओ ' की मिसाल
नया सवेरा बन के सामाजिक, पारिवारिक तम को लील रहा था । *****
10. इल्जाम
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हमारी शादी के बाद ससुरालवालों ने खेती के लिए कैसी बंजर जमीन हमें बँटवारे में दे दी . इस बाँझ जमीन में कुछ भी पैदा नहीं होता है . कैसे पेट भरें ? ” चिंतित मालती ने पति मनोज से कहा
" मेरे माँ - पिता पर क्यों इल्जाम लगा रही हो ?"
" हाँ – हाँ , रात – दिन मुझे यही चिंता खाए जा रही है कि कैसे बंजर को उपजाऊ बनाया जाए ? दूसरों के खेतों में मजदूरी करके कब तक हम गृहस्थी की गाड़ी चलाएँगे? “
" ध्यान से सुन , रामदुलारी ने अपने खेत की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए ‘ मृदा स्वास्थ कार्ड ‘ के द्वारा पौषक तत्वों की कमी का पता लगाके संतुलित मात्रा में फर्टिलाइजर डाल के उर्वरक क्षमता को बढ़ाया था । अब उनकी फसल कैसी सुंदर लहलहा रही है ? चलो जी ! हम भी ‘ मृदा स्वास्थ कार्ड योजना ‘ का लाभ लें ।”
“ हाँ जरूर , हम भी इस तकनीकी जाँच से बाँझ को उर्वरक में तब्दील कर दें . “
" नेकी और पूछ -पूछ।"
“ अरे वाह मनोज !' हमने कैसे सुंदर गुलाब , सूरजमुखी , गेंदा चमेली आदि के फूल खिला दिए है ।
“ हाँ , ' हरियाली है तो कल है। इल्जाम से नहीं , सकारात्मक सोच से दुनिया मुठ्ठी में। ' ****
11.पलायन
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अरी मोना , कोरोना भारत में फिर से कैसा तांडव मचा रहा है ? संसार में कोरोना की लहर में भारत दूसरे नम्बर पर आ गया है।पड़ोसिन प्रवीणा ने चिंता जताते हुए कहा।
" हाँ , इसी अज्ञात ख़ौफ़ से पिछले वर्ष के लॉकडाउन की तरह इस वर्ष के मार्च में कई राज्यों में आंशिक लॉकडाउन लगने से प्रावासी मजदूर भी पलायन कर रहे हैं ।"
" दूरदर्शन समाचारों से ही पता लगा है कि मालिकों ने इन्हें काम पर आने के लिए मनहें कर दिया है , घर जाने को कहा है। इनकी रोजी - रोटी के लाले पड़ गए। स्टेशनों पर मजदूरों की भीड़ दिख रही है। कोरोना के नियमों का पालन नहीं हो रहा है।"
"हम्मे , अधिकतर लोग मॉस्क नहीं लगा रहे , सार्वजनिक स्थानों में दो गज की दूरी नहीं रख रहे हैं । इसी लापरवाही ने देश कोरोना संक्रमण की सुनामी को फैलाया है।"
" अगर हर नागरिक जागरूक हो जाए , मॉस्क पहने , कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करेगा , भीड़ नहीं करें तो कोरोना दुम दबाकर भाग जाएगा। मजदूरों का पलायन भी नहीं होगा। जीवन और जीविका दोनों मिलेगी ।"
" हाँ , दवाई भी कड़ाई भी ।" ****
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क्रमांक - 2
जन्म : 07 सितंबर , दमोह (मध्यप्रदेश)
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित पुस्तकें : -
काव्य संग्रह-अलौकिक 2017
दूसरा काव्य संग्रह -'काव्य धारा' प्रकाशित सितंबर 2020
साझा संकलन-11 (2018-2021)
सम्मान व पुरस्कार : -
कोकण ग्राम विकास मंडल द्वारा 2017
सजल गौरव पुरस्कार 2018 बनारस
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मारीशस 2018
(11वे विश्व हिंदी सम्मेलन राष्ट्रीय प्रचार समिति छत्तीसगढ़ द्वारा)
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान 2018 इजिप्ट
(विश्व मैत्री मंच की ओर से)
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान ताशकंद (2019)
विश्व मैत्री मंच द्वारा
जलगांव ,पटियाला, मुंबई, भोपाल , केरल 2018
साहित्य सम्मान प्राप्ति
अन्य संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मान पत्र प्राप्ति।
उपलब्धि : -
फेसबुक पर काव्य अँकुर पेज़ एवं बाल साहित्य एडमिन । खुद के ब्लाग और अन्य ब्लागों पर लेखन । यूट्यूब पर रचनाएं प्रकाशित। अंकशास्त्र और हस्त रेखा ज्ञान। संगीत, नृत्य, पेंटिंग, बागवानी, बेडमिंटन, टेबल टेनिस खेल में रूचि।
प्रकाशित कृतियाँ-100 से अधिक । सभी समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
गुजराती से हिंदी पुस्तकों का अनुवाद।
प्रवास- (इंडोनेशिया) जकार्ता में 2007 से 2015 तक लेखन और सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय।
पता : -
बी-7/103 , साकेत काम्प्लेक्स ठाणे पश्चिम
मुंबई - 400601 महाराष्ट्र
1.स्पर्श
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दरवाजे पर जैसे ही कार की आहट हुई सभी का ध्यान उधर चला गया। पापा, - "देखो रमिया दीदी और जीजा जी आ गए, रामोल ने अपने पिताजी से कहा।"
पिताजी रमिया को गले लगा कर फूट-फूट कर रो पड़े । "बेटा तुम्हारी माँ को कोरोना निगल गया और हम लोग कुछ भी न कर सके ।" रमिया की आँखों से भी अश्रु धारा निकल पड़ी। उसने रोते हुए पूछा,-पिताजी माँ ने मेरे होने वाले बच्चे के लिए जो झबले बनाए हैं वो कहाँ हैं? रामोल ने रमिया को झबले देते हुए कहा,- "माँ अगले महीने का इंतजार बड़ी ही बेसब्री से कर रही थी कि मैं नानी बन जाऊँगी और ये ढेर सारे झबले उन्होंने सिल डाले थे।"
रमिया उन झबलों को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी उसे अपनी माँ का स्पर्श अंतर्मन तक महसूस हुआ । उसने झबलों को अपने गले से लगाया और माँ कह कर फूट-फूट कर रो पड़ी। ममता का नया रूप उसके मन में विस्तार लेने लगा। ****
2. आश्चर्य
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ग्यारह वर्षीय दीपू को पढ़ाई करने के लिए मोबाइल देकर उर्वी अपने काम में लग गई । थोड़ी देर बाद ही दरवाजे पर घंटी बजी। उर्वी ने दरवाजा खोला तो चौंक कर अपने पति से कहा- "आप इतनी जल्दी घर लौट आए आखिर बात क्या है? बैंक जाने के बाद सामान लेने बाजार नहीं गए क्या?"
सुरेश ने कहा- "जैसे ही बैंक में मेरा नंबर आया, मैं अपनी पासबुक और रुपए लेकर काउंटर पर पहुँचा ।मैंने रुपए जमा करने से पहले बेलेंस के बारे में पूछा तो बैंक कर्मचारी ने बताया -"कि अभी थोड़ी देर पहले ही मेरे अकाउंट से बीस हजार रुपए निकल गए हैं।" उस कंप्यूटर की स्क्रीन पर मेरा नाम ही आ रहा था कि मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही किसी वीडियो गेम के लिए पेमेंट किया है। बैंक कर्मचारी की बात सुनकर सुरेश आश्चर्यचकित रह गया । वह फौरन ही घर चला आया। सुरेश ने रुआंसा होकर कहा ।
सुरेश और उर्वी ने दोनों को आश्चर्य से देखा और दीपू के कमरे की ओर भागे । सुरेश का मोबाइल दीपू के पास था। सुरेश ने दीपू से पूछा और उसने हामी में सिर हिला दिया। सुरेश के मुँह से निकला ,"ओह तो यही सच है कि अपराधी और कोई नहीं मेरा बेटा ही है।" उर्वी और सुरेश की आँखों से आँसू बह निकले , पढ़ाई करने के लिए दिए गए मोबाइल ने बेटे को अनजाने ही अपराधी बना दिया था। ****
3. उपकार
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मधु की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई । विदाई का वक्त आ गया उसने अपनी मम्मी - पापा को बड़े ही करुणापूर्ण नेत्रों से निहारा । उसके मम्मी- पापा का रो -रो कर बुरा हाल था । आज उनकी लाडली दूसरे घर जा रही थी ।
मधु भी अपने मम्मी- पापा से लिपट कर रोने लगी । उसके पास आज कोई शब्द नहीं थे । वह एक अमीर घर की बहू बनने जा रही थी । उसे अपने मम्मी -पापा पर गर्व हो रहा था। उसने रुंधे हुए गले से अपने मम्मी -पापा से से कहा-"आप दोनों का बहुत-बहुत *उपकार *है मुझ पर ,आपने एक अनाथ लड़की को सहारा देकर उसकी जिंदगी को संवार दिया ।" उसके नेत्रों से अश्रु धारा बही जा रही थी। तभी उसकी मम्मी ने उसके आँसू को पूछते हुए कहा " बेटी *उपकार* है तेरा हम पर ,जो तूने हम दोनों को माता -पिता बना दिया । तेरे आने से मेरी जिन्दगी को जीने का सहारा मिला ।" आगे मधु की माँ कुछ न कह पाई । माँ और बेटी की अद्भुत विदाई देख कर सभी भावुक हो रहे थे ।*****
4. दीवाली की सफाई
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रेनू ने दिवाली के करीब आते ही घर की साफ-सफाई शुरू कर दी थी । वह हरेक सामान को अच्छे से साफ कर रख रही थी और बीते दिनों में खोती जा रही थी । दुख और हर्ष दोनों उसके चेहरे पर बारी-बारी से उभर रहे थे । तभी उसकी ब्यूटिशियन बेटी आकर कहने लगी -"माँ तुम भी न हर साल यह सब सामान अलमारी से यूँही निकालती हो और फिर वापस उसी में रख देती हो उसे फेंक क्यों नहीं देती? सब सामान कितना पुराना हो गया है और यह अलमारी भी । उसने प्यार से अपनी माँ के कंधे पर हाथ रख कर कहा-माँ आजकल कितने अच्छे-अच्छे सामान आ गए हैं क्यों ना सब पुराना सामान बेचकर नया ले ले ?"
माँ ने हँसकर बड़े प्यार से उससे कहा- "तुम अभी कुछ नहीं समझोगी । यह सामान लेने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है पैसे जुटाए हैं, हर महीने एक-एक सामान खरीदा है । यह सभी सामान मुझे मेरे बीते हुए दिनों की याद दिलाता है । हर सामान में मेरी और तुम्हारे पिताजी की मेहनत की महक आती है। पर माँ "यह संदूक तो फेंक दो ,इस कमरे में अच्छी नहीं लग रही " रेनू की बेटी ने बड़ी मासूमियत से कहा ।
हाँ , मुझे पता है कि तुझे यह सब सामान पसंद नहीं है पर इस संदूक से भी मेरी यादें जुड़ी हुई है । यह वो संदूक है जो हम गाँव से शहर लेकर आए थे इसके अलावा हमारे पास और कोई सामान नहीं था । तुम्हारे पिताजी ने मेहनत करके ऊँचाई हासिल की उन्होंने तुम सब बच्चों को एक अच्छी जिंदगी दी कभी कोई कमी का एहसास नहीं होने दिया। रेनू की आँखों से जल धारा बह निकली । रेनू की पच्चीस वर्षीय बेटी को अपने माँ -पिता पर अभिमान हो रहा था वह भी माँ के साथ सफाई में जुट गई ।****
5. स्वाभिमान
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कोमल रोज की तरह ही आज भी आफिस में अपने काम में व्यस्त थी । काम करते समय उसका ध्यान सिर्फ काम में ही होता था । बाकी सभी उसके साथ काम करने वाले बेपरवाह होकर काम करते थे जब तक उनसे काम की रिपोर्ट न माँगी जाए । अक्सर वे लोग कोमल का मज़ाक उड़ाया करते थे "बड़ी आई काम करने वाली" उन सब की बातों को कोमल हमेशा नजरअंदाज कर दिया करती थी । आज भी जब वो अपने काम में लगी हुई थी तो उसके एक साथी ने मजाक उड़ाते हुए कहा " जो तुम इतना कागजों में उलझी रहती हो कभी हमलोग को भी देख लिया करो “।
कोमल फिर भी अपने काम में ही लगी रही । तभी बाकी के सहकर्मी आकर कोमल की हंसी उड़ाने लगे । कोमल के बॉस अपने कमरे से निकले तो उन्होंने ये सब तमाशा देखा । उन्होंने सभी को डाँट फटकार लगा कर अपने- अपने काम में लग जाने को कहा और कोमल को अपने कमरे में आने के लिए कहा ।
कोमल जब उनके कमरे में गई तो उन्होंने उससे पूछा -"कि ये सब तुम्हारा कितना मजाक उड़ाते हैं और तुम चुपचाप सब कुछ सह लेती हो तुम्हारा स्वीभिमान कहाँ चला गया है ?" तुम ख़ामोश हो कर सब कुछ क्यों सह रही हो?"
