कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का क्या भविष्य है ?
कोरोना ने शिक्षा के हर पहलू को बदल दिया है । जिस का शिक्षा स्तर पर प्रभाव पड़ना आवश्यक है । परन्तु शिक्षा कभी खत्म नहीं हो सकती है । परिवर्तन अवश्य हो रहा है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
यहां हम मात्र अकादमिक और औपचारिक शिक्षा की बात कर रहे हैं। लगभग डेढ़ साल ऐसा ही बीत गया है,जबकि स्कूल बंद हैं। आनलाइन क्लासेज भी चली परंतु अब वह भी बंद है। छोटे बच्चे (प्राथमिक स्तर) इस दौरान लगभग वह सबकुछ भूल चुके हैं,जो उन्होंने कुछ पढ़ना, लिखना सीखा था।जिन घरों में मां बाप अभिभावक जागरुक हैं,वह जरुर कुछ पढ़ा रहे हैं। इतने लंबे समय घर में ही रहने के कारण बच्चे में सीखने की प्रवृत्ति उस गति से नहीं बढ़ी, जितना स्कूल जाने पर होती है। इसके ऊपर उच्च प्राथमिक,माध्यमिक,स्नातक, स्नातकोत्तर आदि कक्षाओं में भी कमोबेश यही स्थिति बनी है। वर्तमान परिस्थितियों में बिना परीक्षा अगली कक्षा में भेजने के कारण 'आगे दौड़, पीछे चौड़' वाली कहावत चरितार्थ होती रही है।अब बात भविष्य की तो छात्रों का भविष्य तो उज्ज्वल कहा नहीं जा सकता करोड़ों रोजगार बंद हुए हैं, बेरोजगारी बढ़ी है और स्थिति में अभी सुधार नहीं।(यथार्थ तो यही है)।अब बात इस परिवर्तित शिक्षा की तो, हमारे यहां अभी ऐसा माहौल नहीं, सुविधाएं नहीं कि आनलाइन शिक्षा का कार्यक्रम बखूबी चल सके।बात शहरी क्षेत्र और उच्च वर्ग और उच्च मध्यम की ही हो तो यह आनलाइन शिक्षा सफल हो सकती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र मध्यम वर्ग,निम्न मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग की बात करें तो इसके लिए उनके पास संसाधन ही नहीं है। इसलिए यह ज्यादा लंबी नहीं चल पाएगी।कुल मिलाकर, मेरे विचार से कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का भविष्य बहुत अच्छा नजर नहीं आता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना की वजह से सारा शिक्षण ऑनलाइन चल रहा है। मुझे नहीं लगता कि शिक्षा का स्तर सुधर रहा है। पूर्णरूपेण कोरोना के जाने के बाद भी शिक्षा का स्तर सुधरने में काफी वक्त लगेगा। बच्चे पुराना लगभग भूल चुके हैं और ऑनलाइन तो केवल खानापूर्ति के समान ही होता है, जिसमें विद्यार्थी भाग तो लेते हैं किंतु जो शिक्षण उपलब्धता विद्यालयों में होती थी ,वह नहीं हो पाती। फिलहाल तो शिक्षा का कोई खास भविष्य नजर नहीं आ रहा।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
हमेशा शिक्षकों, घर-परिवारों, बच्चों में प्रतिदिन एक ललक रहती थी, शिक्षालय में अध्ययन-अध्यापन करने जाने। पिछले वर्षों से कोरोना महामारी प्रारंभ होने से शिक्षा पद्धति की स्थिति पूर्णतः लोभायमान होते जा रही हैं और आनलाईन विभिन्न विषयों पर शिक्षा का स्तर, स्तर ही रहकर, रह गया हैं। घर में शिक्षा का आदर्शासन न ही अनुशासन, सब बैफिक हो गये हैं, गुरुकुल की शिक्षा-दीक्षा में रौनकता के साथ, अपने अपनों में परिचयात्मक, भविष्य की आधार शिला क्रियान्वित, प्रतिभाओं का जन्म होता हैं, प्रतियोगिताओं में लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का अपनी पहचान होती हैं। वर्तमान परिदृश्य में गंभीरता पूर्वक विचार कर सोचिए, सब कुछ पृथ्वी पर भोगने हैं और शारीरिक-मानसिक प्रवृत्तियों से ही ज्ञानोदय का शून्यता का सामना करना पड़ रहा हैं? हमने पूर्वकाल देखा, वर्तमान काल का दृश्य विद्यमान हैं, भविष्य काल क्या होगा, सोचने पर मजबूर होता जा रहा हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज कोरोना काल में शिक्षा बुरी तरह से प्रभावित हुई है | बच्चे इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाई तो कर रहे हैं किन्तु इस पढ़ाई में उनका भविष्य अंधकारमय ही दिखाई दे रहा है | पहले जब विद्यार्थी स्कूल जाते थे तो उनमें कुछ प्रतियोगिता की भावना बनी रहती थी| वे अपने अध्यापक की नज़रों में खुद को अच्छा साबित करने के प्रयास में बहुत मेहनत करते थे| पढ़ाई के साथ-साथ अपने हम उम्र बच्चों के साथ वे बहुत सी नई बातें भी सीखते थे | अब कोरोना काल में बहुत से विश्व विद्यालयों ने भी पेपर ऑनलाइन लिए जिसमें विद्यार्थियों ने उत्तर लिखकर पी डी एफ बनाकर फ़ाइल के रूप में भेज दिये गए | इनमें से अधिकतर विद्यार्थियों ने तो नकल करके ही उत्तर दे दिए| अब विद्यार्थी कुछ नया सीखने का प्रयास नहीं करते| होशियार व प्रतिभावान विद्यार्थियों को आगे बढ्ने का अवसर नहीं मिल पा रहा है| वे निरुत्साहित हुये हैं| कुछ बच्चे ऑनलाइन अपनी बात अध्यापक को बताने से कतराते हैं | भविष्य में विद्यार्थी स्कूल का अनुशासन भूल जाएंगे | हर समय कम्प्युटर पर कार्य करने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पढ़ रहा है| सबसे बुरा असर तो उस समय दिखाई देगा जब वे प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेंगे|
