क्या सुधार मांगती है आपराधिक न्याय प्रणाली ?

भारतीय राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर सवाल उठा कर स्पष्ट कर दिया है कि आपराधिक न्याय प्रणाली बहुत अधिक सुधार मांगती है । वर्तमान आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ें से बड़े आपराधिक को बच निकलने के रास्ते बड़े आसानी से मिल जातें हैं । इस स्थिति में पीड़ित बहुत अधिक लचार नज़र आता है ।  वकील भी झूठ के सहारे अपने क्लाइंट को बचाने के लिए हर सम्भव प्रयास करते रहते हैं । जिससे पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता है । ऐसी स्थिति को निपटने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है । अतः " आज की चर्चा " का प्रमुख मुद्दा स्पष्ट है । आये विचारों को देखते हैं :-
अवश्य ।हमारी न्याय प्रणाली को अति लचीला बनाया गया है जिसमें जघन्य अपराधों में भी मानवीयता ढूँढने की कोशिश की जाती है ।कभी अपराधी को अबोध नाबालिग  बना दिया जाता है, कभी मानसिक रोगी तो कभी अनजाने अपराध की संज्ञा देकर लंबे समय तक मुकदमे चलाकर उसके फैसलों में ढील दी जाती है ।हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फिर राष्ट्रपति तक पहुँचते-पहुँचते जघन्य अपराध भी साधारण सी स्थिति में आ जाता है ।बरसों चलने वाली इस प्रक्रिया में अपराधी या तो बेल पर छूट कर ऐश करता है या जेल में मुफ़्त की रोटी खाता है ।न्याय अपराध की गंभीरता के आधार पर होना चाहिए ।एक साधारण चोर और बलात्कारी, हत्यारे के न्याय की समय सीमा का निर्धारण आवश्यक है ।बलात्कारी हत्यारों को समाज से तुरंत मुक्त करवाना आवश्यक है ।ऐसे अमानवीय प्रवृत्ति के व्यक्तियों को जीने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए ।भारत की न्याय प्रणाली में सुधार लाना बहुत आवश्यक है ,वर्ना किसी को पुलिस, कानून से कोई भय नहीं रहेगा और अपराध होते रहेंगे ।
-  सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
क़ानून सख़्त होंगे , सजाये सख़्त होगी , अदालतो में सुनवाई जल्दी होगी , तो गुनाहगार जल्दी सजा पायेगे लचर न्याय प्रणाली के चलते गुनाह गार सालो साल जेल में मुफ़्त की रोटी खाते है । या बेल पर रिहा हो बहार जुर्म को बढ़ावा देते है । 
जघन्य अपराधों के लिये तुरन्त सजा का प्रावधान होना चाहिये 
बलात्कार , हत्या , मादक पदार्थ की तस्करी , बाल शोषण , महिला शोंषण जैसे अपराध करनेवालो के लिये अलग न्यायालय हो ताकी जल्दी से उन्हें सजा दी जा सके । 
पुलिस , प्रशासन , सरकार तीनों जब मुस्तैदी से व इमानदारी से अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर काम करेंगे किसी पर किसी का दबाव नहीं होगा , लालच नहीं होगा , तभी हम एक स्वस्थ न्याय प्रणाली का सपना देख सकते है 
जघन्य अपराध करने वालों को किसी भी परिस्थिति में बेल नहीं होनी चाहिये , और सजाये सख़्त हो तभी समाज से अपराध कम हो सकते है 
नशीले पदार्थों  को बेचने वालो को जवानों की ज़िंदगी बर्बाद करने वालों को कदापि न बक्क्षा जाये । 
- डॉ. अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