कोमल ने बड़ी ही शांति के साथ उत्तर दिया -"*मेरा स्वाभिमान जगा हुआ है इस लिए ही तो कुछ नही कहती । ये लोग रोज बोल -बोल कर थक ही जाएंगे । मुझे जिंदगी में बहुत आगे बढ़ना है मैं नहीं चाहती कि मैं इन सब की बातों में ध्यान देकर अपना वक्त बर्बाद करूँ “। इतना कह कर कोमल कमरे से बाहर चली गईं । कोमल के बॉस उसके स्वाभिमान की झलक देख कर मंद -मंद मुस्कुरा दिए । ****
6. समर्पण
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शीलू की नौकरी को आज पूरे एक साल हो गए थे आज वह बेहद खुश थी । उसने बड़ी कठिनाई से नर्स का कोर्स किया था । एक अस्पताल में वह नर्स का काम कर रही थी । अपनी उम्र के पच्चीस साल उसने अपनी मर्जी से ही बिताए थे । साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी वह अपनी जिद्द के कारण नर्स बनी थी ताकि गाँव से निकलकर शहर में नौकरी कर सके और अपने पैरों पर खड़ी हो सके ।
ऑफिस के बाद जैसे ही शीलू घर आई तो कुछ मेहमान बैठे हुए थे उनमें उसे अपनी माँ भी दिखाई दी । शीलू ने अपनी माँ को आवाज देते हुए कहा-"माँ तुमने बताया नहीं तुम गाँव से आज यहाँ आ रही हो तुम्हें अचानक जबलपुर में क्या काम आ गया?"
शीलू की माँ ने उसे आँखों से चुप रहने का इशारा करते हुए कहा- तेरे लिए शादी के रिश्ते की बात चल रही है ,यह तेरे ससुराल वाले हैं मैंने तुम्हारा रिश्ता गाँव में ही तय कर दिया है । लड़के की अपनी एक छोटी सी किराने की दुकान है । " कितना कह कर शीलू की माँ ने लड़के की फोटो शीलू के हाथ में पकड़ा दी ।
शीलू का चेहरा तमतमा गया फिर भी उसने अपनी आवाज को संयत कर कहा-"माँ मैं इस शादी के लिए तैयार नहीं हूँ और न ही तुम्हारी तरह अपना जीवन इन लोगों को समर्पित कर सकती हूँ । जब समय आएगा तब मैं अपने कार्यों का *समर्पण*अवश्य करुँगी पर अभी नहीं।" लड़के की माँ ने शीलू की बातें सुनकर बड़े ही प्रेम से उसके सिर पर हाथ रखा और कहा- "घबरा मत बेटी , मेरा बेटा भी पढ़ा- लिखा है तुम्हें गाँव आने की जरूरत नहीं पड़ेगी न ही समर्पण करने की, मेरा बेटा शहर आ जाएगा ।" शीलू की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए उसने अपनी होने वाली सास के पैर छू लिए । ****
7. ऑनलाइन पढ़ाई
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नौ वर्षीय शीतल सुबह से रोए जा रही थी । कोरोनावायरस के चलते सभी स्कूल बंद है और घर पर ही रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करनी है । पर उसके पास ना मोबाइल है और ना उसके गरीब माता-पिता के पास लैपटॉप । जब से उसे मालूम हुआ है कि अब सभी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई ही करनी है तभी से वह सोच -सोच कर रोए जा रही थी वह अब पढ़ाई कैसे करेगी?
उसके पिता जगदीश ने शीतल के सिर पर बड़े प्रेम से हाथ रखा और कहा- "तुम चिंता मत करो तुम मेरा मोबाइल लेकर अपनी पढ़ाई कर सकती हो। अभी मेरी सब्जी की बिक्री भी थोड़ी अच्छी हो रही है तो जल्दी ही तुम्हारे लिए मोबाइल भी खरीद देंगे।"
अपने पिताजी की बातें सुनकर शीतल चहक उठी और बोली - "तो मैं अब ऑनलाइन पढ़ाई कर सकती हूँ।"
शीतल का मुस्कुराता चेहरा देखकर जगदीश ने उसके गाल पर प्यार से थपकी दी। जगदीश के चेहरे पर धीरे-धीरे उदासी घिरने लगी उसके सामने बेटी की पढ़ाई ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। ****
8. बदहाली
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नीलू को जैसे ही चार बजे शाम को एक अनजान फोन आया वैसे ही वह ऑफिस का सारा काम छोड़कर घर की ओर भागी । उसने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा । सभी की नजरें भागती हुई नीलू पर गई । रीना ने भागती हुई नीलू से पूछा -"कहाँ भागी जा रही हो ऐसे ?" नीलू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया "घर" ..
नीलू जैसे ही घर पहुँची वह अवाक रह गई उसका बेटा जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका से घर आया था वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और उन दोस्तों के साथ लड़कियाँ भी शराब पीकर सिगरेट का धुआँ उड़ा रही थी। सभी *बदहाली* की अवस्था में थे ।
नीलू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया । फिर उसने सभी से अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए कहा-"अब तुम लोग अपने -अपने घर जा सकते हो । शायद मैं ही गलत थी मैंने अपने बेटे पर इतना भरोसा किया।" गला रुँध जाने पर वह और कुछ न कह पाई आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी। ****
9. सहनशीलता
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घड़ी की सुई अपने रफ्तार से आगे बढ़ रही थी । उमा हमेशा की तरह सुबह सभी का टिफिन बना रही थी ।
पति, बहु -बेटे सभी टेबल पर नाश्ता कर रहे थे । उमा के हाथ आज जल्दी नहीं चल पा रहे थे । सभी जल्दी टिफिन बनाने की रट लगा रहे थे- "ऑफिस जाने के लिए देर हो रही है जल्दी टिफिन तैयार करो" और उमा हाँ में जवाब देती हुई काम में लगी हुई थी । तभी एक जोर की आवाज आई सभी उस ओर भागे , देखा उमा बेहोश पड़ी हुई है । जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया ।
डॉ.उमा की देखभाल में जुट गए और कमरे के बाहर सभी इंतजार करने लगे । उमा के पति ने मायूस होकर अपने बेटे- बहू से कहा- "कितनी बार कहा है ज्यादा काम मत किया करो पर तुम्हारी माँ सुनती ही नहीं है।" हालांकि वो हकीकत को बखूबी जानते थे ।
तभी नर्स ने आकर कहा -"आप सभी उमाजी से मिल सकते हैं ।" सभी उमा से मिलने के लिए कमरे में गए वह पलंग पर बेसुध पड़ी थी । डॉक्टर ने उमा के पति से कहा -"उमाजी को पहला हार्ट अटैक आया है उनकी तबीयत का ख्याल रखिएगा ।"
उमा के पति जानते थे कि उमा बहुत ही सहनशील है उसने पूरी जिंदगी सहनशीलता में ही गुजार दी पर अब उसे और नहीं सहन करने दूँगा। उन्होंने अपनी बेटे से कहा "बेटा अब तुम्हारी माँ घर का कोई काम नही करेगी और न ही खाना बनाएगी , रोटी वाली बाई का ही खाना अब तुम लोगों को खाना ही पड़ेगा ।" यह कहते हुए उन्होंने एक लंबी साँस ली । ****
10.बिछड़ते लोग
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सुमेर आज सुबह से ही परेशान सा अपने घर में इधर-उधर चक्कर काट रहा था । इतना बैचैन वो कभी न था जितना आज नज़र आ रहा था । घर वाले भी उसे इधर -उधर चक्कर काटते देख रहे थे पर सभी ख़ामोश और सहमे हुए से थे ।
टीवी पर समाचार आ रहा था कि "देश में कोरोनावायरस से कई व्यक्तियों की जान चली गई है । लोग अपनों से बिछड़ने लगे हैं । सभी अपनी जिंदगी को बचाएँ अपने - अपने घरों में सुरक्षित रहें,कोई घर से बाहर न निकले "। इस समाचार को सुन कर सभी सहम से गए थे और सुमेर अत्यधिक बैचैन हो रहा था । उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसका नौवां महीना चल रहा था । बच्चे को जन्म देने की तारीख भी नजदीक आ रही थी । उसके मन में अपनों से बिछड़ने का भय समाने लगा था ।
फोन की घंटी बजते ही सुमेर ने काँपते स्वर से "हलो" कहा । "मैं डॉ. सतीश बोल रहा हूँ दूसरी तरफ से आवाज आई "। मेरी डॉ पत्नी ही आप की पत्नी का हर महीने चेकअप कर रही थी । इस समय वह शहर में मौजूद नहीं है । लॉकडाउन की वजह से उसे हैदराबाद में ही रुक जाना पड़ा । वह कुछ जरूरी काम से हैदराबाद गई थी ।" उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा -"आज सुबह ही उसका फोन आया था । आप बिल्कुल भी चिंता न करें । मैं आप की पत्नी का पूरा ध्यान रखूंगा जब भी आप की पत्नी को प्रसव पीड़ा हो , आप मुझे तुरंत फोन करिएगा मैंने यहाँ पर सारी सुविधाएँ उपलब्ध करा ली है । आप निश्चिंत रहें "।
डॉ. सतीश की बातें सुनकर सुमेर खुश हो गया । उसने सभी घर के सदस्यों को बुला कर कहा-" बिछड़ते लोगों का समाचार सुनकर मैं तो घबरा ही गया था पर डॉ. सतीश ने मेरी सारी बैचैनी खत्म कर दी । वाकई डॉ.भगवान का दूसरा रूप है । अब मुझे अपने लोगों से नहीं बिछड़ना पड़ेगा" । सुमेर की बात सुनकर परिवार के लोगों में खुशियाँ लौट आईं । ****
11. विश्वास
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संध्या अपनी बारह वर्षीय बेटी समीरा को लेकर मूक-बधिर दौड़ प्रतियोगिता में पहुँची । वहाँ पर समीरा ने देखा उसकी उम्र के काफी बच्चे इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए आए हैं । समीरा ने इशारे से अपनी माँ से कहा- "मैं इसमें हिस्सा नहीं लूँगी , इतने सारे बच्चों के बीच में हार जाऊँगी।"
माँ ने बड़े प्यार से समीर के सिर पर हाथ फेरा और उसे इशारे में समझाया, "जीतना जरूरी नहीं है बल्कि अपने हौसलों को बुलंद करने के लिए इस प्रतियोगिता में भाग लेना जरूरी है । खुद पर विश्वास होना जरूरी है।"
माँ की बातें समझकर समीरा ने माँ के पैर छुए और प्रतियोगिता के लिए आगे बढ़ गई । उसकी आँखों में विश्वास की चमक दिखाई दे रही थी । ****
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क्रमांक - 3
पिता का नाम : डा.शिव दत्त शुक्ल
माता का नाम : ऋषिकुमारी शुक्ल
पति का नाम : देवेन्द्र पाण्डेय
शिक्षा : बी .ए
व्यवसाय : समाज सेविका और लेखिका
प्रकाशित पुस्तकें -
१)महिलाओं के अधिकार कानून के दायरे में - लेख संग्रह
२) बैचेन हुए हम - काव्य संग्रह
३) लघु आकाश - लघुकथा संग्रह
४) ओस थी बूंद- हाइकु संग्रह
५) एक अकेली औरत - काव्य संग्रह
सम्पादन पुस्तकें : -
१) अग्निशिखा काव्य धारा
२) अग्निशिखा कथा धारा
३) काव्य जीवन चक्र
४) जन्मदाता
५) शब्दाचे शिल्पकार मराठी
६) नवांकुर
पत्र - पत्रिकाओ मे -मंगल दीप , नवभारत टाईम्स , मेरी सहेली , केरियर , आदि
समाज सेवा पिछले तीस वर्षों से
अखिल भारतीय अग्निशिखा के माध्यम से
१) अश्लिलता विरोधी आंदोलन
२) घरेलू हिंसा के विरुध
३) एड्स जनजाग्रति के लिये नुक्कड नाटक पूरे महाराष्ट्र में
४) कुटुम्ब विघटन को रोकना
५) महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम
६) हर साल अग्निशिखा गौरव सम्मान समारोह
७) आदिवासियों के लिये
८) वृक्षा रोपण हर साल
९) डा शिवदत् शुक्ल स्मृति सम्मान समारोह
१०) महिलादिवस पर आदि
संसथाओ से सम्मान -
महिला गौरव
विघावाचस्पति सम्मान - विक्रमशिला विघापीठ से
रत्न ,हिरणी सम्मान , समाज गौरव सम्मान , समाज
भूषण सम्मान , इस तरह से तीन सौ ( 400) से अधिक सम्मान मिले है
पता -
देविका रो हाऊस प्लांट न.७४ सेक्टर -१ कौपरखैरीन् नवी मुम्बई ४००७०९ - महाराष्ट्र
1.चोली दामन
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राजू और गोलु दो दोस्त थे और पड़ोसी भी दोनो हर काम साथ साथ करते हर दम साथ रहते लोग उन्हें देख कहते इनका चोली दामन का साथ है राजू मन किया कुछ फल के झाड़ लगा कर पर्यावरण का काम किया जाये तो राजू ने अपने दरवाज़े के बहार काफ़ी पौधे लगायें फल फ़ुल शो के उसे पौधों से बहुत प्यार हो गया था , , जब वह पौधों को खाद पानी देता गोलु भी उसके पास बैठकर बातें करता रहता , राजु ने आम पेरु चीकू के पेड भी लगाये , पेड धीरे धीरे बड़े होने लगे अब उनकी छाया गोलु के घर भी पड़ने लगी , दोनों दोस्त पेड के नीचे बैठकर सुख -दुख बाटते , काफ़ी समय बीता पेड़ों मे फल आने लगे , अब दोनों झगड़ने लगे मेरा पेड है, मे ही फल लुगा , झगड़ा जब काफ़ी बढ़ गया तो वो संरपंच के पास गये , दोनों का कहना था पेड हमने लगाये है फल हम ही लेंगे , संरपच सोच में पड़ गया फिर एक तरकीब निकाली बोला ऐसा करते है सारे पेड कटवा देते है लकड़ी बेच देंगे न रहेगा बास न बजेगी बाँसुरी , तब राजु बोला संरपच जी आप पेड न कटवायें सारे फल गोलु को दे दे ,
मुझे फल नही चाहियें गोलू मेरा दोस्त है उसे दे दे ...