- अंजु बहल
चंडीगढ़
ये तो विश्व जान रहा है कि कोरोना एक वैश्विक आपदा है जिससे विश्व का हर देश पीडित और प्रभावित है । ये आपदा अभी जारी है और ये भी पता नहीं कि अभी कितने और समय तक ये प्रकोप जारी रहेगा ।
इस दौरान आर्थिकी का प्रत्येक सैक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है ।इन्हीं सेक्ट्रों मे एक है--शिक्षा
शिक्षा का क्षेत्र भी इस महामारी में में अछूता नहीं रहा ।बच्चों की पढाई इस काल में बुरी तरह से प्रभावित हुई है ।
आदतन स्कूल जा कर क्लासरूम में पढ़ने वाले बच्चों को जब इस काल में आन लाईन पढाया जाने लगा तो चंचल मन के कारण बच्चे इस पढाई को गम्भीरता से नहीं ले पाये जिसका परिणाम ये हुआ कि वे बौधिक स्तर पर बहुत पीछे रह गए ।
विदेशों में बच्चों की पढाई पहले से ही दोनों तरह से होती थी यानि ऑन लाईन और ऑफ़ लाईन किन्तु भारत में केवल ऑफ़ लाईन पढाई का ही चलन रहा है ।
इस वजह से भारत में बच्चे ऑन लाईन पढाई की वजह से पिट भी गए और पिछड भी गए ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना महामारी के चलते हमारा समस्त जीवन प्रभावित हुआ है! हमारा आने वाला भविष्य हमारे बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है!
हमारे यहां आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से भिन्नता को देखते हुए शिक्षा का भविष्य अलग होगा! चूंकि सभी के पास अलग कमरे अथवा पढने का माहौल नहीं होता ! स्मार्ट फोन नहीं होते ,तकनीकी ज्ञान नहीं होता, लैपटॉप, टैब्लेट्स, इंटरनेट भी तेज नहीं होता !ऐसे में शिक्षकों को, स्कूल को सोचना पड़ेगा कि वे किस तरह बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का योगदान दें!
कई जगह व्हाटसेप में वीडियो, आडियो के जरिये भी उन्हें पढाने समझाने की कोशिश की जाती है!
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों का भविष्य अंधकारमय है! वे अब सारा दिन घर पर रहते हैं! स्कूल जाने से नया सिखते थे ,मिड-डे मील मिलता था सब बंद हो गया! स्कूल जाने से बच्चों में एक दूसरे से आगे बढ़ने की लगन रहती थी ! अनुशासन, नैतिकता ,बौद्धिक सभी गुणों का समावेश होता है जो हमें अॉनलाइन शिक्षा में नहीं देखने को मिलती !
शिक्षा एक क्रांतिकारी दौर से गुजर रही है ! विश्वविद्यालयों ने अॉनलाइन शिक्षा को अपनाया तो है! इसमे शिक्षक और छात्रों का मिला जुला अनुभव यही सोच रहा है स्कूल खूलने के बाद वे कैसे काम करेंगे!
अॉनलाइन शिक्षा अब एक ट्रेंड बनकर उभर रही है किंतु यह स्कूल की जगह कभी नहीं ले सकती!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
संकट की घड़ी में ऑनलाइन शिक्षा सही है पर इसे कक्षाओं का विकल्प ना बनाएं।
इस दौर में शैक्षणिक संस्थानों को विद्यार्थियों से जुड़ना समय की जरूरत है। लेकिन इस व्यवस्था को कक्षाओं में आमने-सामने दी जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकल्प भविष्य के लिए अन्याय पूर्ण है।
लेकिन जब -जब समाज के स्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन की बात हुई। इन दिनों शिक्षा के स्वरूप में बदलाव का प्रस्ताव नीति निर्धारण के द्वारा पुरजोर तरीके से रखा जा रहा है। जिसका संबंध शिक्षा के निजीकरण के मॉडल से है। पूंजीपतियों के नेतृत्व में शिक्षा देने की बात हो रही है। जिससे हमारे देश में अमीर - गरीब की दूरियां बढ़ती जाएगी।
इस नीति को भारत गरीब देश की जनता का सहयोग नहीं मिलेगा ।जिससे सरकार की स्थिति बहुत नाजुक हो जाएगी। शिक्षा नीति बननी चाहिए जहां कोई भी भेदभाव ना हो।अमीर गरीब कोई भी मेघावी बच्चे पढ़ सके। जिससे देश खुशहाल बन सके।
लेखक का विचार:-हमें ऐसी शिक्षा मिलना चाहिए जो हमें बुनियादी आवश्यकताओं के लिए आत्म निर्भर बनाएं।बुनियादी शिक्षा का प्रारूप न केवल इस समय अपितु सामुदायिक आत्मनिर्भरता के लिए बहुत ही उपयोगी है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कोरोना ने सारा जीवन ही उलट पुलट कर दिया है ।
शिक्षा पर तो बहुत परिवर्तन हुआ है छोटे बच्चे समझ ही नहीं पाते कुछ बातें सिर्फ़ देखते है । बड़ी क्लास के बच्चे तो फिर भी कुछ पढ़ लेते है ।पर छोटे बच्चों की बहुत दयनीय स्थिति है ।
आगे इन बच्चों का भविष्य अंधकार मय लगता है क्योंकि ऑनलाइन क्लासेज़ के कारण कम्प्यूटर की आदत हो रही है गेम खेलना सिख रहे लाकडाऊन में बहार नहीं जा सकते टीवी के सामने ही रहते हैं खेलने के लिये दोस्त नहीं है ।
देश के ज़्यादातर बड़े निजी स्कूलों ने जूम क्लासेज़ का सहारा लिया है, लेकिन, बच्चों का मन कम लगता है यह सब एक अस्थाई इंतज़ाम से ज़्यादा कुछ नहीं है। बच्चों का भविष्य ख़तरे में लगता है । स्कूलों की फ़ीस में कमी नहीं दो घंटे की ऑनलाइन क्लास में वे क्या पढ पाते् है कभी नेट स्लो कभी कुछ और ...
