क्या बिना परिश्रम के कोई कर्म सफल होता है ?

बिना परिश्रम के कोई कर्म नहीं होता है । जीवन में ‌कर्म‌ बहुत ‌जरूरी है । कर्म की सफलता परिश्रम पर निर्भर करती है । वैसे तो कर्म सभी करते हैं । कोई ऐसा कर्म आप की पहचान बन जाएं । जो जीवन की सार्थकता सिद्ध कर देता है । अब देखते हैं आये विचार :-
परिश्रम के बिना कोई भी कर्म सफल नही हो सकता।
किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ता है।परिश्रम बाद ही परिणाम पता चलता है।कि परिश्रम कितना किया गया है। उसके अनुसार ही कर्म सामने आता है।वार्ना शेखचिल्ली की तरह सिर्फ ख्याली पुलाव ही पकाए जा सकते हैं।
           - वन्दना पुणतांबेकर
मनुष्य के जीवन- जगत से जुड़े समस्त कार्यों के संपादन में परिश्रम का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि श्रम से कार्य तो होता है पर परिश्रम शारीरिक, मानसिक और बौद्धिकता से जुड़ा होने के कारण उस कार्य में मूलत: सफलता निश्चित करा देता है। जैसा कि कहा भी गया है- "उद्यमेन ही सिध्यंति कार्याणि  न मनोरथे:।
 न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।"
          अत:बिना परिश्रम के कोई कार्य सफल नहीं होता है 
- डाॅ.रेखा सक्सेना
कर्म में ही श्रम छुपा रहता है ।अगर हम अपने किसी कार्य में सफलता पाना चाहते हैं तो हमें  परिश्रम तो अवश्य करना होगा।  बिना परिश्रम प्राप्त हुई सफलता से वैसी आनन्द की अनुभूति नहीं होती,जितनी कि परिश्रम करके होती है ।वैसे भी कहा जाता है ....मेहनत का फल मीठा होता है ।
                  - रंजना वर्मा
बिना परिश्रम के कोई भी कर्म में सफलता नहीं मिलती है|लेकिन ग़लत मंशा से किए गए कुकर्म में लगाए मेहनत सफल होकर भी फलित नहीं होते |हमें परिश्रम से किए कार्यों से मिली सफलता से ही ख़ुशी और शांति मिलती है|
      कई संदर्भ में लोग परिश्रम करते हैं लेकिन उन्हें तब भी सफलता नहीं मिलती तो वो हतोत्साह होकर ग़लत कदम  उठा लेते हैं |मनुष्य जीवन क़ीमती है अत:कर्म करें एक न एक दिन सफलता कदम चूमेगी |
- सविता गुप्ता 
   राँची - झारखंड
बिना परिश्रम किसी भी कार्य में सफलता नही मिल सकती,अगर कभी ऐसे होता भी है तो इसे मात्र एक संयोग कहा जायेगा।
- पूनम रानी
कैथल - हरियाणा
बिना परिश्रम के सफल होना असम्भव है | एक लक्ष्य को साधकर जब व्यक्ति पूर्ण मनोयोग से परिश्रम करता है तब वह अवश्य ही उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है | 
हमारे ग्रंथों में भी लिखा है कि ~ 
" चलती हुई चींटी सौ योजन तक चली जाती है | 
न चलता हुआ गरूड एक पग भी नहीं पहुँच पाता | " 
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कर्म की महत्ता को स्वीकार करते हुये लिखा है कि ~
" कर्म प्रधान विस्व करि राखा 
जो जस करइ सो तस फल चाखा " 
हमें यह मानव जीवन ईश्वर ने कर्मो के अधीन दिया है | 
मानव परिश्रम एवं सत्कर्मों के द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं | मनुष्य प्रत्येक क्षण कुछ न कुछ कर्म करता रहता है | चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक | बिना कर्म किये व्यक्ति का जीवन काटना असम्भव होता है | 
पुरातन काल से ही हमारे जीवन में श्रम की महत्ता को समझकर बालक में श्रम के अनमोल गुणों को कूट- कूट कर भरा जाता था | जिससे बालक का जीवन नित नवीन ऊँचाइयों को स्पर्श कर उन्नतिशील बनता था | बालक कार्य से जी नहीं चुराता था और आलसी रहकर व्यर्थ समय की बर्बादी नहीं करता था | अतः सुखी, सफल जीवन उसी व्यक्ति का होता है जो व्यक्ति परिश्रम करता है | 
- सीमा गर्ग मंजरी
कुछ क्षणों के लिए भले ही सफल मान लिया जाए पर सृष्टि के आरम्भ से अब तक श्रम के महत्व को कभी भी किसी ने नहीं नकारा ।एक दो को छोड़ सभी इसी से सफल हुए ।अतः कर्म की सफलता के लिए परिश्रम का विकल्प नहीं है  उसे नकारा भी नहीं जाना चाहिए ।श्रमवीर ही सच्चे कर्मवीर सफलता उनके कदमों में ।
- शशांक मिश्र भारती
उद्यमेन ही कार्याणि सिद्धयन्ते...
....
