क्या मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चुनौती बन गया है ?

आज की जीवन शैली में मानसिक रूप से स्वास्थ्य रहना एक चुनौती बन गया है । खान - पीन से लेकर व्यायाम तक लोगों से दूर हो गया है । सबसे बडी बात ये है लोग अपने लिए समय तक नहीं निकाल नहीं पातें हैं । कामयाब होने के लिए मानसिक स्तर पर मजबूत होना आवश्यक है । फिर भी मानसिक रूप से स्वास्थ्य रहने के लिए क्या - क्या करना चाहिए ।देखते हैं आये विचारों को : -
                                     
आपकी परिस्थिति,आसपास के वातावरण केसाथ ही आपकी अपनी सोच स्वयं जिम्मेवार है।आप अपनी खुशी में खुश या औरों की खुशी से दुखी होना चाहते हैं।अपनी सफलता हेतु श्रम या औरों का कंधा या औरो की टांग खींचना चाहते हैं।ऐसे कई कारण है जो आपके मन मस्तिष्क को अस्वस्थ करते हैं
इसी तरह समाज व राजनीति में व्याप्त  साम्प्रदयिक विचार धाराओं से अपने को अलग रखना और स्वस्थ वातावरण के निर्माण द्वारा शान्ति की कामना की सोच सचमुच आज चुनौती पूर्ण कार्य बन गया है।
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
मानसिक स्वास्थ हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति को दर्शाता है ! आज जो हालात है देश में महंगाई ,भौतिक सुख को पाने की लालसा , कोई मुझसे ज्यादा सुखी है मैं क्यों नहीं ,मुझे संघर्ष के बाद भी सफलता क्यों नहीं मिल रही ,व्यसनी होना , सेक्स  की चर्चा अथवा विडीयो देखते रहना ,  यही सब बाते हैं जिससे हमारा मानसिक तनाव बढ़ जाता है और हम अवसाद में चले जाते हैं !किसी भी चीज की अति भी ठीक नहीं होती !
किशोर उम्र के बच्चों के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होती है जिनमे हर कार्य को करने की जिग्यासा होती है चाहे गलत हो या सही !एैसे वक्त में उन्हें अच्छा मार्गदर्शक  मिल जाता है तो ठीक है वर्ना उसमें वयस्क होने पर नकारात्मकता के भाव आ जाते हैं और सफलता न मिलने पर वह अवसाद में आ जाते हैं ! महिलाएं भी कम उम्र में शादी ,प्रताणना और अभाव की जिंदगी जीने की वजह से अवसाद में आ जाती है !
आज की जो स्थिति है उसमें सभी व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव तो रहता है किंतु  इस तनाव भरी जैसी जिंदगी से कुछ समय के लिए हमें ही बाहर आना होगा ! !(मनोरंजन से, घूमना,परिवार के साथ समय बिताना आदि आदि,उपाय हैं कम खर्च में) मानसिक स्वास्थ के संबंध में जागरुकता की कमी भी हमारे लिए चुनौती है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज के परिवेश में यह सौ प्रतिशत सत्य कहा जा सकता है ।वर्तमान समय में माँ के गर्भ में पल रहे शिशु से लेकर वृद्धावस्था तक मानव के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना एक चुनौती बन गया है।काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, द्वेष, इन सारे गुणों का समावेश आज प्रत्येक मानव शरीर के खून में बहने लगा है ।जन्म से लेकर मृत्यु तक हर व्यक्ति स्वार्थ, कुंठा, प्रतिस्पर्धा, हवस, लालच का शिकार होता जा रहा है ।जहाँ प्यार, अपनापन, सहानुभूति, सुरक्षा, त्याग ,सहायता निस्वार्थ भावों का तो जैसे अकाल ही पड़ गया हो ।ये सारी भावनाएँ मनुष्य के मानसिक संतुलन को अव्यवस्थित किए हुए हैं।इस भरी दुनिया में भी वह स्वयं को अकेला ही महसूस कर रहा है और यही अकेलापन उसे मानसिक रूप से असुरक्षित कर रहा है ।आज परिवारों के विघटन, वसुधैव कुटुंब की भावनाओं की कमी के कारण ही मानसिक रूप से स्वस्थ रहना एक चुनौती बन गया है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जी हाँ आज के इस इलेक्ट्रॉनिक दुनिया , व पैसा कमाने की भूख केनिरन्तर  बढ़ते रहने वाले समय में वाक़ई स्वस्थ रहना एक चुनौति है , फल , सब्ज़ियाँ , अनाज , मसाले सब की सब मिलावट वाली खाघ प्रदार्थ  और फिर मोबाईल , टीवी के इस दौर में  शरीर व मन स्वस्थ्य रखना चुनौति तो है ही।