स्कूल में टीचर सामने रहती थी बच्चे डरते थे अपनी बात कहते थे , दोस्तों के संग खेलते थे कई कार्य होते थे जो ऑनलाइन में नहीं है बिना परीक्षा "पास "या ऑनलाइन परीक्षा सब गड़बड़ है ।
अनुशासन ख़त्म हो रहा है ।
बच्चों के मानसिक और शारीरिक क्षमता पर भी बहुत असर हो रहा है ।
ऑनलाइन शिक्षा भले ही एक नया ट्रेंड बनकर उभर रही है, लेकिन हाशिए पर मौजूद बच्चों के लिए किस तरह से इसे मुमकिन बनाया जाएगा ...कहना मुश्किल है
लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में मोबाइल एप्लिकेशन आधारित शिक्षण व्यवस्था भारत जैसे देश में कैसे बड़ी तादाद में बच्चों तक पहुंच सकती है जहां बहुत सारे लोगों के पास न तो स्मार्टफोन हैं और न ही इंटरनेट तक उनकी पहुंच है वो क्या करे .....?
आज देखा जाये तो ऑनलाइन शिक्षा अब एक हकीकत है. ऐसे में स्कूलों को यह सोचना पड़ेगा कि वे किस तरह से बच्चे की ज़िंदगी में अपना योगदान दे सकते हैं । कुछ टीचरों को भी ऑनलाइन पढ़ाने में काफ़ी दिक़्क़तें आ रही है ।
कोरोना संकट के दौर में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो चुनौती है उसमें ऑनलाइन एक स्वाभाविक विकल्प दिखाई देता है. शारीरिक दूरी बनाए रखने की सोच को स्थापित करने, लॉकडाउन और एक जगह इकट्ठा न होने का असर शिक्षण संस्थानों पर कितने दिनों तक लागू रहेगा यह कहना कठिन है ..अंत में यही कहूगी की , ऑनलाइन शिक्षा वर्तमान संकट की घड़ी में ‘मजबूरी में जरूरी’ तो हो सकता है, पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकल्प बिल्कुल भी नहीं हो सकता.
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर पड़ा है क्योंकि कोरोना के कारण विद्यालयी शिक्षा अस्त-व्यस्त हो गयी है। और आनलाईन शिक्षा को अपनाना पड़ रहा है।
परन्तु यह सत्य है कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है। मनुष्य का यह नैसर्गिक गुण है कि वह प्रत्येक परिस्थिति में संभावनायें तलाश लेता है। कोरोना काल में बाधित हो रही शिक्षा की प्रक्रिया सतत् रूप से जारी रहे, इसके लिए भी परिवर्तित प्रयास जारी हैं।
निश्चित रूप से तुलनात्मक दृष्टि से हानि-लाभ एक अलग बिन्दु है, परन्तु कोरोना के कारण शिक्षा को रोका अथवा बन्द तो नहीं किया जा सकता। इसलिए हमें शिक्षा के परिवर्तन को अपनाना ही होगा।
मेरा मत है कि शिक्षा के परिवर्तन का परिणाम भी सार्थक और लाभदायक होगा।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
शिक्षा विकास का आधार है। शिक्षा के बिना जीवन अधूरापन लगता है। मानव को बौद्धिक एवं भौतिक दोनों शिक्षा की आवश्यकता है। बौद्धिक शिक्षा में व्यवहार समझकर जीने वाली बात आती हैऔर भौतिक शिक्षा में हुनर सीखकर आय का स्रोत बनाने वाली शिक्षा के अंतर्गत आता है। अतः बौद्धिक एवं भौतिक मनुष्य को दोनों शिक्षा की आवश्यकता है ।वर्तमान में कोरोना महामारी ने शिक्षा की व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है। जिसका परिणाम समाज में विद्यार्थियों को विशेष तौर से पड़ा है। वर्तमान की शिक्षा पद्धति प्रणाली ऑनलाइन चल रही है जो उपलब्धि और सर्व सुलभ के रूप में पर्याप्त नहीं है। विद्यार्थी हताश हो रहे हैं। उन्हें आगे बढ़ने की दिशा नहीं मिल पा रही है। बौद्धिक और भौतिक शिक्षा प्रणाली का विकास थम सी गई है। जिसके परिणाम स्वरूप समाज में शिक्षा व्यवस्था में भारी क्षति पहुंची है ।विद्यार्थियों को आगे बढ़ने की दिशा फिलहाल अभी नहीं सुझ रहा है। विद्यार्थी इस समस्या से छुटकारा पाने का इंतजार कर रहे हैं ,ताकि खोई हुई समय को पुनः प्राप्त कर विकास की ओर बढ़ा जा सकता है। इस शिक्षा के परिवर्तन का प्रभाव आने वाली पीढ़ी के लिए दबाव बना रहेगा एवं समस्या भयंकर हो सकती है ।वर्तमान में तो समस्या का सामना करना ही पड़ रहा है। लेकिन भविष्य मैं आने वाली पीढ़ी के लिए और स्थिति ऐसा ही रहेगा तो बत्तर हो सकती है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ - छत्तीसगढ़
कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का भविष्य अंधकारमय है। क्योंकि विद्यार्थियों को आन लाइन चाहे कितना भी अच्छा पढ़ाया जाए फिर भी कक्षाओं में सुचारू रूप से कराई गई पढ़ाई के बराबर नहीं हो सकती। हालांकि सुनने में आया है कि सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम के तहत विद्यार्थियों को अद्वितीय सुविधाएं उपलब्ध करवाई हुई हैं।
परंतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जितना प्रशिक्षण शिक्षकों को मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला। जिसके कारण शिक्षक अपने शिष्यों को सम्पूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाने में सशक्त न होकर निशक्त हैं? हालांकि शिक्षकों को कक्षाओं में पढ़ाने से अधिक तैयारी करनी पड़ती है। जिससे उनकी शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता बढ़ती है।