संरपंच ने हुक्म दिया कि पेड राजु ने लगाये है फलो पर उसका अधिकार है ।क्यो की पेड काटने का दुख राजू को हुआ उसका पेड़ों के साथ चोली दामन का साथ हो गया है ।
पालन -पोषण करने वाला कभी क्षति नही पहुँचाता ।चोली दामन का साथ हो जाता है , क्षति नही पहूचा सकता .. *****
2. चुल्लू भर पानी में डूब मरना
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कमल और रीतेश एक ही क्लास में पढ़ते थे रीतेश बहुत पैसे वाला और घंमडी था कमल साधारण पर होशियार सबकी मददत करने वाला ।
पर दोनों में उच्छी दोस्ती थी साथ में आते साथ में बैठते ।
कमल रीतेश की पढ़ाई में मदद करता था ।
रीतेश को लोगों के पेन चुराने की बुरी आदत थी कई बार पकड़ा गया लज्जित हुआ पर यह आदत छुटी नही ।
आज स्कूल में बच्चों के लिये कुछ मंनोरजन का कार्यक्रम रखा गया था सब आराम से देख रहे के तभी मौक़े का फ़ायदा उठा रीतेश ने कई लोगों के बस्ते से पेन पेन्सिल ग़ायब किया ,
यह हरकत टीचर ज्योति देख रही थी - उन्होंने सब बच्चों को क्लास में आने को कहाँ ।
बच्चे आने के बाद उन्होंने कहा आज मैं आप को एक जादू दिखाती हूँ , जो आपने कहीं नहीं देखा होगा ।
सबसे पहले में सोहन के बस्ते से पेन निकाल कर रीतेश के बेग में डालती हूँ , " छू मंतर काली कंलतर "
अब कमल और सूरज के बस्ते से भी कुछ समान रीतेश के बेग में पहूंचा रही हूँ , और उन्होंने कुछ आंख बंद कर जादुई नाटक कर बोली एक एक जाओ और अपना सामन देखो , मिले तो ले लो
रीतेश की तो " चुल्लू भर पानी में डूब मरने की हालत हो गई , मस्तक पर पसीने की बूँदें नृत्य करने लगी आँखों में शर्मीदगी ने घर बनाया दिल की धड़कनें बेक़ाबू होने लगी और तो और चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी ।
टीचर बडे घ्यान से रीतेश का चेहरा पढ़ रही थी ।
सब बच्चों ने अपना समान रीतेश के बस्ते में पा कर आश्चर्य करने लगे पर कमल सब समझ गया ।
कुछ देर बाद मेडम ने रीतेश को कहाँ मेरे केबिन में आना ।
रीतेश की हालत चुल्लू भर पानी में डूब मरने की थी , हिम्मत ही नहीं हो रही थी टीचर से आँख मिलाने और सामनाकरने की ,
कमल ने हिम्मत दी तब वह डरते डरते टीचर के सामने उपस्थित हुआ ।
टीचर ने कहाँ रीतेश मेरा जादू पंसद आया ...
रीतेश "मुझे माफ़ कर दो , अब यह चोरी नही करुगां , मैं नहीं करना चाहता हूँ , पर हो जाता है ...मैं क्या करु ...टीचर ..?
टीचर समझ गई रीतेश को यह रोग लग गया है इलाज कराना होगा ..
उन्होंने कहा कोई बात नहीं कल अपने पापा को स्कूल में मुझसे मिलने को कहना और घबराओं नहीं यह आदत तुम्हारी ठीक हो जायेगी , मैं तुम्हारी पूरी मदद करुगी ,
जब तुम्हारा मन पेन चुराने का हो तो अपनी उँगली को दांतों के नीचे दबा कर काँटना ध्यान हट जायेगा , मुझसे आ कर बात करते रहना , यह एक मनोरोग है इलाज से ठीक हो जाओगे , घबराना मत मैं पुरी मदद करुगी तुम्हे बहार निकालनें में
सब ठीक हो जायेगा ...
अब जाओ कल पापा को ले आना ...
धन्यवाद टीचर मुरी सहायता करने केलिये ...और रीतेश मन में संकल्प करते हुये अब चोरी नही करुगां केबिन से बहार आ गया । ****
3. डूबते को थाह मिलना
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रात के दो बज रहे थे अचानक फोन बचने लगा मीरा ने फोन उठाया तो उधर से कमली का फोन था रो रो कर कह रही थी मेडम मददत करो मेरी बेटी बहुत तेज बुख़ार में तप रही है मूंह भी नही खोल रही रही मेरे पास पैसे नही है और जगह भी फोन किया पर किसी ने फोन नही उठाया ..
मीरा शांत हो जाओ ठंडे पानी की पट्टी रखो सिर पर और अपने घर का पता भेज दो .. में डाक्टर को लेकर आती हूँ ।
जी मेडम बहुत बहुत उपकार आपका ...लगा रहा है जैसे डूबते को थाह मिल गई है ...चलो ठीक है फोन रखो मुझे डाक्टर को फोन करने दो ...
मीरा ने फोन रखा डाक्टर को फोन किया और पति को जगाना उचित नही समझा एक काग़ज़ पर नोट लिखा की मैं कमलीके घर जा रही हूँ , उसकी बेटी बिमार है ।
मीरा ने गाडी निकाली और डाक्टर के घर पहूची वह भी तैयार थे उनको लेकर पास की वस्ती मेंपहूची .., "डॉ. रुपेश कहने लगे " मीरा तुम्हारा भी जवाब नही आधी रात को इस गंदी बस्ती में मददत को आ गई तुम्हारा दिल बहुत ही सुदंर है ,
मीरा वह तो मैं नही जानती डॉ. रुपेश , परन्तु जो लोग हमारी सेवा करते हमें सुख देते है , उनकी जरुरत पर हम नही साथ देगे तो भगवान को कैसे मूंह दिखायेंगे ...
वह हमसे सवाल तो पूछेगा न और कमली अकेली है , उसका बेटी के अलावा कोई नही है बेटी की बिमारी से घबरा गई है ,
हमें सहायता करनी ही चाहिऐ
तब तक कमली की खोली आ गई , मीरा व डाक्टर को देख कमली उनके पैरो पर गिर कर बहुत अभार व्यक्त करने लगी .
मीरा ने कहा कमली तुम रोना बंद करो और डॉ को अपना काम करने दो ।कमली के अंदर का डर कम हो गया था उसे लगा जैसे डूबनते को थाह मिल गई ...
डॉ ने मरीज़ को देखा और अपने पास से दवाई दी तथा इंजेक्शन लगाया जिससे उसका बुख़ार उतर गया और वह आंखे खोल कर सब को देखने लगी कमली मारे खुशी के मीरा के गले लग कर धन्यवाद कहने लगी ..
डॉ ने कमली को कुछ हिदायत दी और हल्का खाना देने को कहा तथा अपना कार्ड दे कर बोले दो दिन बाद आकर मेरी क्लीनिक में आ कर बिटिया को दिखा जाना ..
फिस की चिंता मत करना क्योंकि मीरा मेडम ने दे दी है
कमली ..आज कल भी आप के जैसे लोग भगवान बन मददत करने आते है , नई ज़िंदगी देते है । मैं सबको फोन कर हार गई थी सबने कहाँ सुबह देखेंगे , पर आप बिना कुछ कहें डॉ साहब को लेकर आ गई आप का यह उपकार कभी नही भूलूँगी ..
मीरा ठीक है मत भूलना पर तुम भी जरुरत पर किसी की मददत करना और दो तीन दिन काम पर मत आना बेटी का ख्याल रखो .
और वह गाडी पर बैँठ कर चली गई , कमली को सब सपना जैसा लग रहा था मीरा मेडम ने कैसे उसडूबते की थाह बन कर आ गई
वह वही खड़ी उनको जाते देख रही थी और दुआयें देती जा रही थी ****
4.डकार जाना
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घर में रिश्तेदारों की भीड़ जमा हो गई हर साल गर्मीयों की छुट्टी में सब रिश्तेदार , नरेश बाबू के घर आते है । सालों से यह सिलसिला चल रहा है ।
बहने , बुआ , मौसी आदि सब आते है बहुत रौनक़ लगी रहती है
नरेश शहर का नामचीन व्यापारी था आलीशान कोठी , हर सुख सुविधा और वैँभव से परिपूर्ण, सब आते महिनो रहते ,
इस बार सब लोग आये मज़े से रहते , एक दिन नरेश की बहन नरेश के पास आई और बोली भाई मेरा बेटा बिज़नेस करना चाहता है आप १० लाख की मददत कर दो दो साल में वापस कर दूँगी नरेश ने कहाँ अरे बहन क्यो नही करुगी जरुर करुगा पर पैसे आधे एक साल बाद देना व आधे दो साल में पूरा दे दे ।
आप बात कर बताओ यदि उसे मंज़ूर है तो मैं दे दूँगा ।
बहन मान गई नरेश ने दस लाख का चेक दे दिया व व काग़ज़ पर क़ायदा लिखना कर साईन ली की दो साल में पूरा वापस देगे ।
एक साल बित बहन आई नही पूछा तो कहा तबियत ठीक नही दूसरा साल भी निकल गया नरेश ने फोन कर पूछा तो कहा दे देगे अभी परेशानी है । काफ़ी समय सेयबहन ने बातचीत भी बंद कर नरेश को समझ मआ गया बहन डकार गई सब पैसा अब नही मिलेगा । लोग रिश्ते भूलाकर पैसो पर नियत ख़राब करते ।
अब मेरी बहन अनाथ हो गई देने की नियत रखती तो में उसे मना कर देता , मेरी बहन है पर जहाँ नियत साफ नही सिर्फ स्वार्थ है वही , मेरे दस लाख ही डकार गई शायद नियत सही रखती तो मैं और मदत कर देता .. ****
5. घड़ों पानी पड़ जाना
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आंफिस में एक दम सन्नाटा था
कम्पनी के डायरेक्टर मनोज कुमार का आज पारा सातवें आसमान में था ।
और हो भी क्यो न अपने हर कर्मचारी का ख्याल रखते है
किसी के कोई तकलीफ़ नही होने देते ।
लाकडाऊन में भी किसी को काम से नही निकाला सब को समय पर सहायता की और आज कम्पनी के अकाऊट मे हेरा फेंरी पकड़ ली । बस दिमाग़ तो ख़राब होना हा था ।
तुरन्त ,शिवनाथ और भाष्कर को बुलाया गया छन बीन में दोनो धोखा धड़ी में पाये गये सबके बीच खड़ा कर बहुत सुनाया गया और कहाँ मनोज कुमार में या तो इस्तीफ़ा दो या शपथ खाओ की अब ऐसा नही करोगे ।
दोनो शर्म के मारे गड़े जा रहे थे
मानो "घड़ों पानी पड़ गया हो "
आफिस के अन्य कर्मचारी खुसुर पूसुर कर रहें थे ।
वो दोनो शर्म से गढ़े जा रहे लगता था सारी इज़्ज़त व मेहनत पर घड़ों पानी पड़ गया -
समझ नही पा रहे थे की इस्तीफ़ा दे या माफी माँगे ...?
तब तक मनोज कुमार ने ऐलान किया हमारे यहाँ दो कर्मचारी बहुत ईमानदार पाये गये है ।
गोविंद और प्रणव दोनो का स्वागत किया जायेगा और प्रोमोशन दिया जायेगा और शिवनाथ , भाष्कर की पोस्टर लगा कर लिखो धोखाधड़ी करने वालो से सावधान ।
अब तो दोनो की स्थिति चुल्लू भर पानी में डूब मरने की हो गई ।
दोनो मनोज कुमार के पैरो में गिर कर माफी माँगने लगे ।
माफ कर दो ग़लती हो गई हम सब वापस कर देगे पैसा धीरे धीरे नौकरी से मत निकालो बच्चे भूखे मर जायेगे ...
