क्या न्याय प्रणाली सुस्त के कारण कमजोर पड़ गई है ?


न्याय प्रणाली में सुधार ज़रूर होना चाहिए । कम से कम न्याय को लम्बा नहीं खिंचा जाना चाहिए । नहीं तो न्याय पाने वाले का संब्र टूट जाता है और वह अपराधी तक बन जाता है या कहीं गरीबी न्याय पर भारी पड़ जाती है । सबसे बड़ी बात यह है कि न्याय बहुत मंहगा है । अदालत से एक कापी छः - सात रुपए में मिलती है । परन्तु वकील उस कापी के दो तीन हजार रुपए वसूल लेता है और ऊपर से न्याय पालिका तारीख़ पर तारीख़ देकर न्याय को सुस्त बनाकर कमजोर कर देता है । आज की चर्चा का उद्देश्य यही है । अब आये विचारों को भी देखते हैं :-
न्याय प्रणाली की सुस्ती का प्रथम कारण है उचित न्याय। क्योंकि मुलजिम जब तक मुजरिम नहीं बन जाता आप उसे सजा नहीं दे सकते।' अटपट राजा झटपट न्याय' की कई कहानियां हमने पढी हैं जिसमें राजा निर्दोष लोगों को सजा दे देता है और दोषी बच जाता है। किंतु हकीकत में ऐसा नहीं होता अपराधी के अपराध को सिद्ध करने के लिए तमाम गवाहों और सबूतों की जरूरत पड़ती है और आज के भ्रष्टाचारी युग में गवाह तोड़ दिए जाते हैं साक्ष्य मिटा दिए जाते हैं इस स्थिति में न्याय प्रणाली को उचित न्याय करना बहुत कठिन हो जाता है। इनके अलावा न्याय प्रणाली बहुत महंगी भी है हर गरीब आदमी न्याय के लिए लंबी चौड़ी फीस अदालत को नहीं दे सकता और इस तरह बहुत सारे ऐसे कारण हैं जिनके कारण न्याय प्रणाली सुस्त सी दीख पड़ती है।
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
कुछ हद्द तक यह बात सही लगती है चूंकि घटना घटने के लंबे अंतराल बाद आपको न्याय मिलता है तो उसे  यह न्याय संगत नहीं लगता चूंकि तब तक वह अपना बहुत कुछ खो चुका होता है उसकी संवेदनाएं ,विश्वास ,  आत्मबल एवं लोगों को परखने समझने का दृष्टिकोण खो चुका होता है !   
एक छोटे बच्चे को भी उसकी मांगी हुई वस्तु के लिए  प्रोमिस करके आज कल करते हुए समयसर नहीं दे पाते तत्पश्चात उसेउसकी वस्तु मिल भी जाती है तोउसका उत्साह जाता रहता है !उसका विश्वास हमसे उठ जाता है! 
वैसे देखा जाय तो हमें न्याय के समय का इतंजार तो करना चाहिए ! धैर्य  और विश्वास तो हमें हमारे न्याययीक सिस्टम पर रखना होगा चूंकि सारी तहकीकात करते समय यह देखना भी जरुरी है कि दोषी की जगह कोई निर्दोष को सजा न मिल जाये ! न्यायजल्दी मिलना ही चाहिये मैं भी इसके पक्ष में हूं किंतु हमारी न्यायीक प्रणाली में कुछ सुधार की जरुरत है ! 
 (1)केस ज्यादा हैं और जज, वकील कम हैं
(2) यदि न्याय प्रक्रिया सुचारु रुप से चल रही है तो जज का तबादला (सच खुलने पर विध्न )
(4)भ्रष्टाचार-- सबसे बडा़ कारण है !सबूत नष्ट करा और खरीदना! यहीं न्याय प्रणाली को विलंब हो जाता है ,तारिख पे तारिख आ जाती है !