लेकिन यह कोरोना काल है और सर्वविदित है कि जान है तो जहान है अर्थात जीवन बचेगा तो ही पढ़ाई काम आएगी। इसलिए शिक्षा और शिष्यों का भविष्य कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, परिवर्तित शिक्षा ज्यों कि त्यों चलाते रहना चाहिए? क्योंकि घोषित महामारी में उपरोक्त विवशता राष्ट्रीय विवशता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण से लोग बहुत ही भयावह स्थिति से गुजर रहे है। भारत में कोरोना का दूसरा स्टेज बहुत ही खतरनाक रूप धारण कर लिया है जिसमें रोजाना 4 हजार से अधिक लोग मर रहे हैं और 4 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं। हालांकि करोना से ठीक होने होने वालों की संख्या भी लाखों में है। कोरोना का तीसरा स्टेज भारत में आने वाला है जिसके लिए वैज्ञानिकों ने पहले ही सचेत कर दिया है। कोरोना संक्रमण का तीसरा स्टेज बच्चों बच्चों के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होने वाला है। इन कठिन परिस्थितियों में बच्चों का शिक्षा का विकल्प ऑनलाइन ही रह गया है। कोरोना संकट के दौर में शिक्षण संस्थानों के आगे जो चुनौतियां है उसमें बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देना समय की मांग बन गई है। हालांकि ऐसे समय में विद्यार्थियों को जोड़ना जरूरी है, लेकिन इस व्यवस्था को कक्षाओं में आमने सामने दी जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकल्प बताना देश के भविष्य के लिए अन्याय पूर्ण है। शिक्षा अपने मूल सेसामाजिकरण की एक प्रक्रिया है जब-जब समाज का स्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई है। आज कोरोना संकट के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के जरिए शिक्षा के स्वरूप में बदलाव का प्रस्ताव नीति निर्धारकों द्वारा पुरजोर तरीके से रखा जा रहा है। ऐसे में देखना जरूरी है कि समाज की संरचना और उसके उद्देश्य में ऐसा कौन सा मूलभूत परिवर्तन हो गया है कि इसे असंभाविक बताया जा रहा है। ऑनलाइन शिक्षा मात्र तकनीक नहीं समाजीकरण की नई प्रक्रिया है जिसके जरिए सरकार और नीति निर्धारकों की नीति और नियत को समझा जा सकता है और उसे उसी रूप में देखने की भी जरूरत है। ब्लैकबोर्ड से लेकर स्मार्ट बोर्ड तक बदलती तकनीकी का उपयोग क्लासरूम टीचिंग को मजबूत और रुचिकर बनाने के लिए किया जाता है। लाइब्रेरी का डिजिटल होना उसी प्रक्रिया का एक रूप है। प्रोफेसरों के व्याख्यान को रिकॉर्ड करना और उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराना भी तकनीकी का उपयोग करना ही है। इन तकनीकों का प्रयोग कर समाजीकरण की प्रक्रिया को शिक्षा के द्वारा बनाया जाता था। आज तक नई शिक्षा नीति और ऑनलाइन शिक्षा के बाद की जा रही है उसका इस से कोई संबंध नहीं है उसका संबंध शिक्षा के निजीकरण के मॉडल से जिसकी जड़ में बिड़ला अंबानी कमेटी की रिपोर्ट है। ऐसे में उसकी ऐतिहासिकता में जाने बिना हमें समझना संभव नहीं। वैसे यह तथ्य भी बहुत मजेदार है कि शिक्षाविदों के द्वारा शिक्षा नीति बनाने की परंपरा जो राधाकृष्णन से चली आ रही थी उसे खत्म कर बिड़ला अंबानी जैसे पूंजीपतियों के नेतृत्व में शिक्षा नीति तैयार करने का निर्णय अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के द्वारा किया गया था। कोरोना संकट के दौर में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो चुनौतियां हैं उसमें ऑनलाइन एक विकल्प दिखाई देता है। शारीरिक दूरी बनाए रखने की सोच को स्थापित करने लॉकडाउन और एक जगह इकट्ठा ना होने का असर शिक्षक शिक्षा संस्थानों पर कितने दिनों तक रहेगा यह कहा नहीं जा सकता। इन परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प बचा हैताकि कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाया जा सके।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना के कारण शिक्षा में जो परिवर्तन होता है वह ठीक तो नहीं है। लेकिन ये सब तो मजबूरी में हो रहा है। चाहे जैसे भी हो ये शिक्षा के लिए अच्छा नहीं है। शिक्षा का भविष्य अंधकारमय ही है। बिना पढ़े अगली कक्षा में प्रोन्नति ये शिक्षा के लिहाज से ठीक तो नहीं है। पर इस महामारी के काल में करने का कुछ है नहीं। ऑनलाइन से पढ़ना और डायरेक्ट पढ़ना दोनों में जमीन आसमान का अंतर होता है। ऐसी स्थिति में शिक्षा का भविष्य अंधकारमय ही लगता है। कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का भविष्य अच्छा नहीं है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