 आज जिस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं |नित नये -नये तरीक़े और तकनीकों के सहारे अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है |अवश्य ,हमारे देश की क़ानूनी ढाँचे में परिवर्तन,क़ानूनी प्रक्रिया में सुधार ,क़ानूनी शिक्षा में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है|न्यायपालिका अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई कर कठोर दंड सुनिश्चित करे|छोटे अपराधों को ग्राम या नगर पंचायत स्तर पर निपटाया जाए |चलित कोर्ट ,सुलभ और सस्ती न्याय ,जनता में क़ानूनी ज्ञान प्रदान कर न्याय प्रणाली को मज़बूत करना चाहिए |ताकि पीड़ित को जल्द से जल्द से न्याय मिल सके और अपराधी बच न सकें |
           -  सविता गुप्ता 
                राँची - झारखण्ड
जी बिल्कुल सहमत हूं समाज देश परिवेश के साथ गतिशीलता परिवर्तन होता है ठीक वैसे ही अपराधी प्रवृत्ति में बदलाव बार बार अपराध कई बार एक ही अपराधी द्वारा की रोकथाम समय से होने के साथ दिखने वाले न्याय के लिए सुधार आवश्यक है और यह सुधार भी समय-समय पर निष्पक्षता से होते रहे तभी सार्थकता है ।वर्तमान में देश की महिला अपराध पर स्थिति व रोकथाम उदाहरण है ।
 - शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
ये हमारी विडम्बना है कि किसी लड़की के साथ इंसानियत की सारी हदें पार कर के उसे क्षत - विक्षत हालत में सड़क पर छोड़ दिया जाता है, या किसी लड़की को रात में अकेली बेबस देखकर  उसके साथ दुष्कर्म किया जाता है, और जिंदा जला दिया जाता है। इतना सब जानने के बावजूद कोई सिरफिरा वकील ऐसे पशु से भी बदतर इंसान के लिए बचाव में खड़ा हो जाता है, फिर न्याय की कुर्सी पर बैठे जज सब कुछ जानने के बावजूद उसकी दलीलें सुनने को मज़बूर होता है। लड़की के माता-पिता और आम जनता अपने आक्रोश को सीने में दबाए हुए न्याय की आस लगाते है, और ये आस कई साल गुजर जाने के बाद भी खत्म नहीं होते है। मेरे ख्याल से तो ऐसी न्याय व्यवस्था में बदलाव की अति आवश्यकता है।
        - कल्याणी झा
          राँची - झारखंड
देखा और महसूस किया जा रहा है कि वर्तमान परिवेश में न्याय की लंबी और जटिल प्रक्रिया के तहत समय लग रहा है,इससे अपराधियों के मन में खौफ़, झिझक और शर्मींदगी का असर खत्म सा होता जा रहा है। यही नहीं इस वजह से अपराधी जमानत लेकर जेल से बाहर आकर दोबारा अपराध करने में भयभीत नहीं होता और निर्भीकता एवं निर्ममता से पहले से अपेक्षाकृत और बड़ा,घिनौना अपराध कर लेता है। इससे सबसे बड़ी और बुरी फजीहत, आफत और वेदना पीड़ित एवं उनके परिजनों की होती है।
   अपराधियों के पक्ष में खड़े होकर उनके बचाव और संरक्षण में आने वाला पक्ष भी सामाजिक व्यवस्था में  त्रासदी, विडंबना और न्याय प्रक्रिया में दखलंदाजी के साथ-साथ व्यवस्था को कमजोर करना भी है।
सामाजिक और प्रशासनिक के तौर पर यह विषय बेहद संवेदनशील, गंभीर,महत्वपूर्ण और अति आवश्यक है। संबंधित और जिम्मेदारों को इस पर मनन और चिन्तन करना चाहिए।
अतः माना जा सकता है कि इस संपूर्ण व्यवस्था और प्रणाली में सुधार की नितांत आवश्यकता है। यह कार्य जितने जल्दी हो सके उतना हितकर होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