साथ में रोज भागम भाग की ज़िंदगी आज लोग काम नहीं करेंगे पर जिम में जाकर पसीना बहायेंगे , घर काम में शर्म नैकरानी रखेगे पर जिम जाकर पसीना बहाना शान , 
पहले औरतें सारा काम घर का हाथ से करती थी खुशी खुशी घर का माहौल भी खुशनुमा बच्चे माँ के हाथ का खाना खाकर संतुष्ट , अब तो पीजा , बर्गर खा करे बढे हो रहे शरीर और दिमाग़ दोनों कमजोर , यही कारण है लोग जीवन से हताश , आत्महत्या जैसे कृत्य करने लगे फेल हो गये आत्महत्या , प्रमोशन नहीं मिला गर्लफ्रड ने छोड़ दिया आत्महत्या ,धैर्य व पराजय स्वीकार भावना ख़त्म हो रही है ।आज इत चुनौति पूर्ण समय में जहां चारों तरफ़ से जीवन एक कठिन चुनौती है । इस दौर में मानसिक स्वास्थ्यतता बहुत जरुरी है । 
- डॉ . अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी बिल्कुल सहमत हूं ।स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क की बात कही है और आज शरीर को स्वस्थ रखने की चुनौती है आसपास उपलब्ध अनाज फल सब्जियां फास्ट फूड व भागमभाग की जीवनशैली शरीर को स्वस्थ रहने कहां देती कभी क्रिकेट तो कभी मोबाइल दिनचर्या बिगाड़ रहा है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश
मानसिक स्वस्थता आज की सबसे बड़ी जरुरत है । आज देश तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है तो इसके साथ साथ हमारी जिम्मेवारियां भी बढ़ रही हैं । हमारा कर्तव्य देश की प्रगति में भागीदार बनना होना चाहिये न कि बाधक!
ये तभी संभव है जब हम शारीरिक रूप के साथ-साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो । सोशल मीडिया का प्रयोग सोशल लेवल पर होना चाहिए न कि पोलिटिकल! हमें लोगों को साथ लेकर चलने का पुनीत कार्य करना चाहिए, मानसिक स्वास्थ्य से भटकों को राह दिखाएं, उनका मार्गदर्शन करें न कि स्वयं भी उनके साथ चल पड़ें । आज खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखना भले ही चुनौती बन गया हो परंतु मन को शांत रख हम इस चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकते है ताकि हम सही समय पर सही निर्णय ले सके और परिवार, समाज व देश की तरक्की में अपना अमूल्य योगदान दे सकें ।
- अंजू खरबंदा 
दिल्ली
वर्तमान में सामाजिक और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में जीवन दिनप्रतिदिन अपेक्षाकृत और भी संघर्षशील तो होता ही जा रहा है, समस्याओं के बढ़ते बोझ से जीवन में इतना वक्त नहीं मिल पा रहा है कि  अपने परिजनों, पड़ोसियों एवं परिचितों के दुःख-दर्द में उन्हें वांछित सहयोग दे सकें  और ऐसा ही हाल उन आत्मीयों का भी है। इस वजह से उनसे भी वांछित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में जीवन इतना संकुचित हो गया है कि पारस्परिक स्नेह, विश्वास और सौहार्द्र भी डगमगा कर थकित और व्यथित हो चला है । इस तरह प्रत्येक जीवन एकाकी और तनावग्रस्त हो रहा है। जो शारीरिक और मानसिक रोगों को भी जन्म दे रहा है। जिससे व्यक्तिगत, व्यवहारिक और सामाजिक जीवन भी प्रभावित हो रहा है। लगता है,जैसे सुखद, सरस, सरल और शांत जीवन के लिये मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चुनौती बन गया है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह सत्य है ,मानसिक रुप से स्वस्थ रहना आज चुनौती बन गया है । प्रकृति में गुण और अवगुण दोनों निहित हैं ।हम हमारे परिवेश से प्रभावित होते हैं ।आज समाज मे हर कोई अपनी पहचान बनाने का इच्छुक है ।चाहे वह रुतबा हो ,दौलत हो या झूठा दिखावा ।इससे हमसब की महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी है कि मानसिक रुप से व्यक्ती आगे निकलने की होड़ में बेचैन हो गया है ।फलतः सुकून देने वाली पुरानी परम्परायें खोती जा रही हैं,उनकी जगह नई मान्यताओं ने ले लिया है ।जिससे समाज के प्रति निष्ठा कम होती जा रही है ।अतः जीवनशैली  ने मानसिक स्वस्थता चुनौती पूर्ण बना दिया है ।