मनोज कुमार ने कहाँ मैं कैसे माफ करु इतना धोखा किया है और क्या ग्यारँटी तुम सुधर जाओगे बोलो ..
दोनो ने क़लम खाई और कहाँ डिपार्टमेंट चेंज कर दो जहाँ पैसे का काम न हो हम हर काम करने को तैयार है ।
मनोज कुमार ने कहाँ ठीक है नया काम देते है , और हर महिने तनख़्वाह से पैसा थोड़ा थोड़ा कटेगा ..
ठीक है सब काम पर लग गयेपर शिवनाथ और भाष्कर अभी भी खड़े थे मानो घड़ों पानी पड़ रहा हो उनपर । ****
6. आकाश पाताल एक करना
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भोपाल के हमीदीया अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में कई डा. और कर्मचारी बेड न. १९ , के लिये चर्चा कर रहे थे हाय बेचारी फूल सी बच्ची कैसी तडफ रही है कितनी सुदंर है लगता है ज़्यादा दिन नहीं चल पायेगी । इंसके माँ बाप कैसे सह पायेंगे ,
सुदंर सी बच्ची की मौत .......।
अलका को साँस की बिमारी थी वह साँस लेती तो लगता कोई मशीन चल रही है इतनी आवाज़ होती , कमरे के बहार तक आवाज जाती थी । लगता था मानो आटा पि़सने की मशीन चल रही है । इतनी आवाज़ आती थी निमोनिया बिगड़ गया था । और साँस की बिमारी हो गई थी ।
जूनियर डा. देख कर चले गये थे अब बड़ी "डा.चूक , "देखने आई उन्होंने अलका के पापा को कुछ हिदायत दी और कुछ बातो का ख़्याल रखने को कहाँ ।
और अलका के सर पर प्यार भरा हाथ रख कर चली गई .
अलका डॉ.की बातें समझ तो नहीं पाई थी पर यह अंदेशा लग गया था की वह शायद वह अब बचने वाली नहीं है , यह संसार छोड़ना कर जाना होगा ।
जब अलका के पिता उसका का बुख़ार नाप रहे थे तब अलका ने कहाँ "पिताजी मैं मर जाऊँगी "अब नहीं बचूँगी क्या ...?
आप लोग मुझे गंगा में बहा देगे बच्चो को मरने के बाद बहा दिया जाता है । क्या आप मुझे भी गंगा की गोद में छोड आयेंगे ।
उसके पिता डॉ शिवदत्त बोले नहीं बेटा मैं "आकाश पाताल "एक कर दूँगा पर तुम्हें मरने नहीं दूँगा ।
उन्होंने कुछ बैघ से बात की वह अलका को अपने रिस्क पर घर ले आये . अस्पताल से छुट्टी करा कर ....
और आयुर्वेदिक औषधियों से चिकित्सा शुरु की रात रात भर जाग जाग कर सेवा की सच में
आकाश पाताल एक कर अलका को जीवन दिया वह नन्ही बच्ची कुछ नही समझती थी पर पिता को रात भर परेशान देखती आयुर्वेद की किताब पढते बैघ से बात करते , अन्न देना एक दम बंद कर दिया था । पपीता ही खाने को देते और फल आदि अलका समझ रही थी मैं नही बचूँगी , वह कभी अपने आप रोती
पिता को आकाश पाताल एक करते देखती उनकी फ़िक्र देख और परेशान होती ,
डॉ शिवदत्त शुक्ल जी ने बैघ के साथ बात कर "मुक्ता सूक्ति पिस्टी " मकरंध्वज " शहद के साथ देना शुरु किया , और बारहसिंगा . नील का तेल पसलियों में लगाते ।
अंगूर , पपीता , मोरधन , आदि देना शुरु किया , रात रात भर बुख़ार नापते रोज थर्मामीटर टूटता , रोज नयाआता , कंधे दर्द करने लगते थर्मामीटर को झटक झटक कर कंधे दर्द करने लगते पर बेटी को ठीक करने के लिये शुक्ल जी " आकाश पाताल एक कर रहे थे ।
एक रात अलका को उल्टी हुई भयानक उल्टी उल्टी में कफ की रस्सियाँ बनी निकली ढेर सारी रस्सियाँ कफ की बनी निकलती गई ...
पिता ने कहाँ बेटा अब फिक्र की बात नहीं है दवा काम कर रही है तुम बहुत जल्दी दौड़ने लगोगी ।
अलका को उल्टी के बाद बहुत आराम आया ।
पिता की मेहनत और सेवा ने काम करना शुरु किया ।
सब रिश्तेदार डॉ शिवदत्त की हिम्मत को सलाम करने लगे ।
कहते हम को डर रहे थे , तुम बच्ची को अस्पताल से लाकर अपना इलाज कर रहे थे "मकरंद ध्वज और मुक्ता सूक्ति से कही कुछ बिगड़ न जाये पर आपका शोध और सेवा ने चमत्कार किया । , आज आप के विश्वास की जीत हुई है ।
जो इलाज अस्पताल में नही हो पाया वह आपने शोध कर के किताबे पढ पढ बैघ की सलाह ले अंजाम दिया आप को मानना पड़ेगा ।
डॉ शिवदत्त बोले मेरी बेटी की आंखो में निराशा नही देखना चाहता था उम्मीद और आस कभी नही छोड़ना बाकी सब ऊपर वाले पर छोड कर्म करते रहो वह सफलता अवश्य देगा
बस वही किया फल तो प्रभु ने दिया ।
अलका अब पूरी तरह से ठीक हो जायेगी । अब ख़तरा टल गया है
बस थोड़ी जान आ जाये तो रोज
बग़ीचे में घूमाने ले जाऊ सेहत बनाऊ ...!
अलका पापा मुझे "चूक "बनना है ।
सब हंस पड़े शुक्ल जी ने कहाँ बेटा "चूक "तो नाम है कहो मुझे डाक्टर बनना है ।
अलका है पापा फिर सबको मैं ठीक करुगीं ।
हाँ हाँ जरुर करना अभी तुम पूरीवतरह ठीक हो जाओं
मैं ठीक हो गई हूँ ।
सब रिश्तेदार जाने लगे जाते जाते बोले शुक्ला तुम ही दम था , आकाश पाताल एक कर बेटी को मौत के मूंह से निकाल लाये । ****
7. थोथा चना बाजे घना
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राम दयाल बहुत प्रतिष्ठ व्यक्ति थे , दर्जनों नौकर उनके यहाँ काम करते सबसे बहुत ही स्नेह व प्यार से बात करते थे । पैसे का घंमड छू तक नही गया था
उनके दोस्त काशी नाथ बहुत ही साधारण पारिवारिक जीवन व्यतीत कर रहे थे , जब भी वो राम दयाल के यहाँ आते नौकरों से बदतमीज़ी से बात करते डाँट डपटते रहते , अपना दिखावटी रौब जमाते मानो कही के शहनशांह हो नौकर आपस में बात करते "थोथा चना बाजे घना "और ख़ूब हँसते ...
रामदयाल सब देखते पर दोस्त को कुछ कहते नही जब भी वो आते किसी न किसी बहाने दो चार हज़ार की मददत कर देते
काशी नाथ कहते नही यार सब ठीक है तुम्हारे हाल-चाल लेने आता हू इसकी जरुरत नही है , रामदयाल बडी सहजता से कहते तुमको नही दे रहाँ बच्चो को मीठाई ले जाना मेरी तरफ से ..
नौकर सब देखते समझते और रामदयाल के लिये आदर भाव जाग जाता ।
रामदयाल काशी नाथ की हालत जानते थे तभी बिना कहे मददत करते और कभी जताते नही ।
और काशी नाथ ऐसे दिखाते जैसे यह सारा कारोबार रामदयाल का नही उनका ही है ।
हफ़्ते में एक बार जरुर आते एक बार रामदयाल ने कहा काशी मेरी कम्पनी में मेरा हाथ बँटाओ अकेले अब काम सम्भलता नही जितना कहोगे पगार दूँगा ..
काशी नाथ मुझे जरुरत नही है हाँ यू ही तुम्हारी मददत कर दूँगा ,
पैसे के लिये नही ,
पास ही मैनेजर कुछ काम कर रहा था सुना तो उसके मूंह से निकल गया , थोथा चना बाजे घना " रामदयाल ने सुन लिया ,
मैनेजर को डाँट कर वहाँ से भगाया और कहाँ कभी किसी की परिस्थितियों का मज़ाक़ मत बनाओ कब ऊपर वाले की लाठी चले पता नही अपना काम करते रहो समझे , मैनेजर बहुत शर्मीदा हुआ , और काशी नाथ जो सब देख सुन समझ रहे थे अपने दोस्त की भलमनसाहत गर्वित हो उठे ।
और बोले बता मेरे यार मुझे क्या करना है ।
कल से तेरे यहाँ काम पर आ रहाँ हूँ झूठी शान में अब नहीं जीना ।
तुम्हारे मैनेजर ने सही कहाँ .."थोथा चना बाजे घना " तुम ने बेकार ही डाँट लगाई ,
पर यह अच्छा हुआ मेरी आँख खुल गई जो देना हो देना मैं काम पर आ रहा हूँ , पर दोस्ती नही एक मालिक और एक नौकर की हैसियत से ।
काम के बाद दोस्तों की तरह मिलेंगे , अब चलता हूँ
रामदयाल के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई ...!!****
8. आग पर पानी डालना
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नेहा बहुत सिधी व सरल ह्दय की है लड़की है , उसकी जेठानी कोयल बहुत लड़ाकू व कर्कशा है हमेशा घर में किसी न किसी बात पर झगड़ा लगाती रहती है ।
नेहा चुप चाप आँसू बहा कर रह जाती है उनकी साँस माया देवी दोनो की लडाई में आग में पानी डालने का काम करती है । अक्सर समझा बुझा लडाई ख़त्म कर देती है ।
पर आज तो कोयल ने हद ही कर दी वह अपनी सासू माँ पर ही भड़क गई क्यो की माया देवी ने नेहा को अपने हाथ के कंगन पहना दिये और पहनाती भी क्यो न नेहा रोज उनके पैर दबाती , दवाईयों का ख्याल रखती बहुत सेवा करती , खाने पीने का ख्याल रखती खुश हो कर माया देवी ने अपने हिरे के कंगन नेहा को पहना दिये ।
यह बात कोयल को हज़म न हुई व आग बबूला हो बिफर पड़ी , आवाज़ सुन कर पड़ोस की चाची आई सारा मामला समझ बड़े प्यार से बोली अरी कोयल तुम इस बात पर झगड़ा कर रही हो की माँ ने नेहा को कंगन दे दिये । तुम्हे तो खुश होना चाहिये माँ ने खुश हो कर सारी जायदाद उसके नाम नही की मेरी बहू नेहा जैसी होती तो मैं सब कुछ उसको ही दे देती , मैं तो कहती हू तुम्हे भी अपने कंगन नेहा को दे देना चाहियें वो तुम्हारा व तुम्हारे बच्चो का भी ख्याल रखती है ।
अगर चाहती हो तुम्हे भी माया कुछ उपहार दे तो झगड़ना बंद कर काम करो सबको प्यार दो प्यार पाओ चाची ने आग पर पानी डाल सब सही कर दिया खरी खरी बात सुन कोयल बहुत शर्मीदा हुई व माया देवी से माफी माँगी तथा नेहा को गले लगा बोली तुम छोटी हो कर भी समझदारी से पूरे घर को सम्भाल लिया है मैं हू की सारा दिन पर इल्ज़ाम लगा झगड़ने के बहाने खोजती हूँ सब लोग मुझे माफ कर दो मैं भी नेहा जैसी बनने की कोशीश करुगी तब तक नेहा के ससुर की आवाज़ आई कौन नेहा जैसा बन रहा है , हमें भी बताओ और नेहा बहू एक कप चाय देना बेटा ...
कोयल अभी लाई बाबू जी
अरे वाह आज बडी बहू के हाथ की चाय पी कर तो बहुत मज़ा आयेगा । बरसो हो गये बहू के हाथ की चाय नही पी ...
माँ जी अब मेरा घर स्वर्ग बन जायेगा ।
चाची को नेहा ने थैक्स कहाँ तो कहती है चाची अरी बिटीयां यह थैंक्कू वक्कू हमको नही मालूम तुम को हमसे गले मिलो तभी हमार आशीर्वाद मिली ...
