क्या आलोचना सुधार की आधारशिला रखती है ?
आलोचना के लिए कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए । तभी सफल आलोचना को मान्यता मिलती है । परन्तु ऐसा होता नहीं है । आलोचना की आड़ में जलनशील सामने आतीं हैं । फिर भी आलोचना को सुधार की आधारशिला माना जाता है। देखते हैं आये विचारों को :-
जी बिल्कुल! आलोचना न हो तो सभी साहित्यकार गुरूर का पर्याय हो सकते हैं.
लेखन और वाचन में क्रमशः मीडिया की आलोचना बेहतरीन साबित हो सकती है.
मुझे मात्र इस कारण से ही अभिभूत होकर एक जाने माने श्रेष्ठ पटल ने निर्णायक पद पर रखने की पेशकश की,चूंकि कि मैं उनके पटल पर अंधाधुंध वर्तनीदोषों की ओर ध्यानाकर्षण कराने लगी थी. वाचन में भी उच्चारण दोष एवं अस्पष्ट अभिव्यक्ति व्यवधान हैं.
आलोचक या समीक्षक रचना की आलोचना करके कमियों और खूबियों का व्यौरा देकर उन्हें
लेखक द्वारा परिमार्जित कराने के सुअवसर प्रदत्त करता है
- डॉ अंजु लता सिंह
दिल्ली
- वन्दना पुणतांबेकर
जीवन जगत से संबंध विभिन्न पहलुओं को सुधारने के लिए मात्र आलोचना को आधारशिला नहीं माना जा सकता। क्योंकि " मुंडे- मुंडे मतिर्भिन्ना " । अतः आलोचना से उपजी बैमनस्यता से बचकर समालोचना को सुधार का मंगलकारी आधारशिला माना जाना चाहिए।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
आलोचना का दृष्टिकोण यदि सकारात्मक हो जिससे कोई सीख मिले तो उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए |
दुर्भावनापूर्ण या व्यर्थ के आलोचना कड़वाहट ही पैदा करते हैं|सामने वाला यदि आलोचना ग्रहण करने में परिपक्व है तो सुधार की सम्भावना वरना मौन धारण ही उपयुक्त |
- सविता गुप्ता
राँची - झारखण्ड
- पूनम रानी
कैथल - हरियाणा
- मुरारी लाल शर्मा
पानीपत - हरियाणा
- चन्द्रिका व्यास
अवश्य ही आलोचना सुधार की आधारशिला होती है बशर्ते कि आलोचक आपका शुभेच्छु है और वो आपको सामने से आपकी कमियां बताकर सुधरने का मौका देता है। किन्तु यदि यही आलोचना किसी के पीठ पीछे की जाती है तो वो निंदा की श्रेणी में आता है और पीठ पीछे की गई निंदा कभी भी किसी को सुधार के लिए प्रेरित नहीं कर सकती है।
- रूणा रश्मि
राँची - झारखंड
आलोचना सुधार की आधारशिला तब रख सकती है जब आलोचना महज आलोचना के लिए नहीं वरन् किसी के सुधार के लिए की जाये याने समालोचना हो।- दर्शना जैन
खण्डवा - म.प्र
" मानव जीवन में गुण दोषों का होना नैसर्गिक स्वभाव है |
क्योंकि सर्वगुण सम्पन्न तो कोई भी नहीं होता है | "
मेरा मानना है कि व्यक्ति के गुणों को बढाने में आलोचना का अति महत्वपूर्ण स्थान है | " एक अच्छा आलोचक साबुन के जैसा होता है जो जीवन से मैलरूपी दुर्गुणों को बाहर निकालने में सक्षम होता है | हमारे संत महात्मा कबीरदास जी भी यही कहते हैं कि ~
निंदक नियरे राखिये
आँगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना
मैल भस्म हुई जाय | "
किंतु यह स्वस्थ आलोचना हो किसी भी प्रकार का आक्षेप, व्यंग या छींटाकशी में बात न कही जाये वरन् सुधार को इंगित करती आलोचना अवश्य ही होनी चाहिए | "
- सीमा गर्ग मंजरी
यदि जीवन में शिक्षक नहीं हो तो 'शिक्षण' संभव नहीं है। इसकी आधारशिला शिक्षक रखता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है क्योंकि उन्हें 'गुरु' कहा जाता है लेकिन अब जबकि सामाजिक व्यवस्थाओं का स्वरूप बदल गया है इसलिए शिक्षक भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहा है।