                 -   कमला अग्रवाल 
                  गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सबसे पहले तो हमे ये ज्ञात होना चाहिये कि बिमारी से ग्रसित सिर्फ तन नही होता । मानसिक बिमारी भी हम में पनपती है ।और स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ वो नहीं जो शारीरिक रूप से स्वस्थ्य है । हमे पूर्ण स्वस्थ्य तभी कहा जा सकता है जब हम तन और मन दोनो से स्वस्थ्य हो । कहने का तात्पर्य यह है कि बिमारी कोई भी हो तन की या मन की लक्षणों से पता लग ही जाता है ।लेकिन अनदेखा करने की प्रवृति भी मानव में जन्म जात पाई जाती है ।जब तक जान पर न बन जाए हम उसका उपचार नहीं करते ।अब प्रश्न ये उठता है की जन्म है तो मृत्यु है ,शरीर है तो व्याधि है । निरोग काया निरोग मन स्वस्थ्य परिवार और समाज की रचना करता है और समाज के स्वस्थ्य होने से देश सुदृंढ और मजबूत बनता है ।आए दिन होने वाली घटनाएं इस बात का प्रमाण है की मानसिक बीमारी हमारे समाज में हर तरह से व्याप्त है ।चाहे बहन बेटीयों के साथ हो रहे अन्याय की बात करे या मासूम कलियों के नोचने की ।मानसिक बिमारी चुनौती तो है पर आसाध्य नही ।ऐसे में हमारा भी दायित्व बनता है कि हम मानसिक रोगी का मन बदले उसकी सोच बदले ।मानसिक बिमारी का कारण कोई भी हो सकता है जिसे गिनाया नही जा सकता किसको कौन सी बात लग जाए और वो विकृत रूप ले ले और परिणाम घातक होने लगे ।हमारा दायित्व बनता है की हम हमारे धर्मग्रंथों का अध्ययन करें हमारी संस्कृति के अनुसार अपनी संतानो को बचपन से आध्यात्म से जोड़ें ।समय- समय पर पास बिठाकर उनका आकंलन करे  उनके मन मे उत्पन्न हो रहे विकारों और विचारों का मूल्यांकन करें ।अन्त में इतना ही कहूंगी कि मानसिक बिमारी एक ऐसी विकृति है जिसका समय पर उपचार न किया जाए तो परिणाम घातक होते हें । मानसिक बिमारी चुनौती अवश्य है पर लाइलाज नहीं ।
- पं0 आभा अनामिका 
          मंडला - मध्य प्रदेश
वर्तमान  युग  प्रतिस्पर्धा  का  युग  है  ।  सभी  भाग  रहे  हैं  पर  कहां  ?  कुछ  लोग  तो  यह  भी  नहीं  जानते  ।  बस  अंधी  दौड़  में  सभी  शामिल  हैं  ।  सभी  को  जल्दी  है......सभी  रातों- रात  सब  कुछ  हासिल  कर  लेना  चाहते  हैं....सब कुछ......।   सभी  कई  प्रकार  के  भयंकर  तनाव  से  गुजर  रहे  हैं  ।  सबकी   अपनी-अपनी  ख़्वाहिशें ......अपनी-अपनी  परेशानियां.....अपने-अपने  दर्द  हैं....जो  किसी  को  चैन  से  जीने  नहीं  देते  ।  हर  वक्त  सभी   तनाव  के  साये  में  जी  रहे  हैं  ।  ये  तनाव  तन-मन  को  खोखला  कर रहा है   ऐसी  स्थिति  में  मानसिक  रूप  से  स्वस्थ  रहना  चुनौति  से  कम  नहीं  है  ।  
         - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
आजकल भाग दौड  भरी इस जिंदगी में पूरा माहौल जैसे मानसिक रूप से स्वस्थ है हीं नहीं ऐसा प्रतीत होता है। मिलावटी भरे इस युग में कुछ  भी शुद्ध नहीं ‌है । व्यक्ति बस‌ अंधाधुंध अधिक से अधिक पैसा कमाने की धुन में बेचैन है । फलत: व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन  बनाए रखने में ‌शायद हीं सफल  हो पा रहा है। फलस्वरूप कम उम्र में हीं अनगिनत बिमारियों का भी शिकार होता  जा‌ रहा । शोहरत, ऐशों आराम की जिंदगी व्यक्ति खाना पीना, आराम सब‌ भूल बैठा है । प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा हावी हो गया है । सहनशीलता, शालीनता नैतिकता जैसे मूल्यों को भूलता जा रहा है ।हम कह सकते हैं कि सच में आज के युग में मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चुनौती बन गया है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