कानून के नियमों में कुछ सख्ती लानी होगी ! चूंकि यदि जनता का कानून से विश्वास उठ गया और तुरत दान महापुण्य वाला हिसाब रहा तो यह हम सभी को भारी पडे़गा !
अत:अंकुश तो जरुरी है !न्याय पर विश्वास रखें !
ईश्वर के यहां देर है अंधेर नहीं!
 पिडि़त व्यक्ति की मनोदशा समझना खेल नहीं है !फिर भी धैर्य और विश्वास से काम लेना होगा !
- चन्द्रिका व्यास
नारी बुद्धि, विवेक, में तो  मर्दों से कभी नहीं हारी लेकिन शक्ति में वो पीछे क्यों रह जाती है ? जो नकारात्मक खबरें हम आए दिन पढ़ते, सुनते हैं उसमें कभी भी उनके शक्ति प्रदर्शन की खबर क्यों नहीं दिखती । उन राक्षसों का सामना करने की हिम्मत वो क्यों नहीं जुटा पा रही ।कमी कहाँ हो रही है ।
   आज ही भास्कर समाचार पत्र में पढ़ा कि गूगल में 200 तरीके महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिए गए हैं फिर दिन में अधिकांश समय गूगल में दुनियाभर की खोज करने वाली महिलाएँ, लड़कियाँ उन साधनों का उपयोग अपनी सुरक्षा के लिए क्यों नहीं करतीं?मैं नाबालिग बालिकाओं की बात नहीं करती लेकिन युवा लड़कियों को सुरक्षा के लिए कोई न कोई हथियार तो उठाना ही पड़ेगा ।कम से कम दो लोगों से टक्कर ले सके इतनी ताकत हम सब में पैदा करनी ही होगी ।तभी हम पूरी तरह से कह पाएँगे, नारी कभी नहीं हारेगी।
कृपया अन्यथा न लें ।मन की कसक थी वो बयाँ कर दी ।
- सुशीला शर्मा 
जयपुर - राजस्थान
न्यायालय में जल्दबाजी नहीं कि जा सकती । लेकिन सुनवाई की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए । निर्णय जल्दी होना अपराध पर अंकुश लगाने की एक सीढ़ी है । लंबा समय उन्हें राहत देता है । अपराध मालूम होने पर त्वरित सजा का प्रावधान होना चाहिए। खास कर बलात्कार जैसे अपराध के लिए तो विशेष बैठक की जरूरत है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
न्याय  में  देरी,  सुस्ती  की  श्रेणी  में  आती  है  ।  ऐसा  कोई   दिन  नहीं  जाता  कि  अखबार  अपराधों  के  रंग  में  न  रंगे  हों  ।  बढ़ते  अपराध  और  न्यायिक   कर्मचारियों  की कमी.... ...जटिलताएं......गवाहों  को खरीदना....बेचना .....भाई-भतीजावाद.....भ्रष्टाचार .....धनलोलुपता.....आलस्य  आदि  न्याय प्रणाली  की  सुस्ती  के  अनेक कारण  हैं  ।  न्याय  में  देरी  व्यक्ति  के  पूरे  जीवन  को  प्रभावित  करती  है  ।  अतः  न्याय  व्यवस्था  को  चुस्त दुरुस्त   होना  जरूरी  है  । 
       - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
 मेरा ऐसा मानना है कि  दिन- प्रतिदिन बढ़ते अपराधों की वजह से न्याय प्रणाली सुस्त नहीं, बोझिल होने से कमजोर हुई है। अनेक रिक्त पद,सामर्थ्यवानों का दबाव एवं न्याय प्रक्रिया से भी बोझ बना है।एक ही प्रकरण अनेक न्यायालयों  से होकर गुजरता है,जिसके समाप्त होने में समय लगता है,तब तक नये प्रकरण और दर्ज हो जाते हैं।
न्याय प्रक्रिया में चिंतन-विमर्श कर सुधार की महती आवश्यकता है।
                                           - नरेन्द्र श्रीवास्तव