नेहा जी चाची ..जी
तब तक कोयल सबके लिये चाय ले आती है आज चाची ने जो आग पर पानी डाला उसकी वजह से परिवार में ख़ुशियाँ आ गई ****
9.कतरनों का कमाल
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लाकडाऊन की अवधी बढ़ती ही चली गई रेणुका के परिवार की हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी , पति की नौकरी छुट गई बच्चे छोटे उसका काम भी छूट गया क्या करें बहुत उलझन बढ रही थी कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे लाकडाऊन में काम भी मिलना मुश्किल तभी उसकी नजर अलमारी में रखे कपड़े पर गई और उसको काम मिल गया उसने उस कपड़े को निकाला जो उसकी सहेली ने जन्मदिवस पर ड्रेस का कपड़ा तोहफ़ा दिया था उसने मशीन निकाली बहुत दिनों से धूल खा रही थी मशीन को उसने पोछा तेल डाल कर सही किया व उस कपड़े से मास्क काँटे तरह तरह की डिजाइन से चून्नी की पाईपीन लगाई रात भर में बहुत से मास्क बन गये सुबह बेटे व पति को बेचने भेजा , दोपहर तक ही सारे मास्क बिक गये दोनो खुशी खुशी घर आये अब रेणुका की वक़्त पर सही निर्णय लेने व मेहनत ने घर की गिरती आर्थिक स्थिति की डूबती नैया को पार लगाने का रास्ता दिखाया ।
वह कुछ पैसे से चावल दाल लेकर सारे पैसे से कपड़ा ख़रीद लाई वह दुकान पर कटपीस थे वह टुकड़े लेती जो उसे बहुत कम पैसो में मिलने लगे , फिर वह टेलर्स के पास से बडी बडी कतरन ले महिलाओ में एक उदाहरण पेश किया की सूझ बूझ से कठीन परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाया जा सकता है ।और अब रेणुका महिलाओं को काम देने लगी , और घरो के बच्चो को बेचने के लिये माल देने लगी , आस पास के सभी लोगो से काम करवाने लगी इस तरह उसकी सुझ बुझ ने एक उदाहरण पेश किया जिससे अन्य महिलाओं को भी अपने लघु उघोग करने के आडीया आने लगे । रेणुका उसके परिवार के साथ कोई और परिवारों की डूबती नैया को पार लगाने का काम शुरु कर दिया । पूरा मोहल्ला रेणुका की सूझ बुझ का उदाहरण पेश करता ।
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10.उमंग
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सुबह के पाँच बज गये थे मालती पंलग पर लेटे लेटे किताब पड़ रही थी , किताब एक लघु उपन्यास था जिसमें वृद्धों की समस्याओं को रेखांकित किया गया था , मन और खिन्नता से भर उठा , मालकी उठने और चाय बनाने के लिये कई बार कोशीश की पर फिर किताब को पँढने से रोक नही पाई ओर पढने लगी ..
अकेले चाय पीने का मन नही करता . घर "साय साय "कर काटने दौड़ता है ।
कई वर्षो से मालती अकेली घर में रह रही है पति राकेश ने वर्षो पहले दूसरी औरत कर ली थी जब पता लगा मालती को तो हंगामा तो नही किया पर मालती ने तलाक़ भी नही लिया और साथ रह भी नही पाई अकेली जीने की आदत डाल ली .
सर्विस थी स्कूल में बच्चो के साथ समय कट जाता था ।
सेवा निवृत्त होने के बाद धीरे धीरे घर काटने दौड़ता ,
सन्नाटा पसरा रहता घर में , काम नही रहता है ज्यादा तो कामवाली भी नही लगाई , अकेले आदमी का क्या काम कुछ भी बनाया खाया ,
लेटे लेटे ख्याल आया क्यो न वृद्धा आश्रम चला जाय बस एक झटके में मालती उठी , चाय बनाई पी कर नहा धोकर तैयार हो दुकान से तेल , शैम्पू , साबुन , बाम ,आदी लेकर स्वीट ओल्डडेज होम पहूंच गई , पूरा दिन सबके साथ बातचीत की जरुरत का सामान दिया और सबको आईसक्रीम मँगा कर खिलाई , शाम को सबसे विदा लेकर व फिर आने का वादा कर घर आ गई ।
घर अब उसे ख़ुशनुमा नजर आ रहा था मन में संगीत बज रहा था "पंक्षी बनू उड़ती फिरु मस्त गगन में "
गा गा कर नाच रही थी घर जो काट खाने दौड रहा था वही अब खुशीयां दे रहा था सारा सन्नाटा ग़ायब मन में दूसरो के लिये जीने व सेवा की भावना जाग्रत हो गई जीने का मक़सद मिल गया , वृद्धा आश्रम में रोज सेवा दूँगी यह ख्याल ने ही उसे जिवंत बना दिया । ****
11. आस्तीन का साँप
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डा राकेश बहुत सहदय व्यक्ति थे हमेशा लोगो की मददत करते नौकरों को बहुत प्यार से बात करते उनका ख्याल रखते थे
आज वह बहुत परेशान बैठे थे बार बार यहाँ वहाँ फोन कर रहे थे
तभी उनका दोस्त नकुल आया और बोला राकेश भाभी को बोल एक कप चाय पीलायें , आज तेरे साथ ही अस्पताल चलूँगा एक दोस्त भर्ती है उसे मिल लूँगा ।
पर ये बता तुम क्यो इतने परेशान
नजर आ रहे हो ।
कुछ नही यार आस्तीन में साँप पालने की आदत है । मुझे साफ साफ बता क्या हुआ ...!
कुछ नही यार एक दिन अस्पताल में एक साथ पति पत्नी दोनो चले गये उनका एक लड़का था बहुत रो रहा था तो मैने सांत्वना दी तो कहता है साहब आप कोई काम दे दो ईमानदारी से काम करुगा ..दया खा कर मैने क्लिनिक व घर मे काम के लिये रख लिया आज सुबह उठा तो वह घर पर नही था । अलमारी खोली तो पैसे जेवर सब ग़ायब फोन बंद आ रहा पुलिस में शिकायत करुगा तो उसकी ज़िंदगी ख़राब हो जायेगी । इस लिये चुप बैठा हूँ , तेरी भाभी पुलिस बुलाने की बात कर रही है ।
" नकुल पागल हो गया है राकेश तू ऐसे आस्तीनों के साँपों को छोड कैसे सकता है , सजा होगी तभी ये सही रहेंगे नही तो कहाँ कहाँ किसको किसको डँसेंगे पता नही ,
नेहा चाय लेकर आयी अंदर से डॉ . की पत्नी को देख नकुल बोला क्यों भाभी सही कह रहा हूँ न मैं ..,
" हाँ हाँ ऐसे आस्तीन के साँप को सजा मिलनी ही चाहिऐ
इतना प्यार से रखा था बेटे के जैसे पर निकला आस्तीन का साँप ...****
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क्रमांक - 4
उम्र : 69 वर्ष
संप्रति : शिक्षिका (सेवा निवृत्त)
रुचि: -
साहित्य लेखन और पठन पाठन
उपलब्धियां: -
1. काव्य करुणा सम्मान उदीप्त प्रकाशन द्वारा
2. अग्निशिखा गौरव रत्न सम्मान अग्निशिखा जनिका काव्यमंच द्वारा
3. महाकवि कालिदास काव्य संध्या प्रतियोगिता में सम्मानित
4. काव्य साधक सम्मान उदीप्त प्रकाशन द्वारा
5. जैमिनी अकादमी द्वारा 25 वी अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा "स्वाभिमान" को सांत्वना पुरुष्कार
6. अग्नि शिखा गौरव सम्मान से सम्मानित
7. साहित्य सफर में कहानी पुरुष्कृत
8. अनेक मंचो द्वारा सम्मानित
प्रकाशित : -
1. अभिव्यक्ति साझा काव्य संकलन में कविता प्रकाशित
2. काव्य करुणा साझा काव्य संग्रह में कविता प्रकाशित
3. भाषा सहोदरी -हिन्दी में कविता प्रकाशित
4. दिल्ली की "जीवन मूल्य संरक्षक न्यूज पत्रिका "में कविता और कहानी प्रकाशित
5. हैदराबाद में डेली हिन्दी मिलाप पेपर में कविता मुक्तक प्रकाशित
6."दृष्टि" मानवेतर लघुकथा में मेरी लघुकथा "सभा"
7. Georgia ( USA ) राष्ट्रदर्पण पेपर में कहानी , लघुकथा ,लेख ,कविता प्रकाशित
8..आयाति ,विवान, काव्य धारा के संपादन के लिए नामनांकिक
9.नवसारी में साप्ताहिक पूर्णेश्वर टाइम्स में मेरी रचनाएं प्रकाशित
पता : -
501 ,महावीर दर्शन सोसायटी , प्लॉट नं .11सी , सेक्टर - 20 ,खारघर , नवी मुंबई - महाराष्ट्र
1. पिता
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मोहन....पिता की कड़कती आवाज ...सुन मैं तो क्या अच्छे अच्छे कांपते थे !
जी पिताजी ! आज अब तक स्कूल नहीं गये ? दस बज गये हैं..स्कूल ग्यारह बजे की है ना ?
जी पिताजी बस मम्मी ड्रेस आयरन कर रही है पहनकर निकलता हूं !स्कूल बस अभी आ जायेगी... ध्यान करना बस छूट जाने से पैदल ही जाना होगा.. कोई रिक्शा नहीं ..जल्दी करो!
बस छूट जाने से मुझे पैदल ही जाना पड़ा ! पिताजी मुझे हमेशा हर काम में टोका करते थे ! ऐसे मत बैठो , ये मत खाओ ,वहां मत जाओ ,यहां तक मेरी पल पल की खबर रखते ..मैं किसके साथ खेलता हूं ,क्या करता हूं आदि आदि ! एक दिन मां मां कह चिल्लाते हुए मोहन घर में प्रवेश करता है ...क्या बात है मोहन इतना क्यों चिल्ला रहे हो....? तो क्या करूं? पिताजी ने तो आज हद्द कर दी ...मेरे स्कूल पहुंच प्रिंसिपल से बाते कर रहे थे !
मां ने कहा तो क्या हुआ ? जरुर मेरी बुराई कर रहे होंगे ..। बेटा तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते हैं उन्हें तुम्हारी फिक्र है...प्यार से कंधे पर हाथ रख हसते हुए कहती है आखिर तुम्हारे सबसे अच्छे मित्र जो हैं तुम्हारे पिता ....कंधे से हाथ झटकते हुए मोहन ने व्यंग से कहा दोस्त....मां मैं तो उन्हें अपने दुश्मन की लिस्ट में भी नहीं रखना चाहूंगा...जल्लाद हैं जल्लाद
...कहते हुए मोहन गुस्से से घर से निकला ही था सामने से आते बैल ने अपनी सिंग से उठा ऐसा पटका उसका सर फट गया ,एक पैर की हड्डी टूट गई ..वह भाग भी नहीं सकता था ....सामने से आते उसके पिताजी ने यह दृश्य देखा वे बदहवास से भागते हुए जान की परवाह न कर मोहन को बचाने दौड़े ! लोगों ने किसी तरह बैल पर काबू पा लिया था !
मोहन के सिर से खून काफी बह चुका था ...मोहन के पिता उसे अपने कंधे पर बैठा पागलों से दौड़ते हुए घर के पास वाले डाक्टर की क्लीनिक में गए! मोहन के होश आते तक वे एक पैर पर खड़े थे .... पिता सागर है जो नमकीन होने पर भी रवि से तपकर मीठा जल ही देता है !
आज मोहन काफी चिंतित था !अपनी पत्नी से जो मायके गई है फोन पर कह रहा था मेरे बेटे बिट्टू का ध्यान रखना अब उसका बुखार कैसा है ? बस यूंही फोन पर पिता का प्यार जता रहा था तभी...आग आग..बिल्डिंग में आग लग गई की आवाजें आने लगी सभी भागने लगे...अफरातफरी मच गई ! मोहन ने कहा मां तुम सबके साथ निकल जाओ मैं पिताजी को लेकर आता हूं ! मोहन ने कहा पिताजी आपको मैं कुछ नहीं होने दूंगा....उसने अपने लकवा से ग्रस्त बहादुर पिता को जो बुढ़े और कमजोर हो चुके थे किसी तरह अपने मजबूत कंधों पर उठाया....पिता की आंखों में आंसू थे ....वह दृश्य उनके सामने आ गया जब वे खून से लतपथ मोहन को कंधे पर लेकर इसी तरह दौड़ रहे थे ...
मोहन ने जल्दी जल्दी छठे माल की सिढ़ीयां नापते हुये नीचे सुरक्षित स्थान पर पहूंचकर ही श्वांस ली !
आज पिता बन मोहन को अहसास हुआ पिता सेतु होता है ! वह शीतल वृक्ष है जो स्वयं तपता है पर बच्चों को छांव देता है....।
सुबह... मां मैं आपकी बहू और पोते को लेने जा रहा हूं कहते हुए उसके कदम बेटे के प्यार में तेजी से बढ़ने लगे ! ****
2. कफन का टूकडा़
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ठंड का कहर अपनी पुरजोश पर था मानो वर्षों से तप्त धरा आज ही बर्फ बन ठंडी हो जाना चाहती हो ! साएं साएं करती ठंडी हवाएं शीला की झोपड़ी में हुए छोटे से तिराण से घुसकर ठण्ड का कहर बरसा रही थी ! शीला अपने दोनों बच्चों को झोपड़ी के अंदर ठण्ड से बचाने की कोशिश कर रही थी !