वास्तव में आज यह बताना बहुत ही मुश्किल हो गया है कि हम मानसिक रूप से कितने स्वस्थ हैं...? आज का रहन सहन व खान पान हमारे स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होती जा रही है। जैसा कि हम सुनते आए हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिष्क का विकास होता है। काम, क्रोध, मोह, लोभ, ईष्या जैसे इन दुर्गुणों का समावेश हर इन्सान के दिमाग में अपना भरपूर जगह बना लिया है, कुंठा, हवस, स्वार्थ, लालच का शिकार होता ही जा रहा है। इन समस्याओं का मूल जड़ समाज में फैली गंदगी व कुरीतियों का बोलबाला है। हर व्यक्ति को सादा जीवन उच्च विचार को ही अपनाना चाहिए।
- डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई - महाराष्ट्र
मानसिक रूप से स्वस्थ रहना उन लोगों के लिए चुनौती बन गयी है ,जिनका व्यक्तित्व परिपक्व नहीं है .जिन्होंने जीवन में कभी चुनौतिओं का सामना नहीं किया .जो शारीरिक रूप से सुदृढ़ नहीं हैं .इन सब समस्याओं का जड़ बिंदु आजकल की तथाकथित आधुनिक जीवन -शैली व पारिवारिक व सामाजिक परिवेश है ,जहाँ बच्चों को सुदृढ़ व साहसी बनाने की बजाय कोमल व अतिउत्साही बनाया जा रहा .जो आगे चल कर जीवन की कठिन डगर पर कमजोर और निरुत्साही होकर ,मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं .उन्हें जीवन में केवल सफलता के ही पाठ पढ़ाये जाते हैं ,असफलता से कैसे धैर्य के साथ कैसे आगे बढ़ना है यह भी अत्यावश्क है .हम प्राचीन ऋषि पम्परा ,पठन - पाठन व जीवन शैली को पुनःश्च अपनाने की जरूरत है .भारतीय परम्परा व जीवन शैली में मानसिक तनाव व अवसाद जैसे कारकों की कोई जगह नहीं है ,ये सब तो पाश्चात्य शिक्षा ,जीवन शैली के अंधाधुंध अनुकरण की देन है .
अतः मानसिक रूप से स्वस्थता कोई चुनौती है ही नहीं .
- प्रदीप निर्बाण 
गांव रामपुरा ,अटेली - हरियाणा
मानसिक रूप से स्वस्थ रहना उनके लिए चुनौती है जो अपने विचारों को भौतितकतवादी वातावरण व आधुनिक विचारों से प्रभावित होने से बचाने मैं सक्षम हैं झूठी ज़िन्दगी , झूठी शान , संस्कार हींन जीवन , जीने की होड मैं आज अधिकाँश लोगों के लिए चुनौती बन गयी है स्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्ति के लिए जीवन ही एक चुनौती बन गया है 
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने को प्राथमिकता देता है और दुनिया भर में सभी लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के समान स्तर को हासिल करने का प्रयास करता है
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार 
शरीर का स्वस्थ रहना जितना आवश्यक है मन का भी स्वस्थ रहना उतना ही आवश्यक है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। आज का जैसा परिवेश और माहौल है उसमें तो यह और भी आवश्यक हो गया है कि हम शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रखें। उसके लिए संतुलित दैनिक दिनचर्या से लेकर संतुलित भोजन, व्यायाम, योग, जंक फूड का त्याग और सत्साहित्य का पठन, अपनी संस्कृति, नैतिक मूल्य.... ये सभी अपनाने होंगे।शरीर स्वस्थ होने पर ही मन भी अच्छी बातें सोचता और करता है, साथ ही अपनी रुचियों को पहचान कर उस रुचि के कार्य में लग कर अपने को व्यस्त भी करना होगा क्योंकि खाली दिमाग होने से विकृतियाँ जल्दी घेरती हैं। अच्छी संगति, घर-परिवार जनों का साथ, बड़े- बूढ़ों का साहचर्य और बच्चों के साथ संवाद भी जरूरी है। ये सब भी होता रहे तो शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य भी सही बना रह सकता है और इस चुनौती का काफी हद तक सामना किया जा सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