भारत में न्याय प्रणाली में संशोधन बेहद जरूरी हैं। रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर जमानत देना नहीं चाहिए। कुछ बलात्कारी तो इसलिए छूट जाते हैं कि वो नाबालिक है। जो रेप कर सकता हैं वो नाबालिक कैसे हुआ? हमारे न्याय प्रणाली में भ्रष्टाचार व्याप्त हैं जिससे कि अपराधी चंद पैसा देकर बच निकलते है। अगर सबूत सामने हो तो अपराधी को 3 से 6 माह के अन्दर सजा मिलनी चाहिए। बड़े अपराधों में दया याचिका का प्रावधान नहीं हो। आज जिस तरह से देश में अपराध बढ़ रही हैं सोचनीय हैं, या यू कहें कि नयाय प्रणाली लचर हैं तभी तो अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है।
-  प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार
 यूँ तो भारत की न्याय प्रणाली को दुनिया की सर्वश्रेठ  न्याय प्रणाली माना गया है किन्तु न्याय देने में देरी होने के कारण जनता परेशान हो जाती है । आपराधिक न्याय  प्रणाली मे सुधार की बेहद गुंजाइश है।
1: आरोप लगने के बाद आरोपी को जमानत ना हो ।
2: हिरासत में आरोपी को कोई सुविधा ना दी जाए 
3: विभिन्न न्यायालयों में केस ना जाए ।
4: कोर्ट का निर्णय तय समय में आये 
5: आपराधिक मामलों में दया याचिका ना हो ।
6: फैसला आने के तुरन्त बाद अपराधी को सजा दी जए।
- सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
आपराधिक न्याय प्रणाली को पहले सुधार की जरूरत है कि न्यायालय का काम जज के दायें हाथ पर निर्भर न हो । इसमें जज का कोई दोष नहीं होता । तारीख पे तारीख की परम्परा खत्म हो । 
        हर श्रेणी के अपराध के लिए समय सीमा तय की जाय और इस अवधि में मामले को देख रही पीठ के किसी भी जज को हटाया या स्थानांतरित न किया जाय ।
         पुलिस को भी मामले की छानबीन में सतर्कता और चुस्ती दिखाने का आदेश दिया जाय ।
        हत्या या किसी गम्भीर अपराध में गवाहों की आकस्मिक मृत्यु दोषी के लिए एक गलत सबूत माना जाय । और बार बार ऐसी घटना होने पर तत्काल फैसला दिया जाय ।
        दुष्कर्म जैसे अपराध के दोषी को जमानत किसी भी कीमत पर न दी जाय । इसके मुकद्मे को वापस लेने वाले को (हो सकता है कि साजिशन आरोपी पर आरोप लगाया गया हो।) भी कठोर दण्ड का प्राविधान हो । ताकि कानून का दुरुपयोग न किया जा सके । दुष्कर्म, दहेज और दलित संबंधी कानूनों की आड़ में ब्लैकमेलिंग का धंधा भी खूब पनप रहा है ।
           कानून को समयबद्ध न्याय से बाँधना होगा और जज के हिस्से में भी मामलों को निबटाने की संख्या निर्धारित हो । अपवाद की स्थिति भी विचारणीय होनी चाहिए ।
  - रेखा श्रीवास्तव
       कानपुर - उत्तर प्रदेश
सचमुच हमारे अपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की सुधार की जरूरत है।न्याय प्रणाली के लचीलेपन की वजह से या लम्बी प्रक्रिया कि वजह से अपराधियों में खौफ नहीं है। कुछ भी करते हैं और जमानत पर रिहा हो आराम से रहते हैं नित नये घिनौने कृत्य करते हैं।सारे साक्ष्यो, गवाहों के बावजूद न्याय मिलने में बहुत देर हो जाता है।लोग विचलित हो जाते हैं। बलात्कर और हत्या जैसे मामलों में सुनवाई तुरंत होने की आवश्यकता है।इन मामलों के अपराधियों को जमानत नहीं मिलना चाहिए।
- रेणु झा
बेशक  आज जो अपराध निरंतर बढ रहे हैं यह इस दिशा की ओर विचारणीय है ! न्याय प्रणाली में संशोधन होना ही चाहिए ! हमारा कानून संविधान के नियमों पर चलता है और नियमों के पालन की आड़ में वकिल अपना पेट भर लेते हैं !बेचारा पीडित यातना  तो सहता है साथ ही समय , रुपये से कंगाल हो जाता है और अपराधी या तो तैयार जेल की रोटियां तोड़ता है अथवा बाहर की हवा  खाते हुये बेखौफ दूसरे जधन्य अपराध करता है !