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
वर्तमान समय में सभी झूठी तारीफ तो सुनना पसंद करते हैं मगर सुधार हेतु सच्ची बात कहने वाले ....कमियां, गलतियां निकालने वाले आलोचक से कन्नी काटने लगते हैं जबकि प्रत्येक कार्य में इससे सुधार संभव है । आलोचक को शब्दों का स्तेमाल बहुत सोच-विचार कर करना चाहिए जिससे सामने वाला सहर्ष स्वीकार कर अपेक्षित सुधार कर सके ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर ( राजस्थान )
आलोचना दो प्रकार की होती है:-स्वस्थ आलोचना और आलोचना के लिये आलोचना ।
स्वस्थ आलोचना जहां व्यक्ति को प्रेरित और उत्साहित करती है वहीँ आलोचना के लिये आलोचना एक ओर कर्ता को हतोत्साहित करती है दूसरे आलोचक को समाज में बौना बनाती है ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हि प्र
आलोचना सुधार की आधारशिला है जबकि वह बिना द्वेष और ईर्ष्या भाव से की जाए। उससे व्यक्ति अपनी कमियाँ दूर कर सकता है परन्तु ईर्ष्या भाव से की गयी आलोचना निंदा का रूप ले लेती है।
- डॉ साधना तोमर
बड़ौत - बागपत - उत्तर प्रदेश
आलोचना के महत्व को नकारा नहीं जा सकता यदि कोरी आलोचना ही न हो सम्बन्धित के अच्छे पक्ष को भी सामने रखा जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है ।
- शशांक मिश्र भारती
आलोचना ही सुधार की ओर प्रेरित करती है वर्ना हम जो भी करते हैं उसे देखकर झूठी प्रशंसा सुन-सुन कर फूलते रहते हैं।
दूसरे लोग जो कहते हैं (हालांकि अपने भी) वह सब कुछ सच नहीं होता। कई बार प्रोत्साहन देने हेतु गलतियों को अनदेखा करते हुए लोग वाह- वाह कर देते हैं अथवा सही करने में, बताने में वक्त लगेगा, समय की कमी को देखते हुए, 'बहुत अच्छा- बहुत अच्छा' .. 'सुंदर लिखा है'... 'कमाल कर दिया आपने'.. झूठी प्रशंसा करते हैं। इसके विपरीत कोई एक सही व्यक्ति आपकी गलती बताएगा, ठीक क्या है, सुधार की गुंजाइश कहां है, वह सब कुछ बताएगा तो हम आगे से उस गलती को नहीं दोहराते। हमारी कला जो कल थी वह आज नहीं, जो आज है उसमें कल और सुधार होता जाता है जब हम पहली बार गलती करते हैं यदि तभी कोई आलोचक हमें प्रेरित कर दे.. 'जैसे कच्चा चना अंकुरित होता है भुना हुआ नहीं' ठीक उसी प्रकार तब तो सुधर जाते हैं, नहीं तो बाद में कोई गुंजाइश नहीं रहती। कोई आलोचना करता है तो हम सुनने को तैयार नहीं होते। बल्कि पीठ पीछे आलोचक की बुराई और करने लगते हैं। इसलिए 'निंदक नियरे राखिए...।' आलोचक ही धरा से आसमान तक पहुंचाते हैं। आलोचना सुनने की क्षमता रखते हुए उनको 'धन्यवाद' कहना सीखेंगे तभी सुधार होगा। ज़रा सोच कर देखिए .. किसी मकान की यदि आधारशिला सही नहीं है तो उसकी मंजिल कैसी होगी..।
- संतोष गर्ग, मोहाली (चंडीगढ़)
'निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।'
आलोचना ही है जो हमारी कमियों को बताती एवं उन्हें दूर करने का अवसर देती है। कुछ लोग इसे अन्यथा लेते हैं पर हमारे सच्चे मित्र तो वे आलोचक ही हैं। जब तक हमें अपनी कमियों का पता नहीं चलेगा तब तक हम एक बेहतर इंसान बन नहीं सकते बशर्ते आलोचना उदारवादी हो। केवल अपनी भड़ास निकालने के लिए न की जाए। डर या कृपा पाने के उद्देश्य से प्रशंसा न की जाए।