रात को चार साल का शिवम ठण्ड से कराह रहा था ! उसका पूरा शरीर ठण्ड से कांपते हुए ऐसे हिल रहा था मानों धरती कंप हो रहा हो ! शीला ने अपनी आधी अधूरी साड़ी जो कुछ हद्द तक उसकी जवानी को सेवे हुई थी उतारकर बेटे के उपर डाल उसे अपनी गोद की गर्मी देने की भरसक प्रयास कर रही थी ताकि उसके बदन की ठण्डी कुछ कम हो जाये !
कड़ाके की ठण्ड थी क्या कम होती....तभी चौदह पन्द्रह वर्ष का उसका पुत्र राम जो मां को सांत्वना दे रहा था ....कुछ नहीं होगा शिवम को कहते हुए बाहर की ओर भागता है....शीला आंखों में आंसू लिए शिवम को फिर खुले दरवाजे को देखती रही ....
ठण्ड का कहर बढ़ता जा रहा था ! घाघरा ब्लाउज पहने शिवम को कसकर छाती से लगाये अपनी पूरी गर्मी देने की कोशिश कर रही थी ! ठण्डे पड़े शिवम के शरीर को अपने छाती से चिपकाकर शीला जड़ हो चुकी थी !
पास में मंदिर की घंटियां बज रही थी ! सुबह के पांच बजे दरवाजे पर राम को उज्जवलता संग अपने निर्मल और कोमल बालपन की खुशी लिए हाथों में सफेद लंबे कपड़े के साथ प्रवेश करते देख मां ने शिवम की ओर देखा जो हमेशा के लिए चीर निद्रा में सो चुका था .... ठंड से कांपते मां ने कहा अब इसकी कोई जरूरत नहीं ....तुरंत राम ने कहा ! पर मां मुझे आपकी जरूरत है ....माना ठंडी सांसो को यह गर्मी ना दे पाया पर तुम्हें अपमानित और बेइज्जत होने से तो बचा सकता है !
यह कहते हुए राम ने उस कफन के टुकड़े को मां के उपर डालकर मां को ढांक दिया ....। ****
3.पड़ोसी धर्म
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फोन की घंटी की आवाज सुनते ही बेटी रोमा दौड़कर फोन उठाने जाती है और कहती है जरूर दादी का होगा!
हेलो दादी--
कैसन हो बिटिया?
ठीक हूं दादी!
तुरंत प्रशांत ने फोन लेकर कहा अम्मा घर अच्छा मिल गया है तो कोनो चिंता मत करना !अपन ख्याल रखियो!
केवल पांच माले की बिल्डिंग है प्रत्येक माले पर दो दो फ्लैट है!
जगह काफी बड़ी नहीं थी पार्किंग, पानी थोड़ी बहुत हरियाली सभी तो था और क्या चाहिए बस एक पड़ोसी अच्छा मिल जाए फिर सुख ही सुख है !प्रशांत ने पत्नी को समझाते हुए दूसरे माले पर यह घर किराये से लिया था!
उनके सामने वाले फ्लेट में अनवर भाई अपने छोटे से परिवार पत्नी और पांच वर्षीय बेटे रेहान
के साथ रहते हैं!
दोनों प्रेम भाव से सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते अच्छे पड़ोसी बन गए!
एक दिन प्रशांत का बचपन का मित्र कुछ नाराज सा दिखाई पड़ रहा था जाने किसी से लड़कर आ रहा हो ..आया!
आते ही प्रश्न दाग दिया ---यार तुम्हारा अपने पड़ोसी के साथ कभी कोई मतभेद नहीं होता क्या? यार तुम दोनों का खाना, धर्म, पहरावा सभी तो भिन्न है फिर भी इस भिन्नता के मध्य "एकता" कौन सा "धर्म"
लेकर रहती है!
तपाक से प्रशांत ने जवाब दिया-- "पड़ोसी धर्म "
हम सभी इस पापी पेट की ख़ातिर दूर दूर से अपने परिवार और प्रियजनों को छोड़कर अन्य जगह अपना घोषला बना लेते हैं ऐसी स्थिति में यदि छांव देने वाला वृक्ष की तरह कोई पड़ोसी मिल जाता है जो मित्र बन ,पिता की तरह, भाई की तरह सुख दुःख में अपना कंधा देता है वही सच्चा "पड़ोसी धर्म" निभाना होता है!
आपत्ति आने
पर दूर होने की वजह से रिश्तेदार बाद में आएंगे प्रथम जो मित्र बन खड़ा "पडो़सी धर्म "
निभा रहा है वही आयेगा! ****
4.सुख
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जमीनदार दीनानाथ अपनी पालकी में बैठ गांव का भ्रमण कर रहे थे ! रस्ते में जो भी व्यक्ति मिलता सिर झुकाकर अभिवादन करता ! तभी हरिया खेत में मजदूरी करता है खुश होते हुए अपनी धुन में बिना अभिवादन किये आगे निकल जाता है !जमींदार अपने आप को अपमानित समझते हुए क्रोधित होते हुए अपने मातहत से हरिया को हवेली में आने को कहा ! सभी गांव वालों में काना फूसी होने लगी , हरिया ने क्या गुस्ताखी की होगी ,जमींदार उसे कैसी सजा फटकारेंगे वगैरह वगैरह .....
सभी गांव वालों के सामने जमींदार ने हरिया से कहा तुझे ऐसा कौन सा खजाना मिल गया था जो तुने मुझे अनदेखा कर सलाम किये बिना निकल गया !तुझे इसकी सजा मालुम नहीं है?--- मालिक मुझे बहुत बडा़ सुख का खजाना मिल गया है....आज मैने मंदिर में एक साहूकार को जो शायद अपनी शारीरिक पीडा़ से पीडि़त होने की वजह से दूसरे पर निर्भर थे ! घर के सभी भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के अंदर गये थे ! वे बाहर चबूतरे पर कड़कती धूप में बैठे थे ! उन्होंने हरिया से पीने को पानी मांगा ! डरते हुये हरिया ने पानी दिया ! व्यक्ति के कपड़े देख हरिया की नजर अपनी फटी धोती पर पडी़ ! तभी उस व्यक्ति ने कहा तुम कितने सुखी हो ! किसी पर निर्भर तो नहीं हो ! धनदौलत होते हुये भी मैं कितना गरीब हूं ....पराश्रित हूं !
हरिया समझ गया ...."पराधिन सपनेहु सुख नाही "मेरे हाथ -पैर मेरा शरीर तो मेरे साथ है !मैं स्वयं करोडो़ की दौलत का मालिक हूं ! हमारी मेहनत किसी की मोहताज और अधीन नहीं है !
हरिया ने जमींदार से कहा आप हमपर आश्रित हैं हम नहीं !हमारी मेहनत का फल आप खाते हैं अतः आप हम पर आश्रित हैं ....गरीब हम नहीं आप हैं
यह कहते हुए निडरता के साथ हरिया के कदम गांव वालों के साथ अपने खेत की ओर बढ़ने लगे...आखिर उसे अनमोल "सुख" का खजाना जो मिल गया था ! ****
5.भीड़ में
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अधिक मास (पुरुषोत्तम मास ) में हम सभी महिलाएं रोज मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन कर पंडित जी से प्रवचन सुनते और श्रद्धा जितनी दक्षिणा चढा़वा देतीं !
मंदिर से आते हुए मीना ने कहा अमावस्या को पंडित जी को सीधा देने सुबह जल्दी आ जाऊंगी फिर भीड़ बहुत हो जायेगी! ससुर जी की तबीयत भी ठीक नहीं है ,तुम सब कितने बजे आओगी ? जया ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा भई मै तो लेट आऊंगी! दान में भी तो बहुत कुछ देना है ! बाकी सभी ने भी जया की बात का समर्थन किया ! तभी गुड्डी ने कहा हम सभी मेरी इनोवा में चलेंगे और दान का सामान भी तो बहुत होगा !सभी ने हस्ते हुए हामी भर दी !
मीना जल्दी जल्दी अपना काम निपटाकर पहले ससुर जी के चरण स्पर्ष कर आशीर्वाद लिए और जैसे ही मंदिर के लिए निकलने लगी ससुर जी ने आंखों में आसूं लेते हुए कहा बेटा सदा खुश रहो ! मीना ने पलटकर देखा और कहा क्या बात है पिताजी ? तबीयत तो ठीक है ? साधारण हैसियत थी किंतु उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखती थी ! अपने खर्च में कटौती कर लेती पर ससुर जी की दवा कभी न भूलती !
पिताजी का माथा सहलाते हुये कहा सारा दिन है मैं किसी भी समय चली जाऊंगी !
मंदिर में वह सीधे की थाली लिये खड़ी थी ! गाड़ी से अपना सामान उतारते हुए जया की नजर मीना पर पड़ी अरे मीना!
काफी भीड़ थी !पंडित जी ने दूर से उनके हाथों में बड़े बड़े थैले देख जगह करते हुए पास आकर कहा आप आईये !
मंदिर से बाहर निकलते हुए गुड्डी ने कहा कितने अच्छे दर्शन हुए !
मीना "भीड़ में " अपनी सीधे की थाली लिए सोचने लगी ससुर जी की तबीयत ठीक नहीं है जाने कितनी देर लग जाये !
उसके कदम घर की ओर बढ़ चले यह सोचते हुए किसी गरीब जरुरतमंद को दे दूंगी ... ! ****
6.रेत
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कमली तसले में रेत भर सिर पर तसला उठाती है और सीमेंट रेती मिक्स करने वाली मशीन में डालती है जहां एक लड़का पहले ही खड़ा रहता है जो उसमें पानी डालने का काम कर रहा है !
सूर्य की तपती धूप ... पसीने से तरबतर अपने साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई पुनः तसले में रेत लेने जाती है !
दूर दूसरे रेत के ढेर में कमली के बच्चे रेत में अपना घर ढूंढ रहे थे !दोनों रेत में घर बनाते और तोड़ते हस खेल रहे थे ... तभी कमली ने अपने बेटे को आवाज लगाई! भीखू धूप बहुत तेज है... रेत भी गरम हो रही है, मुन्नी को लेकर उते छांव में बैठ! उसे बच्चों की चिंता हो रही थी!
समय रेत की तरह फिसला जा रहा था...!
12:30 बजे खाने का वक्त
कमली ने कपड़े में बंधी रोटी और उबले नमक वाले आलू निकाल भीखू के सामने रखती है और मुन्नी को भी खाने को कहती है .... रोटी का कौर तोड़ते हुए कागज की नाव के जैसे कमली सपनों की नदी में पति की यादों संग बहने लगी !
शंकर एक कंपनी में मालिक का ड्राइवर था! साथ ही फैक्टरी का वॉचमेन भी था.... खाना, रहना और पगार मिल जाती थी ! गुजारा अच्छा चलता था! सुखी जीवन था !
एक दिन मालिक की दुश्मनों से उनकी जान बचाते हुए अपनी वफादारी दिखा शंकर ने अपने प्राण त्याग दिये !
करीबन 15 दिनों के बाद मालिक ने सहानुभूति दर्शाते हुए कुछ मुआवजा मेरे हाथों में देते हुए कहा ! सप्ताह के अंदर तुम्हें यहां से जाना होगा क्योंकि नया वॉचमेन आ गया है !
मालिक की कृतज्ञ हूं जिन्होंने बेगारी का यह काम दिलाया... जहां मजदूरों के रहने के लिए महल के पास ही उनका आशियाना बनाया ! शंकर की यादों में डुबकी लगाने जा रही थी तभी भीखू ने कहा... मां काम का समय हो गया ! हां ! हड़बड़ा कर बाहर निकलते हुये कहती है ये समय भी कैसे रेत की तरह फिसलता है !
भैया मां क्या सोच रही थी ?
भीखू ने कहा सपने देख रही थी! समय होते ही टूट गया!
कैसे भैया ?
अपने बनाये रेत के घर जैसे.....! ****
7.स्वाभिमान
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विनय ने अपना सारा कारोबार पुत्र अंकित के नाम कर निवृति ले ली थी!
अंकित सारा कारोबार समेटकर अमेरिका अपने परिवार के साथ चला गया!
एक दिन विनय कुछ सामान लेकर , थैला उठाकर, जो शायद उनके ताकत से ज्यादा भारी था, आ रहे थे! तभी पड़ोस का लड़का अनिल गाड़ी रोक कर कहने लगा .....अंकल गाड़ी में आ जाइये ! गाड़ी में अनिल ने कहा अंकल अब आपको आराम करना चाहिये!
विनय ने कहा बेटा जरुरत आदमी को लाचार बना देती है या आत्मबल देती है! रो रोकर....याचना और यातना के साथ जीने से अच्छा है.....संघर्ष कर स्वाभिमान के साथ जीना !
मैं 75 साल का हूं , फिर भी युवानों की तरह काम करता हूं!