आजकल कम समय मे ज्यादा पाने की होड़ लगी हुई हैं। लोग यदा- कदा  कुछ भी करके अपने दोस्तों और परिवार वालों से आगे रहना चाहते है। भाग दौड़ भरी जिंदगी  में  लोग मानसिक रूप से तनाव में रहने लगे हैं। ऐसे में ऐशो आराम का सभी सुविधाएं रहने के बावजूद भी  मानसिक तनाव  में रहते हैं ।ऐसे में मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चुनौती से कम नहीं।
    - प्रेमलता सिंह
     पटना - बिहार
पायो रे संतोष धन रामा, 
सब धन धूरि समाना l
मानव मन आज मानवीय रिश्तों को तिलांजलि देता हुआ अध्यात्म और आधिभूत से विमुख मानव मन अंतर आत्मा की आवाज़ को नज़र अंदाज करता हुआ धन वैभव प्राप्ति की अंधी दौड़ में दौड़ा जा रहा है अतः निःसंदेह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहना चुनौती बन गया है.
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
 शरीर से स्वस्थ रहना जितना आवश्यक है मानसिक रूप से सही होना उससे भी बड़ी  चुनौती है। तन अगर सही न हो तो उसका उपचार संभव है इसके विपरीत यदि मन अच्छा नहीं है तो पूरी जीवन नैया पर ही संकट के बादल छा जाएँगे।
आज के मोबाइल युग में तन से ज्यादा मानसिक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। लगभग प्रत्येक व्यक्ति महसूस करने लगा है कि वह मानसिक रूप से अस्त- व्यस्त रहने के कारण अस्वस्थ है। वह न तो परिवार को समय दे पा रहा है न ही समाज को। रिश्तों की अहमियत दिनों दिन घटती जा रही है। अपनी ही नजरों में व्यक्ति का मानसिक रूप से स्वस्थ रहना एक चुनौती बन गया है जो कि आने वाले समय के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है। यदि इस चुनौती का समाधान नहीं ढूंढा गया तो हम स्वयं के लिए बड़ी समस्या बन जाएँगे।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
आज क़दम क़दम पर हमें चुनौतीयों का सामना करना पड़ता है ,जो मानसिक अवसाद का कारण बनता जा रहा है|घर ,बाहर ,स्कूल,कॉलेज ,कर्मस्थली ,सर्वत्र स्पर्धा,धोखा, मुँह बाए खड़ी है |जिससे लड़ने के जद्दोजेहद में हम मानसिक विकार के शिकार हो जाते हैं|मन स्वस्थ नहीं रहने का असर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है और हम कई तरह के बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं |मानसिक अस्वस्थता के कारण ही आज आत्महत्याएं हो रही हैं |हम सब मेहनत ,संघर्ष से परे जल्दी से जल्दी कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं |यही कारण है कि मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चुनौती बन गई हैं 
              - सविता गुप्ता 
             राँची - झारखंड 
बिलकुल ... काम की अति व्यस्थता और इस भागदौड़ की जिंदगी में सबकी अपनी अपनी टेंशन है! बच्चे ,बूढ़े, महिलायें हों या पुरुष आज कल सभी मानसिक रुप से ग्रसित हैं ।इसका कारण है एकाकी जीवन और एक दुसरे से कम्प्टीशन ।पैसा और सभी एशो आराम की जीवन व्यतित करते हुए मानसिक रूप से सभी तनाव ग्रस्त हैं ।
- राजकांता राज
 पटना - बिहार 

" आज की चर्चा " में Twitter पर आये विचारों को पढने के लिए लिंक को क्लिक करें


पानीपत ग्रामीण क्षेत्र के विधायक श्री महीपाल ढा़डा का अभिनन्दन करते हुए बीजेन्द्र जैमिनी 
दिनांक 23 नवम्बर 2014
सैक्टर - 6 
पानीपत - हरियाणा





Comments

  1. अच्छी व गम्भीर चर्चा बधाई

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?