हां,, सच में हमारी न्याय प्रणाली सुस्त और कमजोर पड़ती जा रही  है।आज समयानुसार हर चीज "हाईटेक " होता जा रहा है फिर भी , आज भी हम वहीं सदियों पुरानी  न्यायिक प्रक्रिया के अ धीन हीं   चल रहें हैं ।हमारी न्यायिक प्रणाली को भी समयानुसार आमूल_ चूल परिवर्तन करने की जरूरत है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
बिलकुल सही ।अंग्रेजी में प्रचलित कहावत भी है- "Justice delayed is justice denied "न्याय में देरी न्याय से वंचित है। भारत की जनसंख्या के अनुपात में हमारी न्याय पालिका बल छोटी प्रतीत होती है।बहुत दफा न्याय की प्रतिआशा में निर्दोष अभियोगाधीन को वास्तविक सजा से अधिक समय न्यायिक हिरासत मे काटनी पर जाती है जो उसके और उसके समस्त परिवार के लिए अति कष्टकारी ,खर्चीला  और बदनामी का सबब बन जाता है ।
     न्याय में देरी अन्याय है। यदि किसी को न्याय मिलता है किन्तु उसमें बहुत अधिक देरी हो गयी हो तो ऐसे न्याय की कोई सार्थकता नहीं होती।
                     - रंजना वर्मा
                       रांची - झारखण्ड
न्याय प्रणाली सुस्त है क्योंकि दर्ज केस के अनुपात में वकील,जज,कोर्ट की काफ़ी कमी है|सबूतों,गवाहों का अभाव या अंतिम समय में गवाहों का बिक जाना भी न्याय करने में समय ले लेते हैं |  न्याय प्रणाली कमजोर है क्योंकि न्यायालय एक स्वतंत्र संस्था होने बावजूद भी हमारे देश की सरकारों का  इनमें दख़लंदाज़ी रहता है |वो अपने अनुसार न्यायाधीशों,को न्याय करने में बाधा डालते हैं |वर्षो पुरानी न्यायिक प्रक्रिया से ही न्याय हो रहे हैं |बढते अपराध के मद्देनज़र नये तकनीकों को लाकर इनमें बदलाव करना चाहिए |
                                     -  सविता गुप्ता 
                                          राँची - झारखण्ड
ये माना कि न्याय प्रणाली सुस्त होने के कारण कमजोर पड़ गई है किन्तु इस में न्याय पालिका का दोष नहीं ।।
जरा विचार करें कि सर्वोच्च न्यायाधीश महामहिम राष्ट्रपति होते हैं जो लोक सभा और राज्य सभा द्वारा चुने जाते हैं यानि उन्हें बहुमत से राज्य सभा,लोक सभा और विधान्सभायें  चुनती हैं ।दूसरी बात गौर करने वाली ये है कि लोक सभा,राज्य सभा और विधान सभाओं मेँ इस समय या पिछ्ले कार्य कालों में सत्तर प्रतिशत आपराधिक लोग बैठे हैं ।
  जबकी सारे कानून और उनमें संशोधन यही सभाएं करती हैं तो ये ऐसा कानून क्यूं बनाएंगी जिससे उन्हें स्वयं को असुविधा हो ।।न्याय प्रणाली तो वही कर सकती है जो ये नेता लोग करवाना चाहते हैं ।।मेरी नजर में सारा दोष इन लोक,राज्य और विधान सभाओं का है ।।कानून के हाथ बान्ध दिये गये हैं वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते ।।।
    - सुरेन्द्र मिन्हास  
 बिलासपुर - हि प्र 
यह सच है कि किसी भी कार्य में देरी हो जाने पर उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है। उसी तरह समय बीत जाने पर इंसाफ मिलना भी नाइंसाफी ही मानी जा सकती है।
     न्याय में सुस्ती का एक प्रमुख कारण हमारी न्याय-प्रणाली की जटिलता भी है। कभी-कभी सब कुछ स्पष्ट होते हुए भी जटिल न्याय-प्रक्रिया के कारण संगीन अपराधी भी सजा से बच निकलता है जिससे जनमानस में आक्रोश उबल उठता है जो उग्र आंदोलन के रूप में फट पड़ता है।