लाचारी में आदमी अपनी लायकाती पर चलता है अथवा मनोबल से! दुनिया स्वार्थी है किसे दोष दें!
अंकल आप अपने बेटे के पास चले जाइये!
उसी समय वर्षों बाद उनके पुत्र अंकित का फोन आता है!
पिताजी रुपयों की जरुरत है...
विनय का स्वाभिमान जाग बोल उठा.... 'बेटा मै फिसल गया हूं अभी गिरा नहीं ' !!! ****
8.मां की ममता
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सुधा दूसरों के यहां खाना बना बेटे गिरीश और अपना पेट पालती थी! समय मिलने पर वह घर पर रखी सिलाई मशीन में कपड़े सिलकर भी कुछ पैसे जोड़ लेती थी !
गिरीश 12वीं पास कर पास के शहर में हॉस्टल में रहकर आगे की पढ़ाई कर रहा था ! उसे मां की कमी खल रही थी ... वैसे भी बचपन से बच्चों में मां की ममता की उष्मा गहरी होती है जो पत्थर सी जमी बर्फ को भी पिघला कर अश्रु में ढाल देती है !
एक दिन गिरीश ने मां को पत्र लिखा.... मां आते दो महीने आप मुझे रुपए मत भेजना मैं यहां मैनेज कर लूंगा ! मैं यहां कैंटीन में अच्छे से खाना खा रहा हूं ! मेरी चिंता मत करना !
सुधा ने उसी समय से अपने खाने-पीने के खर्चे में कटौती करने और अधिक मेहनत करने का फैसला ले लिया !
मां की ममता से कुछ नहीं छूपता ! मां ने पत्र पढ़ते भांप लिया.... पत्र लिखते लिखते बेटे की तकलीफ आँसू बन स्याही को फैला गई है....! ****
9.स्वार्थ की सत्ता
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आज जंगल में सभी पेड आपस में बातें करते हुए अपनी-अपनी महत्ता को साबित करने के लिए अपने -अपने गुण गा रहे थे!
तभी काफी उम्र पार कर चुके वट-वृक्ष ने दो टूक बात में समझा दिया कि, जंगल में यदि हम समूह में हैं तो हरियाली और पर्यायवरण के रूप में हमारा महत्व है किंतु , अलग-अलग देखा जाय तो कोई जलाने के काम आता है, कोई घर बनाने के, और अधिकतर तो फर्ऩिचर बनाने के ------ कौन किस रुप में अधिक महत्व रखता है यही उसकी महत्ता है!
हमें यदि कुर्सी का आकार मिल जाये तो, -----
आज कुर्सी का महत्व बहुत बढ गया है! प्रत्येक महत्वाकांक्षी कुर्सी का दिवाना है! चाहे वह किसी भी पद की हो! आज कुर्सी पद व गरिमा की प्रतिक बन गई है!
तभी बगल में छोटे से कपास के पेड से आवाज आई! मैं तो फर्ऩिचर का रूप नहीं ले सकता ! मैं क्या करूं ?
पृथ्वी पर आकर भी मैं अपना महत्व नहीं बता सकता! मैं अपना जीवन कैसे सार्थक करूं ---
अनुभवी वट-वृक्ष ने कहा! तुम तो काफी महत्व रखते हो! लोगों की नग्नता को ढाकने का काम तुम्ही तो कर सकते हो ! टोपी का रूप ले सिर पर ही बैठ जाओ !चाहे फिर वे कोई भी रंग दे!
शांति, पवित्रता, कल्याण का प्रतिक सफेद रंग हो ,या देश-प्रेम त्याग और बलिदान का प्रतिक केसरिया हो अथवा धन-धान्य और समृद्धि का प्रतिक हरा हो, तुम्हें क्या लेना-देना---- तुम्हें तो सिर पर रहकर अपना महत्व ही दिखाना है!
हां---- कपास को यह टोपी वाला रूप पसंद आया!
कुर्सी की लोलुपता तो सभी को रहती है, और उसपर टोपी धारण करने वालों का सम्मान -------
वाह मैं कितनी भी मैली हो जाऊं फिर भी मैं सम्मानित रहूंगी अत: मेरा महत्व सार्थक हो जायेगा!*****
10.मुर्दा बोल पड़ा
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कजरी ईटा ढो रही थी! वह अपनी आधी अधूरी साडी से अपने यौवन को ठेकेदार की नजर से बचाने का भरसक प्रयास कर रही थी!
यह सब उसका बीमार पति भैरव अपने दो बच्चों को लिए, जो रेत में अपना घर ढूंढ रहे थे बेबस देख रहा था!
चंद दिनों में भैरव को काल ने निगल लिया !
अर्थी को जलाने का भी कजरी में सामर्थ्य नहीं था!
पति के विछोह में खड़ी कजरी को अस्पताल वालों ने कहा मुर्दा बेचोगी?
कुछ प्राइवेट अस्पताल के लोग भी आ गये ---
मुर्दे से आवाज आई बेच दे बेच दे वर्ना
"भेड़िये तुझे नोच ना ले " ****
11. कुंठा
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सुवर्णा माता पिता की इकलौती संतान ! नाम के अनुरुप ही उसका सौंदर्य था !
सुवर्णा की मां नीना देवी ने पति रामकिशन से कहा हमारी सुवर्णा को लड़का और घर अच्छा मिल जाये तो हम गंग नहा लें ! रामकिशन ने कहा जरुर मिलेगा ! हमारी बेटी सुंदर ,सुशील, संस्कारी और पढी़ लिखी है !
कुछ दिनों के बाद शहनाईयां भी बजी ! सुवर्णा अपने ससुराल में पति मोहन के साथ खुश थी !
सुवर्णा की शादी को दो वर्ष हो गए ! कुछ समय से सुवर्णा बीमार रहने लगी ! जांच करने पर डाक्टर के अनुसार सुवर्णा को स्तन कैंसर हो गया था ! यह जानकर सुवर्णा का मन कुंठित रहने लगा ! शरीर के अंग का एक भाग ...जो नारी के श्रृंगार का आभूषण है ! उसका सारा सौंदर्य निकालना होगा ...यह सोच वह कुंठाग्रस्त हो कुंठित रहने लगी !
पति ने उसे समझाया और प्यार से कहा तुम तो कहती हो मेरा ऋंगार तो तुम हो कहते हुये मोहन उसे हसाने की कोशिश करने लगे ! यदि मैं तुम्हारा ऋंगार हूं ,मुझसे तुम्हारा सौंदर्य है , हमारा प्यार ही हमें ऋंगारित करता है तो शरीर के नश्वर अंग से होने वाले ऋंगार का कोई औचित्य ही नहीं है !
प्रेम के बंधन में बंधकर पति-पत्नी का अनतर्मन से जो ऋंगार होता है वही वास्तविक है ! कोई फर्क नहीं पड़ता ! कुंठा का त्यागकर अपने मन मंदिर में प्रेम के दीप जलाओ !
तुम्हारा ऋंगार सदा तुम्हारे साथ है ! पति की प्यारी बातें सुन सुवर्णा आश्वस्त होती हुई मोहन के गले लग जाती है ! ****
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क्रमांक - 5
शिक्षा : बी काम,एनटी टी पीटी टी टीचर टेनिंग
प्रकाशित : -
एकल संग्रह-
काव्यमेध
अद्धभुत भंडार
श्री कांत भंडार
साझा संग्रह-
काव्य प्रवाहिनी
जब कभी याद आए
काव्यांगन
गूँजते गीत
काव्य गंगा
साहित्य एक्स
सम्मान-
गुरु गोविंद सम्मान
राष्ट्र प्रेमी सम्मान
2019 का श्रेष्ठ गौरव सम्मान
2020 का लघुकथा मैराथन सम्मान
यशपाल साहित्य सम्मान 2021
और पिछले 4 वर्षों से लगभग 80 सम्मान
दिल्ली नोएडा व मुंबई के कई समाचार पत्रों में रचनाये प्रकाशित होती रहती हैं।
पता : -
17/202 ग्रीन व्यू अपार्टमेंट अंधेरी वेस्ट मुंबई - महाराष्ट्र
1.बड़ी बहू
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मीना, आदित्य के लिए लड़की देखने जा रही है। मीना के दो बेटे हैं। आदित्य और अक्षय।आदित्य अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान है। लड़की सुंदर सुशील व बीकॉम तक पढ़ी है। मीना को देखते ही लड़की पसंद आ गई और धूमधाम से शादी कर दी ।शादी में ही उसकी एक बहन भी रीना को भा गई जो बीकॉम फाइनल ईयर में है।एक साल बाद अक्षय की भी शादी कर दी गई ।बड़ी बहू बहुत ही सुंदर,सुशील है। मीना कहती बड़ी बहु बड़े भाग क्योंकि आदित्य की शादी से ही आदित्य का बिजनेस बढ़ता चला गया और छोटे बेटे की बहु जो अक्षिता की बहन भी थी वह भी बहुत समझदार थी। ऐसी किस्मत तो मुश्किल से मिलती है। बड़े भाग्य चाहिए ।आदित्य की तरह अक्षिता सास को बहुत चाहती थी ।उसकी हर बात का ख्याल रखती और रीना भी उस पर जान देती । मीना उसकी हर छोटी बड़ी खुशी का ख्याल रखती। कोई भी चीज अक्षिता को चाहिए तो पहले से पहले दिलाते
। अक्षरा मैंके भी जाती तो उदास हो जाती। वहाँ से जल्द ही लौट आती थी।
कुछ लोग कहते हैं :--
बहू को बेटी समझना चाहिए । यह बात रीना पर बिल्कुल ठीक बैठती थी ।वह बहू को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती थी ।कहते हैं ना :
ताली दोनों हाथ से बजती हैं । *****
2. प्रोफेसर
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कॉलेज के दिन थे।अभी पहला बरस शुरू ही हुआ था।सभी बच्चों में कुछ ज्यादा ही उत्साह और जोश था।लड़के तो लड़कियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एंकरिंग कर रहे थे ।एक महिला प्रोफ़ेसर हमेशा भागती हुई सी आती और हमेशा जल्दबाजी में रहती।उनके बच्चे छोटे थे और कॉलेज के बच्चे उनका दर्द नहीं समझ सकते थे। वह तो अपनी मस्ती में रहते थे। एक आद बार तो जल्दबाजी में उनका ब्लाउज विदाउट मैंचिग पहना गया तो एक आद बार साड़ी उल्टी पहनी गई। एक बार तो बच्चों ने हद ही कर दी जिसमें ज्यादातर लड़के ही थे एक दो लड़की भी उनका साथ दे रही थी। उनके आते ही पहले तो अजीब आवाज़ निकाली फिर उल्टी उल्टी क्या है अजीबो गरीब हरकतें करने लगे। मैडम ने देखा तो उनकी साड़ी का फॉल उल्टा था।लड़कियों ने देखा तो बहुत गुस्सा आया।मैडम चुपचाप क्लास से चली गई और स्टाफ रूम में जाकर बैठ गई।फिर कुछ लड़कियों ने सभी मित्रों को इकटठा किया।आपस में सभी बच्चे बातचीत कर उनसे माफी माँगने गए।उस दिन के बाद सभी बच्चे थोड़ा शांत थे ,सिवाय कुछ नटखट बच्चों के।जोकि बाद तक भी सुधरे नहीं। एक दो बार तो उन्हें सजा भी दी गई और क्लास से सस्पेंड भी किया गया कुछ दिन के लिए। बस ऐसे ही मस्ती पढ़ाई करते करते कैसे तीन बरस बीत गए पता ही न चला। ****
3. दिल जीतना
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ममता शादी हो कर नई दुल्हन आई है ।वह अपने परिवार में सबसे छोटी है।सास बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की है। सास ने कहा जा राकेश अपनी बहन के बायना दे आ। उसका पति बहुत ही जिम्मेदारी से घर का सभी कार्य करता हैं।पता नहीं जेठ क्यों उससे पहले दिन से ही थोडा खींचे -खींचे से रहते हैं। उसे बात -बात में नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।उसकी सास ने कहा जा बेटा खीर बना।जेठ बोले इससे न हो पाएगा ।इसी तरह छोटी-छोटी बातों पर उन्होंने ऐसे ही प्रतिक्रिया की।ससुर पूजा कर रहे थे। बहुत ही शांत और गंभीर प्रवति के व्यक्ति हैं ।जेठानी थोड़े दिन बाद अपने पति से किसी बात पर नाराज होकर ससुराल छोड़ कर चली गई और जेठ सीढ़ियों से गिर गए। ममता ने जेठ की बहुत सेवा की ।सास ने जेठानी को आने के लिए फोन किया तो उसने साफ मना कर दिया मेरे बस की नहीं है।जेठ को ममता की अहमियत पता चली।अब जेठ भी घर के सभी सदस्यों की तरह ममता से अच्छा व्यवहार करने लगे। धीरे-धीरे ममता ने सबका दिल जीत लिया था ।वह खुद कितनी परेशानी में होती,धीरे-धीरे सब का काम करती जाती। दोनों ननद भी उसे बहुत प्यार करती थी ।अब तो मैके भी जल्दी आती रहती जब से ममता आई थी। सास ने समझा-बुझाकर जेठानी को भी वापस बुलाया कहा घर की लक्ष्मी घर में अच्छी लगती है। ममता के बेटी हुई है बड़ी सुंदर और नटखट सी। घर में सभी बहुत खुश हैं कि एक खिलौना आ गया। ****