कोरोना का सबसे खराब प्रभाव शिक्षा पर हुआ है। आज दो साल बीतने को आये स्कूल और पढ़ाई दोनों ही ठप पड़ी हैं। विद्यालय संचालक हो या उसका चपरासी दोनों ही आर्थिक रूप से लाचार और बीमार हैं। विद्यार्थियों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है। मोबाइल के जरिये पढ़ाई करने में अनेक लोग सक्षम नहीं हैं। पहले तो इतने मंहगे मोबाइल की जुगाड़ और फिर नेट का खर्च। सभी की जिंदगी 2 साल पीछे चली गई है। विद्यार्थी जिनकी रुचि पढ़ाई में थी वो भी तरह-तरह के डर से ग्रसित हो पढ़ाई को दर-किनारकर चुके हैं। पढ़ने का जुनून ही समाप्त हो गया है। गरीब तबका आर्थिक उपार्जन के लिए बच्चों को भी सब्जी बेचने ले जा रहा है। किसी को भी जीवनयापन की जरूरत पहले दिख रही है।
अतः भविष्य में शिक्षक व विद्यार्थी दोनों को ही अपनी पुरानी गति लाने में अब लंबे समय की आवश्यकता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कोरोना से वैसे तो लगभग सभी क्षेत्रों में परिवर्तन हुआ है और यह परिवर्तन स्थाई रूप से हुआ है तेज़ी से बदलती टेक्नोलॉजी ने इस बदलाव को आत्मसात् करने में बिल्कुल देरी नही की है यह बात किसी से छुपी नहीं है पिछले एक साल में स्कूलों में हुए परिवर्तन वर्तमान में साफ़ दिखाई दे रहे हैं बच्चों को घर पर ही पढ़ने के लिए तैयार किया जा रहा है वर्क फ़्रोम होम के तरीक़े से पढ़ाया जा रहा है मोबाइल पर क्लास चल रही है इसमें बच्चे ने पढ़ा या किसी और ने टीचर को कुछ पता नहीं है बिना एग्ज़ाम दिए ही बच्चे को अगली कक्षा में प्रोन्नत कर दिया गया है यह एक बीज रूप में स्वीकार किया जाए तो शिक्षा के परिवर्तन का भविष्य एक विशालकाय वृक्ष के रूप में साफ़ नज़र आ रहा है । कोरोना ने शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावित किया है ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन केवल स्कूल अध्यापक अभिभावक को जोड़ने की कोशिश भर है वैसे भी इससे स्कूलों को फ़ीस लेने की आसानी रही परन्तु अभिभावकों ने फ़ीस के बदले बच्चे के ज्ञान में कितना लाभ मिला इस पर अभी विचार नहीं किया चूँकि अभी नयी टेक्नोलॉजी होने के कारण बहुत सारे अभिभावक इससे अपरिचित थे और बहुत से कोरोना के डर से बच्चे को इस टेक्नोलॉजी को बेहतर मान कर पूरी शिद्दत से अपनाने में पीछे नहीं रहे जबकि कुछ दिन पहले बहुत से अभिभावक मोबाइल को बच्चों के लिए ख़तरनाक बताते थे वही आज मजबूर हो गए और उन्होंने अपने बच्चों को स्वयं मोबाइल ख़रीदकर दे दिए । यही है कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का भविष्य । और ये परिवर्तन सतत चलने वाली प्रक्रिया होती है जिसे चाहकर भी रोका नहीं जा सकता है ।
शायद इस परिवर्तन को कुछ लोग विनाश मानकर हताशा और निराशा के गहरे कूप में डूब जाएँगें और कुछ परिवर्तन को विकास की अवधारणा मानकर उत्तरोत्तर आगे बढ़ने के मार्ग खोज लेंगे ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
करोना महामारी के कारण शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन होता दिख रहा है । पिछले साल और इस साल भी शिक्षा से संबंधित सभी संस्थाएं बंद ही हैं । विद्यार्थियों का शिक्षकों और स्कूल के माहौल से जो एक संबंध था वो भी लुप्तप्राय है ।आन लाईन कक्षाओं के द्वारा विध्यार्थी शिक्षकों को देख और सुन तो सकते हैं पर वो आत्मीयता के साथ अनुशासन वाला ड़र महसूस नहीं कर सकते । स्कूल की दैनिक दिनचर्या ,खेल के मैदान, रिसेस में दोस्तों के साथ भोजन, यह सब भी शिक्षा का ही हिस्सा है । अब अगर उन नन्हें मुन्नों की बात करें जिन्होंने स्कूल देखा ही नहीं है । मासूम बच्चे मोबाईल और टैब के सामने बैठकर सुनकर, देखकर कितना सीख पा रहे हैं यह हम सब जानते हैं ।करोना ने किताबों को डिजिटल कर दिया है।साथ ही तकनीक का ज्ञान तो चारों और फैला है पर ज्ञान का मूल्याकंन सही नहीं हो पा रहा है ।
भविष्य में भी यदि इसी तरह की शिक्षा रही तो बच्चों में सामाजिकता, सामूहिकता और नैतिकता की कमी यकिनन आएगी। भारत में अधिकतर लोग मध्यम श्रेणी और गरीब हैं। इन सब के पास मोबाईल और डाटा के लिए धन आना कठिन है ।
सरकार अपने कितने भी प्रयास कर ले तब भी बच्चों को साफ सुथरा माहोल,बस्ते की जगह आक्सीजन सिलेंडर ले जाते छात्रों की तैयारी करना भी जमीनी स्तर.पर कठिन होगा।
कागजों और योजनाओं में ड़िजिटल शिक्षा की चाहे। जितनी भी तारीफ कर लें पर भारत में अभी मंजिल दूर है ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