  अतः मेरे मत के अनुसार चुस्त न्यायपालिका दुरुस्त प्रशासन का अनिवार्य गुण  है।
                 -   गीता चौबे
                  राँची - झारखंड
न्याय प्रणाली की वर्तमान स्थिति में कमजोर कहने में कोई संकोच नहीं है आजकल न्याय इतनी देर से मिलता है कि वह न्याय जैसा रह ही नहीं जाता पाने वाला घोर निराशा से भर चुका होता है ।न्यायाधीश कम हैं मुकदमे अधिक    हैं गवाह नहीं हो पाते से मैं सहमत नहीं यह केवल आम आदमी भ्रष्टाचार दीवानी फौजदारी मामले में अधिक दिखता है ।राजनीतिक मामलों में आधी रात को भी समय निकलता है न्याय भी हो जाता है लगातार सुनवाई भी होती है दूसरी ओर बीस बीस साल तक नम्बर नहीं आता है मैं स्वयं भुक्तभोगी हूँ ।कुल मिलाकर गुड़ ढीला हो न हो बनिया तो ढीला ही है
                                    - शशांक मिश्र भारती
                                 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
बड़े खेद का विषय है की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली सबसे कमज़ोर है समय पर न्याय न मिलने के कारण निर्दोषों की ज़िन्दगी बीत जाती है और मुज़रिमों के हौसले बुलंद होते हैं आवश्यकता है एक ऐसी न्यायिक प्रणाली की जिसमे फैसले की समय सीमा हो ताकि जनता को इंसाफ समय पर मिल सके है।उन्नत देश की यह सबसे कमज़ोर कड़ी है 
- नंदिता बाली 
सोलन -हिमाचल प्रदेश
न्याय देर से मिलने के कई कारण है 
इसमें जज वकील गवाह सभी देरी के लिये 
ज़िम्मेवार है
- मुरारी लाल शर्मा
पानीपत - हरियाणा
समाज को नियंत्रित करने के लिए न्याय प्रणाली बनाया गया था जो कि लचर हो चुका है। आदालतों की फैसला देर से आने के कारण लोगों में असंतोष की भावना पनप रहा है। इस सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत है। छोटी आदालत , बड़ी आदालत और उच्च न्यायालय में सबूत सामने रहने पर जल्द से जल्द सजा सुनानी चाहिए। तभी उन्नाव जैसी घटना रुकेगी। हमारी न्याय प्रणाली सुस्त होने के कारण कमजोर हो गई हैं।
      -  प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार 
न्याय प्रणाली कमज़ोर तोनही  है पर हमारे रक्षक ही भक्षक बन जाये तोन्याय प्रणाली क्या करेगी 
जनता जनार्दन चिल्लाती रहे ..
गरीब निर्देोष हो कर भी सजा पाता है । 
और अमीर गुनाह पर गुनाह कर आराम से घुमता है । 
मैंने अपनी आँखों से देखा है कि गरीब लाचार की शिकायत पुलिस वाले नहीं सुनते दर्ज करना तो दूर डाँट कर भगा देते है 
और यदि गुनाहगार पकड़ा जाता है तो इतना समय लगता है सजा में की पूछे मत निर्भया कांड का क्या हुआ ...
अदालतें , सरकार , प्रशासक सब मिलकर एक समय सिमा में सब मुद्दे निपटाये दे  दोषी को तुरन्त सजा , 
जब तक गुनाह गार को सजा का डर नहीं होगा वह गुनाह पर गुनाह करता रहेगा 
                                              - अलका पाण्डेय


बीजेन्द्र जैमिनी  को सम्मानित करते हुए डॉ अशोक गुलशन

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?