4. अधजल गगरी छलकत जाए
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मिस्टर शर्मा हमेशा सबसे नर्मता से बात करते व बड़ों को देखते ही उनके पैर छूते। यह उनकी आदत में शामिल था। इसे कुछ लोग उनकी कमजोरी भी समझते । उनके संस्कार ही ऐसे थे।
दूसरी तरफ उनका मित्र दीपक बोलने में बेबाक छोटे -बड़े का कोई लिहाज न था। उसे पैसे का भी बहुत घमंड था ।बारवीं क्लास भी बड़ी मुश्किल से कर पाया ।सामाजिक समारोह हो रहा था जिसमें समाज के बहुत से जाने-माने लोग खड़े हुए बातचीत व हँसी मजाक कर रहे थे। तभी दीपक भी वहाँ आया व शर्मा जी को पैर छूते देख व्यंग्य के रुप में बोलने लगा :-
अब तो तुम्हारी प्रमोशन हो गई ।मैनेजर कब बन रहे हो ।
शर्मा जी तब भी मुस्कुराए और बोले मैनेजर हूँ।दूसरे मित्र ने बताया ये चीफ मैनेजर पहले से हैं। फिर से प्रमोशन होने वाली है। वैसे भी उनका पहनावा और बोलचाल का तरीका बहुत ही सभ्य था। बहुत ही साधारण तरीके से रहते थे ।दीपक देखता रह गया। दीपक सक पकाया और कहने लगा।
बधाई हो! बधाई हो! ****
5. बहादुरी
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आज शोभा और दिव्या अध्यापक कक्ष में मैडम आज मेरा जन्मदिन है ।
धन्यवाद
सारे अध्यापक एक एक टोफी और एक मिठाई ले लेते हैं।
मैडम जी आपकी दुआओं का फल है।
मैडम- मतलब
जो आप ने पिछले महीने कहा था।
मैडम सोचते हुए।
दिव्या- जी बिल्कुल ।
26 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा बहादुर बच्चों को पुरस्कृत किया जा रहा था तो मैडम आप ने कक्षा पाँच के बच्चों को कहा था जो भी बच्चा मार्च के अंत तक बाहदुरी का कोई भी कारनामा करेगा उसका जन्मदिन मेरी तरफ से मनाया जाएगा ।
अध्यापक -तुमने ऐसा क्या किया। दिव्या -सोचते हुए अभी 4 दिन पहले ही हमारी सोसाइटी में नीचे सड़क पर शोर हो रहा था। एक आंटी कह रही थी।
लूट लिया- लूट लिया उनको एक लुटेरा लूट कर भाग रहा था तो दो आदमियों ने उसे धर दबोचा।
लुटेरा झूठ बोल रहा था कि मेरी मांँ बीमार है।
इतने में शोभा नेअपने घर से पुलिस को फोन कर दिया ।
नीचे सोसायटी के बाहर सड़क पर शोर मचा हुआ था कि दो दिन पहले भी यह मेरा पीछा कर रहा था जब मैं बैंक जा रही थी उस दिन कुछ कागजात भूल गई इस कारण पैसे नहीं निकल पाई ।आज जैसे ही मैं बैंक के बाहर आई तो यह मेरे पीछे पीछे आ रहा था ।मैं सतर्क हो गई ।जैसे ही ये मेरा पर्स छीनने लगा मैंने इसे पकड़ लिया और लड़के आ गए।
पुलिस आई और उसे जेल ले गई। मैडम ने कहा-
वाह! बेटा आज जन्मदिन की पार्टी मेरी तरफ से। ****
6. मधुमेह पल
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मधुमेह का अर्थ है सबसे प्यारे। रानी चंचल को गोद में लेकर उछाल रही थी,तभी उसकी सहपाठी कहने लगी, रानी तो अनाथ आश्रम के बच्चों को बिल्कुल अपने बच्चों की तरह लाड प्यार करती है ।एक बार को खाना न मिले तो कोई बात नहीं पर रानी इन बच्चों के बिना बिल्कुल नहीं रह सकती । असलियत भी यही थी।वह अनाथ आश्रम से वापस अपने घर आ रही थी तो थोड़ी हरारत महसूस कर रही थी। जैसे ही रानी घर पहुँची रानी के बुखार हो चुका था।दो दिन से रानी अनाथ आश्रम भी नहीं जा पाई। जिसके कारण वह बहुत ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई थी। रानी को बच्चों की बहुत याद आ रही थी।मजबूरी थी जा भी नहीं सकती थी।रानी एक नेटवर्किंग कंपनी के लिए भी काम करती थी। जिसमें उसे दो घंटे रोज काम करना होता था ।फिर अनाथ आश्रम के बाग में भी वह माली काका को नई तकनीक के बारे में कुछ न कुछ बताती ही रहती और रोजाना उसकी दिनचर्या थी बारह से 4 बजे तक अनाथ आश्रम के बच्चों की सेवा करती ।थोड़ा सा ठीक होते ही बच्चों के पास आ गई और फूट-फूट के ऐसे रो रही थी जैसे कितने दिन की बिछडी हो।
जहाँ एक चपरासी का वेतन भी आठ हजार था।रानी अपने आने जाने का किराया भी अपने पास से लगाती थी।वह बिल्कुल निस्वार्थ निशुल्क सेवा कर रही थी और सब के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई थी ।बड़े बुजुर्गों तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकते थे। ****
7. मानवता
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माँ राजीव को डांट रही थी।
माँ वह 15 रूपये की पाव व 25 रुपए की आधा किलो
कह रहा था ।आपने एक पाँव को बोला था मैं एक पाव सब्जी ले आया और पालक माँ ने कहा।
राज बाहर चला जाता है।
माँ सविता से देखो जिजी इसे तो जरा भी समझ नहीं। यूँ ही लुटकर आ जाता है ।हाँ भाभी,यह है ही सीधा सा।
माँ -होशियार तो बहुत है पर हेरा फेरी नहीं है ,सीधा है ।
अगले दिन स्कूल में दौड़ की प्रतियोगिता हो रही थी जिसमें राजीव ने देखा ,प्रदीप से जाती हुई एक बुजुर्ग को टक्कर लग जाने पर उससे आगे बढ़ गया और उसे उठाया भी नहीं।
राजीव गिरे बुजुर्ग को उठाने के कारण दौड़ में तो पीछे आ गया पर सीसीटीवी में वह अब सब का हीरो बन चुका था।सब कह रहे थे यही है मानवता का प्रथम शिखर जब दुनिया तुम्हारी प्रशंसा करें।
असली जीत वही हैं। ****
8. वियोग
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राजा दशरथ को शिकार का बहुत शौक था । दशरथ सब्द भेदी (आवाज सुनकर) बाण चलाते थे। एक बार राजा दशरथ शिकार करते हुए बहुत आगे निकल गए। अकेले ही जंगल में थके हुए बढे जा रहे थे। बहुत देर हो गई थी ।बड़े जोरों की भूख व प्यास लग रही थी।तभी दूर से कुछ आहट हुई तो सोचा कोई जानवर है और उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया। पर यह क्या किया ?
कुछ अस्पष्ट आवाज आ रही थी। दूर से पता तो नहीं चल रहा था ।जैसे-जैसे वो आवाज के नजदीक जा रहे थे सब स्पष्ट होता जा रहा था ।आखिर में नदी के पास पहुँचने पर देखा एक पिता तड़प रहा था और उसका जवान बेटा जिस के राजा दशरथ का बाण लग गया था मर गया ।पिता उसके लिए तड़प तड़प के मरने जैसी हालत में था ।उसने राजा दशरथ को देखा ।राजा दशरथ ने कहा : -- गलती हो गई !
गलती हो गई!
मैंने जानके नहीं मारा ।
बुजुर्ग ने श्राप दिया जैसे मैं अपने पुत्र के वियोग में तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तुम भी अपने पुत्र वियोग में तड़प के मरोगे। ****
9. वह रात
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रात के एक बजे घर में ही दुकान पर एक ग्राहक:- जैन साहब दो दूध की बोतल दे दो। सुना है
शाहदरे में भोला नाथ नगर की बहुत प्रसिद्ध दुकान है।
जैन साहब:- अँगड़ाई लेते हुए बाहर आए और कहाँ। दुकान कब की बंद हो चुकी है ,सुबह ले लेना।
ग्राहक ने उल्टा सीधा बोलना शुरु कर दिया ।तूम्हेअँगहाई लग रही है। ग्राहक , तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा है और सामान नहीं दे रहे हो। तुम्हारी तो यह -वह गालियाँ देनी शुरू कर दी। वह व्यक्ति पास में ही किसी बारात में आया हुआ था ।तभी तीन चार बराती और आ गए और उन्होंने भी गालियाँ शुरू कर दी।
ऊपर की मंजिल पर जैन साहब के भाई और पडोस से कई लोग भी उनकी छत पर आ गए। वह झगड़ा काफी बढ़ गया। गाली गलोच से बात मार पिटाई पर आ गई।जैन साहब ने पुलिस को फोन कर दिया।मंजर बहुत भयंकर बन गया था ।जैन साहब के भाई को बारातियों ने घेर लियाऔर मारने लगे ।पुलिस के आते ही सायरन सुन सब एकदम शांत हो गए। कोई अपराधी तो था नहीं। सब बारात में मस्ती में एक दूसरे के साथ भाग आए थे । पुलिस को बुला मामला रफा-दफा हुआ।
जैन साहब के बड़े भाई ने समझाया यार उसे सामान दे देते। कुछ लोग पीकर दूसरों की शादियाँ ऐसे ही खराब करते हैं। इसे ही कहते हैं :-
"मजा किरकिरा करना"। ****
10.आदित्य वार
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डिंपल 55 बसंत देख चुकी है ।आज जिंदगी में हुए अपने सभी फैसलों के लिए वह खुश है। यह सब उसके और उसके पति की सकारात्मक सोच के कारण ही संभव हो सका। डिम्पल चाय पीते हुए जब 18 साल की थी कल्पना में खो गई ,18 साल की उम्र में फिल्मी दुनिया में गई और 1 साल के अंदर अच्छा मकान बना लिया था ।वही रवि से मुलाकात हुई। दो साल बाद माता-पिता की मर्जी से शादी हुई थी । बच्चे अब 7वीं क्लास में आ गए थे। जुड़वा बच्चे स्कूल चले जाते ।ऑनलाइन कविता देखी और लिखना शुरू किया उसकी आवाज अच्छी थी उसकी कई किताबें जल्द ही प्रकाशित हो गई । उसने ख्याति प्राप्त की ।शादी का समय होता जा रहा था । रवि उसे पहले से ज्यादा आकर्षक पाता और उसके गुणों पर मोहित रहता। डिंपल भी मां के रूप में ममता की मूरत थी तो दाम्पत्य जीवन भी सफल था। चाय खत्म हुई और वास्तविकता में आ । दोनों बेटों की शादी हो चुकी है जो साथ रहते हैं। डिंपल नारी के सभी रूपों में गजब थी।****
11. संस्कार
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शोभा के एक बेटा है उसके बाद शारीरिक अक्षमता के कारण उसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता था ।तब उसके रिश्तेदारो व आस पड़ोस की बहुत सी महिलाओं ने उसके ऊपर मानसिक दवाब बनाया।
तुम्हारे एक बेटा ही क्यों है ?
तुमने दूसरा मोका क्यों नहीं लिया?
उधर उसके पति की भी यही हालत थी।लोग उससे तरह-तरह की बातें करते ।जब इसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता तो तुम दूसरी शादी क्यों नहीं करते?
पर राज शोभा को दिल जान से चाहता था।
राज व शोभा दोनो बचपन से ही अपने बेटे में अच्छे संस्कार बो रहे थे। बेटे आदित्य को बचपन से ही सुबह 6:00 बजे उठकर
15 मिनट योगासन करना।
सब के पैर छूना।
तेज आवाज में बात न करना।
अपनी पढ़ाई व क्रिकेट का जुनून था।
अपने क्रिकेट के शौक के अलावा किसी चीज से आदित्य को कोई मतलब न था।उधर उसके भाई बहनों के चार तो किसी के पाँच बच्चे थे। कोई किसी तरह तो कोई किसी तरह बच्चों की पढ़ाई को लेकर या शादी विवाह को ले परेशान था। एक लड़के की चाह में एक भाई के तो चार बेटियाँ हो गई।
आज राज के बेटे का बैंक में मैनेजर पद के लिए बुलावा आने पर दोनों ही बहुत खुश हैं।कहते है न:-
सूरज हमेशा गगन में अकेला चमकता है।****
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आदरणीय आपका मार्ग दर्शन हम सब के लिए पुरस्कार है ।🙏🏼
ReplyDelete- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
(WhatsApp से साभार )