कोरोना काल में आॅनलाइन शिक्षा को ही सबसे उत्तम और एकमात्र सुरक्षित उपाय माना जा रहा है क्योंकि हमारे पास और विकल्प नहीं है। यह शिक्षा के स्तर का ह्रास है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज डिजिटल मंच के माध्यम से ज्ञान में अपरम्पार वृद्धि हो रही है। पर यह भी देखना है कि गुरु-शिष्य के मध्य संवाद खत्म होता जा रहा है। गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली का तो कोई विकल्प ही नहीं है। फिर उसकी तर्ज पर सामान्य और बोर्डिंग विद्यालय की परम्परा आई। दोनों में ही शिक्षा के साथ-साथ चहुंमुखी विकास पर बल दिया गया। खेल-कूद पर विशेष बल दिया गया। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। खेल-कूद जैसी सुविधाएं अब न मिल पाना, शिक्षकों के अतिरिक्त मित्रों से संवाद न हो पाना एक अलग ही वातावरण का निर्माण कर रहा है। डिजिटल माध्यम पर डिजिटल खेल खेलना कोई उपाय नहीं है। कुल मिलाकर यह भविष्य युवा पीढ़ी के सर्वांगीण विकास के लिए अंधकारमय है और युवा पीढ़ी के लिए हितकर नहीं है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
कोरोना महामारी से पूरी जिन्दगी ही प्रभावित हुई है ,लेकिन शिक्षा और अर्थ व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुँचा है । कक्षायें आन लाइन हो रही हैं ।ऐसी स्थिति में सभी बच्चे नहीं जुड़ते हैं ,जो जुड़े वो बहुत मन से नहीं पढ़ते ।परीक्षाओं की या तो तारीखें बढ़ती जा रही हैं या परीक्षायें ही रद्द कर दी जा रही हैं । बच्चों का आपसी संपर्क टूट गया है जिससे सीखने - सिखाने की प्रक्रिया खत्म हो गयी है । पिछले नम्बरों के आधार पर प्रमोशन दे दिया जा रहा है ।अभी तो सबके लिए 'जान है तो जहान है' वाली बात है । पूरा संसार ही ठहर चुका है ,खाई में गिरने से अच्छा रुक जाना है ।टेकनिकल पढ़ाई कर रहे विद्यार्थी आगे बढ़ने की आस में घर बैठे हैं । माता-पिता की मानसिकता उनको घर से बाहर नहीं निकलने
दे रही है ।महामारी बहुत बड़ी है ,शायद यह पहली बार हो रहा है कि पूरा देश थम गया है । हमें पुनः प्रगति के लिए फिर से खड़े होना पड़ेगा ,इसमें शिक्षा भी शामिल है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना आपदा से हमारा जो दूरगामी नुकसान हुआ है, उसमें शिक्षा भी प्रमुख है। पिछले वर्ष से लगातार हमारी शिक्षण संस्थानों और विद्यार्थियों का जो नुकसान हुआ है, उसकी क्षतिपूर्ति भविष्य में अनेक मुश्किलें खड़ी करने वाली हैं। कोरोना के संघर्ष में हमारा जीवन जिन परिस्थितियों और मनःस्थितियों से गुजर रहा है, वह पीड़ादायक तो है ही, भयावह भी है। जो हमारे सुख-चैन को छिन्न भिन्न कर रहा है। हममें विवेचना और विश्लेषण की सामर्थ्य भले ही संतोषजनक है, परंतु अर्जन करने की शक्ति जरूर भयाक्रांत हुई है। इसके लिए हमें सुनियोजित, सशक्त और निशुल्क व्यवस्था सहित संरक्षण की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत यदि हमारा भविष्य निजीकरण के जाल में फँसा तो असंतोष और अव्यवस्था का सामना करना पड़ सकता है।
सार यह कि जिम्मेदारों को शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में समर्पित और उदार भावना से योजनाओं का कार्यान्वयन करना होगा। तभी सहज और सरलता से विकास का पथ समृद्ध होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोरोनाजनित वर्तमान समय असाधारण मानवीय संकट का समय है l संकट की यह घड़ी न केवल शिक्षा जगत को अपितु पूरी दुनियाँ को बदलती जा रही
है l
हमें सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक, अर्थव्यवस्था और अन्य कई क्षेत्रों में खुद को समायोजित होना पड़ेगा l शिक्षा व मूल्यांकन में भी कोरोना संकट के कारण बड़े परिवर्तन संभावी हैं l
1. क्लास रूम टिचिंग के स्थान पर विकल्प के रूप में डिजिटल शिक्षा होगी ताकि इस नवाचारी वृति से कोरोना वायरस को पराजित कर सकेंगे l
2. ऐसी भी सम्भवना है कि भविष्य में सीधा संवाद समाप्त हो जायेगा l सब कुछ वर्चुअल, ऑनलाइन और डिजिटल टेक्नोलोजी संवाद का स्थान ले लेंगे l
3. शिक्षण- परीक्षण-मूल्यांकन की पद्धति में नया रूपाँतरण होगा l शिक्षक भी होंगे, छात्र भी होंगे, विषय वस्तु भी होगी लेकिन सब कुछ स्क्रीन पर l
4. पाठ्यक्रम नये सिरे से तैयार करना होगा l पढ़ाई तथा परीक्षा तकनीक में परिवर्तन करने होंगे l
मेरी दृष्टि में परिवर्तन एक शाश्वत नियम है लेकिन शिक्षा के बुनियादी पहलू कभी नहीं
बदलते l
बच्चे जिनको प्रारम्भिक अवस्था में एक मुक्त व गतिशील वातावरण की आवश्यकता होती है वह घर की चार दीवारी में कैद हो गये हैं l खेल के मैदान और साथियों से मेहरूम बच्चे कैसेप्रातः 9 बजे से 2 बजे दुपहर तक कक्षाएँ लेंगे और कैसे एकाग्रता बनायेंगे? कैसे इनका समाजीकरण होगा? कोरोना का यह उत्तरगामी परिणाम अव्यवहारिक और अमानवीय है l
चलते चलते ----