पहले तो भ्रष्टाचार पर नकेल कसनी होगी  जिससे केस आगे बढ़ सके!
 नाबालिग समझ छोडा़ न जाये चूंकि जो नराधम जधन्य अपराध करता है नाबालिग हो ही नहीं सकता 
कानून की कैंची सेंसर पर लगनी चाहिये एवं वीडियो पार्लर को भी (पौर्न पिक्चर)बंद कर देना चाहिये  ! यह सभी भ्रष्टाचार न हो और सख्ती से काऩून की गिरफ्त में हो तो संभव है !
रेप केस जैसे जधन्य अपराध का निर्णय तुरंत हो सामुहिक रेप में यदि केवल किसी ने रेपिष्ट की  मदद करने की कोशिश ही की हो उसे भी सजा समान दी जाये ! फांसी की सजा जरुर दी जाये ताकि कोई दूसरा एैसा जधन्य अपराध करने की सोचे भी ना !
बाल शोषण महिला शोषण जैसे अपराध में ढील न दी जाये !
समय बदलता है युग बदलता है तो कानून के नियम क्यों नहीं !
आज संविधान को भी अपने कुछ  नियमों में  सख्ती से बदलाव लाना होगा ताकि वकील न कह सके के हम संविधान की इज्जत करते हैं अत:उनके नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते जो आज एक दोषी के वकील ने कहा !
- चन्द्रिका व्यास 
मेरी दृष्टि में आपराधिक न्याय प्रणाली निम्न बिंदुओं पर सुधार की अपेक्षा रखती है।
  आज के युग में अपराध की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है।  जजों के पद न्यायालय में रिक्त  रहते हैं। इनकी संख्या कम होने के साथ सैकड़ों हजारों की संख्या में मुकदमे लंबित पड़े रहते हैं। अतः सबसे पहले न्यायिक  व्यवस्था को सुधारने के लिए जजों की संख्या भरपूर रहनी चाहिए। दूसरे निचली, मध्यम और सुप्रीम कोर्ट , इन सब में किसी भी तरह के न्याय की सीमा 1,1,1 माह से अधिक नहीं होनी चाहिए। न्यायालय के आदेश की अवहेलना के दोषियों को सजा होनी चाहिए। कम से कम समय में निर्णय होना चाहिए। साधारण गंभीर और अति जघन्य आरोपों से संबंधित निर्णयों के लिए अलग-अलग समय सीमा  निर्धारित होनी चाहिए। जमानत देने के लिए कठोर नियम होना चाहिए।जब समय सीमा निर्धारण करके न्याय शीघ्र संभव हो सकेगा तब ही सभी लोगों का न्याय प्रणाली मैं विश्वास भी बनेगा।
- डॉ. रेखा सक्सेना
भारत की आपराधिक न्यायिक प्रणाली इतनी कमज़ोर है की अपराधी अपराध करने से डरते नहीं 
इतना समय लगता है इंसाफ  मिलने मैं की उम्र गुज़र जाती है 
यदि दस साल बाद एक व्यक्ति को निर्दोष साबित किया जाए तो ऐसा न्याय भी क्या न्याय हुआ क्यूंकि दस साल वो मुजरिमों की तरह रहा व समाज मैंकलंकित !!
अपराधियों को क़ानून से खेलना आता है और वे डरते नहीं और छूट जाते हैं !
सख्त क़ानून , शीघ्र निर्णय , ही समस्या का समाधान है !!