- भोला नाथ सिंह
बोकारो
आलोचना का अर्थ है प्रशंसा करना और कमियां उजागर करना
प्रशंसा व्यक्ति को प्रोत्साहन देती है और कमियां व्यक्ति क कार्य को बेहतर बनाती हैं
आलोचना को निंदा का पर्याय मानते हैं लोग जो गलत है
आलोचना सुधार की आधारशिला है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जीवन में सफलता पाने के लिये स्वयं की कमियां और खामियां जानना भी अत्यंत आवश्यक है। तभी तो हम उन्हें दूर कर पायेंगे। जब त हम ये दूर नहीं होंगी, सफलता को बाधित करती रहेंगी। आलोचना ,कमियों और खामियों का ही रूप है ,इसे यूँ भी कह सकते हैं कि वह सुधार की आधारशिला रखती है। हमें इसे सहर्ष स्वीकार करते हुये,उसके निराकृत करने के प्रयास करना चाहिये। तभी हमारा सफलता का पथ सहज और सरल होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
आलोचना का का अर्थ बुराई करना, कमियाँ निकालना, निंदा करना या किसी को कम आँकना नहीं बल्कि बेहतरी के लिए सुझाव देना है।इसके अतिरिक्त आ+लोचन+आ अर्थात अधिक से अधिक लोचन द्वारा देखी, परखी, पसंद की गई और जहाँ भावका अभाव लगे उस पर सकारात्मक शब्दों में सुझाव प्रस्तुत करना है।लेखक जब रचना करता है तो भाव में इतना बह जाता है कि अपने विचारों के बहाव में उधेड़बुन करता है और ऐसे में ही कभी-कभी शब्दों की, कभी व्याकरण की तो कभी लय गति से विचलित हो जाता है और इस ओर ध्यान आकर्षित करने और सहज सलाहकार एक सच्चा समालोचक होता है ।आलोचना, समीक्षा के लिए हम अपनी पुस्तक या रचनाएँ इसीलिए श्रेष्ठ साहित्यकारों को ही देना उचित समझते हैं लेकिन पाठकों की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण मानी जा सकती है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
आज समय के साथ साथ आलोचना के मापदंड भी बदले हैं ।आलोचना सही मायने में लेखन को सुदृढ़ बनाने के लिए है ,किन्तु आलोचना का अर्थ मात्र आज
ईर्ष्या और द्वेष के कारण लेखन को अंधकार में धकेल रही है ।आलोचना कृति की होनी चाहिये व्यक्ति की नहीं ।एक सहृदय रचनाकार यदि आलोचना लिखता है तो वह कृति को सुदृढ़ रूप देगा ।ताकि भावि लेखन सार्थक हो सके ।मात्र काव्यशास्त्र की दृष्टि से आलोचना करना एक संवेदनशील रचनाकार के साथ अन्याय होगा ।
आलोचना करते समय मतभेद और मनभेद को अलग अलग रखना चाहिए
मेरी तीन आलोचना की पुस्तक आई हैं उसी बीच परमानंद श्रीवास्तव और नामवर सिंह जी से मिलना हुआ मैंने जाना एक आलोचक की दृष्टि कैसी होनी चाहिए ।
- डॉ आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद - गुजरात
आलोचना करने वाले पर निर्भर करता है अगर वास्तव में आपके भले के लिये आलोचना कर रहा है और आपको यह एहसास हो जाता है तो आप अवश्य अपने में सुधार लायेंगे , आपको वह आलोचना बुरी नही लगेगी लेकिन आजकल बहुत लोग दुर्भावनापूर्ण या ईष्या में आलोचना कर देते है उससे दुख ज़रूर होता है सुधार नही, समझदार शान्त भाव से सह जाता है वरना आपस में कई मन मुटाव भी हो जाते है
- सुदेश मोदगिल नूर
" आज की चर्चा " में Twitter पर भी विचार आये हैं । पढ़ने के लिए लिंक को क्लिक करें :-
आलोचना पर सभी विचार पढ़कर प्रसन्नता हुई ।बधाई व आभार
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