जीवन में चाहें जैसी परिस्थितियाँ हों, जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण से उर में घुटन की अनुभूति नहीं होनी चाहिए l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि कोरोना में शिक्षा के परिवर्तन का क्या भविष्य है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा हर समय एक जैसा नहीं रहता यह समय वास्तव में दुष्कर है और समय के साथ साथ यह समस्या भी गुजर जाएगी यानी दूर हो जाएगी आज ऑनलाइन शिक्षा की बात हो रही है और किसी हद तक इस माध्यम से बच्चे पढ़ भी रहे हैं परंतु भारत गांवों का देश है यहां अधिकतर लोगों की आजीविका कृषि पर या कृषि पर आधारित कार्यों से जुड़ी है और वहां तक अभी ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित संसाधनों का पूरी तरह से पहुंच पाना बहुत संभव नहीं है इसके लिए हमें अभी और वक्त लगेगा जब हम पूरी तरह से इसका उपयोग देश के हर कोने में कर सकेंगे इसका उपयोग करने के लिए बच्चों को इससे संबंधित विभिन्न जज उसको उपयोग करना भी आना चाहिए और यह तभी संभव है जब उनके पास असर पर्याप्त ज्ञान भी हो तो मैं समझता हूं कि कोरोना के समय में ऑनलाइन शिक्षा के भारत में भविष्य को लेकर अभी कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी बहुत सारी बीमारियां कालांतर में भी आई है और उन्होंने विनाश भी किया है परंतु वह सब भी समय के साथ साथ या तो समाप्त हो गई है अथवा उनका प्रभाव नगण्य हो गया या उनका इलाज खोज लिया गया इस करोना के साथ भी यही होगा समय के साथ साथ इसके उपाय भी खोज लिए जाएंगे और इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाएगा मैं उम्मीद करता हूं कि सब फिर पहले की तरह से ही सामान्य हो जाएगा और यह भी निश्चित रूप से सही है कि क्लासरूम टीचिंग का स्थान ऑनलाइन शिक्षा कभी नहीं ले सकती उसका महत्व हमेशा से था है और हमेशा रहेगा
- डॉ प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
व्यग्रता शब्द में दो पहलू निहित हैं ।व्यग्रता याने व्याकुलता। यदि व्यक्ति व्याकुल होकर अपना आपा खो देता है, अपना लक्ष्य पाने के लिए येन केन प्रकारेण कुछ भी कर बैठता है, भले बुरे का ध्यान नहीं रखता है तो यह इसका नकारात्मक पहलू है।
वहीं व्यक्ति अपने कार्य के प्रति व्याकुलढ भी है , लक्ष्य को पाना भी चाहता है, पर इसके लिए सहज रूप में प्रयास करता है,व्यवस्थित तरीके से योजना के अनुरूप कार्य करते हुए लक्ष्य तक पहुंचता है, उसे बीच में नहीं छोड़ देता है, तो यह व्यग्रता का सकारात्मक पहलू है। इस रूप में रही हुई व्यग्रता में सहजता स्वयमेव निहित है ,ऐसी व्यग्रता हो तो लाभप्रद हो सकती है।
- दर्शना जैन
खण्डवा - मध्यप्रदेश
निःसन्देह कोरोना के कारण 191 देशों के 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है ।लेकिन यह भी सच है कि अगर जान है तो जहान है । फिलहाल ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई की एकमात्र विकल्प है ।
भारत सरकार एवं कई राज्य सरकारों ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं ।छात्रों को विभिन्न माध्यम से यह ई कांटेक्ट मुहैया कराए जा रहे हैं ,यूजीसी एवं अन्य क्षेत्रीय बोर्ड कई सारे ऐसे एप्स और वेबसाइट से संबंधित नोट्स और मटेरियल दे रहे हैं।आई आई टी एवम आई आई एम आदि बड़े संस्थान अपने छात्रों के लिए की इंटर्नशिप व्यवस्था उपलब्ध करा रहे हैं।
एक महत्वपूर्ण विषय यह भी है कि जो छात्र पहले साथियों के साथ खुलकर भाग लेते थे आज वही छात्र अपने-अपने घरों में कैद हैं , सामाजिक दूरी बना कर रखे हैं ।
टीवी ,लैपटॉप व मोबाइल के उपयोग में लगे रहते हैं ।ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है पड़ रहा है। ऐसे में मनोवैज्ञानिकों को आगे आना चाहिए ,उनका मार्गदर्शन करना चाहिए ।
परिवारो की भी जिम्मेदारी है कि वह इस मुश्किल के दौर में अपने अपने बच्चों का मनोबल बढ़ाते रहें ,उन्हें सकारात्मकता के लिए प्रेरित करते रहें ।
ऑनलाइन शिक्षा को कोरोना काल में मजबूरी के रूप में देखा जा सकता है ।लेकिन इसके अलावा जान बचाने के साथ पढ़ाई जारी रखने का कोई विकल्प है ही नहीं ।
हालांकि फिजिकल स्कूल और क्लास से की कोई तुलना नहीं। और ग्रामीण भारत की पहुंच से तो बहुत दूर है ऑनलाइन पढ़ाई और गैरव्यावहारिक भी ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"संग पढ़े बचपन के साथी
कौन कहां कल जायेगा,
स्कूल में जो संग बिताया
वक्त बहुत याद आयेगा"।
यह सच है कि स्कूल की पढ़ाई के दिन बहुत याद आते हैं,
क्योंकी स्कूल की पढ़ाई की मौज मस्ती अपनी ही होती है
हरेक विद्यार्थी पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद व अपने अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती भी करता है,
लेकिन कोरोना काल के दौर में सबकुछ तबदील हो चुका है, आये दिन लाकडाउन ने हर कार्य को नया इंजाम दिया है,
तो आईये बात करते हैं कि कोरोना से शिक्षा के परिवर्तन का क्या भविष्य है?