कानून मैं ऐसे संशोधन की आवश्यकता है जिसमे अपराधी को छूटने का रास्ता न हो !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
बिल्कुल । अपराधी साबित होने पर भी न्याय करने में देर होती है । बड़े-बड़े काम के लिए न्यायालय रात में भी खुलते हैं। इसलिए सभी अपराधिक मामलों में तुरंत न्याय मिलने के लिए प्रणाली में सुधार जरूरी है । दया अपील तो बलात्कारी के लिए होना हीं नहीं चाहिए ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आपराधिक  न्याय  प्रणाली  में  जहां  सुधार  की  आवश्यकता  है  वहीं  अपराध  क्यों  हो  रहे  हैं,  उसकी  तह तक  जाना  भी  जरूरी  है  ।  ऐसा  लगता  है  जैसे  वर्तमान  समय  में  अपराधों  की  बाढ़  सी आ  गई  है  ।  न्याय  प्रणाली  में  लड़कियों,  महिलाओं,  मासूम  बच्चियों  की  सुरक्षा  के लिए  कठोर  कानून  तथा  कुछ भी  गलत  होने  पर  तुरंत  ऐसी  सजा  का  प्रावधान  कि  देखने  वालों  की  रूह  तक  कांप  उठे  ।  कर्मचारियों  में  मुस्तेदी.....इमानदारी  से  अपराध  से  टक्कर  लेने  का  जज़्बा  भी  होना  अति  आवश्यक  है  ।  " काल  करे  सो  आज  कर , आज  करे  सो  अब ......।"  वाला  जज़्बा  न्याय  प्रणाली  से  जुड़े  सभी  लोगों  में   होना  चाहिए  । 
         - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
बिल्कुल, सुधार की अतिआवश्यकता है ‌। हमारी न्याय प्रणाली बहुत पुरानी  और जर्जर हो गई है । आज अपराधी बहुत , "हाई-टेक" समयानुसार हो गये हैं,फलत: हम उसी पुरानी न्यायिक प्रणाली से क्यूं बंधे रहें ?? आज कितने साल बीत गए, स्व० राजीव गांधी जी के हत्यारों को उचित सजा नहीं दी गई है,अब जब इतने वी वी आई पी,, के केश में इतना लम्बा समय खींच सकता है फिर साधारण व्यक्ति को कब  तक और क्या इंसाफ मिलेगा ये सोचनीय है । अपराधी इसी लचर न्यायिक व्यवस्था के कारण  बड़ा से बड़ा अपराध कर बैठते हैं क्योंकि उन्हें कड़ी और त्वरित सजा नहीं मिलती है जिसके कारण अपराधी बेखोफ निरन्तर अपराध कर रहे हैं । अपराधिक  न्याय प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन की अति आवश्यकता है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार 
न्याय किसी भी मुद्दे पर हो उसका आधार साक्ष्य और गवाह ही होते हैं । इसी के आधार पर ही निर्णय दिए जाते हैं । कोर्ट में इतने केस लंबित होते हैं कि शीघ्र फैसला नहीं हो पाता ।
इस सबसे निपटने हेतु अलग-अलग अपराधों हेतु अलग-अलग कोर्ट बनने चाहिए जिससे अपराध की भयावहता के अनुसार तुरंत निर्णय किये जा सकें । अक्सर देखने में आता है कि दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देने पर वो न केवल पीड़ित व उसके परिवार वालों को परेशान करता है बल्कि और भी कई जघन्य अपराधों को अंजाम दे देता है क्योंकि उसे मालुम है कि सजा तो एक बार ही मिलनी है जब तक कानूनी दाँव पेंचों से बच सको बच लिया जाए ।
न्याय प्रणाली की समय- समय पर समीक्षा होनी चाहिए क्योंकि वर्तमान में न केवल अपराधों के कारणों में अंतर आया है वरन लोगों की प्रवृत्ति यों में भी बदलाब आया है । आजकल हिंसा व झूठ का बोलवाला ज्यादा बढ़ा है ।
बदलते परिवेश में जरूरी हो गया है कि लोग भी जागरुक हों और अपराधी लोगों का एक जुट होकर मुकाबला करें जिससे अपराधी भी भयभीत होंगे कि अब लोग एकजुट होकर खुद सजा देंगे जिससे अपराध में अवश्य ही कमीं आयेगी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश

न्यायधीश श्री के सी शर्मा द्वारा सम्मानित होते हुए बीजेन्द्र जैमिनी 
दिनांक 14 मई 2012




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