प्रेरणादायी व सत्य को समेटे इस श्लोक की पंक्तियाँ कर्म की सफलता की सशक्त हस्ताक्षर की भाँति की तरह हैं।जो कर्म की सार्थकता को सफलता हेतु अनिवार्य मानती हैं कि बिना परिश्रम के कार्य किसी भी सूरत में संभव नही है और जब कार्य ही नही तो सफलता कैसी? अतः सफलता हेतु हर हाल में परिश्रम आवश्यक है।
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
परिश्रम सफलता की वह सुनहरी कुंजी हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने किसी भी कार्य में सफल हो सकता है | परिश्रम से जीवन में कोई भी कार्य करना संभव है| फिर चाहे वह कार्य कितना भी कठिन क्यों ना, लेकिन इसके लिए परिश्रम सही दिशा में और सही तरीके से किया जाना बेहद जरूरी है।
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
बिना  परिश्रम  के  कोई  भी  कर्म  सफल  होना  संभव  नहीं  है  क्योंकि   संसार  में  कोई  भी  व्यक्ति  कर्म   किये  बगैर  नहीं  रह  सकता  और  जब  कर्म  करेंगे  तो  परिश्रम  तो  होगा  ही,   हाँ  यह   होता  है  कि  कोई  अपने  लक्ष्य  की  पूर्ति  हेतु  कितना  कठोर  परिश्रम  करता  है  ।  परिश्रम  की  मात्रा  पर  सफलता  निर्भर   करती  है । 
       - बसन्ती पंवार 
       जोधपुर ( राजस्थान )
 तो परिश्रम से ही सभी कार्य सफल होते हैं ।।
पर अनेकों उदाहरण ऐसे  भी हैं जब कठिन परिश्रम के बाद भी  कर्म सफल नहीं होते ।।ऐसा भी होता है कि बिना परिश्रम के लोग सफल होते भी देखे गये हैं ।।
                   - सुरेन्द्र मिन्हास 
     बामटा - बिलासपुर - हि प्र 
परिश्रम के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। व्यक्ति अपने अथक परिश्रम से हीे मंजिल तक पहुँचता है। कठिन परिश्रम से व्यक्ति अपने को सर्वश्रेष्ठ बना पाता है इतिहास इस बात है साक्षी है ।भगवान श्री कृष्ण ने भी श्री भागवत गीता में उपदेश दिये हैं कि *कर्म करो, फल की चिंता मत करो* यदि हमारे कर्म अच्छे हैं तो उसका फल भी अच्छा ही मिलता है समय का इंतजार करना पड़ता है। परिश्रम व्यक्ति को स्वावलंबी बनाती है । परिश्रम से किया गया कार्य व्यक्ति की अलग पहचान बना देती है।
- डॉ अर्चना दुबे
   मुम्बई - महाराष्ट्र
परिश्रम करना बड़ा ज़रूरी है 
कुंछ भाग्य भी साथ देता है 
तभी सफलता मिलती है
- मुरारी लाल शर्मा
पानीपत - हरियाणा
परिश्रम सफलता की कुंजी है !बिना परिश्रम के तो संभव ही नहीं है किसी जीवधारी प्राणी का जीवन जीना !एक पक्षी भी घोषला बनाने के लिए संघर्ष करता है और बिना परिश्रम के संघर्ष नहीं होता !किसी भी उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष का फल तभी प्राप्त होता है जब उसमें धैर्य परिश्रम का पसीना बन पड़ता है !
इसीलिए कहते हैं परिश्रम का फल मीठा होता है !
                                                 - चन्द्रिका व्यास
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन " बचपन से हम यह सुनते आए हैं कि कर्म करो,फल की चिंता मत करो।
अपना कर्म परिश्रम के साथ करते रहने से हमें सार्थक फल मिलता है। परिश्रम से ही हमें दुनिया की सभी सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है ।यदि मज़दूर परिश्रम न करें तो क्या हमारे भव्य भवन और विशाल इमारतों की तामीर हो पाएगी?यदि किसान खेतों में परिश्रम करके अन्न उपजाना छोड़ दे तो क्या हम सभी प्राणी भूख से नहीं मर जाएंगे?किसानों के परिश्रम के फलस्वरूप ही यह धरती अन्न के रूप में सोना उपजाती है।किसी भी सफलता या उपलब्धि को बिना परिश्रम के प्राप्त नहीं किया जा सकता।परिश्रमी व्यक्ति संघर्ष करके असंभव कार्य को भी संभव बना सकते हैं और अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं... अतः हमें परिश्रमी बनना है, आलसी नहीं।कहां भी गया है-'दैव-दैव आलसी पुकारा'। परिश्रम ही सफलता के सारे द्वार खोलता है।
- मंजुला सिन्हा
रांची - झारखंड

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Comments

  1. आपको बहुत बहुत धन्यवाद सर जी आज की चर्चा बहुत ही अच्छा लगा

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