मेरा मानना है कि कोरोना संकट में शैक्षणिक संस्थानों के आगे जो चुनौती है उसमें आनलाइन स्वाभिक विकल्प है ऐसे समय में विद्यार्थीयों से जुड़ना समय की जरूरत है,
कोरोना की संकट की घड़ी में आनलाइन शिक्षा दी जा रही है पर इसे कक्षाओं का विकल्प नहीं बनाया जा सकता,
देखा जाए शिक्षा समाजीकरण की एक प्रक्रिया है, जब जब समाज का स्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई,
इसलिए आज कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा के जरिए शिक्षा स्वरूप में
बदलाव पूरे जोरों पर है,
क्योंकी लाकडाउन के इस कठिन वक्त में यहां सभी स्कूल कालेज बंद हैं मगर सभी कक्षाओं की पढ़ाई आनलाइन द्वारा ही संभव है,
यही नहीं विश्व के सभी विद्यार्थी आनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, हालांकि आनलाइन पढ़ाई से विद्यार्थी इतने संतुष्ट नहीं हैं फिर भी यह एक अनोखा और अद्भुत माध्यम है,
आनलाइन शिक्षा ने इस मुश्किल को आसान बना दिया है,
इस समय आनलाइन शिक्षा एक वरदान बन कर आई है,
कोरोना संकट में शारीरिक दूरी बनाये रखकर यह शिक्षा दी जा रही है,
कहते है्ंं न मरता क्या न करता
आनलाइन शिक्षा एक मजबूरी बनकर आई है फिर भी यह इसकाल में कारागार सिद्ध हो रही है,
मजबूरी का नाम शुकरिया
सब कुछ ध्यान में रखते हुए यह शिक्षा माडर्न तकनीक के साथ दी जा रही है,
माना कि पिछले वर्ष से १६० करोड़ बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर पढ़ा है,
कोरोना महमारी ने शिक्षा के संकटों को बढाबा दिया है,
लेकिन फिर भी अगर आनलाइन शिक्षा से जुड़ी दिक्कतों को अगर दूर किया जाए तो यानि इंटरनैट व सुचना तकनीक अच्छी की जाए तो आनलाइन शिक्षा भी काफी हद तक कारागार सिद्ध हो सकती है,
अन्त मे़ यही कहुंगा की आनलाइन शिक्षा समय की मांग है इसको कोरोना काल में मजबूरी के रूप मैं देखा जा रहा है माना कि फिजिकल स्किल और कलास से इसकी कोई तुलना नहीं है,
लेकिन फिर भी यह बच्चों के लिए काफी हद तक कारागार सिद्ध हो रही है,
क्योंकी परिवर्तन प्रकृति का नियम है और कोरोना महमारी भी यही परिवर्तन लेकर आई है इसकी बजह से लोक शारीरिक दूरी बनाकर अपनेअपने अपने घरों में बच्चों को आनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं
इसमें कोई शक नहीं की आनलाइन पढ़ाई मे़ कुछ खामिया़ं हैं मगर इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि आनलाइन पढ़ाई से बच्चों को इस महमारी से बचाए रखने मे़ भी सहायता मिल रही है,
हालांकि आनलाइन शिक्षा से विद्यार्थीयों का भाविष्य इतना उज्जवल नहीं है लेकिन बच्चों को सहारा जरूर मिला है क्योंकी लाकडाउन मैं एक मात्र सहारा आनलाइन शिक्षा का ही है, इसे पा कर भी विद्यार्थी अपने भविष्य को सुधार सकते हैं, क्योंकी हरेक को समय के साथ ही चलना पड़ता है,
सच कहा है,
"जिंदगी मे़ कभी उदास न होना,
कभी किसी बात पर निराश न होना,
यह जिंदगी एक संघर्ष है चलती ही रहेगी,
कभी अपने जीवन का अंदाज न खोना"।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
शिक्षा जगत में उथल-पुथल मच गया है ऑनलाइन क्लासेस एग्जाम हो रहे हैं रिजल्ट भी आ रहे हैं नए क्लास भी मिल रहे हैं लेकिन जो विधि पूर्वक अनुशासन में संस्थाओं के द्वारा शिक्षा दी जा रही थी वह बिल्कुल ही लुप्त हो गई है
दूसरी बात यह है कि हर घर में हर व्यक्ति के पास लैपटॉप या स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं है और यदि उपलब्ध भी हैं तो उन पर पढ़ना पढ़ाना एक मुश्किल का काम हो गया है जिसके कारण वैसे परिवार के बच्चे जो आर्थिक तंगी में हैं स्मार्टफोन है पर उसे रिचार्ज कराने का जो पैसा है उसका जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में वह वैसे परिवार के बच्चे पढ़ाई में पीछे हो रहे हैं निराशा हो रही है आगे क्या होगा भय भी समाया हुआ है स्कूल खोलने के बाद कॉलेज खुलने के बाद हम लोग कहां रह सकेंगे।
समाजीकरण की प्रक्रिया लुप्त होती जा रही है।
सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई के साथ भोजन की भी व्यवस्था बच्चों के लिए की गई है कुछ बच्चे तो इसी लालच में ही स्कूल आते थे स्कूल में खाने को मिलेगा अब वह बच्चे इन सुविधाओं से वंचित हो गए हैं
खेल की दुनिया तो बिल्कुल ही उजड़ गई है मैदानों में बच्चों के साथ खेलना ऐसा लगता है बच्चों के लिए एक सपना बन गया है खेलने का माध्यम उनके पास सिर्फ डिजिटल गजट में है इसलिए सर्वांगीण विकास के लिए परिवर्तन तो आवश्यक है लेकिन सिर्फ डिजिटल परिवर्तन से यह सर्वांगीण विकास संभव नहीं है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " शिक्षा का आने वाला समय डिजिटल आधारित होगा । बिना डिजिटल के शिक्षा का कोई स्वरूप नहीं होगा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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